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सीट शेयरिंग पर कांग्रेस-आप के बीच बनी बात! बैठक को लेकर बोले मुकुल वासनिक

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लोकसभा चुनाव से पहले सीटों के बंटवारे को लेकर दिल्ली में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच बैठक हुई। बैठक में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने दिल्ली, पंजाब के साथ ही हरियाणा और गुजरात में सीटों के बंटवारें पर चर्चा की। दोनों दलों की बीच यह बैठक कांग्रेस नेता मुकुल वासनिक के निवास पर हुई। दोनों दलों के नेताओं की बीच बैठक करीब ढाई घंटे तक चली।बैठक में आम आदमी पार्टी की तरफ से दिल्ली सरकार में मंत्री आतिशी और संदीप पाठक शामिल हुए।बैठक के बाद मुकुल वासनिक ने कहा कि आम आदमी पार्टी के साथ अच्छे माहौल में बात हुई, आप पार्टी इंडिया गठबंधन का अटूट हिस्सा है। सीट शेयरिंग के मुद्दे पर जल्द ही फैसला लेंगे।

कांग्रेस की अलायंस कमेटी के प्रमुख मुकुल वासनिक ने आगे कहा, ये चर्चा आगे भी चलेगी। कुछ दिनों में हम फिर मिलेंगे। जिसमें हम सीट शेयरिंग को अंतिम रूप देंगे। क्या चर्चा हुई उस पर टिप्पणी नहीं कर सकते। थोड़ा इंतजार करिये, पूरी जानकरी देंगे। दोनों ही पार्टी इस गठबंधन का महत्वपूर्ण हिस्सा है।बीजेपी को कड़ी टक्कर देंगे।

सूत्रों के मुताबिक भले ही साझा तौर पर चुनाव लड़ने को लेकर कांग्रेस और आप ने अभी कोई घोषणा नहीं की हो लेकिन माना जा रहा है कि पंजाब और दिल्ली में दोनों पार्टियां मिलकर चुनाव लड़ेंगी। इसके साथ ही गुजरात में भी कुछ सीटें आम पार्टी के लिए छोड़ी जा सकती हैं। किन सीटों पर कौन सा दल चुनाव लड़ेगा, इसका ऐलान अगले कुछ दिनों में हो सकता है।इसके साथ ही साझा चुनाव प्रचार अभियान की रूपरेखा भी बन सकती है।

सूत्रों के मुताबिक पंजाब में कांग्रेस 6 और दिल्ली में तीन सीटों की मांग कर रही है।ऐसे संकेत मिले हैं कि आम आदमी पार्टी गुजरात, गोवा, मध्य प्रदेश और हरियाणा जैसे राज्यों में भी कांग्रेस से सीटें मांग सकती है। ऐसे में देखना होगा कि आप और कांग्रेस कितनी-कितनी सीटों पर चुनाव लड़ती है।

'स्पष्ट अक्षरों में दवाएं लिखें डॉक्टर, टेढ़ी-मेढ़ी लिखावट अब नहीं चलेगी..' ओडिशा हाई कोर्ट का आदेश

ओडिशा उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि वह डॉक्टरों को पढ़ने योग्य लिखावट या बड़े अक्षरों में दवाएं लिखने के लिए बाध्य करे। न्यायमूर्ति एसके पाणिग्रही की अदालत ने ढेंकनाल जिले के हिंडोल के रसानंद भोई द्वारा लाए गए एक मामले की सुनवाई करते हुए यह आदेश जारी किया है। भोई द्वारा याचिका 25 सितंबर 2023 को दायर की गई थी। याचिका रसानंद के बड़े बेटे सौभाग्य रंजन भोई को अनुग्रह अनुदान देने से संबंधित थी, जिनकी सर्पदंश से मृत्यु हो गई थी।

न्यायमूर्ति पाणिग्रही ने मुख्य सचिव से राज्य के सरकारी और निजी चिकित्सा संस्थानों और अस्पतालों को एक परिपत्र भेजने को कहा, जिसमें डॉक्टरों को अपने पर्चे में दवाओं के नाम स्पष्ट रूप से या बड़े अक्षरों में लिखने के लिए कहा जाए। अदालत ने कहा कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मामले में भी इसका पालन किया जाना चाहिए। जस्टिस पाणिग्रही ने कहा कि डॉ विश्वरंजन पति द्वारा सौवग्य का पोस्टमॉर्टम करने के बाद लिखी गई रिपोर्ट पढ़ने योग्य नहीं है। माननीय न्यायाधीश ने कहा कि इसे पढ़ने के सामान्य क्रम में तब तक नहीं समझा जा सकता जब तक कि स्वयं रिपोर्ट के लेखक या हस्तलेखन विशेषज्ञ को इस तरह के विवरण की जांच करने को न कहा जाए।

