ट्रंप ने किम जोंग उन से मुलाकात की इच्छा जताई, नॉर्थ कोरिया के तानाशाह को स्मार्ट

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अमेरिका के राष्ट्रपति बनते ही डोनाल्ड ट्रंप एक्टिव मोड में हैं। शपथ ग्रहण के तुरंत बाद उन्होंने एक्जीक्यूटिव ऑर्डर के जरिए कई बड़े ऐलान किए। उसके बाद उन्होंने ग्लोबल लीडर्स से भी बात की। एक तरफ रूसी राष्ट्रपति पुतिन को यूक्रेन युद्ध रोकने की सलाह दी तो ईरान को चेतावनी दी। इस बीच उन्होंने नॉर्थ कोरिया के लीडर किम जोंग उन को स्मार्ट बताते हुए उनसे मिलने की भी इच्छा जताई है।

किम धार्मिक कट्टरपंथी नहीं हैं-ट्रंप

राष्ट्रपति बनने के बाद पहली बार दिए इंटरव्यू में ट्रंप ने दक्षिण कोरियाई नेता किम जोंग के बारे में बात की। फॉक्स न्यूज को दिए इंटरव्यू में बातचीत के दौरान जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से उत्तर कोरियाई नेता के साथ किम जोंग के साथ संबंध पर सवाल किए तो उन्होंने उन्हें स्मार्ट आदमी बताते हुए कहा कि वह उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग से संपर्क करने वाले है। ट्रंप ने कहा कि उन्होंने किम के साथ अच्छा संबंध स्थापित किया है और किम धार्मिक कट्टरपंथी नहीं हैं।

ट्रंप खुद चलकर प्योंगयोंग गए थे

डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में भी किम जोंग उन से मुलाकात की थी। 2017 से 2021 तक अपने राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान ट्रंप ने किम के साथ एक असामान्य कूटनीतिक संबंध स्थापित किया था, जिसमें न सिर्फ किम से मुलाकात की, बल्कि यह भी कहा कि दोनों ‘प्यार में पड़ गए हैं।’ हालांकि, उनके विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने स्वीकार किया था कि ये प्रयास उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम को खत्म करने के लिए एक स्थायी समझौते तक पहुंचने में विफल रहा।

नॉर्थ कोरिया से संबंध सुधारना नहीं आसान!

उत्तर कोरिया को अमेरिका सबसे बड़े दुश्मनों से एक माना जाता है। यूक्रेन युद्ध के बाद ये दुश्मनी और गहरी हो गई है, क्योंकि उत्तर कोरिया ने खुले तौर पर इस युद्ध में रूस का साथ दिया है। ऐसे में ट्रंप के लिए किम जोंग से रिश्ता बनाना आसान नहीं है। दरअसल साउथ कोरिया अमेरिका का करीबी सहयोगी है, लेकिन नॉर्थ कोरिया से उसके रिश्ते अच्छे नहीं रहे हैं। अगर ट्रंप ने नॉर्थ कोरिया से संबंध सुधारने की शुरुआत की तो साउथ कोरिया अमेरिका से नाराज हो सकता है।

डोनाल्ड ट्रंप को अमेरिकी कोर्ट से बड़ा झटका, बर्थराइट सिटिजनशिप खत्म करने के ऑर्डर पर लगाई रोक

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अमेरिका में स्वतः जन्मसिद्ध नागरिकता को खत्म करने के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के फैसले पर देश की एक संघीय अदालत ने रोक लगा दी है। अदालत के फैसले ने अमेरिका में रहने वाला हजारों आप्रवासियों को बड़ी राहत दी है। जज ने अपने फैसले में डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकारी आदेश को 'साफ तौर पर असंवैधानिक' कहा है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सोमवार को पदभार ग्रहण करने के बाद पहले ही दिन एक कार्यकारी आदेश के जरिए स्वतः जन्मसिद्ध नागरिकता के अधिकार को खत्म कर दिया था।

सीऐटल में एक फेडरल जज ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उस कार्यकारी आदेश पर अस्थायी रोक लगा दी है, जिसका मकसद जन्मसिद्ध नागरिकता को समाप्त करना है। जज ने इस कदम को स्पष्ट रूप से असंवैधानिक करार दिया है। अमेरिकी जिला न्यायाधीश जॉन कॉफनर ने गुरुवार को एक सुनवाई के दौरान यह फैसला सुनाया। जज जॉन कफेनोर ने कहा कि यह आदेश संविधान का स्पष्ट उल्लंघन है। उनकी यह टिप्पणी ऐसे समय में आई, जब एरिजोना, इलिनोइस, ओरेगन और वाशिंगटन सहित कई राज्यों ने ट्रंप के आदेश को चुनौती दी है। उनका तर्क है कि ट्रंप का जन्मसिद्ध नागरिकता वाला कार्यकारी आदेश गैरकानूनी है।

जस्टिस कॉफनर ने कहा, मैं 4 दशकों से बेंच पर हूं। मुझे कोई दूसरा मामला याद नहीं है जिसमें दिए गए सवाल इतना साफ हो। उन्होंने पूछा कि जब इस आदेश पर हस्ताक्षर करने का निर्णय लिया गया था, तब वकील कहां थे। साथ ही कहा कि यह उनके दिमाग को चकित कर रहा था कि बार का एक सदस्य आदेश को संवैधानिक होने का दावा करेगा।

सिएटल में दायर चार राज्यों के मुकदमे के अनुसार, 2022 में, अमेरिका में अवैध रूप से रहने वाली माताओं से लगभग 255,000 बच्चों का जन्म हुआ। जबकि, 153,000 बच्चे ऐसे पैदा हुए, जिनके माता-पिता दोनों अवैध रूप से रह रहे थे। जिनकी नागरिकता पर बादल छाए हुए हैं।इस आदेश के तहत नागरिकता से वंचित किए गए बच्चों को नकारात्मक प्रभावों का सामना करना पड़ेगा।

अमेरिका के संविधान का 14वां संशोधन अमेरिकी धरती पर पैदा हुए सभी बच्चों को नागरिकता की गारंटी देता है। इसमें अप्रवासियों के बच्चों को भी नागरिकता का अधिकार मिलता है।राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सोमवार को पदभार ग्रहण करने के बाद पहले ही दिन एक कार्यकारी आदेश के जरिए स्वतः जन्मसिद्ध नागरिकता के अधिकार को खत्म कर दिया था।इसे 19 फरवरी से लागू किया जाना था।

ट्रंप की धमकी का रूस ने दिया जवाब, कहा- बयानों में कुछ भी नया नहीं

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डोनाल्ड ट्रंप ने मंगलवार को कहा था कि वो रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से कभी भी मिलने को तैयार हैं। इतना कहते हुए ट्रंप ने टर्म एंड कंडीशन भी लगाई। उन्होंने कहा, अगर रूस, यूक्रेन के मुद्दे पर बातचीत के लिए आगे नहीं आता है तो उस पर प्रतिबंध भी लग सकते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टिप्पण पर रूस का जवाब आया है।

क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव से जब पत्रकारों ने पुतिन की टिप्पणियों को लेकर पूछा तो उन्होंने कहा, हमें इसमें कुछ नया नहीं दिखाई देता है। ट्रंप की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा, ट्रंप के पहले राष्ट्रपति कार्यकाल में साफ हो गया है कि उन्हें प्रतिबंध लगाने पसंद हैं। पेसकोव ने जोर दिया कि रूस अमेरिका के साथ समान और परस्पर सम्मानपूर्ण बातचीत के लिए तैयार है। उन्होंने यह भी कहा कि मास्को, ट्रंप प्रशासन के बयानों को बारीकी से देख रहा है।

इससे पहले ट्रंप ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि वह बहुत जल्द पुतिन से बात करेंगे और ऐसी संभावना है कि अगर रूस बातचीत के लिए तैयार नहीं हुआ तो वे उसपर अतिरिक्त प्रतिबंध लगा देंगे।

वहीं, बुधवार को अपने ट्रुथ सोशल पोस्ट में डोनाल्ड ट्रंप ने लिखा, मैं रूस और राष्ट्रपति पुतिन पर बहुत बड़ा अहसान करने जा रहा हूं। अब समझौता करो, और इस बेतुके युद्ध को रोको। अगर हम जल्द ही कोई सौदा नहीं करते हैं, तो मेरे पास रूस से आने वाले सामान पर भारी आयात शुल्क लगाने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा।

अपनी बात जारी रखते हुए उन्होंने कहा, आइये इस युद्ध को ख़त्म करें। अगर मैं राष्ट्रपति होता तो ये शुरू ही नहीं होता। हम इस युद्ध का अंत आसान या कठिन तरीके से कर सकते हैं। आसान तरीका हमेशा बेहतर होता है। अब समझौता करने का समय आ गया है।

बता दें कि पुतिन ने भी बार-बार कहा है कि वह जंग रोकने के लिए बातचीत करने को तैयार हैं लेकिन यूक्रेन को अपनी ज़मीन का वो 20 फीसदी हिस्सा छोड़ना होगा जो अब रूसी कब्जे में है। इसके अलावा पुतिन ये भी नहीं चाहते कि यूक्रेन नेटो में शामिल हो। लेकिन यूक्रेन एक इंच जमीन छोड़ने को तैयार नहीं है। हालांकि राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ये कह चुके हैं कि उन्हें अपनी कुछ जमीन फ़िलहाल के लिए छोड़नी पड़ सकती है।

दुनिया फिर देखेगी ट्रंप-मोदी की दोस्ती, अगले महीने फ्रांस या अमेरिका में हो सकती है मुलाकात

