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*ट्रूडो के इस्तीफे के साथ ही बदल गया कनाडा? निज्जर मर्डर केस के चारों आरोपियों को जमानत

#canadahardeepsinghnijjaraccused_bail

भारत और कनाडा के रिश्तों के बीच खटास की सबसे बड़ी वजह रही खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या का मामला। हरदीप सिंह निज्जर हत्याकांड को लेकर कनाडा के प्रधानमंत्री ने भारत पर गंभीर आरोप लगाए थे। जिसके बाद दोनों देशों के संबंध सबसे खराब स्तर पर पहुंच गए। इस बीच इस मामले में एक नया मोड आया है। निजजर की हत्या मामले में कनाडा में गिरफ्तार किए गए सभी चार भारतीयों को कनाडा की कोर्ट ने जमानत दे दी है। इनके नाम करण बराड़, अमनदीप सिंह, कमलप्रीत सिंह और करणप्रीत सिंह हैं। इनपर प्रथम डिग्री हत्या और हत्या की साजिश रचने का आरोप लगाया गया था। ये सब तब हुआ है जब ट्रूडो को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा है।

खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के आरोपी बनाए गए चार भारतीय नागरिकों को कनाडा के सुप्रीम कोर्ट ने जमानत पर रिहा कर दिया है। कनाडाई सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कनाडाई पुलिस को पर्याप्त सबूत पेश नहीं कर पाने के चलते फटकार भी लगाई है। अब इस मामले की सुनवाई 11 फरवरी को निचली अदालत में होगी, जहां नवंबर, 2024 में पुलिस ने इन चारों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी।

पुलिस अदालत में पेश नहीं हुई

दरअसल, इस केस में कनाडा पुलिस की भूमिका सवालों के घेरे में आ गई है. निचली अदालत में सबूत पेश करने में असफल रहने के कारण पुलिस अदालत में पेश नहीं हुई. सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस की इस निष्क्रियता को देखते हुए चारों आरोपियों को जमानत पर रिहा कर दिया।

कौन हैं चारों आरोपी?

कनाडा ने निज्जर मर्डर केस में साल 2024 में मई के महीने में चार भारतीयों को अरेस्ट किया गया था। आईएचआईटी ने 3 मई को हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के लिए तीन भारतीय नागरिक, करण बराड़ (22), कमलप्रीत सिंह (22) और करणप्रीत सिंह (28) को गिरफ्तार किया था। तीनों व्यक्ति एडमोंटन में रहने वाले भारतीय नागरिक थे और उन पर फर्स्ट डिग्री की हत्या और हत्या की साजिश रचने का आरोप लगाया गया था।

इसी के बाद आरोपी अमरदीप सिंह (22) को भी इस केस में अरेस्ट किया गया था। अमरदीप सिंह पर फर्स्ट-डिग्री हत्या और हत्या की साजिश रचने का आरोप लगाया गया था। रॉयल कैनेडियन माउंटेड पुलिस (आरसीएमपी) की इंटीग्रेटेड होमिसाइड इन्वेस्टिगेशन टीम (आईएचआईटी) ने कहा था कि अमरदीप सिंह को निज्जर की हत्या में उनके रोल के लिए 11 मई को गिरफ्तार किया गया था।

क्या था हरदीप सिंह निज्जर मर्डर केस?

खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की 18 जून साल 2023 में कनाडा के सरे में एक गुरुद्वारे के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। वह भारत में वांटेड घोषित था। निज्जर साल 1997 में कनाडा भाग गया था और उसके खिलाफ भारत में दर्जन भर से ज्यादा कत्ल और आतंकी गतिविधियों में शामिल होने को लेकर केस दर्ज हैं। इसके बावजूद कनाडा की सरकार ने निज्जर के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया था। साल 2023 में निज्जर की हुई हत्या के बाद भारत और कनाडा के बीच एक नया विवाद पैदा हुआ।

क्या भारत से संबंध सुधारने की कवायद शुरू?

बता दें कि कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने अपनी संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारत सरकार पर निज्जर की हत्या का आरोप लगाकर तहलका मचा दिया था। सिख वोटों को अपने पक्ष में जुटाने के लिए ट्रूडो इस आरोप पर अड़े रहे, लेकिन कोई सबूत पेश नहीं कर सके। इसके चलते भारत-कनाडा के संबंध लगातार खराब होते चले गए। हालांकि ट्रूडो को इससे कोई लाभ नहीं हुआ है और उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा है। उनके इस्तीफा देते ही चारों भारतीय आरोपियों को जमानत पर रिहा करने का फैसला आ गया है। इससे यह चर्चा शुरू हो गई है कि क्या ट्रूडो के बाद कनाडा में भारत से संबंध सुधारने की कवायद शुरू हो गई है।

क्या कनाडा को लेकर ही रहेंगे ट्रंप? अब नक्शा शेयर कर बताया अमेरिकी राज्य

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अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप बार-बार कनाडा को अमेरिका में शामिल करने की इच्छा जाहिर कर रहे हैं। लगता है ट्रंप कनाडा को अमेरिका में मिलाकर ही दम लेगें। दरअसल, कनाडा को संयुक्त राज्य अमेरिका में मिलाने के लिए 'आर्थिक ताकत' के इस्तेमाल की धमकी देने के कुछ घंटों बाद, नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिकी ध्वज से चित्रित दोनों देशों को एक दिखाने वाला मैप भी शेयर कर दिया है। ट्रंप ने इस नए नक्शे में कनाडा को अमेरिका के 51वें राज्य के रूप में दिखाया है।

डोनाल्ड ट्रंप ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रूथ पर पहले एक मैप शेयर किया। इसमें उन्होंने कनाडा को अमेरिका का हिस्सा दिखाया है। उन्होंने अमेरिका के इस मैप को पोस्ट करते हुए लिखा, ‘ओह कनाडा!’। इसके बाद उन्होंने एक और मैप शेयर किया। इस पर लिखा है- यूनाइटेड स्टेट। दरअसल, डोनाल्ड ट्रंप कनाडा को बार-बार ’51वां राज्य’ कह चुके हैं। उन्होंने मंगलवार को कहा कि वह कनाडा को हासिल करने के लिए ‘सैन्य ताकत’ का नहीं, बल्कि ‘आर्थिक ताकत’ का इस्तेमाल करेंगे।

ट्रंप के मैप जारी करने बाद ट्रूडो भी आक्रमक हो गए हैं और उन्होंने भी इसका जवाब कड़े शब्दों में दिया है। ट्रूडो ने कहा कि इसकी दूर-दूर तक कोई संभावना नहीं। ट्रूडो ने एक्स पर लिखा, बर्फ में भी आग लगने की संभावना अधिक है बजाय इसके कि कनाडा कभी अमेरिका का हिस्सा बनेगा। हमारे दोनों देशों के कर्मचारियों और समुदायों को एक-दूसरे के सबसे बड़े व्यापारिक और सुरक्षा भागीदार होने का लाभ मिलता है। इस तरह उन्होंने साफ कर दिया कि दोनों देशों के विलय की कोई संभावना नहीं है।

बता दें कि नवंबर में राष्ट्रपति चुनाव में जीत के बाद से ट्रंप ने बार-बार अमेरिका-कनाडा के विलय का विचार पेश किया है। पूर्व में डोनाल्ड ट्रंप ने कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो को यह ऑफर दिया था कि वह कनाडा को अमेरिका के 51वें राज्य के रूप में विलय कर दें। इससे कनाडा की अर्थव्यवस्था कई गुना तेज रफ्तार से बढ़ेगी। ट्रंप ने इसके साथ ही ट्रूडो को कनाडा राज्य का गवर्नर बनाने का भी ऑफर दिया था। मगर ट्रूडो ने इस पर हामी नहीं भरी थी। ऐसा नहीं करने पर ट्रंप कई बार कनाडा पर भारी-भरकम टैरिफ लगाने की धमकी भी दे चुके हैं। तब से अमेरिका और कनाडा के बीच तनाव चल रहा है। इन विवादों के बीच डोनाल्ड ट्रम्प ने नया अमेरिकी मानचित्र साझा करके फिर से बवाल मचा दिया है।

ट्रूडो के इस्तीफे के बाद कौन होगा अगला पीएम? दौड़ में भारतवंशी अनीता आनंद

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जस्टिन ट्रूडो राजनीतिक अंदरूनी कलह और अनिश्चित आर्थिक संभावनाओं के बीच नाराज मतदाताओं के सामने झुक गए। कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रूडो ने सोमवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया। वो करीब एक दशक से इस पद पर बने हुए थे। इस फैसले के बाद पूरी दुनिया के सियासी हलकों में इसकी खूब चर्चा हो रही है। अब उनके बाद कनाडा का अगला पीएम कौन होगा, इसे लेकर जमकर अटकलबाजियां हो रही है। पीएम पद की रेस में कनाडा मूल के नेताओं के साथ ही भारतीय मूल की कनाडाई राजनेता अनीता आनंद का नाम भी शामिल है।

कनाडा में पीएम पद की रेस में भारतवंशी सांसद अनीता आनंद का भी चर्चा में है। अनीता आनंद ट्रूडो मंत्रिमंडल में शामिल हैं। वह कनाडा की रक्षा मंत्री रह चुकी हैं। साथ ही मौजूदा समय में परिवहन और आंतरिक व्यापार मंत्री हैं। अनीता के अलावा इस रेस में पियरे पोलीवरे, क्रिस्टिया फ्रीलैंड, और मार्क कार्नी जैसे बड़े नेता भी शामिल हैं।

