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नव नियुक्त जिला अध्यक्ष संजय मिश्र का रसड़ा पहुंचने पर जगह-जगह हुआ भव्य स्वागत
संजीव सिंह बलिया! नव नियुक्त जिला अध्यक्ष संजय मिश्र का रसड़ा आगमन पर भाजपा किसान मोर्चा के जिला महामंत्री ठाकुर मंगल सिंह सेंगर के नेतृत्व मे जोरदार स्वागत किया गया। भाजपा कार्यकर्ताओं ने ढोल-नगाड़ों और पुष्पवर्षा के साथ उनका अभिनंदन किया। मिश्रा ने पार्टी की नीतियों को जन-जन तक पहुंचाने का पूरी तत्परता से कार्य करेंगे! नवनियुक्त भाजपा जिला अध्यक्ष संजय मिश्रा का रसड़ा पहुंचने पर जगह-जगह स्वागत किया गया। उनके स्वागत के लिए भाजपा कार्यकर्ताओं ने ढोल-नगाड़ों और पुष्पवर्षा के साथ उनका अभिनंदन किया। इस अवसर पर भाजपा के नेता, कार्यकर्ता और समर्थक बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। सोमवार को पहुंचे नवनियुक्त जिला अध्यक्ष संजय मिश्रा के रसड़ा पहुंचने पर लोगों ने स्वागत किया। समारोह में संजय मिश्रा ने कहा कि वह पार्टी की नीतियों और योजनाओं को जन-जन तक पहुंचाने के लिए पूरी तत्परता से कार्य करेंगे। उन्होंने संगठन को मजबूत बनाने और पार्टी के कार्यकर्ताओं के हित में काम करने का वचन दिया। संजय मिश्रा ने सभी कार्यकर्ताओं से एकजुट होकर काम करने की अपील की, ताकि भाजपा को आने वाले चुनावों में और भी बड़ी सफलता मिल सके। उनके स्वागत समारोह में भाजपा के वरिष्ठ नेताओं सहित कार्यकर्ताओं का उत्साह साफ तौर पर दिखाई दे रहा था।इस अवसर पर मुख्य रूप से भाजपा किसान मोर्चा के जिला महामंत्री ठाकुर मंगल सिंह सेंगर , मंडल अध्यक्ष अविनाश सिंह, अंकित सिंह, अजय पांडेय, निर्मल पाण्डेय,निशू सिंह, धीरज तिवारी,धनंजय पाण्डेय, सोनू सिंह, भानु सिंह,पंकज सिंह,हिमांशु सिंह, नित्यानंद सिंह, प्रवीण सिंह सहित दर्जनो कार्यकर्ता रहे मौजूद !
बलिया: भाजपा के नए जिलाध्यक्ष बनें संजय मिश्र, कार्यकर्ताओं में उत्साह व चहुंओर खुशी की लहर
संजीव सिंह  बलिया!बलिया में नए बीजेपी जिलाध्यक्ष की घोषणा हो चुकी है। संजय मिश्र नए जिलाध्यक्ष बनाए गये है। नए जिलाध्यक्ष की घोषणा से बीजेपी कार्यकर्ताओं में खुशी की लहर है। यह घोषणा भाजपा कार्यालय में की गई। 
बलिया:होली के दिन नगरा सिकंदरपुर मार्ग पर स्थित नरही चट्टी के पश्चिम तरफ ग्राम पंचायत द्वारा निर्मित नाली में अज्ञात युवक का शव ‌मिलने से सनसनी
ओमप्रकाश वर्मा नगरा बलिया। नगरा थाना क्षेत्र के नगरा सिकंदरपुर मार्ग पर स्थित नरही चट्टी के पश्चिम तरफ ग्राम पंचायत द्वारा निर्मित नाली में एक युवक का शव ‌मिलने से सनसनी फैल गई। मौके पर सैकड़ों लोगों की भीड़ जुट गई।सूचना पर पहुंची पुलिस ने शव को नाले से निकलवा कर कब्जे में ले लिया तथा लोगों से शिनाख्त के लिए कहा किन्तु शव का शिनाख्त नहीं हो पाया।