सूप या थाली बजाकर जगाते हैं श्री हरि को संदर्भ : कार्तिक माह की देव उठनी एकादशी
दीपावली के बाद कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का सनातन धर्म में बहुत महत्व है । मान्यता है कि भगवान विष्णु चार माह के शयन के बाद इसी दिन योग निंदा से जागते हैं । इसे देवउठनी एकादशी , देव प्रबोधिनी एकादशी या देवोत्थान एकादशी भी कहा जाता है ।
भगवान विष्णु के चार माह के शयन के वक्त कोई भी शुभ कार्य नहीं किये जाते । देवोत्थान एकादशी के बाद से शादी- ब्याह और अन्य कायों की शुरुआत हो जाती है । देव शयनी एकादशी को भगवान विष्णु क्षीरसागर में विश्राम करने जाते हैं और देव उठनी एकादशी को जागते हैं। इस अवधि को चातुर्मास भी कहा जाता है । इस दिन भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप के साथ माता तुलसी के विवाह का आयोजन किया जाता है ।
थाली या सूप बजाकर जगाते हैं नारायण को : देव उठनी एकादशी को यूपी और राजस्थान के इलाकों में चौक और गेरू से घरों में विभिन्न प्रकार की आकृतियां बनायी जाती हैं। उनके सामने थाली या सूप बजा कर और गीत गाकर देवों को जगाया जाता है और रात्रि में गन्ने का मंडप बनाकर श्री हरि की पूजा - अर्चना और माता तुलसी के साथ विवाह का आयोजन किया जाता है। भगवान को सिंघाड़ा , गन्ना और फल - मिठाई आदि का भोग लगाया जाता है। हिमाचल और उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में देव उठनी एकादशी पर दीपावली जैसी रौनक होती है।
भाई की दीर्घायु की बहनें करती हैं कामना संदर्भ : मिथिलांचल का पर्व सामा- चकेवा
रक्षाबंधन और भैया दूज ये दोनों त्योहार भाई-बहन के प्रगाढ़ और अटूट प्रेम को दर्शाते हैं । वहीं मिथिलांचल में भाई-बहन के कोमल और स्नेह भरे रिश्ते को अभिव्यक्त करने वाला एक और त्योहार मनाया जाता है वह है सामा - चकेवा।
महापर्व छठ के पारण वाले दिन से इसकी शुरुआत होती है और कार्तिक पूर्णिमा के दिन इस पर्व का समापन होता है । इस पर्व में बहनें अपने भाई की दीर्घायु और समृद्धि की कामना करती है । इस पर्व को मनाने की पौराणिक तो नहीं लेकिन एक प्राचीन लोक कथा सदियों से चली आ रही है और उसकी जड़ें भगवान कृष्ण से जुड़ी हुई हैं।
लोककथा के अनुसार श्यामा (सामा) और साम्ब भगवान कृष्ण के पुत्री और पुत्र थे। दोनों भाई - बहन में काफी प्रेम था । सामा प्रकृति प्रेमी थी। उसका ज्यादातर समय उपवन में ही बीतता था। एक दिन भगवान कृष्ण के एक मंत्री ने सामा के विरुद्ध कृष्ण के कान भर दिये।  इस पर भगवान कृष्ण ने सामा को पक्षी बन जाने का शाप दे दिया । सामा पक्षी बन कर उपवन में ही रहने लगी। दूसरी ओर सामा का पति चक्रवाक पत्नी के विरह में उदास रहने लगा और वह भी पक्षी बन गया।
उधर, सामा के भाई साम्ब को सारी बात पता चली तो उसने भगवान कृष्ण को समझाने का प्रयास किया लेकिन भगवान कृष्ण नहीं माने। तब साम्ब ने कठिन तपस्या कर भगवान कृष्ण को प्रसन्न किया। तब भगवान कृष्ण ने वचन दिया कि सामा हर साल कार्तिक माह में आठ दिनों के लिए चक्रवाक के पास आयेगी और कार्तिक पूर्णिमा को लौट जायेगी ।भाई साम्ब के प्रयास से कार्तिक माह में सामा और चकेवा का मिलन हुआ। उसी की याद में इस पर्व को मनाया जाता है ।
