बांग्लादेश में हिंदुओं के बाद ईसाइयों को बनाया गया निशाना, क्रिसमस पर 17 घरों को फूंका

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बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार जारी है। पहले हिंदुओं पर हमले किए गए और ईसाइयों को निशाना बनाया गया है।बांग्लादेश में क्रिसमस से एक दिन पहले ईसाई समुदाय से जुड़े लोगों के 17 घर जला दिए गए। यह घटना बंदरबन जिले के चटगांव पहाड़ी इलाके में हुई। पीड़ितों का दावा है कि जब वे क्रिसमस के मौके पर प्रार्थना करने के लिए चर्च गए थे, तब मौके का फायदा उठाकर उनके घरों में आग लगाई गई।

बंदरबन में क्रिसमस के रोज क्रिश्चियन त्रिपुरा कम्युनिटी के 17 घरों को जला दिया गया। घरों में आग लगाने के बाद बदमाश भाग गए। आगजनी की ये घटना लामा उपजिला के सराय यूनियन के नोतुन तोंगझिरी त्रिपुरा पारा में दोपहर करीब साढ़े 12 बजे घटी। दरअसल, बदमाशों ने उन घरों को तब आग के हवाले किया जब लोग क्रिसमस मनाने के लिए दूसरे गांव गए थे, क्योंकि उनके इलाके में कोई चर्च नहीं था।

ढाका ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक टोंगजिरी क्षेत्र के न्यू बेटाचरा पारा गांव के लोग चर्च न होने के कारण दूसरी जगह फेस्टिवल को सेलिब्रेट करने के लिए गए हुए थे। तभी उनके पीठ पीछे उपद्रवियों ने गांव में पर हमला कर दिया और 17 घरों को पूरी तरह जला दिया। इस हमले में 15 लाख टका से अधिक का नुकसान होने का अनुमान है।

पहले से दी जा रही थीं धमकियां

न्यू बेटाचरा पारा गांव के लोगों ने ढाका ट्रिब्यून को बताया कि बीते महीने 17 नवंबर को उपद्रवियों ने उन्हें गांव खाली करने की धमकी दी गई थी। इस पर गंगा मणि त्रिपुरा नामक व्यक्ति ने 15 आरोपियों के खिलाफ लामा पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी। हालांकि, पुलिस की ओर से कोई कार्रवाई नहीं हुई। अब घर जलने के बाद पीड़ित परिवार खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर हैं।

4 महीने से रह रहे थे ईसाई समुदाय के लोग

जानकारी के मुताबिक त्रिपुरा समुदाय के 19 परिवार बंदरबन (चटगांव पहाड़ी इलाका) के लामा सराय के एसपी गार्डन में रहते थे। यह गार्डन हसीना सरकार में बड़े अधिकारी रहे बेनजीर अहमद का है। इसे एसपी गार्डन के नाम से जाना जाता है।

5 अगस्त के बाद बेनजीर अहमद और उनके परिवार के लोग यह इलाका छोड़कर चले गए थे। इसके बाद यहां त्रिपुरा समुदाय के 19 परिवार आकर रहने लगे। कल शाम जब सभी लोग क्रिसमस के मौके पर पड़ोस के चर्च में प्रार्थना करने गए तो उपद्रवियों ने खालीपन का फायदा उठाकर घरों को जला दिया।

वहीं, ईसाई समुदाय से जुड़े लोगों ने बताया कि ये उनकी ही जमीन है। पहले इस इलाके का नाम तंगझिरी पारा था। इस पर बेनजीर अहमद के लोगों ने कब्जा कर लिया था और यहां का नाम बदलकर एसपी गार्डन कर दिया था।

बीजेपी में नीतीश को भारत रत्न देने की उठी मांग,यहां पक रही है कौन सी सियासी खिचड़ी!

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केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने नीतीश कुमार और नवीन पटनायक के लिए भारत रत्न की मांग की है। नीतीश कुमार के लिए देश का सर्वोच्च सम्मान मांग रहे ये वही गिरिराज सिंह जो कभी नीतिश कुमार को लेकर काफी मुखर रहे हैं। गिरिराज सिंह है जो अभी कुछ ही समय पहले नीतीश कुमार को पानी पी-पीकर कोस रहे थे जब वे तेजस्वी के साथ सरकार में थे, उनके सुर बदल गए हैं। नीतीश कुमार के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी पर संदेह के बादल के बीच केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के ताजा बयान से अटकलों का बाजार गर्म हो गया है। दरअसल बिहार की सियासत को जानने वाले और नीतीश कुमार के दांव को परखने वाले बखूबी जानते हैं कि यह भी एक राजनीतिक रणनीति है। पूछे जा रहे हैं कि गिरिराज का ये बयान नीतीश कुमार को उनकी राजनीति के आखिरी स्टेप की और इशारा तो नहीं कर रहे हैं? या फिर बिहार की कुर्सी के प्रति मोह त्यागने का सुरक्षित राह का दर्शन करा रहे हैं?

केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भारत रत्न दिए जाने की मांग करते हुए कहा कि नीतीश कुमार इतने साल से बिहार के सीएम हैं। इनके शासन में विकास की लहर तेज गति से बही है। इसलिए नीतीश कुमार को पुरस्कृत किया जाए, उन्हें भारत रत्न दिया जाए। हालांकि बड़े सलीके से इस बयान को कहीं एग्जिट प्लान न मान लिया जाए। इससे बचते हुए यह भी कहा कि आगामी विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। ये भी कह डाला कि अगला सीएम भी नीतीश कुमार ही होंगे।

गिरिराज सिंह ने ये बयान तब दिया है, जब 25 दिसंबर को ही पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की 100वीं जयंती पर सुशासन दिवस के मौके पर बिहार के डिप्टी सीएम विजय सिन्हा ने एक अहम बयान दिया। उन्होंने कहा कि जब तक बिहार में बीजेपी की सरकार नहीं बनेगी, अटलजी को सच्ची श्रद्धांजलि नहीं दी जा सकती। इसके बाद सवाल उठने लगा कि क्या बिहार में बीजेपी कुछ और भी सोच रही है?

वहीं, खबरें ये भी हैं कि नीतीश कुमार कुठ तो नया दांव चल रहे हैं। कहा जा रहा है कि तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार की सीक्रेट मुलाकात हुई है। यह कितना सही है ये तो वे दोनों ही जानते होंगे। लेकिन इससे इतर तेजस्वी लगातार आरोप लगा रहे हैं। उन्होंने कहा कि बिहार सरकार पर बीजेपी का नियंत्रण हो चुका है और मुख्यमंत्री कार्यालय के चार करीबी अधिकारी सीधे अमित शाह के संपर्क में हैं। तेजस्वी के इन आरोपों ने बीजेपी-जेडीयू गठबंधन में खटास की अटकलों को हवा दी है। यह भी कहा जा रहा है कि बीजेपी बिहार में महाराष्ट्र जैसी रणनीति अपना सकती है, जहां मुख्यमंत्री का चेहरा बदले बिना चुनाव लड़ा गया था।

तेजस्वी यादव ने यह भी कहा कि नीतीश कुमार अब पूरी तरह बीजेपी के इशारों पर चल रहे हैं। उन्हें मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने उनकी सत्ता को कमजोर कर दिया है। बिहार की जनता यह सब देख रही है और आने वाले चुनाव में इसका जवाब देगी।

बीते दिनों से यह कयास लगाए जा रहे हैं कि नीतीश कुमार नाराज हैं। एनडीए से नाराज हैं, भाजपा से नाराज हैं। तो क्या वास्तव में नीतीश कुमार नाराज हैं, जिन्हें भाजपा मनाने की कोशिश कर रही है। नीतीश कुमार को भारत रत्न दिये जाने की गिरिराज सिंह की मांग को इसी कवायद का हिस्सा कहा जा रहा है।राजनीतिक एक्सपर्ट्स यह जरुर मान रहे हैं कि गिरिराज सिंह को नीतीश के लिए भारत रत्न की मांग करनी पड़ गई, ये किसी भी तरह से नहीं पच रहा है। कुछ ना कुछ तो जरूर हलचल है।

कर्नाटक के बेलगावी में आज कांग्रेस का दो दिवसीय महाधिवेशन, जानें दिल्ली से दूर हो रही ये बैठक क्यों है खास?

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कर्नाटक के बेलगावी में आज से कांग्रेस का दो दिन चलने वाला अधिवेशन शुरू हो रहा है। ये अधिवेशन 1924 में हुए कांग्रेस के 39वें अधिवेशन के 100 साल पूरे होने के मौके पर रखा गया है। बेलगावी में ही 100 साल पहले महात्मा गांधी ने कांग्रेस वर्किंग कमेटी की अध्यक्षता की थी। कांग्रेस का यह ऐतिहासिक अधिवेशन 26 और 27 दिसंबर 1924 को किया गया था। महात्मा गांधी के ज़रिए कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभालने की 100वीं सालगिरह के मौके पर पार्टी वर्किंग कमेटी की एक खास मीटिंग बुलाई है।

कर्नाटक के बेलगावी में दो दिवसीय बैठक में कांग्रेस भाजपा को कई सारी मुद्दों पर घेरने की रणनीति तैयार करने वाली है। इसमें प्रमुख तौर पर आंबेडकर मुद्दे को लेकर भाजपा को घेरने की रणनीति शामिल है।कांग्रेस के महासचिव संगठन केसी वेणुगोपाल ने 24 दिसंबर को कहा था कि बेलगावी में होने जा रही बैठक में डॉ. आंबेडकर के अपमान का मुद्दा जोर-शोर से उठेगा।कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कहा था कि कांग्रेस गृह मंत्री अमित शाह द्वारा बीआर आंबेडकर के अपमान के खिलाफ आंबेडकर सम्मान सप्ताह मना रही है। इस मुद्दे का एक ही समाधान है कि गृह मंत्री को बर्खास्त किया जाए और उन्हें अपनी टिप्पणी के लिए माफी मांगनी चाहिए। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे को बेलगावी में जोरदार तरीके से उठाया जाएगा और भविष्य में इसे आगे बढ़ाने के तरीकों पर भी विचार-विमर्श किया जाएगा। बैठक में दो प्रस्ताव पारित किए जाएंगे।