जानकारी के अनुसार शुक्रवार की रात लोग होली में एक दूसरे को बधाई आदि देने के लिए आ जा रहे थे तभी किसी को नाली में युवक का शव दिखाई दिया। शव दो तीन दिन पहले का लग रहा था। ग्राम प्रहरी ने शव मिलने की सूचना थाने को दी। मृतक की उम्र करीब 35 वर्ष के आस-पास बताई जा रही है। पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम हेतु बलिया भेज दिया। थानाध्यक्ष कौशल कुमार पाठक ने बताया कि नरही में नाली में अज्ञात युवक का शव मिला है, शिनाख्त कराने का प्रयास किया जा रहा है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही मौत की वजह का पता चल पाएगा।
सामाजिक सद्भाव का प्रतीक रंगों का त्यौहार शांतिपूर्ण वातावरण में सम्पन्न
ओमप्रकाश वर्मा  नगरा(बलिया)! रंगों व अबीर गुलाल के आदान प्रदान एवं ढोल मजीरा के साथ जगह जगह जुलूस निकालने के साथ ही सामाजिक एकता और सद्भाव का प्रतीक रंगों का त्यौहार होली शुक्रवार को नगर तथा क्षेत्र में परम्परागत तरीक़े से मनाया गया। इस अवसर पर जहां स्थानीय नगर तथा ग्राम्यांचलों में नागरिकों ने जम कर होली खेलने के साथ ही अबीर गुलाल उड़ाया वहीं दोपहर बाद अच्छी तरह से नहा धो नए वस्त्र धारण कर एक दूसरे के घर जा कर होली की शुभकामना के आदान प्रदान के साथ ही इस अवसर पर बनने वाले विशेष पकवानों का स्वाद चखा। इस अवसर पर रमजान के जुमा का नमाज़ भी शांतिपूर्ण वातारण में सम्पन्न हो जाने से सभी पक्षों ने राहत की सांस ली। होली और जुमा एक ही दिन पड़ जाने से लोग काफी सशंकित थे किन्तु कहीं से भी किसी तरह के तनाव की खबर नहीं है क्योंकि इस के मद्देनजर पुलिस पूरी तरह से अलर्ट मूड में रही और आवश्यक स्थानों पर प्रशासन द्वारा पर्याप्त पुलिस बल की तैनाती की गई थी। साथ ही जुमा का नमाज अदा होने वाली मस्जिदों पर प्रशासन की विशेष नजर थी और हर मस्जिद पर भी पर्याप्त पुलिस बल की तैनाती की गई थी।
बलिया:होली की मूल भावना है आपसी सौहार्द ::: डॉ विद्यासागर उपाध्याय

  संजीव सिंह बलिया:जैसा कि हम अवगत है और धीरे -धीरे निखिल विश्व भी यह स्वीकार कर रहा है कि भारतीय सनातन धर्म के रीति ,रिवाज ,परंपराएं ,व्रत और त्यौहार सबका वैज्ञानिक ,सामाजिक और आध्यात्मिक महत्व है।और जब गहन चिंतन करते हैं तो यह पाते है कि हमारे ऋषियों की दृष्टि अत्यंत व्यापक रही थी। समाज की सबसे छोटी इकाई परिवार और सबसे बड़ी इकाई राष्ट्र होता है । भारतवर्ष में संयुक्त परिवार की परम्परा लम्बे समय तक रही,बाद में छोटा परिवार सुखी परिवार की अवधारणा ने जन्म लिया और माता ,पिता ,पत्नी, बच्चों का पूरा भार मुखिया के कंधों पे आ गया ।आज पूर्वांचल का युवा उसी बोझ को कम करने के लिए जीविकोपार्जन हेतु बूढ़े मां-बाप ,विरहिणी पत्नी और पापा-पापा कहते छोटे बच्चों को छोड़कर,सारे अरमानों का गला घोंट कर सुदूर बड़े शहरों में जाकर स्वयं को छोटे कमरे में कैद कर लेता है ।