Political COVID’ उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने इस खतरनाक वायरस से की किसकी तुलना?*l

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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भारत में चुनाव में मतदाताओं की भागीदारी बढ़ाने में यूएसएजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (यूएसएड) द्वारा कथित तौर पर वित्त पोषण किए जाने को लेकर शुक्रवार को चिंता व्यक्त की। उन्होंने इसे ‘Political COVID’ करार दिया। कथित तौर पर वित्त पोषण किए जाने को लेकर कहा कि जिन लोगों ने देश के लोकतांत्रिक मूल्यों पर इस तरह के हमले की अनुमति दी, उन्हें बेनकाब किया जाना चाहिए।

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा, मैं दंग रह गया जब अमेरिका के राष्ट्रपति ने खुद स्वीकार किया कि भारत में चुनावी नतीजों को प्रभावित करने के लिए वित्तीय ताकत का उपयोग किया गया। किसी और को निर्वाचित कराने की साजिश रची गई। चुनाव का अधिकार केवल भारतीय जनता का है, कोई भी बाहरी ताकत इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती।” उन्होंने सभी नागरिकों से आह्वान किया कि वे इस ‘Political COVID’ के खिलाफ एकजुट हों।

समाज में ‘Political COVID’ ने घुसपैठ की-धनखड़

उपराष्ट्रपति निवास में शनिवार को 5वें आरएस इंटर्नशिप कार्यक्रम के समापन समारोह को संबोधित करते हुए जगदीप धनखड़ ने कहा कि समय आ गया है कि हम पूरी तरह से इस बीमारी की जांच करें। हमारे लोकतंत्र को नष्ट करने के लिए हमारे समाज में इस ‘Political COVID’ ने घुसपैठ की है। इस भयावह गतिविधि में शामिल सभी लोगों को पूरी तरह से बेनकाब किया जाना चाहिए। उन्होंने यहां तक कहा कि चुनाव करना केवल भारतीय लोगों का अधिकार है। कोई भी उस प्रक्रिया से छेड़छाड़ कर रहा है तो, वह हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर कर रहा है. इससे हमारे लोकतंत्र को नष्ट करने की कोशिश की जा रही है।

संवैधानिक संस्थाओं पर व्यवस्थित तरीके से हमले हो रहे-धनखड़

उपराष्ट्रपति ने चिंता जताई कि भारत की संवैधानिक संस्थाओं पर व्यवस्थित तरीके से हमले हो रहे हैं। उन्होंने कहा, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री – ये सभी संवैधानिक पद हैं. लेकिन इनका मजाक उड़ाया जा रहा है। यह एक नई तरह की ‘वोकिज्म’ है, जहां सम्मान की जगह अपमान को बढ़ावा दिया जा रहा है। उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियों पर कड़ा ऐतराज जताया। भारत की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति को उनकी संवैधानिक भूमिका निभाने के लिए भी निशाना बनाया जाता है। उनका लंबा प्रशासनिक और राजनीतिक अनुभव है, लेकिन उनकी जनजातीय पहचान पर सवाल उठाए जाते हैं। यह अस्वीकार्य है।

फ्लाइट में शिवराज सिंह को मिली टूटी सीट, बोले- एयर इंडिया पर भरोसा भ्रम निकला

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मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एअर इंडिया की सेवाओं को लेकर नाराजगी जताई है।मध्यप्रदेश के पूर्व सीएम और केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान भोपाल से दिल्ली एयर इंडिया की फ्लाइट पर जा रहे थे। इसी दौरान उनकी सीट टूटी और धंसी हुई थी। जिसपर उन्होंने एक्स पर नाराजगी जताई। शिवराज ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा है कि एयर इंडिया की फ्लाइट में बैठना तकलीफदायक था।

केंद्रीय कृषि मंत्री ने एक्स पर लिखा, आज मुझे भोपाल से दिल्ली आना था, पूसा में किसान मेले का उद्घाटन, कुरुक्षेत्र में प्राकृतिक खेती मिशन की बैठक और चंडीगढ़ में किसान संगठन के माननीय प्रतिनिधियों से चर्चा करनी है। मैंने एयर इंडिया की फ्लाइट AI436 में टिकट करवाया था, मुझे सीट क्रमांक 8C आवंटित हुई। मैं जाकर सीट पर बैठा, सीट टूटी और अंदर धंसी हुई थी। बैठना तकलीफदायक था।