कांग्रेस देश में 'नव सत्याग्रह' की शुरुआत करेगी

आज से हो रहे अधिवेशन में कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे, लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी, वायनाड से सांसद प्रियंका गांधी, सोनिया गांधी समेत लगभग 150 हस्तियों को आमंत्रित किया गया है। कांग्रेस महासविच केसी वेणुगोपाल ने कहा कि इस अधिवेशन में कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक होगी। इसके साथ ही कांग्रेस देश में 'नव सत्याग्रह' की शुरुआत करेगी।

बेलगावी अधिवेशन का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अहम स्थान

1924 में बेलगावी में हुए अधिवेशन को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक अहम लम्हे के तौर पर देखा जाता है।इस अधिवेशन के दौरान गांधीजी ने चरखे पर सूत कातने की अपील की और असहयोग का भी ऐलान किया, जो स्वतंत्रता-पूर्व भारत में एक बड़ा आंदोलन बन गया। उस ऐतिहासिक अधिवेशन के मुख्य आयोजक गंगाधर राव देशपांडे थे, जिन्हें कर्नाटक का खादी भगीरथ कहा जाता था। वे बेलगावी में स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूत थे। बेलगावी को उस समय बेलगाम के नाम से जाना जाता था। ऐसा कहा जाता है कि इस अधिवेशन में 70,000 से ज्यादा लोग इकट्ठा हुए थे, जो आजादी से पहले के भारत के लिए इतनी बड़ी संख्या थी कि उस समय तक कभी इकट्ठा नहीं हुई थी। बेलगावी के तिलकवाड़ी में यह अधिवेशन आयोजित किया गया था। इस अधिवेशन की वजह से, विजयनगर साम्राज्य के नाम पर इस इलाके का नाम विजयनगर रखा गया। अधिवेशन में हिस्सा लेने वालों को पानी की आपूर्ति करने के लिए वहां एक कुआं भी खोदा गया था, जिसका नाम पंपा सरोवर रखा गया, जो विजयनगर राजवंश की राजधानी हम्पी की एक ऐतिहासिक जगह है।

भारत से टकराव के मूड में है बांग्लादेश? हसीना के तख्तापलट के बाद संबंधों पर पड़ा असर

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भारत और बांग्लादेश के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है। शेख हसीने के तख्तापलट के बाद बांग्लादेश और भारत के रिश्तों में तल्खियां बढ़ती ही जा रही है। शेख हसीने के बाद बांग्लादेश की सत्ता संभाल रहे मोहम्‍मद यूनुस की कारगुजारियां से और बढ़ा रही हैं। वहां ह‍िन्‍दुओं पर हमले हुए तो बांग्‍लादेश सरकार चुप रही। वहां के नेता भारत के ख‍िलाफ अनर्गल बयानबाजी करते रहे, फ‍िर भी मुहम्‍मद यूनुस कुछ नहीं बोले। उन्‍हीं की सरकार के सलाहकार ने तो भारत के तीन प्रदेशों पर हमले तक की बात कह डाली, लेकिन वहां भी मूनुस की च्पीपी बरकरार रही। अब यूनुस सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के प्रत्‍यर्पण की मांग भारत से कर डाली है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि आख‍िर बांग्‍लादेश भारत के साथ संबंधों को खराब क्यों कर रहा है?

शेख हसीना के सत्‍ता से बाहर होने के बाद बांग्‍लादेश की अंतर‍िम सरकार ने कई ऐसे फैसले ल‍िए, जो भारत विरोधी कहे जा सकते हैं। युनूस जब सरकार के मुख‍िया बने तो पीएम मोदी ने खुद उन्‍हें फोन क‍िया था, लेकिन यूनुस ने न तो प्रधानमंत्री मोदी को फोन किया है और न ही बातचीत के लिए कोई प्रतिनिधिमंडल भारत भेजा। साफ है क‍ि वे रिश्ते खराब करने में जुटे हुए हैं। वहीं, बांग्लादेश में सबसे बड़ा मुद्दा ह‍िन्‍दुओं पर हमले का है। जिसपर भारत के बार-बार अपील के बाद भी पड़ोसी देश की सरकार ने चुप्पी साध रखी है। दूसरा बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच गहरे होते रिश्ते। ज‍िस पाक‍िस्‍तान से बांग्‍लादेश के लोग एक वक्‍त नफरत क‍िया करते थे, अब उसी के साथ बांग्‍लादेश की सरकार गलबह‍ियां कर रही है। उनके नेताओं से रिश्ते बनाए जा रहे हैं। पाकिस्तान से जहाज के कंटेनर लगातार चटगांव बंदरगाह पर आ रहे हैं, जिससे भारत के लिए चिंताएँ बढ़ रही हैं। पाक‍िस्‍तानी आर्मी अब बांग्‍लादेश की आर्मी को ट्रेनिंग देने वाली है।

