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ट्रंप की टैरिफ वाली धमकी, भारत पर क्या होगा असर?

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राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने साफ कर दिया है कि अमेरिका 2 अप्रैल से दुनियाभर के देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने जा रहा है। रेसिप्रोकल टैरिफ का मतलब है जो अमेरिका पर जितना टैरिफ लगाता है, अमेरिका भी उस देश पर उतना ही टैरिफ लगाएगा। इसका मतलब है कि कई देशों को अमेरिका में एक्सपोर्ट होने वाले सामान पर ज्यादा टैरिफ देना होगा। रेसिप्रोकल टैरिफ भारत के लिए भी काफी नुकसानदेह साबित हो सकता है। भारत के कई उद्योगों पर इसका सीधा असर देखने को मिलेगा।

अमेरिकी संसद को संबोधित करते हुए भी डोनाल्ड ट्रंप ने भारत का नाम लिया है और पारस्परिक टैरिफ लगाने की बात कही है। ट्रंप ने कहा, "अन्य देशों ने दशकों से हमारे खिलाफ टैरिफ का इस्तेमाल किया है। अब उन अन्य देशों के खिलाफ उनके हथियार का ही इस्तेमाल करने की हमारी बारी है। औसतन यूरोपीय संघ, चीन, ब्राजील, भारत और अनगिनत अन्य देश हमसे बहुत अधिक टैरिफ वसूलते हैं। उनकी तुलना में हम उनसे कम टैरिफ लेते हैं। यह बिल्कुल अनुचित है। अगले महीने से भारत के ऊपर अमेरिका का पारस्परिक टैरिफ सिस्टम शुरू हो जाएगा, यानि अमेरिकी सामानों पर भारत जितना टैरिफ लगाएगा, अमेरिका भी भारतीय सामानों पर उतना ही टैरिफ लगाएगा।

चीन से लेकर कनाडा तक डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ फैसलों पर अपनी कड़ी प्रतिक्रिया दे रहे हैं लेकिन भारत शांति का द्वीप बना हुआ है। ट्रंप के टैरिफ से दुनिया में उथल-पुथल है, जबकि डोनाल्ड ट्रंप पहले ही स्टील और एल्युमीनियम आयातों पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाकर भारत को बड़ा झटका दे चुके हैं फिर भी भारत शांत है।

इकोनॉमिक टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में ज्यादा समय तक शांति देखने को नहीं मिलेगी। भारत लंबे समय तक प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते हैं। भारत को अप्रैल महीने में टैरिफ युद्ध में फंसा लिया जाएगा जब पारस्परिक टैरिफ फैसला लागू हो जाएगा।

ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में मामले से परिचित लोगों का हवाला देते हुए कहा गया है कि "भारतीय अधिकारी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की धमकी भरे पारस्परिक शुल्क से बचने के लिए कारों और रसायनों सहित कई तरह के आयातों पर शुल्क कम करने के तरीके तलाश रहे हैं। नई दिल्ली में अधिकारी ऑटोमोबाइल, कुछ कृषि उत्पादों, रसायनों, महत्वपूर्ण फार्मास्यूटिकल्स, साथ ही कुछ चिकित्सा उपकरणों और इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए शुल्क कम करने पर चर्चा कर रहे हैं।"

भारत को नुकसान का अनुमान

एक रिपोर्ट के मुताबिक ट्रंप द्वारा प्रस्तावित 100% टैरिफ भारत पर महत्वपूर्ण असर डाल सकती है, जिससे भारतीय निर्यातकों को लगभग 7 बिलियन डॉलर प्रति वर्ष का नुकसान होने का अनुमान लगाया गया है। अमेरिका के पारस्परिक टैरिफ को लेकर ऑटो इंडस्ट्री और कृषि इंडस्ट्री के कारोबारी टेंशन में हैं। यह टैरिफ खासतौर से ऑटोमोबाइल, कृषि, रसायन, धातु उत्पाद, आभूषण, फार्मास्यूटिकल्स और खाद्य उत्पादों जैसे क्षेत्रों को प्रभावित करेगा।

पीयूष गोयल अमेरिका दौरे पर

दूसरी तरफ, भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल इन मुद्दों पर चर्चा करने और संभावित व्यापार समझौतों पर बातचीत के लिए अमेरिका की यात्रा की है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने पहले ही कुछ वस्तुओं पर टैरिफ कम किए हैं और ऊर्जा आयात बढ़ाने के साथ-साथ रक्षा उपकरणों की खरीद भी बढ़ाई है ताकि दोनों देशों के बीच व्यापार तनाव को कम हो सके। बता दें कि इससे पहले पिछले महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान दोनों देशों ने 2025 की आखिर तक व्यापार समझौते के पहले खंड पर काम करने पर सहमति जताई है, जिसका लक्ष्य 2030 तक 500 बिलियन डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार करना है।

चीन, कनाडा और मेक्सिको ने डोनाल्ड ट्रम्प के टैरिफ सुधार प्रस्ताव को नकारते हुए किया पलटवार

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AP

मेक्सिको, कनाडा और चीन से आयात पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा घोषित टैरिफ मंगलवार को लागू हो गए, जिससे इस मुद्दे पर कई दिनों से चल रही अटकलें खत्म हो गईं। टैरिफ, जो मूल रूप से पिछले महीने लागू होने वाले थे, पर 30 दिनों का विराम लगा, क्योंकि ट्रम्प ने देशों से अमेरिका में फेंटेनाइल दवा के प्रवाह को रोकने या ‘गंभीर रूप से सीमित’ करने के लिए कहा था। सोमवार को, रिपब्लिकन ने कहा कि टैरिफ के संबंध में कनाडा और मेक्सिको के साथ किसी समझौते के लिए ‘कोई जगह नहीं’ है, उन्होंने कहा कि योजना मंगलवार को निर्धारित समय पर लागू होगी।

प्रस्तावित योजना कनाडा और मेक्सिको से आयात पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने की थी। चीन पर भी पहले से लागू 10 प्रतिशत के अतिरिक्त 10 प्रतिशत टैरिफ लगाया गया। मंगलवार आधी रात को टैरिफ लागू हुए, जिसके जवाब में तीनों देशों ने अपने-अपने जवाबी उपाय किए। मेक्सिको, कनाडा और चीन ने कैसे जवाबी कार्रवाई की ? 

कनाडा

निवर्तमान कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने मंगलवार से 30 बिलियन कनाडाई डॉलर मूल्य के अमेरिकी सामानों पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा की। यही नहीं, 125 बिलियन कनाडाई डॉलर मूल्य के अमेरिकी सामानों पर शेष जवाबी टैरिफ 21 दिनों के भीतर लगाए जाएंगे। रॉयटर्स ने ट्रूडो के हवाले से कहा, "जब तक अमेरिकी व्यापार कार्रवाई वापस नहीं ली जाती, तब तक हमारे टैरिफ लागू रहेंगे और अगर अमेरिकी टैरिफ बंद नहीं होते हैं, तो हम कई गैर-टैरिफ उपायों को आगे बढ़ाने के लिए प्रांतों और क्षेत्रों के साथ सक्रिय और चल रही चर्चाओं में हैं।"

मेक्सिको

अमेरिका के दक्षिणी पड़ोसी ने सोमवार को घोषणा की कि अगर ट्रम्प अपनी टैरिफ योजनाओं के साथ आगे बढ़ते हैं, तो उसके पास बैकअप योजनाएँ हैं। बहुत अधिक विवरण दिए बिना, मेक्सिको की राष्ट्रपति क्लाउडिया शिनबाम ने कहा कि अगर मंगलवार को अमेरिका ने उस पर टैरिफ लगाया तो देश तैयार है।

चीन

चीन ने भी नए अमेरिकी टैरिफ के जवाब में कई कृषि उत्पादों पर टैरिफ लगाने की घोषणा की। चीन के वित्त मंत्रालय ने मंगलवार को कहा कि वह सोयाबीन और मकई से लेकर डेयरी और बीफ़ तक के कृषि उत्पादों पर 10 प्रतिशत से 15 प्रतिशत के बीच अतिरिक्त टैरिफ लगाएगा। समाचार एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, चीन में 10% प्रतिशोधी टैरिफ का सामना करने वाले अमेरिकी उत्पादों में सोयाबीन, ज्वार, सूअर का मांस, बीफ़, जलीय उत्पाद, फल, सब्जियाँ और डेयरी उत्पाद शामिल हैं।

चीनी वित्त मंत्रालय ने कहा कि चिकन, गेहूं, मक्का और कपास पर 15 प्रतिशत टैरिफ लगाया जाएगा। टैरिफ के साथ-साथ, चीन ने 25 अमेरिकी फर्मों पर निर्यात और निवेश प्रतिबंध भी लगाए हैं।

ट्रंप ने ब्रिटिश पीएम से पूछ लिया ऐसा सवाल, हक्का-बक्का हो गए स्टार्मर

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डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा अमेरिका का राष्ट्रपति चुने जाने के बाद वैश्विक नेताओं का वॉशिंगटन जाना शुरू हो गया है। इसी क्रम में ब्रिटिश पीएम कीर स्टार्मर अमेरिका दौरे पर पहुंचे। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ बैठक की। बैठक के बाद राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने व्हाइट हाउस में एक साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इस दौरान ट्रंप ने ब्रिटिश पीएम कीर स्टार्मर को चैलेंज करते हुए पूछ लिया कि क्या वे अकेले रूस का मुकाबला कर पाएंगे? पत्रकारों के सामने ट्रंप का यह सवाल सुनकर स्टार्मर चौंक गए।

