दक्षिण भारत का कैलाश धाम कहे जाने वाले शिव भगवान का दूसरा ज्योतिर्लिंग है मल्लिकार्जुन

आइये जानते हैं इस धाम का महामात्य, पौराणिक अवधारणा और इतिहास


  - विनोद आनंद 

हिन्दू धर्म में देवों के देव शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में आपने प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथ के बारे कल स्ट्रीटबजज पर पढ़ा. आज हम आप को दूसरे ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुन के बारे में बताते हैं जिसे दक्षिण भारत का कैलाश कहा जाता है. जहाँ एक साथ भगवान् शिव, माता पार्वती, गणेश और कार्तिकेय विराजमान हैं.

श्री शैल पर्वत पर स्थित यह ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक हैं. ऐसा माना जाता है कि इस पर्वत पर जो भी व्यक्ति भगवान भोलेनाथ की पूजा करते हैं,उसे अश्वमेध यज्ञ के बराबर फल प्राप्त होता है और उसकी सभी मनोकामनाएं शीघ्र ही पूरी हो जाती हैं.

पौराणिक कथा


मल्लिकार्जुन मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथाएं हिंदू ब्रह्मांड विज्ञान और पवित्र महाकाव्यों में गहराई से निहित हैं. हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव और देवी पार्वती ने सृजन और विनाश के अपने दिव्य नृत्य में एक बार मल्लिकार्जुन और ब्रह्मराम्बा का रूप धारण किया था. माना जाता है कि यह मंदिर वह स्थान है जहाँ भगवान मल्लिकार्जुन और देवी ब्रह्मराम्बा ने दिव्य विवाह किया था.

किंवदंती है कि ऋषि नारद ने इस पवित्र स्थान पर भगवान शिव और पार्वती के दिव्य मिलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. मल्लिकार्जुन और ब्रह्मराम्बा का दिव्य विवाह ब्रह्मांडीय संतुलन और ब्रह्मांड में पुरुष और महिला ऊर्जा के शाश्वत नृत्य का प्रतीक है.

महाभारत से भी जुड़ा है इसकी दंतकथाएं


मल्लिकार्जुन मंदिर महान महाकाव्य महाभारत से भी जुड़ा हुआ है. लोककथाओं के अनुसार, पांडव भाई अपने वनवास के दौरान भगवान मल्लिकार्जुन का आशीर्वाद लेने के लिए इस पवित्र स्थल पर आए थे. कहा जाता है कि इस मंदिर में महाभारत के कई प्रसंग घटित हुए हैं, जो इसके पौराणिक आख्यान को और भी महत्वपूर्ण बनाते हैं.

अन्य दंतकथाएं


मल्लिकार्जुन मंदिर कई किंवदंतियों से सुशोभित है जो पीढ़ियों से चली आ रही हैं, जो इसकी पवित्रता में एक आकर्षक आभा जोड़ती हैं. ऐसी ही एक किंवदंती मल्लन्ना नामक एक भक्त चरवाहे की कहानी बताती है, जिसकी भगवान शिव के प्रति अटूट भक्ति थी.मल्लन्ना की गहरी श्रद्धा और निस्वार्थ भक्ति ने दिव्य हृदय को छू लिया और भगवान शिव, उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर, इस पवित्र स्थान पर मल्लिकार्जुन के रूप में प्रकट हुए.

दक्षिण भारतीय राज्य आंध्र प्रदेश में स्थित मल्लिकार्जुन मंदिर, इस क्षेत्र के सांस्कृतिक ताने-बाने में बुने गए इतिहास, पौराणिक कथाओं और किंवदंतियों के समृद्ध ताने-बाने का एक प्रमाण है. भगवान शिव के एक रूप भगवान मल्लिकार्जुन को समर्पित, यह पवित्र निवास सदियों से तीर्थयात्रियों, विद्वानों और भक्तों को आकर्षित करता रहा है. इस खोज में, हम मंदिर के इतिहास, इसकी पौराणिक जड़ों और किंवदंतियों के बारे में जानेंगे, जिन्होंने इसकी पहचान को आकार दिया है.

एक अन्य दंत कथा के अनुसार मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की कथा मान्यता है कि एक बार भगवान श्री गणेश और भगवान कार्तिकेय के बीच पहले विवाह करने को लेकर विवाद हो गया है. तब भगवान शिव ने उसका हल निकालते हुए कहा कि जो कोई पृथ्वी की सात बार परिक्रमा करके पहले आ जाएगा, उसका विवाह पहले होगा. इसके बाद भगवान कार्तिकेय मोर पर सवार होकर परिक्रमा करने के लिए निकल पड़े लेकिन भगवान श्री गणेश ने माता पार्वती और भगवान शिव की परिक्रमा की क्योंकि शास्त्रों में जो पुण्य पृथ्वी की परिक्रमा करने पर मिलता है वहीं माता-पिता की परिक्रमा से भी प्राप्त हो जाता है. 

इसके बाद जब भगवान ​श्री गणेश का विवाह हो जाने पर भगवान कार्तिकेय नाराज होकर क्रोंच पर्वत पर चले गए.तब हुआ इस ज्योतिर्लिंग का प्राकट्य होने कि 

मान्यता है. इस घटना के बाद उन्हें तमाम तरह से मनाने की कोशिश की गई लेकिन वे नहीं माने. इसके बाद जब तब माता पार्वती और भगवान शिव उनसे मिलने के लिए क्रोंच पर्वत पहुंचे तो इसकी जानकारी पाते ही वे भगवान कार्तिकेय और दूर चले गए. अंतत: भगवान शिव माता पार्वती के साथ उसी स्थान पर ज्योति स्वरूप धारण कर विराजमान हो गए. तब से यह पावन धाम मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है.

मल्लिकार्जुन मंदिर का इतिहास


मल्लिकार्जुन मंदिर का इतिहास इस क्षेत्र के ऐतिहासिक विकास के साथ जुड़ा हुआ है.हालांकि सटीक तिथियों को निर्धारित करना चुनौतीपूर्ण है, लेकिन ऐतिहासिक अभिलेखों से पता चलता है कि वर्तमान मंदिर के स्वरूप कि उत्पत्ति एक हज़ार साल से भी पहले की है. चालुक्य राजवंश, जो कला और वास्तुकला के संरक्षण के लिए जाना जाता है, ने मंदिर के शुरुआती विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

मंदिर की स्थापत्य शैली में चालुक्यों का प्रभाव स्पष्ट है, जिसकी विशेषता जटिल नक्काशी, अलंकृत स्तंभ और विभिन्न कलात्मक तत्वों का सामंजस्यपूर्ण मिश्रण है.सदियों से, मंदिर काकतीयों और विजयनगर साम्राज्य सहित विभिन्न राजवंशों के शासन के दौरान जीर्णोद्धार और विस्तार हुआ.