अब ताजा मामला शेख हसीना के प्रत्‍यर्पण का है। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार की ओर से शेख़ हसीना के प्रत्यर्पण की मांग को उसके तल्ख़ रवैये के रूप में देखा जा रहा है।बांग्लादेश की यह मांग भारत के लिए असहज करने वाली है। शेख हसीना भारत की दोस्त मानी जाती हैं और भारत उन्हें बांग्लादेश भेजने का जोखिम शायद ही उठाए, जब वहां राजनीतिक प्रतिशोध का माहौल है।

भारत के पूर्व डिप्लोमैट राजीव डोगरा मानते हैं कि बांग्लादेश शेख़ हसीना के प्रत्यर्पण की मांग इसलिए कर रहा है क्योंकि हसीना लोकतांत्रिक बांग्लादेश की प्रतीक थीं। डोगरा ने सामाचार एजेंसी पीटीआई से कहा, ''पाकिस्तान के ख़िलाफ़ जो विद्रोह हुआ था, हसीना उसकी भी प्रतीक हैं क्योंकि उनके पिता शेख़ मुजीब-उर रहमान ने इस विद्रोह का नेतृत्व किया था। अब लगता है कि चीज़ें उलटी दिशा में जा रही हैं। अब बांग्लादेश के नए शासक पाकिस्तान से दोस्ती चाहते हैं। बांग्लादेश के मौजूदा शासन के ख़िलाफ शेख हसीना प्रतीक बनी हैं। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार का मकसद यही है कि शेख हसीना उनके क़ब्जे में आ जाएं और जेल में बंद कर मार डालें। शेख हसीना को बांग्लादेश भेजना एक निर्दोष को हथियारों से लैस लोगों के बीच सौंप देना है।

सामरिक मामलों के विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने शेख़ हसीना के प्रत्यर्पण की मांग पर सवाल उठाया है। चेलानी ने एक्स पर लिखा, ''बांग्लादेश में एक ऐसी सरकार है जो हिंसक भीड़ के दम पर सत्ता में है। इस सरकार की कोई संवैधानिक मान्यता नहीं है। ऐसे में उसे भारत से शेख़ हसीना के प्रत्यर्पण की मांग करने का अधिकार नहीं है।''

यह कोई पहली बार नहीं है, जब शेख़ हसीना भारत में निर्वासित ज़िंदगी जी रही हैं। इससे पहले 1975 में वह भारत में निर्वासित ज़िंदगी जी चुकी हैं। तब उनके पिता शेख़ मुजीब-उर रहमान की हत्या हुई थी। वह दौर भी हसीना के लिए त्रासदियों से भरा था। उस दौरान भी बांग्लादेश की सेना और पाकिस्तान में क़रीबी बढ़ने की बात सामने आई थी। ऐसे में हसीना के लिए वहां की व्यवस्था पर भरोसा करना आसान नहीं था। शेख मुजीब-उर रहमान ने अवामी लीग का गठन किया था और हमेशा से लीग की करीबी भारत से रही।हसीना जब भी सत्ता में रहीं भारत से संबंध स्थिर रहे।

डोनाल्ड ट्रंप ने दिया ग्रीनलैंड को कब्जाने का बयान, तो डेनमार्क ने किया बड़े रक्षा पैकेज का ऐलान

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डेनमार्क ने ग्रीनलैंड के लिए रक्षा खर्च में भारी वृद्धि की घोषणा की, यह घोषणा अमेरिका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा आर्कटिक क्षेत्र को खरीदने के आह्वान को दोहराने के कुछ ही घंटों बाद की गई।डेनमार्क के रक्षा मंत्री ट्रॉल्स पॉल्सन ने कहा कि यह पैकेज कम से कम 1.5 बिलियन डॉलर का होगा। रक्षा मंत्री पॉल्सन ने कहा कि इस पैकेज के तहत दो नए निरीक्षण जहाज, दो नए लंबी दूरी के ड्रोन और दो अतिरिक्त डॉग स्लेज टीमें खरीदी जाएंगी।

दरअसल, पिछले सप्ताह नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान दिए गए एक सुझाव को दोहराया। जिसमें उन्होंने कहा था कि वाशिंगटन डेनमार्क से ग्रीनलैंड खरीद सकता है, जो पिछले 300 वर्षों से इस क्षेत्र का नियंत्रण रखता है। अपने ट्रुथ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ट्रंप ने लिखा कि अमेरिका को राष्ट्रीय सुरक्षा और स्वतंत्रता के लिए दुनियाभर में स्वायत्त क्षेत्रों का अधिग्रहण करना चाहिए। अमेरिका को लगता है कि ग्रीनलैंड का स्वामित्व और नियंत्रण एक परम आवश्यकता है।