गुरुवार को ट्रंप से मुलाकात के बाद दोनों ने जॉइंट प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इस दौरान ट्रंप से सवाल पूछा गया था कि यदि यूक्रेन में ब्रिटिश सेना तैनात होती है तो क्या अमेरिका उनकी मदद करेगा? ट्रं ने पहले ‘नहीं’ कहा। उन्होंने कहा कि ब्रिटिश अपना ख्याल बहुत अच्छे से रख सकते हैं। कुछ ही देर बाद उन्होंने कहा कि यदि ब्रिटेन को मदद की जरूरत होगी तो अमेरिका उनका साथ देगा। फिर ट्रम्प, स्टार्मर की तरफ मुड़े और उनसे पूछ लिया- क्या आप अकेले रूस का मुकाबला कर पाएंगे? इस पर स्टार्मर कोई जवाब नहीं दे सके और मुस्कुराकर रह गए।

दरअसल, ओवल में व्हाइट हाउस में ब्रिटिश पीएम और अमेरिकी राष्ट्रपति प्रेस को संबोधित कर रहे थे और सवालों के जवाब दे रहे थे। इसी दौरान स्टारमर ने कहा, इतिहास को शांति स्थापित करने वाले के पक्ष में होना चाहिए, ना कि आक्रमणकारी के पक्ष में। यूके किसी समझौते का समर्थन करने के लिए जमीन पर सैनिक और एयरफोर्स विमान भेजने के लिए तैयार है। हम अपने सहयोगियों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं क्योंकि यही एकमात्र तरीका है जिससे शांति बनी रहेगी। इसी दौरान ट्रंप ने सवाल किया, ‘…क्या आप अकेले रूस से मुकाबला कर सकते हैं? सवाल सुनते ही स्टार्मर झेंप जाते हैं।

वहीं, बातचीत के दौरान ट्रंप ने कहा कि यूक्रेन जंग रोकने के लिए शुरू हुई बातचीत अब बहुत आगे बढ़ चुकी है। वहीं, स्टार्मर ने कहा कि यह ध्यान रखना जरूरी है कि जंग पूरी तरह स्थायी हो और किसी एक पक्ष को इसका फायदा न हो।

स्टार्मर ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा, शांति वैसी नहीं हो सकती जो हमलावर को फायदा पहुंचाती हो या फिर ईरान जैसी शासन व्यवस्था को बढ़ावा देती हो। इतिहास को शांति निर्माता के पक्ष में होना चाहिए, आक्रमणकारी के पक्ष में नहीं।

रूस और यूक्रेन का हिंसक संघर्ष खत्म करने के मुद्दे पर स्टार्मर ने कहा, अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ आज एक योजना पर चर्चा हुई। इससे यूक्रेन को मदद मिलेगी। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को यूक्रेन में कार्रवाई के लिए वापस आने से रोकने के लिए यूक्रेन योजना बनाएगा। ब्रिटेन और अमेरिका पूरी ताकत के साथ मदद करेंगे।

ट्रंप की पहली कैबिनेट बैठक: मस्क की सरकारी भूमिका, बजट कटौती और विदेश नीति पर अहम फैसले

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने नए कार्यकाल की पहली कैबिनेट बैठक आयोजित की, जिसमें कई महत्वपूर्ण और असामान्य फैसले सामने आए। इस बैठक में सबसे खास बात यह थी कि टेस्ला के CEO और "सरकारी दक्षता विभाग" (DOGE) के सह-अध्यक्ष एलन मस्क का शामिल होना। मस्क की उपस्थिति ट्रंप प्रशासन की कार्यशैली को दर्शाती है, जिसमें वह सरकारी सुधारों में सक्रिय रूप से शामिल हो रहे हैं। बैठक में मस्क ने कई अहम मुद्दों पर अपने विचार साझा किए, जिनमें सरकारी खर्चों में कटौती, बड़े पैमाने पर छंटनी और विदेश नीति से जुड़े फैसले शामिल थे।

1. एलन मस्क की सरकारी दक्षता में भूमिका

एलन मस्क ने अपनी भूमिका को "विनम्र तकनीकी सहायता" के रूप में बताया। उन्होंने कहा कि उनका मुख्य उद्देश्य सरकारी खर्चों में कटौती करना और दक्षता बढ़ाना है। मस्क ने चेतावनी दी कि अगर यह प्रयास विफल होते हैं तो अमेरिका दिवालिया हो सकता है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे यूएसएआईडी द्वारा इबोला रोकथाम अनुदान गलती से रद्द कर दिया गया था, लेकिन बाद में इसे बहाल कर दिया गया।

2. बड़े पैमाने पर छंटनी और बजट में कटौती

ट्रंप प्रशासन ने संघीय सरकार के आकार को छोटा करने के लिए बड़ी छंटनी की योजना बनाई है। ट्रंप ने कहा कि संघीय एजेंसियों को कर्मचारियों की संख्या में "काफी कमी" करने के लिए 13 मार्च तक योजनाएं प्रस्तुत करनी होंगी। मस्क ने बताया कि इस साल के $6.7 ट्रिलियन के बजट में $1 ट्रिलियन की कटौती की जा सकती है। यह कदम अमेरिका के राष्ट्रीय ऋण को कम करने की दिशा में एक बड़ा प्रयास हो सकता है।

3. मस्क की कार्य रिपोर्ट की मांग और विवाद

एलन मस्क ने संघीय कर्मचारियों से साप्ताहिक कार्य रिपोर्ट भेजने को कहा, जिसमें कर्मचारियों से यह बताया गया था कि उन्होंने सप्ताह में क्या हासिल किया। मस्क ने समय सीमा के भीतर रिपोर्ट न भेजने पर बर्खास्तगी की धमकी दी, जिससे कई संघीय एजेंसियों में असहमति हुई। हालांकि ट्रंप प्रशासन ने बाद में इस आदेश को कुछ समय के लिए स्थगित कर दिया। मस्क ने अपनी इस कार्रवाई का बचाव करते हुए कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए था कि सरकारी भुगतान सही कर्मचारियों तक पहुंच रहा है।

4. "गोल्ड कार्ड" वीजा कार्यक्रम का प्रस्ताव

ट्रंप ने एक नया "गोल्ड कार्ड" वीजा कार्यक्रम पेश किया, जो पुराने EB-5 वीजा कार्यक्रम की जगह लेगा। ट्रंप का मानना है कि इस योजना से $5 ट्रिलियन तक का राजस्व प्राप्त हो सकता है यदि एक मिलियन गोल्ड कार्ड बेचे जाते हैं। वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक ने कहा कि यह कार्यक्रम अमीर निवेशकों को आकर्षित करेगा, जो अमेरिका में पूंजी निवेश करेंगे और नौकरी सृजन में मदद करेंगे। ट्रंप ने यह भी स्पष्ट किया कि इस कार्यक्रम को कांग्रस की मंजूरी की आवश्यकता नहीं होगी।

5. कनाडा और मेक्सिको पर 25% टैरिफ

ट्रंप ने घोषणा की कि 2 अप्रैल से कनाडा और मेक्सिको पर 25% टैरिफ लगाया जाएगा। हालांकि यह निर्णय पहले ही टैरिफ के लिए निर्धारित था, लेकिन सीमा सुरक्षा उपायों पर समझौते के बाद इसे कुछ समय के लिए स्थगित कर दिया गया। ट्रंप ने इसे फेंटेनाइल के प्रवाह को रोकने के लिए एक आवश्यक कदम बताया।

6. यूक्रेनी राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की का वाशिंगटन दौरा

ट्रंप ने पुष्टि की कि यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की 4 मार्च को वाशिंगटन में आएंगे और एक महत्वपूर्ण खनिज सौदे पर हस्ताक्षर करेंगे। हालांकि, ज़ेलेंस्की ने इस दौरे को लेकर मिश्रित प्रतिक्रिया दी और कहा कि यह सौदा एक बड़ी सफलता हो सकती है या चुपचाप पारित हो सकता है। ट्रंप ने यह स्पष्ट किया कि यूक्रेन को सुरक्षा गारंटी देने की बात पर वे सहमत नहीं हैं, और यूक्रेन की नाटो सदस्यता को भी खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि यूरोप को यह जिम्मेदारी उठानी होगी, न कि अमेरिका को।

 7. नाटो और यूक्रेन के बारे में ट्रंप की स्थिति

ट्रंप ने यूक्रेन के नाटो में शामिल होने के विचार को एक बार फिर खारिज किया और यह भी कहा कि यूक्रेन के युद्ध की शुरुआत के लिए जिम्मेदारी यूक्रेन पर ही है। ट्रंप ने यह तर्क दिया कि नाटो का विस्तार युद्ध के प्रारंभ का एक कारण हो सकता है। उन्होंने यूक्रेन को एक "अच्छा सौदा" देने की बात की, जिससे वे अपनी अधिकतम भूमि को वापस प्राप्त कर सकें। इसके अलावा, ट्रंप ने यह भी कहा कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को शांति वार्ता के लिए "रियायतें" देनी होंगी।

राष्ट्रपति ट्रंप की पहली कैबिनेट बैठक में कई महत्वपूर्ण फैसले किए गए, जो उनकी "अमेरिका फर्स्ट" नीति के अनुरूप हैं। एलन मस्क की सरकारी दक्षता में सक्रिय भूमिका, संघीय कर्मचारियों से कार्य रिपोर्ट की मांग, और "गोल्ड कार्ड" वीजा कार्यक्रम का प्रस्ताव उनके प्रशासन की कार्यशैली को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं। इसके अलावा, विदेश नीति में यूक्रेन और नाटो के मुद्दे पर ट्रंप की स्थिति उनके कठोर दृष्टिकोण को दर्शाती है। इन फैसलों के प्रभाव को आने वाले महीनों में देखा जा सकेगा।