पाताल गंगा को लेकर किंवदंती


मंदिर के पास स्थित पवित्र जल निकाय पाताल गंगा के बारे में एक और रोचक कथा प्रचलित है। लोकप्रिय मान्यता के अनुसार, पाताल गंगा पवित्र गंगा नदी से जुड़ी हुई है, और इसके जल में डुबकी लगाने से आत्मा के पापों से मुक्ति मिलती है। ऐसा कहा जाता है कि ऋषि गौतम की तपस्या से अभिभूत होकर गंगा नदी स्वयं धरती में समा गई और पाताल गंगा के रूप में मल्लिकार्जुन मंदिर में प्रकट हुई।

मल्लिकार्जुन मंदिर में महाशिवरात्रि का त्यौहार बहुत धूमधाम से मनाया जाता है, यह पौराणिक कथाओं से भरा हुआ है. ऐसा माना जाता है कि इस शुभ रात्रि पर भगवान शिव और देवी पार्वती अपनी दिव्य उपस्थिति से मंदिर को सुशोभित करते हैं, और भक्त मल्लिकार्जुन और ब्रह्मराम्बा के दिव्य विवाह को देखने के लिए उमड़ पड़ते हैं.

निष्कर्ष


मल्लिकार्जुन मंदिर सिर्फ़ एक भौतिक इमारत नहीं है, बल्कि इतिहास, पौराणिक कथाओं और किंवदंतियों का जीवंत अवतार है। इसकी वास्तुकला पुराने राजवंशों की कहानियाँ बयान करती है, इसकी पौराणिक कथाएँ देवी-देवताओं के लौकिक नृत्य को बुनती हैं और इसकी किंवदंतियाँ विनम्र भक्तों की भक्ति को प्रतिध्वनित करती हैं। जैसे-जैसे तीर्थयात्री इस पवित्र निवास पर आते रहते हैं, मल्लिकार्जुन मंदिर भारत की स्थायी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत का एक कालातीत प्रमाण बना हुआ है।

प्रेरक प्रसंग:जो होना है होकर रहेगा, जहाँ होना है वहीं होगा यह शाश्वत सत्य है!वह कैसे आइये एक राजा की कहानी से जानते हैं!

विनोद आनंद 

जो शाश्वत है, जो सत्य है वह होकर रहता है. आप उसे नहीं टाल सकते. होनी को कोई नहीं टाल सकता है. हर प्राणी को उस दौर से गुजरना होता है. जो लोग जन्म लेते हैं उनकी मौत निश्चित है.आप मौत से जितना भागोगे मौत होंगी हीं, इसी लिए जीवन के जो क्षण मिले उसे ज़ीओ, अच्छे कर्म करके जिओ...., किसी के तकलीफ से खुश होने की जरूरत नहीं.. किसी को सता कर लूटने की जरुरत नहीं, कुछ भी तुम्हारा अपना नहीं. खाली हाथ आये हो खाली जाओगे. यही शाश्वत सत्य है.

  यह कैसे आओ एक कहानी के द्वारा आप को बताने का कोशिश करता हुँ. यह कहानी सत्य है. ऐसा हुआ है.और होता रहेगा.

क्या है कहानी..?


एक राजा ने सपना देखा. रात को सपने में उसने मौत को देखा. वह डर गया. उसने पूछा, "क्या बात है? तुम मुझे इतना डरा क्यों रही हो?"

मौत ने कहा, "मैं तुम्हें यह बताने आई हूं कि कल सूर्यास्त तक मैं आ रही हूं, इसलिए तैयार हो जाओ. यह सिर्फ दया के कारण है ताकि तुम तैयार हो सको."

राजा को इतना झटका लगा, उसकी नींद टूट गई. 

आधी रात हो चुकी थी; उसने अपने मंत्रियों को बुलाया और उसने कहा, "ऐसे लोगों को खोजो जो सपने की व्याख्या कर सकें, क्योंकि समय कम है। हो सकता है कि यह सच हो!"

फिर व्याख्याकार आए, लेकिन जैसा कि व्याख्याकार हमेशा होते आए हैं, वे महान विद्वान थे. 

वे कई बड़ी-बड़ी किताबें लेकर आए, और उन्होंने चर्चा और विवाद और तर्क करना शुरू कर दिया। और सूरज उगने लगा, और सुबह हो गई.

और एक बूढ़ा आदमी जो राजा का बहुत भरोसेमंद नौकर था, वह राजा के पास आया, और उसने उसके कान में फुसफुसाया,-

 "मूर्ख मत बनो. ये लोग हमेशा-हमेशा के लिए झगड़ते रहेंगे, और वे कभी किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचेंगे."

अब, हर कोई कोशिश कर रहा था कि उसकी व्याख्या सही हो, और राजा पहले से भी ज्यादा उलझन में था.

इसलिए उसने बूढ़े आदमी से पूछा, “तो मुझे क्या करना चाहिए?”

उसने कहा, - “उन्हें अपनी चर्चा जारी रखने दो. वे इतनी जल्दी समाप्त नहीं होने वाले हैं - और सूरज डूब जाएगा, क्योंकि एक बार उगने के बाद सूर्यास्त बहुत दूर नहीं है. बल्कि, मेरी सलाह मानो और भाग जाओ - कम से कम इस महल से भाग जाओ.

 कहीं और रहो! शाम तक जहां तक ​​संभव हो सके कहीं दूर पहुंच जाओ.”

राजा को तर्क सही लगा.

 राजा के पास बहुत तेज घोड़ा था, दुनिया का सबसे तेज. 

वह दौड़ा, वह भाग निकला. उसने सैकड़ों मील पार कर लिए.जब ​​तक वह एक निश्चित शहर में पहुंचा, सूरज बस डूबने ही वाला था. वह बहुत खुश था. 

उसने अपने घोड़े को थपथपाया और कहा, “तुमने अच्छा किया। हम बहुत दूर आ गए हैं.”

और जब वह अपने घोड़े को थपथपा रहा था, अचानक उसे लगा कि उसके पीछे कोई खड़ा है.

 उसने पीछे देखा - वही मौत की छाया. और मौत हंसने लगी. और राजा ने कहा, “क्या बात है? तुम क्यों हंस रहे हो?”

मृत्यु ने कहा, “मैं चिंतित थी क्योंकि तुम्हें इसी पेड़ के नीचे मरना था - और मुझे चिंता थी कि तुम कैसे पहुंचोगे.

तुम्हारा घोड़ा वास्तव में महान है! यह अच्छा रहा। मुझे भी अपने घोड़े को थपथपाने दो. 

इसीलिए मैं तुम्हारे सपने में आया था: मैं चाहता था कि तुम महल से भाग जाओ क्योंकि मैं बहुत चिंतित था कि यह कैसे होगा, तुम कैसे पहुँच पाओगे.

 जगह बहुत दूर लग रही थी, और केवल एक दिन बचा था। लेकिन तुम्हारे घोड़े ने अच्छा किया, तुम समय पर आ गए.”

तुम जहाँ भी जाओगे, तुम पाओगे कि मौत तुम्हारा इंतज़ार कर रही है। सभी दिशाओं में मौत इंतज़ार कर रही है.

