तृतीय विश्व युद्ध के मुहाने पर दुनिया संदर्भ : पाकिस्तान ने ईरान के रिहायशी इलाकों पर किया हमला
यूक्रेन- रूस युद्ध , इसराइल - हमास युद्ध , अमेरिका- हूती युद्ध और ताजा ईरान- पाकिस्तान युद्ध । आज विश्व में कहीं भी शांति नहीं है।  हजारों लोग मारे जा रहे हैं। शहर के शहर तबाह हो रहे हैं । आबादी वाले क्षेत्रों में मिसाइलों से हमले किये जा रहे हैं । कभी इंसानी चहल-पहल से भरे रहने वाले शहर आज खंडहर के रूप में नजर आ रहे हैं।  इन युद्धों में कितनी क्षति होती है उसका आकलन कर पाना मुमकिन नहीं।
शायर बसीर बद्र की एक ग़ज़ल है -
    लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में।
    तुम तरस खाते नहीं बस्तियां जलाने में।।
    हर धड़कते पत्थर को दिल समझते हैं।
    उम्र बीत जाती है दिल को दिल बनाने में।।
युद्ध किसी भी समस्या का समाधान नहीं होते। इससे युद्ध में शामिल देशों को भी बहुत भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है।  युद्ध वर्तमान और आने वाली पीढ़ी पर बुरा असर डालता है।  युद्ध लंबा चलने से लोगों को मानसिक और भावनात्मक आघात लगता है।
आज जब भी दो देशों के बीच युद्ध होता है तो ऐसी- ऐसी मिसाइलें दागी जाती हैं जो इंसानी बस्तियों को श्मशान बनाने में देर नहीं करतीं। मालूम हो कि युद्ध रत देशों को आधुनिक हथियारों की आवश्यकता होती है। इनमें गोला-बारूद, मिसाइलें, अत्याधुनिक ड्रोन आदि शामिल हैं।
इनकी सप्लाई के लिए एक लाबी सक्रिय रहती है जो हथियार बनाने वाले देशों के संपर्क में रहती है। इनमें अमेरिका सबसे पहले स्थान पर है।
क्यों होते हैं युद्ध : युद्ध आमतौर पर किसी देश या देशों के समूह द्वारा किसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए विद्रोही ताकतों के खिलाफ लड़ा जाता है। युद्ध आर्थिक, क्षेत्रीय ,धार्मिक ,राजनीतिक ,नागरिक प्रतिशोध और वैचारिक सहित कई कारणों से लड़े जाते हैं।
युद्ध रत देशों की पीठ थपथपाते रहते हैं हथियार निर्माता देश : आज दुनिया तृतीय विश्व युद्ध के मुहाने पर आप पहुंची है। कहीं भेड़िया आया - भेड़िया आया वाली कहावत चरितार्थ न हो जाये। क्योंकि हथियार निर्माता देश युद्ध में शामिल देशों की पीठ को थपथपाते रहते हैं और उन्हें हथियारों की आपूर्ति कर अपना खजाना भरते रहते हैं।
वहीं युद्ध तभी होने चाहिए जब कोई हमारी शांति की नीति को हमारी कमजोरी मानकर आतंकवादी हरकतों को अंजाम दे, किसी देश की न्यूक्लियर धमकी आदि पर युद्ध करना आवश्यक हो जाता है। 2014 से पहले तक हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान हमेशा सीमा पर गोलीबारी करता रहता था। इससे हमारे सैनिक मारे जाते थे। लेकिन सर्जिकल और एयर स्ट्राइक  से उसके होश ठिकाने आ गये। भारतीय वायुसेना के विंग कमांडर अभिनंदन की पाकिस्तान से वापसी की कहानी तो सबको मालूम ही है।
और अंत में युद्ध एक दुखद जुनून कहा जा सकता है। लालच,भय, और घमंड ही है जो दो देशों को युद्ध करने के लिए उकसाते हैं।
इंडी गठबंधन की नजर केवल 143 सीटों पर संदर्भ : राजद और कांग्रेस को सीटों के बंटवारे की कोई चिंता नहीं
इंडी गठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। उसकी नजर भारतीय जनता पार्टी से बची सीटों पर ही है। सभी जानते हैं कि बीजेपी को रोकना उनके बस की बात नहीं। और ये भी समझ रहे हैं कि बीजेपी 400 आंकड़ा छू सकती है।