बर्बाद हो चुके यूक्रेन से क्या चाहते हैं ट्रंप? मदद के बदले खनिज समझौते पर हस्ताक्षर का दबाव

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रूस जैसे शक्तिशाली देश से जंग कर यूक्रेन पहले ही बर्बाद हो चुका है। अब यूक्रेन के पास बची-खुची जो संपदा है, उस पर अमेरिका की नजर है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप यूक्रेन की मदद के बदले उसके दुर्लभ पृथ्वी तत्वों तक अपनी पहुंच की मांग की है। डोनाल्‍ड ट्रंप यूक्रेन पर जंग खत्‍म करने का लगातार दबाव बना रहे हैं। लेकिन, एकमात्र शांति ही वो वजह नहीं है। ट्रंप की नजर यूक्रेन के उस खजाने पर है, जिसे लेकर वे मालामाल होना चाहते हैं। यूक्रेन के एक मंत्री ने दावा क‍िया क‍ि राष्‍ट्रपत‍ि वोलोदि‍मीर जेलेंस्‍की और अमेर‍िकी राष्‍ट्रपत‍ि के बीच यूक्रेन के खनिज भंडारों को लेकर एक डील होने ही वाली है।

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शनिवार को कहा है कि अमेरिका ने रूस के खिलाफ युद्ध लड़ने के लिए यूक्रेन के समर्थन में जो मदद दी है, वो उसे लाने की कोशिश कर रहे हैं। ट्रंप प्रशासन की कोशिश, बाइडेन प्रशासन के दौरान यूक्रेन को दिए गये मदद को वापस लेना है।

डोनाल्ड ट्रंप ने वॉशिंगटन में कंजर्वेटिव पॉलिटिकल एक्शन कॉन्फ्रेंस में प्रतिनिधियों से कहा, कि "मैं पैसे वापस पाने या सुरक्षित करने की कोशिश कर रहा हूं।" उन्होंने कहा कि "मैं चाहता हूं कि वे हमारे द्वारा लगाए गए सभी पैसे के बदले हमें कुछ दें। हम दुर्लभ पृथ्वी और तेल मांग रहे हैं, जो कुछ भी हमें मिल सकता है। हमें अपना पैसा वापस मिलेगा। मुझे लगता है कि हम सौदे के बहुत करीब हैं, और हमें करीब होना चाहिए क्योंकि यह एक भयानक स्थिति रही है।"

वहीं, रूस-यूक्रेन संघर्ष आरंभ होने के तीन साल पूरे होने के अवसर पर रविवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में जेलेंस्की ने कहा, यदि आपकी शर्त यह है कि यदि मैं समझौते पर हस्ताक्षर नहीं करता तो आप मदद नहीं देंगे तो बात साफ है। जेलेंस्की ने कहा, यदि हम पर दबाव डाला जाता है और हम इसके बिना कुछ नहीं कर सकते तो शायद हम इस दिशा में आगे बढ़ें... हालांकि मैं सिर्फ राष्ट्रपति ट्रंप से बात करना चाहता हूं। ट्रंप प्रशासन ने रूस के हमले से बचाने और हमले का जवाब देने के लिए यूक्रेन को दी गई मदद के बदले अब यूक्रेन को अपनी दुर्लभ खनिज संपदा तक अमेरिका को पहुंच देने का दबाव बनाना आरंभ किया है। इसके लिए ट्रंप के वार्ताकार कीव में मौजूद हैं।

गौरतलब है कि जेलेंस्की ने पहले अमेरिका के शुरुआती ऑफर को पूरी तरह ठुकरा दिया था। उनका कहना था कि इससे यूक्रेन को रूस के खतरे से अपनी सुरक्षा करने की गारंटी नहीं मिलती। जेलेंस्की ने रविवार को कहा कि वह अमेरिका को यूक्रेन के दुर्लभ खनिजों से लाभान्वित होने देने के लिए तैयार हैं लेकिन ट्रंप प्रशासन की ओर से इस मद में ऑफर की जा रही 500 अरब डॉलर की सहायता राशि उन्हें मंजूर नहीं है। उन्होंने कहा, मैं ऐसे किसी समझौते पर हस्ताक्षर नहीं करूंगा जिसकी कीमत यूक्रेन की दस पीढ़ियों को चुकानी पड़े।

चीन-भारत का नाम लेकर फिर ट्रंप ने दी धमकी, जानें अब क्या कहा?

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डोनाल्ड ट्रंप जबसे अमेरिका के राष्ट्रपति बने हैं, पूरी दुनिया में हड़कंप मचा हुआ है। ट्रंप बार-बार कई देशों को टैरिफ बढ़ाने की धमकी दे चुके हैं। इन देशों में भारत और चीन का नाम भी शामिल है। एक बार फिर उन्होंने भारत-चीन का नाम लेकर टैरिफ की धमकी दी है। यही नहीं, इस बार तो उन्होंने इस बात की कसम भी खाई है। बता दें कि ट्रंप का ये बयान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बैठक में इस मुद्दे पर विस्तार से चर्चा की बात करने की बावजूद आया है।हाल ही में पीएम मोदी ने अमेरिका की दो दिवसीय यात्रा की थी। इस दौरान उन्होंने ट्रंप के साथ व्यापार, रक्षा समेत टैरिफ के मुद्दे पर बात की थी।

शुक्रवार को डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि अमेरिका भी वही शुल्क लगाएगा, जो ये देश अमेरिकी वस्तुओं पर लगाते हैं। हम जल्द ही रिसिप्रोकल टैरिफ का एलान करेंगे। ट्रंप ने कहा कि वे हम पर शुल्क लगाते हैं। हम उन पर शुल्क लगाएंगे। जो भी कंपनी या देश, जैसे भारत या चीन, हम पर शुल्क लगाते हैं। हम निष्पक्ष होना चाहते हैं। कोई भी कंपनी या देश जैसे कि भारत और चीन जो भी शुल्क लगाते हैं, वहीं हम भी लगाएंगे। ट्रंप ने आगे कहा कि हमने ऐसा कभी नहीं किया। कोविड महामारी से पहले हम ऐसा करना चाहते थे। ट्रंप ने यह टिप्पणी एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान की थी जब उनसे टेस्ला के सीईओ एलन मस्क की पीएम मोदी के साथ बैठक के बारे में पूछा गया था

पीएम मोदी और डोनाल्ड ट्रंप की मीटिंग को एक ही सप्ताह हुआ है। डोनाल्ड ट्रंप के साथ द्विपक्षीय बैठक में पीएम मोदी ने कहा था कि अमेरिका और भारत व्यापार समझौते पर काम करेंगे। उन्होंने टैरिफ में ढील देने के अलावा व्यापार में आ रहे गतिरोध के बीच रियायतों पर बातचीत की पेशकश भी की थी। इस पर डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि वे भारत से व्यापार घाटे को कम करने के लिए बातचीत पर सहमत हैं।

खास बात तो ये है कि ट्रंप पहले से ही भारत को टैरिफ किंग नाम से संबोधित करते हुए आ रहे हैं। ग्लोबल प्लेटफॉर्म्स पर ट्रंप ने भारत के टैरिफ की आलोचना की है। टैरिफ को लेकर उन्होंने अपने चुनावी कैंपेन में भी जिक्र किया है। ऐसे में अब वो अपनी उस बात को आगे बढ़ाते हुए दिखाई दे रहे हैं। साथ ही टैरिफ को लेकर किसी तरह की रियायत देने के मूड में नहीं है।

ट्रंप के वफादार काश पटेल एफबीआई निदेशक बने, सीनेट की मंजूरी मिलते ही दहाड़ा

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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय मूल के काश पटेल को फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन यानी एफबीआई का निदेशक नियुक्त किया है। डोनाल्ड ट्रंप के कट्टर समर्थक काश पटेल की एफबीआई चीफ के रूप में नियुक्ति को सीनेट ने हरी झंडी दिखा दी। सीनेट में हुए मतदान में उन्हें 51-49 के मामूली अंतर से बहुमत हासिल हुआ। डेमोक्रेट सांसदों ने काश पटेल की नियुक्ति का विरोध किया। उनकी योग्यता पर सवाल उठाए। उनका कहना था कि काश पटेल ट्रंप के इशारे पर काम करेंगे और रिपब्लिकन नेता के विरोधियों को निशाना बनाएंगे।

ट्रंप का जताया आभार

एफबीआई के निदेशक के रूप में पुष्टि किए जाने के बाद, राष्ट्रपति ट्रंप का आभार व्यक्त किया और एजेंसी को 'पारदर्शी, जवाबदेह और न्याय के लिए प्रतिबद्ध' बनाने की कसम खाई। सोशल मीडिया मंच एक्स पर एक पोस्ट साझा करते हुए, काश पटेल ने कहा, मैं संघीय जांच ब्यूरो के नौवें निदेशक के रूप में पुष्टि किए जाने पर सम्मानित महसूस हो रहा है। राष्ट्रपति ट्रंप और अटॉर्नी जनरल पाम बॉन्डी को आपके अटूट विश्वास और समर्थन के लिए धन्यवाद।

अमेरिका के खिलाफ काम करने वालों को चेतावनी

काश पटेल ने लिखा कि डायरेक्टर के रूप में मेरा मिशन साफ है, हम एक ऐसी एफबीआई का पुनर्निर्माण करेंगे जिस पर अमेरिकी लोगों को गर्व हो। और जो लोग अमेरिकियों को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं, वे इसे अपनी चेतावनी मानें। हम इस दुनिया के हर कोने में आपका पता लगा लेंगे।

