पुतिन ने अब तक ट्रंप को क्यों नहीं दी जीत की बधाई, अमेरिका-रूस के रिश्तों पर आया बड़ा बयान
#whyputinnotyetcongratulatedtrumponhisvictory
अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों में इतिहास रचने वाले डोनाल्ड ट्रंप को दुनिया भर के नेताओं ने बधाई दी है। लेकिन रूस के राष्ट्रपति पुतिन की ओर से कोई रिएक्शन नहीं आया है।दुनिया के प्रमुख राष्ट्राध्यक्षों की ओर से ट्रंप को बधाई दिए जाने के बीच पुतिन का ये कदम चर्चा का विषय बना हुआ है। इस बीच रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन का एक चौंकाने वाला बयान सामने आया है। रूस की ओर से अमेरिका को अमित्र देश बताया गया है।
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दरअसल, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने साफ किया कि वो फिलहाल अभी डोनाल्ड ट्रंप को बधाई देने नहीं जा रहे हैं। क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने बुधवार को कहा कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन डोनाल्ड ट्रंप को बधाई देने की योजना नहीं बना रहे हैं। दिमित्री ने कहा कि हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हम एक ऐसे अमित्र देश के बारे में बात कर रहे हैं जो हमारे देश के खिलाफ युद्ध में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से शामिल है।यूक्रेन में चल रहे युद्ध का जिक्र करते हुए पेसकोव ने कहा कि ‘अमेरिका इस संघर्ष को बढ़ावा देता है और इसमें हिस्सा लेता है। अमेरिका इस विदेश नीति को बदलने में सक्षम है. यह किया जाएगा या नहीं और यह कैसे किया जाएगाष
बता दें कि मास्को ने दर्जनों देशों को ‘अमित्र’ के रूप में नामित किया है, जो रूस के हितों के लिए शत्रुतापूर्ण माने जाते हैं। इसमें आर्थिक प्रतिबंध लगाना और यूक्रेन का समर्थन करना शामिल है, क्योंकि वह रूस के के खिलाफ खुद में शामिल है।
रूस को अमेरिका के रुख का इंतजार
रूस ने बुधवार को कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ संबंध ऐतिहासिक रूप से निचले स्तर पर हैं, लेकिन क्रेमलिन का दरवाजा बातचीत के लिए खुला है। अभी रूस को इस बात का इंतजार है कि जब जनवरी में डोनाल्ड ट्रम्प व्हाइट हाउस लौटते हैं तो क्या होता है।
जेलेंस्की ने ट्रंप को दी जीत की बधाई
वहीं, दूसरी तरफ यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने ट्रंप को चुनावी जीत के लिए बधाई दी है। जेलेंस्की ने दुनिया के मामलों में ताकत के जरिये से शांति के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के लिए उनकी सराहना की। अपने चुनाव अभियान के दौरान, ट्रंप ने यूक्रेन में युद्ध से निपटने के अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के तरीके की आलोचना की। ट्रंप ने दावा किया कि अगर वह अभी भी पद पर होते, तो रूस कभी भी पूरे पैमाने पर हमला शुरू नहीं करता। पुतिन और जेलेंस्की दोनों के साथ अपने अच्छे संबंध का दावा करते हुए, ट्रम्प ने दूसरे कार्यकाल के लिए चुने जाने पर पदभार ग्रहण करने से पहले यूक्रेन में युद्ध को खत्म करने का वादा किया है।






बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले और उनके खिलाफ हिंसा की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं। बांग्लादेश में शेख हसीने के तख्तापलट के बाद एक बार फिर हिंदू सॉफ्ट टारगेट बने हैं।