वहीं दूसरी ओर कुर्सी का मोह नीतीश कुमार को एक बार फिर पलटी मारने पर विवश कर सकता है। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद का प्रधानमंत्री बनने का सपना तो चारा घोटाले के कारण चूर-चूर हो गया। अब वे अपने पुत्र तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनता देखना चाहते हैं। यह नीतीश के बिहार में रहते संभव नहीं दिखता। इस लिए इंडी गठबंधन के घटक दल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को संयोजक बनाने को राजी हो गये थे।
मगर नीतीश कुमार को भनक लग गयी और ललन सिंह से इस्तीफा लेकर वे खुद दोबारा जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गये। दूसरी ओर राजद नेता भाई वीरेंद्र ने तो यहां तक कह दिया कि लालू प्रसाद के आशीर्वाद से ही नीतीश कुमार मुख्यमंत्री हैं। इस तरह के बयान पर बिहार में सियासत तेज हो गयी है।
दिल को बहलाने का गालिब ख्याल अच्छा है : लालू प्रसाद के दिल की बात बुधवार को उनके मुंह से निकल ही आयी उन्होंने कहा कि तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बने और नीतीश कुमार प्रधानमंत्री। जो कि संभव नहीं दिखता।
इंडी गठबंधन के घटक दल कांग्रेस और राजद को सीटों की शेयरिंग पर सहमति नहीं बन पाने की कोई चिंता नहीं है। बिहार की बात करें तो जदयू 16 से कम सीटों पर कोई समझौता नहीं करेगा। वहीं कांग्रेस  9 से 10 , भाकपा 3 और माले 5 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती हैं। लालू प्रसाद को भी कोई हड़बड़ी नहीं है। राजद कितनी सीटों पर लड़ेगा इसका खुलासा भी लालू प्रसाद ने अब तक नहीं किया है।
और अंत में एक कहावत है यथा राजा तथा प्रजा अर्थात जैसा राजा वैसी प्रजा। अब ये जनता जनार्दन को सोचना है कि वह कैसा माहौल चाहती है।
दुविधा में दोनों गये माया मिली ना राम संदर्भ : कांग्रेस द्वारा प्राण प्रतिष्ठा समारोह का निमंत्रण ठुकराना
आज विपक्ष की हालत सांप के मुंह में फंसे छछूंदर जैसी हो गयी है, जिसे न तो वह निगल पा रहा है न उगल पा रहा है । राम लला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह का निमंत्रण पत्र ठुकरा कर विपक्ष ( इंडी गठबंधन ) भी पूरी तरह से उलझन में फंसा हुआ है।
उधर कांग्रेस राजमाता सोनिया गांधी ने निमंत्रण ठुकराया कर कहा था कि कोई अधिकारी अयोध्या नहीं जायेगा । उसके उलट यूपी कांग्रेस के प्रभारी गये, सरयू में स्नान किया और राम लला के दर्शन भी किये।  कांग्रेस के लिए यह स्थिति
           दुविधा में दोनों गये न माया मिली न राम वाली बन गयी है। इंडी गठबंधन के घटक दल भी अब समझ चुके हैं कि उनके नेताओं द्वारा सनातन और  भगवान राम के विरुद्ध उल्टे सीधे बयान देना अपना पैर खुद ही कुल्हाड़ी पर मारना कहा जायेगा। इसका आभास उन्हें देर से हुआ।
वहीं दूसरी ओर इंडी गठबंधन के घटक दल ' आप' अब हनुमान जी की शरण में है। वह दिल्ली में सुंदरकांड का पाठ करा रही है। तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी भी मां काली की शरण में गयी हैं। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद सपरिवार तिरुपति बालाजी मंदिर में चार्टड प्लेन से दर्शन करने गये और सपरिवार मुंडन कर कर लौटे। वहीं सपा प्रमुख अखिलेश यादव का कहना है कि जब भगवान बुलायेंगे तभी जायेंगे। उनको भगवान के बुलावे का इंतजार है।
एक तरह से इंडी गठबंधन की सभी पार्टियां मुंगेरी लाल के हसीन सपने देख रही हैं और कह रही हैं कि आने वाले समय में बीजेपी का सफाया हो जायेगा। भगवान श्री राम भारत की आत्मा में बसते हैं। गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपनी पुस्तक विनय पत्रिका में एक पद में लिखा है कि
