विश्लेषण : कोल्हान में चम्पई के प्रभाव भी भाजपा के सीटों में नहीं करा पाए इज़ाफ़ा,जानिये क्यों...?
विनोद आनंद
भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में चुनाव परिणामों का विश्लेषण हमेशा एक महत्वपूर्ण विषय होता है। हाल ही में चम्पाई सोरेन झारखण्ड मुक्ति मोर्चा को छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए. भाजपा को लगा कि यह हमारा यह राजनितिक कूटनीति की बहुत बड़ी उपलब्धि है. क्योंकि चम्पई को कोल्हान क्षेत्र में झामुमो का एक महत्वपूर्ण चेहरा माना जा रहा था.अब तक झरखंड मुक्ति मोर्चा के लिए उनका प्रदर्शन भी कोल्हान में बेहतर रहा. इसलिए उन्हें भाजपा ने बहुत तड़क-भड़क के साथ अपने पार्टी में शामिल किया और कोल्हान का महत्वपूर्ण चेहरा बताते हुए. कोल्हान में अपनी स्थिति मज़बूत करने का सपना देखने लगा.
लेकिन दाव उल्टा पड़ा.चम्पई कोल्हान में भाजपा की सीटों की संख्या नहीं बढ़ा पाए. अगर झारखण्ड मुक्ति मोर्चा में कोल्हान के टाइगर के रूप में चर्चित चम्पाई तो खुद किसी तरह जीत गए लेकिन उनके बेटा समेत कई सीट जिसपर उन्हें उम्मीद थी बुरी तरह हार गए.आखिर ऐसा क्यों हुआ इस मे हम कारणों और परिस्थितियों का विश्लेषण करेंगे.
स्थानीय मुद्दों की अनदेखी
यह तो तय है कि किसी भी क्षेत्र में किसी पार्टी क़ी उसकी एजेंडा और नीति का इफेक्ट जनता पर पड़ता है.झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के प्रति आदिवासियों और यहाँ क़ी स्थानीय लोगों में यह धारना बन गयी है कियह पार्टी स्थानीय मुद्दा को उठाती है, यहाँ के लोगों की हित की बात सोचती है.
लेकिन भाजपा ने स्थानीय मुद्दों पर ध्यान देने मेंहमेशा चूक की है। क्षेत्र के निवासियों की समस्याएं जैसे पानी, बिजली, रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं थी, जिन पर भाजपा ने चुनाव प्रचार में अपेक्षित ध्यान नहीं दिया। स्थानीय मुद्दों को नजरअंदाज करने के कारण लोगों का जुड़ाव भाजपा से कम हुआ। वही झारखण्ड मुक्ति मोर्चा लगातार इस मुद्दा को लेकर सजग रही, झामुमो के प्रतिनिधि हो या मुख्यमंत्री हमेशा स्थानीय लोगों के बीच उपलब्ध रहे. यह झामुमो के लिए हमेशा पॉजिटिव गया. चम्पई जब तक झामुमो थे तब तक कोल्हान की जनता उनके साथ रही लेकिन पाला बदलते हीं चम्पई का साथ छोड़ दिया. इसी लिए चम्पई को जिस उम्मीद से भाजपा ने अपने पार्टी में शामिल किया उस उम्मीद पर पानी फिर गया.
विपक्ष की मजबूती
कोल्हान में भाजपा को विपक्ष की मजबूती से सामना करना पड़ा। विशेषकर झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस ने अपनी रणनीतियों को बेहतर तरीके से लागू किया। इन दलों ने स्थानीय स्तर पर जनता के बीच अपनी उपस्थिति बढ़ाई और भाजपा के खिलाफ एक सार्थक नैरेटिव बनाए रखा। जबकि भाजपा इस में विफल रहे. यहाँ बड़े बड़े भाजपा के नेता आये, रैली की सभा को सम्बोधित किया लेकिन इसके वावजूद वे झारखण्ड मुक्तिमोर्चा के नैरेटिव को बदल नहीं पाए. स्थानीय लोगों में हेमंत सोरेन का चेहरा सामने रहा जबकि भाजपा का मुख्यमंत्री के रूप में कोई स्पष्ट चेहरा भी नहीं रहा. यहाँ के लोगों में कहीं से यह नहीं थी कि अगर जीतेंगे तो चम्पई हीं यहाँ के सीएम होंगे. दूसरी बात यहाँ जनता के बीच भाजपा के नेता कभी नहीं रहे. जिसके कारण चम्पई के प्रभाव का कोई असर नहीं पड़ा.
