अमेरिका में ट्रंप की वापसी, क्या बढ़ेगी भारत के “दुश्मनों” की दुश्वारियां?

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डोनाल्ड ट्रंप अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव जीत चुके हैं, वह अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति होंगे। चार साल बाद वॉइट हाउस में डोनाल्ड ट्रंप की वापसी कई मायनों में खास है। ट्रंप की वापसी से दुनियाभर में खलबली मची हुई है।डोनाल्ड ट्रंप की वापसी को प्रधानमंत्री मोदी के लिए सकारात्मक घटनाक्रम के तौर पर देखा जा रहा है। पीएम मोदी का पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ मजबूत रिश्ता रहा है। चुनाव से पहले दिवाली पर संदेश में डोनाल्ड ट्रंप ने पीएम मोदी को दोस्त बताया था। दोनों नेता पहले भी एक दूसरे की तारीफ करते रहे हैं। अब सवाल ये है कि ट्रंप का अमेरिका में राष्‍ट्रपति चुनाव जीतने का भारत के ‘दुश्मन’ देशों पर क्या असर होगा?

डोनाल्ड ट्रंप और पीएम मोदी आपस में बहुत अच्छे दोस्त हैं। दोनों विश्व नेताओं की जुगलबंदी जगजाहिर है। ट्रंप के पहले कार्यकाल में भी भारत-अमेरिका के रिश्ते काफी मजबूत रहे हैं। इसमें और मजबूती आने की उम्मीद है। वहीं, ट्रंप की जीत भारत के साथ दुश्मनी वाला रवैया रखने वाले देशों के लिए बुरी खबर हो सकती है। इस लिस्ट में चीन से लेकर बांग्लादेश और कनाडा तक का नाम शामिल हो सकता है।यहां सावल ये भी है कि क्या ट्रंप, भारत के दुश्मनों से सख्ती से निपटेंगे या फिर डिप्लोमेटिक खेल खेलेंगे जैसा बाइडेन प्रशासन करता आ रहा था?

जानबूझ कर दुश्मनी निकाल रहे कनाडा का क्या होगा?

भारत के लिए इन दिनों कनाडा दुश्मन नंबर एक बनकर उभरा है। अमेरिका और कनाडा में खालिस्‍तानी गतिविधियां के बढ़ने से हाल के महीनों में भारत को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा है। कनाडा में भारतीय हिंदुओं की सुरक्षा भी खतरे में आ गई है। ट्रूडो ने पिछले साल कनाडा में आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के मामले में भारत पर बेबुनियाद आरोप लगाए। भारत सरकार ने जब ट्रूडो के एजेंडे को बेनकाब कर दिया तब जाकर उन्होंने यह बात स्वीकार की कि उन्होंने सारे आरोप बिना सबूत के लगाए थे। अब तक बाइडेन प्रशासन काफी हद तक इस मामले में ट्रूडो का साथ दे रहा था लेकिन डोनाल्ड ट्रंप ऐसे मामलों में कनाडा का साथ नहीं देने वाले। ट्रंप के प्रशासन में अमेरिका में भारतीय हिंदुओं को खालिस्तान से होने वाले खतरे और धमकी को नजरअंदाज नहीं किया जाएगा। कनाडा को सुरक्षा और खालिस्तान समर्थकों के मसले पर गंभीर और साफ संदेश भी जाएगा।।

नए नवेले दुश्मन का क्या हाल होगा?

भारत के साथ संबंधों को बिगाड़ने वाले देशों में एक नाम बांग्लादेश का भी है। जिसके साथ दशकों तक भारत के अच्छे संबंध रहे। जिसके साथ भारत ने पूरी शिद्दत से दोस्ती निभाई लेकिन इस साल अगस्त महीने में शेख हसीना सरकार के तख्तापलट होते ही बांग्लादेश के सुर बदल गए। बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ जमकर हिंसा की गई। अपने चुनावी अभियान के दौरान दिवाली के मौके पर धर्म विरोधी एजेंडे के तहत हिंदू अमेरिकन की रक्षा की बात करने वाले ट्रंप बांग्लादेश में हिंदू और दूसरे अल्पसंख्यक समुदाय पर हमले की भर्त्सना कर चुके हैं।बांग्लादेश की यूनुस सरकार को भी ट्रंप ने अपने निर्वाचन से पहले ही साफ संदेश दे दिया था। यही नहीं, हसीने के बाद बाद आए मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार ने भारत को आंख दिखाने की जुर्रत भी की। जान बचाकर भारत आईं पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को जब भारत ने शरण दी तो यूनुस सरकार के मंत्री धमकी भरे लहज़े में बात करने लगे।

कहा जाता है कि बांग्लादेश यह सब कुछ अमेरिका की शह पर कर रहा था। बाइडेन और मोहम्मद यूनुस की मुलाकात की उस तस्वीर को याद करिए जब वह यूनुस से ऐसे मिल रहे थे मानो कोई पिता अपने बेटे की किसी उपलब्धि पर उसे दुलार रहा हो।

चीन की बढ़ेगी मुश्किल

ट्रंप के आने से चीन की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। चीन के आक्रामक और विस्तारवादी रवैये के चलते दुनिया के ज्यादातर मुल्क चीन की आलोचना करते रहे हैं। ट्रंप जब पहली बार राष्ट्रपति बने थे तो उन्होंने चीन के खिलाफ काफी सख्त रुख अपनाया था। इस बार वह इससे एक कदम आगे बढ़ सकते हैं। ट्रंप ने अपनी चुनावी रैलियों में चीन के आयात पर टैरिफ बढ़ाने का वादा किया था। पूरी संभावना है कि वह जब व्हाइट हाउस में होंगे तो चीन के खिलाफ कई कड़े फैसले ले सकते हैं। व्यापार और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में दोनों देशों के बीच टकराव और प्रतिस्पर्धा बढ़ जाएगी, मुमकिन है कि दोनों के बीच एक बार फिर ट्रेड वॉर की शुरुआत हो।

चीन की अर्थव्यवस्था इस वक्त काफी कमजोर दौर से गुजर रही है, ऐसे में ट्रंप का अमेरिका का राष्ट्रपति चुना जाना बीजिंग के लिए बड़ा झटका है। ट्रंप की जीत को लेकर ड्रैगन की निराशा उसके बयान में भी झलकती दिखी, चीन की ओर से कहा गया कि वह अमेरिका के साथ परस्पर सम्मान के आधार पर काम करता रहेगा। चीन के बयान में कोई जोश नहीं दिखा जैसा भारतीय प्रधानमंत्री के बधाई संदेश में था। उन्होंने ट्रंप को अपना दोस्त बताते हुए बधाई दी।

पाकिस्तान को पहले ही मिल चुका है सबक

भारत में पाकिस्तान से सीमा पार आतंकवाद के लिए ट्रंप एक सीधा और साफ संदेश है। अपने पहले कार्यकाल में ट्रंप पाकिस्तान को प्रायोजित आतंकवाद के लिए लताड़ चुके हैं और यही नहीं ट्रंप ने पाकिस्तान को अमेरिका से मिलने वाली आर्थिक सहायता भी रोक दी थी। पाकिस्तान इस वक्त आर्थिक बदहाली के दौर से गुजर रहा है, ऐसे में आतंकवाद समेत किसी मसले पर पाकिस्तान से ट्रंप की नाराजगी उसे न सिर्फ अमेरिका से मिलने वाली मदद बल्कि अलग-अलग संगठनों से मिलने वाली आर्थिक सहायता पर भी तेज आंच डाल सकती है।

अमेरिका में ट्रंप की वापसी, क्या बढ़ेगी भारत के “दुश्मनों” की दुश्वारियां?*
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डोनाल्ड ट्रंप अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव जीत चुके हैं, वह अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति होंगे। चार साल बाद वॉइट हाउस में डोनाल्ड ट्रंप की वापसी कई मायनों में खास है। ट्रंप की वापसी से दुनियाभर में खलबली मची हुई है।डोनाल्ड ट्रंप की वापसी को प्रधानमंत्री मोदी के लिए सकारात्मक घटनाक्रम के तौर पर देखा जा रहा है। पीएम मोदी का पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ मजबूत रिश्ता रहा है। चुनाव से पहले दिवाली पर संदेश में डोनाल्ड ट्रंप ने पीएम मोदी को दोस्त बताया था। दोनों नेता पहले भी एक दूसरे की तारीफ करते रहे हैं। अब सवाल ये है कि ट्रंप का अमेरिका में राष्‍ट्रपति चुनाव जीतने का भारत के ‘दुश्मन’ देशों पर क्या असर होगा? डोनाल्ड ट्रंप और पीएम मोदी आपस में बहुत अच्छे दोस्त हैं। दोनों विश्व नेताओं की जुगलबंदी जगजाहिर है। ट्रंप के पहले कार्यकाल में भी भारत-अमेरिका के रिश्ते काफी मजबूत रहे हैं। इसमें और मजबूती आने की उम्मीद है। वहीं, ट्रंप की जीत भारत के साथ दुश्मनी वाला रवैया रखने वाले देशों के लिए बुरी खबर हो सकती है। इस लिस्ट में चीन से लेकर बांग्लादेश और कनाडा तक का नाम शामिल हो सकता है।यहां सावल ये भी है कि क्या ट्रंप, भारत के दुश्मनों से सख्ती से निपटेंगे या फिर डिप्लोमेटिक खेल खेलेंगे जैसा बाइडेन प्रशासन करता आ रहा था? *जानबूझ कर दुश्मनी निकाल रहे कनाडा का क्या होगा?* भारत के लिए इन दिनों कनाडा दुश्मन नंबर एक बनकर उभरा है। अमेरिका और कनाडा में खालिस्‍तानी गतिविधियां के बढ़ने से हाल के महीनों में भारत को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा है। कनाडा में भारतीय हिंदुओं की सुरक्षा भी खतरे में आ गई है। ट्रूडो ने पिछले साल कनाडा में आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के मामले में भारत पर बेबुनियाद आरोप लगाए। भारत सरकार ने जब ट्रूडो के एजेंडे को बेनकाब कर दिया तब जाकर उन्होंने यह बात स्वीकार की कि उन्होंने सारे आरोप बिना सबूत के लगाए थे। अब तक बाइडेन प्रशासन काफी हद तक इस मामले में ट्रूडो का साथ दे रहा था लेकिन डोनाल्ड ट्रंप ऐसे मामलों में कनाडा का साथ नहीं देने वाले। ट्रंप के प्रशासन में अमेरिका में भारतीय हिंदुओं को खालिस्तान से होने वाले खतरे और धमकी को नजरअंदाज नहीं किया जाएगा। कनाडा को सुरक्षा और खालिस्तान समर्थकों के मसले पर गंभीर और साफ संदेश भी जाएगा।। *नए नवेले दुश्मन का क्या हाल होगा?* भारत के साथ संबंधों को बिगाड़ने वाले देशों में एक नाम बांग्लादेश का भी है। जिसके साथ दशकों तक भारत के अच्छे संबंध रहे। जिसके साथ भारत ने पूरी शिद्दत से दोस्ती निभाई लेकिन इस साल अगस्त महीने में शेख हसीना सरकार के तख्तापलट होते ही बांग्लादेश के सुर बदल गए। बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ जमकर हिंसा की गई। अपने चुनावी अभियान के दौरान दिवाली के मौके पर धर्म विरोधी एजेंडे के तहत हिंदू अमेरिकन की रक्षा की बात करने वाले ट्रंप बांग्लादेश में हिंदू और दूसरे अल्पसंख्यक समुदाय पर हमले की भर्त्सना कर चुके हैं।बांग्लादेश की यूनुस सरकार को भी ट्रंप ने अपने निर्वाचन से पहले ही साफ संदेश दे दिया था। यही नहीं, हसीने के बाद बाद आए मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार ने भारत को आंख दिखाने की जुर्रत भी की। जान बचाकर भारत आईं पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को जब भारत ने शरण दी तो यूनुस सरकार के मंत्री धमकी भरे लहज़े में बात करने लगे। कहा जाता है कि बांग्लादेश यह सब कुछ अमेरिका की शह पर कर रहा था। बाइडेन और मोहम्मद यूनुस की मुलाकात की उस तस्वीर को याद करिए जब वह यूनुस से ऐसे मिल रहे थे मानो कोई पिता अपने बेटे की किसी उपलब्धि पर उसे दुलार रहा हो। *चीन की बढ़ेगी मुश्किल* ट्रंप के आने से चीन की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। चीन के आक्रामक और विस्तारवादी रवैये के चलते दुनिया के ज्यादातर मुल्क चीन की आलोचना करते रहे हैं। ट्रंप जब पहली बार राष्ट्रपति बने थे तो उन्होंने चीन के खिलाफ काफी सख्त रुख अपनाया था। इस बार वह इससे एक कदम आगे बढ़ सकते हैं। ट्रंप ने अपनी चुनावी रैलियों में चीन के आयात पर टैरिफ बढ़ाने का वादा किया था। पूरी संभावना है कि वह जब व्हाइट हाउस में होंगे तो चीन के खिलाफ कई कड़े फैसले ले सकते हैं। व्यापार और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में दोनों देशों के बीच टकराव और प्रतिस्पर्धा बढ़ जाएगी, मुमकिन है कि दोनों के बीच एक बार फिर ट्रेड वॉर की शुरुआत हो। चीन की अर्थव्यवस्था इस वक्त काफी कमजोर दौर से गुजर रही है, ऐसे में ट्रंप का अमेरिका का राष्ट्रपति चुना जाना बीजिंग के लिए बड़ा झटका है। ट्रंप की जीत को लेकर ड्रैगन की निराशा उसके बयान में भी झलकती दिखी, चीन की ओर से कहा गया कि वह अमेरिका के साथ परस्पर सम्मान के आधार पर काम करता रहेगा। चीन के बयान में कोई जोश नहीं दिखा जैसा भारतीय प्रधानमंत्री के बधाई संदेश में था। उन्होंने ट्रंप को अपना दोस्त बताते हुए बधाई दी। *पाकिस्तान को पहले ही मिल चुका है सबक* भारत में पाकिस्तान से सीमा पार आतंकवाद के लिए ट्रंप एक सीधा और साफ संदेश है। अपने पहले कार्यकाल में ट्रंप पाकिस्तान को प्रायोजित आतंकवाद के लिए लताड़ चुके हैं और यही नहीं ट्रंप ने पाकिस्तान को अमेरिका से मिलने वाली आर्थिक सहायता भी रोक दी थी। पाकिस्तान इस वक्त आर्थिक बदहाली के दौर से गुजर रहा है, ऐसे में आतंकवाद समेत किसी मसले पर पाकिस्तान से ट्रंप की नाराजगी उसे न सिर्फ अमेरिका से मिलने वाली मदद बल्कि अलग-अलग संगठनों से मिलने वाली आर्थिक सहायता पर भी तेज आंच डाल सकती है।
ट्रंप की जीत से कनाडा की बढ़ी बेचैनी, जाने किस बात को लेकर खौफ में हैं ट्रूडो?

