*कांग्रेस में पुरानी है 'कलह' की कहानी, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ के बाद कर्नाटक में भी नए “नाटक” से नहीं कर सकते इनकार*
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कर्नाटक में कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद को लेकर चल रहा घमासान खत्म हो गया है। आलाकमान ने सिद्धारमैया पर भरोसा दिखाते हुए उन्हें दूसरी बार राज्य का सीएम बनाने का फैसला किया है।। वहीं डीके शिवकुमार भी डिप्टी सीएम बनने पर मान गए हैं।दोनों नेताओं को सीएम और डिप्टी सीएम की कुर्सी 20 मई को शपथ ग्रहण समारोह के साथ ही सौंप दी जाएगी। वैसे कर्नाटक की किचकिट तो खत्म हो गई है, लेकिन कांग्रेस में 'कलह' की ऐसी कहानी नई नहीं है। इससे पहले साल 2018 में कांग्रेस ने तीन राज्यों (राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश) में अपने दम पर बहुमत हासिल किया था और सरकार बनाई लेकिन मुख्यमंत्री और उसके नेताओं के बीच में विवाद सामने आते रहे।
ये सन्नाटा किसी बड़े तूफान
13 मई को कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नजीते आए। कांग्रेस ने राज्य में बंपर जीत हासिल की। कांग्रेस ने 224 विधानसभा सीटों में से 135 सीटों पर जीत दर्ज की है। लेकिन सीएम फेस को लेकर 5 दिनों तक महामंथन चलता रहा। शिवकुमार और सिद्धारमैया में से कोई भी अपनी दावेदारी को छोड़ने को लेकर तैयार नहीं था। आखिरकार पांचवें दिन सब शांत हो गया।लेकिन सवाल अभी भी बाकी है क्या ये सन्नाटा किसी बड़े तूफान के आने से पहले का है।। इसके संकेत डीके शिवकुमार के भाई डीके सुरेश के ताजा बयान से मिल रहे हैं। डीके सुरेश ने उनके भाई को मुख्यमंत्री ना बनाने पर अपनी नाराजगी खुलकर जाहिर की है।
क्या हुआ था मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़
दरअसल कर्नाटक जैसे हालात का सामना कांग्रेस पहले भी कर चुकी है। साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को तीन राज्यों में अपने दम पर बहुमत मिला। इनमें राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश राज्य थे। जहां छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में कांग्रेस को 15 साल बाद सरकार बनाने के लिए बहुमत मिला था। इन तीनों ही राज्यों में बहुमत मिलने के बाद कांग्रेस को मुख्यमंत्री के लिए कई दिनों तक माथापच्ची करनी पड़ी। मध्य प्रदेश में एक ओर कमलनाथ और दूसरी तरफ सिंधिया मुख्यमंत्री पद के लिए ताल ठोक रहे थे। राजस्थान में सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच कुर्सी को लेकर तनातनी शुरू हो गई। इधर, छत्तीसगढ़ में टीएस सिंह देव और भूपेश बघेल के बीच सीएम की कुर्सी को लेकर ठन गई थी।
जब सिंधिया की बगावत से 15 महीने में गिर गई सरकार
2018 में जब कांग्रेस पार्टी ने विधानसभा चुनाव में बहुमत हासिल किया तब वहां भी ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ के बीच कुर्सी के लिए खींचतान शुरू हुई। तब आलकमान यानी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जैसे तैसे ज्योतिरादित्य सिंधिया को मनाया और सीएम की कुर्सी कमलनाथ को सौंप दी। यूं तो चुनौती थी कि मुख्यमंत्री अनुभवी नेता को बनाया जाए या युवा नेता की दावेदारी पर गौर किया जाए। इस दुविधा के बाद फैसला कमनाथ के पक्ष में रहा। यहीं से कांग्रेस पार्टी के भीतर खींचतान बढ़ती गई। बात इतनी बिगड़ी कि 15 महीने में ही सिंधिया ने बगावत कर दी। 18 साल पार्टी में रहे सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ बीजेपी ज्वॉइन कर ली।