अनीता इंदिरा आनंद का जन्म केंटविले, नोवा स्कोटिया में हुआ था। उनके माता-पिता (दोनों का देहांत हो चुका है) इंडियन फिजिशियन थे। उनके पिता तमिलनाडु से और उनकी मां पंजाब से थीं। आनंद की दो बहनें हैं – गीता आनंद, टोरंटो में एक वकील हैं, और सोनिया आनंद, मैकमास्टर यूनिवर्सिटी में एक फिजिशियन और रिसर्चर हैं। आनंद 1985 में ओंटारियो चली गईं। उन्होंने और उनके पति जॉन ने अपने चार बच्चों का पालन-पोषण ओकविले में किया। आनंद ने अपने करियर के दौरान अब तक कई पदों पर काम किया है। 

अनीता आनंद पहली बार 2019 में ओकविले के लिए संसद सदस्य के रूप में चुनी गई थीं। उन्होंने 2019 से 2021 तक सार्वजनिक सेवा और खरीद मंत्री के रूप में कार्य किया और ट्रेजरी बोर्ड के अध्यक्ष और राष्ट्रीय रक्षा मंत्री के रूप में भी काम किया।

राजनीति के अलावा अनीता आनंद की पहचान एक विद्वान, वकील और रिसर्चर की रही है। वह टोरंटो यूनिवर्सिटी में कानून की प्रोफेसर रही हैं जहां उन्होंने इनवेस्ट प्रोटक्शन और कॉर्पोरेट गर्वनेंस में जेआर किंबर चेयर का पद संभाला था। आनंद ने एसोसिएट डीन के रूप में कार्य किया है और मैसी कॉलेज के गवर्निंग बोर्ड की सदस्य भी रही हैं। वह कैपिटल मार्केट्स इंस्टीट्यूट, रोटमैन स्कूल ऑफ मैनेजमेंट में नीति और अनुसंधान की निदेशक रही हैं। उन्होंने येल लॉ स्कूल, क्वीन्स यूनिवर्सिटी और वेस्टर्न यूनिवर्सिटी में भी कानून पढ़ाया है। अनीता आनंद ने क्वीन्स यूनिवर्सिटी से राजनीतिक अध्ययन में बैचलर ऑफ आर्ट्स (ऑनर्स), ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से न्यायशास्त्र में बैचलर ऑफ आर्ट्स (ऑनर्स), डलहौजी यूनिवर्सिटी से बैचलर ऑफ लॉ और टोरंटो यूनिवर्सिटी से मास्टर ऑफ लॉ की डिग्री हासिल की है।

क्या तब भारत-कनाडा के संबंध सुधरेंगे?

अनीता आनंद अपने शानदार लीडरशिप, विकास के कार्य और जनसेवा के लिए खूब चर्चित रही हैं। माना जा रहा है कि यदि अनीता आनंद कनाडाई पीएम के पद पर आसीन होती हैं तो भारत और कनाडा के रिश्तों में मधुरता आएगी। जस्टिन रूडो के दौर में भारत और कनाडा के बीच के रिश्तों में खटास देखा गया था। इस दौर में दोनों देशों के बीच का संबंध अपने निचले स्तर पर जा पहुंचा था। निज्जर मामले के बाद ट्रूडो सरकार की तरफ से जमकर भारत विरोधी बयानबाज़ियां हुई थीं। भारत की सरकार की तरफ़ से ट्रूडो प्रशासन पर खलिस्तानी आतंकियों और समर्थकों को शरण देने के आरोप लगाए गए थे।

भारत से पंगा लेने वाले जस्टिन ट्रूडो की जाने ही वाली है कुर्सी, दे सकते हैं इस्तीफा
#rest_of_world_justin_trudeau_likely_to_resign_as_canada_pm
* कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो पिछले काफी समय से पार्टी अंदर पनपे असंतोष का सामना कर रहे हैं। अब खबर आ रही है कि जस्टिन ट्रूडो सोमवार को लिबरल पार्टी के नेता पद से इस्तीफा दे सकते हैं। कनाडा के समाचारपत्र द ग्लोब एंड मेल ने रविवार को अपनी रिपोर्ट्स में ऐसा दावा किया है। द ग्लोब एंड मेल ने रविवार को सूत्रों के हवाले से ये जानकारी दी है। ऐसा तब हो रहा है जब 53 साल के ट्रूडो कथित तौर पर अपनी पार्टी के भीतर समर्थन खो रहे हैं और कई सर्वों से संकेत मिल रहा है कि अगर आज चुनाव हुए तो पियरे पोलिएवर के नेतृत्व वाली कंजर्वेटिव पार्टी उन्हें और लिबरल पार्टी को सत्ता से बाहर कर देगी। *अगले एक या दो दिनों में छोड़ सकते हैं पद* रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिन ट्रूडो अगले एक या दो दिनों के भीतर पद छोड़ सकते हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अभी ये तय नहीं है कि ट्रूडो कब इस्तीफा देंगे, लेकिन माना जा रहा है कि बुधवार को होने वाली राष्ट्रीय कॉकस बैठक से पहले ट्रूडो अपना पद छोड़ सकते हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, जस्टिस ट्रूडो को सत्ताधारी लिबरल पार्टी के नेता के पद से भी हटाने पर विचार किया जा रहा है। *क्यों इस्तीफा देंगे ट्रूडो?* जनमत सर्वेक्षणों के मुताबिक, इस समय वह अपने मुख्य प्रतिद्वंदी कंजर्वेटिव पार्टी के पियरे पॉइलीवर से 20 पॉइंट पीछे चल रहे हैं। यही वजह है कि लिबरल सदस्यों की ओर से उन पर इस्तीफा देने का प्रेशर है। उनके विरोध में खुलकर सांसद आ चुके हैं। उन्हें हटाने के लिए तो सिग्नेचर कैंपेन भी चल चुका है। बंद कमरे में उन पर सवालों की बौछार भी हो चुकी है। अब क्योंकि लिबरल पार्टी को लगने लगा है कि ट्रूडो के नेतृत्व में कनाडा में उनकी हार निश्चित है। इसलिए अब ट्रूडो की पीएम वाली कुर्सी जाने का खतरा पूी तरह मंडरा गया है। *ट्रूडो से नाराज हैं कनाडा के लोग* कनाडा में जस्टिन ट्रूडो की सरकार की लोकप्रियता में गिरावट की कई वजह हैं। इनमें प्रमुख वजहों में अर्थव्यवस्था, कनाडा में घरों की कीमतों में जबरदस्त उछाल, अप्रवासी मुद्दा आदि शामिल हैं। कोरोना महामारी के बाद कनाडा में महंगाई 8 फीसदी तक बढ़ गई थी। हालांकि फिलहाल यह दो प्रतिशत से नीचे है। कनाडा में बेरोजगारी भी बड़ा मुद्दा है, जो फिलहाल छह फीसदी के आसपास है। ट्रूडो सरकार के कार्बन टैक्स कार्यक्रम की भी विपक्ष द्वारा आलोचना की जा रही है। कनाडा में महंगे घर एक बड़ी समस्या है। कनाडा के अधिकतर बड़े शहरों में घर खरीदना आम लोगों के बजट के बाहर हो गया है। लंबे समय से यह समस्या बनी हुई है और सरकार इसे नियंत्रित कर पाने में नाकाम रही है। ये भी एक बड़ी वजह है कि लोगों में ट्रूडो सरकार के प्रति गहरी नाराजगी है। कनाडा में अप्रवासन भी बड़ा मुद्दा है। हालांकि ट्रूडो सरकार ने हाल के समय में अप्रवासन को लेकर नई नीतियां बनाई हैं, जिससे अप्रवासियों की संख्या को नियंत्रित किया जा सके। हालांकि अभी भी लोगों की नाराजगी कम नहीं हुई है। अप्रवासियों की बढ़ती संख्या की वजह से कनाडा की स्वास्थ्य व्यवस्था और अन्य सेवाओं पर भारी दबाव पड़ा है। कनाडा में खालिस्तानियों के बढ़ते प्रभाव को लेकर भी कई कनाडाई नागरिक नाराज हैं। हाल ही में कनाडा की डिप्टी पीएम और वित्त मंत्री ने भी इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद ट्रूडो पर भी इस्तीफा देने का दबाव बढ़ा है।
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बुरे फंसे भारत विरोधी जस्टिन ट्रूडो, अमेरिका के बाद अब चीन ने सिखाया सबक
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भारत के साथ अपने संबंधों को बिगाड़ने वाले जस्टिन ट्रूडो की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही है। जस्टिन ट्रूडो इस वक्त घरेलू मोर्चे पर संघर्ष कर रहे हैं और कूटनीतिक स्तर पर भी चारों ओर से चुनौतियों से घिर गए हैं। इस बार मामला चीन से जुड़ा हुआ है। अमेरिका के बाद अब चीन ने कनाडा के खिलाफ बड़ा एक्शन लिया है। चीन उइगर मुस्लिम और तिब्बत से संबंधित मानवाधिकार के मुद्दों में शामिल कनाडा के 2 संस्थानों के करीब 20 लोगों पर बैन लगाने जा रहा है। अमेरिका के राष्ट्रपति निर्वाचित डोनाल्ड ट्रंप के टैक्स बम के बाद अब चीन की ये घोषणा कनाडा के लिए बड़ी परेशानी पैदा करने वाली है।

चीन ने रविवार को कहा है कि वह उइगरों और तिब्बत से संबंधित मानवाधिकार के मुद्दों में शामिल दो कनाडाई संस्थानों सहित 20 लोगों के खिलाफ प्रतिबंध की कार्रवाई करने जा रहा है। चीन के विदेश मंत्रालय ने अपनी वेबसाइट पर घोषणा की कि शनिवार को प्रभावी हुए इन उपायों में संपत्ति जब्त करना और प्रवेश पर प्रतिबंध लगाना शामिल है और इनके निशाने पर कनाडा का उइगर अधिकार वकालत परियोजना और कनाडा-तिब्बत समिति शामिल है। चीन ने कहा कि वह इन दोनों संस्थानों की चल संपत्ति, अचल संपत्ति और चीन के क्षेत्र में अन्य प्रकार की संपत्ति को फ्रीज कर रहा है।