                             जाके प्रिय न राम वैदेही।
                             तजिये ताहि कोटि बैरी सम।
                               जद्दपि परम सनेही
राम लला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह का निमंत्रण पत्र ठुकराना कांग्रेस के ताबूत में आखिरी कील साबित हो सकता है। कांग्रेस का साफ्ट हिंदुत्व का कार्ड भी फेल हो चुका है। इंडी गठबंधन की तरफ से अब यह दुष्प्रचार किया जा रहा है कि आधे - अधूरे मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा कैसे हो रही है।
सनातन, हिंदुत्व और  भगवान राम भारत की अस्मिता माने जाते हैं। विपक्ष भी जान चुका है कि लोकसभा चुनाव 2024 में राम मंदिर निर्माण और राम लला की प्राण-प्रतिष्ठा का फायदा भाजपा को मिलना ही है। और वह 400 के आंकड़े को छू सकती है।
और अंत में  राक्षस राज दशानन भी भगवान राम का धुर विरोधी था। मगर उन्होंने उसका वध कर मोक्ष प्रदान किया। इसी प्रकार राम के अस्तित्व पर अंगुली उठाने वाले आने वाले समय में खुद अप्रासंगिक हो जायेंगे।
दोस्तों को जोड़ नहीं सके, निकाल रहे भारत जोड़ो न्याय यात्रा संदर्भ : प्रथम ग्रासे मक्षिका पात, मिलिंद देवड़ा ने कांग्रेस से दिया इस्तीफा
ये कैसी विडंबना है कि जो शख्स अपने चार जिगरी दोस्तों को साथ नहीं जोड़ पाया,  वह मजमा लेकर भारत जोड़ो न्याय यात्रा निकाल रहा है। एक समय था जब ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, सचिन पायलट और मिलिंद देवड़ा राहुल गांधी के सबसे नजदीक देखे जाते थे। मगर राहुल गांधी अपने मित्रों को सहेज नहीं पाये और तीन साथी छिटक गये। सिर्फ सचिन पायलट ही बचे हैं।
ज्योतिरादित्य सिंधिया तो 11 मार्च , 2020 को भाजपा में शामिल हुए थे। वहीं जितिन प्रसाद ने 9 जून , 2021 को बीजेपी ज्वाइन कर ली। इसके बाद मिलिंद देवड़ा का कांग्रेस से मोह भंग हुआ और 14 जनवरी, 2024 को कांग्रेस से इस्तीफा देकर शिवसेना ( शिंदे गुट ) में शामिल हो गये।
इंडी गठबंधन में शामिल सभी पार्टियों जानती हैं कि मोदी को रोकना उनके बस की बात नहीं है । और यह जो इंडी गठबंधन बना है वह सिर्फ व सिर्फ मोदी को 375 से 400 सीटों के बीच सीमित करना चाहता है । बाकी बची सीटों पर ही गठबंधन अपनी नज़रें गड़ाये हुए हैं। सीटों की शेयरिंग पर एक राय अब तक नहीं बन पायी है। वहीं चुनाव में ज्यादा समय नहीं रह गया है। सभी दल मंथन कर रहे हैं। मगर लगता है कांग्रेस को इसकी कोई चिंता नहीं है। वैसे गठबंधन की पार्टियां कांग्रेस को ज्यादा सीटें देने के मूड में नहीं दिख रहीं। वहीं बसपा प्रमुख मायावती ने ऐलान कर दिया है कि वे एकला चलेंगी यानी अकेले चुनाव में उतरेंगी। बसपा का यह कदम इंडी गठबंधन के लिए परेशानी का कारण बन सकता है।
दूसरी ओर कांग्रेस युवराज राहुल बाबा की " भारत जोड़ो न्याय यात्रा " का शुभारंभ अच्छा नहीं रहा । " प्रथम ग्रासे मक्षिका पात " वाली कहावत चरितार्थ हो गयी।  मणिपुर में जहां मल्लिकार्जुन खड़गे न्याय यात्रा को हरी झंडी दिखा रहे थे,  उधर मुंबई में कांग्रेस नेता मिलिंद देवड़ा ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया।