टाटा प्रबंधन के बाद नहीं सुधरी एयर इंडिया की सेवा-शिवराज

शिवराज ने आगे कहा कि जब मैंने विमानकर्मियों से पूछा कि खराब सीट थी तो आवंटित क्यों की? उन्होंने बताया कि प्रबंधन को पहले सूचित कर दिया था कि ये सीट ठीक नहीं है, इसका टिकट नहीं बेचना चाहिए। ऐसी एक नहीं और भी सीटें हैं। सहयात्रियों ने मुझे बहुत आग्रह किया कि मैं उनसे सीट बदल कर अच्छी सीट पर बैठ जाऊं लेकिन मैं अपने लिए किसी और मित्र को तकलीफ क्यों दूं, मैंने फैसला किया कि मैं इसी सीट पर बैठकर अपनी यात्रा पूरी करूंगा। मेरी धारणा थी कि टाटा प्रबंधन के हाथ में लेने के बाद एयर इंडिया की सेवा बेहतर हुई होगी, लेकिन ये मेरा भ्रम निकला।

शिराज सिंह के पोस्ट के कुछ मिनटों बाद ही एयर इंडिया ने शिवराज सिंह चौहान से माफी मांगी है। एयर इंडिया के हेंडल से रिप्लाई किया गया जिसमें लिखा- महोदय, हमें हुई असुविधा के लिए खेद है। कृपया निश्चिंत रहें कि हम इस मामले को ध्यान से देख रहे हैं ताकि भविष्य में ऐसी कोई घटना न हो। हम आपसे बात करने का अवसर पाकर प्रसन्न हैं। कृपया हमसे संपर्क करने के लिए सुविधाजनक समय पर हमें DM करें।

तमिलनाडु और केंद्र के बीच बढ़ी तनातनीःजानें शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने एमके स्टालिन को क्यों लिखा लेटर?

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हिंदी भाषा को लेकर केन्द्र सरकार और तमिलनाडु सरकार के बीच तनातनी बढ़ गई है। केंद्र सरकार और तमिलनाडु सरकार के बीच राष्ट्रीय शिक्षा नीति यानी एनईपी 2020 के मुद्दे पर विवाद बढ़ा है। इस मुद्दे पर केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने 21 फरवरी को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन को पत्र लिखा। उन्होंने राज्य में हो रहे नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (एनईपी) के विरोध की आलोचना की। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु सरकार को एनईपी 2020 को ‘संकीर्ण दृष्टिकोण’ से नहीं देखना चाहिए।

धर्मेंद्र प्रधान ने लिखा, 'किसी भी भाषा को थोपने का सवाल नहीं है। लेकिन विदेशी भाषाओं पर अत्यधिक निर्भरता खुद की भाषा को सीमित करती है। नई एनईपी इसे ही ठीक करने का प्रयास कर रही है। एनईपी भाषाई स्वतंत्रता को कायम रखती है और यह सुनिश्चित करती है कि स्टूडेंट अपनी पसंद की भाषा सीखना जारी रखें।'

धर्मेंद्र प्रधान ने अपने लेटर में मई 2022 में चेन्नई में पीएम मोदी के 'तमिल भाषा शाश्वत है' के बायन का जिक्र करते हुए लिखा- मोदी सरकार तमिल संस्कृति और भाषा को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देने और लोकप्रिय बनाने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। मैं अपील करता हूं कि शिक्षा का राजनीतिकरण न करें।

शिक्षा मंत्री स्टालिन की ओर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लिखी गई चिट्ठी का जवाब दे रहे थे। स्टालिन ने कहा कि केंद्र प्रायोजित दो पहलों समग्र शिक्षा अभियान (एसएसए) और पीएम श्री स्कूल को राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) से जोड़ना मौलिक रूप से अस्वीकार्य है। इस पर प्रधान ने स्टालिन को कहा, प्रधानमंत्री को भेजा गया पत्र मोदी सरकार की ओर से प्रचारित सहकारी संघवाद की भावना का पूर्ण खंडन है। इसलिए, राज्य के लिए एनईपी 2020 को अदूरदर्शी दृष्टि से देखना और अपने राजनीतिक एजेंडे को बनाए रखने के लिए प्रगतिशील शैक्षिक सुधारों को खतरे में डालना अनुचित है।