लेकिन यह होली ही तो है जो फिर मिलाती है बूढ़े मां-बाप को बेटे से, प्रतीक्षा करती पत्नी को पति से ,अबोध बच्चों को उनके पिता से । होली का त्यौहारोत्सव सभी के जीवन मे बहुत सारी खुशियॉ और रंग भरता है, लोगों के जीवन को रंगीन बनाने के कारण इसे आमतौर पर ‘रंग महोत्सव’ कहा गया है। यह लोगो के बीच एकता और प्यार लाता है। इसे “प्यार का त्यौहार” भी कहा जाता है। यह मन को तरोताज़ा करने का त्यौहार है,जो न केवल मन को तरोताजा करता है बल्कि रिश्तों को भी करता है। यह ऐसा त्यौहार है जिसे लोग अपने परिवार के सदस्यो और रिश्तेदारों के साथ प्यार और स्नेह वितरित करके मनातें हैं जो उनके रिश्तों को भी मजबूती प्रदान करता हैं। यह एक ऐसा त्यौहार हैं जो लोगों को उनके पुराने बुरे व्यवहार को भुला कर रिश्तों को एक डोर मे बॉधता हैं।जोर जोर से सड़क पर ,गलियों में ,घरों में एक ही आवाज आती है –बुरा न मानो ,होली है ।भारतीय समाज को सर्वाधिक मजबूती से जोड़ने वाला त्यौहार होली ही है ,गीत जरूर सुने होंगे “होली के दिन दिल मिल जाते हैं। वास्तव मे यह न केवल लोगों को बाहर से रंगता हैं, बल्कि उनकी आत्मा को भी विभिन्न रंगों मे रंग देता हैं। आज भारतीय समाज मे अधिकांश व्यक्ति सुगर ,ब्लड प्रेशर ,और अनिद्रा के शिकार है जिसका एक ही कारण है मानसिक तनाव,काम का बोझ ,भाग दौड़ ,समयाभाव,प्रसन्नता का चेहरे से गायब होना ,हंसी का लोप हो जाना,इत्यादि।आखिर सुबह में किसी पार्क में नकली हंसी निकालना आपको कितना स्वस्थ बनाएगी ?? तब यह होली समाज के व्यस्त जीवन की सामान्य दिनचर्या मे एक अल्पविराम लाती हैं।बनारस से लेकर बलिया और आज़मगढ़ से लेकर गोरखपुर तक हर जगह बुढ़वा मंगल तक होली का आनंद लेना,ब्रज में महीनों तक लट्ठमार होली ,काशी में श्मसान तक में होली मनाना ,हुड़दंग मचाना,रंग गुलाल लगाना ,फाग गाना,जोगीरा बोलना समाज के उक्त उद्देश्य को ही पूर्ण करता है ।व्यथित मन भी जब अमिताभ जी के आवाज में सुनता है कि “”लौंग इलाची का बीड़ा लगाया ,खाये गोरी का यार बलम तरसे रंग बरसे ” तो भीतर से खुलके हंसता है ,यही तो है होली का विशेष सामाजिक महत्व। फाग गायन के बीच जोगीरा सारा.रा.रा.रा की आवाज जब निकलती है तो मन में गुदगुदी होने लगती है। होली के अवसर पर होली गीत गायन के बीच-बीच में जोगीरा कहने की परंपरा प्राचीन है ,जो होली के आनंद को दोगुना कर देता है। जिसका पुरूष ही नहीं घर के भीतर बैठी महिलाएं भी होलरिया द्वारा गाए जा रहे जोगीरा का आनंद लेते हैं।जोगीरा में एक सवाल व दूसरा जबाब पक्ष होता है। उदाहरण देखिए स्वरूप सवाल- कै हाथ का धोती पहने कै हाथ लपेटा, कै घाट का पानी पिए कै बाप का बेटा,जोगीरा सा रा रा रा, जबाब- पांच हाथ का धोती पहने दो हाथ लपेटा, एक घाट का पानी पिए एक बाप का बेटा जोगीरा सारा रा रा रा।