काश पटेल की नियुक्ति के बाद तय है कि एफबीआई में बड़े बदलाव संभव हैं। काश पटेल पहले ही कह चुके हैं कि वह एफबीआई में बड़े बदलाव करेंगे। इनमें वाशिंगटन स्थित मुख्यालय में कर्मचारियों की संख्या में कमी और खुफिया जानकारी जुटाने और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे कामों के बजाय अपराध से निपटने जैसे एफबीआई के पारंपरिक कामों पर नए सिरे से जोर देना शामिल है। पिछले दो दशकों में एफबीआई की भूमिका को खुफिया जानकारी जुटाने और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे कामों से परिभाषित किया जाता रहा है।

मोदी को हराना चाहते थे बाइडेन, इसलिए कराई करोड़ों की फंडिंग”, डोनाल्ड ट्रंप का बड़ा आरोप

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अमेरिकी सरकारी दक्षता विभाग (डीओजीई) ने भारत में खर्च करने के लिए दिए गये 21 मिलियन डॉलर लगभग 182 करोड़ रुपए के एक फंड को खारिज कर दिया है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत में वोटिंग टर्नआउट बढ़ाने के लिए अमेरिकी फंडिंग रोकने के फैसले पर एक बार फिर प्रतिक्रिया दी है। ट्रंप ने बुधवार को बड़ा दावा करते हुए कहा कि पिछली बाइडन सरकार की ओर से किसी और को जिताने की कोशिश की जा रही थी। शायद वे (पूर्ववर्ती बाइडन सरकार) भारत में किसी और की सरकार बनवाना चाहते थे। इससे पहले ट्रंप ने भारत को दी जाने वाली अमेरिकी फंडिंग रोकने के फैसले का बचाव किया था। ट्रंप ने सवाल उठाया कि भारत को 21 मिलियन डॉलर क्यों दिए गए, जबकि भारत के पास पहले से ही बहुत पैसा है।

ट्रंप ने एफआईआई प्रायोरिटी समिट में कहा, हमें भारत में मतदाता टर्नआउट पर 21 मिलियन डॉलर खर्च करने की आवश्यकता क्यों है? मुझे लगता है कि वे किसी और को जिताने की कोशिश कर रहे थे। हमें भारतीय सरकार को बताना होगा। यह एक पूरी तरह से नया खुलासा है। हमें भारत सरकार को बताना होगा, क्योंकि जब हम सुनते हैं कि रूस ने हमारे देश में 2 डॉलर का खर्च किया है तो यह हमारे लिए बड़ा मुद्दा बन जाता है।

बुधवार को भी ट्रंप ने भारत में मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए अमेरिकी फंडिंग पर सवाल खड़े किए थे। उन्होंने कहा था कि 'हम भारत को 2.1 करोड़ डॉलर क्यों दे रहे थे? उनके पास पहले से ही काफी पैसा है। वे सबसे ज्यादा टैक्स लगाने वाले देश हैं। हम मुश्किल से उनके बाजार में अपना सामान भेज पा रहे हैं क्योंकि उनके टैरिफ बहुत ज्यादा हैं। मैं भारत और उनके प्रधानमंत्री का सम्मान करता हूं, लेकिन भारत के चुनाव में 2.1 करोड़ की फंडिंग देने का क्या मतलब है? यहां के मतदान प्रतिशत का क्या?'

हाल ही में एलन मस्क के नेतृत्व वाले डीओजीई विभाग ने विभिन्न देशों के लिए फंडिंग रोकने की घोषणा की थी, जिसमें भारत में मतदान को बढ़ावा देने के लिए 21 मिलियन अमेरिकी डॉलर की राशि भी शामिल थी। डीओजीई कहा था कि अमेरिका ने भारत में मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए बनाए गए 21 मिलियन डॉलर के कार्यक्रम में कटौती करने का फैसला किया है। डीओजीई अमेरिकी सरकार के खर्चे में कटौती कर रहा है। सरकारी दक्षता विभाग ने फिलहाल यूएसएआईडी द्वारा की जाने वाली अधिकतर फंडिंग पर रोक लगा दी है।डोनाल्ड ट्रंप सरकार ने संघीय सरकार की लागत में कटौती करने के उद्देश्य से सरकारी दक्षता विभाग का गठन किया था।

भारत बहुत अमीर है, हम 21 मिलियन डॉलर क्यों देंगे...जानें ट्रंप ने ऐसा क्यों कहा?

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हाल के सालों में भारत-अमेरिका संबंध ने एक नई ऊंचाई देखने को मिली है। हालांकि राष्ट्रपति के तौर पर डोनाल्ड ट्रंप की दोबारा वापसी के बाद भारत और अमेरिका का रिश्ता कैसा रहेगा ये सवाल उठने लगे हैं। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका दौरे पर गए थे, जहां राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उनका जोरदार स्वागत किया था। ट्रंप के दूसरी बार अमेरिका की कमान संभालने के बाद दोनों नेताओं की ये पहली मुलाकात थी। इसके तुरंत बाद अमेरिकी सरकारी दक्षता विभाग (डीओजीई) ने भारत में खर्च करने के लिए दिए गये 21 मिलियन डॉलर के एक फंड को खारिज कर दिया है। इस पर टंप का बड़ा बयान सामने आया है। उन्होंने भारत को दी जाने वाली अमेरिकी फंडिंग रोकने के फैसले का बचाव किया है। ट्रंप ने सवाल उठाया कि भारत को 21 मिलियन डॉलर क्यों दिए गए, जबकि भारत के पास पहले से ही बहुत पैसा है।

एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान ट्रंप ने फंड का जिक्र करते हुए कहा कि हम भारत को 108 अरब क्यों दे रहे हैं? उनके पास पहले से ही बहुत पैसा है। वे अमीर हैं वे दुनिया के सबसे अधिक कर लगाने वाले देशों में से एक हैं। हम वहां मुश्किल से प्रवेश कर पाते हैं क्योंकि उनके टैरिफ काफी अधिक हैं। मुझे भारत और उनके प्रधानमंत्री का बहुत सम्मान है लेकिन वहां के चुनाव में मतदाताओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए 1.8 अरब क्यों देना? ट्रंप ने इस फंडिंग को गैर-जरूरी बताते हुए कहा कि भारत जैसे देश को अमेरिका से इस तरह की वित्तीय सहायता की आवश्यकता नहीं है।

दरअसल हाल ही में एलन मस्क के नेतृत्व वाले डीओजीई विभाग ने विभिन्न देशों के लिए फंडिंग रोकने की घोषणा की थी, जिसमें भारत में मतदान को बढ़ावा देने के लिए 21 मिलियन अमेरिकी डॉलर की राशि भी शामिल थी। डीओजीई कहा था कि अमेरिका ने भारत में मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए बनाए गए 21 मिलियन डॉलर के कार्यक्रम में कटौती करने का फैसला किया है। डीओजीई अमेरिकी सरकार के खर्चे में कटौती कर रहा है।

मुंबई हमले के गुनहगार तहव्वुर राणा का होगा भारत प्रत्यर्पण, ट्रंप की मंजूरी के बाद अब तक होगी वापसी


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मुंबई में 2008 में हुए आतंकवादी हमले के मुख्य साजिशकर्ताओं में से एक तहव्वुर राणा को अमेरिका भारत को सौंपने जा रहा है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस बात की मंजूरी दे दी है। उन्होंने कहा कि तहव्वुर राणा को भारत में न्याय का सामना करना होगा। ट्रंप ने ये ऐलान व्हाइट हाउस में पीएम मोदी के साथ एक जॉइंट प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान किया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिनों के अमेरिका के दौरे पर थे। पीएम मोदी के वॉशिंगटन पहुंचने पर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ उनकी गर्मजोशी से मुलाकात हुई। मुलाकात के दौरान दोनों देशों के शीर्ष नेताओं के बीच कई अहम विषयों पर समझौते हुए। इस दौरान ट्रंप ने ऐलान किया कि मुंबई हमले के गुनहगार तहव्वुर राणा को भारत प्रत्यर्पण किया जाएगा।

पीएम मोदी और राष्‍ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच हुई द्विपक्षीय वार्ता के बाद साझा प्रेस कॉन्‍फ्रेंस के दौरान ट्रंप ने कहा, मुझे यह घोषणा करते हुए खुशी हो रही है कि हमारे प्रशासन ने 2008 के मुंबई आतंकवादी हमले के दोषी तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण को मंजूरी दे दी है। उसे भारत जाकर न्याय का सामना करना होगा।

ट्रंप के ऐलान के बाद आतंकी तहव्वुर राणा के अब बुरे दिन शुरू हो गए हैं। सरकारी सूत्रों का कहना है कि उन्हें कुछ हफ्तों में भारत लाया जा सकता है। इसके लिए एजेंसियां तैयारी में जुट गई हैं। सरकारी सूत्रों के अनुसार, कानूनी दस्तावेज और वारंट जारी कर अमेरिकी अधिकारियों के साथ साझा किए गए हैं।

सूत्रों ने कहा, अब जब एक राजनीतिक निर्णय लिया गया है, तो दोनों पक्ष तारीख और समय तय करेंगे। विदेश मंत्रालय अपने अमेरिकी समकक्ष के साथ तारीख तय करने के लिए संपर्क में है। विदेश मंत्रालय की मंजूरी मिलते ही एआईए अधिकारियों की एक टीम अमेरिका जाने की संभावना है।

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का 26/11 मुंबई हमले के दोषी तहव्वुर राणा के भारत प्रत्यर्पण को मंजूरी देना दोनों के बीच सुरक्षा सहयोग को और मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। तहव्वुर राणा पर 2008 के मुंबई हमले में साजिश रचने का आरोप है। उस पर आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा को समर्थन देने का भी आरोप हैं।

ट्रंप की टैरिफ वाली धमकी, भारत पर क्या होगा असर?