चम्पई कि काट बनी यहाँ कल्पना
कोल्हान में चम्पई की नाराजगी और हेमंत सोरेन और झमुमो के प्रति उनकी प्रतिक्रिया भी यहाँ कि जनता के सहानुभूति नहीं बटोर सकी जबकि कोल्हान में अकेली कल्पना सोरेन चम्पाई और भाजपा पर भारी पड़ी.
कल्पना सोरेन ने जनता के बीच एक आम महिला बनकर आयी उनके साथ मिली,हर महिला के साथ आत्मीय रूप से जुड़ गयी. कल्पना कि सभाओं में महिलाओं कि भीड़ जुटती रही.
कल्पना की खासियत यह थी कि वे कहीं भी चम्पई के विरुद्ध कोई टिप्पणी नहीं की बल्कि उनके बारे में कहा कि वे बहुत अच्छे हैं,मुझे अपने बेटी और पुत्रबधु कि तरह हमेशा माना. कल्पना का यह अंदाज़ जनता को भा गया लोगों ने महसूस किया कि कल्पना सोरेन एक ऐसी उदार राजनेता हैं जो धोखा देने वाले और बगावत करने वाले उसके दलों के नेताओं के लिए भी अच्छा सोच रखती है. यह बहुत बड़ा कारण था कि चम्पई के समर्थक भी यह विश्लेषण करने के लिए बाध्य हो गए कि बेहतर कौन..? और बेहतर झामुमो हीं लगा उन्हें.
भाजपा की आंतरिक विवाद
कोल्हान में ना तो मोदी का जादू चला और ना चम्पई का क्योंकि बाहरी वोट तो जो झारखण्ड के साथ था वह तो रहा हीं भाजपा का भी वोट जो भाजपा के कैंडिडेट को हरा रहा था उसके साथ चला गया इसका मूल कारण था भाजपा के अंदर की अंदरूनी कलह. यहां बड़े नेताओं के परिवार के बीच टिकट भाजपा ने बाँटा, अर्जून मुंडा के साथ उनकी पत्नी को टिकट, चम्पई सोरेन के साथ उनके पुत्र को टिकट. जिसका भाजपाइयों ने विरोध करना शुरू कर दिया. पार्टी के अंदर उपजे असंतोष ने भाजपा के वोट बैंक को भी प्रभावित किया और इसका खामियाजा चुनाव परिणाम में देखने को मिला.
भाजपा के भीतर की यह आंतरिक कलह और नेतृत्व में अस्थिरता चुनाव परिणामों पर असर डाला। पार्टी के नेता और कार्यकर्ताओं के बीच आपसी मतभेद जनता के बीच गलत संदेश भेजा। जब पार्टी के भीतर ही उत्साह और एकता की कमी हो, तो इसका प्रभाव चुनावी परिणामों पर अवश्य पड़ता है।
भाजपा नेताओं के जनसंपर्क की कमी
भाजपा ने चुनाव प्रचार में जनसंपर्क को मजबूत करने में गड़बड़ी की। पार्टी के उम्मीदवारों और कार्यकर्ताओं ने स्थानीय जनसंवाद को नजरअंदाज किया। जगह-जगह पर जाकर लोगों से मिलने, उनकी समस्याओं को समझने और उनके साथ संवाद करने की आवश्यकता थी, जो कि भाजपा ने पूरी नहीं की। जिसका भी असर पड़ा वैसे राष्ट्रीय स्तर के नेताओं ने सभाएँ जरूर की, रैली भी की लेकिन स्थानीय नेताओं का जुड़ाव जनता से नहीं रहा. यह बहुत बड़ी कमी थी जिसका सीधा असर मतदान पर पड़ा.
