*औरंगाबाद देव् में छठ व्रतियों से भरी ऑटो कुआँ में गिरा एक कि और 6 घायल बाकी की तलाश जारी*
बिहार के औरंगाबाद से इस वक्त की बड़ी खबर निकल कर सामने आ रही है जहाँ छठ व्रतियों से भरी ऑटो कुआ मे गिर गया है , जिसमे एक की मौके पर मौत हो गई है वही 6 लोग बुरी तरह से घायल हो गए है ,सभी घायलों को ग्रामीणों द्वारा इलाज हेतु सदर हॉस्पिटल औरंगाबाद भेज दिया गया है , जहाँ डॉक्टरों ने प्राथमिक उपचार के बाद सभी की इस्थिति को गंभीर देखते हुए हायर सेंटर रेफर कर दिया है , और अभी भी कुछ लोगो को कुएं में फसे होने की सम्भावना जताई जा रही है जिसको लेकर एनडीआरएफ के टीम के द्वारा रेस्क्यू ओप्रेसन चलाई जा रही है घटना देव थाना क्षेत्र के चांदपुर गांव के पास की है , हादसे के शिकार हुए सभी छठ व्रती थे जो भगवान भास्कर की नगरी देव में अपने बच्चे को मुडना करने के लिए भगवान भास्कर की नगरी देव आ रहे थे इसी बीच चैनपुर गांव के पास ऑटो रिक्सा अनियंत्रित होकर कुए में चल गया, हालांकि घटना के उपरांत मौके पर उपस्थि लोगो के सोरगुल पर काफी संख्या में लोग दौड़ पड़े और कई लोगो को अपने कपड़े के द्वारा कुए से बाहर निकाला गया , घटना की खबर मिलते ही जिला प्रसासन अपने दाल बल के साथ मौके पर पहुच कर कुए से ऑटो को निकाल लिया है , मौके पर पहुंच एनडीआरएफ के टीम के द्वारा कुए से एक शव को बाहर निकाला गया अभी कुछ और लोगो को कुए में फंसे होने की बात कही जा रही है जिसको लेकर बचाव राहत की कार्य अभी भी चल रही है सभी लोगो की पहचान देव थाना क्षेत्र के बरहेता गाँव निवासी के रूप में किया गया है लेकिन ग्रामीणों का कहना था कि जिस बची की मौत हो गई वह बच्ची भी जिंदा अवस्था मे बाहर निकली थी और उस समय मौके ओर एम्बुलेंस भी था लेकिन वह भाग गया और उसके साथ 112 कि पुलिस भी साथ मे थी वह भी मौके से भाग गया जिसके कारण इस बच्ची की मौत हो गई जिसकी पहचान बरहेता गांव निवासी के रूप में किया गया है , वही घायलो की पहचान आयुष कुमार उम्र 3 वर्ष पिता पप्पू चौधरी, ग्राम बरहेता ज्योति कुमारी पिता विकास चौधरी ग्राम पर बरहेता राजू कुमार 18 वर्ष पिता मुनी भुइँया ग्राम बरंडा प्रिंस राज 13 वर्ष ग्राम बरहेता सभी देव थाना क्षेत्र के रहने वाले है
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औरंगाबाद से धिरेन्द्र कुमार



लोकआस्था के महापर्व छठ पूजा के तहत बुधवार को 36 घंटे तक रखा जाने वाला निर्जला व्रत शुरू हो गया। व्रतियों ने शाम को खरना कर व्रत शुरू किया। अब अगले 36 घंटे तक छठ व्रती बिना अन्न जल ग्रहण किए भगवान भास्कर की आराधना में लीन रहेंगे। गुरुवार की शाम अस्ताचलगामी सूर्य को पहला तथा शुक्रवार सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रत संपन्न होगा। तीर्थनगरी ऋषिकेश और आसपास के क्षेत्रों में चार दिवसीय छठ पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। छठ पर्व के दूसरे दिन बुधवार को छठ व्रतियों ने सुबह से व्रत रख शाम को मिट्टी के चूल्हे में आम की लकड़ी से गुड़ के साथ अरवा चावल मिलाकर खीर बनाई। खीर के साथ घी लगी रोटी और कटे हुए फलों का प्रसाद भगवान को चढ़ाया। दूध और गंगाजल से प्रसाद में अर्घ्य देने के बाद व्रतियों ने इसे ग्रहण किया। इस बीच घर की अन्य