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राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने साफ कर दिया है कि अमेरिका 2 अप्रैल से दुनियाभर के देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने जा रहा है। रेसिप्रोकल टैरिफ का मतलब है जो अमेरिका पर जितना टैरिफ लगाता है, अमेरिका भी उस देश पर उतना ही टैरिफ लगाएगा। इसका मतलब है कि कई देशों को अमेरिका में एक्सपोर्ट होने वाले सामान पर ज्यादा टैरिफ देना होगा। रेसिप्रोकल टैरिफ भारत के लिए भी काफी नुकसानदेह साबित हो सकता है। भारत के कई उद्योगों पर इसका सीधा असर देखने को मिलेगा।

अमेरिकी संसद को संबोधित करते हुए भी डोनाल्ड ट्रंप ने भारत का नाम लिया है और पारस्परिक टैरिफ लगाने की बात कही है। ट्रंप ने कहा, "अन्य देशों ने दशकों से हमारे खिलाफ टैरिफ का इस्तेमाल किया है। अब उन अन्य देशों के खिलाफ उनके हथियार का ही इस्तेमाल करने की हमारी बारी है। औसतन यूरोपीय संघ, चीन, ब्राजील, भारत और अनगिनत अन्य देश हमसे बहुत अधिक टैरिफ वसूलते हैं। उनकी तुलना में हम उनसे कम टैरिफ लेते हैं। यह बिल्कुल अनुचित है। अगले महीने से भारत के ऊपर अमेरिका का पारस्परिक टैरिफ सिस्टम शुरू हो जाएगा, यानि अमेरिकी सामानों पर भारत जितना टैरिफ लगाएगा, अमेरिका भी भारतीय सामानों पर उतना ही टैरिफ लगाएगा।

चीन से लेकर कनाडा तक डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ फैसलों पर अपनी कड़ी प्रतिक्रिया दे रहे हैं लेकिन भारत शांति का द्वीप बना हुआ है। ट्रंप के टैरिफ से दुनिया में उथल-पुथल है, जबकि डोनाल्ड ट्रंप पहले ही स्टील और एल्युमीनियम आयातों पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाकर भारत को बड़ा झटका दे चुके हैं फिर भी भारत शांत है।

इकोनॉमिक टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में ज्यादा समय तक शांति देखने को नहीं मिलेगी। भारत लंबे समय तक प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते हैं। भारत को अप्रैल महीने में टैरिफ युद्ध में फंसा लिया जाएगा जब पारस्परिक टैरिफ फैसला लागू हो जाएगा।

ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में मामले से परिचित लोगों का हवाला देते हुए कहा गया है कि "भारतीय अधिकारी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की धमकी भरे पारस्परिक शुल्क से बचने के लिए कारों और रसायनों सहित कई तरह के आयातों पर शुल्क कम करने के तरीके तलाश रहे हैं। नई दिल्ली में अधिकारी ऑटोमोबाइल, कुछ कृषि उत्पादों, रसायनों, महत्वपूर्ण फार्मास्यूटिकल्स, साथ ही कुछ चिकित्सा उपकरणों और इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए शुल्क कम करने पर चर्चा कर रहे हैं।"

भारत को नुकसान का अनुमान

एक रिपोर्ट के मुताबिक ट्रंप द्वारा प्रस्तावित 100% टैरिफ भारत पर महत्वपूर्ण असर डाल सकती है, जिससे भारतीय निर्यातकों को लगभग 7 बिलियन डॉलर प्रति वर्ष का नुकसान होने का अनुमान लगाया गया है। अमेरिका के पारस्परिक टैरिफ को लेकर ऑटो इंडस्ट्री और कृषि इंडस्ट्री के कारोबारी टेंशन में हैं। यह टैरिफ खासतौर से ऑटोमोबाइल, कृषि, रसायन, धातु उत्पाद, आभूषण, फार्मास्यूटिकल्स और खाद्य उत्पादों जैसे क्षेत्रों को प्रभावित करेगा।

पीयूष गोयल अमेरिका दौरे पर

दूसरी तरफ, भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल इन मुद्दों पर चर्चा करने और संभावित व्यापार समझौतों पर बातचीत के लिए अमेरिका की यात्रा की है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने पहले ही कुछ वस्तुओं पर टैरिफ कम किए हैं और ऊर्जा आयात बढ़ाने के साथ-साथ रक्षा उपकरणों की खरीद भी बढ़ाई है ताकि दोनों देशों के बीच व्यापार तनाव को कम हो सके। बता दें कि इससे पहले पिछले महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान दोनों देशों ने 2025 की आखिर तक व्यापार समझौते के पहले खंड पर काम करने पर सहमति जताई है, जिसका लक्ष्य 2030 तक 500 बिलियन डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार करना है।

चीन, कनाडा और मेक्सिको ने डोनाल्ड ट्रम्प के टैरिफ सुधार प्रस्ताव को नकारते हुए किया पलटवार

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AP

मेक्सिको, कनाडा और चीन से आयात पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा घोषित टैरिफ मंगलवार को लागू हो गए, जिससे इस मुद्दे पर कई दिनों से चल रही अटकलें खत्म हो गईं। टैरिफ, जो मूल रूप से पिछले महीने लागू होने वाले थे, पर 30 दिनों का विराम लगा, क्योंकि ट्रम्प ने देशों से अमेरिका में फेंटेनाइल दवा के प्रवाह को रोकने या ‘गंभीर रूप से सीमित’ करने के लिए कहा था। सोमवार को, रिपब्लिकन ने कहा कि टैरिफ के संबंध में कनाडा और मेक्सिको के साथ किसी समझौते के लिए ‘कोई जगह नहीं’ है, उन्होंने कहा कि योजना मंगलवार को निर्धारित समय पर लागू होगी।

प्रस्तावित योजना कनाडा और मेक्सिको से आयात पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने की थी। चीन पर भी पहले से लागू 10 प्रतिशत के अतिरिक्त 10 प्रतिशत टैरिफ लगाया गया। मंगलवार आधी रात को टैरिफ लागू हुए, जिसके जवाब में तीनों देशों ने अपने-अपने जवाबी उपाय किए। मेक्सिको, कनाडा और चीन ने कैसे जवाबी कार्रवाई की ? 

कनाडा

निवर्तमान कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने मंगलवार से 30 बिलियन कनाडाई डॉलर मूल्य के अमेरिकी सामानों पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा की। यही नहीं, 125 बिलियन कनाडाई डॉलर मूल्य के अमेरिकी सामानों पर शेष जवाबी टैरिफ 21 दिनों के भीतर लगाए जाएंगे। रॉयटर्स ने ट्रूडो के हवाले से कहा, "जब तक अमेरिकी व्यापार कार्रवाई वापस नहीं ली जाती, तब तक हमारे टैरिफ लागू रहेंगे और अगर अमेरिकी टैरिफ बंद नहीं होते हैं, तो हम कई गैर-टैरिफ उपायों को आगे बढ़ाने के लिए प्रांतों और क्षेत्रों के साथ सक्रिय और चल रही चर्चाओं में हैं।"

मेक्सिको

अमेरिका के दक्षिणी पड़ोसी ने सोमवार को घोषणा की कि अगर ट्रम्प अपनी टैरिफ योजनाओं के साथ आगे बढ़ते हैं, तो उसके पास बैकअप योजनाएँ हैं। बहुत अधिक विवरण दिए बिना, मेक्सिको की राष्ट्रपति क्लाउडिया शिनबाम ने कहा कि अगर मंगलवार को अमेरिका ने उस पर टैरिफ लगाया तो देश तैयार है।

चीन

चीन ने भी नए अमेरिकी टैरिफ के जवाब में कई कृषि उत्पादों पर टैरिफ लगाने की घोषणा की। चीन के वित्त मंत्रालय ने मंगलवार को कहा कि वह सोयाबीन और मकई से लेकर डेयरी और बीफ़ तक के कृषि उत्पादों पर 10 प्रतिशत से 15 प्रतिशत के बीच अतिरिक्त टैरिफ लगाएगा। समाचार एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, चीन में 10% प्रतिशोधी टैरिफ का सामना करने वाले अमेरिकी उत्पादों में सोयाबीन, ज्वार, सूअर का मांस, बीफ़, जलीय उत्पाद, फल, सब्जियाँ और डेयरी उत्पाद शामिल हैं।

चीनी वित्त मंत्रालय ने कहा कि चिकन, गेहूं, मक्का और कपास पर 15 प्रतिशत टैरिफ लगाया जाएगा। टैरिफ के साथ-साथ, चीन ने 25 अमेरिकी फर्मों पर निर्यात और निवेश प्रतिबंध भी लगाए हैं।

ट्रंप ने ब्रिटिश पीएम से पूछ लिया ऐसा सवाल, हक्का-बक्का हो गए स्टार्मर

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डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा अमेरिका का राष्ट्रपति चुने जाने के बाद वैश्विक नेताओं का वॉशिंगटन जाना शुरू हो गया है। इसी क्रम में ब्रिटिश पीएम कीर स्टार्मर अमेरिका दौरे पर पहुंचे। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ बैठक की। बैठक के बाद राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने व्हाइट हाउस में एक साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इस दौरान ट्रंप ने ब्रिटिश पीएम कीर स्टार्मर को चैलेंज करते हुए पूछ लिया कि क्या वे अकेले रूस का मुकाबला कर पाएंगे? पत्रकारों के सामने ट्रंप का यह सवाल सुनकर स्टार्मर चौंक गए।