इस त्योहार में सामा - चकेवा की जोड़ी के साथ चुगला, पक्षियों आदि की छोटी-छोटी मूर्तियां बनायी जाती है , उन्हें बांस की रंग - बिरंगी टोकरियों में सजा कर उनकी पूजा की जाती है ।वहीं पूजा के बाद उनका खेतों में विसर्जन कर दिया जाता है।

उदीयमान सूर्य को व्रतियों ने दिया अर्घ्य
छठ महापर्व की शुभकामनाएं
सफाई और सात्विकता रहती है चरम पर संदर्भ : इको फ्रेंडली है प्रकृति की पूजा का महापर्व छठ
प्रकृति की पूजा के लिए नदी और तालाब के किनारे मनाया जाने वाला महापर्व छठ पूरी तरह से इको फ्रेंडली है। साथ ही यह महापर्व पर्यावरण को बिल्कुल भी नुकसान नहीं पहुंचता। साथ ही छठ पूजा में प्रयोग होने वाली सारी सामग्री भी इको फ्रेंडली होती है ।
दुनिया में तेजी से विकास हो रहा है। इसका असर भी करीब सभी चीजों पर पड़ा ,मगर महापर्व छठ ही है जिस पर आधुनिकता का कोई असर नहीं पड़ा है । आज भी यह पर्व  उसी तरह मनाया जाता है जिस तरह पुराने जमाने में मनाया जाता था।
धन की देवी मां लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा के लिए दीपावली में घरों की सफाई की जाती है । इसके बाद छठ पूजा के लिए नदी के किनारे, तालाबों और नहरों की सफाई की जाती है । छठ पूजा में उपयोग किया जाने वाला सारा सामान भी प्राकृतिक ही होता है।
मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी से प्रसाद बनाया जाता है । प्रसाद में सब्जी और फल भी प्रयोग में लाये जाते हैं। इनमें गागर नींबू, कच्ची हल्दी ,अदरक , शरीफा, नारियल, लौंग, इलायची, छुहारा  समेत अन्य सामग्री का उपयोग होता है ।
ये सभी चीजें दउरा ( बांस से बनी टोकरी) में रखकर लोग पूजा के लिए घाटों पर दउरा को सिर पर रख कर ले जाते हैं ।  वहीं शाम और सुबह के अर्घ्य-पूजा के बाद एक भी सामान घाट पर नहीं छोड़ा जाता । सारा सामान  घर लाया जाता है ।
आस्था का महापर्व छठ ना सिर्फ स्वच्छता का संदेश देता है बल्कि यह हमें बीमारियों से बचने और स्वस्थ रहने की सीख भी देता है । सूर्य भगवान को अर्घ्य देने में प्रयुक्त होने वाली सामग्री भी अधिकतर मौसम अनुकूल और आसानी से सुलभ होने वाली होती है । आयुर्वेद में इन सामग्रियों का खासा महत्व है। यह सामग्री रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ-साथ ठंड से शरीर को बचाने और लड़ने की शक्ति भी देती है।
कार्तिक माह का है धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व संदर्भ : चार दिवसीय महापर्व छठ का हुआ शुभारंभ
लोक आस्था का महापर्व छठ मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल , पूर्वी उत्तर प्रदेश ,नेपाल के तराई क्षेत्र समेत जहां- जहां बिहार के निवासी रहते हैं, उनका सबसे खास और पवित्र पर्व है। इसमें प्रत्यक्ष देवता भगवान सूर्य की उपासना की जाती है ।
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को अस्ताचल गामी और सप्तमी तिथि को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने की प्राचीन परंपरा रही है। पौराणिक ग्रन्थों में कार्तिक मास में भगवान सूर्य को अर्घ्य देने का विशेष महत्व बताया गया है । इसके पीछे भी धार्मिक और वैज्ञानिक कारण बताये जाते हैं ।  साल के छह माह सूर्य उत्तरायण रहते हैं और छह माह दक्षिणायन होते हैं ।