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डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं। अमेरिका के पिछले एक सौ साल के इतिहास में वो पहले राष्ट्रपति हैं जो एक बार चुनाव हारने के बाद व्हाइट हाउस में वापसी कर रहे हैं। ट्रंप अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति रह चुके हैं। ट्रंप की व्हाइट हाउस में वापसी के साथ ही अमेरिकी विदेश नीति में बदलाव देखने को मिल सकता है। खासकर डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद कनाडा में चिंता और घबराहट का माहौल है। डोनाल्ड ट्रंप की जीत कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के लिए मुश्किल खड़ी कर सकती है। दरअसल, जस्टिन ट्रूडो ने रिपब्लिकन नेता ने कभी 'दूर-वामपंथी पागल' करार दिया था।

विश्लेषकों और अर्थशास्त्रियों का कहना है कि वॉइट हाउस में ट्रंप की वापसी से व्यापार विवाद बढ़ सकते हैं, जो कनाडा के लिए मंदी की वजह बन सकते हैं। कनाडा का 75 फीसदी निर्यात अमेरिका को जाता है। कनाडा में एक साल के भीतर चुनाव होने वाले हैं और अधिकांश सर्वेक्षणों में जस्टिन ट्रूडो की हार की भविष्यवाणी की गई है। ऐसे में आइए कनाडा पर ट्रंप की जीत के मायने समझते हैं।

कनाडा दुनिया का चौथे नंबर का कच्चा तेल उत्पादक है। वहीं, ट्रंप की योजना सभी आयातों पर 10 प्रतिशत टैरिफ लगाने और अमेरिकी ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देने की है, जो कनाडा के लिए खास तौर पर बुरा संकेत है।कनाडा का 75% निर्यात अमेरिका को जाता है, और ऐसे में यह टैरिफ कनाडा की अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव डाल सकता है। कनाडाई चैंबर ऑफ कॉमर्स के अनुसार, ट्रंप की टैरिफ नीति से कनाडा की आय में सालाना 0.9% और श्रम उत्पादकता में लगभग 1% की कमी आएगी। यदि व्यापारिक तनाव बढ़ता है, तो इसका असर कनाडा की आर्थिक वृद्धि पर और गंभीर हो सकता है।

वहीं, ट्रंप और ट्रूडो के बीच का संबंध भी हमेशा से तनावपूर्ण रहा हैं। 2018 में क्यूबेक में जी-7 शिखर सम्मेलन में ट्रंप ने ट्रूडो को "बेईमान और कमजोर" कहकर आलोचना की थी। इसके बाद 2022 में, कोविड-19 वैक्सीनेशन को लेकर भी ट्रंप ने ट्रूडो को पागल कहा था। ट्रंप की इन टिप्पणियों के कारण दोनों नेताओं के बीच सार्वजनिक मंच पर तनाव देखा गया है।

हालांकि, ट्रूडो ने ट्रंप को जीत की बधाई देते हुए कहा कि दोनों देशों के बीच दोस्ती "दुनिया की ईर्ष्या" का कारण है और वे मिलकर काम करेंगे।ट्रूडो ने एक्स पर कहा, 'मुझे पता है कि राष्ट्रपति ट्रम्प और मैं अपने दोनों देशों के लिए अधिक अवसर, समृद्धि और सुरक्षा बनाने के लिए मिलकर काम करेंगे।'

डोनाल्ड ट्रंप की व्हाइट हाउस में वापसी :जानिए कौन से नेताओं की हुई इससे जीत और किन्हें करना होगा मुश्किलों का सामना
reactionson trumpswin someleaders arehappy whileothers fearloss डोनाल्ड ट्रंप ने चार साल की अनुपस्थिति के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति पद पर फिर से कब्ज़ा कर लिया है, जो अमेरिकी हितों को प्राथमिकता देने और अन्य देशों की ताकत और संरेखण के आधार पर गठबंधनों का आकलन करने के उनके दृष्टिकोण की वापसी का संकेत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सऊदी अरब के मोहम्मद बिन सलमान जैसे नेताओं से सहज वार्ता की उम्मीद कर सकते हैं, जबकि इज़राइल के बेंजामिन नेतन्याहू डोनाल्ड ट्रंप में एक सहायक, परिचित सहयोगी का स्वागत करने की उम्मीद कर रहे हैं।हालांकि, यूक्रेन के वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की को चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि डोनाल्ड ट्रंप उन देशों को प्राथमिकता देते हैं जो अमेरिकी नीतियों के साथ संरेखित होते हैं या ताकत दिखाते हैं। दुनिया के नेताओं में से जिन्हें ट्रंप की दुनिया में दोस्त या दुश्मन के रूप में देखा जाएगा, भारत और कई अन्य देशों को व्हाइट हाउस में उनकी वापसी के साथ विजेता के रूप में देखा जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी: ट्रंप की वापसी को प्रधानमंत्री मोदी के लिए एक सकारात्मक विकास के रूप में देखा जा रहा है, जिन्होंने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ मजबूत संबंधों का आनंद लिया है। दोनों नेताओं ने सार्वजनिक रूप से एक-दूसरे की प्रशंसा की है और पिछले कुछ वर्षों में व्यक्तिगत संबंध बनाए हैं। कार्यालय में वापसी के साथ, मोदी को एक अनुकूल स्थिति का लाभ मिलना जारी रहने की संभावना है, क्योंकि मजबूत द्विपक्षीय संबंधों पर ध्यान ट्रम्प की नीतियों के अनुरूप होगा। इसके अलावा, ट्रम्प प्रशासन असंतुष्टों की कथित हत्याओं के लिए भारत की सरकार को जिम्मेदार ठहराने के कनाडा के प्रयास का समर्थन नहीं कर सकता है, ब्लूमबर्ग ने रिपोर्ट किया। सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान: राज्य के वास्तविक शासक, अमेरिका के साथ लंबे समय से प्रतीक्षित सुरक्षा समझौते के प्रयासों को पुनर्जीवित करने का अवसर देखेंगे। ट्रम्प, जिन्होंने अब्राहम समझौते में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिसने इज़राइल और कई अरब देशों के बीच राजनयिक संबंध स्थापित किए, से सऊदी अरब को शामिल करने के लिए इस ढांचे का विस्तार करने पर ध्यान केंद्रित करने की उम्मीद है। यदि ट्रम्प इजरायल और सऊदी अरब के बीच शांति समझौता कराने में सफल हो जाते हैं, तो इससे अमेरिका के लिए सऊदी अरब को अपना सुरक्षा समर्थन बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू: उनके निवर्तमान राष्ट्रपति जो बिडेन के साथ तनावपूर्ण संबंध रहे हैं, लेकिन उम्मीद है कि वे व्हाइट हाउस में एक लंबे समय के सहयोगी के आगमन का स्वागत करेंगे। डोनाल्ड ट्रम्प इजरायल के लिए अमेरिकी समर्थन को मजबूत करने की संभावना रखते हैं, बिडेन के विपरीत, आने वाले अमेरिकी नेता से उम्मीद की जाती है कि वे ईरानी प्रॉक्सी के खिलाफ लड़ाई को आगे बढ़ाने और एक बड़े क्षेत्रीय संघर्ष को भड़काने के जोखिमों के बावजूद, एक फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना का विरोध करने के नेतन्याहू के रुख के प्रति अधिक सहानुभूति रखेंगे। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन: वे डोनाल्ड ट्रम्प की वापसी को पश्चिम में विभाजन का लाभ उठाने और यूक्रेन में और अधिक लाभ प्राप्त करने के अवसर के रूप में देखते हैं। आने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति से उम्मीद की जा रही है कि वे नाटो सहयोगियों की एकता को कमजोर करेंगे और अपनी 'अमेरिका फर्स्ट' नीति के साथ यूक्रेन के लिए सहायता के भविष्य को संदेह में डाल देंगे। हालांकि, उनकी अप्रत्याशितता ने क्रेमलिन में चिंताएं बढ़ा दी हैं कि ट्रम्प, अल्पावधि में, पुतिन पर समझौता करने के लिए संघर्ष को बढ़ा सकते हैं, जिसके संभावित विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं, जिसमें परमाणु टकराव भी शामिल है। इटली की प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी: उन्होंने खुद को एक प्रो-अटलांटिक नेता के रूप में मजबूती से स्थापित किया है, फिर भी वे एक कट्टर दक्षिणपंथी राजनीतिज्ञ बनी हुई हैं। जबकि उन्होंने अमेरिकी चुनाव जीतने वाले किसी भी उम्मीदवार के साथ सहयोग करने का वादा किया था, एलन मस्क के साथ उनके घनिष्ठ संबंधों से उन्हें नए अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ प्रभाव देने की उम्मीद है।मेलोनी के पूर्व मुख्य कूटनीतिक सलाहकार फ्रांसेस्को टैलो ने कहा, "अगर ट्रंप व्हाइट हाउस में वापस आते हैं, तो नाटो टूटेगा नहीं, लेकिन यह और भी चुनौतीपूर्ण हो जाएगा।   तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन: तुर्की ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद संबंधों में सुधार की उम्मीद कर सकता है। एर्दोगन और ट्रंप ने दोस्ताना संबंध बनाए रखे हैं, अक्सर फोन पर संवाद करते हैं, यहां तक कि एर्दोगन उन्हें "मेरा दोस्त" भी कहते हैं। बिडेन प्रशासन के विपरीत, ट्रंप की वापसी एर्दोगन को वाशिंगटन तक अधिक सीधी पहुंच प्रदान कर सकती है। इसके अतिरिक्त, चीन के साथ संबंधों को मजबूत करने के लिए तुर्की के हालिया कदम अमेरिका के साथ अपने संबंधों को संतुलित करने में चुनौतियां पेश कर सकते हैं। उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन: ट्रम्प के पहले कार्यकाल के दौरान, किम और ट्रम्प के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध विकसित हुए, जो पत्रों और दो शिखर बैठकों द्वारा चिह्नित थे, हालांकि उत्तर कोरिया के परमाणु मिसाइल कार्यक्रम को रोकने के लिए कोई समझौता नहीं किया गया था। तब से, किम ने बातचीत के अमेरिकी प्रयासों को खारिज कर दिया है और इसके बजाय पुतिन के साथ संबंधों को मजबूत किया है, जबकि उत्तर कोरिया के हथियारों के शस्त्रागार का विस्तार किया है। ट्रम्प के पहले कार्यकाल के दौरान, अमेरिका ने सद्भावना के संकेत के रूप में दक्षिण कोरिया के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास कम कर दिया था। हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओर्बन: पांच बार के राष्ट्रवादी नेता, ओर्बन ट्रम्प के सबसे कट्टर यूरोपीय सहयोगियों में से एक रहे हैं, उन्होंने ट्रम्प की प्रशंसा तब भी की, जब अमेरिका में चल रहे आपराधिक मामलों के कारण उनकी सत्ता में वापसी अनिश्चित लग रही थी। अब, ओर्बन खुद को यूरोप में ट्रम्प के प्रतिनिधि के रूप में स्थापित कर रहे हैं, उन्हें उम्मीद है कि आने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ उनके मजबूत व्यक्तिगत संबंध यूरोपीय संघ के भीतर उनकी स्थिति को बेहतर बनाएंगे। ओर्बन को उनकी निरंकुश प्रवृत्तियों और रूस समर्थक रुख के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा है।  अर्जेंटीना के राष्ट्रपति जेवियर माइली: राष्ट्रपति ने ट्रम्प की जीत पर एक बड़ा दांव खेला और सफल हुए। फरवरी में अपनी पहली मुलाकात के दौरान, माइली ने ट्रम्प की प्रशंसा "एक बहुत महान राष्ट्रपति" के रूप में की और उनके फिर से चुने जाने की उम्मीद जताई। अब माइली अर्जेंटीना को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में बेहतर सौदा हासिल करने में मदद करने के लिए ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल की उम्मीद कर रहे हैं, खासकर जब देश अपने मौजूदा $44 बिलियन के कार्यक्रम को बदलना चाहता है। अर्जेंटीना के नेता एलन मस्क के साथ भी अपने संबंधों को मजबूत कर रहे हैं, इस साल कई बार उनसे मुलाकात की है, क्योंकि अरबपति अर्जेंटीना में निवेश के अवसरों की तलाश कर रहे हैं। संभावित लोग जो ट्रंप की वापसी को नापसंद कर सकते है: यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की: हालांकि ज़ेलेंस्की ट्रंप को बधाई देने वाले पहले विश्व नेताओं में से थे, लेकिन रिपब्लिकन की जीत को लेकर कीव में चिंता बढ़ रही है। यूक्रेन को डर है कि ट्रंप रूस के साथ शांति वार्ता में भूमि रियायतों पर जोर दे सकते हैं और वित्तीय और सैन्य सहायता कम कर सकते हैं।
अमेरिकी नेतृत्व में यह बदलाव तब आया है जब रूस अपने द्वारा कब्जा किए गए चार क्षेत्रों में अधिक यूक्रेनी क्षेत्र हासिल करने के अपने अभियान में आगे बढ़ रहा है। जबकि बिडेन यूक्रेन की नाटो आकांक्षाओं का समर्थन करने और रूसी क्षेत्र में हमलों को सीमित करने में सतर्क रहे थे, ट्रम्प का "24 घंटे" में युद्ध समाप्त करने का वादा संकट को जल्दी से हल करने की उनकी प्राथमिकता को दर्शाता है। ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन: ईरान ने अब तक ट्रंप की वापसी के प्रभाव को कम करके आंका है, लेकिन उनके राष्ट्रपति पद ने अपने परमाणु कार्यक्रम पर कूटनीति के द्वार बंद कर दिए हैं, जिससे तेहरान को उम्मीद थी कि प्रतिबंधों से त्रस्त उसकी अर्थव्यवस्था को राहत मिल सकती है। इजरायल के प्रबल समर्थक ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान ईरान के प्रति "अधिकतम दबाव" की नीति लागू की। वह पहले लगाए गए अमेरिकी प्रतिबंधों को और कड़ा करके ईरान को और अलग-थलग कर सकते हैं। हालांकि, ट्रंप को एक बदले हुए क्षेत्र का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि ईरान ने हाल ही में सऊदी अरब और यूएई के साथ संबंधों को मजबूत किया है, दोनों ने "अधिकतम दबाव" दृष्टिकोण का समर्थन किया था। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग: ट्रंप की जीत शी के लिए मुश्किल समय में हुई है। चीनी वस्तुओं पर 60 प्रतिशत कंबल टैरिफ का खतरा अमेरिका के साथ व्यापार को तबाह कर सकता है, जिससे चीन की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंच सकता है। यह अनिश्चितता को बढ़ाता है क्योंकि शी की सरकार विकास और आत्मविश्वास को बढ़ावा देने के लिए एक प्रमुख प्रोत्साहन पेश करती है। हालांकि, कुछ सकारात्मक चीजें भी हैं। एलोन मस्क, जिनके चीन के साथ मजबूत व्यापारिक संबंध हैं, कहा जाता है कि ट्रंप का ध्यान उनकी ओर है। इसके अलावा, ट्रंप ने ताइवान की रक्षा के लिए अमेरिका की प्रतिबद्धता पर सवाल उठाए हैं, जो चीन के हितों के साथ संरेखित हो सकता है।  जापान के प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा: ट्रंप की जीत ने जापान के नेता पर नया दबाव डाला है, खासकर तब जब सत्तारूढ़ गठबंधन ने हाल ही में हुए चुनाव में अपना बहुमत खो दिया है। ट्रंप ने अक्सर अमेरिका के साथ जापान के व्यापार अधिशेष की आलोचना की है और जापान से लगभग 55,000 सैनिकों की अमेरिकी सैन्य उपस्थिति के लिए अधिक भुगतान करने का आग्रह किया है। जापान ने पहले ऐसी मांगों का विरोध किया था, लेकिन मौजूदा समझौता 2026 में समाप्त होने वाला है। इसके अतिरिक्त, जापान को चीन को चिप बनाने वाले उपकरणों के निर्यात को लेकर दबाव का सामना करना पड़ सकता है, जिसे अमेरिका सीमित करना चाहता है। मेक्सिको की राष्ट्रपति क्लाउडिया शिनबाम: मेक्सिको यह जानने के लिए उत्सुक है कि ट्रम्प अपनी टैरिफ योजना को कैसे लागू करेंगे, जो कि उत्तरी पड़ोसी देशों को निर्यात बढ़ाने के उसके लक्ष्य में बाधा बन सकती है, चिंता का एक और स्रोत उत्तरी अमेरिकी देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौते की 2026 में होने वाली संभावित समीक्षा है। आव्रजन भी एक गर्म मुद्दा है, ट्रम्प ने मेक्सिको पर वित्तीय दबाव डालने की धमकी दी है, जबकि चुनाव से पहले सीमा पर होने वाले प्रवास को कम करने में अमेरिका की मदद करने वाली इसकी कार्रवाई ने मेक्सिको को मदद की थी। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टारमर: अमेरिका के पारंपरिक पश्चिमी सहयोगियों में से कुछ ही लेबर नेता की तुलना में ट्रम्प के साथ अधिक कठिन स्थिति से शुरुआत कर रहे हैं। स्टारमर ने 6 जनवरी, 2021 को यूएस कैपिटल पर हमले को "लोकतंत्र पर सीधा हमला" कहा और उनके विदेश सचिव डेविड लैमी ने 2017 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति को "महिला-घृणा करने वाला, नव-नाजी-सहानुभूति रखने वाला समाजोपथ" कहा। हाल ही में, अरबपति उद्योगपति मस्क के साथ उनका सार्वजनिक झगड़ा हुआ, जब उन्होंने ट्विटर पर कहा कि यूके में दक्षिणपंथी दंगे गृह युद्ध की ओर ले जाएंगे। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों: उन्हें पहले से ही ट्रम्प के साथ काम करने का अनुभव है, जो उन्हें अपने यूरोपीय साथियों की तुलना में मूल्यवान अनुभव देता है। दरअसल, ट्रम्प के पहले कार्यकाल के दौरान दोनों नेताओं ने एक दिखावटी गठबंधन पेश किया था, जिसमें एफिल टॉवर के ऊपर डिनर भी शामिल था। मैक्रों ने एक्स पर पोस्ट किया, "हम चार साल तक साथ काम करने के लिए तैयार हैं।"ऑप्टिक्स और अधिक यूरोपीय उत्तोलन की संभावना के बावजूद, फ्रांस के लिए आर्थिक रूप से बहुत कम लाभ होने वाला है और यदि व्यापार तनाव फिर से भड़कता है तो संभावित रूप से बहुत कुछ खो सकता है। यदि ट्रम्प Google जैसी बड़ी तकनीकी फर्मों पर कर लगाने को लेकर फ्रांस के साथ लड़ाई को फिर से शुरू करते हैं तो यह जल्दी ही हो सकता है। ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज़ इनासियो लूला दा सिल्वा: ब्राजील में ट्रम्प के सहयोगी पूर्व राष्ट्रपति जेयर बोल्सोनारो हैं, जो लूला के मुख्य राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी हैं। लूला को चिंता है कि ट्रम्प की वापसी बोल्सोनारो के नेतृत्व वाले रूढ़िवादी राजनीतिक आंदोलन को बढ़ावा दे सकती है, जिनके समर्थकों ने पिछले साल उनके उद्घाटन के ठीक एक सप्ताह बाद उनकी सरकार के खिलाफ विद्रोह का प्रयास किया था। अमेरिकी चुनाव की पूर्व संध्या पर, लूला ने कहा कि वह हैरिस की जीत के लिए प्रार्थना कर रहे हैं, उन्होंने कहा कि ट्रम्प ने 2021 में फिर से चुनाव हारने के बाद कैपिटल पर लोकतंत्र विरोधी दंगों को बढ़ावा दिया था।  जर्मनी के चांसलर ओलाफ स्कोल्ज़: एंजेला मर्केल के प्रति ट्रम्प की घृणा ने अमेरिका-जर्मनी संबंधों पर भारी दबाव डाला और स्कोल्ज़ उनके वित्त मंत्री और उत्तराधिकारी थे, इसलिए उनके लिए उस संबंध को खत्म करना मुश्किल होगा। जर्मनी अपनी कारों और व्यापार अधिशेष के साथ ट्रम्प के दशकों पुराने जुनून का शिकार रहा है और एक बार फिर खुद को निशाने पर पाएगा। जर्मनी का ऑटोमोटिव क्षेत्र यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ा उद्योग है और ट्रम्प द्वारा लगाए जाने वाले भारी अमेरिकी आयात शुल्कों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। 
पूरी दुनिया पीएम मोदी से प्यार करती है”, जीत के बाद बोले ट्रंप