गुरुवार को ट्रंप से मुलाकात के बाद दोनों ने जॉइंट प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इस दौरान ट्रंप से सवाल पूछा गया था कि यदि यूक्रेन में ब्रिटिश सेना तैनात होती है तो क्या अमेरिका उनकी मदद करेगा? ट्रं ने पहले ‘नहीं’ कहा। उन्होंने कहा कि ब्रिटिश अपना ख्याल बहुत अच्छे से रख सकते हैं। कुछ ही देर बाद उन्होंने कहा कि यदि ब्रिटेन को मदद की जरूरत होगी तो अमेरिका उनका साथ देगा। फिर ट्रम्प, स्टार्मर की तरफ मुड़े और उनसे पूछ लिया- क्या आप अकेले रूस का मुकाबला कर पाएंगे? इस पर स्टार्मर कोई जवाब नहीं दे सके और मुस्कुराकर रह गए।

दरअसल, ओवल में व्हाइट हाउस में ब्रिटिश पीएम और अमेरिकी राष्ट्रपति प्रेस को संबोधित कर रहे थे और सवालों के जवाब दे रहे थे। इसी दौरान स्टारमर ने कहा, इतिहास को शांति स्थापित करने वाले के पक्ष में होना चाहिए, ना कि आक्रमणकारी के पक्ष में। यूके किसी समझौते का समर्थन करने के लिए जमीन पर सैनिक और एयरफोर्स विमान भेजने के लिए तैयार है। हम अपने सहयोगियों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं क्योंकि यही एकमात्र तरीका है जिससे शांति बनी रहेगी। इसी दौरान ट्रंप ने सवाल किया, ‘…क्या आप अकेले रूस से मुकाबला कर सकते हैं? सवाल सुनते ही स्टार्मर झेंप जाते हैं।

वहीं, बातचीत के दौरान ट्रंप ने कहा कि यूक्रेन जंग रोकने के लिए शुरू हुई बातचीत अब बहुत आगे बढ़ चुकी है। वहीं, स्टार्मर ने कहा कि यह ध्यान रखना जरूरी है कि जंग पूरी तरह स्थायी हो और किसी एक पक्ष को इसका फायदा न हो।

स्टार्मर ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा, शांति वैसी नहीं हो सकती जो हमलावर को फायदा पहुंचाती हो या फिर ईरान जैसी शासन व्यवस्था को बढ़ावा देती हो। इतिहास को शांति निर्माता के पक्ष में होना चाहिए, आक्रमणकारी के पक्ष में नहीं।

रूस और यूक्रेन का हिंसक संघर्ष खत्म करने के मुद्दे पर स्टार्मर ने कहा, अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ आज एक योजना पर चर्चा हुई। इससे यूक्रेन को मदद मिलेगी। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को यूक्रेन में कार्रवाई के लिए वापस आने से रोकने के लिए यूक्रेन योजना बनाएगा। ब्रिटेन और अमेरिका पूरी ताकत के साथ मदद करेंगे।

ट्रंप की पहली कैबिनेट बैठक: मस्क की सरकारी भूमिका, बजट कटौती और विदेश नीति पर अहम फैसले

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AP

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने नए कार्यकाल की पहली कैबिनेट बैठक आयोजित की, जिसमें कई महत्वपूर्ण और असामान्य फैसले सामने आए। इस बैठक में सबसे खास बात यह थी कि टेस्ला के CEO और "सरकारी दक्षता विभाग" (DOGE) के सह-अध्यक्ष एलन मस्क का शामिल होना। मस्क की उपस्थिति ट्रंप प्रशासन की कार्यशैली को दर्शाती है, जिसमें वह सरकारी सुधारों में सक्रिय रूप से शामिल हो रहे हैं। बैठक में मस्क ने कई अहम मुद्दों पर अपने विचार साझा किए, जिनमें सरकारी खर्चों में कटौती, बड़े पैमाने पर छंटनी और विदेश नीति से जुड़े फैसले शामिल थे।

1. एलन मस्क की सरकारी दक्षता में भूमिका

एलन मस्क ने अपनी भूमिका को "विनम्र तकनीकी सहायता" के रूप में बताया। उन्होंने कहा कि उनका मुख्य उद्देश्य सरकारी खर्चों में कटौती करना और दक्षता बढ़ाना है। मस्क ने चेतावनी दी कि अगर यह प्रयास विफल होते हैं तो अमेरिका दिवालिया हो सकता है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे यूएसएआईडी द्वारा इबोला रोकथाम अनुदान गलती से रद्द कर दिया गया था, लेकिन बाद में इसे बहाल कर दिया गया।

2. बड़े पैमाने पर छंटनी और बजट में कटौती

ट्रंप प्रशासन ने संघीय सरकार के आकार को छोटा करने के लिए बड़ी छंटनी की योजना बनाई है। ट्रंप ने कहा कि संघीय एजेंसियों को कर्मचारियों की संख्या में "काफी कमी" करने के लिए 13 मार्च तक योजनाएं प्रस्तुत करनी होंगी। मस्क ने बताया कि इस साल के $6.7 ट्रिलियन के बजट में $1 ट्रिलियन की कटौती की जा सकती है। यह कदम अमेरिका के राष्ट्रीय ऋण को कम करने की दिशा में एक बड़ा प्रयास हो सकता है।

3. मस्क की कार्य रिपोर्ट की मांग और विवाद

एलन मस्क ने संघीय कर्मचारियों से साप्ताहिक कार्य रिपोर्ट भेजने को कहा, जिसमें कर्मचारियों से यह बताया गया था कि उन्होंने सप्ताह में क्या हासिल किया। मस्क ने समय सीमा के भीतर रिपोर्ट न भेजने पर बर्खास्तगी की धमकी दी, जिससे कई संघीय एजेंसियों में असहमति हुई। हालांकि ट्रंप प्रशासन ने बाद में इस आदेश को कुछ समय के लिए स्थगित कर दिया। मस्क ने अपनी इस कार्रवाई का बचाव करते हुए कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए था कि सरकारी भुगतान सही कर्मचारियों तक पहुंच रहा है।

4. "गोल्ड कार्ड" वीजा कार्यक्रम का प्रस्ताव

ट्रंप ने एक नया "गोल्ड कार्ड" वीजा कार्यक्रम पेश किया, जो पुराने EB-5 वीजा कार्यक्रम की जगह लेगा। ट्रंप का मानना है कि इस योजना से $5 ट्रिलियन तक का राजस्व प्राप्त हो सकता है यदि एक मिलियन गोल्ड कार्ड बेचे जाते हैं। वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक ने कहा कि यह कार्यक्रम अमीर निवेशकों को आकर्षित करेगा, जो अमेरिका में पूंजी निवेश करेंगे और नौकरी सृजन में मदद करेंगे। ट्रंप ने यह भी स्पष्ट किया कि इस कार्यक्रम को कांग्रस की मंजूरी की आवश्यकता नहीं होगी।

5. कनाडा और मेक्सिको पर 25% टैरिफ

ट्रंप ने घोषणा की कि 2 अप्रैल से कनाडा और मेक्सिको पर 25% टैरिफ लगाया जाएगा। हालांकि यह निर्णय पहले ही टैरिफ के लिए निर्धारित था, लेकिन सीमा सुरक्षा उपायों पर समझौते के बाद इसे कुछ समय के लिए स्थगित कर दिया गया। ट्रंप ने इसे फेंटेनाइल के प्रवाह को रोकने के लिए एक आवश्यक कदम बताया।

6. यूक्रेनी राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की का वाशिंगटन दौरा

ट्रंप ने पुष्टि की कि यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की 4 मार्च को वाशिंगटन में आएंगे और एक महत्वपूर्ण खनिज सौदे पर हस्ताक्षर करेंगे। हालांकि, ज़ेलेंस्की ने इस दौरे को लेकर मिश्रित प्रतिक्रिया दी और कहा कि यह सौदा एक बड़ी सफलता हो सकती है या चुपचाप पारित हो सकता है। ट्रंप ने यह स्पष्ट किया कि यूक्रेन को सुरक्षा गारंटी देने की बात पर वे सहमत नहीं हैं, और यूक्रेन की नाटो सदस्यता को भी खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि यूरोप को यह जिम्मेदारी उठानी होगी, न कि अमेरिका को।

 7. नाटो और यूक्रेन के बारे में ट्रंप की स्थिति

ट्रंप ने यूक्रेन के नाटो में शामिल होने के विचार को एक बार फिर खारिज किया और यह भी कहा कि यूक्रेन के युद्ध की शुरुआत के लिए जिम्मेदारी यूक्रेन पर ही है। ट्रंप ने यह तर्क दिया कि नाटो का विस्तार युद्ध के प्रारंभ का एक कारण हो सकता है। उन्होंने यूक्रेन को एक "अच्छा सौदा" देने की बात की, जिससे वे अपनी अधिकतम भूमि को वापस प्राप्त कर सकें। इसके अलावा, ट्रंप ने यह भी कहा कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को शांति वार्ता के लिए "रियायतें" देनी होंगी।

राष्ट्रपति ट्रंप की पहली कैबिनेट बैठक में कई महत्वपूर्ण फैसले किए गए, जो उनकी "अमेरिका फर्स्ट" नीति के अनुरूप हैं। एलन मस्क की सरकारी दक्षता में सक्रिय भूमिका, संघीय कर्मचारियों से कार्य रिपोर्ट की मांग, और "गोल्ड कार्ड" वीजा कार्यक्रम का प्रस्ताव उनके प्रशासन की कार्यशैली को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं। इसके अलावा, विदेश नीति में यूक्रेन और नाटो के मुद्दे पर ट्रंप की स्थिति उनके कठोर दृष्टिकोण को दर्शाती है। इन फैसलों के प्रभाव को आने वाले महीनों में देखा जा सकेगा।

