भारत से टकराव के मूड में है बांग्लादेश? हसीना के तख्तापलट के बाद संबंधों पर पड़ा असर

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भारत और बांग्लादेश के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है। शेख हसीने के तख्तापलट के बाद बांग्लादेश और भारत के रिश्तों में तल्खियां बढ़ती ही जा रही है। शेख हसीने के बाद बांग्लादेश की सत्ता संभाल रहे मोहम्‍मद यूनुस की कारगुजारियां से और बढ़ा रही हैं। वहां ह‍िन्‍दुओं पर हमले हुए तो बांग्‍लादेश सरकार चुप रही। वहां के नेता भारत के ख‍िलाफ अनर्गल बयानबाजी करते रहे, फ‍िर भी मुहम्‍मद यूनुस कुछ नहीं बोले। उन्‍हीं की सरकार के सलाहकार ने तो भारत के तीन प्रदेशों पर हमले तक की बात कह डाली, लेकिन वहां भी मूनुस की च्पीपी बरकरार रही। अब यूनुस सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के प्रत्‍यर्पण की मांग भारत से कर डाली है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि आख‍िर बांग्‍लादेश भारत के साथ संबंधों को खराब क्यों कर रहा है?

शेख हसीना के सत्‍ता से बाहर होने के बाद बांग्‍लादेश की अंतर‍िम सरकार ने कई ऐसे फैसले ल‍िए, जो भारत विरोधी कहे जा सकते हैं। युनूस जब सरकार के मुख‍िया बने तो पीएम मोदी ने खुद उन्‍हें फोन क‍िया था, लेकिन यूनुस ने न तो प्रधानमंत्री मोदी को फोन किया है और न ही बातचीत के लिए कोई प्रतिनिधिमंडल भारत भेजा। साफ है क‍ि वे रिश्ते खराब करने में जुटे हुए हैं। वहीं, बांग्लादेश में सबसे बड़ा मुद्दा ह‍िन्‍दुओं पर हमले का है। जिसपर भारत के बार-बार अपील के बाद भी पड़ोसी देश की सरकार ने चुप्पी साध रखी है। दूसरा बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच गहरे होते रिश्ते। ज‍िस पाक‍िस्‍तान से बांग्‍लादेश के लोग एक वक्‍त नफरत क‍िया करते थे, अब उसी के साथ बांग्‍लादेश की सरकार गलबह‍ियां कर रही है। उनके नेताओं से रिश्ते बनाए जा रहे हैं। पाकिस्तान से जहाज के कंटेनर लगातार चटगांव बंदरगाह पर आ रहे हैं, जिससे भारत के लिए चिंताएँ बढ़ रही हैं। पाक‍िस्‍तानी आर्मी अब बांग्‍लादेश की आर्मी को ट्रेनिंग देने वाली है।

अब ताजा मामला शेख हसीना के प्रत्‍यर्पण का है। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार की ओर से शेख़ हसीना के प्रत्यर्पण की मांग को उसके तल्ख़ रवैये के रूप में देखा जा रहा है।बांग्लादेश की यह मांग भारत के लिए असहज करने वाली है। शेख हसीना भारत की दोस्त मानी जाती हैं और भारत उन्हें बांग्लादेश भेजने का जोखिम शायद ही उठाए, जब वहां राजनीतिक प्रतिशोध का माहौल है।

भारत के पूर्व डिप्लोमैट राजीव डोगरा मानते हैं कि बांग्लादेश शेख़ हसीना के प्रत्यर्पण की मांग इसलिए कर रहा है क्योंकि हसीना लोकतांत्रिक बांग्लादेश की प्रतीक थीं। डोगरा ने सामाचार एजेंसी पीटीआई से कहा, ''पाकिस्तान के ख़िलाफ़ जो विद्रोह हुआ था, हसीना उसकी भी प्रतीक हैं क्योंकि उनके पिता शेख़ मुजीब-उर रहमान ने इस विद्रोह का नेतृत्व किया था। अब लगता है कि चीज़ें उलटी दिशा में जा रही हैं। अब बांग्लादेश के नए शासक पाकिस्तान से दोस्ती चाहते हैं। बांग्लादेश के मौजूदा शासन के ख़िलाफ शेख हसीना प्रतीक बनी हैं। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार का मकसद यही है कि शेख हसीना उनके क़ब्जे में आ जाएं और जेल में बंद कर मार डालें। शेख हसीना को बांग्लादेश भेजना एक निर्दोष को हथियारों से लैस लोगों के बीच सौंप देना है।

सामरिक मामलों के विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने शेख़ हसीना के प्रत्यर्पण की मांग पर सवाल उठाया है। चेलानी ने एक्स पर लिखा, ''बांग्लादेश में एक ऐसी सरकार है जो हिंसक भीड़ के दम पर सत्ता में है। इस सरकार की कोई संवैधानिक मान्यता नहीं है। ऐसे में उसे भारत से शेख़ हसीना के प्रत्यर्पण की मांग करने का अधिकार नहीं है।''