उन्होंने आगे कहा कि, 'कई मामलों में, पोस्टमार्टम रिपोर्ट लिखते समय अधिकांश डॉक्टरों का आकस्मिक दृष्टिकोण मेडिको-लीगल दस्तावेजों की समझ को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है और न्यायिक प्रणाली को उन पत्रों को पढ़ने और एक निश्चित निष्कर्ष पर पहुंचने में बहुत कठिनाई होती है।" जस्टिस पाणिग्रही ने आगे कहा कि, 'यह न्यायालय ओडिशा राज्य के मुख्य सचिव को निर्देश देता है कि वह राज्य के सभी डॉक्टरों को पोस्टमार्टम रिपोर्ट और नुस्खे बड़े अक्षरों में या सुपाठ्य लिखावट में लिखने का निर्देश जारी करें। ऐसी टेढ़ी-मेढ़ी लिखावट लिखने की प्रवृत्ति, जिसे कोई आम आदमी या न्यायिक अधिकारी नहीं पढ़ सकते, डॉक्टरों के बीच एक फैशन बन गया है।'

उच्च न्यायालय ने मुख्य सचिव को सभी चिकित्सा केंद्रों, निजी क्लीनिकों, मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों को एक परिपत्र भेजने का निर्देश दिया, जिसमें उन्हें दवाएं लिखते समय या मेडिको-लीगल रिपोर्ट जमा करते समय अच्छी लिखावट या मुद्रित रूप में लिखने का निर्देश दिया जाए। इस बीच, न्यायालय ने कोविड-19 के दौरान या आपात स्थिति के दौरान चिकित्सा पेशेवरों द्वारा प्रदान की गई सेवाओं की भी सराहना की।

कोर्ट ने कहा कि, "यह न्यायालय इस तथ्य से भी अवगत है कि चिकित्सा पेशेवरों की ड्यूटी शेड्यूल बहुत व्यस्त और कठिन है, और आराम से कुछ लिखने के लिए समय निकालना अक्सर निर्धारित समय के भीतर अधिक से अधिक रोगियों की जांच करने की उनकी क्षमता में बाधा उत्पन्न करता है।" इसमें कहा गया है, "आम तौर पर यह महसूस किया जाता है कि मेडिकल नुस्खे और मेडिकोलीगल दस्तावेज खराब लिखावट में लिखे जाते हैं जो न्यायिक प्रणाली में साक्ष्य की सराहना की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं।"

आइए, देश के अंतरिक्ष कार्यक्रमों में साथ मिलकर काम करें..', IIT बॉम्बे में स्टूडेंट्स से बोले ISRO चीफ एस सोमनाथ

हाल ही में, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के अध्यक्ष, एस सोमनाथ ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, बॉम्बे (IIT Bombay) द्वारा आयोजित वार्षिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी उत्सव, टेकफेस्ट के दौरान छात्रों की एक सभा को संबोधित किया। अपने संबोधन के दौरान उन्होंने छात्रों से भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से योगदान देने और इसरो में शामिल होने की अपील की।

रिपोर्ट के अनुसार, ISRO चीफ सोमनाथ ने कहा कि, "मुझे यह देखकर खुशी होगी कि अधिक से अधिक IITan अंतरिक्ष कार्यक्रम में शामिल होंगे और देश की अंतरिक्ष परियोजनाओं के निर्माण में भाग लेंगे।" जानकारी के मुताबिक, अपने भाषण के दौरान उन्होंने ISRO की भविष्य की परियोजनाओं पर चर्चा की, जिसमें मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम गगनयान, चंद्रमा पर मनुष्यों को भेजने के मिशन और चंद्रमा आधारित अर्थव्यवस्था का निर्माण शामिल है, जिसे इसरो ने 2047 तक निष्पादित करने का लक्ष्य रखा है। उन्होंने 2035 तक 'भारत अंतरिक्ष स्टेशन' (भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन) के प्रक्षेपण का भी उल्लेख किया, जिसका प्रारंभिक चरण 2028 निर्धारित किया गया था।

