श्रमजीवी ट्रेन ब्लास्ट में 18 साल बाद आया फैसला, हरकत-उल-जिहाद-उल-इस्लामी के दो आतंकियों को फांसी की सजा, कई लोगों की हुई थी मौत
उत्तर प्रदेश के जौनपुर की जिला अदालत ने 2005 के श्रमजीवी एक्सप्रेस बम विस्फोट में उनकी भूमिका के लिए दो आतंकवादियों को मौत की सजा सुनाई है। RDX से किए घातक हमले में 14 लोगों की मौत और 62 यात्री गंभीर रूप से घायल हो गए थे। 28 जुलाई 2005 की शाम को राजगीर और नई दिल्ली के बीच चलने वाली श्रमजीवी एक्सप्रेस भयानक आतंकवादी हमले का निशाना बन गई थी। हरपालगंज रेलवे क्रॉसिंग के पास हुआ विस्फोट दो आतंकियों द्वारा किया गया था, जिन्होंने ट्रेन में RDX से भरा सूटकेस रख दिया था। इस जघन्य कृत्य के बाद, अपराधी तेजी से उतर गए और अपने पीछे अराजकता और तबाही का मंजर छोड़ गए।
अदालत ने दोषियों की पहचान कुख्यात हरकत-उल-जिहाद-उल-इस्लामी (हूजी) संगठन से जुड़े बांग्लादेश के हिलाल उर्फ हेलालुद्दीन और पश्चिम बंगाल के नफीकुल विश्वास के रूप में की थी। छह वर्षों तक चला उनका मुकदमा इस महत्वपूर्ण फैसले में परिणित हुआ, जिससे प्रभावित परिवारों को कुछ हद तक न्याय मिला। 18 साल बाद भी, कई लोगों के लिए उस दुखद शाम के घाव हरे हैं। एक गवाह, जो उस समय मात्र 14 वर्ष का था, को सुल्तानपुर रेलवे स्टेशन का माहौल स्पष्ट रूप से याद है। ट्रेन की देरी के कारण भ्रम और बढ़ती बेचैनी के बीच, संभावित दुर्घटना की फुसफुसाहट फैल गई थी। स्मार्टफोन और इंटरनेट का इस्तेमाल उस समय भारत में इतना नहीं हुआ करता था। जिसका मतलब था कि जानकारी दुर्लभ थी और अफवाहें बड़े पैमाने पर थीं। उसने अफवाह सुनकर ही ट्रेन छोड़ दी थी, अगले दिन जब उसके पिता अख़बार पढ़ रहे थे, तब उसे श्रमजीवी ट्रेन में ब्लास्ट के बारे में पता चला।
उस समय आतंकी अक्सर इस तरह के शक्तिशाली विस्फोटक RDX का इस्तेमाल धमाकों के लिए किया करते थे, मुंबई ब्लास्ट, उत्तर प्रदेश के कचहरी ब्लास्ट, जोधपुर ब्लास्ट इसके कुछ उदाहरण थे, जिसमे सैकड़ों निर्दोष आतंकियों की जिहादी विचारधारा की भेंट चढ़ गए थे। लेकिन, इंटरनेट और सोशल मीडिया न होने के करण अक्सर चीज़ें उतनी उभरकर सामने नहीं आया करती थी। बीते 10 वर्षों में जागरूक हुई पीढ़ी को शायद ही श्रमजीवी ब्लास्ट के बारे में पता ही हो। आज जब 18 साल बाद इसके पीड़ितों को कोर्ट से कुछ हद तक न्याय मिला है, तो ये केस एक बार फिर सुर्ख़ियों में आ गया है।
Jan 04 2024, 16:04