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अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर सत्ता में वापसी करने वाले हैं। ट्रंप ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में एक ऐतिहासिक जीत हासिल की है। विदेशी राजनेताओं की बात करें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ट्रंप की शानदार और धमाकेदार जीत पर उन्हें सबसे पहले बधाई दी। अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप के जीतने के बाद पीएम मोदी ने उनसे फोन पर बात की।बातचीत को लेकर पीएम मोदी ने भी एक्स पर पोस्ट किया।

पीएम मोदी ने एक्स पर कहा कि ‘अपने मित्र, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ शानदार बातचीत हुई और उन्हें उनकी शानदार जीत पर बधाई दी। प्रौद्योगिकी, रक्षा, ऊर्जा, अंतरिक्ष और कई अन्य क्षेत्रों में भारत-अमेरिका संबंधों को और मजबूत करने के लिए एक बार फिर मिलकर काम करने की उम्मीद है।’

ट्रंप ने की पीएम मोदी की तारीफ

एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक ट्रंप ने पीएम मोदी की इस पहल का गर्मजोशी से जवाब दिया। उन्होंने भारत को शानदार देश और पीएम मोदी को शानदार व्यक्ति बताया। ट्रंप ने इस बात का भी जिक्र किया कि मोदी दुनिया के उन पहले नेताओं में से थे, जिन्होंने उनके जीत हासिल करने के बाद बात की। पीएम मोदी की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा, 'पूरी दुनिया पीएम मोदी से प्यार करती है।' उन्होंने भारत को एक मूल्यवान सहयोगी बताया।

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा दुनिया के तमाम राष्ट्राध्यक्षों ने अमेरिका के नए राष्ट्रपति को चुनावी जीत पर शुभकामना संदेश भेजा है। जो लोग ट्रंप की विचारधारा को पसंद नहीं करते, उन्होंने भी औपचारिकता में बधाई संदेश भेजा है। जो बाइडेन ने ट्रंप को फोन करके बधाई दी और उन्हें व्हाइट हाउस आने का न्योता दिया। हालांकि रूस ने अब तक ट्रंप को बधी नहीं दी है, साथ ही अमेरिका को अमित्र देश बताया है।

पुतिन ने अब तक ट्रंप को क्यों नहीं दी जीत की बधाई, अमेरिका-रूस के रिश्तों पर आया बड़ा बयान

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अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों में इतिहास रचने वाले डोनाल्ड ट्रंप को दुनिया भर के नेताओं ने बधाई दी है। लेकिन रूस के राष्ट्रपति पुतिन की ओर से कोई रिएक्शन नहीं आया है।दुनिया के प्रमुख राष्ट्राध्यक्षों की ओर से ट्रंप को बधाई दिए जाने के बीच पुतिन का ये कदम चर्चा का विषय बना हुआ है। इस बीच रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन का एक चौंकाने वाला बयान सामने आया है। रूस की ओर से अमेरिका को अमित्र देश बताया गया है।

दरअसल, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने साफ किया कि वो फिलहाल अभी डोनाल्ड ट्रंप को बधाई देने नहीं जा रहे हैं। क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने बुधवार को कहा कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन डोनाल्ड ट्रंप को बधाई देने की योजना नहीं बना रहे हैं। दिमित्री ने कहा कि हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हम एक ऐसे अमित्र देश के बारे में बात कर रहे हैं जो हमारे देश के खिलाफ युद्ध में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से शामिल है।यूक्रेन में चल रहे युद्ध का जिक्र करते हुए पेसकोव ने कहा कि ‘अमेरिका इस संघर्ष को बढ़ावा देता है और इसमें हिस्सा लेता है। अमेरिका इस विदेश नीति को बदलने में सक्षम है. यह किया जाएगा या नहीं और यह कैसे किया जाएगाष

बता दें कि मास्को ने दर्जनों देशों को ‘अमित्र’ के रूप में नामित किया है, जो रूस के हितों के लिए शत्रुतापूर्ण माने जाते हैं। इसमें आर्थिक प्रतिबंध लगाना और यूक्रेन का समर्थन करना शामिल है, क्योंकि वह रूस के के खिलाफ खुद में शामिल है।

रूस को अमेरिका के रुख का इंतजार

रूस ने बुधवार को कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ संबंध ऐतिहासिक रूप से निचले स्तर पर हैं, लेकिन क्रेमलिन का दरवाजा बातचीत के लिए खुला है। अभी रूस को इस बात का इंतजार है कि जब जनवरी में डोनाल्ड ट्रम्प व्हाइट हाउस लौटते हैं तो क्या होता है।

जेलेंस्की ने ट्रंप को दी जीत की बधाई

वहीं, दूसरी तरफ यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने ट्रंप को चुनावी जीत के लिए बधाई दी है। जेलेंस्की ने दुनिया के मामलों में ताकत के जरिये से शांति के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के लिए उनकी सराहना की। अपने चुनाव अभियान के दौरान, ट्रंप ने यूक्रेन में युद्ध से निपटने के अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के तरीके की आलोचना की। ट्रंप ने दावा किया कि अगर वह अभी भी पद पर होते, तो रूस कभी भी पूरे पैमाने पर हमला शुरू नहीं करता। पुतिन और जेलेंस्की दोनों के साथ अपने अच्छे संबंध का दावा करते हुए, ट्रम्प ने दूसरे कार्यकाल के लिए चुने जाने पर पदभार ग्रहण करने से पहले यूक्रेन में युद्ध को खत्म करने का वादा किया है।

ऐसे चरित्र का आदमी जो...ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से मणिशंकर अय्यर हैं दुखी