छात्रों को उन्होंने बताया कि ISRO भारत में विभिन्न संस्थानों के साथ विशेष रूप से सामग्री विज्ञान और रोबोटिक्स जैसे क्षेत्रों में संभावित अनुसंधान अवसरों की तलाश करेगा। उन्होंने विशेष रूप से IIT बॉम्बे से कक्षा में सेवाओं के लिए रोबोटिक गतिविधियों में अपनी विशेषज्ञता का योगदान देने का आह्वान किया। अपने भाषण के बाद उन्होंने छात्रों द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब दिये। उन्होंने इस चिंता का समाधान किया कि कितने छात्र आकर्षक अंतरराष्ट्रीय नौकरियों का विकल्प चुनते हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, उन्होंने एक उदाहरण का जिक्र किया जब उनकी टीम इंजीनियरों की भर्ती के लिए एक IIT में गई थी, लेकिन प्रेजेंटेशन में वेतन संरचना प्रदर्शित करने पर 60 फीसदी उम्मीदवार बाहर चले गए। उन्होंने देश के अंतरिक्ष प्रयासों में योगदान के महत्व पर जोर देते हुए छात्रों को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के लिए काम करने पर विचार करने के लिए प्रोत्साहित किया।

'सिर्फ निलंबन काफी नहीं, मंत्रियों को बर्खास्त करो..', मालदीव को भारतीय विदेश मंत्रालय का सख्त जवाब, हल ढूंढ़ने की जिम्मेदारी वहां के राष्ट्रपति

पीएम नरेंद्र मोदी और भारत पर की गई विवादित टिप्पणी पर भारत अब मालदीव के खिलाफ कड़ा रुख अपना रहा है। सोमवार को मालदीव के उच्चायुक्त को भारत सरकार ने तलब किया और सख्त कार्रवाई की मांग की है। भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि इस मामले में हल खोजने की जिम्मेदारी राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू की है।

एक रिपोर्ट के अनुसार, उच्चायुक्त इब्राहिम शाहीब से भारत ने स्पष्ट कह दिया है कि मालदीव ने द्विपक्षीय संबंध खराब कर लिए हैं और अब इसे सुधरने की जिम्मेदारी मुइज्जू की होगी। भारत ने यह भी कहा है कि तीनों मंत्रियों का निलंबन पर्याप्त करवाई नहीं है, उन्हें बर्खास्त किया जाए। विदेश मंत्रालय ने उन्हें अपना दंगा अधिनियम भी पढ़ाया। बताया जा रहा है कि उच्चायुक्त को लेकर विदेश मंत्रालय ने सख्त रुख अख्त्यार कर लिया है और सिर्फ 4 मिनट में ही उन्हें दफ्तर में फटकार लगाकर बाहर कर दिया गया।

वहीं, भारत ने इस मामले में अब तक राष्ट्रपति मुइज्जू की चुप्पी पर भी नाराजगी जताई है। गौर करने वाली बात तो ये है कि यह घटनाक्रम ऐसे वक़्त पर सामने आया है, जब मुइज्जू फंड के लिए चीन की यात्रा पहुंचे हैं। वह राष्ट्रपति शी जिनपिंग से फंड मांगेंगे। भारतीय विदेश मंत्रालय को यह भी लग रहा है कि कहीं चीन द्वारा मालदीव के मंत्रियों को जानबूझकर यह तनाव पैदा करने को तो नहीं कहा गया था। उधर, मालदीव के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि मंत्रियों की ओर से दिया गए बयान की जानकारी सरकार को है। साथ ही उनका कहना है कि ये मालदीव के नहीं, बल्कि मंत्रियों के व्यक्तिगत विचार हैं।

गौरतलब है कि, पीएम मोदी हाल ही में लक्षद्वीप दौरे पर गए थे। जिसके बाद मालदीव सरकार में मंत्री रहे मालशा शरीफ, मरियम शिउना और अब्दुल्ला महजूम माजिद ने उनकी यात्रा पर विवादित टिप्पणियां कर दी थीं। इसके बाद पहले तो सोशल मीडिया पर मालदीव के विरोध में आवाज़ उठना शुरू हुई और टॉप ट्रेंड करने लगा। इसके बाद भारत सरकार ने भी कड़ी आपत्ति जताई और उच्चायुक्त को तलब कर अपना विरोध दर्ज कराया। मालदीव में लाखों भारतीय रहते हैं, साथ ही साल भर में लगभग 20 लाख भारतीय वहां छुट्टियां मनाने जाते हैं, जिससे उनका रेवेन्यू बढ़ता है। अगर भारत में इसका विरोध जोर पकड़ता है, तो मालदीव को बड़ा झटका लग सकता है।