राजस्थान में भी जारी है रार
राजस्थान में कांग्रेस के हालात किसी से छुपे नहीं है। 2018 के विधानसभा चुनावों कांग्रेस ने 100 सीटें जीती थी। जब मुख्यमंत्री का नाम तय करने की बारी आई तो अशोक गहलोत और सचिन पायलट में सीएम की कुर्सी को लेकर खींचतान शुरू हो गई। दिल्ली में कांग्रेस आलाकमान के सामने 5 दिन तक रस्साकस्सी होती रही। अंत में कांग्रेस आलाकमान ने अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री और सचिन पायलट को उपमुख्यमंत्री बनाने का निर्णय लिया। 17 दिसंबर 2018 को गहलोत ने मुख्यमंत्री और पायलट ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली। उन दिनों ऐसा माना जा रहा था कि ढाई साल बाद सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यही वजह है कि आज तक गहलोत और पायलट के बीच नूरा कुश्ती जारी है।
जब बघेल ने नहीं छोड़ा सीएम पद
मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसा ही हाल छत्तीसगढ़ में हुआ। भूपेश बघेल की अगुवाई में कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ की चुनाव लड़ा और पार्टी ने प्रचंड जीत हासिल की। लेकिन मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर कांग्रेस में यहां भी पेंच फंस गया। भूपेश बघेल के साथ-साथ कांग्रेस से वरिष्ठ नेता टीएस सिंह देव भी मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल हो गए और उन्होंने भूपेश बघेल के सामने ताल ठोक दी। इससे कांग्रेस आलाकमान परेशान हो गया। कांग्रेस आलाकमान ने दोनों नेताओं को दिल्ली बुलाया और लंबी बातचीत के बाद दोनों नेताओं में सुलह कराने में सफल रहा। आलाकमान ने छत्तीसगढ़ में ढाई-ढाई साल तक मुख्यमंत्री बनाने का भरोसा दिया। भूपेश बघेल को मुख्यमंत्री बनाया गया और टीएस सिंह देव को स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया। लेकिन भूपेश सरकार के ढाई साल पूरे होने के उन्होंने सीएम पद नहीं छोड़ा और बाद में टीएस सिंह देव काफी पीछे रह गए और उन्होंने स्वास्थ्य मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
कहीं नाराजगी ना दिखा दे असर
इधर कर्नाटक में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिलते ही मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए कांग्रेस में फिर खींचतान शुरू हो गई। पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच रस्सा कस्सी शुरू हो गई। चार दिन तक दिल्ली में जोर आजमाइश चलती रही। आखिर में कांग्रेस हाईकमान ने सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय लिया। डीके शिवकुमार को यह कहकर विश्वास में लिया कि सिद्धारमैया डीके शिवकुमार से पूछे बिना कोई निर्णय नहीं लेंगे। इसके बाद शिवकुमार भी मान गए। हालांकि, डीके शिवकुमार के भाई डीके सुरेश ने उनके भाई को मुख्यमंत्री ना बनाने पर अपनी नाराजगी खुलकर जाहिर की है। डीके शिवकुमार के भाई ने मीडिया से कहा कि मैं फैसले से खुश नहीं हूं, डीके शिवकुमार ने कर्नाटक के लोगों के हित में ये फैसला स्वीकार किया है।इसी के साथ उन्होंने ये भी कहा कि हम भविष्य में देखेंगे।। अभी तो लंबा रास्ता तय करना है। हम देखेंगे कि हमें आगे क्या करना है। जिस तरह से डीके सुरेश खुलकर अपने भाई का समर्थन कर रहे हैं उससे आने वाले समय में कर्नाटक में किसी नए नाटक से इनकार नहीं किया जा सकता है।
May 18 2023, 19:32