दूसरी और 22 जनवरी को अयोध्या में होने वाले राम लला की प्राण प्रतिष्ठा समारोह का निमंत्रण पत्र सोनिया गांधी द्वारा ठुकराना कांग्रेस की तुष्टिकरण की नीति को दर्शाता है। इसका फायदा कांग्रेस को मिलेगा या नहीं, यह तो समय के गर्भ में है।  2024 का लोकसभा चुनाव एक तरह से कांग्रेस के अस्तित्व का निर्णय करेगा।  यह तो वक्त ही बताया कि मणिपुर से शुरू यात्रा पार्ट 2 कांग्रेस में नयी जान फूंकेगी या जो भी जान बची है वह भी खत्म ना हो जाये।
और अंत में इंडी गठबंधन के सभी दलों में अब तक सीटों की शेयरिंग पर सहमति न बन पाने  का कारण कांग्रेस का इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर तव्वजो न देना ही लग रहा है।
समय से पहले बच्चों को बना रहा व्यस्क संदर्भ : दोधारी तलवार के समान है सोशल मीडिया
सोशल मीडिया कई मायनों में हर क्षेत्र में जहां ताकत बन कर उभरा है वहीं दूसरी तरफ इसके दुरुपयोग को लेकर भी काफी चिंता हो रही है। सोशल मीडिया और इंटरनेट के कारण बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य और स्क्रीन पर बिताये जा रहे टाइम ने सभी चिंताओं को पीछे छोड़ दिया है।
माता - पिता बच्चों के गैजेट्स इस्तेमाल और उस पर बिताये जा रहे समय को लेकर चिंतित दिख रहे हैं। कम उम्र में गैजेट्स का इस्तेमाल बहुत ही खतरनाक है। इससे बच्चों का विकास बाधित होने लगता है।
आज प्रायः सभी स्कूलों में स्मार्ट क्लासेज संचालित की जाती हैं। इस कारण छोटे बच्चे भी स्मार्टफोन के आदी होते जा रहे हैं और अपना ज्यादातर समय इसी पर व्यतीत करते हैं।
इसमें दो राय नहीं कि सोशल मीडिया का उपयोग आज के समय में काफी तेजी से हो रहा है। यह एक तरफ जहां बच्चों को फायदा पहुंचा सकता है वहीं दूसरी तरफ इसका अत्यधिक इस्तेमाल बच्चों के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है।
सोशल मीडिया का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसके द्वारा बच्चों को असीमित सूचनाओं का भंडार प्राप्त होता है।  इसके माध्यम से बच्चे पढ़ाई के साथ-साथ अन्य गतिविधियों के बारे में भी ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।  किसी कारण अगर बच्चा स्कूल नहीं जा पा रहा है तो वह वीडियो कॉल कर अपने शिक्षकों से संपर्क कर अपनी पढ़ाई की क्षतिपूर्ति कर सकता है। बच्चे सोशल मीडिया पर सकारात्मक चीज देखकर अपना मनोरंजन भी कर सकते हैं। इसके माध्यम से दिमाग वाले गेम्स खेल सकते हैं जिससे मनोरंजन के साथ-साथ उनका दिमाग भी तेज होता है।
दूसरी और सोशल मीडिया पर अधिक समय व्यतीत करना बच्चों की मानसिक स्थिति पर बुरा प्रभाव डाल सकता है । जो बच्चे देर रात तक फोन का इस्तेमाल करते हैं उनकी नींद प्रभावित होती है , जिससे वे अवसाद का शिकार हो सकते हैं।  स्मार्टफोन के अधिक उपयोग के कारण बच्चों की सामाजिक गतिविधियों और स्कूल की परफॉर्मेंस भी गड़बड़ होने लगती है।
इसका अधिक उपयोग समय की बर्बादी के साथ-साथ पारिवारिक दूरियां  बढ़ाने में सहायक होता है । छुट्टी के दिन ही बच्चे जब घर में रहते हैं तो भी वह अपने माता-पिता के साथ बातचीत न कर मोबाइल पर ही ज्यादा समय व्यतीत करते हैं । इसके साथ ही उनमें चिड़चिड़ापन और हिंसक प्रवृत्ति भी बढ़ने लगती है।
इसलिए बच्चों के माता-पिता को सोशल मीडिया के सही इस्तेमाल के लिए प्रोत्साहित करना होगा। स्क्रीन टाइम का समय निर्धारित करना बहुत ही जरूरी है। इसके सकारात्मक उपयोग से बच्चे नयी - नयी चीजें सीखते हैं।
और अंत में सोशल मीडिया एक दोधारी तलवार के समान है, अगर सावधान नहीं रहे तो घायल हो सकते हैं।

नीतीश कुमार : दिल मांगे मोर संदर्भ : इंडी गठबंधन का संयोजक बनने से किया इनकार