#pm_modi_and_trump_likely_to_meet_in_february

अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद एक बार फिर से डोनाल्ड ट्रंप और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुलाकात हो सकती है। यह मुलाकात फरवरी के मध्य में हो सकती है। यह तभी संभव होगा अगर ट्रंप पेरिस में आयोजित एआई समिट में शामिल होते हैं। यह समिट फ्रांस के राष्ट्रपति द्वारा बुलाया गया है। अगर ट्रंप एआई समिट में नहीं आते हैं, तो मोदी फरवरी में वाशिंगटन डीसी जा सकते हैं। दरअसल, भारतीय और अमेरिकी राजनयिक फरवरी में वॉशिंगटन में पीएम मोदी और डोनाल्ड ट्रंप के के बीच एक बैठक आयोजित करने का प्रयास कर रहे हैं। हालांकि, यह तय नहीं है कि दोनों देशों के नेता फरवरी में मिलेंगे या नहीं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले महीने फ्रांस के दौरे पर जाएंगे। फ्रांस 11 और 12 फरवरी को एआई शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेगा। पीएम 10-11 फरवरी को पेरिस में होने वाली आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) समिट में भाग लेंगे। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने पीएम मोदी के दौरे की पुष्टि की है। ट्रंप को भी इस समिट के लिए आमंत्रित किया गया है। अगर ट्रंप समिट में आते हैं तो दोनों नेता वहां मुलाकात कर सकते हैं।

वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति इस साल के अंत में भारत आएंगे। भारत क्वाड समिट की मेजबानी करेगा। जिसमें ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के क्वाड समूह के नेता भारत द्वारा आयोजित वार्षिक शिखर सम्मेलन में शामिल होंगे। ट्रंप ने अपने पिछले कार्यकाल के दौरान फरवरी 2020 में भारत का दौरा किया था। तब उन्होंने मोदी के राजनीतिक गृहनगर अहमदाबाद के क्रिकेट स्टेडियम में आयोजित कार्यक्रम में शिरकत की थी। जहां उन्होंने भारत के साथ "एक अविश्वसनीय व्यापार समझौते" का वादा किया था।

ट्रंप के व्हाइट हाउस में लौटने से नई दिल्ली में अधिकारियों के बीच भारत पर टैरिफ लगाए जाने को लेकर चिंता बढ़ गई है। ट्रंप ने भारत को उन देशों में से एक बताया है, जो अमेरिकी उत्पादों पर उच्च टैरिफ लगाते हैं। उन्होंने संकेत दिया है कि वह भी टैरिफ लगाने के पक्ष में हैं। सूत्रों ने बताया कि भारत अमेरिकी निवेश आकर्षित करने के लिए अमेरिका को कुछ रियायतें देने के लिए भी तैयार है। इसके अलावा भारत अमेरिका के साथ व्यापार संबंधों को बढ़ाने और अपने नागरिकों के लिए कुशल श्रमिक वीजा को आसान बनाने का भी इच्छुक है।

अमेरिकी नागरिकता पर ट्रंप के आदेश से घबराए लोग, वक्त से पहले बच्चों की डिलीवरी कराने की लगी होड़

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डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के राष्ट्रपति के तौर पर अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत एक के बाद एक कई कार्यकारी आदेशों को जारी करते हुए की। इन आदेशों में से एक गैर-अमेरिकी माता-पिता के बच्चों को जन्म के साथ अपने आप मिलने वाली अमेरिकी नागरिकता के प्रावधान को खत्म करना भी शामिल था। अभी तक अमेरिका के कानून के मुताबिक वहां जन्‍म लेने वाला हर शख्‍स अमेरिकी नागरिक होता था, यानी कि उसे जन्‍मजात अमेरिकी नागरिकता मिलती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। ट्रंप ने बर्थराइट सिटिजनशिप के अधिकार को बदलने के आदेश पर दस्तखत भी कर दिए हैं। ऐसे में जन्म से मिलने वाली नागरिकता की परिभाषा बदलने का वहां रह रहे भारतीयों समेत अन्य देशों के लोगों पर प्रभाव पड़ सकता है।

30 दिन बाद अमेरिका में जन्‍मे बच्‍चों की नागरिकता को लेकर नया नियम लागू हो जाएगा और अमेरिकी प्रशासन नई शर्तों के साथ ही ऐसे बच्‍चों को नागरिकता देगा। दरअसल, डोनाल्ड ट्रंप आदेश एग्जीक्यूटिव ऑर्डर पर हस्ताक्षर करने के 30 दिन के बाद शुरू होगा, यानी जो बच्चे 20 फरवरी के बाद जन्म लेंगे उन्हें अमेरिका की जन्मजात नागरिकता नहीं मिलेगी। इसी के चलते कई परिवार चाहते हैं कि उनके बच्चे 20 फरवरी से पहले जन्म ले और बर्थराइट सिटिजनशिप हासिल करें। ऐसे में वहां बीते कुछ घंटों के भीतर सिजेरियन डिलीवरी की बाढ़ आ गई है। अस्पतालों के बाहर बच्चों की डिलीवरी कराने के लिए लंबी लाइन लग गई है।

अखबार की रिपोर्ट में न्यू जर्सी के एक मेटरनिटी क्लिनिक के हवाले से कहा गया है कि बीते कुछ समय से असामान्य रूप से ज्यादा प्रीटर्म डिलीवरी के लिए अनुरोध मिल रहे हैं। इनमें से ज्यादातर कॉल करने वाली या क्लिनिक में आने वाली महिलाएं भारतीय हैं, जो आठ या नौ महीने की गर्भवती हैं और 20 फरवरी से पहले सी-सेक्शन कराने की मांग कर रही हैं। इनमें कुछ महिलाओं का प्रेग्नेंसी पीरियड काफी कम है। अखबार ने एक डॉक्टर एसडी राम के हवाले से लिखा है कि एक महिला जो केवल सात महीने की गर्भवती थी। वह पति के साथ आई और प्रीटर्म डिलीवरी के लिए अनुरोध किया। उसकी डिलीवरी मार्च में ड्यू है।

टेक्सास में प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ एस जी मुक्कला ने बताया, पिछले 2 दिनों में मैंने ऐसे 15 से 20 कपल्‍स से इस संबंध में बात की है। साथ ही मैंने उन्‍हें यह बताने की कोशिश की कि भले ही सी-सेक्‍शन करना संभव है लेकिन समय से पहले बच्‍चे का जन्म मां और बच्चे दोनों के लिए बेहद रिस्‍की है। ऐसे प्री-मैच्‍योर बच्‍चे अविकसित फेफड़े, भोजन संबंधी समस्याएं, जन्म के समय कम वजन, तंत्रिका संबंधी जटिलताएं समेत कई शारीरिक समस्‍याओं का शिकार हो सकते हैं।

चूंकि एच1बी वीजा होल्‍डर्स में 70 फीसदी से ज्‍यादा भारतीय हैं और ट्रंप एच1बी वीजा को लेकर भी नियम सख्‍त करने जा रहे हैं, ऐसे में भारतीयों के पास भविष्‍य में अमेरिका में रहने के लिए बच्‍चा पैदा करने के सिवाय कोई और चारा ही नहीं बचा है। मां और बच्चे के लिए जोखिम के बावजूद, कई लोगों को लगता है कि स्थिरता पाने के लिए और अमेरिका में रहने के लिए उनके पास यही एक मौका है। खासकर ऐसे लोग जो लंबे समय से ग्रीन कार्ड पाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

डोनाल्ड ट्रंप ने देश में सत्ता संभालने के बाद 20 जनवरी को बर्थराइट पॉलिसी में बदलाव करने के आदेश पर हस्ताक्षर किए। जिसके तहत अब संविधान में 14वें संशोधन के तहत अमेरिका में पैदा हुए सभी बच्चे जन्मजात नागरिकता के हकदार नहीं है। बल्कि जन्मजात नागरिकता हासिल करने के लिए बच्चे की मां या पिता का अमेरिकी नागरिक होना जरूरी है।

आदेश कहता है इन परिस्थितियों में अमेरिकी नागरिकता नहीं मिलेगीः-

- अमेरिका में पैदा हुए बच्चे की मां यदि अवैध रूप से वहां रह रही हो।

- पिता अगर बच्चे के जन्म के समय अमेरिका का नागरिक या वैध स्थायी निवासी न हो।

- बच्चे के जन्म के समय मां अमेरिका की वैध, लेकिन अस्थायी निवासी हो।

-पिता, बच्चे के जन्म के समय अमेरिका के नागरिक या वैध स्थायी निवासी न हो।

हालांकि, ये आदेश जारी होने के अगले दिन डोनाल्ड ट्रंप से व्हाइट हाउस में प्रेस कॉन्फ़्रेंस के दौरान जब एच-1 बी वीज़ाधारकों के भविष्य से जुड़ा सवाल किया गया तो उन्होंने कहा, मुझे ये पसंद है कि हमारे देश में प्रतिस्पर्धी लोग आएं। जहां तक एच-1बी वीजा की बात है, तो मैं इसको अच्छे से समझता हूं। मैंने इस प्रोग्राम का इस्तेमाल किया है। हमें चाहिए कि यहां अच्छा काम करने वाले लोग आएं। हमें जरूरत है कि हमारे देश में अच्छे लोग आएं और हम ये एच-1 बी प्रोग्राम के जरिए करते हैं।

ट्रंप प्रशासन भारत के साथ संबंधों को और मजबूत करने का करेगा प्रयास

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भारत ने अमेरिका के साथ द्विपक्षीय संबंधों में आगे बढ़ना शुरू कर दिया है, विदेश मंत्री एस जयशंकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विशेष दूत के रूप में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए और फिर नए प्रशासन के शीर्ष अधिकारियों से मुलाकात की। जयशंकर को विशेष दूत के रूप में भेजा गया क्योंकि पीएम मोदी शपथ ग्रहण समारोह में शामिल नहीं होते हैं।