इसकी ख़ास बात यह है कि इसका कथ्य कुछ भी हो, उसमें चुटीला व्यंग्य जरूर मौजूद रहता है। जोगीरा रंगीन तो होते ही है सामाजिक और राजनीतिक भी होते हैं । समाज मे व्याप्त जाति-पाति ,छुवा-छूत सब होली में पीछे छूट जाते है जब होली गायन की मंडली एक साथ बैठती है ।विभिन्न जाति के लोगो का एक साथ बैठना ,एक बराबर बैठना ,एक साथ थाली से उठाकर गुझिया खाना ,मालपुआ का आनंद लेना ,एक ही रंग में रंग जाना और एक ही बीड़ी से धूम्रपान कर के बोलना बुरा न मानो होली है ,यही तो सामाजिक समरसता है ,जिसे बड़े बड़े समाज सुधारक नहीं स्थापित कर पाते उसे होली ऊंचाइयों पर पहुंचाती है । आयुर्वेद का मत है कि दो ऋतुओं के संक्रमण काल में मानव शरीर रोग से ग्रसित हो जाता है।आयुर्वेद शिशिर ऋतु में ठंड के प्रभाव से शरीर में कफ की अधिकता हो जाती है और वसंत ऋतु में तापमान बढ़ने पर कफ के शरीर से बाहर निकलने की क्रिया में कफ दोष पैदा होता है, जिसके कारण सर्दी, खांसी, सांस की बीमारियों के साथ ही गंभीर रोग जैसे खसरा, चेचक आदि होते हैं।इसके अलावा वसंत के मौसम का मध्यम तापमान शरीर के साथ मन को भी प्रभावित करता है। यह मन में आलस्य भी पैदा करता है।ऐसे समय जब रोग हो जाने के प्रबल योग हो ,मौसम परिवर्तन हो रहा हो ,शरीर आलस में चूर हो तब होली जैसे त्योहार का विधान किया हमारे ऋषि मुनियों ने ।अपने ज्ञान और अनुभव से मौसम परिवर्तन से होने वाले बुरे प्रभावों को जाना और ऐसे उपाय बताए जिसमें शरीर को रोगों से बचाया जा सके।स्वास्थ्य की दृष्टि से होली उत्सव के अंतर्गत आग जलाना, अग्नि परिक्रमा, नाचना, गाना, खेलना आदि शामिल किए गए। अग्नि का ताप जहां रोगाणुओं को नष्ट करता है, वहीं हुड़दंग,खेलकूद ,रंग लगाना ,नाच गाना की अन्य क्रियाएं शरीर में जड़ता नहीं आने देती और कफ दोष दूर हो जाता है,चित्त प्रसन्नता से भर जाता है । सदियों पूर्व ऋषियों ने वसुधैव कुटुम्बकम की बात की और यह जानना सुखद है कि होलिकोत्सव विश्व व्यापी पर्व है।भारतीय व्यापारियों के कालांतर में विदेशों में बस जाने के बावजूद उनकी स्मृतियों में यह त्यौहार रचा बसा है और समय के साथ साथ यह पर्व उन देशों की आत्मा से मिलजुल कर,किंतु मौलिक भावना संजोते हुए विभिन्न रूपों में आज भी प्रचलित है । 1-इटली में यह उत्सव फरवरी माह में “रेडिका ” के नाम से मनाया जाता है ।शाम के समय लोग भांति -भांति के स्वांग बनाकर “कार्निवल” की मूर्ति के साथ रथ पर बैठकर विशिष्ट सरकारी अधिकारी की कोठी पर पहुंचते हैं । फिर गाने-बजाने के साथ यह जुलुस नगर के मुख्य चौक पर आता है । वहां पर सूखी लकड़ियों में इस रथ को रखकर आग लगा दी जाती है । इस अवसर पर लोग खूब नाचते-गाते हैं और हो-हल्ला मचाते हैं । 2-फ़्रांस के नार्मन्दी नामक स्थान में घास से बनी मूर्ति को शहर में गाली देते हुए घुमाकर, लाकर आग लगा देते हैं । बालक कोलाहल मचाते हुए प्रदक्षिणा करते हैं । 