बेगूसराय में समृद्धि का आधार बना दीपावली का त्योहार, NSS ने चलाया विशेष अभियान
14 वर्ष के वनवास और लंका विजय कर प्रभु श्रीराम के अयोध्या लौटने की खुशी में मनाए जाने वाले दीपावली और लक्ष्मी-गणेश पूजन में गांव की समृद्धि को एक नया आधार दे दिया है। वैसे तो कोई भी पर्व-त्योहार गांव की समृद्धि का आधार बनता है।
इस साल की दीपावली में हुए धन की बरसात ने गांव को समृद्ध किया है। पहले के मुकाबले मिट्टी के दीप की ब्रिकी बढ़ी है। इसकी ब्रिकी के लिए एनएसएस विशेष कार्यक्रम चला रहा है।
दीपावली को लेकर बेगूसराय में जब दो सौ करोड़ से भी अधिक का कारोबार हुआ है, तो इसमें से करोड़ों रुपए गांव भी पहुंचे। गांव में बसे कुम्हार के बनाए गए मिट्टी के दीप और कलश की जहाज की जमकर बिक्री हुई। संठी उत्पादक किसानों को भी काफी फायदा हुआ है। एक अनुमान के मुताबिक बेगूसराय में 30 लाख अधिक के सिर्फ कलश, दीप, मूर्ति और संठी की बिक्री हुई हैं।
जिले के विभिन्न गांवों में बसे कुम्हार परिवारों के बनाए गए दीप, कलश और चौमुख और मंसूरचक की प्रसिद्ध मूर्ति की बिक्री ना केवल उनके घर और स्थानीय बाजार में हुई। बल्कि बेगूसराय में भी मुख्यालय में दूर-दूर से आए दो सौ से अधिक लोगों ने सड़क किनारे अस्थाई दुकान लगाया था। जहां कि दो दिनों से जमकर बिक्री हुई। धनतेरस के बाद आज छोटी दीपावली को भी सुबह से ही बाजार सज गया है।
मिट्टी के बने दीप, चौमुख और कलश पहले तो खूब दिखते थे। बीच के समय में इनकी बिक्री में कमी आई। लेकिन अब जब कोरोना ने लोगों को गांव की याद दिलाया व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्थानीय उत्पाद खरीदने की अपील किया तो बाजार में इसका जबरदस्त असर देखा गया। सभी लोगों ने कुछ ना कुछ मिट्टी के बने दीप जरूर खरीदे हैं। जिससे इसे बनाने वाले परिवारों में नई आशा का संचार हुआ है।
कचहरी रोड में लगे एक अस्थाई दुकान पर मिट्टी के दिए दीप और कलश खरीद रही ललिता देवी ने बताया कि हमारे पूर्वजों के समय से मिट्टी के बने दीए जलाने की परंपरा रही है। बीच के दौर में आधुनिकता की चकाचौंध से प्रभावित लोगों ने सिंथेटिक दीपों का उपयोग करना शुरू किया। लेकिन अब एक बार फिर लोग पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल स्थानीय स्तर पर बनाए गए मिट्टी के बर्तन की ओर आकर्षित हुए हैं।
मिट्टी के बने दीप और कलश ना केवल सस्ते और पर्यावरण अनुकूल होते हैं। बल्कि हमारी ओर से खर्च किया गया पैसा हमारे समाज में ही रह जाता है, समाज के लोगों को जब फायदा होता है तो वह किसी ना किसी रूप में आगे बढ़ते हैं। हम बाजार से चमक-धमक वाले दीप खरीदने हैं तो उसमें पैसे भी अधिक खर्च होते हैं। वह चला जाता है कॉर्पोरेट के हाथ या चीन जैसे देश में। अपने जान पहचान वाले, रिश्तेदारों और समाज के लोगों को भी इसके लिए प्रेरित किया है।
इधर, भारत सरकार के युवा कार्यक्रम और खेल मंत्रालय के जीडी कॉलेज राष्ट्रीय सेवा योजना (NSS) के पूर्ववर्ती स्वयंसेवकों ने हर चौक-चौराहों पर अपने देश की सभ्यता और संस्कृति का प्रतीक मिट्टी का दिया खरीदने और अपने घर को मिट्टी के दीया से ही सजाने की अपील की जा रही है।
एनएसएस के पूर्व कार्यक्रम अधिकारी-सह-जीडी कॉलेज शिक्षक संघ के अध्यक्ष अंजनी कुमार व एनएसएस के कार्यक्रम अधिकारी सहर अफरोज इसका नेतृत्व कर रहे हैं। दीपावली के दिन मिट्टी का दीया जलाना हमारी सभ्यता और संस्कृति का प्रतीक है। हमें अपनी सभ्यता और संस्कृति को सहेजना चाहिए। मिट्टी का दीया खरीदने से उन सभी गरीब लोगों के घर में दीया जलेगा, जो दिन रात मेहनत करके इस मिट्टी के दीया को बनाते हैं। संकल्प लें अब हर दीपावली पर मिट्टी का दीया ही जलाएंगे।
मुंबई में रह रहे स्वयंसेवक अभिषेक झा बेगूसराय के सभी सोशल मीडिया ग्रुप के माध्यम से लोगों से मिट्टी का दीया खरीदने की अपील कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि एनएसएस के माध्यम से हम समाज को गरीब के घर में दीया कैसे जले, इसके लिए लोगों को मिट्टी का दीया जलाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। गौरव, अर्जुन, राहुल, धीरज, नीरज, रजत, विवेक, विशाल, मोहित, प्रियांशु, राजकुमार और चुनचुन सहित सभी स्वयंसेवक भी लगातार अभियान चला रहे हैं।
बेगूसराय से नोमानुल हक की रिपोर्ट
Nov 01 2024, 18:38