ऐसे चरित्र का आदमी जो...ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से मणिशंकर अय्यर हैं दुखी
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अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की ऐतिहासिक जीत दर्ज की है। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत से सीनियर कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर बड़े दुखी हैं। कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की ऐतिहासिक जीत पर विवादित बयान दिया है।अय्यर ने ट्रंप को 'संदिग्ध चरित्र वाला व्यक्ति' बताया।अय्यर ने कहा कि मुझे बेहद दुख हो रहा है कि ट्रंप जैसे संदिग्ध चरित्र वाले व्यक्ति को दुनिया के सबसे शक्तिशाली लोकतंत्र का राष्ट्रपति चुन लिया गया है। उन्हें राष्ट्रपति नहीं चुना जाना चाहिए था।
न्यूज एजेंसी एएनाई से बात करते हुए मणिशंकर अय्यर ने कहा, (अमेरिकी चुनाव से) नैतिक आयाम गायब था। यह बहुत दुखद है कि इतने शक्तिशाली देश का नेतृत्व ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाएगा, जिसे 34 अलग-अलग मामलों में अपराधी के रूप में दोषी ठहराया गया है। ऐसे चरित्र के आदमी को, जिसका इतिहास रहा है कि वह वेश्याओं के साथ संबंध बनाता था और उनको मुंह बंद करने के लिए पैसे देता था, ऐसे जलील आदमी को लोगों ने राष्ट्रपति चुना है। मुझे नहीं लगता कि इस तरह के चरित्र का व्यक्ति अपने देश या दुनिया के लिए अच्छा है।
ट्रंप और पीएम मोदी के संबंधों पर उठाया सवाल
कांग्रेस नेता ने ट्रंप के साथ पीएम मोदी के संबंधों पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि मैं यह भी मानता हूं कि पीएम मोदी और ट्रंप के बीच व्यक्तिगत स्तर पर एक विशेष तालमेल है, जो मुझे लगता है कि पीएम मोदी और उनकी व्यक्तिगत प्राथमिकताओं पर बुरा असर डालता है।
कमला हैरिस के लिए जताया दुख
अय्यर ने कमला हैरिस की हार पर भी दुख व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि कमला हैरिस, जो जीत जातीं, राष्ट्रपति बनने वाली भारत की पहली महिला और पहली राजनेता होतीं। यह एक ऐतिहासिक और सकारात्मक कदम होता। अय्यर ने कहा, जहां तक कमला हैरिस का सवाल है, उन्हें बहुत कम समय दिया गया था। वह पीछे से आगे आईं। वह बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रही थीं। लेकिन ऐसा लगता है कि अमेरिकी समाज में बहुत गहरी खामियां आखिरकार उनके खिलाफ हो गईं और वह इस दौड़ में हार गईं।





बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले और उनके खिलाफ हिंसा की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं। बांग्लादेश में शेख हसीने के तख्तापलट के बाद एक बार फिर हिंदू सॉफ्ट टारगेट बने हैं।उन्हें हिंसा और धमकियों का सामना करना पड़ रहा है। बांग्लादेश के अल्पसंख्यक समूह बांग्लादेश हिंदू बौद्ध ईसाई यूनिटी काउंसिल ने हिंदुओं पर हो रहे अटैक को लेकर कहा कि 4 अगस्त के बाद से हिंदुओं पर 2,000 से ज्यादा हमले हुए हैं। *हसीने के बाद कट्टरपंथी इस्लामवादी तेजी से प्रभावशाली हो रहे* शेख हसीना के सत्ता से हटने के बाद कट्टरपंथी इस्लामवादी तेजी से प्रभावशाली हो रहे हैं। यही वजह है कि शेख हसीना को सत्ता से बेदखल करने के बाद से ही हिंदुओं और अल्पसंख्यकों पर अत्याचार जारी है। शेख हसीना के पार्टी के नेताओं की हत्या तो की ही गई, हिंदुओं को भी निशाना बनाया गया। हिंदू महिलाओं और बेटियों का अपहरण और दरिंदगी की खबरें आईं। जो हिंदू अत्याचार के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं उन पर देशद्रोह