भारत के साथ-साथ विदेशों में भी रहने वाले लोग भी मलिहाबादी दशहरी के दिवाने , बस केवल आम के लिए विदेशों में प्रसिद्ध है मलिहाबाद
शहजाद अहमद खान ,मलिहाबाद, लखनऊ। दशहरी आम ने मलिहाबाद देश ही नहीं विदेशों में भी अपनी अलग पहचान बना ली है। मलिहाबाद की दशहरी अब विदेशों में भी अपनी छटा बिखेर रही है। साथ ही डिमांड पर सऊदी अरब, दुबई, ओमान, कुवैत, लंदन, इटली, जापान, जर्मनी, स्वीडन, आस्ट्रेलिया सहित मास्को के लिये जहाज के माध्यम से भेजी जा रही है।
अगर एक ही जगह आपकी मुलाक़ात सचिन तेंदुलकर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, योगी आदित्यनाथ, अखिलेश यादव, अमिताभ बच्चन और ऐश्वर्या राय जैसी मशहूर हस्तियों से हो जाए वो भी बिना किसी रोक टोक तो कैसा लगेगा ? शायद यकीन करना मुश्किल हो, लेकिन ये मुमकिन है। जिसके लिये आपको मलिहाबाद स्थित अब्दुल्ला नर्सरी आना पड़ेगा। जो लखनऊ से महज 35 किलोमीटर की दूरी पर पश्चिम दिशा में स्थित है। यह कारनामा नगर पंचायत के मोहल्ला मिर्ज़ागंज निवासी कलीम उल्ला खाँ ने किया है। जिन्होंने कई मशहूर हस्तियों के नाम आम की किस्में विकसित की हैं। आम के ऐसे कारनामे करने के लिये उन्हें पद्मश्री अवॉर्ड से भी नवाजा जा चुका है।
26 हजार मीट्रिक टन आम विदेश हुआ था निर्यात
मैंगो पैक हाउस से विगत वर्ष दुबई, सऊदी अरब, ओमान, कुवैत, बहरीन, लंदन व आस्ट्रेलिया करीब 26 हजार मीट्रिक टन दशहरी, चौंसा व लंगड़ा प्रजाति के आम का निर्यात किया गया था। मैंगो पैक हाउस पर मौजूद अधिकारी संदीप कुमार ने बताया कि उनके संस्थान से विगत वर्ष आम्रपाली व मल्लिका आम सैंपल के तौर पर रूस के मास्को भेजा गया था। उन्होंने बताया कि 400 ग्राम से अधिक वजन वाला आम 40-45 रुपये के रेट से खरीदा गया था। जहाज के माध्यम से भेजा गया था। इस बार उक्त देशों से मांग आने लगी है। 15 जून शनिवार को आम की पहली खेप एक हजार 500 किलोग्राम जर्मनी के लिये हवाई जहाज से भेजी गयी थी। आम के बड़े बड़े आढ़तियों ने बताया कि विगत वर्ष अच्छी फसल थी जिसके चलते करीब दो लाख मीट्रिक टन आम का उत्पादन हुआ था। लेकिन इस वर्ष आम की फसल बहुत ही कम है। आम के बागों में 30 प्रतिशत ही बागों में आम दिखाई दें रहा है। इसलिये इस वर्ष आम करीब 60-70 लाख मीट्रिक टन होने की सम्भावना है।
एक ही पेड़ में देखने को मिल जाएंगे 350 प्रजाति के आम
अब्दुल्ला नर्सरी में एक ऐसा पेड़ लगा है जिस पेड़ में 350 से अधिक किस्मों के आम के फल लगे मिल जाएँगे। यह कारनामा कम पढ़े लिखे 84 साल की उम्र में कलीम उल्ला खाँ ने किया है। वह अधिक समय अपनी प्रयोगशाला में बिताते है। उन्होंने बताया कि आम का भविष्य मलिहाबाद में कम हो रहा है, हमारे बचपन में यहाँ पर दवाओं का कोई ज़िक्र नहीं था, सब पेड़ ज़मीन में लगे थे। आपस में नहीं लगे थे। इस कदर फलते थे कि मिसाल दी जाती थी कि फला की बाग में पत्ते कम हैं और आम ज़्यादा है। लेकिन अब ऐसा नहीं रहा है। बागों में पेड़ एक दूसरे से सटे है। जिससे फसल दिन पर दिन कम होती जा रही है।
इन प्रजातियों की भी मंड़ी में रहेगी दरकार
दशहरी के लिये मलिहाबाद प्रसिध्द है। लेकिन मलिहाबाद में इसके अलावा भी कई ऐसी प्रजातियों के आम है। जिनकी मंड़ी में दरकार रहती है। इन आमों में चौंसा, लखनऊ सफेदा, लंगड़ा, रंगीले आम गुलाब खाश, टामी एटकिन्स, सनसेशन आदि, आम्रपाली, मल्लिका, तैमूरिया, बंबई, जर्दाअमीन सहित दर्जनों आमों की भी मंडी में मांग रहती है।
प्रति वर्ष सैकड़ों बीघा में लगे बागों की हो रही कटान
फलपट्टी क्षेत्र मलिहाबाद के 75 प्रतिशत भू-भाग पर आम के बाग लहलहा रहे है। लेकिन आम की पैदावार व मूल्यों में लगातार हो रही गिरावट के चलते आम बागवान प्रतिवर्ष सैकड़ों बीघे आम के बागों की कटान कराकर खेती करने के साथ रोजगार करने लगे है।
Jun 20 2024, 15:31