यह कोई पहली बार नहीं है, जब शेख़ हसीना भारत में निर्वासित ज़िंदगी जी रही हैं। इससे पहले 1975 में वह भारत में निर्वासित ज़िंदगी जी चुकी हैं। तब उनके पिता शेख़ मुजीब-उर रहमान की हत्या हुई थी। वह दौर भी हसीना के लिए त्रासदियों से भरा था। उस दौरान भी बांग्लादेश की सेना और पाकिस्तान में क़रीबी बढ़ने की बात सामने आई थी। ऐसे में हसीना के लिए वहां की व्यवस्था पर भरोसा करना आसान नहीं था। शेख मुजीब-उर रहमान ने अवामी लीग का गठन किया था और हमेशा से लीग की करीबी भारत से रही।हसीना जब भी सत्ता में रहीं भारत से संबंध स्थिर रहे।

डोनाल्ड ट्रंप ने दिया ग्रीनलैंड को कब्जाने का बयान, तो डेनमार्क ने किया बड़े रक्षा पैकेज का ऐलान

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डेनमार्क ने ग्रीनलैंड के लिए रक्षा खर्च में भारी वृद्धि की घोषणा की, यह घोषणा अमेरिका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा आर्कटिक क्षेत्र को खरीदने के आह्वान को दोहराने के कुछ ही घंटों बाद की गई।डेनमार्क के रक्षा मंत्री ट्रॉल्स पॉल्सन ने कहा कि यह पैकेज कम से कम 1.5 बिलियन डॉलर का होगा। रक्षा मंत्री पॉल्सन ने कहा कि इस पैकेज के तहत दो नए निरीक्षण जहाज, दो नए लंबी दूरी के ड्रोन और दो अतिरिक्त डॉग स्लेज टीमें खरीदी जाएंगी।

दरअसल, पिछले सप्ताह नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान दिए गए एक सुझाव को दोहराया। जिसमें उन्होंने कहा था कि वाशिंगटन डेनमार्क से ग्रीनलैंड खरीद सकता है, जो पिछले 300 वर्षों से इस क्षेत्र का नियंत्रण रखता है। अपने ट्रुथ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ट्रंप ने लिखा कि अमेरिका को राष्ट्रीय सुरक्षा और स्वतंत्रता के लिए दुनियाभर में स्वायत्त क्षेत्रों का अधिग्रहण करना चाहिए। अमेरिका को लगता है कि ग्रीनलैंड का स्वामित्व और नियंत्रण एक परम आवश्यकता है।

डेनमार्क सरकार ने ट्रंप के आर्कटिक क्षेत्र पर नए सिरे से जोर देने के बाद से ग्रीनलैंड को अब तक का सबसे बड़ा रक्षा खर्च बढ़ाकर जवाब दिया है। ट्रंप के इस बयान के कुछ घंटों बाद ही डेनमार्क ने ग्रीनलैंड को लेकर रक्षा खर्च बढ़ाने की घोषणा कर दी। डेनमार्क के रक्षा मंत्री ने डिफेंस पैकेज के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि यह कम से कम 1.5 अरब डॉलर (127.89 अरब भारतीय रुपये) की राशि होगी। उन्होंने पैकेज की घोषणा को समय की विडंबना बताया।

पॉल्सन ने कहा कि पैकेज से दो नए निरीक्षण जहाज, दो नए लंबी दूरी के ड्रोन और दो अतिरिक्त डॉग स्लेज टीमें खरीदी जा सकेंगी। इसका उद्येश्य ग्रीनलैंड की राजधानी नुउक में आर्कटिक कमांड कर्मचारियों की संख्या बढ़ाना और द्वीप के तीन प्राथमिक नागरिक हवाई अड्डों में से एक को F-35 फाइटर जेट के लिए अपग्रेड करना है। पॉल्सन ने ग्रीनलैंड की योजना में कमियों को स्वीकार करते हुए कहा, हमने कई वर्षों से आर्कटिक में पर्याप्त निवेश नहीं किया है। अब हम एक मजबूत उपस्थिति की योजना बना रहे हैं।

अमेरिका के राष्ट्रपति निर्वाचित हुए डोनाल्ड ट्रंप ने डेनमार्क से ग्रीनलैंड खरीदने के अपने पुराने आह्वान को दोहराया है। अपने पहले कार्यकाल के दौरान भी ट्रंप ने इस तरह के विचार का प्रस्ताव रखा था, जिसे डेनमार्क और ग्रीनलैंड के अधिकारियों ने तुरंत खारिज कर दिया था। ग्रीनलैंड को खरीदने में अमेरिका की रुचि 1860 के दशक में राष्ट्रपति एंड्रयू जॉनसन के समय से चली आ रही है

