डिफॉल्टर होने के करीब अमेरिका, सुपरपावर कैसे पड़ा कमजोर
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अमेरिका दुनिया का सबसे ताकतवर देश है। अमेरिका की इकोनॉमी दुनिया में सबसे ताकतवर है। लेकिन पिछले एक दशक से ही अमेरिका की अर्थव्यवस्था लड़खड़ा रही है।इन दिनों अमेरिका के ऊपर डिफॉल्टर यानी ‘दिवालिया’ होने का खतरा है।देश के पास अब केवल 57 अरब डॉलर का कैश रह गया है जो गौतम अडानी की नेटवर्थ से भी कम है।
अमेरिका को रोजाना 1.3 अरब डॉलर इंटरेस्ट के रूप में देने पड़ रहे हैं। देश में अब इस संकट का असर दिखने लगा है। मंगलवार को पहली बार अमेरिकी शेयर बाजार ने इस संकट पर रिएक्ट किया और चार घंटे में 400 अरब डॉलर स्वाहा हो गए। अमेरिका की वित्त मंत्री जेनेट येलेन ने चेतावनी दी है कि अगर इस संकट का समाधान नहीं किया गया तो एक जून को देश डिफॉल्टर बन जाएगा। जैसे-जैसे यह डेडलाइन करीब आ रही है, बाजार में गिरावट आ रही है और बोरोइंग कॉस्ट बढ़ रही है।
अमेरिका की उधार लेने की क्षमता को इसकी सुपरपावर माना जाता है।दुनियाभर में निवेश के लिए अमेरिका को सबसे बेहतर जगह माना जाता है।अमेरिकी सरकार बॉन्ड बेचकर कर्ज जुटाती है। देश की आर्थिक छवि बेहतरीन होने के कारण दुनियाभर के लोग अमेरिकी बॉन्ड में निवेश करते हैं। इसके बदले सरकार उन्हें हर साल ब्याज का पैसा देती है। साथ ही जब भी बॉन्डधारक की मर्जी हो वह उसे बेचकर बॉन्ड की पूरी रकम वापस ले सकता है। कर्ज से मिले पैसों का इस्तेमाल अमेरिकी सरकार अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए करती है। अमेरिका में पिछले 50-60 से ऐसा ही हो रहा है।
कमाई से ज्यादा खर्च
ऐसे में सवाल है कि अमेरिकी सरकार टैक्स वगैरह जैसे अन्य रेवेन्यू के साधनों से मिले पैसों का क्या करती है, जो उसे कर्ज लेना पड़ रहा है।अमेरिका के इस स्थिति में पड़ने का कारण है कमाई से ज्यादा खर्च करना। वित्तीय वर्ष 2021 में अमेरिका ने 334 लाख करोड़ रुपये कमाए तो 564 लाख करोड़ रुपये खर्च दिए। इस अतिरिक्त रकम की भरपाई बॉन्ड बेचकर मिल रहे पैसों से होती है।
अब कर्ज लेने में क्या दिक्कत
अमेरिका में 1917 में एक कानून बना कि सरकार एक सीमा से अधिक कर्ज नहीं ले सकती है। इसमें अब तक 78 बार बदलाव किया जा चुका है। सरकार किसी भी पार्टी की रही हो यह सीमा बढ़ती रही हैय़ इसके लिए संसद की अनुमति लेनी होती है। फिलहाल कर्ज लेने की सीमा 31.4 लाख करोड़ डॉलर है। लेकिन एक बार फिर सरकार की देनदारियां कमाई से ज्यादा हो गई हैं। साथ ही ये देनदारी कर्ज की सीमा को भी पार कर गई है। अब अगर बाइडन सरकार ने संसद से डेट सीलिंग नहीं बढ़वा पाई तो वह डिफॉल्टर हो जाएगी।
अमेरिका ने डिफॉल्ट किया तो
अगर अमेरिका डिफॉल्ट करता है तो इसके भयावह नतीजे होंगे। व्हाइट हाउस के इकनॉमिस्ट्स का कहना है कि इससे देश में 83 लाख नौकरियां खत्म हो जाएंगी, स्टॉक मार्केट आधा साफ हो जाएगा, जीडीपी 6.1 परसेंट गिर जाएगी और बेरोजगारी की दर पांच फीसदी बढ़ जाएगी। देश में इंटरेस्ट रेट 2006 के बाद टॉप पर पहुंच गया है, बैंकिंग संकट लगातार गहरा रहा है और डॉलर की हालत पतली हो रही है। देश में मंदी आने की आशंका 65 फीसदी है। अमेरिका डिफॉल्ट करता है तो उसका मंदी में फंसना तय है। इसका पूरी दुनिया पर असर देखने को मिल सकता है।
May 24 2023, 16:01