आरक्षण को लेकर फिर मोदी सरकार पर हमलावर हुआ विपक्ष, अधिकारियों की भर्ती से जुड़े मामले में कौन बैक फुट पर और कौन किस पर क्या लगा रहा आरोप
नरेंद्र मोदी सरकार की लेटरल एंट्री मोड के ज़रिए 45 वरिष्ठ स्तर के अधिकारियों की भर्ती करने की नवीनतम पहल ने महत्वपूर्ण राजनीतिक विवाद को जन्म दिया है। विपक्षी नेताओं ने सरकार पर भारत में हाशिए पर पड़े समुदायों के अवसरों की रक्षा के लिए बनाई गई आरक्षण प्रणाली को कमज़ोर करने का आरोप लगाया है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस कदम की निंदा करते हुए आरोप लगाया है कि यह भाजपा द्वारा अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) को प्रमुख सरकारी पदों से बाहर करने का एक जानबूझकर किया गया प्रयास है। एक्स पर एक पोस्ट में, खड़गे ने भाजपा की आलोचना करते हुए कहा, "संविधान की धज्जियां उड़ाने वाली भाजपा ने आरक्षण पर दोहरा हमला किया है!"
खड़गे ने भाजपा पर भर्ती की ऐसी प्रथाओं को लागू करने का आरोप लगाया जो जानबूझकर एससी, एसटी और ओबीसी समुदायों को हाशिए पर धकेलती हैं। राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेता तेजस्वी यादव ने भी इसी तरह की चिंताओं को दोहराया और इस कदम को आरक्षण प्रणाली और डॉ. बीआर अंबेडकर द्वारा तैयार किए गए संविधान पर "गंदा मजाक" बताया। यादव ने तर्क दिया कि अगर ये पद पारंपरिक सिविल सेवा परीक्षा के माध्यम से भरे जाते, तो एक महत्वपूर्ण हिस्सा एससी, एसटी और ओबीसी उम्मीदवारों के लिए आरक्षित होता। यादव ने इन समुदायों को शासन में उनका वाजिब हिस्सा न देने के लिए सरकार की आलोचना की। उन्होंने एक्स पर लिखा, "पिछले चुनाव में प्रधानमंत्री और उनके सहयोगियों ने दावा किया था कि आरक्षण खत्म करके कोई भी उनके अधिकारों को नहीं छीन सकता। लेकिन उनकी आंखों के सामने ही वंचित और उपेक्षित वर्गों के अधिकारों का हनन किया जा रहा है।"
यह विवाद संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) द्वारा हाल ही में लेटरल एंट्री के माध्यम से भरे जाने वाले 45 पदों के लिए जारी विज्ञापन के बाद हुआ है। इसमें 10 संयुक्त सचिव और 35 निदेशक/उप सचिव शामिल हैं। ये पद, जो आमतौर पर IAS, IPS और IFoS जैसी अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों द्वारा भरे जाते हैं, अब लेटरल एंट्री के माध्यम से अनुबंध के आधार पर दिए जा रहे हैं। मोदी सरकार द्वारा 2018 में शुरू की गई लेटरल एंट्री पहल का उद्देश्य प्रशासनिक दक्षता बढ़ाने के इरादे से निजी क्षेत्र और अन्य गैर-सरकारी संगठनों से विशेषज्ञ प्रतिभाओं को सरकार में लाना है। इसकी शुरुआत से लेकर अब तक इस पद्धति के ज़रिए 63 नियुक्तियाँ की जा चुकी हैं, जिनमें से 35 निजी क्षेत्र से हैं।
अपने लक्ष्यों के बावजूद, लेटरल एंट्री सिस्टम को आरक्षण प्रणाली को दरकिनार करने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा है, जिसका उद्देश्य ऐतिहासिक अन्याय को दूर करना और हाशिए पर पड़े समुदायों के लिए सरकारी नौकरियों का एक प्रतिशत आरक्षित करके सामाजिक न्याय को बढ़ावा देना है। आलोचकों का तर्क है कि यह दृष्टिकोण भारतीय संविधान में निहित समान अवसर के सिद्धांतों को कमजोर करता है।






संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) ने 17 अगस्त, 2024 को एक विज्ञापन जारी किया, जिसमें केंद्र सरकार के 24 मंत्रालयों में संयुक्त सचिव, निदेशक और उप सचिव के 45 पदों पर लेटरल एंट्री के जरिए भर्ती कि लिए योग्य उम्मीदवारों से आवेदन मांगे गए है। जिसके बाद विपक्ष ने विरोध शुरू कर दिया है। यूपीएससी में लेटरल एंट्री को लेकर बहस ने बड़ा रूप ले लिया है। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी का कहना है कि सरकार का यह फैसला आरक्षण विरोधी है। वहीं, भाजपा का कहना है कि यूपीए सरकार के समय में ही लेटरल एंट्री का प्रस्ताव लाया जा चुका था।
सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता के आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में एक जूनियर डॉक्टर से कथित बलात्कार और हत्या के मामले में सुनवाई की।सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हाईकोर्ट कोलकाता रेप केस पर सुनवाई कर रहा है, लेकिन ये गंभीर मामला देशभर के स्वास्थ्यकर्मियों की सुरक्षा से भी जुड़ा है। सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि ये सिर्फ एक मर्डर का मामला नहीं है। हमें डॉक्टरों की सुरक्षा की चिंता है। इस दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने पीड़िता की पहचान उजागर करने को लेकर भी नाराजगी जाहिर की। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में सीबीआई से स्टेटस रिपोर्ट तलब की हैष साथ ही साथ कहा है कि हम पूरे केस की निगरानी करेंगे। सीबीआई की ओर से सुप्रीम कोर्ट में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए। वहीं, बंगाल डॉक्टर्स संघ समेत अन्य याचिकाकर्ता के वकील भी पेश हुए। सुनवाई के दौरान सीजेआई ने कहा कि हमने यह स्वत: संज्ञान इसलिए लिया है कि ये सिर्फ कोलकाता का एक भयावाह मामला नहीं है, बल्कि देश डॉक्टरों की सुरक्षा का मसला है। खासतौर पर महिला डॉक्टरों की सुरक्षा और उनके वर्किंग ऑवर का मसला है। इस पर एक राष्ट्रीय सहमति बननी चाहिए कि महिलाओं की सुरक्षा हो, उन्हें संविधान में समानता मिली है। यह सिर्फ इसलिए नहीं कि रेप का मसला है। यह बहुत ही चिंताजनक है और पीड़िता का नाम पूरी मीडिया में आ गया। तस्वीरें दिखा दी गई, यह चिंताजनक है। हमारा फैसला है कि रेप पीड़िता का नाम तक नहीं सार्वजनिक किया जाना है और यहां तस्वीरें तक दिखा दी गईं। सुप्रीम कोर्ट ने एलान किया कि इस घटना की जांच के लिए हम नेशनल टास्क फोर्स बनाने जा रहे हैं। यह टास्क फोर्स कोर्ट की निगरानी में काम करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में सीबीआई से स्टेटस रिपोर्ट भी तलब की। सीजेआई ने पश्चिम बंगाल की ओर से पेश हुए कपिल सिब्बल से कुछ सवाल किए हैं। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि इस मामले में एफआईआर भी देर से की गई है। सिब्बल ने इसे भी गलत बताया। इस पर चीफ जस्टिस ने पूछा कि क्या एफआईआर में मर्डर कहा गया। इसके जवाब में वकील ने कहा कि अननेचुरल डेथ का जिक्र किया गया। फिर चीफ जस्टिस ने पूछा कि जब मामले को आत्महत्या बताया जा रहा था तो सबसे बड़ा सवाल ये है कि प्रिंसिपल उस वक्त क्या कर रहे थे। एफआईआर शाम में दर्ज करवाई जाती है।
Aug 20 2024, 14:50
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