वैसे ट्रंप ने केवल ग्रीनलैंड पर ही योजना नहीं बनाई है। इससे पहले उन्होंने वीकेंड में सुझाव दिया था कि अगर अटलांटिक और प्रशांत महासागरों को जोड़ने वाले पनामा जलमार्ग का उपयोग करने के लिए आवश्यक बढ़ती पोत परिवहन लागत को कम करने के लिए कुछ नहीं किया जाता है, तो उनका देश पनामा नहर पर फिर से नियंत्रण कर सकता है। वह कनाडा को 51वां अमेरिकी राज्य बनाने और कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को ‘ग्रेट स्टेट ऑफ कनाडा’ का ‘गवर्नर’ बनाने का सुझाव भी दे रहे हैं।

36 साल बाद भारत में सलमान रुश्दी की किताब की बिक्री शुरू, राजीव गांधी सरकार ने लगाया था बैन

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ब्रिटिश-भारतीय उपन्यासकार सलमान रुश्दी की विवादास्पद किताब 'द सैटेनिक वर्सेस' की 36 साल बाद भारत में बिक्री शुरू हो गई है। एक बार फिर दिल्ली के बाजारों में यह किताब दिखाई दी। इस किताब को साल 1988 में बैन कर दिया गया था। मुस्लिम संगठनों ने इस किताब पर ऐतराज जताया था। जिसके बाद राजीव गांधी सरकार ने इस किताब पर प्रतिबंध लगाया था। अब कोर्ट ने बुक पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया। यह किताब दिल्ली-एनसीआर के बहरीसन्स बुकसेलर्स स्टोर्स में ही उपलब्ध है।

दिल्ली हाई कोर्ट ने किताब के आयात पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई बंद कर दी थी। दरअसल सरकार उस अधिसूचना को पेश नहीं कर सकी जिसके आधार पर प्रतिबंध लगाया गया था। 5 नवंबर को भारत में पुस्तक के आयात प्रतिबंध को चुनौती देने वाले 2019 के एक मामले की सुनवाई हुई। इस सुनवाई के दौरान भारत सरकार ने दिल्ली हाई कोर्ट को बताया कि आयात प्रतिबंध आदेश मिल नहीं रहा है, इसलिए इसको कोर्ट में पेश नहीं किया जा सका।

इस पर, अदालत ने कहा कि उसके पास “यह मानने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है कि ऐसी कोई अधिसूचना मौजूद ही नहीं है जो किताब पर प्रतिबंध लगाती हो। याचिकाकर्ता संदीपन खान के वकील उद्यम मुखर्जी ने कहा, प्रतिबंध 5 नवंबर को हटा दिया गया है क्योंकि कोई बैन की अधिसूचना नहीं है।

‘द सैटेनिक वर्सेज’ सितंबर 1988 में प्रकाशित हुई थी, लेकिन पब्लिश होने के कुछ समय बाद ही ईशनिंदा को लेकर यह किताब वैश्विक विवाद में घिर गई, जिसमें कथित तौर पर पैगंबर मोहम्मद पर कुछ अंशों को “ईशनिंदा” बताया गया था। दुनिया भर के मुस्लिम संगठनों ने इस किताब को ईशनिंदा मानते हुए विरोध किया था।

इस किताब पर प्रतिबंध के बाद ईरानी नेता रुहोल्लाह खोमेनी ने रुश्दी की हत्या का फतवा जारी किया था। जिसमें मुसलमानों से उनकी हत्या करने का आह्वान किया गया था। रुश्दी को लगभग 10 साल तक छिपकर रहना पड़ा था। अगस्त 2022 में, सलमान रुशदी की किताब के खिलाफ लोगों में इतना आक्रोश बढ़ गया था कि न्यूयॉर्क में एक व्याख्यान के दौरान मंच पर उन पर चाकू से हमला किया गया था। कट्टरपंथी हादी मटर ने रुश्दी पर हमला किया था। इस हमले में रुश्दी की एक आंख की रोशनी चली गई थी।

इस किताब के सामने आने के बाद मुस्लिम समुदाय में आक्रोश था और इसी के चलते राजीव गांधी की सरकार ने इस किताब के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था।

कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया के नाम पर रोड का नामकरण, जेडीएस ने बताया राज्य का अपमान

