नालंदा: माँ शीतला के दरबार में अष्टमी को उमड़ेगा जनसैलाब, नहीं जलेगें दर्जनों गांव में चूल्हे
नालंदा: बिहारशरीफ मुख्यालय से महज 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है मघड़ा गांव। इस गांव की पहचान सिद्धपीठ मां शीतला के रूप में की जाती है।
शीतला माता के प्रति लोगों की आस्था जुड़ी हुई है। यह मंदिर प्राचीन काल से ही आस्था का केंद्र रहा है। यहां कभी गुप्त काल के शासक चंद्रगुप्त द्वितीय के समय चीनी यात्री ह्वेनसांग ने पूजा की थी। उन्होंने अपनी रचना में भी शीतला माता मंदिर की चर्चा की है। मंगलवार से शीतलाष्टमी मेला का आयोजन किया जाएगा ।जिसको लेकर मघडा में माता शीतला के मंदिर में पूजा अर्चना के लिए श्रद्धालुओं का आना शुरू हो गया है।
शीतलाष्टमी मेला के दिन मघड़ा व इसके आसपास के दर्जनों गांवों में चूल्हा नहीं जलता है। लोग एक दिन पूर्व ही खाना बनाकर दूसरे दिन प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। शीतला मंदिर के पुजारी ने बताया कि चैत्र कृष्ण पक्ष अष्टमी के दिन यहाँ देश के कोने कोने से लोग पूजा अर्चना करने आते हैं । व्रत की विशेषता यह कि इसमें शीतला देवी को भोग लगाने वाला पदार्थ एक दिन पूर्व ही बना लिया जाता है। वासी भोग लगाने की परंपरा है। चैत्र अष्टी के मौके पर मां शीतला की पूजा-अर्चना के लिए सूबे के विभिन्न जिलों के अलावा झारखंड, बंगाल और उत्तर प्रदेश से भी काफी संख्या में श्रद्धालुओं आते हैं ।
मघड़ा गांव में काफी पुराना मिट्ठी कुआं है। इसी कुएं के पानी से सप्तमी की शाम में बसिऔरा के लिए भोजन तैयार किया जाता है। प्रसाद में अरवा चावल, चने की दाल, सब्जियां, पुआ, पकवान आदि बनाया जाता है।
खास बात यह कि मां शीतला मंदिर में दिन में दीपक नहीं जलते हैं। धूप, हुमाद व अगरबत्ती जलाना भी मना है। मां शीतला मंदिर के पास ही बड़ा सा तालाब है। मां के दर्शन को आने वाले श्रद्धालु तालाब में स्नान करने के बाद ही पूजा-अर्चना करते हैं। तालाब में स्नान करने से चेचक रोग से निजात मिल जाती है। शरीर में जलन की शिकायत है तो उससे भी राहत मिलती है।
Mar 31 2024, 10:42