बता दें कि तमिलनाडु और केंद्र सरकार राज्य में नयी शिक्षा नीति के कार्यान्वयन को लेकर आमने-सामने हैं। द्रविड़ मुनेत्र कड्गम (डीएमके) सरकार ने शिक्षा मंत्रालय पर महत्वपूर्ण योजनाओं के लिए धन रोकने का आरोप लगाया है। दरअसल, तमिलनाडु सरकार ने एनईपी 2020 को लागू करने से इनकार कर दिया है। इस कारण केंद्र सरकार ने राज्य को समग्र शिक्षा योजना के तहत मिलने वाले फंड को रोक दिया है। इसी को लेकर 20 फरवरी को मुख्यमंत्री स्टालिन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर इस मुद्दे पर दखल देने की मांग की।

इंदिरा गांधी पर राजस्थान में “रार”, सदन में रातभर डटे कांग्रेसी, गद्दे-तकिए लगाकर भजन गाए

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राजस्थान में विधानसभा का बजट सत्र चल रहा है। सदन में राज्य के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री अविनाश गहलोत द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर की गई टिप्पणी को लेकर जोरदार हंगामा हुआ। जिसके बाद कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा समेत 6 विपक्षी विधायकों को विधानसभा से सस्पेंड कर दिया गया है। हंगामे के बीच विधानसभा अध्यक्ष ने सदन की कार्यवाही को सोमवार तक के लिए स्थगित कर दिया। दूसरी ओर निलंबन के खिलाफ कांग्रेस विधायक सदन में धरने पर बैठ गए। विधायकों के निलंबन के विरोध में कांग्रेस विधायकों ने पूरी रात राजस्थान विधानसभा में बिताई। कंबल, गद्दे, चादर और तकिए के साथ उन्होंने विधानसभा को ही घर बना लिया।

विधानसभा में अपने 6 साथियों के निलंबन के विरोध में कांग्रेस विधायक रात भर से सदन में धरने पर हैं। कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा सहित, विधायक जाकिर हुसैन गेसावत, संजय जाटव, रामकेश मीणा, अमीन कागजी और हाकम अली खान को शेष बजट सत्र के लिए निलंबित किए जाने का प्रस्ताव पास होने के साथ ही शुक्रवार शाम 4 बजकर 2 मिनट पर सदन की कार्रवाई सोमवार तक के लिए स्थगित कर दी गई थी, इसके बाद से कांग्रेस विधायक सदन में ही रहे।

निलंबन के खिलाफ कांग्रेस विधायकों का प्रदर्शन और बढ़ गया। प्रदर्शन कर रहे कांग्रेस विधायक सदन के अंदर ही धरने पर बैठ गए। शाम को सरकार के साथ चर्चा का दौर चला, पर नतीजा सिफर रहा। कांग्रेस विधायकों ने धरना जारी रखा और सदन के भीतर ही रात में डेरा डाल दिया। कांग्रेस विधायकों के लिए गद्दे, कंबल और तकिए मंगाए गए। उनके लिए खाने-पीने की भी व्यवस्था हुई। विधानसभा में ये कांग्रेस विधायक कभी एक जगह भजन-कीर्तन करते नजर आए तो कभी अलग-अलग सोते। आज भी उनका प्रदर्शन जारी रहेगा।

दरअसल, राजस्थान के मंत्री अविनाश गहलोत ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के संदर्भ में एक ‘अनुचित’ शब्द का इस्तेमाल किया। गहलोत ने प्रश्नकाल के दौरान कामकाजी महिलाओं के लिए छात्रावास संबंधी प्रश्न का उत्तर देते समय विपक्ष की ओर इशारा करते हुए कहा, 2023-24 के बजट में भी आपने हर बार की तरह अपनी ‘दादी’ इंदिरा गांधी के नाम पर इस योजना का नाम रखा था। इससे काग्रेस विधायक भड़क गए। कांग्रेस विधायकों की नारेबाजी के बीच सदन की कार्यवाही तीन बार स्थगित करनी पड़ी। बात इतने पर ही खत्म नहीं हुई। कांग्रेस विधायकों पर सदन में कथित अशोभनीय व निंदनीय आचरण करने का आरोप लगा। इसके बाद कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा सहित पार्टी के छह विधायकों को बजट सत्र की शेष अवधि के लिए निलंबित करने का प्रस्ताव पारित किया गया।

भारत के आंतरिक मामलों में विदेशी हस्तक्षेप चिंताजनक...” यूएस फंडिंग वाले ट्रंप के बयान पर बोला विदेश मंत्रालय