का आरोप लगाया जा रहा है। मोहम्मद यूनुस की सरकार जहां एक तरफ हिंदु समुदाय के खिलाफ हमलों को रोकने में नाकाम साबित हुई है, तो दूसरी तरफ हिंदू नेताओं पर ही मुकदमा कायम करना शुरू कर दिया है। *अत्याचार के खिलाफ मुखर लोगों पर देशद्रोह के आरोप* बांग्लादेश की युनूस सरकार ने अब तक 19 हिंदू नेताओं पर मुकदमे दर्ज किए गए हैं और इनमें से 2 को गिरफ्तार भी कर लिया गया है। जिन नेताओं के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है उनमें हिंदू धार्मिक नेता चिन्मय कृष्ण दास ब्रह्मचारी भी शामिल हैं। वह बांग्लादेश में अस्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ मुखर हैं। इन सभी पर 25 अक्टूबर को चटगांव में एक प्रदर्शन के दौरान बांग्लादेश के राष्ट्रीय ध्वज के ऊपर भगवा झंडा फहराने का आरोप लगा है। बांग्लादेश सनातन जागरण मंच के नेता चिन्मय कृष्ण दास 5 अगस्त को शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद से हिंदुओं पर हमलों के खिलाफ होने वाले प्रदर्शनों में सबसे आगे रहे हैं। *अवामी लीग के सत्ता से हटते ही निशाने पर हिंदू* बांग्लादेश में प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि पूर्व की शेख हसीना के सत्ता से बाहर होने के बाद से उन्हें हिंसा और धमकियों का सामना करना पड़ रहा है। बांग्लादेश में राजनीति और सत्ता में परिवर्तन के साथ ही अल्पसंख्यकों ख़ासकर हिंदुओं की सुरक्षा का मामला बेहद संवेदनशील हो उठता है। बीते चार दशकों के राजनीतिक इतिहास को देखें, तो पता चलता है कि चुनाव में अवामी लीग के पराजित होने या सत्ता से हटने के बाद हिंदुओं पर हमले के आरोप सामने आते रहे हैं। साल 1992 में भारत में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद बांग्लादेश में पहली बार हिंदुओं पर बड़े पैमाने पर हमले किए गए थे। उस समय ख़ालिदा ज़िया के नेतृत्व वाली बीएनपी सरकार सत्ता में थी। उसके बाद साल 2001 के चुनाव में अवामी लीग की हार के बाद दूसरी बार हिंदुओं पर बड़े पैमाने पर हमले हुए थे। उस चुनाव में बीएनपी की जीत के बाद देश के विभिन्न ज़िलों में हिंदू समुदाय के लोगों पर हमले किए गए थे। हालाँकि उस समय न्यायमूर्ति लतीफ़ुर रहमान के नेतृत्व में कार्यवाहक सरकार सत्ता में थी। चुनाव के नतीजे घोषित होने के दिन से लेकर बीएनपी सरकार के शपथ ग्रहण के दौरान विभिन्न जगहों पर हिंदुओं पर हमले किए गए थे। बीएनपी के सत्ता संभालने के बाद भी ऐसी घटनाएँ जारी रही थीं। उन हमलों के मामले में तब बीएनपी की राजनीति से जुड़े कई लोगों के खिलाफ आरोप लगे थे। *मुस्लिम-बहुल बांग्लादेश में हिंदू आसान लक्ष्य* बांग्लादेश में सांप्रदायिक भावनाएं हमेशा मौजूद रही हैं। ऐसे लोग हैं जो अल्पसंख्यकों, खासकर हिंदुओं पर हमला करने का मौका तलाशते हैं। सांप्रदायिकता बांग्लादेशी समाज का एक कठिन तथ्य है। मुस्लिम-बहुल बांग्लादेश में हिंदू ऐतिहासिक रूप से एक आसान लक्ष्य रहे हैं, लेकिन इस बार की हिंसा असाधारण पैमाने पर है और तथ्य यह है कि दोषियों को सजा दिलाना मुश्किल हो सकता है। कुछ लोग यह तर्क दे सकते हैं कि हालिया हिंसा में राजनीतिक को सांप्रदायिक से अलग करना मुश्किल है, क्योंकि निशाने पर हसीना की अवामी लीग के सदस्य और पुलिस कर्मी रहे हैं। हालाँकि, मंदिरों पर हमले, हिंदुओं के स्वामित्व वाली दुकानों की लक्षित लूटपाट और उनकी संपत्तियों पर अतिक्रमण से पता चलता है कि कुछ हिंसा विशेष रूप से धार्मिक आधार पर निर्देशित की गई थी।
Nov 07 2024, 10:44
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