ये बात तो इंडी गठबंधन भली भांति जानता है कि उसके भानुमती के कुनबे में एक भी ऐसा चेहरा नहीं है जिसके सहारे वह  2024 के लोकसभा चुनाव नामक वैतरणी पार कर सके। वहीं घटक दलों के नेताओं की बयानबाजी रही सही कसर भी नहीं छोड़ रही है। घटक दल बयान जारी कर एक दूसरे के हितों को घायल कर रहे हैं। इसलिए गठबंधन के सभी नेता एक दूसरे से मिल तो रहे हैं मगर उनके दिल नहीं मिल रहे। दूसरी ओर भाजपा इस वैतरणी पर बाकायदा पुल बना चुकी है। अयोध्या धाम में भव्य और अलौकिक मंदिर में 22 जनवरी को होने वाली राम लला की प्राण-प्रतिष्ठा के बाद उसके वोट प्रतिशत में इजाफा होना लाजिमी है।
इंडी गठबंधन की शनिवार को हुई बैठक पिछली अन्य बैठकों से अलग नहीं रही।  हां, ये इस मामले में अलग रही कि बैठक वर्चुअल थी। मजे की बात यह है कि  28 दलों वाले गठबंधन में से मात्र  10 दलों के नेता इसमें शामिल हुए। ममता दीदी और अखिलेश यादव ने इससे दूरी बनाये रखी। इस वर्चुअल बैठक में भी सीटों की शेयरिंग पर कोई चर्चा नहीं की गयी । इस मसले पर बैठक में शामिल नेताओं में एक राय नहीं बन पायी। अब जो बैठक होगी वह फिजिकल होने वाली है। देखना होगा कि इसमें कितने दलों के नेता सशरीर उपस्थित हो पाते हैं।
इधर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इंडी गठबंधन का संयोजक बनने से इनकार कर दिया। नीतीश ने कहा कि कांग्रेस बड़ी पार्टी है, इसलिए उसे गठबंधन को लीड करना चाहिए। साथ ही उन्होंने लालू प्रसाद का नाम भी संयोजक पद के लिए उछाल दिया। नीतीश कुमार के पेट की बात कोई नहीं जान पाता। नीतीश कुमार जानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने उनकी दाल गलने वाली नहीं है।
                वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन।
                 उसे इक खुबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा।।
शायद नीतीश कुमार इस बात को समझ गये हैं। इसलिए उन्होंने इस कुनबे का  मुखिया बनने से इंकार कर दिया। नीतीश कुमार का कुर्सी मोह जग जाहिर है। वे कब और कहां पलटी मारेंगे कहा नहीं जा सकता। पिछले घटनाक्रमों को याद करें तो वे कब कौन सा कदम उठायेंगे कोई नहीं जानता।  ( मांझी को पहले सीएम बनाना, फिर इस्तीफा लेना,  कभी राजद के साथ तो कभी बीजेपी के साथ) । इसलिए मकरसंक्रांति के बाद लगता है कोई नया समीकरण बन कर सामने आ सकता है।
इंडी गठबंधन की अब तक पांच बैठकें हो चुकी हैं लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल पाया है।  पीएम का चेहरा कौन होगा , कौन कितनी सीटों पर लड़ेगा इस पर अब तक कोई फैसला नहीं लिया जा सका है। दूसरी तरफ कांग्रेस तो खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रही है । राहुल बाबा को 2024 के चुनाव की चिंता नहीं वरन अपनी मोहब्बत की दुकान का प्रचार करने के लिए फिर निकलने वाली भारत जोड़ो न्याय यात्रा की है।  कांग्रेस को अपने अस्तित्व की बिल्कुल ही चिंता नहीं है।
और अंत में भाजपा को छोड़ कर कोई भी दल अभी तक साफ रणनीति नहीं बना पाया है। सब एक-दूसरे को टटोल रहे हैं। जिस तरह से विपक्षी पार्टियां अपनी-अपनी रोटी सेंकने में लगी हुई हैं, उसका फायदा भाजपा को ही मिलेगा। नीतीश कुमार का अगला कदम क्या होगा ये तो वक्त बतायेगा, मगर एक बात यह है कि खरमास के बाद कुछ होने वाला है।
क्या सोशल मीडिया से लोगों का हो रहा मोह भंग संदर्भ : दूरी बना रहे सेलिब्रिटीज