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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय चुनाव में अमेरिकी फंडिंग को लेकर बयान दिया। डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया है कि अमेरिका की यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) ने भारत में 2024 के लोकसभा चुनाव में वोटर टर्नआउट को बढ़ाने के लिए 21 मिलियन डॉलर (करीब 182 करोड़ रुपये) की फंडिंग की थी। ट्रंप के एक बयान के बाद से भारत के राजनीतिक गलियारों में घमासान मचा हुआ है। आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। भारत ने फंडिंग के बारे में किए गए खुलासे पर प्रतिक्रिया दी है। विदेश मंत्रालय (एमईए) ने इस मामले को “बेहद परेशान करने वाला” बताया है और संभावित प्रभावों की जांच कर रहा है।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने शुक्रवार को कहा, हमने अमेरिकी प्रशासन द्वारा कुछ यूएसए गतिविधियों और फंडिंग के बारे में दी गई जानकारी देखी है। ये स्पष्ट रूप से बहुत ही परेशान करने वाला है। इससे भारत के आंतरिक मामलों में विदेशी हस्तक्षेप की चिंता पैदा हुई है।उन्होंने कहा कि संबंधित विभाग और एजेंसियां मामले की जांच कर रही हैं।

अमेरिकी सरकारी दक्षता विभाग (डीओजीई) ने भारत में खर्च करने के लिए दिए गये 21 मिलियन डॉलर लगभग 182 करोड़ रुपए के एक फंड को खारिज कर दिया है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत में वोटिंग टर्नआउट बढ़ाने के लिए अमेरिकी फंडिंग रोकने के फैसले पर बुधवार को बड़ा दावा करते हुए कहा कि पिछली बाइडन सरकार की ओर से किसी और को जिताने की कोशिश की जा रही थी। शायद वे (पूर्ववर्ती बाइडन सरकार) भारत में किसी और की सरकार बनवाना चाहते थे। इससे पहले ट्रंप ने भारत को दी जाने वाली अमेरिकी फंडिंग रोकने के फैसले का बचाव किया था। ट्रंप ने सवाल उठाया कि भारत को 21 मिलियन डॉलर क्यों दिए गए, जबकि भारत के पास पहले से ही बहुत पैसा है।

भारत को F-35 बेचना चाहता है अमेरिका, जानें भारत के कितना मुश्किल सौदा

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प्रधानमंत्री नरेनेद्र मोदी ने फरवरी के दूसरे हफ्ते में अमेरिका का दौरा किया। अपने यूएस दौरे के दौरान पीएम मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात की। इस दौरान ट्रंप ने भारत को अपना अत्याधुनिक लड़ाकू विमान F-35 देने की पेशकश की। पीएम मोदी के साथ व्हाइट हाउस में मुलाकात के बाद ट्रंप ने घोषणा की कि उनका प्रशासन अमेरिकी स्टील्थ फाइटर को भारत को बेचने के लिए तैयार है। इससे भारत अत्याधुनिक स्टील्थ विमानों वाले देशों के एलीट क्लब में शामिल हो जाएगा। ऐसे में सवाल ये है कि भारत अमेरिका से F-35 लड़ाकू विमान खरीदता है तो ये कितना जरूरी होगा? इसे खरीदने के लिए भारत को कितना पैसा खर्च करने पड़ेंगे? और सबसे अहम सवाल इसे खरीदने में क्या कहीं कोई झोल है?

कीमत सबसे बड़ा रोड़ा

F-35 अमेरिका का 5वीं जेनरेशन का लड़ाकू विमान है। इसे लॉकहीड मार्टिन कंपनी ने डेवलप किया है। इस प्लेन को 2006 से बनाना शुरू किया गया था। 2015 से यह अमेरिकी वायुसेना में शामिल है। ये पेंटागन के इतिहास का सबसे महंगा विमान है। अमेरिका एक F-35 फाइटर प्लेन पर औसतन 82.5 मिलियन डॉलर (करीब 715 करोड़ रुपए) खर्च करता है। अमेरिकी सरकार के कामों पर नजर रखने वाली संस्था गर्वनमेंट अकाउंटिबिलिटी ऑफिस (जीएओ) के मुताबिक, एक F-35 के रखरखाव पर हर साल 53 करोड़ रुपए का खर्च आएगा। ऐसे में अगर भारत 1000 करोड़ रुपए में ये विमान खरीदता है, तो इसके 60 साल के सर्विस पीरियड में 3,180 करोड़ रुपए खर्च होंगे। ये विमान की कीमत से तीन गुना ज्यादा है। इसके अलावा इसकी हर घंटे की उड़ान पर 30 लाख रुपए खर्च होंगे। इन विमानों की संख्या फ्रांसीसी राफेल लड़ाकू विमानों के दो स्क्वाड्रन (36 विमान) की मौजूदा संख्या के बराबर हो सकती है।