भगवान सूर्य से सिर्फ प्रकाश ही नहीं अपितु  भोजन और शक्ति भी मिलती है। वेदों में भगवान सूर्य को जगत सृष्टा यानी सृजन करने वाला माना गया है। वनस्पतियों को मिलती है ऊर्जा  : सूर्य की किरणें औषधियों में रस का निर्माण करती है ।  कार्तिक माह में सूर्य अपनी सप्त रश्मियों से मन, बुद्धि, शरीर और ऊर्जा को नियंत्रित करके सृजन के लिए प्रेरित करते हैं। सभी को मालूम है कि शरीर के लिए विटामिन डी बहुत ही जरूरी है। सबसे ज्यादा विटामिन डी सूर्योदय के समय मिलता है। रंगों का शरीर पर पड़ता है असर : वहीं सुबह में सूर्य को अर्घ्य देने के पीछे भी रंगों का विज्ञान काम करता है। मानव शरीर में रंगों का संचालन बिगड़ने से कई प्रकार के रोगों का शिकार  होने का  खतरा रहता है । प्रातःकाल सूर्य को अर्घ्य देने के वक्त  शरीर पर पडने वाले प्रकाश से सभी रंग संतुलित रहते हैं। इससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार चार दिवसीय महापर्व छठ  के अवसर पर छठी मैया और सूर्य देव की उपासना की जाती है। मान्यता है कि छठी मैया सूर्य देव की बहन है। यही कारण है कि छठ पर्व पर सूर्य देव की उपासना विशेष फलदायी होती है । यह पर्व घर- परिवार की सुख - शांति और समृद्धि के लिए मनाया जाता है ।
छठ पूजा का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष इसकी सादगी और पवित्रता है ।  छठ मैया के कर्ण प्रिय लोकगीत जीवन में भक्ति का संचार करते हैं । एक यही पर्व है जिस पर आधुनिकता का कोई असर नहीं पड़ा है । एक तरह से हम यह कह सकते हैं कि प्रकृति की पूजा का यह महापर्व पूरी तरह से इको फ्रेंडली है।
प्रदूषित वातावरण लोगों को कर रहा बीमार संदर्भ : ऑरेंज जोन में पटना सहित 10 जिले
इस पृथ्वी पर रहने वाले जीवधारियों को अपनी वृद्धि, विकास और अपने संतुलित जीवन चक्र को चलाने के लिए एक संतुलित वातावरण की आवश्यकता पड़ती है। वातावरण में कई तरह के जैविक और अजैविक पदार्थ निश्चित मात्रा में विद्यमान रहते हैं । कभी-कभी वातावरण में किसी भी घटक की मात्रा कम या अधिक होने या हानिकारक घटकों के शामिल हो जाने के कारण पर्यावरण प्रदुषित हो जाता है ।
आज विज्ञान का उपयोग प्रकृति के अंधाधुंध दोहन, अवैध खनन, गलत निर्माण और विनाशकारी पदार्थों के लिए किया जा रहा है इससे वातावरण प्रदूषित होता जा रहा है, जिससे प्रकृति और प्राणी मात्र का अस्तित्व संकट में पड़ गया है ।  प्रदूषण एक अत्यंत ही धीमा जहर है जो हवा, पानी ,धूल आदि के माध्यम से न केवल मनुष्य के शरीर में प्रवेश करके बीमार बना देता है वरन जीव- जंतुओं, पशु- पक्षियों के साथ ही पौधों और वनस्पतियों को भी नुकसान पहुंचता है ।
प्रदूषण के कारण पूरे विश्व में प्राणी मात्र का अस्तित्व संकट में पड़ गया है । इसी कारण अनेक पशु - पक्षी और वन्य प्राणी इस संसार से विलुप्त हो गये। प्रदूषण के कारण कई तरह की गंभीर बीमारियां फैलने लगती हैं, इनमें कैंसर, टीबी, नेत्र और चर्म रोग आदि शामिल हैं। आज हम हम प्रदूषित पर्यावरण  में जीने को अभिशप्त हैं।
देश के कई हिस्सों में नवंबर व दिसंबर के महीने में वायु प्रदूषण इतना बढ़ जाता है कि लोगों को खुली हवा में सांस लेना मुश्किल होने लगता है । देश की राजधानी दिल्ली का अभी यही हाल है। वायु प्रदूषण से दूर रहने का सबसे सटीक उपाय है वायु प्रदूषण को खत्म करना, लेकिन वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए यह संभव नहीं लगता ।  इसलिए इससे दूर रहना ही बेहतर है । लोगों को जागरूक कर वायु प्रदूषण को कम किया जा सकता है । साथ ही वायु प्रदूषण करने वाले कारकों को दूर करना होगा ।  वातावरण से धूल कम करने के लिए पानी का छिड़काव करें ।  सुबह - शाम में अति आवश्यक होने पर ही बाहर निकलें। वहीं बाहर निकलना बहुत जरूरी हो तो अच्छी क्वालिटी वाले मास्क  पहन कर ही निकलें।