एमपी के ग्वालियर में साले की हत्या के बाद जीजा ने लाश के साथ की बर्बरता, MP से सामने आया दिल दहला देने वाला मामला

मध्य प्रदेश के ग्वालियर से दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है। यहां एक व्यक्ति ने संपत्ति के लालच में अपनी पत्नी के भाई का क़त्ल कर दिया। हत्या को हादसा दिखाने के लिए साले की डेडबॉडी हाईवे पर ले गया तथा गाड़ी से टक्कर मारी। दरअसल, 5 जनवरी को आगरा-झांसी हाईवे पर बेहटा के पास एक शख्स का शव मिला था। खबर प्राप्त होने पर पुलिस मौके पर पहुंची तो देखा मृतक के गले पर निशान और सिर में चोट थी। उसकी पहचान उपेंद्र यादव के तौर पर हुई। जो कि भिंड जिले का रहने वाला था।

पुलिस ने FIR दर्ज करके पोस्टमार्टम करवाया। तत्पश्चात, तहकीकात शुरू हुई तो मृतक के जीजा भूरे उर्फ संजय की गतिविधि संदिग्ध लगी। संदेह के आधार पर पुलिस ने उसको गिरफ्त में लिया तथा पूछताछ की। शुरुआत में संजय पुलिस को बरगलाता रहा। लेकिन, कड़ाई से पूछताछ करने पर उसने अपना जुर्म कुबूल कर लिया। उसने बताया कि अपने साथी चालीराजा एवं उमर के साथ मिलकर साले उपेंद्र को प्लॉट दिखाने के बहाने बड़ा गांव क्षेत्र में बुलाया। यहां से गाड़ी में बैठाकर बेहटा क्षेत्र में ले गया तथा रस्सी से गला घोंटकर क़त्ल कर दिया।

हत्या को दुर्घटना दिखाने के लिए गाड़ी से लाश को टक्कर मारी थी। इसके कारण सिर में चोट आई थी। हत्या के पीछे का कारण पूछने पर उसने बताया कि उपेंद्र और संजय दोनों टेंट का व्यवसाय करते थे। उपेंद्र अक्सर संजय को गालियां देता था। इस बात से संजय खुन्नस रखने लगा। इसके अतिरिक्त उपेंद्र के पिता की 15 वर्ष पहले हत्या हो गई थी। उपेंद्र घर में इकलौता बेटा था। सारी संपत्ति उसके नाम थी। वो प्रॉपर्टी का काम भी करता था। उसकी प्रॉपर्टी के लालच में हत्या कर दी। पुलिस ने संजय एवं उसके दोनों साथियों को गिरफ्तार कर लिया है। इस मामले में SP ग्वालियर राजेश सिंह ने कहा कि दोषियों को पकड़ लिया गया है तथा उनसे पूछताछ की जा रही है।

पढ़िए, सोशल मीडिया पर #BoycottMaldives के ट्रैंड के बाद ट्रैवल एजेंसी ने कह डाली ये बात, 20-25 दिन में स्पष्ट होगी स्थिति

लक्षद्वीप और मालदीव इन दिनों भारत में चर्चा का मुख्य विषय बन चुके है। पीएम नरेंद्र मोदी के लक्षद्वीप दौरे के उपरांत से देश में मालदीव का बहिष्कार भी किया जा रहा है। सोशल मीडिया पर कई लोगों ने दावा किया है कि उन्होंने मालदीव में नियोजित अपनी छुट्टियां भी रद्द कर दी गई है। वहीं, टूर ऑपरेटर्स ने भी बड़ी संख्या में छुट्टियां रद्द करने की तैयारी भी शुरू की जा चुकी है। बता दें, छुट्टियां मनाने के लिए मालदीव भारतीयों की पसंदीदा स्थानों में से एक है।

20-25 दिन बाद साफ होगा असर

इंडियन एसोसिएशन ऑफ टूर ऑपरेटर्स का अनुमान है कि सोशल मीडिया पर मालदीव के विरुद्ध बढ़ रहे विरोध का नतीजा अगले 20-25 दिनों के भीतर स्पष्ट हो सकता है। उनका बोलना है कि अगर कोई व्यक्ति पहले से ही हवाई जहाज और होटल बुक कर चुका है तो वह इसे रद्द नहीं करने वाला है। हालांकि, उनका इस बारें में बोलना है कि बीते कुछ दिनों से मालदीव के लिए कोई नई पूछताछ नहीं हुई है। टूर कंपनी मेक माई ट्रिप के संस्थापक दीप कालरा ने जानकारी दी है कि भारतीयों ने फिलहाल मालदीव में पूर्व नियोजित छुट्टियों को रद्द नहीं किया है। सोशल मीडिया पर चले रहे ट्रेंड का असर आने वाले कुछ दिनों में ही साफ होगा। वहीं, एसोसिएशन के अध्यक्ष राजीव मेहरा का कहना है कि उम्मीद है कि लोग जिन्होंने हवाई जहाज और होटलों का भुगतान कर दिया है, वह इन यात्राओं को रद्द नहीं करने वाले है। हालांकि, नई बुकिंग की उम्मीद कम है।