राष्ट्रपति ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में शीर्ष प्रोटोकॉल प्राप्त करने के बाद, विदेश मंत्री जयशंकर ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइक वाल्ट्ज से मुलाकात की और फिर नवनियुक्त विदेश मंत्री मार्को रुबियो, ऑस्ट्रेलियाई विदेश मंत्री पेनी वोंग और जापानी विदेश मंत्री इवाया ताकेशी के साथ क्वाड बैठक में भाग लिया। इसके तुरंत बाद जयशंकर और मार्को रुबियो के बीच द्विपक्षीय बैठक हुई। ट्रंप के लिए भारत का महत्व इस बात से पता चलता है कि मार्को रुबियो की पहली बहुपक्षीय बैठक क्वाड बैठक थी और विदेश मंत्री रुबियो की पहली द्विपक्षीय बैठक भारत के साथ थी।

ट्रम्प प्रशासन ने भारत के साथ संबंधों को और मजबूत करने का फैसला किया

शीर्ष सूत्रों के अनुसार, ट्रम्प प्रशासन ने क्वाड बैठक और मंत्री जयशंकर के साथ द्विपक्षीय बैठक के माध्यम से इंडो-पैसिफिक में स्पष्ट संदेश देते हुए भारत के साथ संबंधों को और मजबूत करने का फैसला किया है। ऐसा माना जा रहा है कि ट्रम्प प्रशासन पिछले प्रशासन के दौरान हासिल की गई भारत-अमेरिका द्विपक्षीय गति को आगे बढ़ाएगा और प्रौद्योगिकी, रक्षा और सुरक्षा, व्यापार और वाणिज्य तथा आर्थिक संबंधों में बड़े कदम उठाने के लिए तैयार है।

जबकि क्वाड बैठक समूह द्वारा उठाए गए पिछले कदमों की समीक्षा थी, सचिव रुबियो ने अपने तीनों समकक्षों को याद दिलाया कि यह राष्ट्रपति ट्रम्प ही थे जिन्होंने 2017 में क्वाड विदेश मंत्रियों की वार्ता शुरू की थी। सचिव रुबियो ने स्पष्ट रूप से संकेत दिया कि राष्ट्रपति ट्रम्प का इरादा इंडो-पैसिफिक में नेविगेशन की स्वतंत्रता, वैकल्पिक लचीली वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं और क्षेत्र में मानवीय और प्राकृतिक आपदाओं के लिए तेजी से प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिए क्वाड पर आगे बढ़ने का है।

सूत्रों के अनुसार, विदेश मंत्री जयशंकर की अपने अमेरिकी समकक्षों के साथ बातचीत बहुत सकारात्मक रही है, दोनों देश आपसी हित और आपसी सुरक्षा के आधार पर आगे बढ़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं। विदेश मंत्री जयशंकर एक बहुत ही सफल यात्रा के बाद भारत के लिए रवाना होने से पहले आज वाशिंगटन डीसी में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करेंगे।

क्या है अमेरिका की बर्थराइट पॉलिसी जिसे खत्म करने जा रही ट्रंप सरकार, क्या भारत पर भी होगा असर?

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डोनाल्‍ड ट्रंप ने सोमवार को अमेरिका के 47वें राष्‍ट्रपति के रूप में शपथ ग्रहण के बाद अपने संबोधन में कई बड़े ऐलान किये और इसके बाद कई एग्‍जीक्‍यूटिव आदेशों पर हस्‍ताक्षर किए। दुनिया के कई देशों के लिए यह आदेश मुसीबत लेकर आए हैं तो खुद उनके ही देश में ऐसे आदेशों ने बहुत से लोगों की परेशान बढ़ा दी है। नागरिकता को लेकर डोनाल्‍ड ट्रंप के एक एग्‍जीक्‍यूटिव आदेश ने अमेरिका में रहने वाले कई देशों के लोगों के साथ लाखों भारतीयों के लिए भी परेशानी खड़ी कर दी है। इस आदेश के मुताबिक, यदि किसी बच्‍चे के माता-पिता अमेरिका के नागरिक नहीं हैं और बच्‍चे का अमेरिका में जन्‍म होता है तो भी उसे नागरिकता नहीं दी जाएगी।

अमेरिका के कानून के मुताबिक अब तक वहां जन्म लेने वाला हर शख्स अमेरिकी नागरिक होता है। अमेरिका में यदि किसी बच्‍चे का जन्‍म होता है तो उसे स्‍वत: ही अमेरिका का नागरिक मान लिया जाता है। फिर चाहे बच्‍चे के माता-पिता अमेरिका के हों या नहीं। साथ ही यदि बच्‍चे के माता-पिता अवैध रूप से यहां पर आए हैं और बच्‍चे का जन्‍म अमेरिका में होता है तो भी उसे अमेरिकी नागरिक माना जाएगा। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा।

क्या है अमेरिका की बर्थराइट पॉलिसी

यह जानने से पहले की ट्रंप ने बर्थराइट पॉलिसी में किन चीजों को बदलने की मांग की है यह जानना जरूरी है कि देश की बर्थराइट पॉलिसी क्या है? अमेरिका के संविधान के 14वें संशोधन जोकि 1868 में किया गया, उसके मुताबिक, देश में पैदा हुए सभी बच्चों को जन्मजात नागरिकता दी जाती है। इस संशोधन का मकसद पूर्व में देश में गुलाम बनाए गए व्यक्तियों को नागरिकता और समान अधिकार देना था।

संविधान के मुताबिक, अमेरिका में जिन सभी बच्चों का जन्म हुआ उनके अधिकार क्षेत्र के अधीन वो अमेरिका और जिस भी राज्य में पैदा हुए वहां के नागरिक बन जाते हैं।

इस बर्थराइट पॉलिसी में विदेशी राजनयिकों के बच्चों को छोड़ कर, अमेरिका में पैदा हुए लगभग सभी व्यक्तियों को शामिल किया गया है। हालांकि, जहां संविधान देश में पैदा हुए सभी बच्चों को जन्मजात नागरिकता देने की बात करता है, वहीं अब ट्रंप के प्रशासन का मकसद इस खंड को फिर से परिभाषित करना है। ट्रंप के आदेश में कहा गया है कि जन्मजात नागरिकता में गैर-दस्तावेजी आप्रवासियों के बच्चों को बाहर रखा जाना चाहिए और उन्हें जन्मजात नागरिकता नहीं दी जानी चाहिए।

क्‍या है ट्रंप का आदेश?

अमेरिका के राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप ने कहा है कि उनकी सरकार अवैध रूप से देश में प्रवेश करने वाले लोगों के अमेरिका में बच्‍चों को नागरिक नहीं मानेगी। ट्रंप ने फेडरल एजेंसी को आदेश दिया है कि वह 30 दिनों के बाद ऐसे बच्‍चों को नागरिकता दस्‍तावेज जारी न करे। ट्रंप काफी वक्‍त से यह मुद्दा उठा रहे हैं और कह रहे हैं कि वैध स्थिति के बिना आप्रवासियों के बच्चों को अमेरिका की नागरिकता प्रदान करना उन्हें स्‍वीकार्य नहीं है।

किन पर ज्यादा असर

अमेरिका के इमिग्रेशन नियमों में इस बड़े बदलाव का असर एच-1बी, एच-4 या एफ-1 वीजा पर रह रहे माता-पिता के बच्चों पर पड़ेगा। ये नियम उन बच्चों पर लागू होगा जिनके माता-पिता ग्रीन कार्ड होल्डर या अमेरिकी नागरिक नहीं हैं। इस फैसले से रोजगार आधारित ग्रीन कार्ड का इंतजार कर रहे दस लाख से अधिक भारतीयों पर सीधा असर पड़ेगा। इनमें से कई लोग तो पिछले कई दशकों से ग्रीन कार्ड का इंतजार कर रहे हैं।

भारत पर असर

अमेरिका के जनसंख्‍या ब्‍यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, अमेरिका में रहने वाले भारतीयों की संख्‍या करीब 50 लाख है जो कि वहां की जनसंख्या का करीब 1.47 फीसदी है। इनमें से महज 34 फीसदी लोग ही ऐसे हैं जो कि अमेरिका में पैदा हुए हैं। शेष दो तिहाई आप्रवासी हैं। अमेरिका में काम कर रहे अधिकतर भारतीय वहां एच1-बी विजा के आधार पर काम कर रहे हैं। इस दौरान वहां पैदा होने वाले भारतीय मूल के बच्चों को अब स्वत: अमेरिका की नागरिकता नहीं मिल पाएगी। ग्रीन कार्ड मिलने का इंतजार कर रहे 10 लाख से ज्‍यादा भारतीय भी इस फैसले से प्रभावित होंगे।

शपथ लेने के बाद चीन पर नरम क्यों हुए ट्रंप, ड्रैगन के साथ नहीं टकराना चाहते हैं अमेरिकी राष्ट्रपति?
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डोनाल्ड ट्रंप की अमेरिका के राष्ट्रपति के तौर पर वापसी हो गई है। डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति पद की शपथ ली। ट्रंप ने शपथ लेने के बाद भाषण दिया और उसमें उन्होंने बताया कि उनकी दिशा क्या रहेगी। उद्घाटन भाषण के दौरान वैसे तो डोनाल्ड ट्रंप काफी आक्रामक थे, लेकिन चीन को लेकर उनकी स्थिति काफी नरम थी। उन्होंने अपने पूरे भाषण में सिर्फ एक बार ही चीन का नाम लिया, वो भी सिर्फ पनामा नहर को लेकर, और उनका भाषण 'अमेरिका फर्स्ट' पर टिका था। उन्होंने टैरिफ का जिक्र किया और विदेशी देशों पर टैरिफ लगाने के लिए 'एक्सटर्नल रेवेन्यू सर्विस' के गठन की घोषणा की, लेकिन उसमें भी चीन का कहीं जिक्र नहीं था।

