*सक्रिय क्षय रोग खोजी अभियान से पहले धर्मगुरु समाज से अपील, संभावित मरीजों को जांच और इलाज के लिए प्रेरित करें*
प्रधानमंत्री के नेतृत्व में वर्ष 2025 तक देश से टीबी का उन्मूलन करने के राष्ट्रव्यापी संकल्प को पूरा करने में धर्मगुरु समाज की अहम भूमिका है। समाज में उनकी बातों की स्वीकार्यता है। धर्मगुरु टीबी के लक्षणयुक्त संभावित मरीजों को जांच और इलाज के लिए प्रेरित करेंगे तो अधिकाधिक टीबी मरीजों की पहचान की जा सकेगी। यह बातें जिला क्षय उन्मूलन अधिकारी डॉ गणेश यादव ने कहीं। उन्होंने सक्रिय क्षय रोग खोजी अभियान से पहले धर्मगुरु समाज के संवेदीकरण बैठक को जिला क्षय रोग केंद्र में शनिवार को संबोधित किया । बैठक के जरिये धर्मगुरु समाज से अपील की गई कि वह लक्षणयुक्त अधिकाधिक संभावित मरीजों को जांच और इलाज के लिए प्रेरित करें।
डॉ गणेश यादव ने कहा कि अगर एक टीबी मरीज की समय से जांच और इलाज न हो तो वह एक वर्ष में दस से पंद्रह लोगों को इस बीमारी से संक्रमित कर सकता है। वहीं, अगर मरीज की समय से पहचान हो जाए और दवा शुरू कर दिया जाए तो तीन से चार सप्ताह बाद उसके जरिये दूसरे के संक्रमित होने की आशंका नहीं रह जाती है। समय से जांच और इलाज न होने के कारण ड्रग सेंसिटिव (डीएस) टीबी धीरे धीरे ड्रग रेसिस्टेंट (डीआर) टीबी में बदल जाती है। जहां डीएस टीबी महज छह माह में ठीक हो जाती है, वहीं डीआर टीबी के मरीज को ठीक होने में एक से डेढ़ साल का और कई बार उससे भी अधिक समय लग जाता है। डीआर टीबी के इलाज के दौरान मरीजों को कई प्रकार की जटिलताएं भी झेलनी पड़ती हैं। यही वजह है कि विभाग का जोर शीघ्र जांच और इलाज पर है।
जिला क्षय उन्मूलन अधिकारी डॉ यादव ने कहा कि टीबी बाल और नाखून को छोड़ कर शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकती है। अगर दो सप्ताह से अधिक समय तक खांसी आए, पसीने के साथ रात में बुखार हो, सीने में दर्द हो, तेजी से वजन घट रहा हो, सांस फूलती हो और बलगम में खून आए तो टीबी की जांच जरूर करानी चाहिए। जांच की सुविधा सभी सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर मौजूद है। जिले में सभी ब्लॉक स्तरीय अस्पतालों, जिला क्षय रोग केंद्र, बीआरडी मेडिकल कॉलेज और एम्स गोरखपुर में टीबी का इलाज सरकारी प्रावधानों के अनुसार किया जाता है और मरीज पर आर्थिक बोझ नहीं पड़ता है।
डॉ यादव ने बताया कि नौ सितम्बर से बीस सितम्बर तक जिले में सक्रिय क्षय रोग खोजी (एसीएफ) अभियान चलाया जाएगा । इसके तहत स्वास्थ्य विभाग की तीन सदस्यीय टीम करीब 10.88 लाख की आबादी के बीच जाएगी और टीबी के नये संभावित मरीजों को खोजेंगी। इन मरीजों की जांच कराई जाएगी और जिन लोगों में टीबी की बीमारी निकलेगी उन्हें समुचित इलाज दिया जाएगा।
इस मौके पर यूनिसेफ के डीएमसी डॉ हसन फहीम ने टीबी से बचाव में नियमित टीकाकरण की महत्ता बताई।उप जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ विराट स्वरूप श्रीवास्तव, डीपीसी धर्मवीर प्रताप सिंह, पीपीएम समन्वयक अभय नारायण मिश्र, मिर्जा आफताब बेग, टीवी एचआईवी कोआर्डिनेटर राजेश सिंह, कमलेश कुमार गुप्ता, टीबी चैंपियन चंद्र प्रकाश, इंद्रनील कुमार, मयंक, गोबिंद और केके शुक्ला ने आयोजन में प्रमुख तौर पर सहयोग दिया। विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रतिनिधि ने बैठक में तकनीकी जानकारियां प्रदान कीं।
धर्मगुरुओं ने दिया आश्वासन
संवेदीकरण बैठक के प्रतिभागी दर्जनों धर्मगुरुओं ने एसीएफ के दौरान और उसके बाद भी टीबी उन्मूलन कार्यक्रम में सक्रिय योगदान देने का संकल्प लिया। धर्मगुरु मोहम्मद अजीम फारुकी ने बताया कि बैठक के जरिये टीबी उन्मूलन के लिए चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं के बारे में विस्तार से जानकारी मिली है। स्वास्थ्य विभाग के प्रयास को सफल बनाने में धर्मगुरु समाज आगे बढ़ कर भागीदारी निभाएगा। इससे पहले भी उन्होंने एक टीबी मरीज की पहचान और इलाज में मदद की है।
मरीजों को मिलती हैं यह सुविधाएं
नये मरीज की अत्याधुनिक सीबीनॉट मशीन से जांच होती है
प्रत्येक टीबी मरीज की एचआईवी और मधुमेह की जांच भी कराई जाती है
इलाज चलने तक 500 रुपये प्रति माह पोषण के लिए खाते में धनराशि दी जाती है
टीबी मरीजों के निकट सम्पर्कियों की भी जांच कराई जाती है
मरीजों के निकट सम्पर्की में टीबी न मिलने पर भी उन्हें बचाव की दवा खिलाते हैं
आर्थिक तौर पर कमजोर मरीजों को निक्षय मित्रों की मदद से पोषण व मानसिक संबल दिलवाया जाता है
जिले में टीबी की स्थिति
डीआर टीबी मरीज 350
डीएस टीबी मरीज 8145
उपचार सफलता दर 93 फीसदी
Sep 08 2024, 20:20