*सीतामढ़ी में लवकुश ने बांधा अश्वमेघ का घोड़ा, भू-प्रवेश सीता मंदिर में बंधे हुए हैं हनुमान जी*
भदोही- अयोध्या में भगवान श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा की तैयारी तेजी से चल रही है। प्रभु राम और माता सीता से जुडे़ स्थानों की चर्चा इस समय अधिक है। भदोही के सीतामढ़ी में भगवान श्रीराम आए थे। इसका जिक्र पद्मपुराण के पाताल खंड में है। वाल्मीकि आश्रम के महंत पं. हरि प्रसाद मिश्र शास्त्री ने बताया कि प्रभु राम ने जब माता सीता को वन में भेज दिया था तो वैदेही सीतामढ़ी स्थित महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में पहुंची थीं। महर्षि वाल्मीकि आश्रम में ही उन्होंने अपना द्वितीय वनवास व्यतीत किया। आश्रम में ही सीता माता ने गुप्त नवरात्र आषाढ़ शुक्ल पक्ष नवमी को लव और कुश कुमारों को जन्म दिया।
श्री राम ने अयोध्या का राज्य संभालने के पश्चात अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया। यज्ञ का घोड़ा छोड़ा गया। सीतामढ़ी में गुरु वाल्मीकि के सानिध्य में लव-कुश कुमारों की शिक्षा-दीक्षा चल रही थी। दोनों कुमार साथ-साथ खेलते और युद्ध अभ्यास करते थे। उन्होंने अश्वमेध के घोड़े को पकड़कर बांध दिया। घोड़े के साथ आए सैनिकों ने बालकों से घोड़े को छोड़ने के लिए कहा। कुमारों ने उनकी बात नहीं मानी और घोड़े को अपने साथ आश्रम में ले गए। सैनिकों ने इसकी जानकारी लक्ष्मण और हनुमान को दी।लवकुश और लक्ष्मण में युद्ध हुआ। लक्ष्मण मूर्छित हो गए। हनुमान को भी लवकुश ने बांध लिया और चतुरंगिनी सेना को पराजित कर दिया। इसके बाद भरत, शत्रुघ्न और पुत्रों को भी दोनों कुमारों ने परास्त कर दिया। इसके प्रभु श्री राम बालकों को देखने खुद यहां स्थान पहुंचे। श्री राम ने दोनों बालकों को समझाया और घोड़ा छोड़ने को कहा लेकिन कुमारों ने राम को युद्ध के लिए ललकारा। पिता-पुत्रों के बीच युद्ध की नौबत देखकर महर्षि वाल्मीकि माता सीता को लेकर पहुंचे और सारी बात बताई।
श्री सीता समाहित स्थल मंदिर के निचले तल में भू प्रवेश करती मां सीता की अद्भुत दिव्य मूर्ति स्थापित है। मूर्ति के पीछे त्रेतायुगीन गाथाओं की पृष्ठभूमि को उकेरा गया है। जिसमे लवकुश कुमारों ने हनुमान जी के दोनों हाथ बांध रखे हैं। जबकि श्री राम की चतुरंगिनी सेना मूर्छित हो कर जमीन पर पड़ी है। इसी तरह तमाम योद्धाओं की मूर्ति इस पृष्ठभूमि में देखी जा सकती है।
Jan 20 2024, 14:15