 सभी जगहों पर मौत इंतज़ार कर रही है। इसलिए, इससे बचा नहीं जा सकता - तब मन इससे बचने का कोई तरीका सोचने लगता है.

यही सत्य है. यह कहानी यही बताता है की जो होना है होकर रहेगा. जो जहाँ होना है वहीँ होगा.

बहुतों के परिजन को किसी दुर्घटना में मौत होती है तो उसे अफ़सोस होता काश ये अगर घर से निकला नहीं होता तो उसकी मौत नहीं होती.

इंदिरा गाँधी को जब गोली लगी तो लोग सोच रहे थे सतबन्त व्यंत की ड्यूटी पीएम अवसर में नहीं होता तो उनकी हत्या नहीं होती. सच बात है. लेकिन दूसरी पहलू भी है हो सकता उनकी मौत उसी तरह लिखी हो. इसी लिए जिसकी मौत जहाँ जब लिखा हो उसी रूप में होंगी.

भारत का धार्मिक स्थल: 12 ज्योतिर्लिंगों में प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथ का अस्तित्व आक्रांताओं के हमले भी नहीं मिटा सके

 *  विनोद आनंद

सोमनाथ मंदिर द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रथम होने के साथ अपने में कई कहानियां और संदेश समेटे हुए हैं. ये ज्योतिर्लिंग हिंदू आस्था का बड़ा केंद्र भी रहा है.

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की ऊंचाई लगभग 155 फीट है. मंदिर के ऊपर एक कलश स्थापित है, जिसका वजन करीब 10 टन है. मंदिर में लहरा रहे ध्वज की ऊंचाई 27 फीट है.

शिव जी के 12 ज्योतिर्लिंग कि बात करें जिसे शिव के प्राचीन और सिद्ध ज्योतिर्लिंग माना जाता है और उसका पौराणिक महत्व है तो यह 12 ज्योतिर्लिंग सौराष्ट्र (गुजरात) में सोमनाथ, शैल पर्वत पर मल्लिकार्जुन, क्षिप्रा नदी के किनारे पर महाकालेश्वर, उज्जैन में ओंकारेश्वर या अमलेश्वर, झारखंड में वैद्यनाथ, नासिक में भीमशंकर, तमिलनाडु में रामेश्वरम, दारुकवन में नागेश्वर, वाराणसी में विश्वनाथ, गोदावरी तट पर त्र्यम्बेश्वर, उत्तराखंड में केदारनाथ, तथा औरंगाबाद में घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर है.इन 12 ज्योतिर्लिंग में सबसे पहला ज्योतिर्लिंग सोमनाथ की यहां चर्चा करते हैं और इन 12 ज्योतिर्लिंग कि फर्शन हम आप को स्ट्रीटबज्ज के सनातन पेज पर करम्बद्ध कराएँगे साथ हीं उस ज्योतिर्लिंग के महत्व, उसकी पौराणिक महत्व और उस से जुड़े इतिहास की जानकारी देंगे.

तो आइये सबसे पहले हम चर्चा करते हैं सोमनाथ मंदिर की.

सोमनाथ गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल स्थित प्रभास पाटन में समुद्र तट के किनारे स्थित एक भव्य मंदिर है। भगवान शिव के 12 पवित्र ज्योतिर्लिंगों में से एक सोमनाथ भी है। सोमनाथ मंदिर का उल्लेख शिव पुराण के अध्याय 13 में भी किया गया है।

सोमनाथ मंदिर कहाँ है..?


सोमनाथ मंदिर ,गुजरात के जूनागढ़ से करीब 95 किमी की दूरी पर स्थित हैं.यह मंदिर अरब सागर के किनारे स्थित है. वैसे जूनागढ़ पर्यटन के तौर पर बहुत प्रसिद्ध है. यहां कई बौद्ध गुफाये ,महबत मकबरा ,गिरनार हिल ,स्वामी नारायण मंदिर ,संग्रहालय आदि है जो पर्यटकों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है.जहाँ घुमा जा सकता है.

सोमनाथ मंदिर से समुद्र के नज़ारे देखने पर आप आनंद से सरोबार हो जायेंगे.समुद्र और उसकी आगे पीछे आती लहरों की आवाज़ ,मानो शिव की पूजा में लीन ओँकार की ध्वनि हो.सोमनाथ अरब सागर के किनारे बसा हुआ ज्योतिर्लिंग हैं.

यहाँ से वेरावल बंदरगाह भी काफी नजदीक हैं ,जहाँ कई बड़ी बड़ी व्यापारिक जहाज आप देख सकते हैं।मंदिर परिसर के बाहर चारो तरफ कई सारी दुकाने हैं. जहाँ से दूर से ही यह मंदिर साफ़ नजर आता हैं. बाजार के पास से ही शुरू होते इस मंदिर के परिसर को चारो ओर लोहे की ऊँची ऊँची झालिया लगी हैं ,और इन्ही के साथ एक जगह प्रवेश द्वार हैं ,जहाँ से अंदर सिक्योरिटी द्वारा चेक करके अंदर भेजा जाता हैं.

मंदिर के बायीं ओर पत्थर के पथ के बीच समुद्र की ओर इशारा करते हुए एक बड़ा स्तम्भ भी बना हुआ हैं ,जो कि यहाँ के लिए एक बड़ा आकर्षण का केंद्र हैं. जिस पर कुछ श्लोक भी लिखा हुआ हैं. उस श्लोक का मतलब समझाया हुआ हैं कि - इस दिशा में अगर आप सीधे सीधे समुद्र की ओर जाओगे ,तो दक्षिण ध्रुव तक कोई भी भूखंड बीच में नहीं आएगा.

अर्थात पुरे रास्ते दक्षिण ध्रुव तक केवल समुद्र ही समुद्र मिलेगा. इसे बाण स्तम्भ कहते हैं. हालाँकि यह ज्यादा पुराना नहीं लगता हैं ,परन्तु यह स्तम्भ और श्लोक यहाँ पहले भी रहा होगा ,जिसे केवल नया बनवाया गया हैं. मतलब इस बात की जानकारी काफी प्राचीन समय से लोगो को थी.

सोमनाथ मंदिर को लेकर है पौराणिक कथा


सोमनाथ मंदिर का जिक्र ऋग्वेद में भी बताया जाता हैं जो कि सबसे पुराना वेद हैं.माना जाता हैं यह मंदिर हर युग में बनता आया हैं.सबसे पहले इस मंदिर के बनने की कहानी कुछ इस प्रकार बताई जाती हैं कि - दक्ष प्रजापति की 27 बेटियों की शादी चंद्रदेव सोम का मतलब चंद्र होता हैं. से हुई जिनमे से एक ,'रोहिणी' से चंद्रदेव बहुत स्नेह करते थे. तो बाकी 26 बहनो ने यह शिकायत दक्ष प्रजापति से की ,जिन्होंने चंद्र को क्षय रोग होने का श्राप दिया.