चीन और अमेरिका एक दूसरे के कट्टर दुश्मन हैं। ट्रंप ने राष्ट्रपति चुनाव प्रचार के दौरान चीन पर कड़े हमले भी किए थे, हालांकि अब उनका रूख नरम दिख रहा है। जाहिर तौर पर ये जताता है, कि ट्रंप चीन को लेकर स्थिति का आकलन करना चाहते हैं और कम से कम अपने दूसरे कार्यकाल की शुरूआत चीन से टकराव करते हुए शुरू नहीं करना चाहते।

ट्रंप अमेरिकी राष्ट्रपति की शपथ लेने के बाद चीन दौरे पर जाने की योजना बना रहे हैं। अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने सलाहकारों से कहा है कि वह शपथ लेने के बाद चीन जाना चाहते हैं। अखबार के मुताबिक ट्रंप ने कहा है कि वह चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के संबंध गहरा करना चाहते हैं। इससे पहले ट्रंप ने चुनाव जीतने के बाद चीन के ख़िलाफ टैरिफ लगाने की धमकी दी थी।
डब्ल्यूएसजे ने लिखा है कि ट्रंप कमान संभालने के बाद 100 दिनों के भीतर ही चीन जाना चाहते हैं। नवंबर में चुनाव जीतने के बाद ट्रंप ने शु्क्रवार को पहली बार शी जिनपिंग से बात की थी। ट्रंप ने शी जिनपिंग से बातचीत के बाद कहा था कि दोनों देश साथ मिलकर कई समस्याओं का समाधान खोज सकते हैं। इसका प्रमुख उद्देश्य दोनों देशों के बीच मौजूद अविश्वास के माहौल को बदलना है।

समारिक मामलों के विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने लिखा है कि चीन के तानाशाह के प्रति ट्रंप की बढ़ती उदारता का असर अमेरिका से भारत और जापान के संबंधों पर पड़ेगा। ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल में चीन के प्रति नरमी दिखाई है। ट्रंप ने टिक टॉक पर प्रतिबंध को भी टाल दिया है।
ट्रंप के आते ही अमेरिका में अवैध प्रवासियों की एंट्री बंद, 7.25 लाख भारतीयों की बढ़ी टेंशन
#donald_trump_announcement_against_illegal_immigrants

अमेरिका आने वाले दिनों में अवैध प्रवासियों की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं। ट्रंप ने अमेरिका की सत्ता संभालते ही अवैध रूप से अमेरिका में रहने वालों के खिलाफ एक्शन का ऐलान कर दिया है। उनकी घोषणा का असर अमेरिका में रहने वाले भारतीयों पर पड़ेगा। अमेरिका में अवैध तरीके से रह रहे 7.25 लाख भारतीयों के भविष्य पर भी तलवार लटक गई है। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि अमेरिका में अवैध अप्रवासियों की तीसरी सबसे बड़ी आबादी भारतीयों की है। जानते हैं कि अब अमेरिका में अवैध प्रवासियों का भविष्य क्या होगा?

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चुनाव जीतने के बाद से ही अमेरिका में अवैध प्रवासियों को घुसपैठिया बताते रहे हैं। ट्रंप के राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद ही अमेरिकी सीनेट ने अवैध अप्रवास को लेकर बिल पास किया। इस विधेयक को 64-35 से पारित किया गया। इस विधेयक को लैकेन रिले एक्ट नाम दिया गया है।

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने देश में अवैध प्रवासियों की एंट्री बैन करने और अवैध प्रवासियों को पकड़ कर बॉर्डर पर छोड़ने की पॉलिसी खत्म करने का ऐलान किया। उन्होंने कहा, बाइडेन प्रशासन ने हमारे देश में अवैध रूप से एंट्री करने वाले खतरनाक अपराधियों को शरण दी है और उनकी हिफाजत की है।

*मेक्सिको बॉर्डर पर इमरजेंसी का ऐलान*
ट्रंप ने अमेरिका-मेक्सिको के बॉर्डर (दक्षिणी बॉर्डर) पर इमरजेंसी लागू करने की बात कही। उन्होंने कहा कि यहां से होने वाली सभी अवैध एंट्री पर रोक लगाई जाएगी। सरकार अपराध करने वाले विदेशियों को उनके देश वापस भेज देगी।
यूएस-मेक्सिको बॉर्डर से आने वाले अवैध प्रवासियों की बढ़ती संख्या अमेरिकी राजनीति में एक बड़ा मुद्दा है। ट्रंप का कहना है कि यहां से अवैध प्रवासी और अपराधी अमेरिका में एंट्री करते हैं। ट्रंप इस बॉर्डर पर दीवार बनाने की बात भी कह चुके हैं।

*अमेरिका में दुनिया के सबसे ज्यादा अप्रवासी*
प्यू रिसर्च सेंटर के मुताबिक अमेरिका में दुनिया के सबसे ज्यादा अप्रवासी हैं। दुनिया के कुल 20% अप्रवासी अमेरिका में ही रहते हैं। 2023 तक यहां रहने वाले अप्रवासियों की कुल संख्या 4.78 करोड़ थी। ट्रम्प का मानना है कि दूसरे देशों से लोग अवैध तरीके से अमेरिका में घुसकर अपराध करते हैं।

*अवैध ढंग से रहने वालों में तीसरे सबसे अधिक संख्या में भारतीय*
एक रिसर्च के अनुसार, अमेरिका में अवैध ढंग से सबसे अधिक मैक्सिको के लोग रह रहे हैं। इसके बाद दूसरा नंबर अल सल्वाडोर के नागरिकों का है। तीसरे नंबर पर भारतीय हैं जो अमेरिका में अवैध ढंग से रह रहे हैं।

*तीन साल में 90 हजार से अधिक भारतीय पकड़े गए*
अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों ने पिछले तीन सालों में 90 हजार से अधिक भारतीयों को बॉर्डर एरिया पर अवैध ढंग से पार करते हुए पकड़ा है। आए दिन अमेरिकी बॉर्डर्स पर भारतीय अवैध ढंग से एंट्री के प्रयास में पकड़े जाते हैं। हालांकि, काफी संख्या में इन अवैध प्रवासियों को अमेरिका चार्टर्ड विमानों से वापस भी भेज चुका है।
दुनिया में भारत का बढ़ता कदः ट्रंप के शपथ ग्रहण में दिखी झलक, पहली पंक्ति में दिखे जयशंकर
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* भारत एक प्राचीन और समृद्ध संस्कृति वाला देश है। यह एक विशाल जनसंख्या वाला देश भी है, जो इसे विश्व की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में से एक बनाता है। हाल के वर्षों में, भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था, सैन्य शक्ति और वैश्विक प्रभाव में महत्वपूर्ण वृद्धि देखी है। नतीजतन, भारत विश्व पटल पर एक बढ़ती शक्ति के रूप में उभर रहा है। दुनियाभर के देशों में भारत के बढ़ते धमक की एक झलक अमेरिकी राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह में भी दिखी।इस दौरान एक बात ने सभी का ध्यान अपनी तरफ खींचा और वो ये था कि ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर को पहली पंक्ति में ट्रंप के मंच के ठीक सामने बिठाया गया था। यह वैश्विक परिदृश्य में भारत के ऊंचे होते कद का उदाहरण है। अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में डोनाल्ड ट्रंप ने शपथ ले ली है। शपथ ग्रहण के समारोह के दौरान विभिन्न देशों के प्रतिनिधि पहुंचे। भारत की ओर से विदेश मंत्री एस जयशंकर डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए। शपथ ग्रहण समारोह में पहुंचे मेहमानों में जयशंकर की चर्चा इसलिए हो रही है क्यों कि उनको मेहमानों की पहली पक्ति में जगह दी गई थी। शपथ ग्रहण समारोह के दौरान जयशंकर इक्वाडोर के राष्ट्रपति डेनियल नोबोआ के साथ आगे की पंक्ति में बैठे नजर आए, जो आधिकारिक प्रोटोकॉल है। इस दौरान जापानी विदेश मंत्री ताकेशी इवाया पीछे बैठे नजर आए। इस तस्वीर को बदलते भारत और अमेरिका और भारत के प्रगाढ़ होते रिश्तों के तौर पर देखा जा रहा है। बता दें कि विदेश मंत्री एस जयशंकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विशेष दूत के रूप में ट्रंप के शपथ ग्रहण में शामिल होने अमेरिका पहुंचे थे। जब डोनाल्ड ट्रंप पोडियम पर अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ले रहे थे, तब एस जयशंकर उनके बिल्कुल सामने बैठे हुए थे। यह तस्वीर अपने आप में काफी कुछ कह रही है।एस जयशंकर की इस तस्वीर को अमेरिका में भारत की धाक के तौर पर देखा जा सकता है। उनको ट्रंप के बिल्कुल सामने यानी कि पहली पंक्ति में जगह मिलना यह दिखाता है कि भारत की धाक दुनियाभर में है। पूरी दुनिया का नजरिया भारत के प्रति बदल रहा है। विदेश मंत्री ने ट्रंप के शपथ ग्रहण की कुछ तस्वीरें अपने एक्स हैंडल पर शेयर की हैं। जिसमें उन्होंने कहा है कि ट्रंप और जेडी वेंस के शपथ ग्रहण में भारत का प्रतिनिधित्व करना उनके लिए बहुत ही सम्मान की बात है।
ट्रंप ने किम जोंग उन से मुलाकात की इच्छा जताई, नॉर्थ कोरिया के तानाशाह को स्मार्ट

