पत्रकारों के साथ प्रशासनिक अमर्यादा: नामांकन कवरेज के दौरान पुलिस ने छीने मोबाइल, जबरन बाहर निकाला
मीडिया की स्वतंत्रता और निर्वाचन प्रक्रिया की पारदर्शिता पर उठे सवाल, चुनाव आयोग से हस्तक्षेप की मांग
औरंगाबाद
दूसरे चरण के तहत जिले में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए नामांकन के पांचवे दिन शुक्रवार को समाहरणालय परिसर में नॉमिमेशन कवरेज के दौरान प्रशासन का पत्रकारों के प्रति व्यवहार बेहद असंवेदनशील और चिंताजनक रहा। कांग्रेस प्रत्याशी आनंद शंकर से बयान लेने पहुंचे कई पत्रकारों को पुलिस एवं दंडाधिकारी ने न केवल जबरन हटाया बल्कि एक-दो पत्रकारों के मोबाइल फोन भी छीने जाने की सूचना मिली है।
मौके पर मौजूद पत्रकारों का कहना है कि जिस तरह पुलिस कर्मियों ने हाथ पकड़कर मीडिया प्रतिनिधियों को बाहर खदेड़ा, वह लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के प्रति अपमानजनक व्यवहार है। सदर एसडीपीओ के हवाले से यह कहा गया कि “डीएम सर का आदेश है — किसी भी पत्रकार को समाहरणालय के अंदर नहीं रहने देना है।” इस आदेश के बाद पुलिस बल ने सभी पत्रकारों को जबरन परिसर से बाहर निकाल दिया।
पत्रकारों ने सवाल उठाया है कि जब नामांकन प्रक्रिया एक लोकतांत्रिक और सार्वजनिक कार्यवाही है, तो उसकी रिपोर्टिंग पर रोक या बाधा किस नियम के तहत लगाई जा सकती है? यह न केवल मीडिया की स्वतंत्रता पर प्रहार है, बल्कि निर्वाचन प्रक्रिया की पारदर्शिता को भी प्रभावित करता है।
इस घटना से मीडिया जगत में तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। वरिष्ठ पत्रकारों ने इसे प्रशासनिक अतिरेक बताया और कहा कि यदि अधिकारियों को सुरक्षा या व्यवस्था की चिंता थी तो उसके लिए सीमित क्षेत्र निर्धारित किया जा सकता था, लेकिन पत्रकारों को पूरी तरह हटाना लोकतांत्रिक मूल्यों के विपरीत है।
पत्रकार संगठनों ने इस घटना की उच्चस्तरीय जांच की मांग की है और भारत निर्वाचन आयोग (ECI) से आग्रह किया है कि वह मामले का संज्ञान लेकर संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करे, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं दोबारा न हो।







Oct 17 2025, 19:36
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