आइए जानते हैं कैसे उमर की किस्मत का सितारा चमका और अब कितनी बड़ी चुनौती उनके सामने है?
डेस्क:– नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के नए मुख्यमंत्री होंगे। लोकसभा चुनाव में हार के बाद उन्होंने राज्य की दो विधानसभा सीटों से चुनाव लड़ा और जीता भी। न तो उमर की जीत आसान रही है और न ही अब राज्य में मिलने वाली नई चुनौतियों से निपटना आसान होगा।
‘शांति बनाए रखिए, मैं फिर लौटूंगा’, यह वो लाइन है जो उमर अब्दुल्ला ने 10 साल पहले सोशल मीडिया X पर पोस्ट की थी। पोस्ट वायरल भी हो रही है और उनकी दमदार वापसी को बता रही है। वही उमर अब्दुल्ला जो अब जम्मू-कश्मीर में रिकॉर्ड बनाने जा रहे हैं। राज्य में अनुच्छेद 370 हटने के बाद वह पहले मुख्यमंत्री होंगे।विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं। जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस गठबंधन की सरकार बनने जा रही है। नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला ने भी साफ कर दिया है कि उमर अब्दुल्ला ही जम्मू कश्मीर के अगले मुख्यमंत्री होंगे।
लोकसभा चुनाव में हार के बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने गांदरबल और बडगाम सीट पर चुनाव लड़ा और जीता भी। गांदरबल विधानसभा सीट पर पीडीपी के बशीर अहमद मीर को 10574 वोटों को मात दी। गंदेरबल अब्दुल्ला परिवार का गढ़ है.जीत के बाद उमर अब्दुल्ला ने कहा है, पिछले 5 सालों में नेशनल कॉन्फ्रेंस को खत्म करने की कोशिश की गई, लेकिन जो हमें खत्म करने आए थे मैदान में उनका कोई नामोनिशान नहीं रहा।
*अब्दुल्ला परिवार की तीसरी पीढ़ी*
उमर के बयान से साफ है कि अब्दुल्ला परिवार की तीसरी पीढ़ी इतिहास रचने जा रही है. परिवार के राजनीतिक इतिहास की शुरुआत 70 के दशक में हुई । साल 1977 में पार्टी ने 47 सीटें हासिल करके दादा शेख अब्दुल्ला ने राज्य की कमान संभाली। 1982 में उनके निधन के बाद उनके बेटे और उमर के पिता फारूक अब्दुल्ला मुख्यमंत्री बने और लम्बी राजनीतिक पारी खेली। अब उमर अब्दुल्ला के हाथों में राज्य की कमान होगी। चुनावी हलफनामे के मुताबिक उमर के पास कुल 54.45 लाख रुपए की संपत्ति है. उनके पास मात्र 95,000 रुपए की नकद धनराशि है।
*प्रचंड बहुमत के साथ राजनीति में आगाज*
उमर की शुरुआती पढ़ाई श्रीनगर के बर्न हॉल स्कूल से हुई। इसके बाद हिमाचल प्रदेश के लॉरेंस स्कूल पहुंचे। हायर एजुकेशन के लिए मुंबई के सिडेनहैम कॉलेज गए और कॉमर्स में ग्रेजुएशन किया। उमर के राजनीतिक करियर का आगाज साल 1996 में हुआ, जब नेशनल कॉन्फ्रेंस राज्य में प्रचंड बहुमत के साथ लौटी। उन्होंने कहा था, पार्टी की जीत के बाद मैंने राजनीति को गंभीरता से लेना शुरू कर दिया. राजनीति में कदम रखने के 2 साल बाद ही दिल्ली का रास्ता का तय किया।
1998 में उन्हें पिता फारूक अब्दुल्ला ने लोकसभा का चुनाव लड़वाया। उमर ने चुनाव लड़ा भी और जीता भी. इस जीत के साथ 2001 में सबसे कम उम्र के विदेश मंत्री होने का रिकॉर्ड भी बनाया। हालांकि, उन्होंने मात्र 17 महीने बाद दिसम्बर 2002 में पद से इस्तीफा दे दिया।
इसी के साथ उन्हें बड़ी जिम्मेदारी मिली. साल 2002 में उन्हें नेशनल कॉन्फ्रेंस का अध्यक्ष बनाया गया। इसी साल विधानसभा चुनाव हुए और वो गांदरबल विधानसभा सीट से मैदान में उतरे। परिणाम निराशानजक रहे. उमर करीब 2 हजार वोटों से हार गए। बेटे की हार के बाद पिता फारूक ने हार की जिम्मेदारी ली। इस हार की कई वजह बताई गईं। आलोचकों ने यह भी कहा कि उमर अब्दुल्ला विदेश से पढ़ाई करके आए हैं और राज्य के लोग उन्हें बाहरी मानते हैं।
*राजनीति से दूरी बनाते-बनाते आखिर आ ही गए चुनावी अखाड़े में*