4-जर्मनी में ईस्टर के समय पेड़ों को काटकर गाड दिया जाता है। उनके चारों तरफ घास-फूस इकट्ठा करके आग लगा दी जाती है । इस समय बच्चे एक दुसरे के मुख पर विविध रंग लगाते हैं तथा लोगों के कपड़ों पर ठप्पे लगा कर मनोविनोद करते हैं । 5-स्वीडन नार्वे में भी शाम के समय किसी प्रमुख स्थान पर अग्नि जलाकर लोग नाचते गाते और उसकी प्रदक्षिणा करते हैं । उनका विश्वास है की इस अग्नि परिभ्रमण से उनके स्वास्थ्य की अभिवृद्धि होती है । 6-साइबेरिया में बच्चे घर-घर जाकर लकड़ी इकट्ठा करते हैं । शाम को उनमे आग लगाकर स्त्री -पुरुष हाथ पकड़कर तीन बार अग्नि परिक्रमा कर उसको लांघते हैं । 7-अमेरिका में होली का त्यौहार “हेलोईन” के नाम से 31 अक्टूबर को मनाया जाता हैं ।इस अवसर पर शाम के समय विभिन्न स्वांग रचकर नाचने-कूदने व खेलने की परम्परा आज भी विद्यमान है। प्राचीन काल में होली की अग्नि में हवन के समय वेद मंत्र ” रक्षोहणं बल्गहणम ” के उच्चारण का वर्णन आता है ।होली पर्व को भारतीय तिथि पत्रक के अनुसार वर्ष का अन्तिम त्यौहार कहा जाता है । यह पर्व फाल्गुन मास की पूर्णिमा को संपन्न होने वाला सबसे बड़ा त्यौहार है।कहा जाता है कि प्राचीन काल में इसी फाल्गुन पूर्णिमा से प्रथम चातुर्मास सम्बन्धी “वैश्वदेव ” नामक यज्ञ का प्रारंभ होता था, जिसमे लोग खेतों में तैयार हुई नई आषाढी फसल के अन्न -गेहूं,चना आदि की आहुति देते थे और स्वयं यज्ञ शेष प्रसाद के रूप में ग्रहण करते थे।आज भी नई फसल को डंडों पर बांधकर होलिका दाह के समय भूनकर प्रसाद के रूप में खाने की परम्परा “वैश्वदेव यज्ञ ” की स्मृति को सजीव रखने का ही प्रयास है।संस्कृत में भुने हुए अन्न को होलका कहा जाता है । संभवत: इसी के नाम पर होलिकोत्सव का प्रारंभ वैदिक काल के पूर्व से ही किया जाता है ।यज्ञ के अंत में यज्ञ भष्म को मस्तक पर धारण कर उसकी वन्दना की जाती थी , शायद उसका ही विकृत रूप होली की राख को लोगों पर उड़ाने का भी जान पड़ता है ।समय के साथ साथ अनेक ऐतिहासिक स्मृतियां भी इस पर्व के साथ जुड़ती गई ।नारद पुराण के अनुसार परम भक्त प्रहलाद की विजय और हिरण्यकश्यप की बहन “होलिका” के विनाश का स्मृति दिवस है।भविष्य पुराण के अनुसार कहा जाता है कि महाराजा रघु के राज्यकाल में ढुन्दा नामक राक्षसी के उपदर्वों से निपटने के लिए महर्षि वशिष्ठ के आदेशानुसार बालकों को लकड़ी की तलवार-ढाल आदि लेकर हो-हल्ला मचाते हुए स्थान स्थान पर अग्नि प्रज्वलन का आयोजन किया गया था । शायद वर्तमान में भी बच्चों का हो-हल्ला उसी का प्रतिरूप है।होली को बसंत सखा “कामदेव” की पूजा के दिन के रूप में भी वर्णित किया गया है ।”