सम्पादकीय: झारखण्ड विंधानसभा चुनाव में भाजपा के हार का कारण रणनीतिक भूल थी या झारखंड में भाजपा का घटता प्रभाव...?
विनोद आनंद
झारखंड में भारतीय जनता पार्टी को इस बार राज्य के विधानसभा चुनाव में बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद राजनितिक विशेषज्ञ से लेकर भाजपा के रणनीतिकार तक इस पर मंथन करना शुरू कर दिया है.कि इसकी वजह क्या है..?
वैसे यह हार बीजेपी के लिए न केवल राजनीतिक दृष्टि से एक बड़ा झटका है, बल्कि इसके कई रणनीतिक भूल है , जिनका विश्लेषण करना पार्टी को आवश्यक है। इस हार ने यह सवाल भी खड़ा कर दिया है कि क्या बीजेपी में नरेंद्र मोदी का वह प्रभाव ख़त्म हो रहा है जिसके बूते भाजपा चुनाव जीतती आयी है या भाजपा इतनी बड़ी गलती करती जा रही है जिससे भाजपा के प्रति लोगों में नाराजगी बढ़ती जा रही है.आइये भाजपा के झारखण्ड में हार के पीछे जो कारण हो सकते हैं उसपर एक के बाद एक पहलू पर चर्चा करते हैं.
हेमंत कि गिरफ्तारी
झारखण्ड में लगातार केंद्रीय एजेंसी ईडी, सीबीआई और एनएआई जैसी संस्थाएं काम कर रही है, कई घोटाले और भ्रस्ट्राचार के मामले ये केंद्रीय एजेंसी ने उजागर किया है. नि:संदेह यह अच्छी पहल है झारखण्ड में इन एजेंसी की बालू और पत्थर खनन के मामले को उजागर करना, मनरेगा के मामले मे अधिकारियों की गिरफ्तारी और भारी मात्रा में नगद बरामदगी, टेंडर घोटाला में भारी मात्रा में नगद राशि की बरामदगी और एक मंत्री की गिरफ्तारी, बहुत ऐसे मामले सामने आये जिसमे इन एजेंसियों की उपलब्धि को कहीं से नाकारा नहीं जा सकता. इस पर पुरे देश का ध्यान खींचा. लेकिन ईडी की एक भूल ने इन सारी उपलब्धियों पर पानी फेर दिया. वह भूल थी झारखण्ड के सीएम हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी. वह भी ऐसे मामले में जिसमे वे दोषी नहीं थे. क्यों कि कोर्ट ने जैसे टिप्पणी के साथ इन्हे जमानत दी है उससे ना सिर्फ ईडी कि साख पर सवाल उठ गया बल्कि केंद्र की भाजपा सरकार भी सवालों के घेरे में आ गए.जिस जमीन के कथित घोटाले में हेमंत सोरेन को गिरफ्तार किया गया था एक भी साक्ष्य ईडी ने हेमंत सोरेन के विरुद्ध कोर्ट में प्रस्तुत नहीं कर पायी. ऐसे स्थिति में जनता के बीच यह मेसेज गया कि ईडी केंद्र के भाजपा सरकार के इशारे पर एक आदिवासी मुख्यमंत्री को सत्ता से बेदखल करने के लिए षडयंत्र रची.लोगों की यह धारना इतना प्रभावी रहा की हेमंत सोरेन एक ऐसे राजनेता बनकर उभड़े कि पुरे राज्य कि जनता कि सहानुभूति हेमंत सोरेन के साथ चला गया. भाजपा की यह बहुत बड़ी भूल मानी जा रही है.
कल्पना सोरेन का राजनीति में पदार्पण
हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद झारखण्ड मुक्ति मोर्चा को कल्पना सोरेन जैसी एक ऐसी नेत्री मिली जो झारखण्ड मुक्ति मोर्चा को मज़बूत जनाधार वाला पार्टी बना दिया. हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद हेमंत की पत्नी कल्पना की राजनीति में आगमन झारखण्ड के सियासी जगत की एक बड़ी घटना मानी जा रही है. कल्पना ना मात्र झारखण्ड बल्कि पुरे देश के लोगों का ध्यान खींचा, उनकी व्यक्तित्व, अपनी बात जनता के बीच रखने की कला, और लगातार बिना थके जनसभाएँ करना एक ऐसी घटना थी की ना सिर्फ आदिवासी समुदाय बल्कि सभी वर्ग के लोग कल्पना के शख्शियत को झारखण्ड के भविष्य के रुप में देखने लगे.