उमर राजनीति में नहीं आना चाहते थे. यह बात वो अपने इंटरव्यू में पहले ही कह चुके थे। पिता फारूक अब्दुल्ला ने भी इस पर मुहर लगाते हुए एक इंटरव्यू में कहा था कि वो बेटे को कभी भी राजनीति के अखाड़े में नहीं लाना चाहते थे। उन्होंने कहा, जब मैं राजनीति में आना चाहता था तो मेरे पिता ने भी इससे दूर रहने की सलाह दी थी। उनका कहना था कि अगर तुम इस नदी में कूदे तो कभी बाहर नहीं निकल पाओगे। मेरी पत्नी भी उमर के राजनीति में आने का विरोध करती रही है। एक बार जब मैंने उनसे उमर के राजनीति में आने की बात कही तो उनका कहना था ऐसा मेरी मौत के बाद भी संभव हो पाएगा।
2008 के जम्मू-कश्मीर विधान सभा चुनावों में नेशनल कॉन्फ्रेंस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. 2009 में उमर अब्दुल्ला को जम्मू-कश्मीर का मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया। मुख्यमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल बुनियादी ढांचे, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा में सुधार के लिए जाना गया।
2015 में मुख्यमंत्री के रूप में अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर की राजनीति में राज्य की आवाज बुलंद करते रहे। उन्होंने लगातार जम्मू-कश्मीर की अनुच्छेद 370 की बहाली की वकालत की, जिसे अगस्त 2019 में रद्द कर दिया गया था।
*कैसे चमका सितारा?*
राज्य में पीडीपी के कमजोर होने का फायदा उमर अब्दुला की पार्टी और गठबंधन को मिला. वहीं, इंजीनियर रशीद बड़ा फैक्टर नहीं साबित हुए. विश्लेषकों का कहना है कि लोकसभा में उनकी जीत की वजह तात्कालिक माहौल था । रशीद की अगुआई वाली पार्टी अवामी इत्तेहाद पार्टी और जमात-ए-इस्लामी के उम्मीदवार चुनाव में कोई खास असर नहीं दिखा सके. अवामी इत्तेहाद पार्टी (एआईपी) ने चुनाव 44 उम्मीदवार मैदान उतारे. उनके भाई और प्रवक्ता फिरदौस बाबा समेत कई प्रमुख कैंडिडेट असफल रहे। कई की तो जमानत भी जब्त हो गई. अफजल गुरु के भाई एजाज अहमद गुरु को सोपोर विधानसभा सीट पर हार का सामना करना पड़ा। वहीं, भाजपा की गुज्जर वोटर साधने के लिए बनाई गई रणनीति काम नहीं आई. इसका फायदा उमर की पार्टी और गठबंधन को मिला।
*अब सबसे बड़ी चुनौती*
मुख्यमंत्री बनने के बाद उमर अब्दुल्ला की राह आसान कतई नहीं होगी. जब तक जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश बना रहेगा, उमर को केंद्रीय गृह मंत्रालय और उपराज्यपाल (LG ) से निपटना होगा. विधानसभा चुनावों से पहले उमर ने कहा था, जब तक जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल नहीं हो जाता, वह चुनाव नहीं लड़ेंगे.
उमर ने इंडियन एक्सप्रेस को दिए साक्षात्कार में कहा था, “मैं LG के प्रतीक्षा कक्ष के बाहर बैठकर उनसे यह नहीं कहने वाला हूं कि, ‘सर, कृपया फाइल पर दस्तखत कर दीजिए’
लव स्टोरी… होटल में मुलाकात से पत्नी से अलगाव तक
उमर अब्दुल्ला और उनकी पत्नी पायल नाथ से तलाक की खबरें कई बार सुर्खियां बन चुकी हैं. दोनों की लव स्टोरी की शुरुआत तब हुई जब दोनों दिल्ली के ओबेराय होटल में काम किया करते थे। पायल नाथ सिख फैमिली से थीं और उनके पिता मेजर रामनाथ सेना से रिटायर्ड रहे हैं. दोनों ने 1994 में लव मैरिज की. जोड़ी चर्चा में रहती थी क्योंकि ऐसा बहुत कम ही होता था कि उमर किसी कार्यक्रम में बिना पत्नी के पहुंचें।
दोनों ही शादी हुई और कश्मीर की राजनीति में व्यस्तता बढ़ने के कारण उमर का दिल्ली आना बहुत कम हो पाता था। शादी के बाद पायल बहुत कम समय तक कश्मीर में रहीं। धीरे-धीरे दोनों के बीच तल्खियां बढ़ने लगीं और 2011 में दोनों अलग हो गए. दोनों के दो बेटे हैं जाहिर और जमीर। दोनों पायल के साथ दिल्ली में रहते हैं।
Oct 10 2024, 07:35