धर्माविरुधोभूतेषु कामोअस्मि भरतर्षभ ” के अनुसार धर्म संयत काम संसार में ईश्वर की ही विभूति माना गया है । आज के दिन कामदेव की पूजा किसी समय सम्पूर्ण भारत में की जाती थी । दक्षिण में आज भी होली का उत्सव ” मदन महोत्सव ” के नाम से ही जाना जाता है ।वैष्णव लोगों के किये यह ” दोलोत्सव” का दिन है । ब्रह्मपुराण के अनुसार – नरो दोलागतं दृष्टा गोविंदं पुरुषोत्तमं । फाल्गुन्यां संयतो भूत्वा गोविन्दस्य पुरं ब्रजेत ।। इस दिन झूले में झुलते हुए गोविन्द भगवान के दर्शन से मनुष्य बैकुंठ को प्राप्त होता है।कुछ पंचांगों के अनुसार संवत्सर का प्रारंभ कृष्ण पक्ष के प्रारंभ से और कुछ के अनुसार शुक्ल प्रतिपदा से माना जाता है । पूर्वी उत्तर प्रदेश में पूर्णिमा पर मासांत माना जाता है जिसके कारण फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को वर्ष का अंत हो जाता है और अगले दिन चैत्र कृषण प्रतिपदा से नव वर्ष आरम्भ हो जाता है । इसीलिए वहां पर लोग होली पर्व को संवत जलाना भी कहते हैं ।वैदिक कालीन होली की परम्परा का उल्लेख अनेक जगह मिलता है । मिमांशा दर्शनकार जैमिनी ने अपने ग्रन्थ में ” होलिकाधिकरण” नामक प्रकरण लिखकर होली की प्राचीनता को चिन्हित किया है।विन्ध्य प्रदेश के रामगढ़ नामक स्थान से 300 ईशा पूर्व का एक शिलालेख बरामद हुआ है जिसमे पूर्णिमा को मनाये जाने वाले इस उत्सव का उल्लेख है।वात्सायन महर्षि ने अपने कामसूत्र में ” होलाक” नाम से इस उत्सव का उल्लेख किया है । इसके अनुसार उस समय परस्पर किंशुक यानी ढाक के पुष्पों के रंग से तथा चन्दन-केसर आदि से खेलने की परम्परा थी।सातवी सदी में विरचित “रत्नावली” नाटिका में महाराजा हर्ष ने होली का वर्णन किया है।ग्यारहवीं शताब्दी में मुस्लिम पर्यटक “अलबरूनी” ने भारत में होली के उत्सव का वर्णन किया है । तत्कालीन मुस्लिम इतिहासकारों के वर्णन से पता चलता है कि उस समय हिन्दू और मुसलमान मिलकर होली मनाया करते थे।सम्राट अकबर और जहांगीर के समय में शाही परिवार में भी इसे बड़े समारोह के रूप में मनाये जाने के उल्लेख हैं।वैदिक काल में इस होली के पर्व को नवान्नेष्टि यज्ञ कहा जाता था। पुराणों के अनुसार ऐसी भी मान्यता है कि जब भगवान शंकर ने अपनी क्रोधाग्नि से कामदेव को भस्म कर दिया था, तभी से होली का प्रचलन हु‌आ। वर्तमान में घर के प्रत्येक सदस्य को उबटन लगाया जाता है,और शरीर से छुड़ाए गए उबटन को भी होलिका में इस विस्वास के साथ जलाया जाता है कि घर के समस्त सदस्यों की समस्त व्याधियां हमेशा के लिए अग्नि में जला दी गयीं।रंगोत्सव मनाए जाने के पीछे चाहे जो भी धार्मिक रीतियां-नीतियां रही हों, लेकिन, सूदूर ग्रामीण क्षेत्रों में इसकी मस्ती के पीछे लोक संस्कृति का खास महत्व रहा है।यह होली केवल जोगीरा और बोल तक ही सीमित नहीं है ।यह जोड़ती है हमे मर्यादा पुरुषोत्तम राम से ,सोलह कलाओं से पूर्ण गिरधरनागर कृष्ण से ,सृष्टि के संहारक भगवान शिव से।