लक्षद्वीप में यात्रा को बढ़ावा देने के लिए लाएंगे ऑफर

खबरों का कहना है कि ऑनलाइन टूर कंपनी ईज माई ट्रिप ने प्रधानमंत्री मोदी की लक्षद्वीप यात्रा और मालदीव के मंत्रियों की टिप्पणियों के कारण मालदीव की सभी उड़ानों को निलंबित भी किया जा चुका है। कंपनी के सह-संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) निशांत पिट्टी ने एक्स पर पोस्ट कर बोला है कि हम देश के साथ खड़े हैं। हमने लक्षद्वीप की यात्रा के लिए अभियान शुरू किया है। उन्होंने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा है कि लक्षद्वीप का पानी और समुद्री तट मालदीव जितने ही अच्छे हैं। हम लक्षद्वीप में यात्रा को बढ़ावा देने के लिए विशेष ऑफर लेकर आने वाले है।

भारतीयों की पहली पसंद है मालदीव

दिल्ली के एक टूर ऑपरेटर इस बोला है कि मालदीव भारतीयों के बीच बहुत लोकप्रिय है। लेकिन सोशल मीडिया पर जारी वाद-विवाद के कारण यात्राओं पर फर्क पड़ता हुआ नजर आ रहा है। आंकड़ों की माने तो, वर्ष 2023 में मालदीव आए 17.57 लाख पर्यटकों में से सबसे ज्यादा 2.09 लाख भारतीय ही थे। इसके उपरांत रूस और चीन हैं। हिंद महासागर में एशिया की मुख्य भूमि से तकरीबन 750 किमी दक्षिण में मौजूद मालदीव की आबादी 5.15 लाख है। यहां 1,190 द्वीप हैं, इनमें 190 ही रहने लायक हैं। सरकार को 90% आय आयातित चीजों और पर्यटन उद्योग से हो रही है।

राजस्थान के करणपुर में बीजेपी का दांव पड़ा उल्टा, मंत्री बनने के 10 दिन बाद ही चुनाव हार गए सुरेंद्र टीटी

#sri_ganganagar_srikaranpur_assembly_election

आज से ठीक 10 दिन पहले बीजेपी ने राजस्थान सरकार में सुरेंद्र पाल सिंह टीटी को मंत्री बनाया। तब बीजेपी के इस फैसले ने सभी को इसलिए चौंका दिया था, क्योंकि सुरेंद्र पाल बिना चुनाव लड़े ही मंत्री बन गए थे। हालांकि, उन्हें मंत्रालय आवंटित नहीं किया गया था।बीजेपी ने करणपुर सीट पर जीत का परचम फहराने के लिए सुरेंद्र सिंह को विधायक बनने से पहले मंत्री बनाकर भजनलाल शर्मा कैबिनेट में शामिल कर लिया था।हालांकि यहां बीजेपी का दांव उल्टा पड़ गया।राजस्थान में हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में स्पष्ट बहुमत पाने वाली बीजेपी श्रीगंगानगर जिले की श्रीकरणपुर विधानसभा चुनाव में मात खा गई।

पूर्व में कांग्रेस के कब्जे वाली श्रीकरणपुर विधानसभा सीट पर कब्जा करने के लिए बीजेपी ने यहां से चुनाव लड़ रहे पार्टी के उम्मीदवार सुरेन्द्रपाल सिंह टीटी को चुनाव जीतने से पहले ही मंत्री बना दिया था। मंत्रिमंडल विस्तार में बीजेपी ने यह बड़ा दांव खेला था। लेकिन वह सफल नहीं हो पाया। यहां से कांग्रेस प्रत्याशी रूपेन्द्र सिंह कुन्नर चुनाव जीत गए हैं। उन्होंने बीजेपी प्रत्याशी सुरेन्द्रपाल सिंह टीटी को करीब 11 हजार से अधिक मतों से चुनाव हरा दिया है।कांग्रेस प्रत्याशी रूपेन्द्र सिंह को अपने पिता के निधन की सहानुभूति का लाभ मिला, जो बीजेपी के मंत्री दांव पर भारी पड़ गई।