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मैसूरु नगर निगम द्वारा प्रस्तुत किए गए उस प्रस्ताव की निंदा की जा रही है जिसमें एक सड़क का नाम कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया के नाम पर रखने की बात कही गई है। मैसूर नगर निगम परिषद ने चामराजा कांग्रेस विधायक हरीश गौड़ा के सुझाव पर लक्ष्मी वेंकटरमणस्वामी मंदिर से आउटर रिंग रोड जंक्शन तक केआरएस रोड के एक हिस्से का नाम सिद्धारमैया आरोग्य मार्ग रखने का प्रस्ताव 22 नवंबर को पारित किया था। जेडीएस ने केआरएस रोड का नाम सिद्धारमैया आरोग्य मार्ग रखे जाने के कदम को निंदनीय करार दिया।

जेडीएस ने एक्स पर पोस्ट में लिखा कि सिद्धारमैया मुडा मामले में आरोपी हैं। उनके खिलाफ लोकायुक्त जांच चल रही है। मैसूर नगर निगम में कोई निर्वाचित बोर्ड नहीं है। कांग्रेस सरकार की ओर से नगर निगम में नियुक्त किए गए अधिकारियों ने अपना ऋण चुकाने के लिए सिद्धारमैया के नाम पर सड़क का नाम रखने का फैसला किया है। मुडा घोटाले में शामिल मुख्यमंत्री के नाम पर सड़क का नाम रखना ऐतिहासिक शहर मैसूर और पूरे राज्य के साथ विश्वासघात और अपमान है।

सूचना का अधिकार (आरटीआई) कार्यकर्ता स्नेहमयी कृष्णा ने कहा कि जिस सड़क का नाम सिद्धरमैया के नाम पर प्रस्तावित है, वह ‘ऐतिहासिक’ है। उन्होंने कहा कि महाराजा नलवाड़ी कृष्णराज वाडियार ने टीबी रोग के कारण जान गंवाने वाली अपनी बहन राजकुमारी कृष्णजम्मानी तथा उनके बच्चों की याद में यहां भूमि दान की थी और एक तपेदिक अस्पताल की स्थापना की थी।

कृष्णा ने कहा कि अधिकारियों ने सिद्धारमैया के नाम पर एक सड़क का नाम रखने का फैसला किया है, जो मुडा मामले में आरोपी हैं, जबकि उनके पास ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं है। कई नागरिकों ने इस प्रस्ताव पर अपनी आपत्ति जताई है। मैं इसके खिलाफ कानूनी रूप से भी लड़ रहा हूं। अगर प्रस्ताव वापस नहीं लिया जाता है, तो हम इसे उच्च न्यायालय में चुनौती देंगे और संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करेंगे।

बांग्लादेश की जेल से आया बाहर भारत के खिलाफ आतंकी साजिश रचने वाला, युनूस सरकार ने दिखाई दया*

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बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार के गिरने के बाद से अंतरिम सरकार के चीफ मोहम्मद युनूस एक के बाद एक ऐसे काम कर रहे हैं, जिसपर सवाल उठ रहे हैं। अब युनूस सरकार ने भारत पर हमले के लिए आतंकियों की मदद करने वाले और शेख हसीना की रैली में हमले करवाने वाले पर दया दिखाई है। बांग्लादेश की एक अदालत ने भारत विरोधी आतंकवाद में शामिल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के सदस्य और पूर्व जूनियर मंत्री अब्दुस सलाम पिंटू को 17 सालों के बाद जेल से आजाद कर दिया है।पिंटू की गिनती खालिदा जिया के सबसे करीबी नेताओं में होती है। अब्दुस सलाम पिंटू का रिहा होना भारत और शेख हसीना दोनों के लिए चिंता की बात है।

अब्दुस सलाम पिंटू को 17 साल बाद जेल से रिहा कर दिया गया। अब्दुस सलाम ने भारत के खिलाफ आतंकी हमले करने में पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लामी (हूजी) की मदद की थी। उसे 2004 में प्रधानमंत्री शेख हसीना पर ग्रेनेड हमले की साजिश रचने के लिए मौत की सजा सुनाई गई थी। अब्दुस सलाम ने पीओके में हूजी के हथियारों की खरीद, भर्ती और शिविरों में प्रशिक्षण कार्यक्रमों में मदद करके भारत में आतंकी हमलों में अहम भूमिका निभाई थी। उस पर हूजी को मदरसा छात्रों को हथियारों और विस्फोटकों का प्रशिक्षण देने और कश्मीर में आतंकवादियों के लिए धन और हथियार जुटाने में मदद करने का आरोप है।

अब्दुस सलाम पिंटू बांग्लादेश का शिक्षा मंत्री रह चुका है। खालिदा जिया की सरकार में वो इस पद पर था। सरकार में रहते हुए उसने भारत और हसीना के खिलाफ कई साजिश रची। आतंकियों को फंडिंग करते इसे गिरफ्तार किया गया था। पाकिस्तान के एक आतंकी संगठन को वह फंडिंग करता था, जिससे उसके आतंकी कश्मीर के रास्ते भारत को नुकसान पहुंचाएं। जब जांच हुई तब मालूम पड़ा कि वह ना सिर्फ फंडिंग करता था बल्कि आतंकियों को हथियार और सूचना भी देता था।