कल्पना ने अपनी आंसू और ज्जवात लेकर जनता के बीच गयी, अपने पति के साथ हुए ना इंसाफ से जनता को अवगत कराया, भाजपा के केंद्र सरकार को एक आदिवासी मुख्यमंत्री को परेशान करने और जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि पर तानाशाही करने का आरोप लगाया, मुंबई और दिल्ली की सभा में झारखण्ड की शेरनी के रूप में उनकी गर्जना और झारखण्ड की जनता की आवाज़ के रूप में दी गयी भाषण ने ऐसा हलचल मचा दिया कि वह एक राष्ट्रीय शख्सियत के रूप में चर्चित हो गयी. आज उनकी सभाओं में भीड़ जुटती है, महिलाएं से मिलकर जिस तरह वह उसके दुख दर्द को बांटती है महिलाएं उसे अपना तारनहार समझती है. यही कारण है कि कल्पना के सामने भाजपा के सारे दावपेंच ख़त्म हो गए, सारे बड़े भाजपा में आदिवासी चेहरे ध्वस्त हो गए. अर्जुन मुंडा, बाबूलाल चम्पई लोविंन हेमब्रम, सीता सोरेन, गीता कोड़ा और भाजपा के सारे फ़ौज निरर्थक सावित हुए.यहाँ तक झारखण्ड में मोदी, शाह शिवराज हेमंता विश्व सरमा किसी का जादू नहीं चला, मोदी का तिलिस्म भी टूट गया और कल्पना का जादू चला पहली बार झारखण्ड में एक तिहाई बहुमत से सरकार बनने जा रही है.
मुस्लिम वोटों का धुर्वीकरण
भाजपा के रणनीतिकार एक एजेंडा के तहत एक समुदाय विशेष का वोट हासिल करने की कोशिस करती आ रही है. यह अब जनता समझने लगी है.राम मंदिर का मुद्दा उठाकर भाजपा अपनी जमीन मज़बूत की और हिन्दुकार्ड खेलकर आज तक अपनी राजनीतिक जमीन मज़बूत करती आयी है .इसके सामने सारे मुद्दे गौण होते गए. देश के विकास, युवाओं को रोजगार,बंद होते उद्योग, बेहतर चिकित्सा कई ऐसे बुनियादी सवाल रहे जिस पर कभी ठोस नीति नहीं बनी. भाजपा के यह रणनीति अब फेल होने लगा. जनता समझने लगी.यही वज़ह है की लोकसभा में जिस अयोध्या में राम मंदिर बना उस अयोध्या का सीट भी भजपा नहीं बचा पायी. और अगर विधानसभा की बात करें तो झारखण्ड में भी वह रणनीति फेल हो गयी.
भाजपा ने झारखण्ड में बांगलादेशी मुद्दा उठाकर चाहा कि यहां के आदिवासी और हिन्दू वोट बटोर लें लेकिन यह दाव उल्टा पड़ा. यहाँ इस एजेंडा को तूल देने के लिए असम के मुख्यमंत्री हिमांता विश्व सरमा को लगाया लेकिन उनके कई बयान के कारण मुस्लिम वोटों का धुर्वीकरण हो गया. जो वोट कहीं कहीं बटने वाली थी या जयराम महतो अथवा किसी अन्य पार्टी को पड़ने वाली वोट संघगठित होकर थोक के भाव से झारखण्ड मुक्तिमोर्चा को पड़ा. या गठबंधन में पड़ा जबकि आदिवासी और हिन्दू वोट भी भाजपा अपने पक्ष में नहीं कर पाए. यही वजह है कि भाजपा को इस बार करारी हार मिली.
लोकप्रियता में गिरावट
झारखंड में बीजेपी की इस हार के सबसे बड़े कारणों में से एक राज्य की जनता में पार्टी के प्रति बढ़ती नाराजगी रही। पार्टी द्वारा किए गए कई वादे, जैसे आदिवासी और पिछड़े वर्गों के लिए विकास और रोजगार के अवसर, पूरी तरह से सफल नहीं हो सके। इसके अलावा, रघुबर दास सरकार की नीतियां, जैसे भूमि अधिग्रहण और सरकारी नौकरियों में भर्ती प्रक्रिया, भी जनप्रिय नहीं रही जो स्थानीय लोगों के बीच अविश्वास का कारण बनीं।और 2019 में भाजपा की हाथ से सत्ता छीन गयी. और 2019 में झारखंड मुक्ति मोर्चा के हाथ में सत्ता आयी. इस से भाजपा को सबक लेने की जरूरत थी, लेकिन 2019 के बाद भी भाजपा ने अपने रणनीति में कई ऐसे भूल की जो भाजपा के पक्ष में बेहतर नहीं रहा. भाजपा की सबसे बड़ी भूल थी हेमंत सोरेन को कथित जमीन घोटाले में जेल के अंदर डालना .भाजपा के लिए उलटा पड़ा.