चंद्र की शक्ति अब खत्म होने लग रही थी तो ब्रम्हा जी के कहने पर चंद्रदेव ने यहाँ शिव आराधना की और भगवान शिव ने यहाँ अवतरित होकर ,उनके श्राप मुक्त किया.

माना जाता हैं फिर चंद्रदेव ने यहाँ पहला सोमनाथ मंदिर स्वर्ण से बनवाया.दूसरी बार यह मंदिर रावण ने चांदी से बनवाया ,तीसरा श्री कृष्णा (द्वारका यहाँ नजदीक ही हैं )ने चन्दन से बनवाया था. इसके बाद यह मंदिर कई बार बनवाया गया.इस पर कई बार आक्रांताओं के आक्रमण और यहाँ नरसंहार भी हुए.लेकिन हर बार यह मंदिर वापस बनाया गया हैं.

आक्रांताओं के हमले और लूट के वाबजूद मंदिर का अस्तित्व और आस्था रहा क़ायम


 सोमनाथ मंदिर पर हमले की पहली कहानी एक यात्रा वृतांत (किताब उल हिन्द एवं तारीख उल हिन्द किताब )जो कि एक अरबी यात्री 'अलबरूनी ' ने लिखा था ,उस से शुरू होती हैं.

इस से वर्तमान अफ़ग़ानिस्तान के ग़जनी इलाके के तुर्क आक्रांता एवं लूटेरे महमूद गजनवी को सोमनाथ की समृद्धि एवं हवा में तैरते (मैग्नेटिक फिल्ड की वजह से )शिवलिंग के बारे में पता चला. 1026 ईसवी में अब वह इसे लूटने के लिए भारत पर अपना 16वा हमला करने को निकला,मतलब वो पहले भी भारत में 15 बार हमले कर चूका था। जिसमे कन्नौज पर आक्रमण एवं यह सोमनाथ पर आक्रमण सबसे भीषण था. करीब 30000 सैनिको की फौज लिए उसने भारत में प्रवेश किया तो कई जगह उसका रास्तों के छोटे बड़े राज्यों से सामना हुआ। परन्तु वो आगे बढ़ता गया,मंदिर के पास करीब 5000 राजपूत इसकी हिफाज़त के लिए ग़जनवी की सेना से भिड़े परन्तु ग़जनवी आखिरकार मंदिर में पहुंचने में सफल हुआ.

उसने यहाँ से अपार सम्पति लूटी ,शिवलिंग को तहस नहस कर दिया और बहुत ही भीषण नरसंहार किया. कहा जाता हैं कि वह सोमनाथ के दरवाजे से इतना प्रभावित हुआ कि उन्हें भी अपने साथ ग़जनी ले गया और उन्हें अपनी क़ब्र पर लगवाने की इच्छा रखी हुई थी. हालाँकि 1842 में जब अंग्रेजो ने किसी हिन्दू मुस्लिम मुद्दे के तहत ग़जनी स्थित उसकी कब्र से दरवाजे उखाड़ कर वापस भारत लाये तो पता चला कि उसकी कब्र पर सोमनाथ मंदिर वाले दरवाजे नहीं लगे थे. ये कब्र वाले दरवाजे अभी भी आगरा के लाल किले में रखे हुए हैं.

लेकिन कुछ सालों बाद गुजरात के राजा भीमदेव एवं मालवा के राजा भोज ने इस मंदिर को पुनः बनवा दिया. उसके बाद 1297 में अलाउदीन खिलजी के सेनापति 'अफ़ज़ल ' का इस जगह आना हुआ तो उसने खिलजी को इस मंदिर के बारे में बताया. 

खिलजी ने इसपर आक्रमण कर इसे फिर ध्वंस्त कर दिया और नरसंहार किया. स्थानीय लोगो ने फिर इस मंदिर को वापस बनवा दिया. 

100 साल के अंदर अंदर फिर ,गुजरात के राजा मुजफ्फरशाह ने यहा हमला कर नष्ट किया.

और 1412 मे मुजफ्फरशाह के बेटे ने भी इस मंदिर को तुड़वा दिया. यह मंदिर जितनी बार आक्रांताओं द्वारा तोडा गया ,हमारी आस्थाओं ने इसे फिर से और ज्यादा मजबूती के साथ इसे फिर से खड़ा कर दिया. 

1665 में औरंगजेब ने भी इसे तुड़वाया तो लोगों ने टूटे हुए मंदिर के खंडहर पर ही पूजा पाठ करना चालू कर दिया. औरंगजेब इस चीज से इतना चिढ़ा कि उसने खंडहर पर पूजा पाठ करते लोगो को भी मारने के लिए सेना भेज दी और नरसंहार करवा दिया. तो इस प्रकार यह मंदिर कई बार ऐसे हमले झेलता रहा और फिर खड़ा होता रहा.

सोमनाथ हमले का बदला लेकर गोगादेव जी ने किया वीरगति प्राप्त


जब गजनवी सोमनाथ हमले के लिए रेगिस्तानी इलाके में प्रवेश हुआ तो वहा के शासक गोगाजी के पराक्रम की गाथाये उसने सुनी थी. गोगाजी भी उधर अपने आराध्य देव शिव की रक्षा के लिए गजनवी से भिड़ने को तैयार थे.लेकिन गजनवी ने उनके पराक्रम की वजह से 3 बार उनके पास दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाया और हीरों के थाल उनके लिए भेजे. लेकिन गोगाजी ने उन थालो को फेक कर उसे युद्ध के लिए तैयार रहने का संदेश भिजवा दिया. लेकिन गजनवी इस युद्ध से बचने के लिए रास्ता बदल कर सोमनाथ की तरफ बढ़ गया.लेकिन गोगाजी ने आगे आने वाले राज्यों के राजाओं को सचेत कर दिया था. फिर भी सोमनाथ में लूट मचा जब वो वापस जाने को इसी रेगिस्तानी रास्ते से आया तो अब वो गोगाजी से मुकाबला करने की तैयारी में था. उधर गोगाजी ने भी पडोसी राज्यों के राजाओं को मदद के लिए आने का सन्देश भेज दिया था. गजनवी ने चालाकी दिखाई और निर्धारित दिन से कुछ दिन पहले ही अचानक गोगाजी के राज्य पहुंच हमला बोल दिया. गोगाजी के पास उस समय मात्र 1000 राजपूत सैनिक थे. कोई पडोसी मदद को ना पहुंच सके. करीब 80 वर्ष की उम्र के गोगाजी महाराज अपने 82 पुत्र,प्रपोत्र के साथ वीर गति प्राप्त हो गए. इसके बाद उनकी रानियों ने जोहर कर लिया. इनके 2 पुत्र जान बचाकर ,भेष बदल कर उसकी सेना मैं भी शामिल हुए. इन दोनों ने रेगिस्तान के भीषण गर्मी के इलाकों में उन्हें रास्ता भटकवा दिया.जिस से गजनवी के कई हज़ारो सैनिक मारे गए ,लेकिन उनके साथ साथ ये दोनों भी उन इलाकों में खुद को बचा ना पाए.