21 अगस्त, 2004 को हसीना की रैली में उसने हमला करवाया था, जिसमें 24 लोगों की मौत हुई थी। इस हमले में शेख हसीना भी घायल हुई थीं। 2008 में पिंटू को गिरफ्तार किया गया था। 2018 में उसे मौत की सजा सुनाई गई थी।

पीटीआई की रिपोर्ट में मुताबिक, 2004 के ग्रेनेड हमले के मामले के जांच अधिकारी ने 2021 में ढाका के एक कोर्ट में बताया था कि अब्दुस सलाम पिंटू ने हूजी को भारत के खिलाफ आतंकी हमला करने के लिए हथियार जुटाने में मदद की थी। जांच अधिकारी ने 2011 में अदालत को यह भी जानकारी दी थी कि अब्दुस सलाम और बाबर ने कई युवाओं को हथियार और बम चलाने का प्रशिक्षण दिया था, जिसमें विशेष रूप से मदरसा के छात्र शामिल थे।

डेली स्टार ने 2021 में रिपोर्ट के मुताबिक, जांच अधिकारी ने कहा था, "अब्दुस के भर्ती किए गए ज्यादातर लोग पीओके और बांग्लादेश से थे। उन्होंने भारत के कश्मीर में उग्रवादियों के लिए पैसा, हथियार और गोला-बारूद भी जुटाए थे।"

डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से पहले जयशंकर पहुंचे अमेरिका, क्या ट्रंप से होगी मुलाकात?

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अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्‍ट्रपत‍ि डोनाल्‍ड ट्रंप 20 जनवरी को पदभार संभालेंगे। ट्रंप के शपथ ग्रहण से पहले भारत के विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर मंगलवार से अमेरिका की छह दिवसीय यात्रा पर हैं। डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद भारत की ओर से अमेरिका की यह पहली उच्च स्तरीय यात्रा होगी। ऐसे में विदेश मंत्री एस जयशंकर बाइडन प्रशासन के सदस्यों के साथ-साथ ट्रंप 2.0 के प्रमुख सदस्यों से मिलने के लिए अमेरिका के दौरे पर हैं। इस दौरान वह आने वाले प्रशासन की प्राथमिकताओं और अगले चार वर्षों के लिए भारत की अपेक्षाओं पर चर्चा की जा सके।

विदेश मंत्रालय ने उनके दौरे का पूरा कार्यक्रम तो शेयर नहीं क‍िया है, लेकिन सूत्रों के मुता‍बिक, जयशंकर ट्रंप की टीम को भारत की जरूरतें समझाने की कोश‍िश करेंगे। सबसे बड़ा मुद्दा टैर‍िफ को लेकर है। डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले हफ्ते टैर‍िफ को लेकर भारत के प्रति अध‍िक सख्त रुख अपनाने के संकेत द‍िए थे। ट्रंप ने कहा था क‍ि अगर वे हम पर कर लगाते हैं, तो हम भी उन पर उतना ही कर लगाएंगे। उन्‍होंने कहा, ‘म्‍यूचुअल’ शब्द काफी महत्वपूर्ण है। क्योंकि अगर भारत हमसे 100 प्रतिशत टैक्‍स लेता है, तो क्या हम उससे इसके लिए कुछ भी नहीं लेंगे? आप जानते हैं, वे साइकिल भेजते हैं, और हम उन्हें साइकिल भेजते हैं। वे हमसे 100 और 200 फीसदी टैर‍िफ लेते हैं। भारत बहुत ज़्यादा टैक्‍स लेता है। ब्राजील बहुत ज्‍यादा टैक्‍स लेता है। अगर वे हमसे टैक्‍स लेना चाहते हैं, तो ठीक है, लेकिन हम उनसे वही टैक्‍स वसूलेंगे।

विदेश मंत्री जयशंकर प्रमुख द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर चर्चा करने के लिए अपने अमेरिकी समकक्षों से मुलाकात करेंगे। जयशंकर के एजेंडा में क्वाड समिट शामिल है। भारत 2025 में इसकी मेजबानी करने वाला है। आईसीईटी, दक्षिण एशिया की स्थिति, खालिस्तानी उग्रवाद और रक्षा साझेदारी इसमें प्रमुख मुद्दा रहेगा। ट्रंप टीम के साथ चर्चा, व्यापार और टैरिफ पर राष्ट्रपति के फोकस के अलावा, इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष और रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में प्रौद्योगिकी, भू-राजनीति और भू-अर्थशास्त्र पर साझेदारी के इर्द-गिर्द केंद्रित रहने की संभावना है। विदेश मंत्रालय ने जानकारी दी है कि एस जयशंकर अमेरिका में स्थित भारत के महावाणिज्य दूत के एक सम्मेलन की भी अध्यक्षता करेंगे।