दरअसल, कनाडा के मानवाधिकार संगठनों ने चीन के शिनजियांग प्रांत में उइगर मुसलमानों के उत्पीड़न का मुद्दा उठाया था। मानवाधिकार संगठनों का दावा है कि चीन में उइगर मुसलमानों का शोषण हो रहा है और सरकारी तंत्र उन्हें लगातार प्रताड़ित कर रहा है। इसके बाद चीन ने बड़ा एक्शन लिया है। कनाडा के 20 लोगों को चीन ने बैन कर दिया है। ये सभी लोग अलग-अलग मानवाधिकार संगठनों से जुड़े थे। इन सभी लोगों के चीन में प्रवेश के साथ ही हांगकांग और मकाऊ क्षेत्र में प्रवेश पर भी बैन लगा दिया गया है।

इस प्रतिबंध के तहत, उइगर संस्थान से जुड़े 15 और तिब्बत समिति के पांच सदस्यों की चीन में संपत्तियों को फ्रीज किया गया है। इसके अलावा, इन व्यक्तियों के हांगकांग और मकाऊ सहित पूरे चीन में प्रवेश पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है।

कनाडा के मानवाधिकार समूहों ने चीन पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि चीन ने शिनजियांग प्रांत में उइगर मुस्लिम समुदाय के खिलाफ बड़े पैमाने पर शोषण किया है। लगभग एक करोड़ उइगर मुसलमानों को कथित रूप से नजरबंदी शिविरों में रखा गया है, जहां उनसे जबरन मजदूरी करवाया जाता है। हालांकि, चीन ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि ये शिविर पुनर्वास और शिक्षा के लिए हैं। चीन ने 1950 में तिब्बत पर नियंत्रण किया था और इसे "शांतिपूर्ण मुक्ति" कहा था। लेकिन अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों और निर्वासित तिब्बती समुदायों ने इसे दमनकारी शासन करार दिया है और समय-समय पर इसकी निंदा की है।

बता दें कि कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो इन दिनों आंतरिक और बाहरी संकटों का सामना कर रहे हैं। उनके कार्यकाल में कनाडा के अमेरिका, भारत और चीन जैसे प्रमुख देशों के साथ संबंध खराब हुए हैं। ये तीनों देश वैश्विक स्तर पर अत्यधिक महत्वपूर्ण माने जाते हैं। इसके अलावा, कनाडा में उनकी लोकप्रियता तेजी से घट रही है। उनके पूर्व सहयोगी और एनडीपी नेता जगमीत सिंह ने अविश्वास प्रस्ताव लाने की घोषणा की है, जिससे ट्रूडो की सरकार पर दबाव और बढ़ गया है।
अब जस्टिन ट्रूडो के खिलाफ खड़ी हुई कनाडा की पुलिस, बदहाल कानून व्यवस्था देने का आरोप, इस्तीफे की मांग

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कनाडा में वहां की ट्रूडो सरकार के लिए सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। पीएम ट्रूडो के लिए हालात किस कदर जटिल बने हुए हैं इसका अंदाजा आप इस बात से भी लगा सकते हैं कि उन्हें बीते कुछ समय से अपनी सरकार के भीतर भी तीखी आलोचनाएं झेलनी पड़ रही हैं। साथ ही साथ ट्रूडो जिन आतंकी ताकतों को सहारा दे रहे थे,उससे कनाडा के लोग नाराज हैं। उस पर से अमेरिका के होने वाले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को ट्रुडो फूटी आंख नहीं सुहाते। भारत का विरोध और खालिस्तान का समर्थन करने वाले कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो के लिए जनता का समर्थन हासिल करना मुश्किल होता जा रहा है। उनके खिलाफ कनाडा में उसी बगावत की सबसे बड़ी झलक उप प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री क्रिश्टिया फ्रीलैंड का इस्तीफा है। इस बीच अब कनाडा पुलिस ने भी प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो पर पूरी तरह से अविश्वास जता दिया है।

कनाडा पुलिस की दो संगठन ने प्रधानमंत्री जस्टिन पर कनाडा में बदहाल कानून व्यवस्था देने का आरोप लगाया है। पुलिस संगठन का आरोप है कि जस्टिन के राज में अपराधी कल्चर बढ़ा है। अवैध हथियारों और ड्रग्स की सभ्यता को बढ़ावा मिला है। सबसे बड़ी बात यह है कि जिन अपराधियों को पुलिस अपनी जान पर खेल कर पकड़ती है। उन अपराधियों को कोर्ट से खड़े-खड़े जमानत मिल जाती है।

टोरंटो पुलिस एसोसिएशन ने इस बाबत बाकायदा अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर भी जस्टिन ट्रूडो की गलत नीतियों की आलोचना की है। टोरंटो पुलिस एसोसिएशन ने कहा कि खोखले वादों और बातों का बहुत कम अर्थ है और वे हमारे सदस्यों और आम जनता के प्रति कपटपूर्ण बने हुए हैं। हिंसक अपराध, बंदूक अपराध और वास्तविक जमानत सुधार की कमी जनता, अधिकारियों और पूरे समाज को खतरे में डालने के अलावा कुछ नहीं करती है।

दरहम क्षेत्रीय पुलिस एसोसिएशन ने भी टोरंटो पुलिस एसोसिएशन का समर्थन किया। उन्होंने जस्टिन ट्रूडो पर अविश्वास जताते हुए उनके इस्तीफे की मांग की और कहा कि देश में नए चुनाव होने चाहिए।

पुलिस द्वारा प्रधानमंत्री पर अविश्वास जताना दर्शाता है कि कनाडा में कानून व्यवस्था की स्थिति गंभीर हो चुकी है। पुलिस और प्रधानमंत्री के बीच अविश्वास की यह स्थिति अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई को और अधिक जटिल बना रही है। जस्टिन ट्रूडो पर दबाव लगातार बढ़ रहा है। पुलिस संगठनों और सांसदों की ओर से इस्तीफे की मांग की जा रही है।

कनाडा की वित्त मंत्री ने दिया इस्तीफा, क्या ट्रूडो भी छोड़ेंगे प्रधानमंत्री का पद?

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कनाडा में एक बड़ा राजनीतिक भूचाल आया है। वित्त मंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। जस्टिन ट्रूडो से टकराव के चलते ही देश की उप प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड ने सोमवार को पद से इस्तीफा दे दिया। दोनों के बीच ट्रंप के संभावित टैरिफ को लेकर मतभेद था। उन्होंने उसी दिन पद से इस्तीफा दिया, जब उन्हें संसद में बजट पेश करना था।

फ्रीलैंड ने जाते-जाते प्रधानमंत्री ट्रूडो के नाम एक पत्र लिखा। इस पत्र में उन्होंने लिखा, ‘आप मुझे वित्त मंत्री के तौर पर देखना नहीं चाहते। बेहतर यही है कि मैं ईमानदारी से मंत्रीमंडल से बाहर हो जाऊं।’ इस पत्र में फ्रीलैंड ने बताया है कि पिछले हफ्ते ट्रूडो ने उन्हें वित्त मंत्री के पद से हटाने की कोशिश की थी और उन्हें मंत्रिमंडल में कोई अन्य भूमिका देने की पेशकश की थी। उन्होंने अपने इस्तीफे में कहा कि मंत्रिमंडल छोड़ना ही एकमात्र ईमानदार और व्यावहारिक रास्ता है।

अपने पत्र में फ्रीलैंड ने कहा कि कनाडा गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है और उन्होंने अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की उस धमकी का भी जिक्र किया, जिसमें उन्होंने कनाडाई उत्पादों पर 25 फीसदी शुल्क लगाने की बात की थी। फ्रीलैंड ने लिखा, हमें अपनी वित्तीय स्थिति को मजबूत रखना होगा, ताकि हम किसी संभावित शुल्क युद्ध के लिए तैयार रह सकें।

फ्रीलैंड ने यह भी कहा, हमें प्रांतीय क्षेत्रीय प्रमुखों के साथ ईमानदारी और विनम्रता के साथ काम करना चाहिए, ताकि प्रतिक्रिया देने वाली कनाडा की सच्ची टीम का निर्माण हो सके। कनाडा के सभी 13 प्रांतों के प्रमुख अभी टोरंटों में 'काउंसिल ऑफ द फेडरेशन' की बैठक में हैं, जिसकी अध्यक्षता ओंटारियों के मुख्यमंत्री डग फोर्ड कर रहे हैं। उनके इस्तीफे के बाद प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के साथ फाइनेंशियल पॉलिसीज को लेकर उनके मतभेद खुलकर सामने आ गए।

इस इस्तीफ़े को ट्रूडो के लिए एक अप्रत्याशित झटका माना जा रहा है। ट्रूडो पहले ही कनाडा में अल्पमत सरकार चला रहे हैं।समाचार एजेंसी एएफ़पी के मुताबिक़ लिबरल पार्टी के नेता ट्रूडो पहले ही सर्वेक्षणों में कंज़र्वेटिव पार्टी के नेता पीएर पॉलिवेयर से 20 फ़ीसदी पीछे चल रहे हैं।

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक़ वरिष्ठ कैबिनेट सहयोगी के त्यागपत्र को साल 2015 में सत्ता संभालने के बाद ट्रूडो के लिए सबसे बड़ी चुनौती बताया जा रहा है। ये ट्रूडो कैबिनेट के किसी सदस्य का पहला खुला विरोध और इस क़दम के बाद सत्ता पर उनकी पकड़ ढीली पड़ने के आसार हैं।