जहाँ गोगाजी महाराज वीरगति प्राप्त हुए उसी के पास एक जगह पर उनका एक मंदिर बनवाया गया ,जिसे गोगामेड़ी तीर्थ बोला जाता हैं. उनके वंश के जो राजपूत सैनिक बाद में मुस्लिम धर्म अपना चुके थे ,वे भी इन्हे आज काफी मानते हैं ,वो इन्हे गोगापीर के नाम से पुकारते हैं

 यह जगह राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के नोहर मैं स्थित हैं.यहाँ हिन्दू एवं मुस्लिम दोनों धर्म के लोग पूजा करते हैं एवं चढ़ावे में प्याज चढ़ाते हैं.

आज़ादी के बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल ने कराया मंदिर का पुनरुद्धार


भारत को आजाद होने के बाद 1947 -48 में जूनागढ़ रियासत के नवाब चाहते थे कि यह क्षेत्र पाकिस्तान में मिल जाए. तब सरदार वल्लभ भाई पटेल की सूझबूझ से इसे भारत में ही रखा गया. फिर सरदार वल्लभ भाई पटेल ने यहाँ स्थित सोमनाथ मंदिर के पुनरुद्धार का प्रण लिया एवं इसकी जिम्मेदारी श्री के. एम . मुंशी जी को दी. मंदिर का निर्माण कार्य चालू हुआ जिसमे सरकारी धन का इस्तेमाल बिलकुल नहीं हुआ क्योकि नेहरू जी नहीं चाहते थे कि भारत जैसे धर्म निरपेक्ष देश में किसी भी एक धर्म के काम में कोई राजनितिक योगदान हो. वल्लभ भाई पटेल का देहांत तो 1950 में ही हो गया था।1951 तक अब मंदिर बन चूका था एवं 11 मई 1951 को मंदिर को बड़े स्तर पर सभी के लिए खोलने की तैयारी के लिए कार्यक्रम किया गया जिसमे आने के लिए नेहरू जी ने साफ़ साफ़ मना कर दिया. डॉ.राजेंद्र प्रसाद ने यहाँ आने का आमंत्रण स्वीकार कर लिया. नेहरू जी ने उन्हें खत लिखकर उनके इस कार्यक्रम में शामिल होने को देश के लिए एक धर्मनिरपेक्षता के विरुद्ध गतिविधि बताया एवं उन्हें भी उस दिन मंदिर जाने से मना किया. लेकिन डॉ.राजेंद्र प्रसाद ने जी उनकी बात ठुकरा कर ना केवल वहा गए ,बल्कि काफी अच्छा भाषण भी दिया.तब से नेहरू जी की नाराजगी भी उनके लिए बढ़ गयी थी.

वर्तमान का सोमनाथ मंदिर सरदार वल्लभ भाई पटेल ,K. M. मुंशी जी एवं डॉ.राजेंद्र प्रसाद के ही सहयोग से सीना ताने अरब सागर के किनारे खड़ा हैं। सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट ,मंदिर विकास के लिए काफी प्रोजेक्ट्स पर भी काम करता हैं। वर्तमान में सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट के चेयरमैन खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी हैं।

मंदिर के एवं इसके आसपास के क्षेत्र के नीचे दबा हैं कई रहस्य -


कुछ ही महीने पहले IIT गांधीनगर एवं पुरातत्व विभाग की इस जमींन पर अध्यन की एक 32 पेज की रिपोर्ट सामने आयी.जिसमे यह बताया गया कि मन्दिर परिसर की 4 जगहों के नीचे कुछ इमारते एवं गुफाये स्थित हैं. GPR तकनीक के तहत उन्होंने पता लगाया हैं कि जमीन में 2 से 7 मीटर तक अंदर कुछ तीन मंजिला भवन बने हुए हैं. इन चार जगहों में मंदिर का मुख्य द्वार एवं सरदार पटेल की मूर्ति वाली जगह भी शामिल हैं.सरदार पटेल की मूर्ति के निचे कुछ गुफाये होने के बारे में बताया जा रहा हैं. इस रिपोर्ट पर आगे जांच करने के आदेश को अब हरी झंडी मिल गयी हैं ,जिसके अगले भाग में खुदाई करके इन चीजों का पता लगाया जायेगा.

आज का पंचांग, 2 जुलाई 2024:जानिये पंचांग के अनुसार आज का मुहूर्त और ग्रहयोग

राष्ट्रीय मिति आषाढ़ 11, शक सम्वत् 1946, आषाढ़, कृष्णा, एकादशी, मंगलवार, विक्रम सम्वत् 2081।

 सौर आषाढ़ मास प्रविष्टे 19, जिल्हिजा 25, हिजरी 1445 (मुस्लिम) तदनुसार अंगे्रजी तारीख 02 जुलाई सन् 2024 ई। 

सूर्य दक्षिणायन, उत्तर गोल, वर्षा ऋतु। राहुकाल अपराह्न 03 बजे से 04 बजकर 30 मिनट तक।

एकादशी तिथि प्रातः 08 बजकर 43 मिनट तक उपरांत द्वादशी तिथि का आरंभ।

 कृतिका नक्षत्र अगले दिन तड़के 04 बजकर 40 मिनट तक उपरांत रोहिणी नक्षत्र का आरंभ। 

धृतिमान योग पूर्वाह्न 11 बजकर 17 मिनट तक उपरांत शूल योग का आरंभ।

 बालव करण प्रातः 08 बजकर 43 मिनट तक उपरांत तैतिल करण का आरंभ। 

चन्द्रमा पूर्वाह्न 11 बजकर 14 मिनट तक मेष उपरांत वृष राशि पर संचार करेगा।

आज के व्रत त्योहार योगिनी एकादशी व्रत, सर्वार्थ सिद्धि योग।

सूर्योदय का समय 2 जुलाई 2024 : सुबह 5 बजकर 27 मिनट पर।

सूर्यास्त का समय 2 जुलाई 2024 : शाम में 7 बजकर 23 मिनट पर।

आज का शुभ मुहूर्त 2 जुलाई 2024 :

ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4 बजकर 7 मिनट से 4 बजकर 47 मिनट तक। 

विजय मुहूर्त दोपहर 2 बजकर 45 मिनट से 3 बजकर 40 मिनट तक रहेगा।

 निशिथ काल मध्‍यरात्रि रात में 12 बजकर 5 मिनट से 12 बजकर 46 मिनट तक। 

गोधूलि बेला शाम 7 बजकर 22 मिनट से 7 बजकर 42 मिनट तक। 

अमृत काल सुबह 10 बजकर 41 मिनट से 12 बजकर 25 मिनट तक।

आज का अशुभ मुहूर्त 2 जुलाई 2024 :

राहुकाल दोपहर में 3 बजे से 4 बजकर 30 मिनट तक। 

दोपहर में 12 बजे से 1 बजकर 30 मिनट तक गुलिक काल। सुबह 9 बजे से 10 बजकर 30 मिनट तक यमगंड। 

दुर्मुहूर्त काल सुबह 8 बजकर 14 मिनट से 9 बजकर 10 मिनट तक। 

इसके बाद 11 बजकर 25 मिनट से 12 बजकर 5 मिनट तक।

उपाय : आज हनुमानजी को चोला चढ़ाएं और बजरंग बाण का पाठ करें।

आज का राशिफल, 2जुलाई 2024:जानिये राशिफल के अनुसार आज आप का दिन कैसा रहेगा...?