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अमेरिका के राष्ट्रपति बनते ही डोनाल्ड ट्रंप एक्टिव मोड में हैं। शपथ ग्रहण के तुरंत बाद उन्होंने एक्जीक्यूटिव ऑर्डर के जरिए कई बड़े ऐलान किए। उसके बाद उन्होंने ग्लोबल लीडर्स से भी बात की। एक तरफ रूसी राष्ट्रपति पुतिन को यूक्रेन युद्ध रोकने की सलाह दी तो ईरान को चेतावनी दी। इस बीच उन्होंने नॉर्थ कोरिया के लीडर किम जोंग उन को स्मार्ट बताते हुए उनसे मिलने की भी इच्छा जताई है।

किम धार्मिक कट्टरपंथी नहीं हैं-ट्रंप

राष्ट्रपति बनने के बाद पहली बार दिए इंटरव्यू में ट्रंप ने दक्षिण कोरियाई नेता किम जोंग के बारे में बात की। फॉक्स न्यूज को दिए इंटरव्यू में बातचीत के दौरान जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से उत्तर कोरियाई नेता के साथ किम जोंग के साथ संबंध पर सवाल किए तो उन्होंने उन्हें स्मार्ट आदमी बताते हुए कहा कि वह उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग से संपर्क करने वाले है। ट्रंप ने कहा कि उन्होंने किम के साथ अच्छा संबंध स्थापित किया है और किम धार्मिक कट्टरपंथी नहीं हैं।

ट्रंप खुद चलकर प्योंगयोंग गए थे

डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में भी किम जोंग उन से मुलाकात की थी। 2017 से 2021 तक अपने राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान ट्रंप ने किम के साथ एक असामान्य कूटनीतिक संबंध स्थापित किया था, जिसमें न सिर्फ किम से मुलाकात की, बल्कि यह भी कहा कि दोनों ‘प्यार में पड़ गए हैं।’ हालांकि, उनके विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने स्वीकार किया था कि ये प्रयास उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम को खत्म करने के लिए एक स्थायी समझौते तक पहुंचने में विफल रहा।

नॉर्थ कोरिया से संबंध सुधारना नहीं आसान!

उत्तर कोरिया को अमेरिका सबसे बड़े दुश्मनों से एक माना जाता है। यूक्रेन युद्ध के बाद ये दुश्मनी और गहरी हो गई है, क्योंकि उत्तर कोरिया ने खुले तौर पर इस युद्ध में रूस का साथ दिया है। ऐसे में ट्रंप के लिए किम जोंग से रिश्ता बनाना आसान नहीं है। दरअसल साउथ कोरिया अमेरिका का करीबी सहयोगी है, लेकिन नॉर्थ कोरिया से उसके रिश्ते अच्छे नहीं रहे हैं। अगर ट्रंप ने नॉर्थ कोरिया से संबंध सुधारने की शुरुआत की तो साउथ कोरिया अमेरिका से नाराज हो सकता है।

डोनाल्ड ट्रंप को अमेरिकी कोर्ट से बड़ा झटका, बर्थराइट सिटिजनशिप खत्म करने के ऑर्डर पर लगाई रोक

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अमेरिका में स्वतः जन्मसिद्ध नागरिकता को खत्म करने के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के फैसले पर देश की एक संघीय अदालत ने रोक लगा दी है। अदालत के फैसले ने अमेरिका में रहने वाला हजारों आप्रवासियों को बड़ी राहत दी है। जज ने अपने फैसले में डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकारी आदेश को 'साफ तौर पर असंवैधानिक' कहा है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सोमवार को पदभार ग्रहण करने के बाद पहले ही दिन एक कार्यकारी आदेश के जरिए स्वतः जन्मसिद्ध नागरिकता के अधिकार को खत्म कर दिया था।

सीऐटल में एक फेडरल जज ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उस कार्यकारी आदेश पर अस्थायी रोक लगा दी है, जिसका मकसद जन्मसिद्ध नागरिकता को समाप्त करना है। जज ने इस कदम को स्पष्ट रूप से असंवैधानिक करार दिया है। अमेरिकी जिला न्यायाधीश जॉन कॉफनर ने गुरुवार को एक सुनवाई के दौरान यह फैसला सुनाया। जज जॉन कफेनोर ने कहा कि यह आदेश संविधान का स्पष्ट उल्लंघन है। उनकी यह टिप्पणी ऐसे समय में आई, जब एरिजोना, इलिनोइस, ओरेगन और वाशिंगटन सहित कई राज्यों ने ट्रंप के आदेश को चुनौती दी है। उनका तर्क है कि ट्रंप का जन्मसिद्ध नागरिकता वाला कार्यकारी आदेश गैरकानूनी है।

जस्टिस कॉफनर ने कहा, मैं 4 दशकों से बेंच पर हूं। मुझे कोई दूसरा मामला याद नहीं है जिसमें दिए गए सवाल इतना साफ हो। उन्होंने पूछा कि जब इस आदेश पर हस्ताक्षर करने का निर्णय लिया गया था, तब वकील कहां थे। साथ ही कहा कि यह उनके दिमाग को चकित कर रहा था कि बार का एक सदस्य आदेश को संवैधानिक होने का दावा करेगा।

सिएटल में दायर चार राज्यों के मुकदमे के अनुसार, 2022 में, अमेरिका में अवैध रूप से रहने वाली माताओं से लगभग 255,000 बच्चों का जन्म हुआ। जबकि, 153,000 बच्चे ऐसे पैदा हुए, जिनके माता-पिता दोनों अवैध रूप से रह रहे थे। जिनकी नागरिकता पर बादल छाए हुए हैं।इस आदेश के तहत नागरिकता से वंचित किए गए बच्चों को नकारात्मक प्रभावों का सामना करना पड़ेगा।

अमेरिका के संविधान का 14वां संशोधन अमेरिकी धरती पर पैदा हुए सभी बच्चों को नागरिकता की गारंटी देता है। इसमें अप्रवासियों के बच्चों को भी नागरिकता का अधिकार मिलता है।राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सोमवार को पदभार ग्रहण करने के बाद पहले ही दिन एक कार्यकारी आदेश के जरिए स्वतः जन्मसिद्ध नागरिकता के अधिकार को खत्म कर दिया था।इसे 19 फरवरी से लागू किया जाना था।

ट्रंप की धमकी का रूस ने दिया जवाब, कहा- बयानों में कुछ भी नया नहीं

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डोनाल्ड ट्रंप ने मंगलवार को कहा था कि वो रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से कभी भी मिलने को तैयार हैं। इतना कहते हुए ट्रंप ने टर्म एंड कंडीशन भी लगाई। उन्होंने कहा, अगर रूस, यूक्रेन के मुद्दे पर बातचीत के लिए आगे नहीं आता है तो उस पर प्रतिबंध भी लग सकते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टिप्पण पर रूस का जवाब आया है।

क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव से जब पत्रकारों ने पुतिन की टिप्पणियों को लेकर पूछा तो उन्होंने कहा, हमें इसमें कुछ नया नहीं दिखाई देता है। ट्रंप की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा, ट्रंप के पहले राष्ट्रपति कार्यकाल में साफ हो गया है कि उन्हें प्रतिबंध लगाने पसंद हैं। पेसकोव ने जोर दिया कि रूस अमेरिका के साथ समान और परस्पर सम्मानपूर्ण बातचीत के लिए तैयार है। उन्होंने यह भी कहा कि मास्को, ट्रंप प्रशासन के बयानों को बारीकी से देख रहा है।

इससे पहले ट्रंप ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि वह बहुत जल्द पुतिन से बात करेंगे और ऐसी संभावना है कि अगर रूस बातचीत के लिए तैयार नहीं हुआ तो वे उसपर अतिरिक्त प्रतिबंध लगा देंगे।

वहीं, बुधवार को अपने ट्रुथ सोशल पोस्ट में डोनाल्ड ट्रंप ने लिखा, मैं रूस और राष्ट्रपति पुतिन पर बहुत बड़ा अहसान करने जा रहा हूं। अब समझौता करो, और इस बेतुके युद्ध को रोको। अगर हम जल्द ही कोई सौदा नहीं करते हैं, तो मेरे पास रूस से आने वाले सामान पर भारी आयात शुल्क लगाने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा।

अपनी बात जारी रखते हुए उन्होंने कहा, आइये इस युद्ध को ख़त्म करें। अगर मैं राष्ट्रपति होता तो ये शुरू ही नहीं होता। हम इस युद्ध का अंत आसान या कठिन तरीके से कर सकते हैं। आसान तरीका हमेशा बेहतर होता है। अब समझौता करने का समय आ गया है।

बता दें कि पुतिन ने भी बार-बार कहा है कि वह जंग रोकने के लिए बातचीत करने को तैयार हैं लेकिन यूक्रेन को अपनी ज़मीन का वो 20 फीसदी हिस्सा छोड़ना होगा जो अब रूसी कब्जे में है। इसके अलावा पुतिन ये भी नहीं चाहते कि यूक्रेन नेटो में शामिल हो। लेकिन यूक्रेन एक इंच जमीन छोड़ने को तैयार नहीं है। हालांकि राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ये कह चुके हैं कि उन्हें अपनी कुछ जमीन फ़िलहाल के लिए छोड़नी पड़ सकती है।

दुनिया फिर देखेगी ट्रंप-मोदी की दोस्ती, अगले महीने फ्रांस या अमेरिका में हो सकती है मुलाकात