खाने में गुड़, शहद ,अदरक ,काली मिर्च ,अखरोट और काजू का प्रयोग करें, जो न केवल रक्त को शुद्ध करने में सहायता करते हैं अपितु शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाते हैं। वहीं वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए बड़ी संख्या में पेड़ - पौधे लगाने होंगे साथ ही पेड़ों की अंधाधुंध कटाई पर भी शक्ति से रोक लगाने के उपाय करने होंगे । वहीं समूह में यात्रा करने से ऊर्जा और पैसे की बचत के साथ-साथ पर्यावरण भी कम प्रदूषित होगा। औद्योगिक कल - कारखानों को सघन बस्ती से दूर स्थापित करना होगा ।
और अंत में प्रदूषण को रोकने के लिए वायुमंडल को साफ-  सुथरा रखना आवश्यक है । इसके लिए जनता को जागरूक करना होगा । अगर हम अब भी नहीं चेते तो हमारी आने वाली पीढ़ियां वायु प्रदूषण के दुष्प्रभाव को झेलने के लिए अभिशप्त होंगी।
भाई को तिलक लगा बहनें करती हैं मंगल कामना संदर्भ : भाई दूज बहनों के स्नेह को करता है अभिव्यक्त
रंगीन रोशनियों के त्योहार दीपावली के दो दिन बाद आता है भ्रातृ द्वितीया यानी भाई दूज ।  यह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाने वाला हिंदू धर्म का पर्व है। इसे  यम द्वितीया भी कहते हैं। यह ऐसा पर्व है जो भाई के प्रति बहन के स्नेह को अभिव्यक्त करता है ।
रक्षाबंधन से है अलग : भारतीय त्योहारों में रक्षाबंधन और भाई दूज दोनों ऐसे त्योहार हैं, जो भाई बहन के आपसी स्नेह और प्रेम को दर्शाते हैं । वहीं दोनों का अलग-अलग पौराणिक महत्व भी है । 
सावन माह की पूर्णिमा को मनाये जाने वाले रक्षाबंधन पर्व के अवसर पर बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं, वहीं दूसरी ओर भाई दूज के दौरान बहनें भाई के माथे पर तिलक और अक्षत लगा अपने भाई की रक्षा का वचन लेती हैं। साथ ही भाई भी बहनों को अपना स्नेह और उपहार देते हैं ।
पौराणिक कथा के अनुसार भाई दूज वाले दिन यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने उसके घर जाते हैं । उन्होंने यमुना को आशीष दिया है कि भाई दूज वाले दिन जो भाई अपनी बहन के घर जा तिलक लगवाते हैं वे अपने ऊपर आने वाले संकट से मुक्त रहेंगे।
यह पर्व पश्चिम बंगाल में भाई फोटा , महाराष्ट्र में भाऊ बीज, बिहार और झारखंड में गोधन कुटाई और दक्षिण भारत में यम द्वितीया के रूप में मनाया जाता है।
दमघोंटू स्थिति में पहुंचा वायु प्रदूषण संदर्भ : बिहार के लगभग सभी शहरों में हवा हुई प्रदूषित
मानव स्वास्थ्य के लिए 200 से ऊपर  एक्यूआई नुकसानदेह और 300 से ऊपर खतरनाक माना जाता है। रंगीन रोशनी के पर्व दीपावली के  अवसर पर लोगों ने जमकर आतिशबाजी की, जिससे वायु प्रदूषण अपने खतरनाक स्तर से भी ऊपर चला गया ।
बढ़ता वायु प्रदूषण सेहत के लिए  कई तरह के खतरे ला रहा है। प्रदूषित हवा में सांस लेने की वजह से ना सिर्फ