मेष राशि- स्वास्थ्य की स्थिति पहले से बेहतर होगी। धन का आवक बढ़ेगा। प्रेम की स्थिति सुदृढ़ होगी। बच्चों की सेहत में सुधार होगा। व्यापार बहुत अच्छा रहेगा। पीली वस्तु पास रखें।

वृषभ राशि- चली आ रही परेशानी दूर होगी। स्वास्थ्य पहले से बेहतर होगा। प्रेम-संतान का साथ होगा। व्यापार भी बहुत अच्छा। पीली वस्तु का दान करें।

मिथुन राशि- खर्च की अधिकता मन को परेशान करेगी। स्वास्थ्य थोड़ा नरम-गरम रहेगा। प्रेम संतान ठीक रहेगा, व्यापार भी अच्छा है। पीली वस्तु का दान करें।

कर्क राशि- रुका हुआ धन वापस आएगा। आय के नवीन साधन बनेंगे। शुभ समाचार की प्राप्ति होगी। आय में सुधार होगा। प्रेम-संतान, व्यापार सब कुछ बहुत अच्छा है। लाल वस्तु पास रखें।

सिंह राशि- व्यापारिक स्थिति सुदृढ़ होगी। कोर्ट-कचहरी में विजय मिलेगी। स्वास्थ्य अच्छा है। प्रेम-संतान अच्छा है। व्यापार बहुत अच्छा है। काली जी को प्रणाम करते रहें।

कन्या राशि- भाग्य साथ देगा। यात्रा में लाभ होगा। धर्म-कर्म में हिस्सा लेंगे। स्वास्थ्य में सुधार होगा। प्रेम, संतान, व्यापार सबकुछ बहुत अच्छा है। पीली वस्तु का दान करें।

तुला राशि- महत्वपूर्ण कार्य दोपहर से पहले निपटा लें, इसके बाद समय खराब हो जाएगा। चोट-चपेट लग सकती है। किसी परेशानी में पड़ सकते हैं। परिस्थितियां प्रतिकूल हो जाएंगी। स्वास्थ्य मध्यम, प्रेम-संतान अच्छा। व्यापार ठीक ठाक रहेगा। भगवान विष्णु को प्रणाम करते रहें।

वृश्चिक राशि- जीवनसाथी का भरपूर सहयोग मिलेगा। रोजी-रोजगार में तरक्की करेंगे। नौकरी-चाकरी की स्थिति अच्छी रहेगी। प्रेमी-प्रेमिका की मुलाकात हो सकती है और शादी-ब्याह तय हो सकता है। स्वास्थ्य, प्रेम व व्यापार बहुत अच्छा है। पीली वस्तु पास रखें।

धनु राशि- शत्रुओं पर विजय पाएंगे। स्वास्थ्य अच्छा है। प्रेम संतान की स्थिति अच्छी है। व्यापार अच्छा है। लेकिन थोड़ी परेशानी बनी रहेगी। पीली वस्तु पास रखें।

मकर राशि- भावुकता पर काबू रखें। स्वास्थ्य करीब-करीब ठीक है। प्रेम संतान की स्थिति थोड़ी मध्यम रहेगी लेकिन खराब नहीं रहेगी। व्यापार अच्छा रहेगा। काली जी को प्रणाम करते रहें।

कुंभ राशि- भौतिक सुख-संपदा में वृद्धि होगी। प्रेम कलह के संकेत हैं लेकिन कुछ अच्छा माहौल भी रहेगा। भूमि, भवन व वाहन की खरीदारी हो सकती है। स्वास्थ्य ठीक ठाक है, प्रेम संतान अच्छा। व्यापार अच्छा। काली जी को प्रणाम करते रहें।

मीन राशि- व्यापारिक स्थिति सुदृढ़ होगी। अपनों का साथ होगा। स्वास्थ्य में सुधार होगा। प्रेम संतान का साथ। व्यापार बहुत अच्छा। पीली वस्तु पास रखें।

*इंद्रदेव ने बारिश से स्वयं किया सोमनाथ महादेव का अभिषेक, देखिये यह वीडियो* -
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प्रेरक प्रसंग :-समस्याओं से भागना बड़ी समस्याएं बन जाती है, उस से मुकाबला कर ही हम सफलता पा सकते हैं, आइये जानते हैं इस प्रसंग से इन बातों को...

- विनोद आनंद 

जीवन है तो समस्याएं है. समस्याएं से हम पीछा नहीं छुड़ा सकते हैं बस संघर्ष कर सकते हैं. परन्तु जो लोग समस्याओं से डर जाते हैं उन्हें जीवन में कभी सफल नहीं हो पाते हैं. 

 हमें सफलता के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए बाधाओं को पार करना जरूरी है। उसका हम निडर होकर सामना करें तभी उपलब्धियां हासिल हो सकती है.

मेरे एक मित्र जो मेरे साथ पढता था, उसके पिता बड़े पैसे वाले थे. पिता का सपना था बेटा पढ़े, पढ़ लिखकर बड़ा आदमी बने वह स्कूल जाने लगा, शिक्षक का टास्क, उसे पुरा नहीं कर पाने पर शिक्षक की छड़ी , प्रतिदिन किताबों के बोझ तले दबे रहना, यह सब उसके लिए बहुत कठिन था, वाह पिता के डर से स्कूल जाता था, परन्तु स्कूल से भाग जाता था, बच्चों के साथ खेलता था. यह उसकी समस्याओं से भागने की शुरुआत थी. यह सिलसिला चलता रहा, वह जीवन में हर समस्याओं से भगा, किसी भी बोझ को लेकर नहीं चल सका, पिता ने अपने कारोबार में लगाया वहां से भागा, पिता के मृत्यु के बाद कारोबार डूब गयी, शादी होने पर पत्नी ने उसे छोड़ दिया, अपने जमीन घर भी बेच डाला और अंत में पागल होकर मर गया.

समस्याओं से भगाना समस्याएं पैदा करती है जो उसके साथ हुआ समस्याओं से हमें मुकाबला करनी चाहिए तभी उसका हाल निकलता है.समस्या को लेकर मैं एक और लोक कथा सुनाता हुँ.

