नालंदा जिले के गणपति की अनोखी कहानी : हर साल गणेश चतुदर्शी पर 10 दिनों के लिए थाना से आते हैं अपने घर, बाकी दिन रहते हैं थाने के मंदिर परिसर में
नालंदा : देशभर में गणेश उत्सव धूमधाम से हर्षोउल्लास के साथ मनाया जा रहा है। इस मौके पर आज हम आपको जिले की एक ऐसी अनोखी कहानी से परिचय कराते है जिसे जानकर आपको आश्चर्य होगा।
दरअसल जिले के सिलाव बाजार में स्थापित गणपति की अनोखी ही कहानी है| हर साल 10 दिनों के लिए भगवान गणेश की प्रतिमा को सिलाव थाना परिसर से बाहर लाया जाता है। यू कहें तो भगवान 10 दिनों के लिए वे अपने घर आते हैं उसके बाद 355 दिन थाना में बने मंदिर परिसर में पुलिस की निगरानी में रहते हैं |
इस प्रतिमा की अनोखी कहानी के बारे में गणेश भगवान की देखरेख करने वाले पुजारी बाल गोविंद राम ने बताया कि यह बेशकीमती पत्थर का तराशा हुआ प्रतिमा जो 150 साल पुरानी है। बेशकीमती होने के कारण इसपर हमेशा चोरों और मूर्ति तस्करों की नजर रहती है। 15 साल पहले एक बार तो मूर्ति की चोरी भी कर ली गई थी, लेकिन लोगों की नजर पड़ी और चोरों को पकड़ लिया गया। उसके बाद स्थानीय लोगों ने निर्णय लिया कि थाना परिसर के मंदिर में गणपति को सुरक्षित रखा जाए।
उन्होंने बताया कि गणेश भगवान की प्रतिमा 355 दिन थाना में रहती है और 10 दिनों के लिए पूजा के लिए बाहर लाया जाता है। पूजा समिति के लोग गणेश पूजा के समय थाना से 10 दिन के लिए बाजार लाकर पूजा पंडाल में प्रतिमा को स्थापित करते हैं और विधि विधान से पूजा की जाती है। पूजा की समाप्ति के बाद प्रतिमा को थाना के हवाले कर दिया जाता है। सिलाव थाना परिसर के मंदिर में इस प्रतिमा को रखा जाता है।
150 साल से भगवान गणेश की हर साल पूजा की जा रही है
पूजा समिति के लोगों की मानें तो भगवान गणेश की बेशकीमती प्रतिमा को पहले पूजा के बाद श्याम सरोवर स्थित ठाकुरबाड़ी में रखा जाता था। मगर एक बार इस मूर्ति को चुराने का प्रयास किया गया। स्थानीय लोगों ने अपनी जान पर खेलकर इस मूर्ति को बचाया। बावजूद इसके चोर की नजर इस मूर्ति पर थी, जिसके कारण स्थानीय लोगों ने निर्णय लिया कि इस मूर्ति को सिलाव थाना में रखा जाय और सिर्फ पूजा के दौरान ही इस मूर्ति को बाजार में बैठाया जाय। तब से लेकर अब तक सिर्फ 10 दिनों के लिए ही थाना से गणेश की प्रतिमा बाजार लाया जाता है और धूमधाम से पूजा के बाद फिर थाना के हवाले कर दिया जाता है।
जानकार यह भी बताते हैं कि किसी ज़माने में इस इलाके में मूर्ति कला की पढ़ाई होती थी तो पत्थरों को तराशने का कार्य पढ़ाई करने वाले छात्रों के द्वारा बनाया जाता था। उस समय मड़वाडी समाज के लोग व्यवसाय के लिए आया करते थे तो ठहरते थे, तो त्योहार के समय घर जाने का कोई साधन नहीं रहता था तो जहां रहे वहीं, त्योहार रहकर मनाने लगे। तभी से यहां गणेश चतुर्थी मनाने की परंपरा शुरू हुई जो आज तक जारी है।
नालंदा से राज
Sep 10 2024, 09:28