हर दिल को छूने वाले हरदिल अजीज सोशल मीडिया से अब लोगों का मोह लगता है धीरे-धीरे भंग हो रहा है। वहीं आम लोग भी इससे दूरी बनाने में लगे हैं। बताते हैं कि 1997 में पहली सोशल नेटवर्किंग साइट लॉन्च की गयी थी।
सोशल मीडिया एक ऐसा प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराता है जहां लोग अपने विचारों को एक - दूसरे के साथ साझा करते हुए अपना-अपना एक ग्रुप बना लेते हैं । भारत में लोगों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। कोई भी, कभी भी, कहीं भी किसी के बारे में कुछ भी बोल सकता है।
सोशल मीडिया का उद्देश्य था समाज में बदलाव लाना।  यह एक ऐसा मंच है जहां मिनटों में एक विचार सैकड़ों लोगों के साथ साझा किया जा सकता है। संसार में कोई भी चीज ऐसी नहीं है जिसके परिणाम केवल सकारात्मक हों।हर चीज के सकारात्मक और नकारात्मक परिणाम होते हैं।  सोशल मीडिया ने जो अवसर लोगों को उपलब्ध कराये हैं, इसकी कल्पना भी हम लोगों ने नहीं की थी।
दरअसल इस मंच का उपयोग कर समाज में बदलाव की बयार लाना था, मगर चिंता की बात यह है कि आज इसका उपयोग सामाजिक समरसता को बिगाड़ना तथा सकारात्मक सोच की जगह समाज को बांटने वाली सोच को बढ़ावा देने में ज्यादा किया जाने लगा है।
सोशल मीडिया के द्वारा हम उन लोगों को आगे ला सकते हैं जो समाज की मुख्य धारा से अलग-थलग पड़े हैं। यह एक ऐसा प्लेटफार्म है जो समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति को भी समाज की मुख्य धारा से जुड़ने का अवसर प्रदान करता है।
यह एक ऐसा स्थान है जहां मशहूर हस्तियां या फिल्मी सितारों को अपने चाहने वालों तक पहुंचाने का मौका मिलता है, परंतु इसका ज्यादा इस्तेमाल मेंटल हेल्थ पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। साथ ही यह फेक न्यूज, हेट स्पीच, साइबर बूलिंग आदि को बढ़ावा देता है।
इसी वजह से कई सिलेब्रिटीज अब सोशल मीडिया से अपनी दूरी बढ़ा रहे हैं। अमेरिकी गायक जॉन लीजेंड का कहना है अब यह मंच जहरीला और खतरनाक बनता जा रहा है।
और अंत में यह सच है कि सोशल मीडिया ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को एक नया आयाम दिया है । कोई भी बिना किसी हिचक के अपने विचार रख सकता है और हजारों लोगों तक पहुंचा सकता है।  परंतु इसके दुरुपयोग की घटनाएं इसे खतरनाक उपकरण बना रही हैं । इसलिए आवश्यक है की निजता के अधिकार का दुरुपयोग किये बिना विचार-  विमर्श कर नये-नये विकल्प खोज जाएं , जिससे इसके दुष्प्रभावों से समाज को बचाया जा सके।
सीटों के बंटवारे को लेकर अब होगा सिरफुटव्वल संदर्भ : सीटें 40 पर दावेदारी 52 तक पहुंची
l.N.D.I.A गठबंधन के सहयोगी दल अब धीरे-धीरे अपने पत्ते खोल रहे हैं। जदयू पहले से ही 16 से कम सीटों पर कोई समझौता करने के मूड में नहीं दिखता। अब माले को पांच और भाकपा को तीन सीटें चाहिए। यानी 16+5+3=24  सीटों के बाद बची 16 सीटों राजद और कांग्रेस को समझौता करना होगा। जदयू का कहना है कि राजद, कांग्रेस और वाम दलों का पुराना गठजोड़ रहा है। इसलिए राजद ही इस मामले को सुलझाये। इसके बाद ही जदयू राजद से बात करेगा। यानी सीट शेयरिंग की गेंद राजद के पाले में है। और इससे राजद को ही जूझना होगा।
मगर जिस तरह की बयानबाजी इंडी गठबंधन में चल रही है, इससे सीटों के बंटवारे का कोई फार्मूला फिट होता नहीं दिख रहा है। दूसरी ओर राजद भी 16 सीटों पर ही लड़ना चाहता है। वहीं कांग्रेस भी 10 सीटों पर लड़ने की बात पहले ही स्पष्ट कर चुकी है। मालूम हो कि राज्य में लोक सभा की  40 सीटें ही हैं मगर घटक दलों की मांग के अनुसार सीटों की संख्या 52 तक पहुंच गयी है।