सरकार से सरकार के बीच होता है सौदा

एफ- 35 विमान को लॉकहीड मार्टिन सीधे किसी देश को बेच नहीं सकती है। इस विमान का सौदा सरकार से सरकार के बीच होता है। पेंटागन इसमें मध्यस्थ की भूमिका निभाता है। डोनाल्ड ट्रंप ने अभी तक इन विमानों को भारत को देने से जुड़ी कोई समय सीमा नहीं बताई है। मगर रॉयटर्स के मुताबिक स्टेल्थ एफ-35 जेट की डिलीवरी में वर्षों का समय लग जाता है। लिहाजा सवाल ये उठते हैं कि अगर भारत इस फाइटर जेट को खरीदने की सोचता है, तो वो सरकार से सरकार स्तर पर बातचीत करेगा या फिर डायरेक्ट कंपनी से ही डील करेगा? अगर 'सरकार से सरकार' रास्ते से अधिग्रहण का फैसला लिया जाता है, तो फाइटर जेट की क्वालिटी, उसकी कीमत, दूसरे लड़ाकू विमानों के साथ उसके कॉर्डिनेशन, ज्वाइंट प्रोडक्शन की संभावना और उसके ऑपरेशन की स्थितियों जैसे कई सवाल होंगे, जिनके जवाब तलाशने होंगे।

ड्रोन टेक्नोलॉजी के आगे फाइटर जेट्स पुराने

वहीं, ड्रोन टेक्नोलॉजी से युद्ध लड़े जाने का तरीका बदल गया है। फ्रंट लाइन पर फाइटर जेट्स की बजाय ड्रोन से हमला करना आसान है। रूस-यूक्रेन युद्ध में फ्रंट लाइन के पास एंटी-एयरक्राफ्ट सिस्टम लगे होने की वजह से फाइटर जेट्स का हमला कर पाना मुश्किल है। ऐसे में छोटे और बेहद कम कीमत वाले ड्रोन्स सबसे घातक हथियार साबित हुए हैं।

बता दे कि ट्रंप के करीबी लन मस्क भी इस फाइटर जेट पर सवाल उठा चुके हैं।मस्क ने एक्स पर एक पोस्ट में वीडियो अपलोड किया था। इसमें एक साथ सैकड़ों छोटे ड्रोन आसमान को घेरे हुए थे। मस्क ने लिखा था- कुछ बेवकूफ अभी भी F-35 जैसे पायलट वाले लड़ाकू जेट बना रहे हैं। मस्क ने कहा कि F-35 का डिजाइन शुरुआती लेवल पर ही खराब था। इसे ऐसे डिजाइन किया गया कि हर किसी को हर खासियत मिल सके। लेकिन इसकी वजह से F-35 महंगा हो गया और उलझा हुआ प्रोडक्ट बन गया। ऐसे डिजाइन को कभी सफल होना ही नहीं था। वैसे भी ड्रोन के जमाने में अब ऐसे फाइटर जेट्स का कोई मतलब नहीं है। ये सिर्फ पायलट की जान लेने के लिए हैं।

अमेरिका भारत को एफ-35 क्यों बेचना चाहता है?

दरअसल, ट्रंप सैन्य हथियारों के माध्यम से भारत के साथ होने वाले व्यापार घाटे को पाटना चाहते हैं। ट्रंप ने कहा कि इस साल से हम भारत को कई अरब डॉलर की सैन्य बिक्री बढ़ाएंगे। भारत को एफ- 35 स्टेल्थ लड़ाकू विमान बेचेंगे। ट्रंप ने यह भी कहा कि दोनों देशों के बीच एक समझौता हुआ है। इसके तहत भारत दोनों देशों के बीच व्यापार घाटे को कम करने के लिए अधिक मात्रा में अमेरिकी तेल और गैस का आयात भी करेगा।

यही नहीं, रूस ने भी भारत को सुखोई एसयू-57 देने की पेशकश की है। रूस ने तो इन विमानों को भारत में तैयार करने का प्रस्ताव भी दिया है। रूस ने भारत को तकनीक ट्रांसफर करने की बात भी कही है। भारत सबसे अधिक हथियार रूस से ही खरीदता है और भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियार बाजार है। रूस ने भारत के AMCA कार्यक्रम में भी मदद की पेशकश की है। यही वजह है कि ट्रंप यह डील रूस के हाथों नहीं जाने देना चाहते हैं।