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अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की ऐतिहासिक जीत दर्ज की है। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत से सीनियर कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर बड़े दुखी हैं। कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की ऐतिहासिक जीत पर विवादित बयान दिया है।अय्यर ने ट्रंप को 'संदिग्ध चरित्र वाला व्यक्ति' बताया।अय्यर ने कहा कि मुझे बेहद दुख हो रहा है कि ट्रंप जैसे संदिग्ध चरित्र वाले व्यक्ति को दुनिया के सबसे शक्तिशाली लोकतंत्र का राष्ट्रपति चुन लिया गया है। उन्हें राष्ट्रपति नहीं चुना जाना चाहिए था।

न्यूज एजेंसी एएनाई से बात करते हुए मणिशंकर अय्यर ने कहा, (अमेरिकी चुनाव से) नैतिक आयाम गायब था। यह बहुत दुखद है कि इतने शक्तिशाली देश का नेतृत्व ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाएगा, जिसे 34 अलग-अलग मामलों में अपराधी के रूप में दोषी ठहराया गया है। ऐसे चरित्र के आदमी को, जिसका इतिहास रहा है कि वह वेश्याओं के साथ संबंध बनाता था और उनको मुंह बंद करने के लिए पैसे देता था, ऐसे जलील आदमी को लोगों ने राष्ट्रपति चुना है। मुझे नहीं लगता कि इस तरह के चरित्र का व्यक्ति अपने देश या दुनिया के लिए अच्छा है।

ट्रंप और पीएम मोदी के संबंधों पर उठाया सवाल

कांग्रेस नेता ने ट्रंप के साथ पीएम मोदी के संबंधों पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि मैं यह भी मानता हूं कि पीएम मोदी और ट्रंप के बीच व्यक्तिगत स्तर पर एक विशेष तालमेल है, जो मुझे लगता है कि पीएम मोदी और उनकी व्यक्तिगत प्राथमिकताओं पर बुरा असर डालता है।

कमला हैरिस के लिए जताया दुख

अय्यर ने कमला हैरिस की हार पर भी दुख व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि कमला हैरिस, जो जीत जातीं, राष्ट्रपति बनने वाली भारत की पहली महिला और पहली राजनेता होतीं। यह एक ऐतिहासिक और सकारात्मक कदम होता। अय्यर ने कहा, जहां तक कमला हैरिस का सवाल है, उन्हें बहुत कम समय दिया गया था। वह पीछे से आगे आईं। वह बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रही थीं। लेकिन ऐसा लगता है कि अमेरिकी समाज में बहुत गहरी खामियां आखिरकार उनके खिलाफ हो गईं और वह इस दौड़ में हार गईं।

डोनाल्ड ट्रंप की ऐतिहासिक जीत, 132 साल बाद रचा गया इतिहास, कई और रिकॉर्ड किए अपने नाम*
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अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप ने जीत दर्ज की है। रिपब्लिकन उम्मीदवार जोनाल्ड ट्रंप का राष्ट्रपति चुना जाना अमेरिकी इतिहास में सबसे अविश्वसनीय राजनीतिक वापसी में से एक है। डोनाल्ड ट्रंप सभी स्विंग राज्यों में जीत हासिल करते हुए दूसरे कार्यकाल के लिए व्हाइट हाउस में लौटने के लिए तैयार हैं। डोनाल्ड ट्रंप इस जीत के साथ कई ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल करेंगे। ट्रंप 2016 में चुनाव जीते थे और 2020 में हार के बाद अब 2024 जीते हैं। ऐसा 132 साल बाद हुआ जब अमेरिका में कोई व्यक्ति दूसरी बार प्रेसीडेंट बना है लेकिन उसने चुनाव लगातार नहीं जीता है। ग्रोवर क्लीवलैंड के बाद ट्रम्प गैर-लगातार कार्यकाल तक सेवा देने वाले दूसरे राष्ट्रपति होंगे, यह उपलब्धि आखिरी बार 132 साल पहले हासिल की गई थी। ग्रोवर क्लीवलैंड अमेरिका के 22वें और 24वें राष्ट्रपति थे, उन्होंने 1885 से 1889 और 1893 से 1897 तक सेवा दी। अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में ट्रंप का पहला कार्यकाल 2016 और 2020 के बीच था। हालांकि, वे 2020 की चुनावी दौड़ में जो बाइडेन से हारने के बाद लगातार दूसरा कार्यकाल जीतने में असफल रहे। *राष्ट्रपति चुने जाने वाले सबसे उम्रदराज व्यक्ति* 78 वर्ष की उम्र में, वह राष्ट्रपति चुने जाने वाले अमेरिकी इतिहास के सबसे उम्रदराज व्यक्ति होंगे। जो बिडेन, जो 20 नवंबर को 82 वर्ष के हो जाएंगे, सबसे उम्रदराज़ मौजूदा राष्ट्रपति हैं। *दो बार महाभियोग का सामना करने वाले राष्ट्रपति* ट्रंप अमेरिकी इतिहास में अपने कार्यकाल के दौरान दो बार महाभियोग की कार्यवाही का सामना करने वाले एकमात्र राष्ट्रपति बन जाएंगे। हालाँकि, दोनों मामलों में सीनेट द्वारा उन्हें सभी मामलों से बरी कर दिया गया था। पहला महाभियोग 2019 में इन आरोपों पर चला था कि ट्रम्प ने अपने पुन: चुनाव की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए गुप्त रूप से यूक्रेन से मदद मांगी थी। यह आरोप लगाया गया था कि ट्रम्प ने अपने यूक्रेनी समकक्ष ज़ेलेंस्की से 2020 के राष्ट्रपति चुनाव में उनके खिलाफ चुनाव लड़ने वाले अग्रणी उम्मीदवारों में से एक की जांच करने का आग्रह किया था। यह बताया गया कि ट्रम्प ने यूक्रेन को दी जाने वाली 400 मिलियन डॉलर की सैन्य सहायता रोक दी थी, जो रूस के साथ युद्ध में शामिल है। यूएस कैपिटल पर 6 जनवरी के हमले को कथित रूप से उकसाने के लिए ट्रम्प पर उनके कार्यकाल की समाप्ति से एक सप्ताह पहले 13 जनवरी, 2021 को दूसरी बार महाभियोग लगाया गया था। *पद पर आसीन होने वाले पहले दोषी अपराधी* डोनाल्ड ट्रंप कानूनी अभियोग का सामना करते हुए पद संभालने वाले पहले अमेरिकी राष्ट्रपति भी होंगे। ट्रंप को इस साल की शुरुआत में 34 गुंडागर्दी के मामलों में दोषी ठहराया गया था। ट्रंप को मई में न्यूयॉर्क में दोषी ठहराया गया था, लेकिन अभी तक सजा नहीं सुनाई गई है और 26 नवंबर को सुनवाई होनी है। ट्रंप पर 2016 के राष्ट्रपति चुनाव से पहले पोर्न फिल्म स्टार स्टॉर्मी डेनियल्स को गुप्त धन भुगतान से जुड़े व्यावसायिक रिकॉर्ड में हेराफेरी करने का आरोप लगाया गया है। हालाँकि, ट्रंप ने आरोपों से इनकार किया है और खुद को दोषी नहीं बताया है।
राहुल गांधी ने अमेरिकी चुनाव 2024 में जीत के लिए डोनाल्ड ट्रंप को बधाई दी, कमला हैरिस को शुभकामनाएं दीं

कांग्रेस ने बुधवार को रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप को बधाई दी, जिन्होंने 2024 में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव जीता है।

लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने एक्स पर पोस्ट किया, "आपकी जीत पर बधाई, अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में आपके दूसरे कार्यकाल में सफलता की कामना करता हूं। को उनके भविष्य के प्रयासों के लिए शुभकामनाएं।"

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने एक्स पर पोस्ट किया, "भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की ओर से, हम राष्ट्रपति को उनकी चुनावी जीत के लिए बधाई और शुभकामनाएं देते हैं। भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका एक मजबूत व्यापक वैश्विक रणनीतिक साझेदारी साझा करते हैं, जो लंबे समय से साझा लोकतांत्रिक मूल्यों, संरेखित हितों और व्यापक लोगों से लोगों के संबंधों पर आधारित है।"

कांग्रेस प्रमुख ने कहा, "हम वैश्विक शांति और समृद्धि के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ मिलकर काम करने के लिए तत्पर हैं।" इससे पहले, कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा कि अमेरिकी चुनावों में ट्रंप की जीत भारत के लिए "बहुत आश्चर्य की बात नहीं होगी"। "ऐसा लगता है कि वह (डोनाल्ड ट्रंप) वापस आ रहे हैं। मुझे लगता है कि आधिकारिक घोषणा आसन्न है, सच्चाई यह है कि हमें राष्ट्रपति के रूप में श्री ट्रंप का चार साल का अनुभव पहले ही हो चुका है, इसलिए बहुत अधिक आश्चर्य नहीं होना चाहिए। हम जानते हैं कि वह बहुत ही लेन-देन करने वाले नेता हैं," पूर्व केंद्रीय मंत्री ने एएनआई को बताया। 

पीएम मोदी ने ट्रंप को बधाई दी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डोनाल्ड ट्रंप को उनकी चुनावी जीत पर बधाई देते हुए कहा, "मेरे मित्र को आपकी ऐतिहासिक चुनावी जीत पर हार्दिक बधाई। जैसा कि आप अपने पिछले कार्यकाल की सफलताओं को आगे बढ़ाते हैं, मैं भारत-अमेरिका व्यापक वैश्विक और रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत करने के लिए हमारे सहयोग को नवीनीकृत करने की आशा करता हूं। साथ मिलकर, हम अपने लोगों की बेहतरी के लिए और वैश्विक शांति, स्थिरता और समृद्धि को बढ़ावा देने के लिए काम करते हैं।" डोनाल्ड ट्रंप ने डेमोक्रेटिक उपराष्ट्रपति कमला हैरिस को हराकर व्हाइट हाउस की दौड़ जीती। विस्कॉन्सिन में जीत के साथ, ट्रम्प ने राष्ट्रपति पद हासिल करने के लिए आवश्यक 270 इलेक्टोरल वोट हासिल कर लिए।

ट्रम्प ने फ्लोरिडा में अपने समर्थकों की भीड़ से कहा, "हमने साथ मिलकर बहुत कुछ सहा है, और आज आप रिकॉर्ड संख्या में जीत दिलाने के लिए आए हैं।"

हैरिस के खिलाफ उनकी जीत, किसी प्रमुख पार्टी के टिकट पर नेतृत्व करने वाली पहली अश्वेत महिला हैं, यह दूसरी बार है जब उन्होंने आम चुनाव में किसी महिला प्रतिद्वंद्वी को हराया है।

ट्रंप की जीत के बाद एलन मस्क का ट्वीट, जानें ऐसा क्या लिखा जिसकी होने लगी चर्चा*
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अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप ने बड़ी जीत हासिल की है। पूर्व राष्ट्रपति ने डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार कमला हैरिस को बड़े अंतर से मात दी। इसी बीच डोनाल्ड ट्रंप के समर्थक उनकी जीत से पहले ही जश्न मनाने लगे थे। इसी कड़ी में अरबपति एलन मस्क ने भी ट्रंप जीत को लेकर ट्वीट करने शुरू कर दिए थे।एलन मस्क ने डोनाल्ड ट्रंप की जीत से खुश होते हुए सोशल मीडिया पर कई सारे पोस्ट किए। मस्क के ट्वीट इस समय सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहे हैं। एलन मस्क ने अपने एक ट्वीट में लिखा कि अमेरिका बिल्डर्स का देश है और जल्द ही आप एक नए निर्माण के लिए पूरी तरह से फ्री होंगे। एलन मस्क ने एक्स पर एक पोस्ट शेयर किया है। इसमें वे एक सिंक के साथ व्हाइट हाउस में दिखाई दे रहे हैं। पोस्ट को शेयर करते हुए उन्होंने, Let That Sink In लिखा है। यह एक मुहावरा है जिसका अर्थ है कि किसी स्टेटमेंट को समझना। एलन मस्क ने 2022 की अपनी फेमस सिंक वाली फोटो को एडिट करके शेयर किया है। 2022 में एलन मस्क ने ट्विटर को 44 बिलियन डॉलर में खरीदने के बाद एक्स हेडक्वार्टर में सिंक के साथ जाने का फैसला किया था, जिसे तब ट्विटर के नाम से जाना जाता था। अब उनकी इस फोटो को एडिट करके इसमें एक्स हेडक्वार्टर की जगह पर व्हाइट हाउस लगाया गया है। ये फोटो एक बार फिर से वायरल हो गई है। अपने मूल पोस्ट की तरह ही, मस्क ने इस एडिटड तस्वीर को उसी कैप्शन के साथ साझा किया, ‘लेट द सिंक इन’। वहीं, एक और पोस्ट में मस्क ने एक्स पर "गेम, सेट और मैच" लिखा, जिसका इस्तेमाल आमतौर पर टेनिस मैच में किसी खिलाड़ी की जीत को दर्शाने के लिए प्रयोग किया जाता है। इस संकेत से मस्क ने ट्रंप की जीत की ओर इशारा किया। इससे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप ने जीत दर्ज करने के बाद बुधवार को अपना पहला धन्यवाद भाषण दिया। राष्ट्रपति चुनाव में जीत के बाद अपने संबोधन के दौरान डोनाल्ड ट्रंप ने अपने चुनाव अभियान का प्रमुख हिस्सा रहे एलन मस्क की जमकर तारीफ की है। ट्रंप ने एलन मस्क को रिपब्लिक पार्टी का 'नया सितारा' बताया। उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने स्पेसएक्स रॉकेट का वीडियो देखते हुए अरबपति को 40 मिनट तक होल्ड पर रखा। ट्रंप ने मस्क को एक शानदार व्यक्ति कहा।
अमेरिका में ट्रंप की वापसी, क्या बढ़ेगी भारत के “दुश्मनों” की दुश्वारियां?