ढोल-मजीरे पर पड़ती थाप के बीच राम ,कृष्ण और भगवान शिव के होली का निश्चय ही बखान हुआ करता है। होरी खेले रघुबीरा अवध में,होली खेले नंदलाल,कान्हा करे बलजोरी हो मइया।इसी तरह पण्डित छन्नूलाल मिश्र का गायन खेले मसाने में होली दिगंबर ,खेले मसाने में होली ,,,जन -जन को अध्यात्म से जोड़ता है । कुछ ही वर्ष पूर्व जब भक्ति से हटकर मस्ती का दौर चलता तो रंग बरसे भींगे चुनरवाली रंग बरसे और नकबेसर कागा ले भागा, सैंया अभागा ना जागा..पर लोग झूमते। लेकिन, आज के बदलते परिदृश्य, महानगरीय संस्कृति और पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव में ऐसा लगता है, जैसे होली के प्रति पुराने जमाने के उमंग, उत्साह और चहल-पहल सब कुछ पीछे छूटता चला जा रहा। होली अध्यात्म नहीं बल्कि फूहड़पन का पर्याय प्रतीत हो रहा है। बसंत की मादकता का अहसास भी नहीं होता। गांवों में भी अब फागुन के गीत गाने वाले खोजे नहीं मिलते।पहले लोग स्वयं होली गीत गाते, ढोल-मजीरा बजाते और जोगीरा गाने के दौरान नटुआ के नाच संग झूमने को विवश होते थे।परन्तु अब, ये चीजें डीजे ,मोबाइल और लैपटॉप के जिम्मे हो गयी हैं जो कष्टदायक है।आज विभिन्न रासायनिक रंगों के प्रयोग,कुछ व्यक्तियों द्वारा होली के हुडदंग में शराब या अन्य नशीले पदार्थों का सेवन करके वातावरण खराब करने का प्रयास आदि से इसके मूल भावना पर प्रहार हो रहा है।जो पर्व आपसी भाई-चारे एवं वर्ष भर के मतभेदों को भुलाकर एक होने का है ,उस पर किसी भी प्रकार की रंजिश पैदा करना होली की मूल भावना के विपरीत है।हम विचार करें कि जो होली हमें अपनी जड़ से जोड़ती है, आपसी सम्बन्धों को मजबूत बनाती है उसे आधुनिकता के इस दौर में भी संजोकर रखने के लिए आवश्यक है कि हम सब उसकी मूल भावना को समझें और होली की मूल भावना आपसी सौहार्द ही है। डॉ विद्यासागर उपाध्याय
बलिया!होली की मूल भावना है आपसी सौहार्द ::: डॉ विद्यासागर उपाध्याय
होली की मूल भावना है आपसी सौहार्द ::: डॉ विद्यासागर उपाध्याय जैसा कि हम अवगत है और धीरे -धीरे निखिल विश्व भी यह स्वीकार कर रहा है कि भारतीय सनातन धर्म के रीति ,रिवाज ,परंपराएं ,व्रत और त्यौहार सबका वैज्ञानिक ,सामाजिक और आध्यात्मिक महत्व है।और जब गहन चिंतन करते हैं तो यह पाते है कि हमारे ऋषियों की दृष्टि अत्यंत व्यापक रही थी। समाज की सबसे छोटी इकाई परिवार और सबसे बड़ी इकाई राष्ट्र होता है । भारतवर्ष में संयुक्त परिवार की परम्परा लम्बे समय तक रही,बाद में छोटा परिवार सुखी परिवार की अवधारणा ने जन्म लिया और माता ,पिता ,पत्नी, बच्चों का पूरा भार मुखिया के कंधों पे आ गया ।आज पूर्वांचल का युवा उसी बोझ को कम करने के लिए जीविकोपार्जन हेतु बूढ़े मां-बाप ,विरहिणी पत्नी और पापा-पापा कहते छोटे बच्चों को छोड़कर,सारे अरमानों का गला घोंट कर सुदूर बड़े शहरों में जाकर स्वयं को छोटे कमरे में कैद कर लेता है ।