बुजुर्ग बल्कि छोटे बच्चे भी कई  तरह की समस्याओं को झेल रहे हैं ।  प्रदूषण का सबसे ज्यादा असर फेफड़ों पर पड़ता है , जिसकी वजह से व्यक्ति को सांस लेने में परेशानी होने लगती है ।  मगर बढ़ते वायु प्रदूषण का असर न सिर्फ फेफड़ों पर पड़ता है बल्कि आंखों और कानों को भी नुकसान पहुंचा सकता है।
प्रदूषण के कण आंखों में इन्फेक्शन के कारण बनते हैं। इसके  कारण कंजेक्टिवाइटिस  जैसी आंख की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है ।  वहीं प्रदूषण की वजह से आंखों में खुजली होने पर आंखें रगड़ने पर कॉर्निया पर असर पड़ता है।
प्रदूषण की वजह से कान के पर्दे सिकुड़ने लगते हैं, जिसकी वजह से लोगों में बहरेपन की समस्या सामने आ सकती है ।  साथ ही कान में इन्फेक्शन और दर्द की परेशानी होने लगती है ।
मालूम कि वायु प्रदूषण सभी चीजों को प्रभावित करता है। यह हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है ।  यह दृश्यता को कम करके और सूरज की रोशनी  तक को  अवरूद्ध कर अम्लीय वर्षा का कारण भी बन सकता है ।
क्या करें उपाय : सुबह और शाम में बहुत ज्यादा प्रदूषित हवा में बाहर न घूमें। अगर आप ज्यादा प्रदूषण वाले इलाके में रह रहे हैं तो रोजाना अपनी आंखों को दिन में चार-पांच बार पानी से धोएं ।  रोजाना कम से कम 30 मिनट व्यायाम करें ।  खाने में विटामिन से भरपूर सब्जियां और फल अपनी डाइट में शामिल करें। स्वस्थ जीवन शैली अपनाएं और नियमित रूप से अपना हेल्थ चेकअप कराते रहें।
प्रदूषण कैसे हो नियंत्रित : वायु प्रदूषण की रोकथाम व नियंत्रण के लिए कल - कारखानों को शहरी क्षेत्र से दूर स्थापित किया जाना चाहिए । वहीं दूसरी तरफ जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण करने की आवश्यकता है ताकि खाद्य और आवास के लिए पेड़ों और वनों को न काटना पड़े । धुआं रहित चूल्हे और सौर ऊर्जा को प्रोत्साहित करना होगा ।  साथ इस विषय को पाठ्यक्रम में शामिल कर बच्चों में इसके प्रति चेतना जागृत करनी होगी ।
और अंत में बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण मनुष्य की प्राथमिक आवश्यकताओं पर ही प्रश्नचिन्ह लग सकता है। बोतल बंद पानी की तरह बोतल बंद हवा का कारोबार फैल सकता है ।  साथ ही प्रदूषण के कारण कृषि और जलवायु पर भी प्रभाव पड़ सकता है।
मानव जाति के लिए पूजनीय और आदरणीय है गाय संदर्भ : गोवर्धन पूजा- गौ वंश के प्रति श्रद्धा प्रकट करने का दिन
धनतेरस से शुरू पांच दिवसीय  पर्व के दौरान दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा की जाती है ।  गोवर्धन पूजा में गो धन अर्थात गायों की पूजा की जाती है। ( ऐसे 2023 में गोवर्धन पूजा 14 नवंबर को मनायी जायेगी, क्योंकि 13 नवंबर को अमावस्या तिथि दोपहर तक रहेगी।)
इस त्योहार का लोक जीवन में काफी महत्व माना गया है। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है । शास्त्रों में कहा गया है कि गाय उतनी ही पवित्र होती है जितनी नदियों में गंगा। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख - समृद्धि प्रदान करती हैं, उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से मनुष्य को स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं।