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डोनाल्ड ट्रंप अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव जीत चुके हैं, वह अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति होंगे। चार साल बाद वॉइट हाउस में डोनाल्ड ट्रंप की वापसी कई मायनों में खास है। ट्रंप की वापसी से दुनियाभर में खलबली मची हुई है।डोनाल्ड ट्रंप की वापसी को प्रधानमंत्री मोदी के लिए सकारात्मक घटनाक्रम के तौर पर देखा जा रहा है। पीएम मोदी का पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ मजबूत रिश्ता रहा है। चुनाव से पहले दिवाली पर संदेश में डोनाल्ड ट्रंप ने पीएम मोदी को दोस्त बताया था। दोनों नेता पहले भी एक दूसरे की तारीफ करते रहे हैं। अब सवाल ये है कि ट्रंप का अमेरिका में राष्‍ट्रपति चुनाव जीतने का भारत के ‘दुश्मन’ देशों पर क्या असर होगा?

डोनाल्ड ट्रंप और पीएम मोदी आपस में बहुत अच्छे दोस्त हैं। दोनों विश्व नेताओं की जुगलबंदी जगजाहिर है। ट्रंप के पहले कार्यकाल में भी भारत-अमेरिका के रिश्ते काफी मजबूत रहे हैं। इसमें और मजबूती आने की उम्मीद है। वहीं, ट्रंप की जीत भारत के साथ दुश्मनी वाला रवैया रखने वाले देशों के लिए बुरी खबर हो सकती है। इस लिस्ट में चीन से लेकर बांग्लादेश और कनाडा तक का नाम शामिल हो सकता है।यहां सावल ये भी है कि क्या ट्रंप, भारत के दुश्मनों से सख्ती से निपटेंगे या फिर डिप्लोमेटिक खेल खेलेंगे जैसा बाइडेन प्रशासन करता आ रहा था?

जानबूझ कर दुश्मनी निकाल रहे कनाडा का क्या होगा?

भारत के लिए इन दिनों कनाडा दुश्मन नंबर एक बनकर उभरा है। अमेरिका और कनाडा में खालिस्‍तानी गतिविधियां के बढ़ने से हाल के महीनों में भारत को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा है। कनाडा में भारतीय हिंदुओं की सुरक्षा भी खतरे में आ गई है। ट्रूडो ने पिछले साल कनाडा में आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के मामले में भारत पर बेबुनियाद आरोप लगाए। भारत सरकार ने जब ट्रूडो के एजेंडे को बेनकाब कर दिया तब जाकर उन्होंने यह बात स्वीकार की कि उन्होंने सारे आरोप बिना सबूत के लगाए थे। अब तक बाइडेन प्रशासन काफी हद तक इस मामले में ट्रूडो का साथ दे रहा था लेकिन डोनाल्ड ट्रंप ऐसे मामलों में कनाडा का साथ नहीं देने वाले। ट्रंप के प्रशासन में अमेरिका में भारतीय हिंदुओं को खालिस्तान से होने वाले खतरे और धमकी को नजरअंदाज नहीं किया जाएगा। कनाडा को सुरक्षा और खालिस्तान समर्थकों के मसले पर गंभीर और साफ संदेश भी जाएगा।।

नए नवेले दुश्मन का क्या हाल होगा?

भारत के साथ संबंधों को बिगाड़ने वाले देशों में एक नाम बांग्लादेश का भी है। जिसके साथ दशकों तक भारत के अच्छे संबंध रहे। जिसके साथ भारत ने पूरी शिद्दत से दोस्ती निभाई लेकिन इस साल अगस्त महीने में शेख हसीना सरकार के तख्तापलट होते ही बांग्लादेश के सुर बदल गए। बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ जमकर हिंसा की गई। अपने चुनावी अभियान के दौरान दिवाली के मौके पर धर्म विरोधी एजेंडे के तहत हिंदू अमेरिकन की रक्षा की बात करने वाले ट्रंप बांग्लादेश में हिंदू और दूसरे अल्पसंख्यक समुदाय पर हमले की भर्त्सना कर चुके हैं।बांग्लादेश की यूनुस सरकार को भी ट्रंप ने अपने निर्वाचन से पहले ही साफ संदेश दे दिया था। यही नहीं, हसीने के बाद बाद आए मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार ने भारत को आंख दिखाने की जुर्रत भी की। जान बचाकर भारत आईं पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को जब भारत ने शरण दी तो यूनुस सरकार के मंत्री धमकी भरे लहज़े में बात करने लगे।

कहा जाता है कि बांग्लादेश यह सब कुछ अमेरिका की शह पर कर रहा था। बाइडेन और मोहम्मद यूनुस की मुलाकात की उस तस्वीर को याद करिए जब वह यूनुस से ऐसे मिल रहे थे मानो कोई पिता अपने बेटे की किसी उपलब्धि पर उसे दुलार रहा हो।

चीन की बढ़ेगी मुश्किल

ट्रंप के आने से चीन की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। चीन के आक्रामक और विस्तारवादी रवैये के चलते दुनिया के ज्यादातर मुल्क चीन की आलोचना करते रहे हैं। ट्रंप जब पहली बार राष्ट्रपति बने थे तो उन्होंने चीन के खिलाफ काफी सख्त रुख अपनाया था। इस बार वह इससे एक कदम आगे बढ़ सकते हैं। ट्रंप ने अपनी चुनावी रैलियों में चीन के आयात पर टैरिफ बढ़ाने का वादा किया था। पूरी संभावना है कि वह जब व्हाइट हाउस में होंगे तो चीन के खिलाफ कई कड़े फैसले ले सकते हैं। व्यापार और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में दोनों देशों के बीच टकराव और प्रतिस्पर्धा बढ़ जाएगी, मुमकिन है कि दोनों के बीच एक बार फिर ट्रेड वॉर की शुरुआत हो।

चीन की अर्थव्यवस्था इस वक्त काफी कमजोर दौर से गुजर रही है, ऐसे में ट्रंप का अमेरिका का राष्ट्रपति चुना जाना बीजिंग के लिए बड़ा झटका है। ट्रंप की जीत को लेकर ड्रैगन की निराशा उसके बयान में भी झलकती दिखी, चीन की ओर से कहा गया कि वह अमेरिका के साथ परस्पर सम्मान के आधार पर काम करता रहेगा। चीन के बयान में कोई जोश नहीं दिखा जैसा भारतीय प्रधानमंत्री के बधाई संदेश में था। उन्होंने ट्रंप को अपना दोस्त बताते हुए बधाई दी।

पाकिस्तान को पहले ही मिल चुका है सबक

भारत में पाकिस्तान से सीमा पार आतंकवाद के लिए ट्रंप एक सीधा और साफ संदेश है। अपने पहले कार्यकाल में ट्रंप पाकिस्तान को प्रायोजित आतंकवाद के लिए लताड़ चुके हैं और यही नहीं ट्रंप ने पाकिस्तान को अमेरिका से मिलने वाली आर्थिक सहायता भी रोक दी थी। पाकिस्तान इस वक्त आर्थिक बदहाली के दौर से गुजर रहा है, ऐसे में आतंकवाद समेत किसी मसले पर पाकिस्तान से ट्रंप की नाराजगी उसे न सिर्फ अमेरिका से मिलने वाली मदद बल्कि अलग-अलग संगठनों से मिलने वाली आर्थिक सहायता पर भी तेज आंच डाल सकती है।

अमेरिका में ट्रंप की वापसी, क्या बढ़ेगी भारत के “दुश्मनों” की दुश्वारियां?*
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डोनाल्ड ट्रंप अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव जीत चुके हैं, वह अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति होंगे। चार साल बाद वॉइट हाउस में डोनाल्ड ट्रंप की वापसी कई मायनों में खास है। ट्रंप की वापसी से दुनियाभर में खलबली मची हुई है।डोनाल्ड ट्रंप की वापसी को प्रधानमंत्री मोदी के लिए सकारात्मक घटनाक्रम के तौर पर देखा जा रहा है। पीएम मोदी का पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ मजबूत रिश्ता रहा है। चुनाव से पहले दिवाली पर संदेश में डोनाल्ड ट्रंप ने पीएम मोदी को दोस्त बताया था। दोनों नेता पहले भी एक दूसरे की तारीफ करते रहे हैं। अब सवाल ये है कि ट्रंप का अमेरिका में राष्‍ट्रपति चुनाव जीतने का भारत के ‘दुश्मन’ देशों पर क्या असर होगा? डोनाल्ड ट्रंप और पीएम मोदी आपस में बहुत अच्छे दोस्त हैं। दोनों विश्व नेताओं की जुगलबंदी जगजाहिर है। ट्रंप के पहले कार्यकाल में भी भारत-अमेरिका के रिश्ते काफी मजबूत रहे हैं। इसमें और मजबूती आने की उम्मीद है। वहीं, ट्रंप की जीत भारत के साथ दुश्मनी वाला रवैया रखने वाले देशों के लिए बुरी खबर हो सकती है। इस लिस्ट में चीन से लेकर बांग्लादेश और कनाडा तक का नाम शामिल हो सकता है।यहां सावल ये भी है कि क्या ट्रंप, भारत के दुश्मनों से सख्ती से निपटेंगे या फिर डिप्लोमेटिक खेल खेलेंगे जैसा बाइडेन प्रशासन करता आ रहा था? *जानबूझ कर दुश्मनी निकाल रहे कनाडा का क्या होगा?* भारत के लिए इन दिनों कनाडा दुश्मन नंबर एक बनकर उभरा है। अमेरिका और कनाडा में खालिस्‍तानी गतिविधियां के बढ़ने से हाल के महीनों में भारत को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा है। कनाडा में भारतीय हिंदुओं की सुरक्षा भी खतरे में आ गई है। ट्रूडो ने पिछले साल कनाडा में आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के मामले में भारत पर बेबुनियाद आरोप लगाए। भारत सरकार ने जब ट्रूडो के एजेंडे को बेनकाब कर दिया तब जाकर उन्होंने यह बात स्वीकार की कि उन्होंने सारे आरोप बिना सबूत के लगाए थे। अब तक बाइडेन प्रशासन काफी हद तक इस मामले में ट्रूडो का साथ दे रहा था लेकिन डोनाल्ड ट्रंप ऐसे मामलों में कनाडा का साथ नहीं देने वाले। ट्रंप के प्रशासन में अमेरिका में भारतीय हिंदुओं को खालिस्तान से होने वाले खतरे और धमकी को नजरअंदाज नहीं किया जाएगा। कनाडा को सुरक्षा और खालिस्तान समर्थकों के मसले पर गंभीर और साफ संदेश भी जाएगा।। *नए नवेले दुश्मन का क्या हाल होगा?* भारत के साथ संबंधों को बिगाड़ने वाले देशों में एक नाम बांग्लादेश का भी है। जिसके साथ दशकों तक भारत के अच्छे संबंध रहे। जिसके साथ भारत ने पूरी शिद्दत से दोस्ती निभाई लेकिन इस साल अगस्त महीने में शेख हसीना सरकार के तख्तापलट होते ही बांग्लादेश के सुर बदल गए। बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ जमकर हिंसा की गई। अपने चुनावी अभियान के दौरान दिवाली के मौके पर धर्म विरोधी एजेंडे के तहत हिंदू अमेरिकन की रक्षा की बात करने वाले ट्रंप बांग्लादेश में हिंदू और दूसरे अल्पसंख्यक समुदाय पर हमले की भर्त्सना कर चुके हैं।बांग्लादेश की यूनुस सरकार को भी ट्रंप ने अपने निर्वाचन से पहले ही साफ संदेश दे दिया था। यही नहीं, हसीने के बाद बाद आए मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार ने भारत को आंख दिखाने की जुर्रत भी की। जान बचाकर भारत आईं पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को जब भारत ने शरण दी तो यूनुस सरकार के मंत्री धमकी भरे लहज़े में बात करने लगे। कहा जाता है कि बांग्लादेश यह सब कुछ अमेरिका की शह पर कर रहा था। बाइडेन और मोहम्मद यूनुस की मुलाकात की उस तस्वीर को याद करिए जब वह यूनुस से ऐसे मिल रहे थे मानो कोई पिता अपने बेटे की किसी उपलब्धि पर उसे दुलार रहा हो। *चीन की बढ़ेगी मुश्किल* ट्रंप के आने से चीन की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। चीन के आक्रामक और विस्तारवादी रवैये के चलते दुनिया के ज्यादातर मुल्क चीन की आलोचना करते रहे हैं। ट्रंप जब पहली बार राष्ट्रपति बने थे तो उन्होंने चीन के खिलाफ काफी सख्त रुख अपनाया था। इस बार वह इससे एक कदम आगे बढ़ सकते हैं। ट्रंप ने अपनी चुनावी रैलियों में चीन के आयात पर टैरिफ बढ़ाने का वादा किया था। पूरी संभावना है कि वह जब व्हाइट हाउस में होंगे तो चीन के खिलाफ कई कड़े फैसले ले सकते हैं। व्यापार और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में दोनों देशों के बीच टकराव और प्रतिस्पर्धा बढ़ जाएगी, मुमकिन है कि दोनों के बीच एक बार फिर ट्रेड वॉर की शुरुआत हो। चीन की अर्थव्यवस्था इस वक्त काफी कमजोर दौर से गुजर रही है, ऐसे में ट्रंप का अमेरिका का राष्ट्रपति चुना जाना बीजिंग के लिए बड़ा झटका है। ट्रंप की जीत को लेकर ड्रैगन की निराशा उसके बयान में भी झलकती दिखी, चीन की ओर से कहा गया कि वह अमेरिका के साथ परस्पर सम्मान के आधार पर काम करता रहेगा। चीन के बयान में कोई जोश नहीं दिखा जैसा भारतीय प्रधानमंत्री के बधाई संदेश में था। उन्होंने ट्रंप को अपना दोस्त बताते हुए बधाई दी। *पाकिस्तान को पहले ही मिल चुका है सबक* भारत में पाकिस्तान से सीमा पार आतंकवाद के लिए ट्रंप एक सीधा और साफ संदेश है। अपने पहले कार्यकाल में ट्रंप पाकिस्तान को प्रायोजित आतंकवाद के लिए लताड़ चुके हैं और यही नहीं ट्रंप ने पाकिस्तान को अमेरिका से मिलने वाली आर्थिक सहायता भी रोक दी थी। पाकिस्तान इस वक्त आर्थिक बदहाली के दौर से गुजर रहा है, ऐसे में आतंकवाद समेत किसी मसले पर पाकिस्तान से ट्रंप की नाराजगी उसे न सिर्फ अमेरिका से मिलने वाली मदद बल्कि अलग-अलग संगठनों से मिलने वाली आर्थिक सहायता पर भी तेज आंच डाल सकती है।
ट्रंप की जीत से कनाडा की बढ़ी बेचैनी, जाने किस बात को लेकर खौफ में हैं ट्रूडो?