#pm_modi_and_trump_likely_to_meet_in_february

अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद एक बार फिर से डोनाल्ड ट्रंप और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुलाकात हो सकती है। यह मुलाकात फरवरी के मध्य में हो सकती है। यह तभी संभव होगा अगर ट्रंप पेरिस में आयोजित एआई समिट में शामिल होते हैं। यह समिट फ्रांस के राष्ट्रपति द्वारा बुलाया गया है। अगर ट्रंप एआई समिट में नहीं आते हैं, तो मोदी फरवरी में वाशिंगटन डीसी जा सकते हैं। दरअसल, भारतीय और अमेरिकी राजनयिक फरवरी में वॉशिंगटन में पीएम मोदी और डोनाल्ड ट्रंप के के बीच एक बैठक आयोजित करने का प्रयास कर रहे हैं। हालांकि, यह तय नहीं है कि दोनों देशों के नेता फरवरी में मिलेंगे या नहीं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले महीने फ्रांस के दौरे पर जाएंगे। फ्रांस 11 और 12 फरवरी को एआई शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेगा। पीएम 10-11 फरवरी को पेरिस में होने वाली आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) समिट में भाग लेंगे। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने पीएम मोदी के दौरे की पुष्टि की है। ट्रंप को भी इस समिट के लिए आमंत्रित किया गया है। अगर ट्रंप समिट में आते हैं तो दोनों नेता वहां मुलाकात कर सकते हैं।

वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति इस साल के अंत में भारत आएंगे। भारत क्वाड समिट की मेजबानी करेगा। जिसमें ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के क्वाड समूह के नेता भारत द्वारा आयोजित वार्षिक शिखर सम्मेलन में शामिल होंगे। ट्रंप ने अपने पिछले कार्यकाल के दौरान फरवरी 2020 में भारत का दौरा किया था। तब उन्होंने मोदी के राजनीतिक गृहनगर अहमदाबाद के क्रिकेट स्टेडियम में आयोजित कार्यक्रम में शिरकत की थी। जहां उन्होंने भारत के साथ "एक अविश्वसनीय व्यापार समझौते" का वादा किया था।

ट्रंप के व्हाइट हाउस में लौटने से नई दिल्ली में अधिकारियों के बीच भारत पर टैरिफ लगाए जाने को लेकर चिंता बढ़ गई है। ट्रंप ने भारत को उन देशों में से एक बताया है, जो अमेरिकी उत्पादों पर उच्च टैरिफ लगाते हैं। उन्होंने संकेत दिया है कि वह भी टैरिफ लगाने के पक्ष में हैं। सूत्रों ने बताया कि भारत अमेरिकी निवेश आकर्षित करने के लिए अमेरिका को कुछ रियायतें देने के लिए भी तैयार है। इसके अलावा भारत अमेरिका के साथ व्यापार संबंधों को बढ़ाने और अपने नागरिकों के लिए कुशल श्रमिक वीजा को आसान बनाने का भी इच्छुक है।

अमेरिकी नागरिकता पर ट्रंप के आदेश से घबराए लोग, वक्त से पहले बच्चों की डिलीवरी कराने की लगी होड़

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डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के राष्ट्रपति के तौर पर अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत एक के बाद एक कई कार्यकारी आदेशों को जारी करते हुए की। इन आदेशों में से एक गैर-अमेरिकी माता-पिता के बच्चों को जन्म के साथ अपने आप मिलने वाली अमेरिकी नागरिकता के प्रावधान को खत्म करना भी शामिल था। अभी तक अमेरिका के कानून के मुताबिक वहां जन्‍म लेने वाला हर शख्‍स अमेरिकी नागरिक होता था, यानी कि उसे जन्‍मजात अमेरिकी नागरिकता मिलती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। ट्रंप ने बर्थराइट सिटिजनशिप के अधिकार को बदलने के आदेश पर दस्तखत भी कर दिए हैं। ऐसे में जन्म से मिलने वाली नागरिकता की परिभाषा बदलने का वहां रह रहे भारतीयों समेत अन्य देशों के लोगों पर प्रभाव पड़ सकता है।

30 दिन बाद अमेरिका में जन्‍मे बच्‍चों की नागरिकता को लेकर नया नियम लागू हो जाएगा और अमेरिकी प्रशासन नई शर्तों के साथ ही ऐसे बच्‍चों को नागरिकता देगा। दरअसल, डोनाल्ड ट्रंप आदेश एग्जीक्यूटिव ऑर्डर पर हस्ताक्षर करने के 30 दिन के बाद शुरू होगा, यानी जो बच्चे 20 फरवरी के बाद जन्म लेंगे उन्हें अमेरिका की जन्मजात नागरिकता नहीं मिलेगी। इसी के चलते कई परिवार चाहते हैं कि उनके बच्चे 20 फरवरी से पहले जन्म ले और बर्थराइट सिटिजनशिप हासिल करें। ऐसे में वहां बीते कुछ घंटों के भीतर सिजेरियन डिलीवरी की बाढ़ आ गई है। अस्पतालों के बाहर बच्चों की डिलीवरी कराने के लिए लंबी लाइन लग गई है।

अखबार की रिपोर्ट में न्यू जर्सी के एक मेटरनिटी क्लिनिक के हवाले से कहा गया है कि बीते कुछ समय से असामान्य रूप से ज्यादा प्रीटर्म डिलीवरी के लिए अनुरोध मिल रहे हैं। इनमें से ज्यादातर कॉल करने वाली या क्लिनिक में आने वाली महिलाएं भारतीय हैं, जो आठ या नौ महीने की गर्भवती हैं और 20 फरवरी से पहले सी-सेक्शन कराने की मांग कर रही हैं। इनमें कुछ महिलाओं का प्रेग्नेंसी पीरियड काफी कम है। अखबार ने एक डॉक्टर एसडी राम के हवाले से लिखा है कि एक महिला जो केवल सात महीने की गर्भवती थी। वह पति के साथ आई और प्रीटर्म डिलीवरी के लिए अनुरोध किया। उसकी डिलीवरी मार्च में ड्यू है।

टेक्सास में प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ एस जी मुक्कला ने बताया, पिछले 2 दिनों में मैंने ऐसे 15 से 20 कपल्‍स से इस संबंध में बात की है। साथ ही मैंने उन्‍हें यह बताने की कोशिश की कि भले ही सी-सेक्‍शन करना संभव है लेकिन समय से पहले बच्‍चे का जन्म मां और बच्चे दोनों के लिए बेहद रिस्‍की है। ऐसे प्री-मैच्‍योर बच्‍चे अविकसित फेफड़े, भोजन संबंधी समस्याएं, जन्म के समय कम वजन, तंत्रिका संबंधी जटिलताएं समेत कई शारीरिक समस्‍याओं का शिकार हो सकते हैं।

चूंकि एच1बी वीजा होल्‍डर्स में 70 फीसदी से ज्‍यादा भारतीय हैं और ट्रंप एच1बी वीजा को लेकर भी नियम सख्‍त करने जा रहे हैं, ऐसे में भारतीयों के पास भविष्‍य में अमेरिका में रहने के लिए बच्‍चा पैदा करने के सिवाय कोई और चारा ही नहीं बचा है। मां और बच्चे के लिए जोखिम के बावजूद, कई लोगों को लगता है कि स्थिरता पाने के लिए और अमेरिका में रहने के लिए उनके पास यही एक मौका है। खासकर ऐसे लोग जो लंबे समय से ग्रीन कार्ड पाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

डोनाल्ड ट्रंप ने देश में सत्ता संभालने के बाद 20 जनवरी को बर्थराइट पॉलिसी में बदलाव करने के आदेश पर हस्ताक्षर किए। जिसके तहत अब संविधान में 14वें संशोधन के तहत अमेरिका में पैदा हुए सभी बच्चे जन्मजात नागरिकता के हकदार नहीं है। बल्कि जन्मजात नागरिकता हासिल करने के लिए बच्चे की मां या पिता का अमेरिकी नागरिक होना जरूरी है।

आदेश कहता है इन परिस्थितियों में अमेरिकी नागरिकता नहीं मिलेगीः-

- अमेरिका में पैदा हुए बच्चे की मां यदि अवैध रूप से वहां रह रही हो।

- पिता अगर बच्चे के जन्म के समय अमेरिका का नागरिक या वैध स्थायी निवासी न हो।

- बच्चे के जन्म के समय मां अमेरिका की वैध, लेकिन अस्थायी निवासी हो।

-पिता, बच्चे के जन्म के समय अमेरिका के नागरिक या वैध स्थायी निवासी न हो।

हालांकि, ये आदेश जारी होने के अगले दिन डोनाल्ड ट्रंप से व्हाइट हाउस में प्रेस कॉन्फ़्रेंस के दौरान जब एच-1 बी वीज़ाधारकों के भविष्य से जुड़ा सवाल किया गया तो उन्होंने कहा, मुझे ये पसंद है कि हमारे देश में प्रतिस्पर्धी लोग आएं। जहां तक एच-1बी वीजा की बात है, तो मैं इसको अच्छे से समझता हूं। मैंने इस प्रोग्राम का इस्तेमाल किया है। हमें चाहिए कि यहां अच्छा काम करने वाले लोग आएं। हमें जरूरत है कि हमारे देश में अच्छे लोग आएं और हम ये एच-1 बी प्रोग्राम के जरिए करते हैं।

ट्रंप प्रशासन भारत के साथ संबंधों को और मजबूत करने का करेगा प्रयास

#indiaexpectsgoodtieswithamericaposttrumpsinaugration

भारत ने अमेरिका के साथ द्विपक्षीय संबंधों में आगे बढ़ना शुरू कर दिया है, विदेश मंत्री एस जयशंकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विशेष दूत के रूप में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए और फिर नए प्रशासन के शीर्ष अधिकारियों से मुलाकात की। जयशंकर को विशेष दूत के रूप में भेजा गया क्योंकि पीएम मोदी शपथ ग्रहण समारोह में शामिल नहीं होते हैं।