बर्बाद हो चुके यूक्रेन से क्या चाहते हैं ट्रंप? मदद के बदले खनिज समझौते पर हस्ताक्षर का दबाव

#donald_trump_wants_rare_mineral_resources_for_ukraine

रूस जैसे शक्तिशाली देश से जंग कर यूक्रेन पहले ही बर्बाद हो चुका है। अब यूक्रेन के पास बची-खुची जो संपदा है, उस पर अमेरिका की नजर है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप यूक्रेन की मदद के बदले उसके दुर्लभ पृथ्वी तत्वों तक अपनी पहुंच की मांग की है। डोनाल्‍ड ट्रंप यूक्रेन पर जंग खत्‍म करने का लगातार दबाव बना रहे हैं। लेकिन, एकमात्र शांति ही वो वजह नहीं है। ट्रंप की नजर यूक्रेन के उस खजाने पर है, जिसे लेकर वे मालामाल होना चाहते हैं। यूक्रेन के एक मंत्री ने दावा क‍िया क‍ि राष्‍ट्रपत‍ि वोलोदि‍मीर जेलेंस्‍की और अमेर‍िकी राष्‍ट्रपत‍ि के बीच यूक्रेन के खनिज भंडारों को लेकर एक डील होने ही वाली है।

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शनिवार को कहा है कि अमेरिका ने रूस के खिलाफ युद्ध लड़ने के लिए यूक्रेन के समर्थन में जो मदद दी है, वो उसे लाने की कोशिश कर रहे हैं। ट्रंप प्रशासन की कोशिश, बाइडेन प्रशासन के दौरान यूक्रेन को दिए गये मदद को वापस लेना है।

डोनाल्ड ट्रंप ने वॉशिंगटन में कंजर्वेटिव पॉलिटिकल एक्शन कॉन्फ्रेंस में प्रतिनिधियों से कहा, कि "मैं पैसे वापस पाने या सुरक्षित करने की कोशिश कर रहा हूं।" उन्होंने कहा कि "मैं चाहता हूं कि वे हमारे द्वारा लगाए गए सभी पैसे के बदले हमें कुछ दें। हम दुर्लभ पृथ्वी और तेल मांग रहे हैं, जो कुछ भी हमें मिल सकता है। हमें अपना पैसा वापस मिलेगा। मुझे लगता है कि हम सौदे के बहुत करीब हैं, और हमें करीब होना चाहिए क्योंकि यह एक भयानक स्थिति रही है।"

वहीं, रूस-यूक्रेन संघर्ष आरंभ होने के तीन साल पूरे होने के अवसर पर रविवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में जेलेंस्की ने कहा, यदि आपकी शर्त यह है कि यदि मैं समझौते पर हस्ताक्षर नहीं करता तो आप मदद नहीं देंगे तो बात साफ है। जेलेंस्की ने कहा, यदि हम पर दबाव डाला जाता है और हम इसके बिना कुछ नहीं कर सकते तो शायद हम इस दिशा में आगे बढ़ें... हालांकि मैं सिर्फ राष्ट्रपति ट्रंप से बात करना चाहता हूं। ट्रंप प्रशासन ने रूस के हमले से बचाने और हमले का जवाब देने के लिए यूक्रेन को दी गई मदद के बदले अब यूक्रेन को अपनी दुर्लभ खनिज संपदा तक अमेरिका को पहुंच देने का दबाव बनाना आरंभ किया है। इसके लिए ट्रंप के वार्ताकार कीव में मौजूद हैं।

गौरतलब है कि जेलेंस्की ने पहले अमेरिका के शुरुआती ऑफर को पूरी तरह ठुकरा दिया था। उनका कहना था कि इससे यूक्रेन को रूस के खतरे से अपनी सुरक्षा करने की गारंटी नहीं मिलती। जेलेंस्की ने रविवार को कहा कि वह अमेरिका को यूक्रेन के दुर्लभ खनिजों से लाभान्वित होने देने के लिए तैयार हैं लेकिन ट्रंप प्रशासन की ओर से इस मद में ऑफर की जा रही 500 अरब डॉलर की सहायता राशि उन्हें मंजूर नहीं है। उन्होंने कहा, मैं ऐसे किसी समझौते पर हस्ताक्षर नहीं करूंगा जिसकी कीमत यूक्रेन की दस पीढ़ियों को चुकानी पड़े।

चीन-भारत का नाम लेकर फिर ट्रंप ने दी धमकी, जानें अब क्या कहा?

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डोनाल्ड ट्रंप जबसे अमेरिका के राष्ट्रपति बने हैं, पूरी दुनिया में हड़कंप मचा हुआ है। ट्रंप बार-बार कई देशों को टैरिफ बढ़ाने की धमकी दे चुके हैं। इन देशों में भारत और चीन का नाम भी शामिल है। एक बार फिर उन्होंने भारत-चीन का नाम लेकर टैरिफ की धमकी दी है। यही नहीं, इस बार तो उन्होंने इस बात की कसम भी खाई है। बता दें कि ट्रंप का ये बयान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बैठक में इस मुद्दे पर विस्तार से चर्चा की बात करने की बावजूद आया है।हाल ही में पीएम मोदी ने अमेरिका की दो दिवसीय यात्रा की थी। इस दौरान उन्होंने ट्रंप के साथ व्यापार, रक्षा समेत टैरिफ के मुद्दे पर बात की थी।

शुक्रवार को डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि अमेरिका भी वही शुल्क लगाएगा, जो ये देश अमेरिकी वस्तुओं पर लगाते हैं। हम जल्द ही रिसिप्रोकल टैरिफ का एलान करेंगे। ट्रंप ने कहा कि वे हम पर शुल्क लगाते हैं। हम उन पर शुल्क लगाएंगे। जो भी कंपनी या देश, जैसे भारत या चीन, हम पर शुल्क लगाते हैं। हम निष्पक्ष होना चाहते हैं। कोई भी कंपनी या देश जैसे कि भारत और चीन जो भी शुल्क लगाते हैं, वहीं हम भी लगाएंगे। ट्रंप ने आगे कहा कि हमने ऐसा कभी नहीं किया। कोविड महामारी से पहले हम ऐसा करना चाहते थे। ट्रंप ने यह टिप्पणी एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान की थी जब उनसे टेस्ला के सीईओ एलन मस्क की पीएम मोदी के साथ बैठक के बारे में पूछा गया था

पीएम मोदी और डोनाल्ड ट्रंप की मीटिंग को एक ही सप्ताह हुआ है। डोनाल्ड ट्रंप के साथ द्विपक्षीय बैठक में पीएम मोदी ने कहा था कि अमेरिका और भारत व्यापार समझौते पर काम करेंगे। उन्होंने टैरिफ में ढील देने के अलावा व्यापार में आ रहे गतिरोध के बीच रियायतों पर बातचीत की पेशकश भी की थी। इस पर डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि वे भारत से व्यापार घाटे को कम करने के लिए बातचीत पर सहमत हैं।

खास बात तो ये है कि ट्रंप पहले से ही भारत को टैरिफ किंग नाम से संबोधित करते हुए आ रहे हैं। ग्लोबल प्लेटफॉर्म्स पर ट्रंप ने भारत के टैरिफ की आलोचना की है। टैरिफ को लेकर उन्होंने अपने चुनावी कैंपेन में भी जिक्र किया है। ऐसे में अब वो अपनी उस बात को आगे बढ़ाते हुए दिखाई दे रहे हैं। साथ ही टैरिफ को लेकर किसी तरह की रियायत देने के मूड में नहीं है।

ट्रंप के वफादार काश पटेल एफबीआई निदेशक बने, सीनेट की मंजूरी मिलते ही दहाड़ा

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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय मूल के काश पटेल को फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन यानी एफबीआई का निदेशक नियुक्त किया है। डोनाल्ड ट्रंप के कट्टर समर्थक काश पटेल की एफबीआई चीफ के रूप में नियुक्ति को सीनेट ने हरी झंडी दिखा दी। सीनेट में हुए मतदान में उन्हें 51-49 के मामूली अंतर से बहुमत हासिल हुआ। डेमोक्रेट सांसदों ने काश पटेल की नियुक्ति का विरोध किया। उनकी योग्यता पर सवाल उठाए। उनका कहना था कि काश पटेल ट्रंप के इशारे पर काम करेंगे और रिपब्लिकन नेता के विरोधियों को निशाना बनाएंगे।

ट्रंप का जताया आभार

एफबीआई के निदेशक के रूप में पुष्टि किए जाने के बाद, राष्ट्रपति ट्रंप का आभार व्यक्त किया और एजेंसी को 'पारदर्शी, जवाबदेह और न्याय के लिए प्रतिबद्ध' बनाने की कसम खाई। सोशल मीडिया मंच एक्स पर एक पोस्ट साझा करते हुए, काश पटेल ने कहा, मैं संघीय जांच ब्यूरो के नौवें निदेशक के रूप में पुष्टि किए जाने पर सम्मानित महसूस हो रहा है। राष्ट्रपति ट्रंप और अटॉर्नी जनरल पाम बॉन्डी को आपके अटूट विश्वास और समर्थन के लिए धन्यवाद।

अमेरिका के खिलाफ काम करने वालों को चेतावनी

काश पटेल ने लिखा कि डायरेक्टर के रूप में मेरा मिशन साफ है, हम एक ऐसी एफबीआई का पुनर्निर्माण करेंगे जिस पर अमेरिकी लोगों को गर्व हो। और जो लोग अमेरिकियों को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं, वे इसे अपनी चेतावनी मानें। हम इस दुनिया के हर कोने में आपका पता लगा लेंगे।

