*बेटी की मौत के साथ दफन हो गया हाथ पीले करने का सपना,लखनऊ में रहकर कर रही थी परीक्षा की तैयारी*
रायबरेली।जिस बेटी को पाल पोस कर बड़ा किया ।उसका जीवन खुशियों से भरा हो इसलिए खूब पढ़ाई लिखाई कराई और फिर सुयोग्यवर के साथ उसका विवाह हो जाए और वह अपनी दुनिया में सदैव प्रसन्न रहे। यह सोचते सोचते एक पिता को अचानक जब यह खबर मिल जाए की उसकी बेटी ने मौत को गले लगा लिया है तो उस पिता पर क्या गुजरी होगी ।शायद इसको शब्दों में बयां कर पाना बहुत ही कठिन है। एक ओर बेटी के विवाह का सपना दफन हुआ तो दूसरी ओर मां की ममता को छोड़कर बेटी हमेशा के लिए चली गई।
मामला क्षेत्र के महरौरा गांव का है यहां की रहने वाली अनुकृति वर्मा 28 वर्ष लखनऊ के अलीगंज इलाके में एक घर में पीजी में रहकर परीक्षा की तैयारी कर रही थी। परंतु जब अचानक कल उसकी मौत की खबर घर पहुंची तो मानो पूरे घर पर वज्रपात हो गया हो। पिता ओंकार वर्मा सूचना के बाद जब बेटी के शव के पास पहुंचे तो उससे लिपटकर विलख पड़े उन्होंने कहा की बेटी हमारे परवरिश में आखिर कौन सी कमी रह गई थी जो तुमने इस तरह का कदम उठाया लिया।
आंसुओं से भरी आंखों के बीच ओंकार वर्मा कहते हैं कि हमारी बेटी बहुत ही पढ़ने में तेज थी उसने बछरावां दयानंद पीजी कॉलेज से 2 वर्ष पूर्व एमकॉम किया था फिर उसने डीएलएड किया और कांटेक्ट बेस पर लखनऊ के संजय गांधी हॉस्पिटल में कंप्यूटर डाटा आॅपरेटर पर भी चयनित हो गई थी परंतु उसने कहा था कि पापा हम ऐसी छोटी नौकरी नहीं करेंगे हमें कुछ बड़ा करना है ।आपके सपनों को पूरा करना है। अपने माता-पिता के आंखों की लाडली बिटिया अभी दीपावली में आई थी और अपनी छोटी बहन आकृति वर्मा है और छोटे भाई अर्चित सिंह जो की रायबरेली के एक स्कूल में हाई स्कूल का छात्र है इन दोनों को खूब समझाया था कि पढ़ लिखकर अच्छे इंसान बना जा सकता है।
आज दोनों अपनी बहन को खोने के बाद उसकी यादों को याद कर रोते रहते हैं। मां सुनीता ने भी अपनी बेटी अनुकृति के लिए जब वह वापस लखनऊ जा रही थी तो उसके बैग में खाने पीने का सामान रखने बाद कहा था कि बिटिया पढ़ाई के साथ-साथ अपना ध्यान रखना परंतु मां के इस वचन को भी अनुकृति शायद किसी कारणवश पूरा नहीं कर सकी। मां सुनीता बेटी के गम में बीच-बीच में बेहोश हो जाती है वह कहती है कि उनकी बिटिया कहां चली गई। मां की ममता के साथ पढ़ा लिखा कर अपने पैरों पर खड़ा करने के बाद एक बेटी के हाथ पीले करने का पिता का भी सपना दफन हो गया।
इनसेट
पढ़ लिख कर अफसर बनना चाहती थी अनुकृति
बछरावां की अनुकृति बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि की थी ।क्षेत्र के सुदूर गांव महरौरा से बछरावां जाकर एम काम करना और उसके बाद डीएलएड करना फिर लखनऊ जाकर परीक्षा की तैयारी करना यह उसके जुनून में था ।वह अपने पापा ओंकार से कहती थी कि पापा पढ़ा लिखा इंसान ही सब कुछ कर सकता है हम पढ़ेंगे और अपने भाई बहन को भी पढ़ाएंगे और देखना एक दिन आपका नाम रोशन करेंगे ।हम अफसर बनेंगे और अपने गांव का भी मान बढ़ाएंगे लेकिन अनुकृति को आखिर कौन सी ऐसी दिल पर गहरी चोट लगी की उसने फांसी के फंदे को अपने गले में डालकर हमेशा हमेशा के लिए इस दुनिया को छोड़कर चली गई।
Nov 21 2023, 19:43