इसी साल जून में मोदी सरकार के सत्‍ता में आने के बाद जयशंकर की यह दूसरी अमेर‍िकी यात्रा है. जयशंकर ने पिछली बार अमेरिका का दौरा तब किया था जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रपति जो बा‍इडेन, ऑस्ट्रेलियाई पीएम एंथनी अल्बानी और पूर्व जापानी समकक्ष फुमियो किशिदा के साथ क्वाड लीडर्स समिट में भाग लेने के लिए अमेर‍िका गए थे. तब बा‍इडेन ने डेलावेयर के विलमिंगटन में अपने निजी आवास पर पीएम मोदी का गर्मजोशी से स्वागत किया था

कजाकिस्तान में यात्री विमान हादसे का शिकार, 72 लोगों को ले जा रहा प्‍लेन जमीन से टकराया, बना आग का गोला

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अजरबैजान से रूस जा रही एक फ्लाइट कजाखस्तान में क्रैश हो गई है। फ्लाइट में 72 लोग सवार थे। विमान अजरबैजान के बाकू से रूस के चेचन्या की राजधानी ग्रोजनी जा रहा था। पक्षियों के झुंड से टकराने से विमान को नुकसान पहुंचा। इमरजेंसी लैंडिंग की कोशिश के दौरान अक्ताऊ शहर के पास रनवे पर ये हादसा हुआ।

रूसी समाचार एजेंसियों ने कजाकिस्तान के आपातकालीन मंत्रालय के हवाले से यह जानकारी दी है। रिपोर्ट के अनुसार, अजरबैजानी एयरलाइंस के विमान में 67 यात्री और चालक दल के 5 सदस्य सवार थे। हादसे में कई लोगों के मरने की आशंका जताई जा रही है। घटना का एक वीडियो भी सामने आया है, जिसमें प्लेन तेजी से नीचे आते और जमीन से टकराने के बाद भयंकर आग का गोला उठते दिखाई दे रहा है।

कजाकिस्तान के आपातकालीन मंत्रालय के हवाले से रिपोर्ट में बताया गया है कि विमान हादसे की जगह पर आग को काबू पाने के लिए अग्निशमन की टीम को तैनात किया गया है। फिलहाल, पीड़ितों के बारे में जानकारी जुटाई जा रही है। शुरुआती जानकारी के अनुसार, हादसे में कुछ लोग जीवित बचे हैं।

कजाकिस्तान के परिवहन मंत्रालय ने बताया कि विमान में अजरबैजान के 37 नागरिक, रूस के 16 और कजाकिस्तान के 6 और किर्गिस्तान के तीन नागरिक सवार थे। कजाकिस्तान सरकार ने स्पष्ट किया कि इस घटना में 25 लोग बच पाए हैं जबकि 42 का अभी तक कुछ पता नहीं चल पाया है। एज़ाल द्वारा एपीए को दी गई जानकारी के अनुसार, "एंब्रेयर 190" विमान एक्टाऊ से 3 किलोमीटर दूर आपातकालीन लैंडिंग करने की कोशिश कर रहा था।

नई दिल्ली सीट पर केजरीवाल के खिलाफ किसे उतारेगी बीजेपी?

#delhi_elections_bjp_embroiled_in_the_question_of_kejriwal_vs_who

दिल्ली विधानसभा चुनाव के तारीखों का लान तो अब तक नहीं हा है। हालांकि, फरवरी में संभावित चुनाव को लेकर सियासत गरमाने लगी है। नई दिल्ली विधानसभा सीट सबसे हॉट सीट बनने जा रही है। इस सीट पर एक पूर्व मुख्यमंत्री का मुकाबला दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के बेटों से हो सकता है। पूरी संभावना है कि बीजेपी नई दिल्ली से अरविंद केजरीवाल के खिलाफ पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश साहिब सिंह वर्मा को उतारे। वहीं कांग्रेस यहां से पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित को पहले ही अपना उम्मीदवार बना चुकी है। अब सबको बीजेपी की पहली सूची का इंतजार है, जो इस सप्ताह के आखिर तक आने की संभावना है।

दिल्ली विधानसभा चुनाव जीतने के साथ ही बीजेपी अब आम आदमी पार्टी के दिग्गज नेताओं को घेरने की रणनीति में जुटी है। पार्टी ऐसे तगड़े नाम खोज रही है, जिनके जरिए न सिर्फ अरविंद केजरीवाल बल्कि दिल्ली सरकार के मौजूदा मंत्रियों को भी तगड़ी टक्कर दी जा सके। वहीं, आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपनी सरकार की योजनाओं के दम पर मजबूत स्थिति में हैं। वहीं बीजेपी के पास अब तक मुख्यमंत्री पद का कोई चेहरा नहीं है जिससे पार्टी की रणनीति सवालों के घेरे में है।