क्रिस्टिया फ्रीलैंड के उपप्रधानमंत्री का पद छोड़ने के बाद ट्रूडो पर हमले बढ़ गए हैं। कई विपक्षी दलों ने ट्रूडो से इस्तीफ़े की मांग की है।ट्रूडो के सहयोगी रहे कनाडा की एनडीपी पार्टी के नेता जगमीत सिंह ने भी प्रधानमंत्री से इस्तीफ़ा मांगा है।एक्स पर पोस्ट किए अपने संदेश में जगमीत सिंह ने कहा, "आज मैं ट्रूडो से इस्तीफ़े की मांग करता हूँ। अब उन्हें जाना होगा। इस वक़्त कनाडा के लोग महंगाई से परेशान हैं। लोगों को अपनी बजट के हिसाब से घर तक नहीं मिल रहे हैं। ट्रंप ने 25 फ़ीसदी टैरिफ़ लगाने की बात की है। इस सब के बीच लिबरल पार्टी कनाडा के लोगों के लिए लड़ने के बजाय आपस में लड़ रही है।"

अपनी हरकतों से बाज नहीं आया कनाडा, अब भारतीय राजनयिकों पर निगरानी, निजी बातचीत भी सुनी जा रही

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भारत और कनाडा के बीच तनाव कम नहीं हो रहा है। कनाडा सरकार ने निज्जर हत्याकांड की जांच में उच्चायुक्त सहित भारतीय राजनयिकों पर गंभीर आरोप लगाया था। इसके बाद दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ता गया। इस बीच खबर है कि कनाडा में भारतीय कॉन्सुलेट के अधिकारियों को निगरानी में रखा जा रहा है और उनकी निजी बातचीत भी इंटरसेप्ट की जा रही है।केंद्र ने गुरुवार को संसद को बताया कि कनाडाई सरकार ने वैंकूवर में भारतीय वाणिज्य दूतावास के अधिकारियों को बताया था कि अभी भी उनकी ऑडियो और वीडियो सर्विलांस की जा रही है और उनकी निजी बातचीत भी इंटरसेप्ट हो रही है।

समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार, विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने राज्यसभा में दिए एक लिखित जवाब में कहा, "कनाडा के साथ भारत के संबंध चुनौतीपूर्ण रहे हैं और बने रहेंगे, इसका मुख्य कारण कनाडा सरकार द्वारा चरमपंथी और अलगाववादी तत्वों को मौका देना है। ऐसे तत्व भारत विरोधी एजेंडे की वकालत करते हैं और ऐसी हिंसक गतिविधियों को अंजाम देने के लिए कनाडा के स्वतंत्र आवाजाही नियमों का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं, जो भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए खतरा पैदा करता है।"

केंद्रीय मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह से पूछा गया था कि क्या कनाडा में भारतीय राजनयिक अधिकारियों पर साइबर सर्विलांस या अन्य किसी तरह की निगरानी की कोई घटना ज्ञात है। कीर्ति वर्धन सिंह ने जवाब में कहा, “हां, हाल ही में वैंकुवर में भारतीय वाणिज्य दूतों यानी कॉन्सुलर अधिकारियों को कनाडा के अधिकारियों ने सूचना दी थी कि उनपर ऑडियो-वीडियो सर्विलांस के ज़रिए निगरानी रखी जा रही थी और उनके निजी संदेशों को भी पढ़ा जा रहा था। यह निगरानी जारी है।”

विदेश राज्यमंत्री कीर्तिवर्धन सिंह ने कहा कि भारत सरकार ने इस मुद्दे पर नयी दिल्ली में कनाडाई उच्चायोग के समक्ष दो नवंबर 2024 को कड़ा विरोध दर्ज कराया क्योंकि ये कार्य सभी राजनयिक प्रावधानों का घोर उल्लंघन थे। उन्होंने कहा, "विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने मीडिया को अपनी साप्ताहिक ब्रीफिंग में भी कहा कि तकनीकी पहलुओं का हवाला देकर, कनाडा सरकार इस तथ्य को उचित नहीं ठहरा सकती कि वह उत्पीड़न कर रही है और धमका रही है। हमारे राजनयिक और वाणिज्य दूतावास के कर्मचारी पहले से ही उग्रवाद और हिंसा के माहौल में काम कर रहे हैं। कनाडा सरकार की यह कार्रवाई स्थिति को और खराब करती है और यह स्थापित राजनयिक मानदंडों और प्रथाओं के अनुरूप नहीं है।"

भारत के इन दो दुश्मनों को सबक सिखाएंगे डोनाल्ड ट्रंप,राष्‍ट्रपति बनते ही बड़ा फैसला लेने का ऐलान*
#donald_trump_to_impose_tariffs_on_canada_mexico_and_china अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद से ही कुछ देश खौफ में हैं। कहा जा रहा था कि डोनाल्ड ट्रंप इन देशों के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं। अमेरिका के राष्‍ट्रपति चुने गए ट्रंप भले ही 20 जनवरी को कुर्सी संभालेंगे लेकिन दुश्‍मनों की नींद उन्‍होंने अभी से उड़ा दी है। ट्रंप ने सोमवार को एक बड़ा ऐलान किया है। ताजा ऐलान भारत को दो दुश्मन देशों को लेकर है। ट्रंप ने कहा कि वह जनवरी में कार्यभार संभालने के पहले दिन ही ऐसे आदेशों पर हस्ताक्षर करेंगे, जिसके तहत मेक्सिको और कनाडा से आने वाले सभी सामानों पर 25 फीसदी आयात शुल्क लगाया जाएगा। ट्रंप का कहना है कि वो ऐसा तब तक करेंगे जब तक ये देश अपने अमेरिका में अवैध अप्रवासियों और फेंटेनाइल दवाओं के प्रवाह को बंद नहीं करते हैं। *अवैध अप्रवासी कई समस्‍याओं की जड़-ट्रंप* ट्रंप ने ट्रूंथ सोशल नेटवर्क पर एक पोस्ट में लिखा है कि 20 जनवरी को ऑफिस संभालते ही कनाडा, मेक्सिको और चीन के ख़िलाफ़ टैरिफ लगाने के लिए एक एग्जेक्युटिव ऑर्डर पर हस्ताक्षर करेंगे।ट्रंप ने कहा, ''सभी को पता है कि कनाडा और मेक्सिको से हज़ारों लोग अमेरिका में घुस रहे हैं। ये अपने साथ ड्रग्स ला रहे हैं और कई अपराधों को अंजाम दे रहे हैं। जिस स्तर पर ये सब हो रहा है, वैसा पहले कभी नहीं हुआ।'' *कैसे हैं ट्रंप-ट्रूडो के संबंध?* कनाडा और अमेरिका के बीच दुनिया का सबसे लंबा लैंड बॉर्डर है और दोनों देशों के बीच कारोबारी संबंध एक ट्रिलियन डॉलर से भी ज़्यादा का है। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने ट्रंप की जीत के तत्काल बाद ही बधाई दी थी लेकिन दोनों नेताओं के संबंधों में पर्याप्त तनाव रहा है। अमेरिका में कोई भी राष्ट्रपति कमान संभालने के बाद पारंपरिक रूप से पहला विदेशी दौरा कनाडा या मेक्सिको का करता था लेकिन ट्रंप ने 2017 में पहला विदेशी दौरा सऊदी अरब का किया था। यानी ट्रंप ने आते ही संदेश दे दिया था। जस्टिन ट्रूडो पर ट्रंप व्यक्तिगत हमले भी करते रहे हैं। ट्रूडो को ट्रंप ने 'घोर-वामपंथी पागल' कहा था। कनाडा की आर्थिक स्थिति पहले से ही चिंताजनक है और ट्रंप के टैरिफ से वहाँ की अर्थव्यवस्था के मंदी में जाने की आशंका बढ़ जाएगी। कनाडा का 75 प्रतिशत निर्यात अमेरिका में होता है. ऐसे में 25 प्रतिशत का टैरिफ कनाडा को भारी पड़ सकता है। ट्रूडो के लिए ये मुश्किलें तब खड़ी हो रही हैं, जब कनाडा में चुनाव सिर पर है। कई चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में बताया जा रहा है कि ट्रूडो चुनाव में कंजर्वेटिव पार्टी से हार सकते हैं। *चीन पर निशाना साधा* ट्रंप ने ट्रुथ पर एक दूसरे पोस्ट में चीन पर निशाना साधा, उन्होंने पोस्ट में लिखा, "मैंने चीन से संयुक्त राज्य अमेरिका में भेजी जा रही ड्रग्स, विशेष रूप से फेंटेनाइल के बारे में कई बार बातचीत की, लेकिन कोई असर नहीं हुआ। चीन के प्रतिनिधियों ने मुझसे कहा था कि वह इस काम में शामिल किसी भी ड्रग तस्कर को मौत की सजा देंगे, लेकिन अफसोस, उन्होंने कभी इसे लागू नहीं किया और ड्रग्स हमारे देश में मुख्य रूप से मेक्सिको के जरिए भारी मात्रा में आ रही हैं। जब तक यह नहीं रुकता, हम चीन पर उनके सभी उत्पादों पर अतिरिक्त 10 प्रतिशत टैरिफ लगाएंगे, जो संयुक्त राज्य अमेरिका में आयात हो रहे हैं, किसी भी अन्य टैरिफ के ऊपर होगा।" *टैरिफ डोनाल्ड ट्रंप का अहम एजेंडा* टैरिफ डोनाल्ड ट्रंप के आर्थिक एजेंडे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, रिपब्लिकन पार्टी के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति ने 5 नवम्बर की अपनी जीत से पहले चुनाव प्रचार के दौरान सहयोगियों और विरोधियों पर समान रूप से व्यापक शुल्क लगाने की कसम खाई थी। हालांकि, कई अर्थशास्त्रियों ने चेतावनी दी है कि टैरिफ से विकास को नुकसान पहुंचेगा और मुद्रास्फीति बढ़ेगी, क्योंकि टैरिफ का भुगतान मुख्य रूप से अमेरिका में सामान लाने वाले आयातकों द्वारा किया जाता है, जो अक्सर उन लागतों को उपभोक्ताओं पर डाल देते हैं।
*ट्रूडो के इस्तीफे के साथ ही बदल गया कनाडा? निज्जर मर्डर केस के चारों आरोपियों को जमानत