डेनमार्क सरकार ने ट्रंप के आर्कटिक क्षेत्र पर नए सिरे से जोर देने के बाद से ग्रीनलैंड को अब तक का सबसे बड़ा रक्षा खर्च बढ़ाकर जवाब दिया है। ट्रंप के इस बयान के कुछ घंटों बाद ही डेनमार्क ने ग्रीनलैंड को लेकर रक्षा खर्च बढ़ाने की घोषणा कर दी। डेनमार्क के रक्षा मंत्री ने डिफेंस पैकेज के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि यह कम से कम 1.5 अरब डॉलर (127.89 अरब भारतीय रुपये) की राशि होगी। उन्होंने पैकेज की घोषणा को समय की विडंबना बताया।

पॉल्सन ने कहा कि पैकेज से दो नए निरीक्षण जहाज, दो नए लंबी दूरी के ड्रोन और दो अतिरिक्त डॉग स्लेज टीमें खरीदी जा सकेंगी। इसका उद्येश्य ग्रीनलैंड की राजधानी नुउक में आर्कटिक कमांड कर्मचारियों की संख्या बढ़ाना और द्वीप के तीन प्राथमिक नागरिक हवाई अड्डों में से एक को F-35 फाइटर जेट के लिए अपग्रेड करना है। पॉल्सन ने ग्रीनलैंड की योजना में कमियों को स्वीकार करते हुए कहा, हमने कई वर्षों से आर्कटिक में पर्याप्त निवेश नहीं किया है। अब हम एक मजबूत उपस्थिति की योजना बना रहे हैं।

अमेरिका के राष्ट्रपति निर्वाचित हुए डोनाल्ड ट्रंप ने डेनमार्क से ग्रीनलैंड खरीदने के अपने पुराने आह्वान को दोहराया है। अपने पहले कार्यकाल के दौरान भी ट्रंप ने इस तरह के विचार का प्रस्ताव रखा था, जिसे डेनमार्क और ग्रीनलैंड के अधिकारियों ने तुरंत खारिज कर दिया था। ग्रीनलैंड को खरीदने में अमेरिका की रुचि 1860 के दशक में राष्ट्रपति एंड्रयू जॉनसन के समय से चली आ रही है

वैसे ट्रंप ने केवल ग्रीनलैंड पर ही योजना नहीं बनाई है। इससे पहले उन्होंने वीकेंड में सुझाव दिया था कि अगर अटलांटिक और प्रशांत महासागरों को जोड़ने वाले पनामा जलमार्ग का उपयोग करने के लिए आवश्यक बढ़ती पोत परिवहन लागत को कम करने के लिए कुछ नहीं किया जाता है, तो उनका देश पनामा नहर पर फिर से नियंत्रण कर सकता है। वह कनाडा को 51वां अमेरिकी राज्य बनाने और कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को ‘ग्रेट स्टेट ऑफ कनाडा’ का ‘गवर्नर’ बनाने का सुझाव भी दे रहे हैं।

36 साल बाद भारत में सलमान रुश्दी की किताब की बिक्री शुरू, राजीव गांधी सरकार ने लगाया था बैन

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ब्रिटिश-भारतीय उपन्यासकार सलमान रुश्दी की विवादास्पद किताब 'द सैटेनिक वर्सेस' की 36 साल बाद भारत में बिक्री शुरू हो गई है। एक बार फिर दिल्ली के बाजारों में यह किताब दिखाई दी। इस किताब को साल 1988 में बैन कर दिया गया था। मुस्लिम संगठनों ने इस किताब पर ऐतराज जताया था। जिसके बाद राजीव गांधी सरकार ने इस किताब पर प्रतिबंध लगाया था। अब कोर्ट ने बुक पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया। यह किताब दिल्ली-एनसीआर के बहरीसन्स बुकसेलर्स स्टोर्स में ही उपलब्ध है।

दिल्ली हाई कोर्ट ने किताब के आयात पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई बंद कर दी थी। दरअसल सरकार उस अधिसूचना को पेश नहीं कर सकी जिसके आधार पर प्रतिबंध लगाया गया था। 5 नवंबर को भारत में पुस्तक के आयात प्रतिबंध को चुनौती देने वाले 2019 के एक मामले की सुनवाई हुई। इस सुनवाई के दौरान भारत सरकार ने दिल्ली हाई कोर्ट को बताया कि आयात प्रतिबंध आदेश मिल नहीं रहा है, इसलिए इसको कोर्ट में पेश नहीं किया जा सका।

इस पर, अदालत ने कहा कि उसके पास “यह मानने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है कि ऐसी कोई अधिसूचना मौजूद ही नहीं है जो किताब पर प्रतिबंध लगाती हो। याचिकाकर्ता संदीपन खान के वकील उद्यम मुखर्जी ने कहा, प्रतिबंध 5 नवंबर को हटा दिया गया है क्योंकि कोई बैन की अधिसूचना नहीं है।