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डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं। अमेरिका के पिछले एक सौ साल के इतिहास में वो पहले राष्ट्रपति हैं जो एक बार चुनाव हारने के बाद व्हाइट हाउस में वापसी कर रहे हैं। ट्रंप अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति रह चुके हैं। ट्रंप की व्हाइट हाउस में वापसी के साथ ही अमेरिकी विदेश नीति में बदलाव देखने को मिल सकता है। खासकर डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद कनाडा में चिंता और घबराहट का माहौल है। डोनाल्ड ट्रंप की जीत कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के लिए मुश्किल खड़ी कर सकती है। दरअसल, जस्टिन ट्रूडो ने रिपब्लिकन नेता ने कभी 'दूर-वामपंथी पागल' करार दिया था।

विश्लेषकों और अर्थशास्त्रियों का कहना है कि वॉइट हाउस में ट्रंप की वापसी से व्यापार विवाद बढ़ सकते हैं, जो कनाडा के लिए मंदी की वजह बन सकते हैं। कनाडा का 75 फीसदी निर्यात अमेरिका को जाता है। कनाडा में एक साल के भीतर चुनाव होने वाले हैं और अधिकांश सर्वेक्षणों में जस्टिन ट्रूडो की हार की भविष्यवाणी की गई है। ऐसे में आइए कनाडा पर ट्रंप की जीत के मायने समझते हैं।

कनाडा दुनिया का चौथे नंबर का कच्चा तेल उत्पादक है। वहीं, ट्रंप की योजना सभी आयातों पर 10 प्रतिशत टैरिफ लगाने और अमेरिकी ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देने की है, जो कनाडा के लिए खास तौर पर बुरा संकेत है।कनाडा का 75% निर्यात अमेरिका को जाता है, और ऐसे में यह टैरिफ कनाडा की अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव डाल सकता है। कनाडाई चैंबर ऑफ कॉमर्स के अनुसार, ट्रंप की टैरिफ नीति से कनाडा की आय में सालाना 0.9% और श्रम उत्पादकता में लगभग 1% की कमी आएगी। यदि व्यापारिक तनाव बढ़ता है, तो इसका असर कनाडा की आर्थिक वृद्धि पर और गंभीर हो सकता है।

वहीं, ट्रंप और ट्रूडो के बीच का संबंध भी हमेशा से तनावपूर्ण रहा हैं। 2018 में क्यूबेक में जी-7 शिखर सम्मेलन में ट्रंप ने ट्रूडो को "बेईमान और कमजोर" कहकर आलोचना की थी। इसके बाद 2022 में, कोविड-19 वैक्सीनेशन को लेकर भी ट्रंप ने ट्रूडो को पागल कहा था। ट्रंप की इन टिप्पणियों के कारण दोनों नेताओं के बीच सार्वजनिक मंच पर तनाव देखा गया है।

हालांकि, ट्रूडो ने ट्रंप को जीत की बधाई देते हुए कहा कि दोनों देशों के बीच दोस्ती "दुनिया की ईर्ष्या" का कारण है और वे मिलकर काम करेंगे।ट्रूडो ने एक्स पर कहा, 'मुझे पता है कि राष्ट्रपति ट्रम्प और मैं अपने दोनों देशों के लिए अधिक अवसर, समृद्धि और सुरक्षा बनाने के लिए मिलकर काम करेंगे।'

डोनाल्ड ट्रंप की व्हाइट हाउस में वापसी :जानिए कौन से नेताओं की हुई इससे जीत और किन्हें करना होगा मुश्किलों का सामना
reactionson trumpswin someleaders arehappy whileothers fearloss डोनाल्ड ट्रंप ने चार साल की अनुपस्थिति के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति पद पर फिर से कब्ज़ा कर लिया है, जो अमेरिकी हितों को प्राथमिकता देने और अन्य देशों की ताकत और संरेखण के आधार पर गठबंधनों का आकलन करने के उनके दृष्टिकोण की वापसी का संकेत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सऊदी अरब के मोहम्मद बिन सलमान जैसे नेताओं से सहज वार्ता की उम्मीद कर सकते हैं, जबकि इज़राइल के बेंजामिन नेतन्याहू डोनाल्ड ट्रंप में एक सहायक, परिचित सहयोगी का स्वागत करने की उम्मीद कर रहे हैं।हालांकि, यूक्रेन के वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की को चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि डोनाल्ड ट्रंप उन देशों को प्राथमिकता देते हैं जो अमेरिकी नीतियों के साथ संरेखित होते हैं या ताकत दिखाते हैं। दुनिया के नेताओं में से जिन्हें ट्रंप की दुनिया में दोस्त या दुश्मन के रूप में देखा जाएगा, भारत और कई अन्य देशों को व्हाइट हाउस में उनकी वापसी के साथ विजेता के रूप में देखा जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी: ट्रंप की वापसी को प्रधानमंत्री मोदी के लिए एक सकारात्मक विकास के रूप में देखा जा रहा है, जिन्होंने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ मजबूत संबंधों का आनंद लिया है। दोनों नेताओं ने सार्वजनिक रूप से एक-दूसरे की प्रशंसा की है और पिछले कुछ वर्षों में व्यक्तिगत संबंध बनाए हैं। कार्यालय में वापसी के साथ, मोदी को एक अनुकूल स्थिति का लाभ मिलना जारी रहने की संभावना है, क्योंकि मजबूत द्विपक्षीय संबंधों पर ध्यान ट्रम्प की नीतियों के अनुरूप होगा। इसके अलावा, ट्रम्प प्रशासन असंतुष्टों की कथित हत्याओं के लिए भारत की सरकार को जिम्मेदार ठहराने के कनाडा के प्रयास का समर्थन नहीं कर सकता है, ब्लूमबर्ग ने रिपोर्ट किया। सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान: राज्य के वास्तविक शासक, अमेरिका के साथ लंबे समय से प्रतीक्षित सुरक्षा समझौते के प्रयासों को पुनर्जीवित करने का अवसर देखेंगे। ट्रम्प, जिन्होंने अब्राहम समझौते में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिसने इज़राइल और कई अरब देशों के बीच राजनयिक संबंध स्थापित किए, से सऊदी अरब को शामिल करने के लिए इस ढांचे का विस्तार करने पर ध्यान केंद्रित करने की उम्मीद है। यदि ट्रम्प इजरायल और सऊदी अरब के बीच शांति समझौता कराने में सफल हो जाते हैं, तो इससे अमेरिका के लिए सऊदी अरब को अपना सुरक्षा समर्थन बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू: उनके निवर्तमान राष्ट्रपति जो बिडेन के साथ तनावपूर्ण संबंध रहे हैं, लेकिन उम्मीद है कि वे व्हाइट हाउस में एक लंबे समय के सहयोगी के आगमन का स्वागत करेंगे। डोनाल्ड ट्रम्प इजरायल के लिए अमेरिकी समर्थन को मजबूत करने की संभावना रखते हैं, बिडेन के विपरीत, आने वाले अमेरिकी नेता से उम्मीद की जाती है कि वे ईरानी प्रॉक्सी के खिलाफ लड़ाई को आगे बढ़ाने और एक बड़े क्षेत्रीय संघर्ष को भड़काने के जोखिमों के बावजूद, एक फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना का विरोध करने के नेतन्याहू के रुख के प्रति अधिक सहानुभूति रखेंगे। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन: वे डोनाल्ड ट्रम्प की वापसी को पश्चिम में विभाजन का लाभ उठाने और यूक्रेन में और अधिक लाभ प्राप्त करने के अवसर के रूप में देखते हैं। आने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति से उम्मीद की जा रही है कि वे नाटो सहयोगियों की एकता को कमजोर करेंगे और अपनी 'अमेरिका फर्स्ट' नीति के साथ यूक्रेन के लिए सहायता के भविष्य को संदेह में डाल देंगे। हालांकि, उनकी अप्रत्याशितता ने क्रेमलिन में चिंताएं बढ़ा दी हैं कि ट्रम्प, अल्पावधि में, पुतिन पर समझौता करने के लिए संघर्ष को बढ़ा सकते हैं, जिसके संभावित विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं, जिसमें परमाणु टकराव भी शामिल है। इटली की प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी: उन्होंने खुद को एक प्रो-अटलांटिक नेता के रूप में मजबूती से स्थापित किया है, फिर भी वे एक कट्टर दक्षिणपंथी राजनीतिज्ञ बनी हुई हैं। जबकि उन्होंने अमेरिकी चुनाव जीतने वाले किसी भी उम्मीदवार के साथ सहयोग करने का वादा किया था, एलन मस्क के साथ उनके घनिष्ठ संबंधों से उन्हें नए अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ प्रभाव देने की उम्मीद है।मेलोनी के पूर्व मुख्य कूटनीतिक सलाहकार फ्रांसेस्को टैलो ने कहा, "अगर ट्रंप व्हाइट हाउस में वापस आते हैं, तो नाटो टूटेगा नहीं, लेकिन यह और भी चुनौतीपूर्ण हो जाएगा।   तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन: तुर्की ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद संबंधों में सुधार की उम्मीद कर सकता है। एर्दोगन और ट्रंप ने दोस्ताना संबंध बनाए रखे हैं, अक्सर फोन पर संवाद करते हैं, यहां तक कि एर्दोगन उन्हें "मेरा दोस्त" भी कहते हैं। बिडेन प्रशासन के विपरीत, ट्रंप की वापसी एर्दोगन को वाशिंगटन तक अधिक सीधी पहुंच प्रदान कर सकती है। इसके अतिरिक्त, चीन के साथ संबंधों को मजबूत करने के लिए तुर्की के हालिया कदम अमेरिका के साथ अपने संबंधों को संतुलित करने में चुनौतियां पेश कर सकते हैं। उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन: ट्रम्प के पहले कार्यकाल के दौरान, किम और ट्रम्प के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध विकसित हुए, जो पत्रों और दो शिखर बैठकों द्वारा चिह्नित थे, हालांकि उत्तर कोरिया के परमाणु मिसाइल कार्यक्रम को रोकने के लिए कोई समझौता नहीं किया गया था। तब से, किम ने बातचीत के अमेरिकी प्रयासों को खारिज कर दिया है और इसके बजाय पुतिन के साथ संबंधों को मजबूत किया है, जबकि उत्तर कोरिया के हथियारों के शस्त्रागार का विस्तार किया है। ट्रम्प के पहले कार्यकाल के दौरान, अमेरिका ने सद्भावना के संकेत के रूप में दक्षिण कोरिया के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास कम कर दिया था। हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओर्बन: पांच बार के राष्ट्रवादी नेता, ओर्बन ट्रम्प के सबसे कट्टर यूरोपीय सहयोगियों में से एक रहे हैं, उन्होंने ट्रम्प की प्रशंसा तब भी की, जब अमेरिका में चल रहे आपराधिक मामलों के कारण उनकी सत्ता में वापसी अनिश्चित लग रही थी। अब, ओर्बन खुद को यूरोप में ट्रम्प के प्रतिनिधि के रूप में स्थापित कर रहे हैं, उन्हें उम्मीद है कि आने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ उनके मजबूत व्यक्तिगत संबंध यूरोपीय संघ के भीतर उनकी स्थिति को बेहतर बनाएंगे। ओर्बन को उनकी निरंकुश प्रवृत्तियों और रूस समर्थक रुख के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा है।  अर्जेंटीना के राष्ट्रपति जेवियर माइली: राष्ट्रपति ने ट्रम्प की जीत पर एक बड़ा दांव खेला और सफल हुए। फरवरी में अपनी पहली मुलाकात के दौरान, माइली ने ट्रम्प की प्रशंसा "एक बहुत महान राष्ट्रपति" के रूप में की और उनके फिर से चुने जाने की उम्मीद जताई। अब माइली अर्जेंटीना को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में बेहतर सौदा हासिल करने में मदद करने के लिए ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल की उम्मीद कर रहे हैं, खासकर जब देश अपने मौजूदा $44 बिलियन के कार्यक्रम को बदलना चाहता है। अर्जेंटीना के नेता एलन मस्क के साथ भी अपने संबंधों को मजबूत कर रहे हैं, इस साल कई बार उनसे मुलाकात की है, क्योंकि अरबपति अर्जेंटीना में निवेश के अवसरों की तलाश कर रहे हैं। संभावित लोग जो ट्रंप की वापसी को नापसंद कर सकते है: यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की: हालांकि ज़ेलेंस्की ट्रंप को बधाई देने वाले पहले विश्व नेताओं में से थे, लेकिन रिपब्लिकन की जीत को लेकर कीव में चिंता बढ़ रही है। यूक्रेन को डर है कि ट्रंप रूस के साथ शांति वार्ता में भूमि रियायतों पर जोर दे सकते हैं और वित्तीय और सैन्य सहायता कम कर सकते हैं।
अमेरिकी नेतृत्व में यह बदलाव तब आया है जब रूस अपने द्वारा कब्जा किए गए चार क्षेत्रों में अधिक यूक्रेनी क्षेत्र हासिल करने के अपने अभियान में आगे बढ़ रहा है। जबकि बिडेन यूक्रेन की नाटो आकांक्षाओं का समर्थन करने और रूसी क्षेत्र में हमलों को सीमित करने में सतर्क रहे थे, ट्रम्प का "24 घंटे" में युद्ध समाप्त करने का वादा संकट को जल्दी से हल करने की उनकी प्राथमिकता को दर्शाता है। ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन: ईरान ने अब तक ट्रंप की वापसी के प्रभाव को कम करके आंका है, लेकिन उनके राष्ट्रपति पद ने अपने परमाणु कार्यक्रम पर कूटनीति के द्वार बंद कर दिए हैं, जिससे तेहरान को उम्मीद थी कि प्रतिबंधों से त्रस्त उसकी अर्थव्यवस्था को राहत मिल सकती है। इजरायल के प्रबल समर्थक ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान ईरान के प्रति "अधिकतम दबाव" की नीति लागू की। वह पहले लगाए गए अमेरिकी प्रतिबंधों को और कड़ा करके ईरान को और अलग-थलग कर सकते हैं। हालांकि, ट्रंप को एक बदले हुए क्षेत्र का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि ईरान ने हाल ही में सऊदी अरब और यूएई के साथ संबंधों को मजबूत किया है, दोनों ने "अधिकतम दबाव" दृष्टिकोण का समर्थन किया था। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग: ट्रंप की जीत शी के लिए मुश्किल समय में हुई है। चीनी वस्तुओं पर 60 प्रतिशत कंबल टैरिफ का खतरा अमेरिका के साथ व्यापार को तबाह कर सकता है, जिससे चीन की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंच सकता है। यह अनिश्चितता को बढ़ाता है क्योंकि शी की सरकार विकास और आत्मविश्वास को बढ़ावा देने के लिए एक प्रमुख प्रोत्साहन पेश करती है। हालांकि, कुछ सकारात्मक चीजें भी हैं। एलोन मस्क, जिनके चीन के साथ मजबूत व्यापारिक संबंध हैं, कहा जाता है कि ट्रंप का ध्यान उनकी ओर है। इसके अलावा, ट्रंप ने ताइवान की रक्षा के लिए अमेरिका की प्रतिबद्धता पर सवाल उठाए हैं, जो चीन के हितों के साथ संरेखित हो सकता है।  जापान के प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा: ट्रंप की जीत ने जापान के नेता पर नया दबाव डाला है, खासकर तब जब सत्तारूढ़ गठबंधन ने हाल ही में हुए चुनाव में अपना बहुमत खो दिया है। ट्रंप ने अक्सर अमेरिका के साथ जापान के व्यापार अधिशेष की आलोचना की है और जापान से लगभग 55,000 सैनिकों की अमेरिकी सैन्य उपस्थिति के लिए अधिक भुगतान करने का आग्रह किया है। जापान ने पहले ऐसी मांगों का विरोध किया था, लेकिन मौजूदा समझौता 2026 में समाप्त होने वाला है। इसके अतिरिक्त, जापान को चीन को चिप बनाने वाले उपकरणों के निर्यात को लेकर दबाव का सामना करना पड़ सकता है, जिसे अमेरिका सीमित करना चाहता है। मेक्सिको की राष्ट्रपति क्लाउडिया शिनबाम: मेक्सिको यह जानने के लिए उत्सुक है कि ट्रम्प अपनी टैरिफ योजना को कैसे लागू करेंगे, जो कि उत्तरी पड़ोसी देशों को निर्यात बढ़ाने के उसके लक्ष्य में बाधा बन सकती है, चिंता का एक और स्रोत उत्तरी अमेरिकी देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौते की 2026 में होने वाली संभावित समीक्षा है। आव्रजन भी एक गर्म मुद्दा है, ट्रम्प ने मेक्सिको पर वित्तीय दबाव डालने की धमकी दी है, जबकि चुनाव से पहले सीमा पर होने वाले प्रवास को कम करने में अमेरिका की मदद करने वाली इसकी कार्रवाई ने मेक्सिको को मदद की थी। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टारमर: अमेरिका के पारंपरिक पश्चिमी सहयोगियों में से कुछ ही लेबर नेता की तुलना में ट्रम्प के साथ अधिक कठिन स्थिति से शुरुआत कर रहे हैं। स्टारमर ने 6 जनवरी, 2021 को यूएस कैपिटल पर हमले को "लोकतंत्र पर सीधा हमला" कहा और उनके विदेश सचिव डेविड लैमी ने 2017 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति को "महिला-घृणा करने वाला, नव-नाजी-सहानुभूति रखने वाला समाजोपथ" कहा। हाल ही में, अरबपति उद्योगपति मस्क के साथ उनका सार्वजनिक झगड़ा हुआ, जब उन्होंने ट्विटर पर कहा कि यूके में दक्षिणपंथी दंगे गृह युद्ध की ओर ले जाएंगे। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों: उन्हें पहले से ही ट्रम्प के साथ काम करने का अनुभव है, जो उन्हें अपने यूरोपीय साथियों की तुलना में मूल्यवान अनुभव देता है। दरअसल, ट्रम्प के पहले कार्यकाल के दौरान दोनों नेताओं ने एक दिखावटी गठबंधन पेश किया था, जिसमें एफिल टॉवर के ऊपर डिनर भी शामिल था। मैक्रों ने एक्स पर पोस्ट किया, "हम चार साल तक साथ काम करने के लिए तैयार हैं।"ऑप्टिक्स और अधिक यूरोपीय उत्तोलन की संभावना के बावजूद, फ्रांस के लिए आर्थिक रूप से बहुत कम लाभ होने वाला है और यदि व्यापार तनाव फिर से भड़कता है तो संभावित रूप से बहुत कुछ खो सकता है। यदि ट्रम्प Google जैसी बड़ी तकनीकी फर्मों पर कर लगाने को लेकर फ्रांस के साथ लड़ाई को फिर से शुरू करते हैं तो यह जल्दी ही हो सकता है। ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज़ इनासियो लूला दा सिल्वा: ब्राजील में ट्रम्प के सहयोगी पूर्व राष्ट्रपति जेयर बोल्सोनारो हैं, जो लूला के मुख्य राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी हैं। लूला को चिंता है कि ट्रम्प की वापसी बोल्सोनारो के नेतृत्व वाले रूढ़िवादी राजनीतिक आंदोलन को बढ़ावा दे सकती है, जिनके समर्थकों ने पिछले साल उनके उद्घाटन के ठीक एक सप्ताह बाद उनकी सरकार के खिलाफ विद्रोह का प्रयास किया था। अमेरिकी चुनाव की पूर्व संध्या पर, लूला ने कहा कि वह हैरिस की जीत के लिए प्रार्थना कर रहे हैं, उन्होंने कहा कि ट्रम्प ने 2021 में फिर से चुनाव हारने के बाद कैपिटल पर लोकतंत्र विरोधी दंगों को बढ़ावा दिया था।  जर्मनी के चांसलर ओलाफ स्कोल्ज़: एंजेला मर्केल के प्रति ट्रम्प की घृणा ने अमेरिका-जर्मनी संबंधों पर भारी दबाव डाला और स्कोल्ज़ उनके वित्त मंत्री और उत्तराधिकारी थे, इसलिए उनके लिए उस संबंध को खत्म करना मुश्किल होगा। जर्मनी अपनी कारों और व्यापार अधिशेष के साथ ट्रम्प के दशकों पुराने जुनून का शिकार रहा है और एक बार फिर खुद को निशाने पर पाएगा। जर्मनी का ऑटोमोटिव क्षेत्र यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ा उद्योग है और ट्रम्प द्वारा लगाए जाने वाले भारी अमेरिकी आयात शुल्कों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। 
पूरी दुनिया पीएम मोदी से प्यार करती है”, जीत के बाद बोले ट्रंप