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भारत और कनाडा के रिश्तों के बीच खटास की सबसे बड़ी वजह रही खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या का मामला। हरदीप सिंह निज्जर हत्याकांड को लेकर कनाडा के प्रधानमंत्री ने भारत पर गंभीर आरोप लगाए थे। जिसके बाद दोनों देशों के संबंध सबसे खराब स्तर पर पहुंच गए। इस बीच इस मामले में एक नया मोड आया है। निजजर की हत्या मामले में कनाडा में गिरफ्तार किए गए सभी चार भारतीयों को कनाडा की कोर्ट ने जमानत दे दी है। इनके नाम करण बराड़, अमनदीप सिंह, कमलप्रीत सिंह और करणप्रीत सिंह हैं। इनपर प्रथम डिग्री हत्या और हत्या की साजिश रचने का आरोप लगाया गया था। ये सब तब हुआ है जब ट्रूडो को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा है।

खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के आरोपी बनाए गए चार भारतीय नागरिकों को कनाडा के सुप्रीम कोर्ट ने जमानत पर रिहा कर दिया है। कनाडाई सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कनाडाई पुलिस को पर्याप्त सबूत पेश नहीं कर पाने के चलते फटकार भी लगाई है। अब इस मामले की सुनवाई 11 फरवरी को निचली अदालत में होगी, जहां नवंबर, 2024 में पुलिस ने इन चारों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी।

पुलिस अदालत में पेश नहीं हुई

दरअसल, इस केस में कनाडा पुलिस की भूमिका सवालों के घेरे में आ गई है. निचली अदालत में सबूत पेश करने में असफल रहने के कारण पुलिस अदालत में पेश नहीं हुई. सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस की इस निष्क्रियता को देखते हुए चारों आरोपियों को जमानत पर रिहा कर दिया।

कौन हैं चारों आरोपी?

कनाडा ने निज्जर मर्डर केस में साल 2024 में मई के महीने में चार भारतीयों को अरेस्ट किया गया था। आईएचआईटी ने 3 मई को हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के लिए तीन भारतीय नागरिक, करण बराड़ (22), कमलप्रीत सिंह (22) और करणप्रीत सिंह (28) को गिरफ्तार किया था। तीनों व्यक्ति एडमोंटन में रहने वाले भारतीय नागरिक थे और उन पर फर्स्ट डिग्री की हत्या और हत्या की साजिश रचने का आरोप लगाया गया था।

इसी के बाद आरोपी अमरदीप सिंह (22) को भी इस केस में अरेस्ट किया गया था। अमरदीप सिंह पर फर्स्ट-डिग्री हत्या और हत्या की साजिश रचने का आरोप लगाया गया था। रॉयल कैनेडियन माउंटेड पुलिस (आरसीएमपी) की इंटीग्रेटेड होमिसाइड इन्वेस्टिगेशन टीम (आईएचआईटी) ने कहा था कि अमरदीप सिंह को निज्जर की हत्या में उनके रोल के लिए 11 मई को गिरफ्तार किया गया था।

क्या था हरदीप सिंह निज्जर मर्डर केस?

खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की 18 जून साल 2023 में कनाडा के सरे में एक गुरुद्वारे के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। वह भारत में वांटेड घोषित था। निज्जर साल 1997 में कनाडा भाग गया था और उसके खिलाफ भारत में दर्जन भर से ज्यादा कत्ल और आतंकी गतिविधियों में शामिल होने को लेकर केस दर्ज हैं। इसके बावजूद कनाडा की सरकार ने निज्जर के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया था। साल 2023 में निज्जर की हुई हत्या के बाद भारत और कनाडा के बीच एक नया विवाद पैदा हुआ।

क्या भारत से संबंध सुधारने की कवायद शुरू?

बता दें कि कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने अपनी संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारत सरकार पर निज्जर की हत्या का आरोप लगाकर तहलका मचा दिया था। सिख वोटों को अपने पक्ष में जुटाने के लिए ट्रूडो इस आरोप पर अड़े रहे, लेकिन कोई सबूत पेश नहीं कर सके। इसके चलते भारत-कनाडा के संबंध लगातार खराब होते चले गए। हालांकि ट्रूडो को इससे कोई लाभ नहीं हुआ है और उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा है। उनके इस्तीफा देते ही चारों भारतीय आरोपियों को जमानत पर रिहा करने का फैसला आ गया है। इससे यह चर्चा शुरू हो गई है कि क्या ट्रूडो के बाद कनाडा में भारत से संबंध सुधारने की कवायद शुरू हो गई है।

क्या कनाडा को लेकर ही रहेंगे ट्रंप? अब नक्शा शेयर कर बताया अमेरिकी राज्य

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अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप बार-बार कनाडा को अमेरिका में शामिल करने की इच्छा जाहिर कर रहे हैं। लगता है ट्रंप कनाडा को अमेरिका में मिलाकर ही दम लेगें। दरअसल, कनाडा को संयुक्त राज्य अमेरिका में मिलाने के लिए 'आर्थिक ताकत' के इस्तेमाल की धमकी देने के कुछ घंटों बाद, नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिकी ध्वज से चित्रित दोनों देशों को एक दिखाने वाला मैप भी शेयर कर दिया है। ट्रंप ने इस नए नक्शे में कनाडा को अमेरिका के 51वें राज्य के रूप में दिखाया है।

डोनाल्ड ट्रंप ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रूथ पर पहले एक मैप शेयर किया। इसमें उन्होंने कनाडा को अमेरिका का हिस्सा दिखाया है। उन्होंने अमेरिका के इस मैप को पोस्ट करते हुए लिखा, ‘ओह कनाडा!’। इसके बाद उन्होंने एक और मैप शेयर किया। इस पर लिखा है- यूनाइटेड स्टेट। दरअसल, डोनाल्ड ट्रंप कनाडा को बार-बार ’51वां राज्य’ कह चुके हैं। उन्होंने मंगलवार को कहा कि वह कनाडा को हासिल करने के लिए ‘सैन्य ताकत’ का नहीं, बल्कि ‘आर्थिक ताकत’ का इस्तेमाल करेंगे।

ट्रंप के मैप जारी करने बाद ट्रूडो भी आक्रमक हो गए हैं और उन्होंने भी इसका जवाब कड़े शब्दों में दिया है। ट्रूडो ने कहा कि इसकी दूर-दूर तक कोई संभावना नहीं। ट्रूडो ने एक्स पर लिखा, बर्फ में भी आग लगने की संभावना अधिक है बजाय इसके कि कनाडा कभी अमेरिका का हिस्सा बनेगा। हमारे दोनों देशों के कर्मचारियों और समुदायों को एक-दूसरे के सबसे बड़े व्यापारिक और सुरक्षा भागीदार होने का लाभ मिलता है। इस तरह उन्होंने साफ कर दिया कि दोनों देशों के विलय की कोई संभावना नहीं है।

बता दें कि नवंबर में राष्ट्रपति चुनाव में जीत के बाद से ट्रंप ने बार-बार अमेरिका-कनाडा के विलय का विचार पेश किया है। पूर्व में डोनाल्ड ट्रंप ने कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो को यह ऑफर दिया था कि वह कनाडा को अमेरिका के 51वें राज्य के रूप में विलय कर दें। इससे कनाडा की अर्थव्यवस्था कई गुना तेज रफ्तार से बढ़ेगी। ट्रंप ने इसके साथ ही ट्रूडो को कनाडा राज्य का गवर्नर बनाने का भी ऑफर दिया था। मगर ट्रूडो ने इस पर हामी नहीं भरी थी। ऐसा नहीं करने पर ट्रंप कई बार कनाडा पर भारी-भरकम टैरिफ लगाने की धमकी भी दे चुके हैं। तब से अमेरिका और कनाडा के बीच तनाव चल रहा है। इन विवादों के बीच डोनाल्ड ट्रम्प ने नया अमेरिकी मानचित्र साझा करके फिर से बवाल मचा दिया है।

ट्रूडो के इस्तीफे के बाद कौन होगा अगला पीएम? दौड़ में भारतवंशी अनीता आनंद

#who_is_anita_anand_in_race_of_next_canada_pm 

जस्टिन ट्रूडो राजनीतिक अंदरूनी कलह और अनिश्चित आर्थिक संभावनाओं के बीच नाराज मतदाताओं के सामने झुक गए। कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रूडो ने सोमवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया। वो करीब एक दशक से इस पद पर बने हुए थे। इस फैसले के बाद पूरी दुनिया के सियासी हलकों में इसकी खूब चर्चा हो रही है। अब उनके बाद कनाडा का अगला पीएम कौन होगा, इसे लेकर जमकर अटकलबाजियां हो रही है। पीएम पद की रेस में कनाडा मूल के नेताओं के साथ ही भारतीय मूल की कनाडाई राजनेता अनीता आनंद का नाम भी शामिल है।

कनाडा में पीएम पद की रेस में भारतवंशी सांसद अनीता आनंद का भी चर्चा में है। अनीता आनंद ट्रूडो मंत्रिमंडल में शामिल हैं। वह कनाडा की रक्षा मंत्री रह चुकी हैं। साथ ही मौजूदा समय में परिवहन और आंतरिक व्यापार मंत्री हैं। अनीता के अलावा इस रेस में पियरे पोलीवरे, क्रिस्टिया फ्रीलैंड, और मार्क कार्नी जैसे बड़े नेता भी शामिल हैं।