गठबंधन दलों का प्रभाव
अनेक क्षेत्रीय दलों ने भी इस चुनाव में प्रभाव डाला। विशेषकर आदिवासी समुदाय के मुद्दों पर अन्य दलों ने बेहतर तरह से जनता को अपने पक्ष में खड़ा किया। भाजपा ने इस जनसंख्या समूह की अपेक्षाओं का सही दिशा में समर्पण नहीं किया, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ा।
पार्टी की नीतियों पर सवाल
भाजपा की नीतियों और उनके कार्यान्वयन पर भी सवाल उठे। लोग भाजपा की आर्थिक नीतियों, जिससे छोटे व्यवसाय और कृषि पर बुरा असर पड़ा, को लेकर असंतुष्ट रहे। भाजपा के विकास के वादे जमीन पर सफल नहीं हुए, जिसके परिणामस्वरूप मतदाता ने चुनाव में अपने विचार बदले।
संवेदनशीलता का अभाव
चम्पई कोल्हान की राजनीति में संवेदनशील मुद्दों को समझने और उनके प्रति सहानुभूति दिखाने की आवश्यकता थी। भाजपा द्वारा किए गए कई निर्णयों ने स्थानीय लोगों के बीच असहमति उत्पन्न की, जैसे भूमि अधिग्रहण, विकास परियोजनाओं का कार्यान्वयन आदि।
सोशल मीडिया व डिजिटल प्रचार की भूमिका
आज के युग में सोशल मीडिया का प्रभाव अत्यधिक बढ़ गया है। भाजपा ने डिजिटल प्रचार में सफलता हासिल की, लेकिन स्थानीय स्तर पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं की कमी के चलते सोशल मीडिया पर साझा की गई सूचनाएं जन सामान्य तक प्रभावी ढंग से नहीं पहुंच पाईं।
महिला मतदाताओं का नजर अंदाज
भाजपा ने महिला मतदाताओं के मुद्दों को भी नजरअंदाज किया। कई स्थानों पर स्थानीय मतदाता महिलाओं की सहभागिता को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया गया। जब महिलाएं संतुष्ट नहीं होतीं, तो उसके परिणाम चुनावी परिणामों में निश्चित रूप से दिखाई पड़ते हैं।
वोटर डेटा और जनगणना आंकड़ों की कमी
भाजपा ने अपने प्रचार में वोटर डेटा और जनगणना आंकड़ों का सही तरीके से उपयोग नहीं किया। कई बार देखा गया कि पार्टी अपने परंपरागत मतदाताओं की संख्या को सही से नहीं समझ पाई। इससे पार्टी को पिछले चुनावों में मिली सुरक्षा का भ्रम हो गया और नए मतदाताओं को जोड़ने में कठिनाई हुई।
स्ट्रीटबजज ओपेनियन
चम्पई ने भी कोल्हान में कोई जादुई अकड़ा नहीं जूता पाए. जबकि समझा जाता था कि वे जमीन से जुड़े रहे हैं और उनका सम्पर्क यहाँ के आदिवासी मतदाताओं में काफी गहरा है.लेकिन उसका कोई सार्थक रिजल्ट नहीं मिला.
वास्तव में कोल्हान में भाजपा की सीटों में कमी एक व्यापक विश्लेषण का विषय है। यह विभिन्न कारणों का परिणाम है, जिसमें स्थानीय मुद्दों को नजरअंदाज करना, दुष्चक्र में फंसी चुनावी रणनीतियां, आंतरिक विवाद, और समाज के विभिन्न वर्गों की आवश्यकताओं की अनुपालना न करना शामिल है।
भविष्य में भाजपा को यह समझने की आवश्यकता होगी कि चुनाव केवल बड़े वादों और स्वप्नों का खेल नहीं है, बल्कि यह स्थानीय जनता के वास्तविक मुद्दों को समझने और सुलझाने का अवसर है। यदि भाजपा स्थानीय लोकहित का ध्यान रखती है और लोगों के साथ तालमेल बढ़ाने का प्रयास करती है, तो वह अपनी खोई हुई सीटों को पुनः प्राप्त कर सकती है।
अब भाजपा के नेताओं के लिए यह आवश्यक है कि वे अपने अनुभवों से सीखते हुए अगली राजनीतिक लड़ाई में अपनी रणनीतियों में सुधार करें, ताकि अगले चुनाव में वे एक नई ताकत के साथ उभरे।
Nov 30 2024, 06:53