अब यक्ष प्रश्न यह है कि सीटों की शेयरिंग होगी तो कैसे और क्या गठबंधन के घटक दल एकमत हो पायेंगे।
कांग्रेस के हिसाब से अभी चुनाव दूर है। कोई हड़बड़ी नहीं है। इसलिए राहुल बाबा अपनी यात्रा पार्ट टू पर निकल गये हैं।  इस बार वह कौन सी दुकान खोलने जा रहे हैं , यह भी अभी तक साफ नहीं हुआ है। दूसरी ओर राम लला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने के निमंत्रण पत्र को इंडी गठबंधन के कांग्रेस सहित अन्य सदस्यों ने अस्वीकार कर दिया है। कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने साफ कह दिया है कि कांग्रेस का कोई भी नेता समारोह में अयोध्या नहीं जायेगा।।
इस प्रकरण को क्या कांग्रेस की नैया डुबोने वाला माना जायेगा। क्योंकि निमंत्रण पत्र को अस्वीकार कर कांग्रेस मुस्लिम वोट बैंक को खुश करना चाहती है। मगर दूसरी ओर हिन्दुओं के एक बड़े हिस्से को भी अपने से अलग कर दिया है,जो कांग्रेस को ही वोट देता था।
जब से यूपीए का नया अवतार हुआ है तभी से इसके घटक दलों के नेताओं के कभी सनातन धर्म पर तो कभी राम लला के बन रहे भव्य मंदिर पर जो बयान आते रहते हैं, उससे गठबंधन की ही मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं।
इंडी गठबंधन में अब तक सीटों की शेयरिंग पर एक राय नहीं बन पायी है। सीटों के बंटवारे को लेकर कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, जदयू, शिवसेना ( उद्धव गुट ) आदि के बीच खींचतान जारी है।
और अंत में कभी सनातन तो कभी रामचरित मानस तो कभी माता सरस्वती के विरुद्ध अपमान जनक टिप्पणी तो कभी भगवान श्री राम को काल्पनिक बताने वाले नेताओं के बयान इंडी गठबंधन की जड़ में मट्ठा ही डाल रहे हैं। गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित रामायण में एक प्रसंग है, मेघनाद हनुमान जी को बंदी बना कर जब रावण के दरबार में ले गया तो हनुमान जी ने रावण को समझाते हुए कहा था कि
                    संकर सहस बिष्नु अज तोही।
                    सखहिं न राखि राम कर द्रोही।।


इंडी गठबंधन चिंता नहीं चिंतन करे संदर्भ : सीट शेयरिंग पर सियासत तेज
जदयू ने अब साफ कर दिया है कि वह अपनी 16 सीटिंग सीटों पर कोई समझौता नहीं करेगी साथ ही एक अन्य सीट जहां वह दूसरे नंबर पर रही थी, उस पर भी अपनी दावेदारी ठोक रही है।
सीटों का बंटवारा इंडी गठबंधन के लिए सिरदर्द बनता जा रहा है। गठबंधन में जो भी दल शामिल हैं, सभी एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी करते रहते हैं, इससे सभी के बीच एक मत कायम करने में सबों के पसीने छूट रहे हैं।
दूसरी ओर राहुल बाबा तो लगता है कि कांग्रेस के ताबूत में आखिरी कील ठोकने की ठान चुके हैं। उनकी पहली यात्रा के दौरान खोली गयी मोहब्बत की दुकान से तो कांग्रेस को घाटा ही हुआ। कांग्रेस शासित राज्यों की संख्या मात्र तीन ही रह गयी है।
वहीं पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी ने कांग्रेस को आइना दिखा दिया है। वे कांग्रेस को मात्र दो सीटें ही देने को तैयार हैं। यानी खुद  40 सीटों पर प्रत्याशी उतारेंगी। वहीं बिहार में पलटू बाबू ने भी अपना स्टैंड साफ कर दिया है। दिल्ली और पंजाब में आप और कांग्रेस में सीटों पर फैसला नहीं हो सका है।