महिलाएं छठ गीत गाती रहीं। खरना के साथ ही व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला व्रत भी शुरू हो गया,जो शुक्रवार सुबह उदयीमान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद संपन्न होगा। खरना के बाद व्रतियों ने अपने परिवार के सदस्यों और आसपास के लोगों को प्रसाद वितरित किया। औरंगाबाद छठ व्रति मिन्नी कुमारी, पूजा ,प्रभा ,न्यू एरिया निवासी पिंकी सिंह ,शकुंतला देवी ने बताया कि छठ चार दिन तक चलने वाला लोक महापर्व है। इसमें कार्तिक मास की षष्टी तिथि यानी छठ पर्व के तहत गुरुवार को अस्ताचलगामी भगवान भास्कर (डूबते सूर्य) को अर्घ्य दिया जाएगा। इसके बाद सप्तमी यानी शुक्रवार को उदयीमान भगवान भास्कर को अर्घ्य देने के बाद यह पर्व संपन्न होगा।
बिहार के रहने वाले लोगों के लिए आस्था के महापर्व छठ की कल नहाय-खाय के साथ शुरुआत हो चुकी है. आज खरना पूजा है. चार दिवसीय इस पर्व के दौरान छठी मैया और भगवान भास्कर की पूजा का विधान है. आज इस चार दिवसीय पूजा दूसरा दिन है. आज के दिन खरना पूजा होती है. खरना का अर्थ है शुद्धता. यह पूजा नहाए खाए के अगले दिन मनाया जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन अंतरमन की स्वच्छता पर जोर दिया जाता है. खरना पूजा इस महापर्व के दौरान की जाने वाली अहम पूजा है. ऐसा कहा जाता है कि इसी दिन छठी मैया का आगमन होता है, जिसके बाद व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो जाता है. *चावल, गुड़ और दूध की खीर बनाने का विधान* आज खरना पूजा के दिन व्रती नहाने के बाद भगवान सूर्य की पूजा करती हैं. शाम के समय मिट्टी के चूल्हे पर साठी के चावल, गुड़ और दूध की खीर बनाई जाती है. जिसे भोग के रूप में सबसे पहले छठ माता को अर्पित किया जाता है. आज के दिन व्रती उपवास रख कर रात में खरना पूजा के बाद प्रसाद ग्रहण करती हैं. फिर घर के सदस्यों को प्रसाद दिया जाता है. इस पूजा के बाद से ही 36 घंटे के लिए निर्जला व्रत की शुरुआत हो जाती है, जिसका समापन छठ पूजा के चौथे दिन सुबह सूर्य देव को अर्घ्य देकर किया जाता है. *पारण के साथ पूरा होता है उपवास* 6 नवंबर को खरना पूजा के बाद षष्ठी तिथि यानी 7 नवंबर को अस्ताचलगामी भगवान भास्कर की आराधना-पूजा कर अर्घ्य दिया जाएगा. फिर 8 नवंबर सप्तमी तिथि को पारण के दिन उदयगामी सूर्य की पूजा कर उन्हें दूध और गंगा जल का अर्घ्य दिया जाएगा. जिसके बाद इस चार दिवसीय महापर्व का समापन प्रसाद वितरण के साथ होगा. *छठ पूजा विधान* नहाय-खाय से शुरू होने वाले इस महापर्व का विधान चार दिनों तक चलता है. भगवान भास्कर की आराधना का लोकपर्व सूर्य षष्ठी (डाला छठ) कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि में मनाया जाता है. इस तिथि में व्रती महिलाएं शाम के समय नदी, तालाब-सरोवर या कृत्रिम रूप से बनाए गए जलाशय में खड़ी होकर अस्ताचलगामी भगवान सूर्य की आराधना करती हैं. उन्हें अर्घ्य दिया जाता है. दीप जलाकर रात्रि पर्यंत जागरण के साथ गीत एवं कथा के जरिए भगवान सूर्य की महिमा का बखान का श्रवण किया जाता है. इसके बाद सप्तमी की तिथि में प्रातः काल में उगते हुए सूर्य की पूजा कर अर्घ्य दिया जाता है. फिर प्रसाद ग्रहण करने के साथ इस महापर्व का समापन होता है.