भारत और पाकिस्तान के बीच फ्लैग मीटिंग, लगभग 75 मिनट हुई चर्चा, इन मुद्दों पर बनी सहमति

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जम्मू-कश्मीर में एलओसी (नियंत्रण रेखा) पर तनाव के बीच भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के बीच शुक्रवार को फ्लैग मीटिंग हुई। यह मीटिंग पुंछ सेक्टर के चाका दा बाग में आयोजित की गई। जिसमें दोनों सेनाओं के ब्रिगेडियर रैंक के अधिकारी शामिल हुए। बैठक 75 मिनट तक चली, जिसमें दोनों पक्षों ने सीमा पर शांति बनाए रखने की बात कही बता दें कि पिछले चार सालों में दोनों देशों के बीच इस तरह की पहली मीटिंग है। आखिरी फ्लैग मीटिंग 2021 में हुई थी।

समाचार एजेंसी पीटीआई ने सूत्रों के हवाले से बताया कि ब्रिगेड कमांडर स्तर की ‘फ्लैग मीटिंग’ ‘चक्कन-दा-बाग क्रॉसिंग प्वाइंट’ क्षेत्र में हुई। भारत की तरफ से पुंछ ब्रिगेड के कमांडर और पाकिस्तानी सेना की दो पाक ब्रिगेड के कमांडर फ्लैग मीटिंग में शामिल हुए। जिसमें दोनों पक्षों ने सीमा पर शांति बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि 75 मिनट तक चली बैठक करीब 11 बजे शुरू हुई। सूत्रों ने बताया कि बैठक सौहार्दपूर्ण माहौल में हुई और दोनों पक्ष सीमा पर शांति के व्यापक हित में संघर्ष विराम समझौते का सम्मान करने पर सहमत हुए।

पाकिस्तान और भारत के बीच पिछले कई सालों से फ्लैग मीटिंग नहीं हुई है। साल 2021 में आखिरी फ्लैग मीटिंग हुई थी। पाकिस्तान की तरफ से सीमा पर लगातार नापाक हरकतें की जा रही हैं। 11 फरवरी को जम्मू जिले में नियंत्रण रेखा के अखनूर सेक्टर में एक इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (आईईडी) विस्फोट में एक कैप्टन समेत दो जवान शहीद हो गए थे।

मृत्यु से पहले पोप के अंतिम संस्कार की रिहर्सल, फेफड़ों के इंफेक्शन से जूझ रहे

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रोम में पोप फ्रांसिस के अंतिम संस्कार की कथित तौर पर रिहर्सल की जा रही है। कैथोलिक ईसाई धर्मगुरु पोप फ्रांसिस की हालत बेहद नाजुक है। 88 वर्षीय पोप फ्रांसिस बीते 8 दिनों से अस्पताल में भर्ती हैं। उन्होंने पहले ही ये चिंता व्यक्त की थी कि उनके वापस लौटने की गुंजाइश कम है।

रोमन कैथोलिक चर्च के हेडक्वार्टर वेटिकन के मुताबिक पोप ने खुद कहा है कि निमोनिया से उनके बचने की उम्मीद नहीं है। जिसके बाद दावा किया जा रहा है कि पोप फ्रांसिस अंतिम संस्कार की रिहर्सल शुरू हो गई है। यह दावा स्विस न्यूज पेपर ब्लिक ने किया है। बता दें कि 88 साल के पोप फ्रांसिस पिछले हफ्ते से निमोनिया और फेफड़ों के संक्रमण की वजह से रोम के जेमेली अस्पताल में एडमिट हैं।

वेटिकन सूत्रों का कहना है कि संभावित उत्तराधिकार नियोजन की तैयारियां चल रही हैं तथा स्विस गार्ड संभावित पोप के अंतिम संस्कार के लिए प्रोटोकॉल का अभ्यास कर रहा है। पोप की सुरक्षा में लगे स्विस गार्ड को कर्फ्यू के तहत रखा गया है, क्योंकि वे पोप के संभावित निधन के लिए प्रोटोकॉल अभ्यास कर रहे हैं। पोलिटिको ने बताया कि पोप फ्रांसिस ने निजी तौर पर अपने करीबी सहयोगियों से कहा है कि वे इस बीमारी से "शायद बच न पाएं"।