#donaldtrumpsaidworldloves_modi

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर सत्ता में वापसी करने वाले हैं। ट्रंप ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में एक ऐतिहासिक जीत हासिल की है। विदेशी राजनेताओं की बात करें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ट्रंप की शानदार और धमाकेदार जीत पर उन्हें सबसे पहले बधाई दी। अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप के जीतने के बाद पीएम मोदी ने उनसे फोन पर बात की।बातचीत को लेकर पीएम मोदी ने भी एक्स पर पोस्ट किया।

पीएम मोदी ने एक्स पर कहा कि ‘अपने मित्र, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ शानदार बातचीत हुई और उन्हें उनकी शानदार जीत पर बधाई दी। प्रौद्योगिकी, रक्षा, ऊर्जा, अंतरिक्ष और कई अन्य क्षेत्रों में भारत-अमेरिका संबंधों को और मजबूत करने के लिए एक बार फिर मिलकर काम करने की उम्मीद है।’

ट्रंप ने की पीएम मोदी की तारीफ

एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक ट्रंप ने पीएम मोदी की इस पहल का गर्मजोशी से जवाब दिया। उन्होंने भारत को शानदार देश और पीएम मोदी को शानदार व्यक्ति बताया। ट्रंप ने इस बात का भी जिक्र किया कि मोदी दुनिया के उन पहले नेताओं में से थे, जिन्होंने उनके जीत हासिल करने के बाद बात की। पीएम मोदी की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा, 'पूरी दुनिया पीएम मोदी से प्यार करती है।' उन्होंने भारत को एक मूल्यवान सहयोगी बताया।

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा दुनिया के तमाम राष्ट्राध्यक्षों ने अमेरिका के नए राष्ट्रपति को चुनावी जीत पर शुभकामना संदेश भेजा है। जो लोग ट्रंप की विचारधारा को पसंद नहीं करते, उन्होंने भी औपचारिकता में बधाई संदेश भेजा है। जो बाइडेन ने ट्रंप को फोन करके बधाई दी और उन्हें व्हाइट हाउस आने का न्योता दिया। हालांकि रूस ने अब तक ट्रंप को बधी नहीं दी है, साथ ही अमेरिका को अमित्र देश बताया है।

पुतिन ने अब तक ट्रंप को क्यों नहीं दी जीत की बधाई, अमेरिका-रूस के रिश्तों पर आया बड़ा बयान

#whyputinnotyetcongratulatedtrumponhisvictory

अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों में इतिहास रचने वाले डोनाल्ड ट्रंप को दुनिया भर के नेताओं ने बधाई दी है। लेकिन रूस के राष्ट्रपति पुतिन की ओर से कोई रिएक्शन नहीं आया है।दुनिया के प्रमुख राष्ट्राध्यक्षों की ओर से ट्रंप को बधाई दिए जाने के बीच पुतिन का ये कदम चर्चा का विषय बना हुआ है। इस बीच रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन का एक चौंकाने वाला बयान सामने आया है। रूस की ओर से अमेरिका को अमित्र देश बताया गया है।

दरअसल, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने साफ किया कि वो फिलहाल अभी डोनाल्ड ट्रंप को बधाई देने नहीं जा रहे हैं। क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने बुधवार को कहा कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन डोनाल्ड ट्रंप को बधाई देने की योजना नहीं बना रहे हैं। दिमित्री ने कहा कि हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हम एक ऐसे अमित्र देश के बारे में बात कर रहे हैं जो हमारे देश के खिलाफ युद्ध में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से शामिल है।यूक्रेन में चल रहे युद्ध का जिक्र करते हुए पेसकोव ने कहा कि ‘अमेरिका इस संघर्ष को बढ़ावा देता है और इसमें हिस्सा लेता है। अमेरिका इस विदेश नीति को बदलने में सक्षम है. यह किया जाएगा या नहीं और यह कैसे किया जाएगाष

बता दें कि मास्को ने दर्जनों देशों को ‘अमित्र’ के रूप में नामित किया है, जो रूस के हितों के लिए शत्रुतापूर्ण माने जाते हैं। इसमें आर्थिक प्रतिबंध लगाना और यूक्रेन का समर्थन करना शामिल है, क्योंकि वह रूस के के खिलाफ खुद में शामिल है।

रूस को अमेरिका के रुख का इंतजार

रूस ने बुधवार को कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ संबंध ऐतिहासिक रूप से निचले स्तर पर हैं, लेकिन क्रेमलिन का दरवाजा बातचीत के लिए खुला है। अभी रूस को इस बात का इंतजार है कि जब जनवरी में डोनाल्ड ट्रम्प व्हाइट हाउस लौटते हैं तो क्या होता है।

जेलेंस्की ने ट्रंप को दी जीत की बधाई

वहीं, दूसरी तरफ यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने ट्रंप को चुनावी जीत के लिए बधाई दी है। जेलेंस्की ने दुनिया के मामलों में ताकत के जरिये से शांति के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के लिए उनकी सराहना की। अपने चुनाव अभियान के दौरान, ट्रंप ने यूक्रेन में युद्ध से निपटने के अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के तरीके की आलोचना की। ट्रंप ने दावा किया कि अगर वह अभी भी पद पर होते, तो रूस कभी भी पूरे पैमाने पर हमला शुरू नहीं करता। पुतिन और जेलेंस्की दोनों के साथ अपने अच्छे संबंध का दावा करते हुए, ट्रम्प ने दूसरे कार्यकाल के लिए चुने जाने पर पदभार ग्रहण करने से पहले यूक्रेन में युद्ध को खत्म करने का वादा किया है।

ऐसे चरित्र का आदमी जो...ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से मणिशंकर अय्यर हैं दुखी