औरंगाबाद से धिरेन्द्र पाण्डेय
- विगतदिनों दीपावली के पावन तिथि पर महाराजा महर्षि च्यवन ऋषि का जन्म महोत्सव विगत वर्षो की भाती इस वर्ष भी धार्मिक उल्लास एवम पारंपरिक रीति से मनाया गया इस अवसर पर महाराजा महर्षि च्यवन ऋषि एवम माता सुखन्या की प्रतिमा पर फूल माला एवम धूप,दीप प्रज्वलित कर महोत्सव का शुभारंभ भारत के सुप्रसिद्ध इतिहासकार एवम पुरातत्वविद डॉ रामविजय शर्मा द्वारा किया गया इस अवसर पर डॉ शर्मा ने बताया की महाराजा महर्षि च्यवन ऋषि महाभारत काल के एक प्रसिद्ध ऋषि तथा तत्वदृष्टा थे। उनका जन्म लट्टागढ़ में कार्तिक माह में दीपावली के पावन अवसर पर 3100 बी.सी.ई. में हुआ था उनके पिता का नाम भृगु ऋषि था। भृगु ऋषि ब्रह्मा जी के पुत्र थे। इसलिए भूमिहार समाज को ब्रह्मऋषि समाज भी कहा जाता है।भृगु ऋषि का मूल निवास भृगुरारी गांव है जहां कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर विशाल मेला का आयोजन किया जाता है। भृगुरारी गांव बिहार के औरंगाबाद जिले में पुनपुन नदी के पावन तट पर स्तिथ है। इसी तरह महर्षि च्यवन ऋषि की जन्मस्थली औरंगाबाद जिले के रफीगंज ब्लॉक के प्राचीन ऐतिहासिक ग्राम लट्टागढ़ है। लट्टागढ़ महाभारत कालीन नदी वधुसरा नदी के पावन तट पर स्थित है। लट्टागढ़ को महाभारत काल में लता-बेली तथा बाद में लाटगढ़ नाम से जाना जाता था। इस अवसर पर वरुण शर्मा(ग्रामीण विकास पदाधिकारी) ने बताया की वधुसरा नदी में स्नान करने एवम देवताओं के चिकितिसक अश्विनी कुमारों के मंत्र चिकित्सा द्वारा च्यवन ऋषि यौवन को प्राप्त किए तथा दोनों आंखों की रोशनी लौट आई। इस घटना को सुनकर गुजरात के महाराजा शर्याति अत्यंत प्रसन्न हुए।उन्होंने अपने राज्य क्षेत्र का बहुत बड़ा भाग खम्भात की खाड़ी का विशाल इलाका महर्षि च्यवन ऋषि को सौंप दिया तथा उन्हें महाराजा घोषित किया।इस अवसर पर समाज सेवक ओमप्रकाश शर्मा ने बताया की लट्टागढ़ के चईयार भूमिहार ब्राह्मण जिस मोहल्ले में रहते है उस मुहाले को महाराजा पार्टी कहा जाता है। महाराजा का पद ग्रहण करने के पश्चात खम्भात की खाड़ी के विशाल इलाका को च्यवन ऋषि ने अपने जन्मस्थली गांव के नाम पे लाट क्षेत्र का नाम दिया तथा अपनी राजधानी भरूच शहर का नाम अपने पिता भृगुकछ नाम दिया। वे भृगुकछ शहर से राज करते थे जो उनकी राजधानी थी यह इलाका दक्षिण गुजरात में है।इस अवसर पर सुमन शर्मा,छोटकुन शर्मा,गोलू शर्मा,रामबिनय शर्मा,मनीष शर्मा,हरिओम शर्मा एवम बड़ी संख्या में स्त्री-पुरुष महोत्सव में शामिल होकर महोत्सव को सफल बनाएं।
Nov 08 2024, 01:11
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