दूसरी ओर इसे अन्नकूट भी कहा जाता है। इस दिन भगवान को 56 प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। गोवर्धन पूजा के संबंध में कहा जाता है कि देवताओं के राजा इंद्र के कोप से ब्रजमंडल और अपने लोगों की रक्षा के लिए भगवान कृष्ण ने अपनी सबसे छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को 7 दिनों तक उठा रखा था । उसके नीचे सभी ब्रजवासियों और गौ वंश ने शरण ली थी। तभी से गोवर्धन पूजा के बाद अंन्नकूट उत्सव मनाया जाने लगा। क्या है गोवर्धन : गोवर्धन का इतिहास भगवान कृष्ण की लीलाओं से जुड़ा हुआ है । यह जिला मुख्यालय मथुरा से मात्र 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ।  गोवर्धन जाने के लिए हर समय जीप ,बस ,टैक्सी उपलब्ध रहती हैं। गोवर्धन उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले की एक नगर पंचायत है। गोवर्धन और उसके आसपास के क्षेत्र को ब्रजभूमि भी कहा जाता है । इसे भगवान कृष्ण की लीला स्थली भी कहा जाता है । 
गोवर्धन पर्वत को भक्तजन के गिरिराज जी भी कहते हैं। सदियों से यहां दूर- दूर से लोग गिरिराज जी  की परिक्रमा करने आते रहते हैं जो कि सात कोस यानि 21 किलोमीटर की परिक्रमा 5 से 6 घंटे में पूरी करते हैं ।  परिक्रमा जहां से शुरू होती है वहां एक पुराना और प्रसिद्ध मंदिर है जिसे दान घाटी मंदिर कहा जाता है । हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार गिरिराज जी की परिक्रमा करने से सभी कामनाएं पूरी होती हैं।
अंधेरे से रोशनी की ओर बढ़ने का पर्व है दीपावली संदर्भ : तमसो मा ज्योतिर्गमय
कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को दीपावली का पर्व मनाया जाता है । इस दिन सभी लोग माता लक्ष्मी के साथ श्री गणेश जी की पूजा करते हैं । मालूम हो कि गणेश जी के साथ मां लक्ष्मी का जब लोग पूजन करते हैं तो उनमें धन का सदुपयोग करने की क्षमता विकसित होती है ।
इसलिए दीपावली के दिन माता लक्ष्मी के साथ गणेश जी की पूजा की जाती है ताकि घर में लक्ष्मी का वास हो और शुभता और समृद्धि बनी रहे। पौराणिक रूप से यह वह दिन माना जाता है जब भगवान श्री राम 14 वर्ष के लंबे वनवास के बाद लंका पति रावण का वध कर अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ  अयोध्या लौटे थे । वहीं दूसरी मान्यता के अनुसार  उनके छोटे भाई भरत ने यह प्रतिज्ञा ली थी कि यदि राम वनवास के बाद समय पर अयोध्या नहीं लौटे तो वह अपने प्राण त्याग देंगे ।
अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ना :  दूसरी ओर आज के वैज्ञानिक युग में मनुष्य वैज्ञानिक उपलब्धियां से प्रसन्नता का अनुभव कर रहा है ।  मनुष्य अब अपने आप को सुपर मानव घोषित करने के प्रयास में है । मगर यह प्रयास मानव जीवन के लिए घातक है । पर वास्तविकता तो यह है कि मनुष्य के लिए अपने भीतर व्याप्त अंधकार ( आसक्ति और मोह का अंधकार , काम, क्रोध , लोभ और मोह का अंधकार, ईष्या, द्वेष, पर निंदा, आत्म प्रवचना, धन, पद , प्रतिष्ठा के बल पर अहित की भावना का अंधकार) से मुक्त होकर प्रकाश की ओर चलना ही दीपावली पर्व का उद्देश्य है । 
वहीं मनुष्य जब अज्ञान के अंधकार से  ज्ञान के प्रकाश की ओर जाता है तो उसे शांति और संतोष की अनुभूति होती है ।
और, अंत में दीपावली का त्योहार रंगीन रोशनी, लजीज व्यंजन ,ध्वनि, सुगंध आदि का पर्व है । इसे हमें आपसी सौहार्द तथा परिजनों के साथ मिलकर खुशी के साथ मनाना चाहिए ।
हैप्पी दिवाली