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अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की ऐतिहासिक जीत दर्ज की है। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत से सीनियर कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर बड़े दुखी हैं। कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की ऐतिहासिक जीत पर विवादित बयान दिया है।अय्यर ने ट्रंप को 'संदिग्ध चरित्र वाला व्यक्ति' बताया।अय्यर ने कहा कि मुझे बेहद दुख हो रहा है कि ट्रंप जैसे संदिग्ध चरित्र वाले व्यक्ति को दुनिया के सबसे शक्तिशाली लोकतंत्र का राष्ट्रपति चुन लिया गया है। उन्हें राष्ट्रपति नहीं चुना जाना चाहिए था।

न्यूज एजेंसी एएनाई से बात करते हुए मणिशंकर अय्यर ने कहा, (अमेरिकी चुनाव से) नैतिक आयाम गायब था। यह बहुत दुखद है कि इतने शक्तिशाली देश का नेतृत्व ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाएगा, जिसे 34 अलग-अलग मामलों में अपराधी के रूप में दोषी ठहराया गया है। ऐसे चरित्र के आदमी को, जिसका इतिहास रहा है कि वह वेश्याओं के साथ संबंध बनाता था और उनको मुंह बंद करने के लिए पैसे देता था, ऐसे जलील आदमी को लोगों ने राष्ट्रपति चुना है। मुझे नहीं लगता कि इस तरह के चरित्र का व्यक्ति अपने देश या दुनिया के लिए अच्छा है।

ट्रंप और पीएम मोदी के संबंधों पर उठाया सवाल

कांग्रेस नेता ने ट्रंप के साथ पीएम मोदी के संबंधों पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि मैं यह भी मानता हूं कि पीएम मोदी और ट्रंप के बीच व्यक्तिगत स्तर पर एक विशेष तालमेल है, जो मुझे लगता है कि पीएम मोदी और उनकी व्यक्तिगत प्राथमिकताओं पर बुरा असर डालता है।

कमला हैरिस के लिए जताया दुख

अय्यर ने कमला हैरिस की हार पर भी दुख व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि कमला हैरिस, जो जीत जातीं, राष्ट्रपति बनने वाली भारत की पहली महिला और पहली राजनेता होतीं। यह एक ऐतिहासिक और सकारात्मक कदम होता। अय्यर ने कहा, जहां तक कमला हैरिस का सवाल है, उन्हें बहुत कम समय दिया गया था। वह पीछे से आगे आईं। वह बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रही थीं। लेकिन ऐसा लगता है कि अमेरिकी समाज में बहुत गहरी खामियां आखिरकार उनके खिलाफ हो गईं और वह इस दौड़ में हार गईं।

डोनाल्ड ट्रंप की ऐतिहासिक जीत, 132 साल बाद रचा गया इतिहास, कई और रिकॉर्ड किए अपने नाम*
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अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप ने जीत दर्ज की है। रिपब्लिकन उम्मीदवार जोनाल्ड ट्रंप का राष्ट्रपति चुना जाना अमेरिकी इतिहास में सबसे अविश्वसनीय राजनीतिक वापसी में से एक है। डोनाल्ड ट्रंप सभी स्विंग राज्यों में जीत हासिल करते हुए दूसरे कार्यकाल के लिए व्हाइट हाउस में लौटने के लिए तैयार हैं। डोनाल्ड ट्रंप इस जीत के साथ कई ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल करेंगे। ट्रंप 2016 में चुनाव जीते थे और 2020 में हार के बाद अब 2024 जीते हैं। ऐसा 132 साल बाद हुआ जब अमेरिका में कोई व्यक्ति दूसरी बार प्रेसीडेंट बना है लेकिन उसने चुनाव लगातार नहीं जीता है। ग्रोवर क्लीवलैंड के बाद ट्रम्प गैर-लगातार कार्यकाल तक सेवा देने वाले दूसरे राष्ट्रपति होंगे, यह उपलब्धि आखिरी बार 132 साल पहले हासिल की गई थी। ग्रोवर क्लीवलैंड अमेरिका के 22वें और 24वें राष्ट्रपति थे, उन्होंने 1885 से 1889 और 1893 से 1897 तक सेवा दी। अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में ट्रंप का पहला कार्यकाल 2016 और 2020 के बीच था। हालांकि, वे 2020 की चुनावी दौड़ में जो बाइडेन से हारने के बाद लगातार दूसरा कार्यकाल जीतने में असफल रहे। *राष्ट्रपति चुने जाने वाले सबसे उम्रदराज व्यक्ति* 78 वर्ष की उम्र में, वह राष्ट्रपति चुने जाने वाले अमेरिकी इतिहास के सबसे उम्रदराज व्यक्ति होंगे। जो बिडेन, जो 20 नवंबर को 82 वर्ष के हो जाएंगे, सबसे उम्रदराज़ मौजूदा राष्ट्रपति हैं। *दो बार महाभियोग का सामना करने वाले राष्ट्रपति* ट्रंप अमेरिकी इतिहास में अपने कार्यकाल के दौरान दो बार महाभियोग की कार्यवाही का सामना करने वाले एकमात्र राष्ट्रपति बन जाएंगे। हालाँकि, दोनों मामलों में सीनेट द्वारा उन्हें सभी मामलों से बरी कर दिया गया था। पहला महाभियोग 2019 में इन आरोपों पर चला था कि ट्रम्प ने अपने पुन: चुनाव की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए गुप्त रूप से यूक्रेन से मदद मांगी थी। यह आरोप लगाया गया था कि ट्रम्प ने अपने यूक्रेनी समकक्ष ज़ेलेंस्की से 2020 के राष्ट्रपति चुनाव में उनके खिलाफ चुनाव लड़ने वाले अग्रणी उम्मीदवारों में से एक की जांच करने का आग्रह किया था। यह बताया गया कि ट्रम्प ने यूक्रेन को दी जाने वाली 400 मिलियन डॉलर की सैन्य सहायता रोक दी थी, जो रूस के साथ युद्ध में शामिल है। यूएस कैपिटल पर 6 जनवरी के हमले को कथित रूप से उकसाने के लिए ट्रम्प पर उनके कार्यकाल की समाप्ति से एक सप्ताह पहले 13 जनवरी, 2021 को दूसरी बार महाभियोग लगाया गया था। *पद पर आसीन होने वाले पहले दोषी अपराधी* डोनाल्ड ट्रंप कानूनी अभियोग का सामना करते हुए पद संभालने वाले पहले अमेरिकी राष्ट्रपति भी होंगे। ट्रंप को इस साल की शुरुआत में 34 गुंडागर्दी के मामलों में दोषी ठहराया गया था। ट्रंप को मई में न्यूयॉर्क में दोषी ठहराया गया था, लेकिन अभी तक सजा नहीं सुनाई गई है और 26 नवंबर को सुनवाई होनी है। ट्रंप पर 2016 के राष्ट्रपति चुनाव से पहले पोर्न फिल्म स्टार स्टॉर्मी डेनियल्स को गुप्त धन भुगतान से जुड़े व्यावसायिक रिकॉर्ड में हेराफेरी करने का आरोप लगाया गया है। हालाँकि, ट्रंप ने आरोपों से इनकार किया है और खुद को दोषी नहीं बताया है।
राहुल गांधी ने अमेरिकी चुनाव 2024 में जीत के लिए डोनाल्ड ट्रंप को बधाई दी, कमला हैरिस को शुभकामनाएं दीं

कांग्रेस ने बुधवार को रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप को बधाई दी, जिन्होंने 2024 में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव जीता है।

लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने एक्स पर पोस्ट किया, "आपकी जीत पर बधाई, अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में आपके दूसरे कार्यकाल में सफलता की कामना करता हूं। को उनके भविष्य के प्रयासों के लिए शुभकामनाएं।"

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने एक्स पर पोस्ट किया, "भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की ओर से, हम राष्ट्रपति को उनकी चुनावी जीत के लिए बधाई और शुभकामनाएं देते हैं। भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका एक मजबूत व्यापक वैश्विक रणनीतिक साझेदारी साझा करते हैं, जो लंबे समय से साझा लोकतांत्रिक मूल्यों, संरेखित हितों और व्यापक लोगों से लोगों के संबंधों पर आधारित है।"

कांग्रेस प्रमुख ने कहा, "हम वैश्विक शांति और समृद्धि के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ मिलकर काम करने के लिए तत्पर हैं।" इससे पहले, कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा कि अमेरिकी चुनावों में ट्रंप की जीत भारत के लिए "बहुत आश्चर्य की बात नहीं होगी"। "ऐसा लगता है कि वह (डोनाल्ड ट्रंप) वापस आ रहे हैं। मुझे लगता है कि आधिकारिक घोषणा आसन्न है, सच्चाई यह है कि हमें राष्ट्रपति के रूप में श्री ट्रंप का चार साल का अनुभव पहले ही हो चुका है, इसलिए बहुत अधिक आश्चर्य नहीं होना चाहिए। हम जानते हैं कि वह बहुत ही लेन-देन करने वाले नेता हैं," पूर्व केंद्रीय मंत्री ने एएनआई को बताया। 

पीएम मोदी ने ट्रंप को बधाई दी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डोनाल्ड ट्रंप को उनकी चुनावी जीत पर बधाई देते हुए कहा, "मेरे मित्र को आपकी ऐतिहासिक चुनावी जीत पर हार्दिक बधाई। जैसा कि आप अपने पिछले कार्यकाल की सफलताओं को आगे बढ़ाते हैं, मैं भारत-अमेरिका व्यापक वैश्विक और रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत करने के लिए हमारे सहयोग को नवीनीकृत करने की आशा करता हूं। साथ मिलकर, हम अपने लोगों की बेहतरी के लिए और वैश्विक शांति, स्थिरता और समृद्धि को बढ़ावा देने के लिए काम करते हैं।" डोनाल्ड ट्रंप ने डेमोक्रेटिक उपराष्ट्रपति कमला हैरिस को हराकर व्हाइट हाउस की दौड़ जीती। विस्कॉन्सिन में जीत के साथ, ट्रम्प ने राष्ट्रपति पद हासिल करने के लिए आवश्यक 270 इलेक्टोरल वोट हासिल कर लिए।

ट्रम्प ने फ्लोरिडा में अपने समर्थकों की भीड़ से कहा, "हमने साथ मिलकर बहुत कुछ सहा है, और आज आप रिकॉर्ड संख्या में जीत दिलाने के लिए आए हैं।"

हैरिस के खिलाफ उनकी जीत, किसी प्रमुख पार्टी के टिकट पर नेतृत्व करने वाली पहली अश्वेत महिला हैं, यह दूसरी बार है जब उन्होंने आम चुनाव में किसी महिला प्रतिद्वंद्वी को हराया है।

ट्रंप की जीत के बाद एलन मस्क का ट्वीट, जानें ऐसा क्या लिखा जिसकी होने लगी चर्चा*
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अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप ने बड़ी जीत हासिल की है। पूर्व राष्ट्रपति ने डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार कमला हैरिस को बड़े अंतर से मात दी। इसी बीच डोनाल्ड ट्रंप के समर्थक उनकी जीत से पहले ही जश्न मनाने लगे थे। इसी कड़ी में अरबपति एलन मस्क ने भी ट्रंप जीत को लेकर ट्वीट करने शुरू कर दिए थे।एलन मस्क ने डोनाल्ड ट्रंप की जीत से खुश होते हुए सोशल मीडिया पर कई सारे पोस्ट किए। मस्क के ट्वीट इस समय सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहे हैं। एलन मस्क ने अपने एक ट्वीट में लिखा कि अमेरिका बिल्डर्स का देश है और जल्द ही आप एक नए निर्माण के लिए पूरी तरह से फ्री होंगे। एलन मस्क ने एक्स पर एक पोस्ट शेयर किया है। इसमें वे एक सिंक के साथ व्हाइट हाउस में दिखाई दे रहे हैं। पोस्ट को शेयर करते हुए उन्होंने, Let That Sink In लिखा है। यह एक मुहावरा है जिसका अर्थ है कि किसी स्टेटमेंट को समझना। एलन मस्क ने 2022 की अपनी फेमस सिंक वाली फोटो को एडिट करके शेयर किया है। 2022 में एलन मस्क ने ट्विटर को 44 बिलियन डॉलर में खरीदने के बाद एक्स हेडक्वार्टर में सिंक के साथ जाने का फैसला किया था, जिसे तब ट्विटर के नाम से जाना जाता था। अब उनकी इस फोटो को एडिट करके इसमें एक्स हेडक्वार्टर की जगह पर व्हाइट हाउस लगाया गया है। ये फोटो एक बार फिर से वायरल हो गई है। अपने मूल पोस्ट की तरह ही, मस्क ने इस एडिटड तस्वीर को उसी कैप्शन के साथ साझा किया, ‘लेट द सिंक इन’। वहीं, एक और पोस्ट में मस्क ने एक्स पर "गेम, सेट और मैच" लिखा, जिसका इस्तेमाल आमतौर पर टेनिस मैच में किसी खिलाड़ी की जीत को दर्शाने के लिए प्रयोग किया जाता है। इस संकेत से मस्क ने ट्रंप की जीत की ओर इशारा किया। इससे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप ने जीत दर्ज करने के बाद बुधवार को अपना पहला धन्यवाद भाषण दिया। राष्ट्रपति चुनाव में जीत के बाद अपने संबोधन के दौरान डोनाल्ड ट्रंप ने अपने चुनाव अभियान का प्रमुख हिस्सा रहे एलन मस्क की जमकर तारीफ की है। ट्रंप ने एलन मस्क को रिपब्लिक पार्टी का 'नया सितारा' बताया। उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने स्पेसएक्स रॉकेट का वीडियो देखते हुए अरबपति को 40 मिनट तक होल्ड पर रखा। ट्रंप ने मस्क को एक शानदार व्यक्ति कहा।