उन्हें हिंसा और धमकियों का सामना करना पड़ रहा है। बांग्लादेश के अल्पसंख्यक समूह बांग्लादेश हिंदू बौद्ध ईसाई यूनिटी काउंसिल ने हिंदुओं पर हो रहे अटैक को लेकर कहा कि 4 अगस्त के बाद से हिंदुओं पर 2,000 से ज्यादा हमले हुए हैं। *हसीने के बाद कट्टरपंथी इस्लामवादी तेजी से प्रभावशाली हो रहे* शेख हसीना के सत्ता से हटने के बाद कट्टरपंथी इस्लामवादी तेजी से प्रभावशाली हो रहे हैं। यही वजह है कि शेख हसीना को सत्ता से बेदखल करने के बाद से ही हिंदुओं और अल्पसंख्यकों पर अत्याचार जारी है। शेख हसीना के पार्टी के नेताओं की हत्या तो की ही गई, हिंदुओं को भी निशाना बनाया गया। हिंदू महिलाओं और बेटियों का अपहरण और दरिंदगी की खबरें आईं। जो हिंदू अत्याचार के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं उन पर देशद्रोह का आरोप लगाया जा रहा है। मोहम्मद यूनुस की सरकार जहां एक तरफ हिंदु समुदाय के खिलाफ हमलों को रोकने में नाकाम साबित हुई है, तो दूसरी तरफ हिंदू नेताओं पर ही मुकदमा कायम करना शुरू कर दिया है। *अत्याचार के खिलाफ मुखर लोगों पर देशद्रोह के आरोप* बांग्लादेश की युनूस सरकार ने अब तक 19 हिंदू नेताओं पर मुकदमे दर्ज किए गए हैं और इनमें से 2 को गिरफ्तार भी कर लिया गया है। जिन नेताओं के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है उनमें हिंदू धार्मिक नेता चिन्मय कृष्ण दास ब्रह्मचारी भी शामिल हैं। वह बांग्लादेश में अस्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ मुखर हैं। इन सभी पर 25 अक्टूबर को चटगांव में एक प्रदर्शन के दौरान बांग्लादेश के राष्ट्रीय ध्वज के ऊपर भगवा झंडा फहराने का आरोप लगा है। बांग्लादेश सनातन जागरण मंच के नेता चिन्मय कृष्ण दास 5 अगस्त को शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद से हिंदुओं पर हमलों के खिलाफ होने वाले प्रदर्शनों में सबसे आगे रहे हैं। *अवामी लीग के सत्ता से हटते ही निशाने पर हिंदू* बांग्लादेश में प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि पूर्व की शेख हसीना के सत्ता से बाहर होने के बाद से उन्हें हिंसा और धमकियों का सामना करना पड़ रहा है। बांग्लादेश में राजनीति और सत्ता में परिवर्तन के साथ ही अल्पसंख्यकों ख़ासकर हिंदुओं की सुरक्षा का मामला बेहद संवेदनशील हो उठता है। बीते चार दशकों के राजनीतिक इतिहास को देखें, तो पता चलता है कि चुनाव में अवामी लीग के पराजित होने या सत्ता से हटने के बाद हिंदुओं पर हमले के आरोप सामने आते रहे हैं। साल 1992 में भारत में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद बांग्लादेश में पहली बार हिंदुओं पर बड़े पैमाने पर हमले किए गए थे। उस समय ख़ालिदा ज़िया के नेतृत्व वाली बीएनपी सरकार सत्ता में थी। उसके बाद साल 2001 के चुनाव में अवामी लीग की हार के बाद दूसरी बार हिंदुओं पर बड़े पैमाने पर हमले हुए थे। उस चुनाव में बीएनपी की जीत के बाद देश के विभिन्न ज़िलों में हिंदू समुदाय के लोगों पर हमले किए गए थे। हालाँकि उस समय न्यायमूर्ति लतीफ़ुर रहमान के नेतृत्व में कार्यवाहक सरकार सत्ता में थी। चुनाव के नतीजे घोषित होने के दिन से लेकर बीएनपी सरकार के शपथ ग्रहण के दौरान विभिन्न जगहों पर हिंदुओं पर हमले किए गए थे। बीएनपी के सत्ता संभालने के बाद भी ऐसी घटनाएँ जारी रही थीं। उन हमलों के मामले में तब बीएनपी की राजनीति से जुड़े कई लोगों के खिलाफ आरोप लगे थे। *मुस्लिम-बहुल बांग्लादेश में हिंदू आसान लक्ष्य* बांग्लादेश में सांप्रदायिक भावनाएं हमेशा मौजूद रही हैं। ऐसे लोग हैं जो अल्पसंख्यकों, खासकर हिंदुओं पर हमला करने का मौका तलाशते हैं। सांप्रदायिकता बांग्लादेशी समाज का एक कठिन तथ्य है। मुस्लिम-बहुल बांग्लादेश में हिंदू ऐतिहासिक रूप से एक आसान लक्ष्य रहे हैं, लेकिन इस बार की हिंसा असाधारण पैमाने पर है और तथ्य यह है कि दोषियों को सजा दिलाना मुश्किल हो सकता है। कुछ लोग यह तर्क दे सकते हैं कि हालिया हिंसा में राजनीतिक को सांप्रदायिक से अलग करना मुश्किल है, क्योंकि निशाने पर हसीना की अवामी लीग के सदस्य और पुलिस कर्मी रहे हैं। हालाँकि, मंदिरों पर हमले, हिंदुओं के स्वामित्व वाली दुकानों की लक्षित लूटपाट और उनकी संपत्तियों पर अतिक्रमण से पता चलता है कि कुछ हिंसा विशेष रूप से धार्मिक आधार पर निर्देशित की गई थी।
Nov 07 2024, 11:18
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