‘द सैटेनिक वर्सेज’ सितंबर 1988 में प्रकाशित हुई थी, लेकिन पब्लिश होने के कुछ समय बाद ही ईशनिंदा को लेकर यह किताब वैश्विक विवाद में घिर गई, जिसमें कथित तौर पर पैगंबर मोहम्मद पर कुछ अंशों को “ईशनिंदा” बताया गया था। दुनिया भर के मुस्लिम संगठनों ने इस किताब को ईशनिंदा मानते हुए विरोध किया था।

इस किताब पर प्रतिबंध के बाद ईरानी नेता रुहोल्लाह खोमेनी ने रुश्दी की हत्या का फतवा जारी किया था। जिसमें मुसलमानों से उनकी हत्या करने का आह्वान किया गया था। रुश्दी को लगभग 10 साल तक छिपकर रहना पड़ा था। अगस्त 2022 में, सलमान रुशदी की किताब के खिलाफ लोगों में इतना आक्रोश बढ़ गया था कि न्यूयॉर्क में एक व्याख्यान के दौरान मंच पर उन पर चाकू से हमला किया गया था। कट्टरपंथी हादी मटर ने रुश्दी पर हमला किया था। इस हमले में रुश्दी की एक आंख की रोशनी चली गई थी।

इस किताब के सामने आने के बाद मुस्लिम समुदाय में आक्रोश था और इसी के चलते राजीव गांधी की सरकार ने इस किताब के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था।

कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया के नाम पर रोड का नामकरण, जेडीएस ने बताया राज्य का अपमान

#proposal_to_name_mysuru_road_after_siddaramaiah_opposition_parties_raised_questions

मैसूरु नगर निगम द्वारा प्रस्तुत किए गए उस प्रस्ताव की निंदा की जा रही है जिसमें एक सड़क का नाम कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया के नाम पर रखने की बात कही गई है। मैसूर नगर निगम परिषद ने चामराजा कांग्रेस विधायक हरीश गौड़ा के सुझाव पर लक्ष्मी वेंकटरमणस्वामी मंदिर से आउटर रिंग रोड जंक्शन तक केआरएस रोड के एक हिस्से का नाम सिद्धारमैया आरोग्य मार्ग रखने का प्रस्ताव 22 नवंबर को पारित किया था। जेडीएस ने केआरएस रोड का नाम सिद्धारमैया आरोग्य मार्ग रखे जाने के कदम को निंदनीय करार दिया।

जेडीएस ने एक्स पर पोस्ट में लिखा कि सिद्धारमैया मुडा मामले में आरोपी हैं। उनके खिलाफ लोकायुक्त जांच चल रही है। मैसूर नगर निगम में कोई निर्वाचित बोर्ड नहीं है। कांग्रेस सरकार की ओर से नगर निगम में नियुक्त किए गए अधिकारियों ने अपना ऋण चुकाने के लिए सिद्धारमैया के नाम पर सड़क का नाम रखने का फैसला किया है। मुडा घोटाले में शामिल मुख्यमंत्री के नाम पर सड़क का नाम रखना ऐतिहासिक शहर मैसूर और पूरे राज्य के साथ विश्वासघात और अपमान है।

सूचना का अधिकार (आरटीआई) कार्यकर्ता स्नेहमयी कृष्णा ने कहा कि जिस सड़क का नाम सिद्धरमैया के नाम पर प्रस्तावित है, वह ‘ऐतिहासिक’ है। उन्होंने कहा कि महाराजा नलवाड़ी कृष्णराज वाडियार ने टीबी रोग के कारण जान गंवाने वाली अपनी बहन राजकुमारी कृष्णजम्मानी तथा उनके बच्चों की याद में यहां भूमि दान की थी और एक तपेदिक अस्पताल की स्थापना की थी।

कृष्णा ने कहा कि अधिकारियों ने सिद्धारमैया के नाम पर एक सड़क का नाम रखने का फैसला किया है, जो मुडा मामले में आरोपी हैं, जबकि उनके पास ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं है। कई नागरिकों ने इस प्रस्ताव पर अपनी आपत्ति जताई है। मैं इसके खिलाफ कानूनी रूप से भी लड़ रहा हूं। अगर प्रस्ताव वापस नहीं लिया जाता है, तो हम इसे उच्च न्यायालय में चुनौती देंगे और संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करेंगे।

बांग्लादेश की जेल से आया बाहर भारत के खिलाफ आतंकी साजिश रचने वाला, युनूस सरकार ने दिखाई दया*

#bangladesh_released_former_bnp_minister_abdus_salam_accused_for_terror_funding_against_india

बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार के गिरने के बाद से अंतरिम सरकार के चीफ मोहम्मद युनूस एक के बाद एक ऐसे काम कर रहे हैं, जिसपर सवाल उठ रहे हैं। अब युनूस सरकार ने भारत पर हमले के लिए आतंकियों की मदद करने वाले और शेख हसीना की रैली में हमले करवाने वाले पर दया दिखाई है। बांग्लादेश की एक अदालत ने भारत विरोधी आतंकवाद में शामिल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के सदस्य और पूर्व जूनियर मंत्री अब्दुस सलाम पिंटू को 17 सालों के बाद जेल से आजाद कर दिया है।पिंटू की गिनती खालिदा जिया के सबसे करीबी नेताओं में होती है। अब्दुस सलाम पिंटू का रिहा होना भारत और शेख हसीना दोनों के लिए चिंता की बात है।

अब्दुस सलाम पिंटू को 17 साल बाद जेल से रिहा कर दिया गया। अब्दुस सलाम ने भारत के खिलाफ आतंकी हमले करने में पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लामी (हूजी) की मदद की थी। उसे 2004 में प्रधानमंत्री शेख हसीना पर ग्रेनेड हमले की साजिश रचने के लिए मौत की सजा सुनाई गई थी। अब्दुस सलाम ने पीओके में हूजी के हथियारों की खरीद, भर्ती और शिविरों में प्रशिक्षण कार्यक्रमों में मदद करके भारत में आतंकी हमलों में अहम भूमिका निभाई थी। उस पर हूजी को मदरसा छात्रों को हथियारों और विस्फोटकों का प्रशिक्षण देने और कश्मीर में आतंकवादियों के लिए धन और हथियार जुटाने में मदद करने का आरोप है।

अब्दुस सलाम पिंटू बांग्लादेश का शिक्षा मंत्री रह चुका है। खालिदा जिया की सरकार में वो इस पद पर था। सरकार में रहते हुए उसने भारत और हसीना के खिलाफ कई साजिश रची। आतंकियों को फंडिंग करते इसे गिरफ्तार किया गया था। पाकिस्तान के एक आतंकी संगठन को वह फंडिंग करता था, जिससे उसके आतंकी कश्मीर के रास्ते भारत को नुकसान पहुंचाएं। जब जांच हुई तब मालूम पड़ा कि वह ना सिर्फ फंडिंग करता था बल्कि आतंकियों को हथियार और सूचना भी देता था।

21 अगस्त, 2004 को हसीना की रैली में उसने हमला करवाया था, जिसमें 24 लोगों की मौत हुई थी। इस हमले में शेख हसीना भी घायल हुई थीं। 2008 में पिंटू को गिरफ्तार किया गया था। 2018 में उसे मौत की सजा सुनाई गई थी।

पीटीआई की रिपोर्ट में मुताबिक, 2004 के ग्रेनेड हमले के मामले के जांच अधिकारी ने 2021 में ढाका के एक कोर्ट में बताया था कि अब्दुस सलाम पिंटू ने हूजी को भारत के खिलाफ आतंकी हमला करने के लिए हथियार जुटाने में मदद की थी। जांच अधिकारी ने 2011 में अदालत को यह भी जानकारी दी थी कि अब्दुस सलाम और बाबर ने कई युवाओं को हथियार और बम चलाने का प्रशिक्षण दिया था, जिसमें विशेष रूप से मदरसा के छात्र शामिल थे।

डेली स्टार ने 2021 में रिपोर्ट के मुताबिक, जांच अधिकारी ने कहा था, "अब्दुस के भर्ती किए गए ज्यादातर लोग पीओके और बांग्लादेश से थे। उन्होंने भारत के कश्मीर में उग्रवादियों के लिए पैसा, हथियार और गोला-बारूद भी जुटाए थे।"

डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से पहले जयशंकर पहुंचे अमेरिका, क्या ट्रंप से होगी मुलाकात?

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अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्‍ट्रपत‍ि डोनाल्‍ड ट्रंप 20 जनवरी को पदभार संभालेंगे। ट्रंप के शपथ ग्रहण से पहले भारत के विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर मंगलवार से अमेरिका की छह दिवसीय यात्रा पर हैं। डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद भारत की ओर से अमेरिका की यह पहली उच्च स्तरीय यात्रा होगी। ऐसे में विदेश मंत्री एस जयशंकर बाइडन प्रशासन के सदस्यों के साथ-साथ ट्रंप 2.0 के प्रमुख सदस्यों से मिलने के लिए अमेरिका के दौरे पर हैं। इस दौरान वह आने वाले प्रशासन की प्राथमिकताओं और अगले चार वर्षों के लिए भारत की अपेक्षाओं पर चर्चा की जा सके।