श्रीगंगानगर की करणपुर सीट से कांग्रेस उम्मीदवार रहे गुरमीत कुन्नर की मृत्यु के बाद इस सीट पर चुनाव रद्द कर दिया गया था। चुनाव आयोग ने बाद में घोषणा की थी कि 5 जनवरी को करणपुर सीट मतदान होगा। कांग्रेस ने गुरमीत कुन्नर के बेटे रूपिंदर सिंह कुन्नर को प्रत्याशी बनाया, तो बीजेपी ने अपने पहले वाले कैंडिडेट सुरेंद्र सिंह टीटी पर ही भरोसा जताया। भजनलाल शर्मा के अगुवाई में बीजेपी की सरकार बनी और कैबिनेट का गठन हुआ तो पार्टी कैंडिडेट सुरेंद्र सिंह टीटी को मंत्री बनाने का दांव चला ताकि चुनाव में सियासी लाभ पार्टी को मिल सके। लेकिन बीजेपी का दावं उल्टा पड़ गया है।

दरअसल इस सीट पर पूर्व में कांग्रेस ने अपने तत्कालीन विधायक गुरमीत सिंह को चुनाव मैदान में उतारा था। लेकिन 25 नवंबर 2024 को होने वाले मतदान से पहले गुरमित सिंह कुन्नर का लंबी बीमारी के चलते निधन हो गया था। लिहाजा चुनाव आयोग ने वहां मतदान टाल दिया था। 25 नवंबर को राजस्थान की 200 विधानसभा सीटों में से 199 सीटों पर ही मतदान हुआ था। उनमें से 115 सीटें बीजेपी और 69 सीटें कांग्रेस ने जीती थी। शेष पर सीटों पर अन्य पार्टियों के प्रत्याशी और निर्दलीय विजयी हुए थे।

बिलकिस बानो केसःओवैसी ने दोषियों की मदद के लिए पीएम मोदी से की माफी मांगने की मांग, जानें सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर किसने क्या कहा

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बिलकिस बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दिए अपने फैसले में गुजरात सरकार के फैसले को पलटते हुए 11 दोषियों की रिहाई रद्द कर दी। जिसके बाद दोषियों को फिर से जेल जाना होगा। सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन ;(एआईएमआईएम) चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि बीजेपी सरकार को बिलकिस बानो से माफी मांगनी चाहिए। सीपीआई(एम) नेता बृंदा करात ने फैसले पर राहत जताते हुए कहा कि कम से कम, अभी कुछ न्याय की उम्मीद बची हुई है। वहीं प्रियंका गांधी ने भाजपा पर निशाना साधा। 

असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि उम्मीद करता हूं कि आने वाले दिनों में कोई भी सरकार किसी बलात्कारी को ऐसे नहीं छोड़ेगी। बिलकिस के रेप, उनकी बेटी-मां और दूसरी महिलाओं की हत्या में उस वक्त की बीजेपी सरकार ने अपराधियों का साथ दिया था। बिलकिस का रेप हुआ, मासूम बच्ची का कत्ल हुआ। बिलकिस ने ये लड़ाई खुद लड़ी। उस समय जब सीएम मोदी थे, बड़ा ही खराब माहौल था। नरेंद्र मोदी सरकार को बिलकिस बानो से माफी मांगनी चाहिए। बीजेपी ने दोषियों को छोड़ा था। बिलकिस बानो को इंसाफ मिलेगा।

वहीं, प्रियंका गांधी ने सोशल मीडिया पर साझा किए एक पोस्ट में लिखा कि 'अंततः न्याय की जीत हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात दंगों के दौरान गैंगरेप की शिकार बिलकिस बानो के आरोपियों की रिहाई रद्द कर दी है। इस आदेश से भारतीय जनता पार्टी की महिला विरोधी नीतियों पर पड़ा पर्दा हट गया है। इस आदेश के बाद जनता का न्याय व्यवस्था के प्रति विश्वास मजबूत होगा। बहादुरी के साथ अपनी लड़ाई को जारी रखने के लिए बिलकिस बानो को बधाई।'

इधर, सीपीआई (एम) की वरिष्ठ नेता बृंदा करात ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि 'हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हैं। कम से कम यह फैसला न्याय की कुछ उम्मीद जगाता है। खासकर, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और गुजरात सरकार की क्षमताओं पर जो टिप्पणी की। यह गुजरात सरकार ही थी, जिसने दस्तावेज स्वीकार किए थे। कोर्ट ने इसे फर्जी माना है।