काश पटेल की नियुक्ति के बाद तय है कि एफबीआई में बड़े बदलाव संभव हैं। काश पटेल पहले ही कह चुके हैं कि वह एफबीआई में बड़े बदलाव करेंगे। इनमें वाशिंगटन स्थित मुख्यालय में कर्मचारियों की संख्या में कमी और खुफिया जानकारी जुटाने और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे कामों के बजाय अपराध से निपटने जैसे एफबीआई के पारंपरिक कामों पर नए सिरे से जोर देना शामिल है। पिछले दो दशकों में एफबीआई की भूमिका को खुफिया जानकारी जुटाने और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे कामों से परिभाषित किया जाता रहा है।

मोदी को हराना चाहते थे बाइडेन, इसलिए कराई करोड़ों की फंडिंग”, डोनाल्ड ट्रंप का बड़ा आरोप

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अमेरिकी सरकारी दक्षता विभाग (डीओजीई) ने भारत में खर्च करने के लिए दिए गये 21 मिलियन डॉलर लगभग 182 करोड़ रुपए के एक फंड को खारिज कर दिया है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत में वोटिंग टर्नआउट बढ़ाने के लिए अमेरिकी फंडिंग रोकने के फैसले पर एक बार फिर प्रतिक्रिया दी है। ट्रंप ने बुधवार को बड़ा दावा करते हुए कहा कि पिछली बाइडन सरकार की ओर से किसी और को जिताने की कोशिश की जा रही थी। शायद वे (पूर्ववर्ती बाइडन सरकार) भारत में किसी और की सरकार बनवाना चाहते थे। इससे पहले ट्रंप ने भारत को दी जाने वाली अमेरिकी फंडिंग रोकने के फैसले का बचाव किया था। ट्रंप ने सवाल उठाया कि भारत को 21 मिलियन डॉलर क्यों दिए गए, जबकि भारत के पास पहले से ही बहुत पैसा है।

ट्रंप ने एफआईआई प्रायोरिटी समिट में कहा, हमें भारत में मतदाता टर्नआउट पर 21 मिलियन डॉलर खर्च करने की आवश्यकता क्यों है? मुझे लगता है कि वे किसी और को जिताने की कोशिश कर रहे थे। हमें भारतीय सरकार को बताना होगा। यह एक पूरी तरह से नया खुलासा है। हमें भारत सरकार को बताना होगा, क्योंकि जब हम सुनते हैं कि रूस ने हमारे देश में 2 डॉलर का खर्च किया है तो यह हमारे लिए बड़ा मुद्दा बन जाता है।

बुधवार को भी ट्रंप ने भारत में मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए अमेरिकी फंडिंग पर सवाल खड़े किए थे। उन्होंने कहा था कि 'हम भारत को 2.1 करोड़ डॉलर क्यों दे रहे थे? उनके पास पहले से ही काफी पैसा है। वे सबसे ज्यादा टैक्स लगाने वाले देश हैं। हम मुश्किल से उनके बाजार में अपना सामान भेज पा रहे हैं क्योंकि उनके टैरिफ बहुत ज्यादा हैं। मैं भारत और उनके प्रधानमंत्री का सम्मान करता हूं, लेकिन भारत के चुनाव में 2.1 करोड़ की फंडिंग देने का क्या मतलब है? यहां के मतदान प्रतिशत का क्या?'

हाल ही में एलन मस्क के नेतृत्व वाले डीओजीई विभाग ने विभिन्न देशों के लिए फंडिंग रोकने की घोषणा की थी, जिसमें भारत में मतदान को बढ़ावा देने के लिए 21 मिलियन अमेरिकी डॉलर की राशि भी शामिल थी। डीओजीई कहा था कि अमेरिका ने भारत में मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए बनाए गए 21 मिलियन डॉलर के कार्यक्रम में कटौती करने का फैसला किया है। डीओजीई अमेरिकी सरकार के खर्चे में कटौती कर रहा है। सरकारी दक्षता विभाग ने फिलहाल यूएसएआईडी द्वारा की जाने वाली अधिकतर फंडिंग पर रोक लगा दी है।डोनाल्ड ट्रंप सरकार ने संघीय सरकार की लागत में कटौती करने के उद्देश्य से सरकारी दक्षता विभाग का गठन किया था।

भारत बहुत अमीर है, हम 21 मिलियन डॉलर क्यों देंगे...जानें ट्रंप ने ऐसा क्यों कहा?

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हाल के सालों में भारत-अमेरिका संबंध ने एक नई ऊंचाई देखने को मिली है। हालांकि राष्ट्रपति के तौर पर डोनाल्ड ट्रंप की दोबारा वापसी के बाद भारत और अमेरिका का रिश्ता कैसा रहेगा ये सवाल उठने लगे हैं। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका दौरे पर गए थे, जहां राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उनका जोरदार स्वागत किया था। ट्रंप के दूसरी बार अमेरिका की कमान संभालने के बाद दोनों नेताओं की ये पहली मुलाकात थी। इसके तुरंत बाद अमेरिकी सरकारी दक्षता विभाग (डीओजीई) ने भारत में खर्च करने के लिए दिए गये 21 मिलियन डॉलर के एक फंड को खारिज कर दिया है। इस पर टंप का बड़ा बयान सामने आया है। उन्होंने भारत को दी जाने वाली अमेरिकी फंडिंग रोकने के फैसले का बचाव किया है। ट्रंप ने सवाल उठाया कि भारत को 21 मिलियन डॉलर क्यों दिए गए, जबकि भारत के पास पहले से ही बहुत पैसा है।

एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान ट्रंप ने फंड का जिक्र करते हुए कहा कि हम भारत को 108 अरब क्यों दे रहे हैं? उनके पास पहले से ही बहुत पैसा है। वे अमीर हैं वे दुनिया के सबसे अधिक कर लगाने वाले देशों में से एक हैं। हम वहां मुश्किल से प्रवेश कर पाते हैं क्योंकि उनके टैरिफ काफी अधिक हैं। मुझे भारत और उनके प्रधानमंत्री का बहुत सम्मान है लेकिन वहां के चुनाव में मतदाताओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए 1.8 अरब क्यों देना? ट्रंप ने इस फंडिंग को गैर-जरूरी बताते हुए कहा कि भारत जैसे देश को अमेरिका से इस तरह की वित्तीय सहायता की आवश्यकता नहीं है।

दरअसल हाल ही में एलन मस्क के नेतृत्व वाले डीओजीई विभाग ने विभिन्न देशों के लिए फंडिंग रोकने की घोषणा की थी, जिसमें भारत में मतदान को बढ़ावा देने के लिए 21 मिलियन अमेरिकी डॉलर की राशि भी शामिल थी। डीओजीई कहा था कि अमेरिका ने भारत में मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए बनाए गए 21 मिलियन डॉलर के कार्यक्रम में कटौती करने का फैसला किया है। डीओजीई अमेरिकी सरकार के खर्चे में कटौती कर रहा है।

मुंबई हमले के गुनहगार तहव्वुर राणा का होगा भारत प्रत्यर्पण, ट्रंप की मंजूरी के बाद अब तक होगी वापसी


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मुंबई में 2008 में हुए आतंकवादी हमले के मुख्य साजिशकर्ताओं में से एक तहव्वुर राणा को अमेरिका भारत को सौंपने जा रहा है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस बात की मंजूरी दे दी है। उन्होंने कहा कि तहव्वुर राणा को भारत में न्याय का सामना करना होगा। ट्रंप ने ये ऐलान व्हाइट हाउस में पीएम मोदी के साथ एक जॉइंट प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान किया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिनों के अमेरिका के दौरे पर थे। पीएम मोदी के वॉशिंगटन पहुंचने पर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ उनकी गर्मजोशी से मुलाकात हुई। मुलाकात के दौरान दोनों देशों के शीर्ष नेताओं के बीच कई अहम विषयों पर समझौते हुए। इस दौरान ट्रंप ने ऐलान किया कि मुंबई हमले के गुनहगार तहव्वुर राणा को भारत प्रत्यर्पण किया जाएगा।

पीएम मोदी और राष्‍ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच हुई द्विपक्षीय वार्ता के बाद साझा प्रेस कॉन्‍फ्रेंस के दौरान ट्रंप ने कहा, मुझे यह घोषणा करते हुए खुशी हो रही है कि हमारे प्रशासन ने 2008 के मुंबई आतंकवादी हमले के दोषी तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण को मंजूरी दे दी है। उसे भारत जाकर न्याय का सामना करना होगा।

ट्रंप के ऐलान के बाद आतंकी तहव्वुर राणा के अब बुरे दिन शुरू हो गए हैं। सरकारी सूत्रों का कहना है कि उन्हें कुछ हफ्तों में भारत लाया जा सकता है। इसके लिए एजेंसियां तैयारी में जुट गई हैं। सरकारी सूत्रों के अनुसार, कानूनी दस्तावेज और वारंट जारी कर अमेरिकी अधिकारियों के साथ साझा किए गए हैं।

सूत्रों ने कहा, अब जब एक राजनीतिक निर्णय लिया गया है, तो दोनों पक्ष तारीख और समय तय करेंगे। विदेश मंत्रालय अपने अमेरिकी समकक्ष के साथ तारीख तय करने के लिए संपर्क में है। विदेश मंत्रालय की मंजूरी मिलते ही एआईए अधिकारियों की एक टीम अमेरिका जाने की संभावना है।

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का 26/11 मुंबई हमले के दोषी तहव्वुर राणा के भारत प्रत्यर्पण को मंजूरी देना दोनों के बीच सुरक्षा सहयोग को और मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। तहव्वुर राणा पर 2008 के मुंबई हमले में साजिश रचने का आरोप है। उस पर आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा को समर्थन देने का भी आरोप हैं।