पोप के अंतिम संस्कार की रस्मों में संशोधन

जब किसी पोप की मृत्यु हो जाती है, तो शोक मनाने वाले लोग नोवेमडियाल्स नामक अनुष्ठान करते हैं, जो दिवंगत पोप के लिए नौ दिनों तक मनाया जाने वाला सामूहिक प्रार्थना समारोह है। लेकिन पिछले वर्ष पोप फ्रांसिस ने पोप के अंतिम संस्कार की रस्मों में बदलाव को मंजूरी दे दी थी। संशोधित धार्मिक पुस्तक अनुष्ठानों को सरल बनाती है और वेटिकन के बाहर दफनाने की अनुमति देती है, तथा एक शक्तिशाली व्यक्ति के रूप में नहीं बल्कि एक बिशप के रूप में उनकी पहचान पर ध्यान केंद्रित करती है। 2013 में अपने चुनाव के बाद से, उन्होंने विनम्रता और "गरीबों की कलीसिया" की सेवा पर जोर दिया है।

पोप का कैसे होता है अंतिम संस्कार?

अंतिम संस्कार को लेकर 2024 में इसको लेकर एक नियम तैयार किया गया था। ऐसे में माना जा रहा है कि पोप फ्रांसिस का इन्हीं नियमों के तहत अंतिम संस्कार किया जाएगा। पोप की मृत्यु की घोषणा कैमरलेंगो (वेटिकन का एक वरिष्ठ अधिकारी) करते हैं। वेटिकन का यह अहम पद वर्तमान में आयरिश मूल के कार्डिनल केविन फैरेल के पास है।

पहले पोप की मृत्यु होती थी, तो पार्थिव शरीर को काफी देर तक खुले में रखा जाता था, लेकिन अब नए नियमों के तहत ऐसा नहीं होगा। मृत्यु के तुरंत बाद उनके शरीर को ताबुत के अंदर रखना अनिवार्य है। ताबूत में पोप के शरीर को रखे जाने के बाद ही आम नागरिक दर्शन कर सकेंगे।

पोप फ्रांसिस ने दफनाने के लिए जगह चुनी

2023 में दिए गए एक साक्षात्कार में फ्रांसिस ने यह भी खुलासा किया कि वह सेंट पीटर बेसिलिका के नीचे स्थित गुफाओं के बजाय रोम के सांता मारिया मैगीगोर बेसिलिका में दफन होना चाहते हैं, जहां अधिकांश पोपों को दफनाया जाता है।

अमृतपाल सिंह की संसद सदस्यता पर संकट, जानें पूरा मामला

#amritpal_singh_can_lose_his_membership_of_parliament

खालिस्तान समर्थक सांसद अमृतपाल सिंह की संसद सदस्यता पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं।खडूर साहिब से निर्दलीय सांसद अमृतपाल सिंह ने जेल से बाहर आने और संसद सत्र में शामिल होने के लिए हाईकोर्ट से गुहार लगाई थी। इस पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि क्या उनकी सीट को रिक्त घोषित करने के लिए किसी कमेटी का गठन किया गया है या नहीं। याचिका पर सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने किसी भी अंतरिम आदेश को जारी करने से इनकार कर दिया है।

पंजाब के खडूर साहिब के सांसद अमृतपाल सिंह ने बुधवार को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में याचिका दायर कर संसद के चल रहे सत्र में भाग लेने की मांग की।अमृतपाल सिंह ने याचिका में कहा है कि जेल में बंद होने की वजह से वह संसद की कार्यवाही में भाग नहीं ले पा रहे हैं और उन्हें अनुपस्थित रहने के लिए मजबूर किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इसके पीछे दुर्भावनापूर्ण मंशा यह है कि उनके संसदीय क्षेत्र को प्रतिनिधित्व से वंचित रखा जाए और 60 दिनों की अनुपस्थिति के बाद उनकी सीट रिक्त घोषित कर दी जाए।

इसके साथ ही अमृतपाल ने केंद्र सरकार के मंत्रियों के साथ बैठक करने की अनुमति भी मांगी है, ताकि वे अपने संसदीय क्षेत्र की समस्याओं और विकास के मुद्दों पर चर्चा कर सकें। उनका कहना है कि वे एक निर्वाचित सांसद हैं और इस नाते उन्हें अपने क्षेत्र के विकास के लिए सरकार के विभिन्न विभागों के साथ संवाद करने का पूरा अधिकार है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक अपनी याचिका में सांसद ने कहा है कि लोकसभा के महासचिव की ओर से जारी समन के मुताबिक उनकी उपस्थिति जरूरी है और कहा कि उनकी गैरहाजिरी उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। अमृतपाल सिंह राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत आरोपों का सामना कर रहे हैं। उन्हें अप्रैल 2023 से डिब्रूगढ़ जेल में हिरासत में रखा गया है। उन्होंने जेल से 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ा और जीता। लेकिन पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के आंकड़ों के अनुसार अब तक उनकी उपस्थिति केवल दो फीसदी है।