केजरीवाल के लिए ये जाल बुन रही बीजेपी

बीजेपी ने अब तक मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार का ऐलान नहीं किया है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि बीजेपी अरविंद केजरीवाल को तगड़ी टक्कर देना चाहती है और इस तरह की रणनीति बना रही है ताकि केजरीवाल चुनाव प्रचार में अपने ही क्षेत्र में फंसे रहें और दूसरे इलाकों में प्रचार के लिए उन्हें वक्त निकाले में दिक्कत हो। पार्टी की नजर केजरीवाल के मुकाबले में पार्टी के पूर्व सांसद प्रवेश वर्मा पर है। फिलहाल जो पैनल बनाया गया है, उसमें नई दिल्ली विधानसभा सीट पर प्रवेश वर्मा का नाम उपर रखा गया है। इसके अलावा पार्टी सुनील यादव के नाम पर भी विचार कर रही है। यादव दिल्ली ओबीसी मोर्चा के अध्यक्ष हैं।

भाजपा के पास न चेहरा, न एजेंडा : केजरीवाल

वहीं केजरीवाल ने कहा कि बीजेपी के पास दिल्ली में चुनाव लड़ने के लिए न तो कोई चेहरा है न ही कोई एजेंडा। उन्होंने कहा कि हम पांच साल के काम गिना रहे और जनता को बता रहे हैं कि अगले पांच साल क्या काम करेंगे। उन्‍होंने कहा कि भाजपा झूठ बोल रही है और लोगों को बहका रही है। उन्‍होंने कहा कि भाजपा के पास यह चुनाव लड़ने के लिए कोई एजेंडा नहीं है, कोई प्‍लानिंग नहीं है। वो दिल्‍ली के लोगों को यह बताएं कि पांच साल में दिल्‍ली के लिए भाजपा ने क्‍या काम किया है।

साथ ही केजरीवाल ने महिला सम्मान और संजीवनी योजना के रजिस्ट्रेशन की शुरुआत अपने चुनाव क्षेत्र नई दिल्ली से की है। हालांकि सवाल ये है कि क्या ये नई योजनाएं जीत की गारंटी बनेंगी? क्योंकि कांग्रेस और बीजेपी ने जिस तरह से केजरीवाल की घेराबंदी शुरू की है, इस हाई प्रोफाइल सीट को बचाना उनके लिए चुनौतीपूर्ण होता दिख रहा है।

स्पेस में फंसी सुनीता विलियम्स ने सेलिब्रेट किया सेलिब्रेशन, सोशल मीडिया शुरू हुआ नया विवाद, नासा को देनी पड़ी सफाई

#sunitawilliamscelebratingchristmasinspacestartedanew_controversy

नासा की एस्ट्रोनॉट सुनीता विलियम्स अपने साथी क्रू मेंबर्स के साथ इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आईएसएस) पर क्रिसमस का जश्न मनाया। नासा ने इसका एक वीडियो भी शेयर किया है। जिसमें सुनीता विलियम्स को अपने साथियों के साथ जश्न मनाते हुए देखा जा रहा है। विलियम्स और उनके साथी आईएसएस के कोलंबस प्रयोगशाला मॉड्यूल के अंदर सांता टोपी पहने पूरी धरती को क्रिसमस और न्यू ईयर की बधाई देते हुए नजर आ रहे हैं। हालांकि, इन तस्वीरों ने सोशल मीडिया पर खुशी के साथ-साथ विवाद भी पैदा कर दिया। यूजर्स कहने लगे कि क्या सुनीता विलियम्स अपने साथ क्रिसमस की टोपी और सेलिब्रेशन के बाकी सामान लेकर गई थीं। इसका मतलब तो यह हुआ कि उन्हें लंबे मिशन पर ही भेजा गया था और यह बात छिपाई गई। अब नासा को इस विवाद पर जवाब देना पड़ा है।

सुनीता और बुच, जिन्हें सिर्फ आठ दिनों के मिशन के लिए भेजा गया था, तकनीकी बाधाओं के चलते लगभग एक साल से अंतरिक्ष में हैं। उनकी उत्सव मनाते हुए तस्वीरें जैसे ही सामने आईं, सोशल मीडिया पर लोगों ने कई सवाल खड़े किए। कुछ ने पूछा, "क्या ये सैंटा हैट और सजावट अपने साथ लेकर गए थे? एक अन्य यूजर ने कहा, ये वही लोग हैं जो जून में 8-दिवसीय मिशन के लिए गए थे? वहीं, अन्य ने इसे 'षड्यंत्र' करार देते हुए दावा किया कि ये तस्वीरें स्टूडियो में बनाई गई हैं।