बिलकिस बानो के दोषी फिर जाएंगे जेल, सुप्रीम कोर्ट ने पलटा गुजरात सरकार का फैसला, सजा में मिली छूट के फैसले को किया रद्द

#bilkis_bano_case_supreme_court_nullifies_its_2022_order

बिलकिस बानो के दोषियों को फिर से सलाखों के पीछे जाना होगा। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में एक बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात में 2002 के दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप और उनके परिवार के 7 लोगों की हत्या के मामले में 11 दोषियों को सजा से मिली छूट के फैसले को रद्द कर दिया है।सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि एक महिला सम्मान की पात्र है। चाहे उसे समाज में कितना भी नीचा क्यों न समझा जाए या वह किसी भी धर्म को मानती हो।सुप्रीम कोर्ट ने कहा, यह इस अदालत का कर्तव्य है कि वह मनमाने आदेशों को जल्द से जल्द सही करे और जनता के विश्वास की नींव को बरकरार रखे। इतना ही नहीं सर्वोच्च अदालत ने सभी 11 दोषियों को दो हफ्ते के भीतर सरेंडर करने को कहा है।

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच ने 11 दोषियों को दी गई छूट को इस आधार पर खारिज कर दिया कि गुजरात सरकार के पास सजा में छूट देने का कोई अधिकार नहीं था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, जिस कोर्ट में मुकदमा चला था, रिहाई पर फैसले से पहले गुजरात सरकार को उसकी राय लेनी चाहिए थी। साथ ही जिस राज्य में आरोपियों को सजा मिली, उसे ही रिहाई पर फैसला लेना चाहिए था। दोषियों को महाराष्ट्र में सजा मिली थी। इस आधार पर रिहाई का आदेश निरस्त हो जाता है। 

इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो केस में दोषियों की रिहाई के खिलाफ याचिकाओं को सुनवाई योग्य माना। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीवी नागरत्न और जस्टिस उज्ज्वल भूइयां की दो सदस्यीय बेंच ने सजा में छूट को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं को सुनवाई योग्य करार देते हुए कहा कि गुजरात सरकार सजा में छ्रट का आदेश देने के लिए उचित सरकार नहीं है। कोर्ट ने इसके साथ ही कहा, ‘क़ानून का शासन कायम रहना चाहिए। अदालत ने कहा, 13 मई 2022 के जिस आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को रिहाई पर विचार के लिए कहा था, वह दोषियों ने भौतिक तथ्यों को दबाकर और भ्रामक तथ्य बनाकर हासिल किया था।

कोर्ट ने ये भी कहा कि दोषियों को रिहा करने का गुजरात सरकार का फैसला शक्ति का दुरुपयोग था। बिलकिस बानो गैंगरेप के 11 दोषियों की सजा गुजरात सरकार ने माफ कर दी थी। गुजरात सरकार के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, जिस पर सुप्रीम कोर्ट आज अपना फैसला सुनाया। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्जवल भुइयां की पीठ ने मामले की सुनवाई की और 12 अक्तूबर 2023 को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। 

गुजरात सरकार की माफी नीति के तहत साल 2022 में बिलकिस बानो से गैंगरेप और उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के दोषियों की सजा माफ कर दी थी और उन्हें जेल से रिहा कर दिया था। हालांकि अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दोषियों को फिर से जेल जाना होगा। इन दोषियों को सीबीआई की विशेष अदालत ने साल 2008 में उम्रकैद की सजा सुनाई थी, जिस पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी अपनी मुहर लगाई थी। उम्रकैद की सजा पाए दोषी को 14 साल जेल में ही बिताने होते हैं। उसके बाद अपराध की प्रकृति, जेल में व्यवहार और अन्य चीजों को ध्यान में रखते हुए सजा घटाने या रिहाई पर विचार किया जा सकता है। बिलकिस बानो गैंगरेप के दोषी जेल में 15 साल बिता चुके हैं। जिसके बाद दोषियों ने सजा में रियायत की गुहार लगाई थी। जिस पर गुजरात सरकार ने अपनी माफी नीति के तहत इन 11 दोषियों को जेल से रिहा कर दिया। 