अनीता इंदिरा आनंद का जन्म केंटविले, नोवा स्कोटिया में हुआ था। उनके माता-पिता (दोनों का देहांत हो चुका है) इंडियन फिजिशियन थे। उनके पिता तमिलनाडु से और उनकी मां पंजाब से थीं। आनंद की दो बहनें हैं – गीता आनंद, टोरंटो में एक वकील हैं, और सोनिया आनंद, मैकमास्टर यूनिवर्सिटी में एक फिजिशियन और रिसर्चर हैं। आनंद 1985 में ओंटारियो चली गईं। उन्होंने और उनके पति जॉन ने अपने चार बच्चों का पालन-पोषण ओकविले में किया। आनंद ने अपने करियर के दौरान अब तक कई पदों पर काम किया है। 

अनीता आनंद पहली बार 2019 में ओकविले के लिए संसद सदस्य के रूप में चुनी गई थीं। उन्होंने 2019 से 2021 तक सार्वजनिक सेवा और खरीद मंत्री के रूप में कार्य किया और ट्रेजरी बोर्ड के अध्यक्ष और राष्ट्रीय रक्षा मंत्री के रूप में भी काम किया।

राजनीति के अलावा अनीता आनंद की पहचान एक विद्वान, वकील और रिसर्चर की रही है। वह टोरंटो यूनिवर्सिटी में कानून की प्रोफेसर रही हैं जहां उन्होंने इनवेस्ट प्रोटक्शन और कॉर्पोरेट गर्वनेंस में जेआर किंबर चेयर का पद संभाला था। आनंद ने एसोसिएट डीन के रूप में कार्य किया है और मैसी कॉलेज के गवर्निंग बोर्ड की सदस्य भी रही हैं। वह कैपिटल मार्केट्स इंस्टीट्यूट, रोटमैन स्कूल ऑफ मैनेजमेंट में नीति और अनुसंधान की निदेशक रही हैं। उन्होंने येल लॉ स्कूल, क्वीन्स यूनिवर्सिटी और वेस्टर्न यूनिवर्सिटी में भी कानून पढ़ाया है। अनीता आनंद ने क्वीन्स यूनिवर्सिटी से राजनीतिक अध्ययन में बैचलर ऑफ आर्ट्स (ऑनर्स), ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से न्यायशास्त्र में बैचलर ऑफ आर्ट्स (ऑनर्स), डलहौजी यूनिवर्सिटी से बैचलर ऑफ लॉ और टोरंटो यूनिवर्सिटी से मास्टर ऑफ लॉ की डिग्री हासिल की है।

क्या तब भारत-कनाडा के संबंध सुधरेंगे?

अनीता आनंद अपने शानदार लीडरशिप, विकास के कार्य और जनसेवा के लिए खूब चर्चित रही हैं। माना जा रहा है कि यदि अनीता आनंद कनाडाई पीएम के पद पर आसीन होती हैं तो भारत और कनाडा के रिश्तों में मधुरता आएगी। जस्टिन रूडो के दौर में भारत और कनाडा के बीच के रिश्तों में खटास देखा गया था। इस दौर में दोनों देशों के बीच का संबंध अपने निचले स्तर पर जा पहुंचा था। निज्जर मामले के बाद ट्रूडो सरकार की तरफ से जमकर भारत विरोधी बयानबाज़ियां हुई थीं। भारत की सरकार की तरफ़ से ट्रूडो प्रशासन पर खलिस्तानी आतंकियों और समर्थकों को शरण देने के आरोप लगाए गए थे।

भारत से पंगा लेने वाले जस्टिन ट्रूडो की जाने ही वाली है कुर्सी, दे सकते हैं इस्तीफा
#rest_of_world_justin_trudeau_likely_to_resign_as_canada_pm
* कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो पिछले काफी समय से पार्टी अंदर पनपे असंतोष का सामना कर रहे हैं। अब खबर आ रही है कि जस्टिन ट्रूडो सोमवार को लिबरल पार्टी के नेता पद से इस्तीफा दे सकते हैं। कनाडा के समाचारपत्र द ग्लोब एंड मेल ने रविवार को अपनी रिपोर्ट्स में ऐसा दावा किया है। द ग्लोब एंड मेल ने रविवार को सूत्रों के हवाले से ये जानकारी दी है। ऐसा तब हो रहा है जब 53 साल के ट्रूडो कथित तौर पर अपनी पार्टी के भीतर समर्थन खो रहे हैं और कई सर्वों से संकेत मिल रहा है कि अगर आज चुनाव हुए तो पियरे पोलिएवर के नेतृत्व वाली कंजर्वेटिव पार्टी उन्हें और लिबरल पार्टी को सत्ता से बाहर कर देगी। *अगले एक या दो दिनों में छोड़ सकते हैं पद* रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिन ट्रूडो अगले एक या दो दिनों के भीतर पद छोड़ सकते हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अभी ये तय नहीं है कि ट्रूडो कब इस्तीफा देंगे, लेकिन माना जा रहा है कि बुधवार को होने वाली राष्ट्रीय कॉकस बैठक से पहले ट्रूडो अपना पद छोड़ सकते हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, जस्टिस ट्रूडो को सत्ताधारी लिबरल पार्टी के नेता के पद से भी हटाने पर विचार किया जा रहा है। *क्यों इस्तीफा देंगे ट्रूडो?* जनमत सर्वेक्षणों के मुताबिक, इस समय वह अपने मुख्य प्रतिद्वंदी कंजर्वेटिव पार्टी के पियरे पॉइलीवर से 20 पॉइंट पीछे चल रहे हैं। यही वजह है कि लिबरल सदस्यों की ओर से उन पर इस्तीफा देने का प्रेशर है। उनके विरोध में खुलकर सांसद आ चुके हैं। उन्हें हटाने के लिए तो सिग्नेचर कैंपेन भी चल चुका है। बंद कमरे में उन पर सवालों की बौछार भी हो चुकी है। अब क्योंकि लिबरल पार्टी को लगने लगा है कि ट्रूडो के नेतृत्व में कनाडा में उनकी हार निश्चित है। इसलिए अब ट्रूडो की पीएम वाली कुर्सी जाने का खतरा पूी तरह मंडरा गया है। *ट्रूडो से नाराज हैं कनाडा के लोग* कनाडा में जस्टिन ट्रूडो की सरकार की लोकप्रियता में गिरावट की कई वजह हैं। इनमें प्रमुख वजहों में अर्थव्यवस्था, कनाडा में घरों की कीमतों में जबरदस्त उछाल, अप्रवासी मुद्दा आदि शामिल हैं। कोरोना महामारी के बाद कनाडा में महंगाई 8 फीसदी तक बढ़ गई थी। हालांकि फिलहाल यह दो प्रतिशत से नीचे है। कनाडा में बेरोजगारी भी बड़ा मुद्दा है, जो फिलहाल छह फीसदी के आसपास है। ट्रूडो सरकार के कार्बन टैक्स कार्यक्रम की भी विपक्ष द्वारा आलोचना की जा रही है। कनाडा में महंगे घर एक बड़ी समस्या है। कनाडा के अधिकतर बड़े शहरों में घर खरीदना आम लोगों के बजट के बाहर हो गया है। लंबे समय से यह समस्या बनी हुई है और सरकार इसे नियंत्रित कर पाने में नाकाम रही है। ये भी एक बड़ी वजह है कि लोगों में ट्रूडो सरकार के प्रति गहरी नाराजगी है। कनाडा में अप्रवासन भी बड़ा मुद्दा है। हालांकि ट्रूडो सरकार ने हाल के समय में अप्रवासन को लेकर नई नीतियां बनाई हैं, जिससे अप्रवासियों की संख्या को नियंत्रित किया जा सके। हालांकि अभी भी लोगों की नाराजगी कम नहीं हुई है। अप्रवासियों की बढ़ती संख्या की वजह से कनाडा की स्वास्थ्य व्यवस्था और अन्य सेवाओं पर भारी दबाव पड़ा है। कनाडा में खालिस्तानियों के बढ़ते प्रभाव को लेकर भी कई कनाडाई नागरिक नाराज हैं। हाल ही में कनाडा की डिप्टी पीएम और वित्त मंत्री ने भी इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद ट्रूडो पर भी इस्तीफा देने का दबाव बढ़ा है।
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बुरे फंसे भारत विरोधी जस्टिन ट्रूडो, अमेरिका के बाद अब चीन ने सिखाया सबक
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भारत के साथ अपने संबंधों को बिगाड़ने वाले जस्टिन ट्रूडो की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही है। जस्टिन ट्रूडो इस वक्त घरेलू मोर्चे पर संघर्ष कर रहे हैं और कूटनीतिक स्तर पर भी चारों ओर से चुनौतियों से घिर गए हैं। इस बार मामला चीन से जुड़ा हुआ है। अमेरिका के बाद अब चीन ने कनाडा के खिलाफ बड़ा एक्शन लिया है। चीन उइगर मुस्लिम और तिब्बत से संबंधित मानवाधिकार के मुद्दों में शामिल कनाडा के 2 संस्थानों के करीब 20 लोगों पर बैन लगाने जा रहा है। अमेरिका के राष्ट्रपति निर्वाचित डोनाल्ड ट्रंप के टैक्स बम के बाद अब चीन की ये घोषणा कनाडा के लिए बड़ी परेशानी पैदा करने वाली है।

चीन ने रविवार को कहा है कि वह उइगरों और तिब्बत से संबंधित मानवाधिकार के मुद्दों में शामिल दो कनाडाई संस्थानों सहित 20 लोगों के खिलाफ प्रतिबंध की कार्रवाई करने जा रहा है। चीन के विदेश मंत्रालय ने अपनी वेबसाइट पर घोषणा की कि शनिवार को प्रभावी हुए इन उपायों में संपत्ति जब्त करना और प्रवेश पर प्रतिबंध लगाना शामिल है और इनके निशाने पर कनाडा का उइगर अधिकार वकालत परियोजना और कनाडा-तिब्बत समिति शामिल है। चीन ने कहा कि वह इन दोनों संस्थानों की चल संपत्ति, अचल संपत्ति और चीन के क्षेत्र में अन्य प्रकार की संपत्ति को फ्रीज कर रहा है।