2024 का लोक सभा चुनाव विपक्ष का भविष्य तय  करता दिख रहा है। इंडी गठबंधन में शामिल सभी पार्टियों का राजनीतिक अस्तित्व दांव पर लगा हुआ है। सभी राजनीतिक दल जानते हैं कि अकेले भाजपा का मुकाबला करना किसी के भी बस की बात नहीं है। इसलिए सभी का साथ आना मजबूरी है। लेकिन इसे विडंबना ही कहेंगे कि विधानसभा चुनाव सभी पार्टियां एक - दूसरे के खिलाफ लड़ती हैं।
अब क्या करेंगे राजद और कांग्रेस  : जदयू ने अपनी स्थिति साफ कर दी है कि वह 16 सीटों पर कोई समझौता नहीं करेगी। इस स्थिति में बची 24 सीटें राजद, कांग्रेस और लेफ्ट में बटेंगी। वहीं लगता है कि राजद भी 16 सीटों से कम पर मानने वाला नहीं।  इस स्थिति में बची 8 सीटों पर कांग्रेस और लेफ्ट की माथापच्ची होगी।
और अंत में जहां एनडीए गठबंधन सीटों के बंटवारे को लेकर निश्चिंत दिख रहा है, वहीं इंडी गठबंधन में सीट शेयरिंग को लेकर अभी भी मंथन ही जारी है। दूसरी ओर राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा पार्ट टू में कौन सी दुकान खोलेंगे यह आने वाला समय ही बतायेगा।
अयोध्या धाम की पहचान है सरयू संदर्भ : जा मज्जन से बिनही प्रयासा। मम समीप नर पावहि वासा।।
शबरी की तरह सरयू को भी परम विश्वास था कि भगवान श्री राम जरूर आयेंगे। इसकी निर्मल धारा प्रभु के चरण स्पर्श को व्याकुल हो रही है। प्रभु श्री राम के गौ लोक गमन के बाद से चुपचाप अविरल कलकल बहती रही और सदियों तक कई झंझावातों को झेलते हुए अपने हृदयेश्वर प्रभु श्री राम के दर्शन का इंतजार करती रही।
त्रेता युग में भगवान श्री राम के जन्म स्थान और राज्य की राजधानी अयोध्या सरयू तट पर ही स्थित थी। कहा जाता है कि प्रभु श्री राम की बाल लीलाओं के दर्शन के लिए ही सरयू नदी का धरती पर आगमन श्री राम के जन्म से पहले ही हुआ था।
इसके बाद हजारों हजार साल बाद एक बार फिर सरयू अपने राम लला को भव्य , अलौकिक, सुंदर, अद्भुत और अकल्पनीय मंदिर में विराजित होते देखेगी। सरयू नदी का उल्लेख प्राचीन हिंदू वेद- पुराणों, धर्म शास्त्रों और रामचरितमानस में भी मिलता है। यह करोड़ लोगों की आस्था का केंद्र होने के साथ-साथ साधु - संतों और तपस्वियों के लिए भी  पूज्यनीय हैं।
सरयू आज अपने आराध्य श्री राम की अयोध्या नगरी को पुनः राम राज वाली अयोध्या के रूप में बदलते हुए देख रही है। आज अयोध्या सारे विश्व में एक अद्भुत और निराली दुनिया के रूप में विकसित हो रही है। इससे लगता है कि वह पुरानी भव्यता की ओर लौट रही है।
अत्याधुनिक रेलवे स्टेशन ( अयोध्या धाम जंक्शन ) , एयरपोर्ट ( महर्षि वाल्मीकि अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा)  और बस स्टैंड ( अयोध्या धाम बस स्टेशन)  सहित न जाने अन्य कितनी आधुनिक सुविधाएं लोगों को उपलब्ध होती जा रही है। आज सरयू के घाटों की छटा ही निराली दिखती है। आज सरयू और अयोध्या नगरी सारे विश्व में एक दिव्य पर्यटन स्थल के रूप में उभर रही है ।
आज अयोध्या अपने अद्वितीय अतीत के पुनरुत्थान की ओर अग्रसर है। प्रभु श्री राम की बाल लीला स्थली सरयू और अयोध्या के बारे में श्रीरामचरित मानस में परम पूज्य गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है कि भगवान श्री राम को अयोध्या और सरयू काफी प्रिय थे। आज
             दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहीं काहुहि ब्यापा।।
             सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती।।
की गूंज अयोध्या नगरी से निकल कर पूरे भारत समेत सारे विश्व में फैले और सभी लोग परस्पर प्रेम भाव से रहें। प्रभु श्री राम ने खुद कहा है कि
         अवधपुरी मम पुरी सुहावनि। उत्तर दिशा बह सरयू पावनि।।