गुजरात सरकार के इस फैसले के खिलाफ 30 नवंबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट में दो याचिकाएं दायर की गईं। पहली याचिका में दोषियों की रिहाई को चुनौती देते हुए उन्हें वापस जेल भेजने की मांग की गई थी। वहीं दूसरी याचिका में सुप्रीम कोर्ट के मई में दिए गए आदेश पर पुनर्विचार की मांग की गई थी, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दोषियों की रिहाई का फैसला गुजरात सरकार करेगी। 

याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र और गुजरात सरकार ने दोषियों की रिहाई के फैसले का बचाव किया था और कहा कि दोषियों ने दुर्लभतम अपराध नहीं किया है और उन्हें सुधार का एक मौका दिया जाना चाहिए। इस पर कोर्ट ने सवाल किया कि रिहाई में छूट का फायदा सिर्फ बिलकिस बानो के दोषियों को क्यों दिया गया? बाकी कैदियों को ऐसी छूट क्यों नहीं दी गई?

बांग्लादेश में फिर शेख हसीना की सरकार, 5वीं बार बनने जा रही प्रधानमंत्री

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बांग्लादेश में एक बार फिर शेख हसीना प्रधानमंत्री बनने जा रहीं हैं।रविवार को हुए आम चुनाव में उनकी पार्टी आवामी लीग ने 300 में से दो-तिहाई से अधिक सीटें जीत ली हैं।शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग ने जहां 222 सीटें जीतीं वहीं निर्दलीय उम्मीदवारों को 63 सीट पर कामयाबी हासिल हुई।शेख हसीना पांचवीं बार प्रधानमंत्री बनेंगी। वह 2009 से ही प्रधानमंत्री हैं।इससे पहले 1991 से 1996 तक भी शेख हसीना प्रधानमंत्री रह चुकीं हैं।

रविवार 7 जनवरी को हुए आम चुनाव में हसीना की पार्टी अवामी लीग ने संसद की 300 में से 204 सीटें जीत लीं। इस बार 299 सीटों पर वोटिंग हुई थी।गोपालगंज-3 सीट से उन्होंने बांग्लादेश सुप्रीम पार्टी के कैंडिडेट एम निजामुद्दीन लश्कर को 2.49 लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से हराया। हसीना को 2 लाख 49 हजार 965 तो निजामुद्दीन को महज 469 वोट मिले। 

बांग्लादेश चुनाव आयोग के मुताबिक, इस बार चुनाव में 40% वोट पड़े। यह आंकड़ा बदल सकता है। 2018 के चुनाव में 80% मतदान हुआ था। देश में बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) समेत विपक्षी पार्टियों ने चुनाव का बहिष्कार किया था।

हसीना का आदेश- जीत का जश्न न मनाएं कार्यकर्ता

प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अपनी पार्टी अवामी लीग के नेता और कार्यकर्ताओं को आदेश दिया है कि वो जीत का जश्न न मनाएं और न ही कोई रैली या जुलूस निकालें। हसीना के सेक्रेटरी सायम खान ने रविवार रात इस बारे में प्रधानमंत्री के हवाले से बयान जारी किया। उन्होंने कहा- नतीजे आने के बाद किसी तरह की हिंस नहीं होनी चाहिए, क्योंकि इससे देश को नुकसान होता है।

प्रधानमंत्री रहते हुई आलोचनाओं की शिकार

1996 वह साल था जब उन्होंने पहली बार जीत का स्वाद चखा। वह देश की प्रधानमंत्री बनीं। हसीना का पहला कार्यकाल आर्थिक तरक्की और इंफ्रास्ट्रकचर के विकास के नाम रहा। बांग्लादेश में उनके प्रधानमंत्री रहते हुए आर्थिक उदारीकरण हुआ। साथ ही बड़े पैमाने पर बांग्लादेश में विदेशी निवेश आया। हालांकि शेख हसीना की इस बात पर आलोचना भी हुई की उन्होंने देश की न्यायिक स्वतंत्रता को समाप्त करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। साथ ही जमात ए इस्लामी पार्टी पर शेख हसीना ने जो नकेल कसा, उसका कुछ धड़ों ने स्वागत किया तो कुछ ने मानवाधिकार उल्लंघन का हवाला देकर विरोध किया। बीच में एक अंतराल के बाद 2009 में शेख हसीना बांग्लादेश की सत्ता में लौटीं। इसके बाद से लगातार वह शासन में बनी हुई हैं। इसके बाद जो तीन चुनाव वह अब तक जीती हैं, इन सभी चुनावों पर धांधली का आरोप है। आलोचकों का कहना है कि देश में लोकतांत्रिक मूल्य लगातार ढ़लान पर हैं। बोलने की आजादी समय के साथ सीमित होती चली गई है।