दरअसल, कनाडा के मानवाधिकार संगठनों ने चीन के शिनजियांग प्रांत में उइगर मुसलमानों के उत्पीड़न का मुद्दा उठाया था। मानवाधिकार संगठनों का दावा है कि चीन में उइगर मुसलमानों का शोषण हो रहा है और सरकारी तंत्र उन्हें लगातार प्रताड़ित कर रहा है। इसके बाद चीन ने बड़ा एक्शन लिया है। कनाडा के 20 लोगों को चीन ने बैन कर दिया है। ये सभी लोग अलग-अलग मानवाधिकार संगठनों से जुड़े थे। इन सभी लोगों के चीन में प्रवेश के साथ ही हांगकांग और मकाऊ क्षेत्र में प्रवेश पर भी बैन लगा दिया गया है।

इस प्रतिबंध के तहत, उइगर संस्थान से जुड़े 15 और तिब्बत समिति के पांच सदस्यों की चीन में संपत्तियों को फ्रीज किया गया है। इसके अलावा, इन व्यक्तियों के हांगकांग और मकाऊ सहित पूरे चीन में प्रवेश पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है।

कनाडा के मानवाधिकार समूहों ने चीन पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि चीन ने शिनजियांग प्रांत में उइगर मुस्लिम समुदाय के खिलाफ बड़े पैमाने पर शोषण किया है। लगभग एक करोड़ उइगर मुसलमानों को कथित रूप से नजरबंदी शिविरों में रखा गया है, जहां उनसे जबरन मजदूरी करवाया जाता है। हालांकि, चीन ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि ये शिविर पुनर्वास और शिक्षा के लिए हैं। चीन ने 1950 में तिब्बत पर नियंत्रण किया था और इसे "शांतिपूर्ण मुक्ति" कहा था। लेकिन अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों और निर्वासित तिब्बती समुदायों ने इसे दमनकारी शासन करार दिया है और समय-समय पर इसकी निंदा की है।

बता दें कि कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो इन दिनों आंतरिक और बाहरी संकटों का सामना कर रहे हैं। उनके कार्यकाल में कनाडा के अमेरिका, भारत और चीन जैसे प्रमुख देशों के साथ संबंध खराब हुए हैं। ये तीनों देश वैश्विक स्तर पर अत्यधिक महत्वपूर्ण माने जाते हैं। इसके अलावा, कनाडा में उनकी लोकप्रियता तेजी से घट रही है। उनके पूर्व सहयोगी और एनडीपी नेता जगमीत सिंह ने अविश्वास प्रस्ताव लाने की घोषणा की है, जिससे ट्रूडो की सरकार पर दबाव और बढ़ गया है।
अब जस्टिन ट्रूडो के खिलाफ खड़ी हुई कनाडा की पुलिस, बदहाल कानून व्यवस्था देने का आरोप, इस्तीफे की मांग

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कनाडा में वहां की ट्रूडो सरकार के लिए सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। पीएम ट्रूडो के लिए हालात किस कदर जटिल बने हुए हैं इसका अंदाजा आप इस बात से भी लगा सकते हैं कि उन्हें बीते कुछ समय से अपनी सरकार के भीतर भी तीखी आलोचनाएं झेलनी पड़ रही हैं। साथ ही साथ ट्रूडो जिन आतंकी ताकतों को सहारा दे रहे थे,उससे कनाडा के लोग नाराज हैं। उस पर से अमेरिका के होने वाले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को ट्रुडो फूटी आंख नहीं सुहाते। भारत का विरोध और खालिस्तान का समर्थन करने वाले कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो के लिए जनता का समर्थन हासिल करना मुश्किल होता जा रहा है। उनके खिलाफ कनाडा में उसी बगावत की सबसे बड़ी झलक उप प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री क्रिश्टिया फ्रीलैंड का इस्तीफा है। इस बीच अब कनाडा पुलिस ने भी प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो पर पूरी तरह से अविश्वास जता दिया है।

कनाडा पुलिस की दो संगठन ने प्रधानमंत्री जस्टिन पर कनाडा में बदहाल कानून व्यवस्था देने का आरोप लगाया है। पुलिस संगठन का आरोप है कि जस्टिन के राज में अपराधी कल्चर बढ़ा है। अवैध हथियारों और ड्रग्स की सभ्यता को बढ़ावा मिला है। सबसे बड़ी बात यह है कि जिन अपराधियों को पुलिस अपनी जान पर खेल कर पकड़ती है। उन अपराधियों को कोर्ट से खड़े-खड़े जमानत मिल जाती है।

टोरंटो पुलिस एसोसिएशन ने इस बाबत बाकायदा अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर भी जस्टिन ट्रूडो की गलत नीतियों की आलोचना की है। टोरंटो पुलिस एसोसिएशन ने कहा कि खोखले वादों और बातों का बहुत कम अर्थ है और वे हमारे सदस्यों और आम जनता के प्रति कपटपूर्ण बने हुए हैं। हिंसक अपराध, बंदूक अपराध और वास्तविक जमानत सुधार की कमी जनता, अधिकारियों और पूरे समाज को खतरे में डालने के अलावा कुछ नहीं करती है।

दरहम क्षेत्रीय पुलिस एसोसिएशन ने भी टोरंटो पुलिस एसोसिएशन का समर्थन किया। उन्होंने जस्टिन ट्रूडो पर अविश्वास जताते हुए उनके इस्तीफे की मांग की और कहा कि देश में नए चुनाव होने चाहिए।

पुलिस द्वारा प्रधानमंत्री पर अविश्वास जताना दर्शाता है कि कनाडा में कानून व्यवस्था की स्थिति गंभीर हो चुकी है। पुलिस और प्रधानमंत्री के बीच अविश्वास की यह स्थिति अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई को और अधिक जटिल बना रही है। जस्टिन ट्रूडो पर दबाव लगातार बढ़ रहा है। पुलिस संगठनों और सांसदों की ओर से इस्तीफे की मांग की जा रही है।

कनाडा की वित्त मंत्री ने दिया इस्तीफा, क्या ट्रूडो भी छोड़ेंगे प्रधानमंत्री का पद?

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कनाडा में एक बड़ा राजनीतिक भूचाल आया है। वित्त मंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। जस्टिन ट्रूडो से टकराव के चलते ही देश की उप प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड ने सोमवार को पद से इस्तीफा दे दिया। दोनों के बीच ट्रंप के संभावित टैरिफ को लेकर मतभेद था। उन्होंने उसी दिन पद से इस्तीफा दिया, जब उन्हें संसद में बजट पेश करना था।

फ्रीलैंड ने जाते-जाते प्रधानमंत्री ट्रूडो के नाम एक पत्र लिखा। इस पत्र में उन्होंने लिखा, ‘आप मुझे वित्त मंत्री के तौर पर देखना नहीं चाहते। बेहतर यही है कि मैं ईमानदारी से मंत्रीमंडल से बाहर हो जाऊं।’ इस पत्र में फ्रीलैंड ने बताया है कि पिछले हफ्ते ट्रूडो ने उन्हें वित्त मंत्री के पद से हटाने की कोशिश की थी और उन्हें मंत्रिमंडल में कोई अन्य भूमिका देने की पेशकश की थी। उन्होंने अपने इस्तीफे में कहा कि मंत्रिमंडल छोड़ना ही एकमात्र ईमानदार और व्यावहारिक रास्ता है।

अपने पत्र में फ्रीलैंड ने कहा कि कनाडा गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है और उन्होंने अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की उस धमकी का भी जिक्र किया, जिसमें उन्होंने कनाडाई उत्पादों पर 25 फीसदी शुल्क लगाने की बात की थी। फ्रीलैंड ने लिखा, हमें अपनी वित्तीय स्थिति को मजबूत रखना होगा, ताकि हम किसी संभावित शुल्क युद्ध के लिए तैयार रह सकें।

फ्रीलैंड ने यह भी कहा, हमें प्रांतीय क्षेत्रीय प्रमुखों के साथ ईमानदारी और विनम्रता के साथ काम करना चाहिए, ताकि प्रतिक्रिया देने वाली कनाडा की सच्ची टीम का निर्माण हो सके। कनाडा के सभी 13 प्रांतों के प्रमुख अभी टोरंटों में 'काउंसिल ऑफ द फेडरेशन' की बैठक में हैं, जिसकी अध्यक्षता ओंटारियों के मुख्यमंत्री डग फोर्ड कर रहे हैं। उनके इस्तीफे के बाद प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के साथ फाइनेंशियल पॉलिसीज को लेकर उनके मतभेद खुलकर सामने आ गए।

इस इस्तीफ़े को ट्रूडो के लिए एक अप्रत्याशित झटका माना जा रहा है। ट्रूडो पहले ही कनाडा में अल्पमत सरकार चला रहे हैं।समाचार एजेंसी एएफ़पी के मुताबिक़ लिबरल पार्टी के नेता ट्रूडो पहले ही सर्वेक्षणों में कंज़र्वेटिव पार्टी के नेता पीएर पॉलिवेयर से 20 फ़ीसदी पीछे चल रहे हैं।

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक़ वरिष्ठ कैबिनेट सहयोगी के त्यागपत्र को साल 2015 में सत्ता संभालने के बाद ट्रूडो के लिए सबसे बड़ी चुनौती बताया जा रहा है। ये ट्रूडो कैबिनेट के किसी सदस्य का पहला खुला विरोध और इस क़दम के बाद सत्ता पर उनकी पकड़ ढीली पड़ने के आसार हैं।