 पुराने समय की बात है एक व्यापारी समुद्र के रास्ते दूसरे देशों में जाकर व्यापार करता था। व्यापारी जहाज से यात्रा करता था। उसके अच्छे व्यापार को देखकर व्यापारी का एक नया साझेदार बन गया। साझेदार ने भी व्यापारी के साथ धन लगा दिया।

जब समुद्र यात्रा पर जाने का समय आया तो नया साझेदार डर गया। वह सोच रहा था कि अगर बीच समुद्र में तूफान आ गया तो सबकुछ खत्म हो जाएगा। प्राण संकट में फंस जाएंगे। नए साथी ने सेठ से भी कहा कि उन्हें इस समय यात्रा पर नहीं जाना चाहिए। लेकिन, सेठ ने कहा कि यात्रा पर तो जाना होगा, वरना नुकसान हो जाएगा।

जहाज चलाने वाले अन्य लोग भी वहां पहुंच गए। साझेदार ने सोचा कि मैं जहाज चलाने वाले लोगों को डरा देता हूं, जिससे कि ये यात्रा रुक जाएगी। 

उसने एक व्यक्ति से कहा कि तुम्हारे पिता हैं या नहीं। व्यक्ति ने कहा कि एक समुद्री तूफान में उनकी मृत्यु हो गई है। साझेदार ने फिर पूछा कि तुम्हारे दादा? व्यक्ति ने कहा कि दादा भी समुद्र तूफान की वजह से मारे गए। परदादा के साथ भी भी ऐसा ही हुआ था।

साझेदार हंसने लगा!

वह बोला- कि भाई जब तुम्हारे घर में समुद्र की वजह से इतने लोगों की मृत्यु हो गई है तो तुम फिर भी ये काम कर रहे हो और फिर यात्रा पर जा रहे हो?

जहाज चलाने वाले व्यक्ति ने नए साझेदार से पूछा कि आपके पिता मृत्यु कैसे हुई? 

साझेदार ने कहा कि वे आराम से पलंग पर सो रहे थे और उनकी मृत्यु हो गई। मेरे दादा और परदादा भी आराम से पलंग पर सोते-सोते ही मृत्यु को प्राप्त हुए।

जहाज चलाने वाले ने कहा कि साहब, आपके घर में भी पलंग पर सोते-सोते इतने लोग मरे हैं, फिर भी आप रोज पलंग पर सोते हैं, आपको डर नहीं लगता?

 उसने समझाया कि हमें समस्याओं से डरना नहीं चाहिए। डरेंगे तो छोटी सी समस्या भी बड़ी लगने लगेगी।

ये सुनकर साझेदार को समझ आ गया कि उसका डर व्यर्थ है। 

इसके बाद उसने भी साहस दिखाया और समुद्री यात्रा पर जाने के लिए तैयार हो गया।

इस प्रसंग की सीख यह है कि हमें समस्याओं से डरकर रुकना नहीं चाहिए। अगर रुक जाएंगे तो हमारी बाधाएं कभी दूर नहीं हो पाएंगी। बल्कि, छोटी सी समस्या भी बड़ी होती जाएगी।

आज का पंचांग- 1 जुलाई 2024 :

जानिये पंचांग के अनुसार आज का मुहूर्त और ग्रहयोग विक्रम संवत- 2081, पिंगल शक सम्वत- 1946, क्रोधी पूर्णिमांत- आषाढ़ अमांत- ज्येष्ठ तिथि दशमी - 10:26 ए एम तक नक्षत्र अश्विनी - 06:26 ए एम तक योग सुकर्मा - 01:42 पी एम तक सूर्य और चंद्रमा का समय सूर्योदय- 05:26 ए एम सूर्यास्त- 07:23 पी एम चन्द्रोदय- 1:55 ए एम, जुलाई 02 चन्द्रास्त- 2:59 पी एम अशुभ काल राहू- 07:11 ए एम से 08:56 ए एम यम गण्ड- 10:41 ए एम से 12:25 पी एम कुलिक-02:10 पी एम से 03:54 पी एम आडल योग- 05:27 ए एम से 06:26 ए एम दुर्मुहूर्त- 12:53 पी एम से 01:49 पी एम, 03:40 पी एम से 04:36 पी एम वर्ज्यम्- 03:38 पी एम से 05:11 पी एम शुभ काल अभिजित मुहूर्त - 11:57 ए एम से 12:53 पी एम अमृत काल - 12:51 ए एम, जुलाई 02 से 02:23 ए एम, जुलाई 02 ब्रह्म मुहूर्त - 04:06 ए एम से 04:47 ए एम
आज का राशिफल, 01 जुलाई 2024 : जानिये राशि के अनुसार आज आप का दिन कैसा रहेगा...?*

मेष राशि- एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो रहा है। लक्ष्मी का योग बना हुआ है। स्वास्थ्य में बहुत अच्छा बदलाव या एक एनर्जी आ रही है। प्रेम, संतान, व्यापार, परिवार सब कुछ खुशहाल दिख रहा है। काली जी को प्रणाम करते रहें। वृषभ राशि- खर्च बहुत अधिक हो रहा है। स्वास्थ्य थोड़ा सा चिड़चिड़ापन वाला है। प्रेम संतान का साथ है। व्यापार भी लगभग ठीक चल रहा है। लाल वस्तु का दान करें। मिथुन राशि- आय के नए मार्ग बन रहे हैं। रुका हुआ धन भी वापस मिल रहा है। यात्रा का योग बन रहा है। स्वास्थ्य बहुत अच्छा है। प्रेम संतान बहुत अच्छा है, व्यापार बहुत अच्छा है। बजरंगबली की शरण में बने रहें, उन्हें प्रणाम करते रहें अच्छा होगा। कर्क राशि- व्यापार का विस्तार होगा। स्वास्थ्य में सुधार होगा। प्रेम का साथ होगा। संतान आज्ञा का पालन करेगी। शुभ समय। लाल वस्तु पास रखें। सिंह राशि- भाग्य साथ देगा। यात्रा का योग बनेगा। धर्म कर्म में हिस्सा लेंगे। कार्यों की विघ्न बाधा खत्म होगी। स्वास्थ्य में सुधार होगा। प्रेम और संतान सब बहुत अच्छे से रहेंगे। लाल वस्तु पास रखें। कन्या राशि- चोट चपेट लग सकती है। किसी परेशानी में पड़ सकते हैं। परिस्थितियां प्रतिकूल हैं बचकर पार करें। स्वास्थ्य पर ध्यान दें। प्रेम संतान ठीक है। व्यापार भी लगभग ठीक रहेगा। लाल वस्तु का दान करें। तुला राशि- जीवनसाथी के साथ चली आ रही परेशानी दूर होगी। नौकरी चाकरी की स्थिति सुदृढ़ होगी अच्छी होगी। प्रेमी प्रेमिका की मुलाकात संभव है। शादी ब्याह तय हो सकता है कुंवारों के। स्वास्थ्य, प्रेम, व्यापार बहुत अच्छा है। बजरंगबली को प्रणाम करते रहें। वृश्चिक राशि- शत्रु भी मित्र बनने की कोशिश करेंगे। नतमस्तक होंगे। कार्यों की विघ्न बाधा खत्म होगी। स्वास्थ्य थोड़ा नरम गरम, प्रेम संतान अच्छा, व्यापार भी अच्छा। लाल वस्तु पास रखें। धनु राशि- स्वास्थ्य अच्छा है। प्रेम संतान का साथ है। व्यापार बहुत अच्छा है। लिखने पढ़ने में समय व्यतीत करेंगे। शुभ समय है। लाल वस्तु पास रखें। मकर राशि- भूमि भवन वाहन की खरीदारी होगी। भौतिक सुख सुविधा में वृद्धि होगी। स्वास्थ्य अच्छा है। प्रेम संतान का साथ है। व्यापार बहुत अच्छा है। काली जी को प्रणाम करते रहें। कुंभ राशि- व्यापारिक स्थिति सुदृढ़ होगी। अपनों का साथ होगा। एक नयापन सा रहेगा व्यापार में। स्वास्थ्य अच्छा है, प्रेम संतान का भरपूर सहयोग है। व्यापार तो अच्छा बताया ही है हमने। लाल वस्तु का दान करें। मीन राशि- धन का आवक बढ़ेगा। कुटुंबों में वृद्धि होगी। स्वास्थ्य में सुधार होगा। प्रेम संतान का साथ होगा। लाल वस्तु पास रखें।
उज्जैन की गढ़कालिका मंदिर, जहाँ होती है पूजा से भक्तों की मनोकामना पूरी, महाकवि कालिदास पर भी थी माँ की कृपा, तभी हुए थे जीवन में सफल