आदिवासी वोटबैंक का नुकसान
झारखंड में आदिवासी समुदाय का महत्वपूर्ण वोटबैंक है, जो बीजेपी के लिए एक मजबूत आधार बनता था। लेकिन इस बार आदिवासी वोटरों ने बीजेपी से दूरी बना ली। आदिवासी समुदाय के बीच असंतोष और सरकारी नीतियों के विरोध ने पार्टी को नुकसान पहुंचाया। स्थानीय मुद्दे जैसे भूमि अधिकार, आदिवासी संस्कृति का संरक्षण, और सरकारी योजनाओं का सही क्रियान्वयन पार्टी के लिए चुनौती बने।
झारखंड मुक्ति मोर्चा और महागठबंधन का प्रभाव
झारखंड में विपक्षी दलों ने एकजुट होकर महागठबंधन का गठन किया, जिसमें झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM), कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) शामिल थे। महागठबंधन ने बीजेपी को कड़ी चुनौती दी। विशेष रूप से हेमंत सोरेन की नेतृत्व क्षमता और उनकी पार्टी की 'आदिवासी गौरव' की रणनीति ने राज्य के जनता को आकर्षित किया। महागठबंधन की एकजुटता और स्थानीय मुद्दों पर फोकस ने बीजेपी के खिलाफ एक मजबूत मोर्चा खड़ा किया।
किसान और आदिवासी आंदोलनों का असर
बीजेपी के लिए एक और संकट किसान और आदिवासी आंदोलनों के रूप में सामने आया। इन आंदोलनों में किसानों की समस्याओं, ज़मीन अधिग्रहण के मुद्दे और आदिवासियों के अधिकारों पर सरकार की नीतियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शामिल थे। ये आंदोलन बीजेपी के लिए एक बड़ा राजनीतिक बोझ बने और इसका सीधा असर पार्टी के चुनाव परिणामों पर पड़ा।
आंतरिक असंतोष और संगठन की कमजोरी
बीजेपी में आंतरिक असंतोष और संगठन की कमजोरी भी हार के कारणों में शामिल है। पार्टी के अंदर कई नेताओं के बीच गुटबाजी और एकजुटता की कमी ने चुनावी प्रचार और रणनीतियों को प्रभावित किया। इसके अलावा, केंद्रीय नेतृत्व का राज्य के स्थानीय मुद्दों के प्रति लापरवाही और संवाद की कमी ने बीजेपी की स्थिति को और कमजोर किया।
केंद्र सरकार के खिलाफ निराशा
केंद्र सरकार की नीतियों और चुनावी वादों के बीच भी झारखंड के मतदाताओं में असंतोष था। किसानों, युवाओं, और आदिवासियों के मुद्दे पर बीजेपी को आलोचना का सामना करना पड़ा। केंद्र सरकार की कुछ नीतियों, जैसे नोटबंदी और GST, ने भी राज्य के छोटे व्यापारियों और किसानों को प्रभावित किया, जिसके कारण बीजेपी को आलोचना का सामना करना पड़ा।
स्थानीय मुद्दों का प्रभाव
केंद्रीय नेताओं की भारी उपस्थिति और चुनावी प्रचार में ध्यान केंद्रित करने के बावजूद, बीजेपी स्थानीय मुद्दों पर प्रभावी तरीके से नहीं जीत पाई। राज्य के विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा, और रोजगार जैसे मुद्दे स्थानीय लोगों के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण थे, और बीजेपी इन मुद्दों पर प्रभावी समाधान प्रस्तुत करने में विफल रही।
निष्कर्ष
झारखंड में बीजेपी की हार एक संकेत है कि केवल केंद्रीय चुनावी रणनीतियों और राष्ट्रीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने से राज्य स्तर पर सफलता प्राप्त नहीं की जा सकती। पार्टी को राज्य के स्थानीय मुद्दों पर अधिक ध्यान देने, आदिवासी समुदाय के साथ संवाद बढ़ाने और आंतरिक संगठन को मजबूत करने की आवश्यकता है। अगर बीजेपी को झारखंड में भविष्य में सफलता प्राप्त करनी है, तो उसे जनता के विश्वास को फिर से जीतने के लिए अपनी नीतियों और रणनीतियों में सुधार करना होगा।
Nov 30 2024, 06:18