बता दें कि अनुच्छेद 101(4) के मुताबिक यदि संसद के किसी भी सदन का कोई सदस्य साठ दिनों की अवधि के लिए सदन की अनुमति के बिना सदन की सभी बैठकों से अनुपस्थित रहता है, तो सदन उसकी सीट को रिक्त घोषित कर सकता है। हालाकि 60 दिनों में वह अवधि शामिल नहीं है, जिसके दौरान सदन को चार दिनों से अधिक लगातार स्थगित किया जाता है या स्थगित किया जाता है। प्रभावी रूप से, अनुपस्थिति की अवधि की गणना केवल संसद की वास्तविक बैठकों के आधार पर की जाती है।

कौन है USAID की वीना रेड्डी, भारत में जिनकी भूमिका पर उठे सवाल, जांच की मांग

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अमेरिका से भारत को चुनाव में मदद के लिए फंडिंग पर बवाल मचा हुआ है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के एक बयान के बाद से भारत के राजनीतिक गलियारों में घमासान मचा हुआ है। दरअसल, डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया है कि अमेरिका की यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) ने भारत में 2024 के लोकसभा चुनाव में वोटर टर्नआउट को बढ़ाने के लिए 21 मिलियन डॉलर (करीब 182 करोड़ रुपये) की फंडिंग की थी। इस बीच USAID की पूर्व भारत निदेशक वीना रेड्डी सुर्खियों में हैं। रेड्डी तब चर्चा में आईं, जब बीजेपी सांसद महेश जेठमलानी ने फंडिंग की जांच की मांग की और उनकी भूमिका पर सवाल उठाए।

बीजेपी के सांसद महेश जेठमलानी ने इस फंडिंग में वीना रेड्डी की भूमिका पर कई गंभीर सवाल खड़े किए हैं। दरअसल, अमेरिकी सरकारी दक्षता विभाग (DOGE) ने हाल ही में USAID को लेकर यह खुलासा किया था। इसी के बाद बीजेपी सांसद ने कहा, तो, DOGE ने पाया है कि USAID ने भारत में ‘वोटर टर्नआउट’ के लिए 21 मिलियन डॉलर की फंडिंग की। वीना रेड्डी को 2021 में USAID के भारतीय मिशन के प्रमुख के रूप में भारत भेजा गया था। लोकसभा चुनाव 2024 के बाद (उनका मतदाता मतदान मिशन पूरा हो गया), वह अमेरिका लौट गईं। अफसोस की बात है कि इससे पहले की यहां पर एजेंसियां उन से कुछ सवाल पूछ सकती थीं कि यह पैसा मतदान अभियानों में लगाने के लिए किसे दिया गया था, वो वापस अमेरिका चली गईं।

आंध्र प्रदेश से है वीना का नाता

भारत के रियासी गलियारों में चर्चाओं का विषय बनी वीना रेड्डी एक अमेरिकी डिप्लोमेट हैं, जो 5 अगस्त, 2021 को USAID के भारतीय ऑफिस में शामिल हुई। वीना का जन्म आंध्र प्रदेश में हुआ। वीना रेड्डी अमेरिकी वरिष्ठ विदेश सेवा की कैरियर सदस्य हैं और उन्होंने भारत और भूटान में USAID के लिए मिशन डायरेक्टर के तौर पर काम किया है। इसके अलावा वह भारत और भूटान में USAID को लीड करने वाली पहली भारतीय-अमेरिकी महिला थीं।

अपने 3 साल के कार्यकाल में भारत में रहीं वीना रेड्डी

USAID के मिशन डायरेक्टर के तौर पर वीणा रेड्डी ने भारत में अपने 3 साल के कार्यकाल में कई प्रोजेक्ट्स पर काम किया। देश की राजधानी नई दिल्ली में वीणा रेड्डी के कार्यकाल में भारतीय रेल, पावर मंत्रालय, नीति आयोग, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, अटल इनोवेशन मिशन सहित कई नए समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए और USAID-फंडेड प्रोग्राम लागू किए गए। वहीं, वह कई हाई लेवल सरकारी कार्यक्रमों में भी शामिल हुई।