सनातन डेस्क 

महाकाल कि धार्मिक नगरी उज्जैन का नाम आते हीं श्रद्धा से सर झुक जाता है. इस नगरी में शिव सक्षात् विराजमान हैं. उनकी जीवंत शक्तियां को लेकर लोगों में आस्था है जनके दर्शन मात्र से लोगों का कल्याण होता है. वहीँ इस नगरी में शिव के साथ माँ शक्ति भी विराजमान हैं.  

 इसी उज्जैन में महाकवि कालिदास की आराध्य देवी गढ़कालिका का भी मंदिर है। वैसे तो गढ़ कालिका का मंदिर शक्तिपीठ में शामिल नहीं है, किंतु उज्जैन क्षेत्र में मां हरसिद्धि शक्तिपीठ होने के कारण इस क्षेत्र का महत्व बढ़ जाता है.

 पुराणों में उल्लेख मिलता है कि उज्जैन में शिप्रा नदी के तट के पास स्थित भैरव पर्वत पर मां भगवती सती के ओष्ठ गिरे थे। नवरात्रि के समय यहां पर तांत्रिक पूजा का बड़ा महत्व है. अष्टमी और नवमी पर यहां रात्रि में तंत्र मंत्र द्वारा पूजा-पाठ अर्चना की जाती है.

महाकवि कालिदास के संबंध में मान्यता है कि जब से वह इस मंदिर में पूजा-अर्चना करने लगे तभी से उनके प्रतिभाशाली व्यक्तित्व का निर्माण होने लगा. कालिदास रचित 'श्यामला दंडक' महाकाली स्तोत्र एक सुंदर रचना है. ऐसा कहा जाता है कि महाकवि कालिदास के मुख से सबसे पहले यही स्तोत्र प्रकट हुआ था. यहां प्रत्येक वर्ष कालिदास समारोह के आयोजन के पूर्व मां कालिका की पूजा आराधना कर कलश यात्रा निकाली जाती है.

यहां विराजमान मूर्ति सतयुग के समय की मानी जाती है

नवरात्रि में गढ़ कालिका के मंदिर में मां कालिका के दर्शन के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है.

तांत्रिकों की देवी कालिका के इस चमत्कारिक मंदिर की प्राचीनता के विषय में कोई नहीं जानता, फिर भी माना जाता है कि इसकी मूर्ति सतयुग काल के समय की है. बाद में इस प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार सम्राट हर्षवर्धन द्वारा किए जाने का उल्लेख मिलता है.

 बाद यह कहा जाता है कि ग्वालियर के महाराजा ने इसका पुनर्निर्माण कराया।

लिंग पुराण में भी कथा है कि जिस समय रामचंद्रजी युद्ध में विजयी होकर अयोध्या जा रहे थे, वे रुद्रसागर तट के निकट ठहरे थे. इसी रात्रि को भगवती कालिका भक्ष्य की खोज में निकली हुईं इधर आ पहुंचीं और हनुमान को पकड़ने का प्रयत्न किया, परंतु हनुमान ने महान भीषण रूप धारण कर लिया.

तब देवी डरकर भागीं। उस समय अंश गालित होकर पड़ गया. जो अंश पड़ा रह गया, वही स्थान कालिका के नाम से विख्यात है.

इसी मंदिर के निकट लगा हुआ स्थिर गणेश का प्राचीन और पौराणिक मंदिर है. इसी प्रकार गणेश मंदिर के सामने भी एक हनुमान मंदिर प्राचीन है, वहीं विष्णु की सुंदर चतुर्मुख प्रतिमा है. खेत के बीच में गोरे भैरव का स्थान भी प्राचीन है. गणेशजी के निकट ही से थोड़ी दूरी पर शिप्रा की पुनीत धारा बह रही है. इस घाट पर अनेक सती की मूर्तियां हैं। उज्जैन में जो सतियां हुई हैं; उनका स्मारक स्थापित है. नदी के उस पार उखरेश्वर नामक प्रसिद्ध श्मशान-स्थली है.

 

यहां पर नवरा‍त्रि में लगने वाले मेले के अलावा भिन्न-भिन्न मौकों पर उत्सवों और यज्ञों का आयोजन होता रहता है. मां कालिका के दर्शन के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं. 

कालिका माता से क्षम

अगर किसी मानसिक कलह, तनाव या परेशानी से जूझ रहे हैं तो शुक्रवार के दिन मां कालिका के मंदिर में जाकर उनसे अपने द्वारा किए गए सभी जाने-अनजाने पापों की क्षमा मांग लें और फिर कभी कोई बुरा कार्य नहीं करने का वादा कर लें. ध्यान रहे, वादा निभा सकते हों तो ही करें अन्यथा आप मुसीबत में पड़ सकते हैं। यदि आपने ऐसा 5 शुक्रवार को कर लिया तो तुरंत ही आपके संकट दूर हो जाएंगे.

 

11 या 21 शुक्रवार कालिका के मंदिर जाएं और क्षमा मांगते हुए अपनी क्षमता अनुसार नारियल, हार-फूल चढ़ाकर प्रसाद बांटें. 

माता कालिका की पूजा लाल कुमकुम, अक्षत, गुड़हल के लाल फूल और लाल वस्त्र या चुनरी अर्पित करके भी कर सकते हैं. भोग में हलवे या दूध से बनी मिठाइयों को भी चढ़ा सकते हैं.

 

अगर पूरी श्रद्धा से मां की उपासना की जाए तो आपकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो सकती हैं. अगर मां प्रसन्न हो जाती हैं, तो मां के आशीर्वाद से आपका जीवन बहुत ही सुखद हो जाता है.