क्रिस्टिया फ्रीलैंड के उपप्रधानमंत्री का पद छोड़ने के बाद ट्रूडो पर हमले बढ़ गए हैं। कई विपक्षी दलों ने ट्रूडो से इस्तीफ़े की मांग की है।ट्रूडो के सहयोगी रहे कनाडा की एनडीपी पार्टी के नेता जगमीत सिंह ने भी प्रधानमंत्री से इस्तीफ़ा मांगा है।एक्स पर पोस्ट किए अपने संदेश में जगमीत सिंह ने कहा, "आज मैं ट्रूडो से इस्तीफ़े की मांग करता हूँ। अब उन्हें जाना होगा। इस वक़्त कनाडा के लोग महंगाई से परेशान हैं। लोगों को अपनी बजट के हिसाब से घर तक नहीं मिल रहे हैं। ट्रंप ने 25 फ़ीसदी टैरिफ़ लगाने की बात की है। इस सब के बीच लिबरल पार्टी कनाडा के लोगों के लिए लड़ने के बजाय आपस में लड़ रही है।"

अपनी हरकतों से बाज नहीं आया कनाडा, अब भारतीय राजनयिकों पर निगरानी, निजी बातचीत भी सुनी जा रही

#indian_diplomats_in_canada_under_surveillance

भारत और कनाडा के बीच तनाव कम नहीं हो रहा है। कनाडा सरकार ने निज्जर हत्याकांड की जांच में उच्चायुक्त सहित भारतीय राजनयिकों पर गंभीर आरोप लगाया था। इसके बाद दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ता गया। इस बीच खबर है कि कनाडा में भारतीय कॉन्सुलेट के अधिकारियों को निगरानी में रखा जा रहा है और उनकी निजी बातचीत भी इंटरसेप्ट की जा रही है।केंद्र ने गुरुवार को संसद को बताया कि कनाडाई सरकार ने वैंकूवर में भारतीय वाणिज्य दूतावास के अधिकारियों को बताया था कि अभी भी उनकी ऑडियो और वीडियो सर्विलांस की जा रही है और उनकी निजी बातचीत भी इंटरसेप्ट हो रही है।

समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार, विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने राज्यसभा में दिए एक लिखित जवाब में कहा, "कनाडा के साथ भारत के संबंध चुनौतीपूर्ण रहे हैं और बने रहेंगे, इसका मुख्य कारण कनाडा सरकार द्वारा चरमपंथी और अलगाववादी तत्वों को मौका देना है। ऐसे तत्व भारत विरोधी एजेंडे की वकालत करते हैं और ऐसी हिंसक गतिविधियों को अंजाम देने के लिए कनाडा के स्वतंत्र आवाजाही नियमों का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं, जो भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए खतरा पैदा करता है।"

केंद्रीय मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह से पूछा गया था कि क्या कनाडा में भारतीय राजनयिक अधिकारियों पर साइबर सर्विलांस या अन्य किसी तरह की निगरानी की कोई घटना ज्ञात है। कीर्ति वर्धन सिंह ने जवाब में कहा, “हां, हाल ही में वैंकुवर में भारतीय वाणिज्य दूतों यानी कॉन्सुलर अधिकारियों को कनाडा के अधिकारियों ने सूचना दी थी कि उनपर ऑडियो-वीडियो सर्विलांस के ज़रिए निगरानी रखी जा रही थी और उनके निजी संदेशों को भी पढ़ा जा रहा था। यह निगरानी जारी है।”

विदेश राज्यमंत्री कीर्तिवर्धन सिंह ने कहा कि भारत सरकार ने इस मुद्दे पर नयी दिल्ली में कनाडाई उच्चायोग के समक्ष दो नवंबर 2024 को कड़ा विरोध दर्ज कराया क्योंकि ये कार्य सभी राजनयिक प्रावधानों का घोर उल्लंघन थे। उन्होंने कहा, "विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने मीडिया को अपनी साप्ताहिक ब्रीफिंग में भी कहा कि तकनीकी पहलुओं का हवाला देकर, कनाडा सरकार इस तथ्य को उचित नहीं ठहरा सकती कि वह उत्पीड़न कर रही है और धमका रही है। हमारे राजनयिक और वाणिज्य दूतावास के कर्मचारी पहले से ही उग्रवाद और हिंसा के माहौल में काम कर रहे हैं। कनाडा सरकार की यह कार्रवाई स्थिति को और खराब करती है और यह स्थापित राजनयिक मानदंडों और प्रथाओं के अनुरूप नहीं है।"

भारत के इन दो दुश्मनों को सबक सिखाएंगे डोनाल्ड ट्रंप,राष्‍ट्रपति बनते ही बड़ा फैसला लेने का ऐलान*
#donald_trump_to_impose_tariffs_on_canada_mexico_and_china अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद से ही कुछ देश खौफ में हैं। कहा जा रहा था कि डोनाल्ड ट्रंप इन देशों के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं। अमेरिका के राष्‍ट्रपति चुने गए ट्रंप भले ही 20 जनवरी को कुर्सी संभालेंगे लेकिन दुश्‍मनों की नींद उन्‍होंने अभी से उड़ा दी है। ट्रंप ने सोमवार को एक बड़ा ऐलान किया है। ताजा ऐलान भारत को दो दुश्मन देशों को लेकर है। ट्रंप ने कहा कि वह जनवरी में कार्यभार संभालने के पहले दिन ही ऐसे आदेशों पर हस्ताक्षर करेंगे, जिसके तहत मेक्सिको और कनाडा से आने वाले सभी सामानों पर 25 फीसदी आयात शुल्क लगाया जाएगा। ट्रंप का कहना है कि वो ऐसा तब तक करेंगे जब तक ये देश अपने अमेरिका में अवैध अप्रवासियों और फेंटेनाइल दवाओं के प्रवाह को बंद नहीं करते हैं। *अवैध अप्रवासी कई समस्‍याओं की जड़-ट्रंप* ट्रंप ने ट्रूंथ सोशल नेटवर्क पर एक पोस्ट में लिखा है कि 20 जनवरी को ऑफिस संभालते ही कनाडा, मेक्सिको और चीन के ख़िलाफ़ टैरिफ लगाने के लिए एक एग्जेक्युटिव ऑर्डर पर हस्ताक्षर करेंगे।ट्रंप ने कहा, ''सभी को पता है कि कनाडा और मेक्सिको से हज़ारों लोग अमेरिका में घुस रहे हैं। ये अपने साथ ड्रग्स ला रहे हैं और कई अपराधों को अंजाम दे रहे हैं। जिस स्तर पर ये सब हो रहा है, वैसा पहले कभी नहीं हुआ।'' *कैसे हैं ट्रंप-ट्रूडो के संबंध?* कनाडा और अमेरिका के बीच दुनिया का सबसे लंबा लैंड बॉर्डर है और दोनों देशों के बीच कारोबारी संबंध एक ट्रिलियन डॉलर से भी ज़्यादा का है। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने ट्रंप की जीत के तत्काल बाद ही बधाई दी थी लेकिन दोनों नेताओं के संबंधों में पर्याप्त तनाव रहा है। अमेरिका में कोई भी राष्ट्रपति कमान संभालने के बाद पारंपरिक रूप से पहला विदेशी दौरा कनाडा या मेक्सिको का करता था लेकिन ट्रंप ने 2017 में पहला विदेशी दौरा सऊदी अरब का किया था। यानी ट्रंप ने आते ही संदेश दे दिया था। जस्टिन ट्रूडो पर ट्रंप व्यक्तिगत हमले भी करते रहे हैं। ट्रूडो को ट्रंप ने 'घोर-वामपंथी पागल' कहा था। कनाडा की आर्थिक स्थिति पहले से ही चिंताजनक है और ट्रंप के टैरिफ से वहाँ की अर्थव्यवस्था के मंदी में जाने की आशंका बढ़ जाएगी। कनाडा का 75 प्रतिशत निर्यात अमेरिका में होता है. ऐसे में 25 प्रतिशत का टैरिफ कनाडा को भारी पड़ सकता है। ट्रूडो के लिए ये मुश्किलें तब खड़ी हो रही हैं, जब कनाडा में चुनाव सिर पर है। कई चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में बताया जा रहा है कि ट्रूडो चुनाव में कंजर्वेटिव पार्टी से हार सकते हैं। *चीन पर निशाना साधा* ट्रंप ने ट्रुथ पर एक दूसरे पोस्ट में चीन पर निशाना साधा, उन्होंने पोस्ट में लिखा, "मैंने चीन से संयुक्त राज्य अमेरिका में भेजी जा रही ड्रग्स, विशेष रूप से फेंटेनाइल के बारे में कई बार बातचीत की, लेकिन कोई असर नहीं हुआ। चीन के प्रतिनिधियों ने मुझसे कहा था कि वह इस काम में शामिल किसी भी ड्रग तस्कर को मौत की सजा देंगे, लेकिन अफसोस, उन्होंने कभी इसे लागू नहीं किया और ड्रग्स हमारे देश में मुख्य रूप से मेक्सिको के जरिए भारी मात्रा में आ रही हैं। जब तक यह नहीं रुकता, हम चीन पर उनके सभी उत्पादों पर अतिरिक्त 10 प्रतिशत टैरिफ लगाएंगे, जो संयुक्त राज्य अमेरिका में आयात हो रहे हैं, किसी भी अन्य टैरिफ के ऊपर होगा।" *टैरिफ डोनाल्ड ट्रंप का अहम एजेंडा* टैरिफ डोनाल्ड ट्रंप के आर्थिक एजेंडे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, रिपब्लिकन पार्टी के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति ने 5 नवम्बर की अपनी जीत से पहले चुनाव प्रचार के दौरान सहयोगियों और विरोधियों पर समान रूप से व्यापक शुल्क लगाने की कसम खाई थी। हालांकि, कई अर्थशास्त्रियों ने चेतावनी दी है कि टैरिफ से विकास को नुकसान पहुंचेगा और मुद्रास्फीति बढ़ेगी, क्योंकि टैरिफ का भुगतान मुख्य रूप से अमेरिका में सामान लाने वाले आयातकों द्वारा किया जाता है, जो अक्सर उन लागतों को उपभोक्ताओं पर डाल देते हैं।