नासा ने क्या कहा

नासा ने कथित तौर पर इस बयानबाजी पर प्रतिक्रिया दी है। नासा ने एक पोस्ट में कहा कि स्पेस में मौजूद आईएसएस चालक दल के सदस्यों के लिए सभी उत्सव की सजावट, विशेष उपहार और क्रिसमस का खाना नवंबर के अंत में भेजे गए तीन टन स्पेसएक्स डिलीवरी में शामिल थे। यह कोई नई बात नहीं है, क्योंकि ये लगातार होने वाली डिलीवरी आईएसएस को साल भर में बार-बार ताजा आपूर्ति से भर देती है। वर्तमान में सात अंतरिक्ष यात्री और अंतरिक्ष यात्री आईएसएस पर हैं।

अफगानिस्तान में पाक की एयर स्ट्राइक, अब तक 15 की मौत, क्या उठ रहे सवाल?

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पाकिस्तान ने अफगानिस्तान पर बड़ा एयर स्ट्राइक किया है। बताया जा रहा है कि पाकिस्तान की तरफ से की गई ये एयर स्ट्राइक पक्तिका प्रांत के बरमल जिले में कई गई है। इस एयरस्ट्राइक में महिलाओं और बच्चों समेत 15 लोगों के मारे जाने की खबर है। तालिबान ने पाकिस्तान के हमले की कड़ी निंदा की है और उसने जवाबी कार्रवाई की बात कही है।तालिबान के रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि बमबारी में ‘वजीरिस्तानी शरणार्थियों’ को निशाना बनाया गया। ये वही लोग हैं जो पाकिस्तान से अफगानिस्तान पहुंचे थे। मरने वालों में बच्चे और महिलाएं शामिल हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार पाकिस्तानी फाइटर जेट्स ने अफगानिस्तान के इलाकों में बमबारी की है। इन हवाई हमलों में बड़े पैमाने पर तबाही मची है। पाकिस्तानी एयर स्ट्राइक के बाद क्षेत्र में तनाव काफी बढ़ गया है। पाकिस्तान की इस एयर स्ट्राइक में अभी तक 15 लोगों के मारे जाने की बात सामने आ रही है। मरने वालों में खास तौर पर महिलाएं और बच्चे शामिल हैं। भी भी कई इलाकों में राहत और बचाव कार्य जारी है। जबकि कई घायलों की हालत बेहद गंभीर है, जिनका फिलहाल अस्पताल में इलाज चल रहा है। ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि इस एयर स्ट्राइक की वजह से कई लोगों की इलाज के दौरान भी मौत हो सकती है।

हमले का करारा जवाब देने की चेतावनी

तालिबान के रक्षा मंत्रालय ने बरमल, पक्तिका पर रात में पाकिस्तान की ओर से किए गए एयर स्ट्राइक को लेकर कड़ी प्रतिक्रिया जताई है। अफगानिस्तानी मंत्रालय ने कहा कि पाकिस्तान को इस हमले का करारा जवाब दिया जाएगा। हालांकि मंत्रालय ने अपनी भूमि और संप्रभुता की रक्षा के अधिकार पर जोर दिया है। मंत्रालय की कहा, ‘पाकिस्तान की एय़र स्ट्राइक में वजीरिस्तानी शरणार्थियों को निशाना बनाया गया है। ये वो लोग हैं जो पाकिस्तान से शरणार्थी के रूप में अफगानिस्तान पहुंचे थे। इस हमले में मरने वालों में कई बच्चे और महिलाएं भी शामिल है। ऐसे में अब सवाल उठ रहा है कि क्या पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में हमला कर अपने ही लोगों क मार दिया है।

पाकिस्तान और तालिबान के बीच क्यों तनाव?

तालिबान वजीरिस्तानी शरणार्थियों को आदिवासी क्षेत्रों से आए आम नागरिक मानता है, जो पाकिस्तानी सेना की ओर से सैन्य अभियानों के कारण विस्थापित हुए हैं। हालांकि, पाकिस्तानी सरकार का दावा है कि दर्जनों टीटीपी कमांडर और लड़ाके अफगानिस्तान भाग गए हैं और सीमावर्ती प्रांतों में अफगान तालिबान उनकी सुरक्षा कर रहे हैं। तालिबान और पाकिस्तान के बीच तनाव लगातार बढ़ रहा है, खासकर अफगानिस्तान के दक्षिणी प्रांतों में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) की मौजूदगी को लेकर, जबकि पाकिस्तान ने अफगान तालिबान पर टीटीपी आतंकवादियों को पनाह देने का आरोप लगाया है। तालिबान इन दावों को खारिज करता आया है और जोर देकर कहता रहा है कि वे समूह के साथ सहयोग नहीं कर रहे हैं।