राष्ट्रपति ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में शीर्ष प्रोटोकॉल प्राप्त करने के बाद, विदेश मंत्री जयशंकर ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइक वाल्ट्ज से मुलाकात की और फिर नवनियुक्त विदेश मंत्री मार्को रुबियो, ऑस्ट्रेलियाई विदेश मंत्री पेनी वोंग और जापानी विदेश मंत्री इवाया ताकेशी के साथ क्वाड बैठक में भाग लिया। इसके तुरंत बाद जयशंकर और मार्को रुबियो के बीच द्विपक्षीय बैठक हुई। ट्रंप के लिए भारत का महत्व इस बात से पता चलता है कि मार्को रुबियो की पहली बहुपक्षीय बैठक क्वाड बैठक थी और विदेश मंत्री रुबियो की पहली द्विपक्षीय बैठक भारत के साथ थी।

ट्रम्प प्रशासन ने भारत के साथ संबंधों को और मजबूत करने का फैसला किया

शीर्ष सूत्रों के अनुसार, ट्रम्प प्रशासन ने क्वाड बैठक और मंत्री जयशंकर के साथ द्विपक्षीय बैठक के माध्यम से इंडो-पैसिफिक में स्पष्ट संदेश देते हुए भारत के साथ संबंधों को और मजबूत करने का फैसला किया है। ऐसा माना जा रहा है कि ट्रम्प प्रशासन पिछले प्रशासन के दौरान हासिल की गई भारत-अमेरिका द्विपक्षीय गति को आगे बढ़ाएगा और प्रौद्योगिकी, रक्षा और सुरक्षा, व्यापार और वाणिज्य तथा आर्थिक संबंधों में बड़े कदम उठाने के लिए तैयार है।

जबकि क्वाड बैठक समूह द्वारा उठाए गए पिछले कदमों की समीक्षा थी, सचिव रुबियो ने अपने तीनों समकक्षों को याद दिलाया कि यह राष्ट्रपति ट्रम्प ही थे जिन्होंने 2017 में क्वाड विदेश मंत्रियों की वार्ता शुरू की थी। सचिव रुबियो ने स्पष्ट रूप से संकेत दिया कि राष्ट्रपति ट्रम्प का इरादा इंडो-पैसिफिक में नेविगेशन की स्वतंत्रता, वैकल्पिक लचीली वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं और क्षेत्र में मानवीय और प्राकृतिक आपदाओं के लिए तेजी से प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिए क्वाड पर आगे बढ़ने का है।

सूत्रों के अनुसार, विदेश मंत्री जयशंकर की अपने अमेरिकी समकक्षों के साथ बातचीत बहुत सकारात्मक रही है, दोनों देश आपसी हित और आपसी सुरक्षा के आधार पर आगे बढ़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं। विदेश मंत्री जयशंकर एक बहुत ही सफल यात्रा के बाद भारत के लिए रवाना होने से पहले आज वाशिंगटन डीसी में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करेंगे।

क्या है अमेरिका की बर्थराइट पॉलिसी जिसे खत्म करने जा रही ट्रंप सरकार, क्या भारत पर भी होगा असर?

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डोनाल्‍ड ट्रंप ने सोमवार को अमेरिका के 47वें राष्‍ट्रपति के रूप में शपथ ग्रहण के बाद अपने संबोधन में कई बड़े ऐलान किये और इसके बाद कई एग्‍जीक्‍यूटिव आदेशों पर हस्‍ताक्षर किए। दुनिया के कई देशों के लिए यह आदेश मुसीबत लेकर आए हैं तो खुद उनके ही देश में ऐसे आदेशों ने बहुत से लोगों की परेशान बढ़ा दी है। नागरिकता को लेकर डोनाल्‍ड ट्रंप के एक एग्‍जीक्‍यूटिव आदेश ने अमेरिका में रहने वाले कई देशों के लोगों के साथ लाखों भारतीयों के लिए भी परेशानी खड़ी कर दी है। इस आदेश के मुताबिक, यदि किसी बच्‍चे के माता-पिता अमेरिका के नागरिक नहीं हैं और बच्‍चे का अमेरिका में जन्‍म होता है तो भी उसे नागरिकता नहीं दी जाएगी।

अमेरिका के कानून के मुताबिक अब तक वहां जन्म लेने वाला हर शख्स अमेरिकी नागरिक होता है। अमेरिका में यदि किसी बच्‍चे का जन्‍म होता है तो उसे स्‍वत: ही अमेरिका का नागरिक मान लिया जाता है। फिर चाहे बच्‍चे के माता-पिता अमेरिका के हों या नहीं। साथ ही यदि बच्‍चे के माता-पिता अवैध रूप से यहां पर आए हैं और बच्‍चे का जन्‍म अमेरिका में होता है तो भी उसे अमेरिकी नागरिक माना जाएगा। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा।

क्या है अमेरिका की बर्थराइट पॉलिसी

यह जानने से पहले की ट्रंप ने बर्थराइट पॉलिसी में किन चीजों को बदलने की मांग की है यह जानना जरूरी है कि देश की बर्थराइट पॉलिसी क्या है? अमेरिका के संविधान के 14वें संशोधन जोकि 1868 में किया गया, उसके मुताबिक, देश में पैदा हुए सभी बच्चों को जन्मजात नागरिकता दी जाती है। इस संशोधन का मकसद पूर्व में देश में गुलाम बनाए गए व्यक्तियों को नागरिकता और समान अधिकार देना था।

संविधान के मुताबिक, अमेरिका में जिन सभी बच्चों का जन्म हुआ उनके अधिकार क्षेत्र के अधीन वो अमेरिका और जिस भी राज्य में पैदा हुए वहां के नागरिक बन जाते हैं।

इस बर्थराइट पॉलिसी में विदेशी राजनयिकों के बच्चों को छोड़ कर, अमेरिका में पैदा हुए लगभग सभी व्यक्तियों को शामिल किया गया है। हालांकि, जहां संविधान देश में पैदा हुए सभी बच्चों को जन्मजात नागरिकता देने की बात करता है, वहीं अब ट्रंप के प्रशासन का मकसद इस खंड को फिर से परिभाषित करना है। ट्रंप के आदेश में कहा गया है कि जन्मजात नागरिकता में गैर-दस्तावेजी आप्रवासियों के बच्चों को बाहर रखा जाना चाहिए और उन्हें जन्मजात नागरिकता नहीं दी जानी चाहिए।

क्‍या है ट्रंप का आदेश?

अमेरिका के राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप ने कहा है कि उनकी सरकार अवैध रूप से देश में प्रवेश करने वाले लोगों के अमेरिका में बच्‍चों को नागरिक नहीं मानेगी। ट्रंप ने फेडरल एजेंसी को आदेश दिया है कि वह 30 दिनों के बाद ऐसे बच्‍चों को नागरिकता दस्‍तावेज जारी न करे। ट्रंप काफी वक्‍त से यह मुद्दा उठा रहे हैं और कह रहे हैं कि वैध स्थिति के बिना आप्रवासियों के बच्चों को अमेरिका की नागरिकता प्रदान करना उन्हें स्‍वीकार्य नहीं है।

किन पर ज्यादा असर

अमेरिका के इमिग्रेशन नियमों में इस बड़े बदलाव का असर एच-1बी, एच-4 या एफ-1 वीजा पर रह रहे माता-पिता के बच्चों पर पड़ेगा। ये नियम उन बच्चों पर लागू होगा जिनके माता-पिता ग्रीन कार्ड होल्डर या अमेरिकी नागरिक नहीं हैं। इस फैसले से रोजगार आधारित ग्रीन कार्ड का इंतजार कर रहे दस लाख से अधिक भारतीयों पर सीधा असर पड़ेगा। इनमें से कई लोग तो पिछले कई दशकों से ग्रीन कार्ड का इंतजार कर रहे हैं।

भारत पर असर

अमेरिका के जनसंख्‍या ब्‍यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, अमेरिका में रहने वाले भारतीयों की संख्‍या करीब 50 लाख है जो कि वहां की जनसंख्या का करीब 1.47 फीसदी है। इनमें से महज 34 फीसदी लोग ही ऐसे हैं जो कि अमेरिका में पैदा हुए हैं। शेष दो तिहाई आप्रवासी हैं। अमेरिका में काम कर रहे अधिकतर भारतीय वहां एच1-बी विजा के आधार पर काम कर रहे हैं। इस दौरान वहां पैदा होने वाले भारतीय मूल के बच्चों को अब स्वत: अमेरिका की नागरिकता नहीं मिल पाएगी। ग्रीन कार्ड मिलने का इंतजार कर रहे 10 लाख से ज्‍यादा भारतीय भी इस फैसले से प्रभावित होंगे।

शपथ लेने के बाद चीन पर नरम क्यों हुए ट्रंप, ड्रैगन के साथ नहीं टकराना चाहते हैं अमेरिकी राष्ट्रपति?
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डोनाल्ड ट्रंप की अमेरिका के राष्ट्रपति के तौर पर वापसी हो गई है। डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति पद की शपथ ली। ट्रंप ने शपथ लेने के बाद भाषण दिया और उसमें उन्होंने बताया कि उनकी दिशा क्या रहेगी। उद्घाटन भाषण के दौरान वैसे तो डोनाल्ड ट्रंप काफी आक्रामक थे, लेकिन चीन को लेकर उनकी स्थिति काफी नरम थी। उन्होंने अपने पूरे भाषण में सिर्फ एक बार ही चीन का नाम लिया, वो भी सिर्फ पनामा नहर को लेकर, और उनका भाषण 'अमेरिका फर्स्ट' पर टिका था। उन्होंने टैरिफ का जिक्र किया और विदेशी देशों पर टैरिफ लगाने के लिए 'एक्सटर्नल रेवेन्यू सर्विस' के गठन की घोषणा की, लेकिन उसमें भी चीन का कहीं जिक्र नहीं था।