विदेश मंत्रालय ने उनके दौरे का पूरा कार्यक्रम तो शेयर नहीं क‍िया है, लेकिन सूत्रों के मुता‍बिक, जयशंकर ट्रंप की टीम को भारत की जरूरतें समझाने की कोश‍िश करेंगे। सबसे बड़ा मुद्दा टैर‍िफ को लेकर है। डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले हफ्ते टैर‍िफ को लेकर भारत के प्रति अध‍िक सख्त रुख अपनाने के संकेत द‍िए थे। ट्रंप ने कहा था क‍ि अगर वे हम पर कर लगाते हैं, तो हम भी उन पर उतना ही कर लगाएंगे। उन्‍होंने कहा, ‘म्‍यूचुअल’ शब्द काफी महत्वपूर्ण है। क्योंकि अगर भारत हमसे 100 प्रतिशत टैक्‍स लेता है, तो क्या हम उससे इसके लिए कुछ भी नहीं लेंगे? आप जानते हैं, वे साइकिल भेजते हैं, और हम उन्हें साइकिल भेजते हैं। वे हमसे 100 और 200 फीसदी टैर‍िफ लेते हैं। भारत बहुत ज़्यादा टैक्‍स लेता है। ब्राजील बहुत ज्‍यादा टैक्‍स लेता है। अगर वे हमसे टैक्‍स लेना चाहते हैं, तो ठीक है, लेकिन हम उनसे वही टैक्‍स वसूलेंगे।

विदेश मंत्री जयशंकर प्रमुख द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर चर्चा करने के लिए अपने अमेरिकी समकक्षों से मुलाकात करेंगे। जयशंकर के एजेंडा में क्वाड समिट शामिल है। भारत 2025 में इसकी मेजबानी करने वाला है। आईसीईटी, दक्षिण एशिया की स्थिति, खालिस्तानी उग्रवाद और रक्षा साझेदारी इसमें प्रमुख मुद्दा रहेगा। ट्रंप टीम के साथ चर्चा, व्यापार और टैरिफ पर राष्ट्रपति के फोकस के अलावा, इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष और रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में प्रौद्योगिकी, भू-राजनीति और भू-अर्थशास्त्र पर साझेदारी के इर्द-गिर्द केंद्रित रहने की संभावना है। विदेश मंत्रालय ने जानकारी दी है कि एस जयशंकर अमेरिका में स्थित भारत के महावाणिज्य दूत के एक सम्मेलन की भी अध्यक्षता करेंगे।

इसी साल जून में मोदी सरकार के सत्‍ता में आने के बाद जयशंकर की यह दूसरी अमेर‍िकी यात्रा है. जयशंकर ने पिछली बार अमेरिका का दौरा तब किया था जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रपति जो बा‍इडेन, ऑस्ट्रेलियाई पीएम एंथनी अल्बानी और पूर्व जापानी समकक्ष फुमियो किशिदा के साथ क्वाड लीडर्स समिट में भाग लेने के लिए अमेर‍िका गए थे. तब बा‍इडेन ने डेलावेयर के विलमिंगटन में अपने निजी आवास पर पीएम मोदी का गर्मजोशी से स्वागत किया था

कजाकिस्तान में यात्री विमान हादसे का शिकार, 72 लोगों को ले जा रहा प्‍लेन जमीन से टकराया, बना आग का गोला

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अजरबैजान से रूस जा रही एक फ्लाइट कजाखस्तान में क्रैश हो गई है। फ्लाइट में 72 लोग सवार थे। विमान अजरबैजान के बाकू से रूस के चेचन्या की राजधानी ग्रोजनी जा रहा था। पक्षियों के झुंड से टकराने से विमान को नुकसान पहुंचा। इमरजेंसी लैंडिंग की कोशिश के दौरान अक्ताऊ शहर के पास रनवे पर ये हादसा हुआ।

रूसी समाचार एजेंसियों ने कजाकिस्तान के आपातकालीन मंत्रालय के हवाले से यह जानकारी दी है। रिपोर्ट के अनुसार, अजरबैजानी एयरलाइंस के विमान में 67 यात्री और चालक दल के 5 सदस्य सवार थे। हादसे में कई लोगों के मरने की आशंका जताई जा रही है। घटना का एक वीडियो भी सामने आया है, जिसमें प्लेन तेजी से नीचे आते और जमीन से टकराने के बाद भयंकर आग का गोला उठते दिखाई दे रहा है।

कजाकिस्तान के आपातकालीन मंत्रालय के हवाले से रिपोर्ट में बताया गया है कि विमान हादसे की जगह पर आग को काबू पाने के लिए अग्निशमन की टीम को तैनात किया गया है। फिलहाल, पीड़ितों के बारे में जानकारी जुटाई जा रही है। शुरुआती जानकारी के अनुसार, हादसे में कुछ लोग जीवित बचे हैं।

कजाकिस्तान के परिवहन मंत्रालय ने बताया कि विमान में अजरबैजान के 37 नागरिक, रूस के 16 और कजाकिस्तान के 6 और किर्गिस्तान के तीन नागरिक सवार थे। कजाकिस्तान सरकार ने स्पष्ट किया कि इस घटना में 25 लोग बच पाए हैं जबकि 42 का अभी तक कुछ पता नहीं चल पाया है। एज़ाल द्वारा एपीए को दी गई जानकारी के अनुसार, "एंब्रेयर 190" विमान एक्टाऊ से 3 किलोमीटर दूर आपातकालीन लैंडिंग करने की कोशिश कर रहा था।