चीन और अमेरिका एक दूसरे के कट्टर दुश्मन हैं। ट्रंप ने राष्ट्रपति चुनाव प्रचार के दौरान चीन पर कड़े हमले भी किए थे, हालांकि अब उनका रूख नरम दिख रहा है। जाहिर तौर पर ये जताता है, कि ट्रंप चीन को लेकर स्थिति का आकलन करना चाहते हैं और कम से कम अपने दूसरे कार्यकाल की शुरूआत चीन से टकराव करते हुए शुरू नहीं करना चाहते।

ट्रंप अमेरिकी राष्ट्रपति की शपथ लेने के बाद चीन दौरे पर जाने की योजना बना रहे हैं। अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने सलाहकारों से कहा है कि वह शपथ लेने के बाद चीन जाना चाहते हैं। अखबार के मुताबिक ट्रंप ने कहा है कि वह चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के संबंध गहरा करना चाहते हैं। इससे पहले ट्रंप ने चुनाव जीतने के बाद चीन के ख़िलाफ टैरिफ लगाने की धमकी दी थी।
डब्ल्यूएसजे ने लिखा है कि ट्रंप कमान संभालने के बाद 100 दिनों के भीतर ही चीन जाना चाहते हैं। नवंबर में चुनाव जीतने के बाद ट्रंप ने शु्क्रवार को पहली बार शी जिनपिंग से बात की थी। ट्रंप ने शी जिनपिंग से बातचीत के बाद कहा था कि दोनों देश साथ मिलकर कई समस्याओं का समाधान खोज सकते हैं। इसका प्रमुख उद्देश्य दोनों देशों के बीच मौजूद अविश्वास के माहौल को बदलना है।

समारिक मामलों के विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने लिखा है कि चीन के तानाशाह के प्रति ट्रंप की बढ़ती उदारता का असर अमेरिका से भारत और जापान के संबंधों पर पड़ेगा। ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल में चीन के प्रति नरमी दिखाई है। ट्रंप ने टिक टॉक पर प्रतिबंध को भी टाल दिया है।
ट्रंप के आते ही अमेरिका में अवैध प्रवासियों की एंट्री बंद, 7.25 लाख भारतीयों की बढ़ी टेंशन
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अमेरिका आने वाले दिनों में अवैध प्रवासियों की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं। ट्रंप ने अमेरिका की सत्ता संभालते ही अवैध रूप से अमेरिका में रहने वालों के खिलाफ एक्शन का ऐलान कर दिया है। उनकी घोषणा का असर अमेरिका में रहने वाले भारतीयों पर पड़ेगा। अमेरिका में अवैध तरीके से रह रहे 7.25 लाख भारतीयों के भविष्य पर भी तलवार लटक गई है। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि अमेरिका में अवैध अप्रवासियों की तीसरी सबसे बड़ी आबादी भारतीयों की है। जानते हैं कि अब अमेरिका में अवैध प्रवासियों का भविष्य क्या होगा?

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चुनाव जीतने के बाद से ही अमेरिका में अवैध प्रवासियों को घुसपैठिया बताते रहे हैं। ट्रंप के राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद ही अमेरिकी सीनेट ने अवैध अप्रवास को लेकर बिल पास किया। इस विधेयक को 64-35 से पारित किया गया। इस विधेयक को लैकेन रिले एक्ट नाम दिया गया है।

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने देश में अवैध प्रवासियों की एंट्री बैन करने और अवैध प्रवासियों को पकड़ कर बॉर्डर पर छोड़ने की पॉलिसी खत्म करने का ऐलान किया। उन्होंने कहा, बाइडेन प्रशासन ने हमारे देश में अवैध रूप से एंट्री करने वाले खतरनाक अपराधियों को शरण दी है और उनकी हिफाजत की है।

*मेक्सिको बॉर्डर पर इमरजेंसी का ऐलान*
ट्रंप ने अमेरिका-मेक्सिको के बॉर्डर (दक्षिणी बॉर्डर) पर इमरजेंसी लागू करने की बात कही। उन्होंने कहा कि यहां से होने वाली सभी अवैध एंट्री पर रोक लगाई जाएगी। सरकार अपराध करने वाले विदेशियों को उनके देश वापस भेज देगी।
यूएस-मेक्सिको बॉर्डर से आने वाले अवैध प्रवासियों की बढ़ती संख्या अमेरिकी राजनीति में एक बड़ा मुद्दा है। ट्रंप का कहना है कि यहां से अवैध प्रवासी और अपराधी अमेरिका में एंट्री करते हैं। ट्रंप इस बॉर्डर पर दीवार बनाने की बात भी कह चुके हैं।

*अमेरिका में दुनिया के सबसे ज्यादा अप्रवासी*
प्यू रिसर्च सेंटर के मुताबिक अमेरिका में दुनिया के सबसे ज्यादा अप्रवासी हैं। दुनिया के कुल 20% अप्रवासी अमेरिका में ही रहते हैं। 2023 तक यहां रहने वाले अप्रवासियों की कुल संख्या 4.78 करोड़ थी। ट्रम्प का मानना है कि दूसरे देशों से लोग अवैध तरीके से अमेरिका में घुसकर अपराध करते हैं।

*अवैध ढंग से रहने वालों में तीसरे सबसे अधिक संख्या में भारतीय*
एक रिसर्च के अनुसार, अमेरिका में अवैध ढंग से सबसे अधिक मैक्सिको के लोग रह रहे हैं। इसके बाद दूसरा नंबर अल सल्वाडोर के नागरिकों का है। तीसरे नंबर पर भारतीय हैं जो अमेरिका में अवैध ढंग से रह रहे हैं।

*तीन साल में 90 हजार से अधिक भारतीय पकड़े गए*
अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों ने पिछले तीन सालों में 90 हजार से अधिक भारतीयों को बॉर्डर एरिया पर अवैध ढंग से पार करते हुए पकड़ा है। आए दिन अमेरिकी बॉर्डर्स पर भारतीय अवैध ढंग से एंट्री के प्रयास में पकड़े जाते हैं। हालांकि, काफी संख्या में इन अवैध प्रवासियों को अमेरिका चार्टर्ड विमानों से वापस भी भेज चुका है।
दुनिया में भारत का बढ़ता कदः ट्रंप के शपथ ग्रहण में दिखी झलक, पहली पंक्ति में दिखे जयशंकर
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* भारत एक प्राचीन और समृद्ध संस्कृति वाला देश है। यह एक विशाल जनसंख्या वाला देश भी है, जो इसे विश्व की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में से एक बनाता है। हाल के वर्षों में, भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था, सैन्य शक्ति और वैश्विक प्रभाव में महत्वपूर्ण वृद्धि देखी है। नतीजतन, भारत विश्व पटल पर एक बढ़ती शक्ति के रूप में उभर रहा है। दुनियाभर के देशों में भारत के बढ़ते धमक की एक झलक अमेरिकी राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह में भी दिखी।इस दौरान एक बात ने सभी का ध्यान अपनी तरफ खींचा और वो ये था कि ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर को पहली पंक्ति में ट्रंप के मंच के ठीक सामने बिठाया गया था। यह वैश्विक परिदृश्य में भारत के ऊंचे होते कद का उदाहरण है। अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में डोनाल्ड ट्रंप ने शपथ ले ली है। शपथ ग्रहण के समारोह के दौरान विभिन्न देशों के प्रतिनिधि पहुंचे। भारत की ओर से विदेश मंत्री एस जयशंकर डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए। शपथ ग्रहण समारोह में पहुंचे मेहमानों में जयशंकर की चर्चा इसलिए हो रही है क्यों कि उनको मेहमानों की पहली पक्ति में जगह दी गई थी। शपथ ग्रहण समारोह के दौरान जयशंकर इक्वाडोर के राष्ट्रपति डेनियल नोबोआ के साथ आगे की पंक्ति में बैठे नजर आए, जो आधिकारिक प्रोटोकॉल है। इस दौरान जापानी विदेश मंत्री ताकेशी इवाया पीछे बैठे नजर आए। इस तस्वीर को बदलते भारत और अमेरिका और भारत के प्रगाढ़ होते रिश्तों के तौर पर देखा जा रहा है। बता दें कि विदेश मंत्री एस जयशंकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विशेष दूत के रूप में ट्रंप के शपथ ग्रहण में शामिल होने अमेरिका पहुंचे थे। जब डोनाल्ड ट्रंप पोडियम पर अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ले रहे थे, तब एस जयशंकर उनके बिल्कुल सामने बैठे हुए थे। यह तस्वीर अपने आप में काफी कुछ कह रही है।एस जयशंकर की इस तस्वीर को अमेरिका में भारत की धाक के तौर पर देखा जा सकता है। उनको ट्रंप के बिल्कुल सामने यानी कि पहली पंक्ति में जगह मिलना यह दिखाता है कि भारत की धाक दुनियाभर में है। पूरी दुनिया का नजरिया भारत के प्रति बदल रहा है। विदेश मंत्री ने ट्रंप के शपथ ग्रहण की कुछ तस्वीरें अपने एक्स हैंडल पर शेयर की हैं। जिसमें उन्होंने कहा है कि ट्रंप और जेडी वेंस के शपथ ग्रहण में भारत का प्रतिनिधित्व करना उनके लिए बहुत ही सम्मान की बात है।