लेकिन यह होली ही तो है जो फिर मिलाती है बूढ़े मां-बाप को बेटे से, प्रतीक्षा करती पत्नी को पति से ,अबोध बच्चों को उनके पिता से । होली का त्यौहारोत्सव सभी के जीवन मे बहुत सारी खुशियॉ और रंग भरता है, लोगों के जीवन को रंगीन बनाने के कारण इसे आमतौर पर ‘रंग महोत्सव’ कहा गया है। यह लोगो के बीच एकता और प्यार लाता है। इसे “प्यार का त्यौहार” भी कहा जाता है। यह मन को तरोताज़ा करने का त्यौहार है,जो न केवल मन को तरोताजा करता है बल्कि रिश्तों को भी करता है। यह ऐसा त्यौहार है जिसे लोग अपने परिवार के सदस्यो और रिश्तेदारों के साथ प्यार और स्नेह वितरित करके मनातें हैं जो उनके रिश्तों को भी मजबूती प्रदान करता हैं। यह एक ऐसा त्यौहार हैं जो लोगों को उनके पुराने बुरे व्यवहार को भुला कर रिश्तों को एक डोर मे बॉधता हैं।जोर जोर से सड़क पर ,गलियों में ,घरों में एक ही आवाज आती है –बुरा न मानो ,होली है ।भारतीय समाज को सर्वाधिक मजबूती से जोड़ने वाला त्यौहार होली ही है ,गीत जरूर सुने होंगे “होली के दिन दिल मिल जाते हैं। वास्तव मे यह न केवल लोगों को बाहर से रंगता हैं, बल्कि उनकी आत्मा को भी विभिन्न रंगों मे रंग देता हैं। आज भारतीय समाज मे अधिकांश व्यक्ति सुगर ,ब्लड प्रेशर ,और अनिद्रा के शिकार है जिसका एक ही कारण है मानसिक तनाव,काम का बोझ ,भाग दौड़ ,समयाभाव,प्रसन्नता का चेहरे से गायब होना ,हंसी का लोप हो जाना,इत्यादि।आखिर सुबह में किसी पार्क में नकली हंसी निकालना आपको कितना स्वस्थ बनाएगी ?? तब यह होली समाज के व्यस्त जीवन की सामान्य दिनचर्या मे एक अल्पविराम लाती हैं।बनारस से लेकर बलिया और आज़मगढ़ से लेकर गोरखपुर तक हर जगह बुढ़वा मंगल तक होली का आनंद लेना,ब्रज में महीनों तक लट्ठमार होली ,काशी में श्मसान तक में होली मनाना ,हुड़दंग मचाना,रंग गुलाल लगाना ,फाग गाना,जोगीरा बोलना समाज के उक्त उद्देश्य को ही पूर्ण करता है ।व्यथित मन भी जब अमिताभ जी के आवाज में सुनता है कि “”लौंग इलाची का बीड़ा लगाया ,खाये गोरी का यार बलम तरसे रंग बरसे ” तो भीतर से खुलके हंसता है ,यही तो है होली का विशेष सामाजिक महत्व। फाग गायन के बीच जोगीरा सारा.रा.रा.रा की आवाज जब निकलती है तो मन में गुदगुदी होने लगती है। होली के अवसर पर होली गीत गायन के बीच-बीच में जोगीरा कहने की परंपरा प्राचीन है ,जो होली के आनंद को दोगुना कर देता है। जिसका पुरूष ही नहीं घर के भीतर बैठी महिलाएं भी होलरिया द्वारा गाए जा रहे जोगीरा का आनंद लेते हैं।जोगीरा में एक सवाल व दूसरा जबाब पक्ष होता है। उदाहरण देखिए स्वरूप सवाल- कै हाथ का धोती पहने कै हाथ लपेटा, कै घाट का पानी पिए कै बाप का बेटा,जोगीरा सा रा रा रा, जबाब- पांच हाथ का धोती पहने दो हाथ लपेटा, एक घाट का पानी पिए एक बाप का बेटा जोगीरा सारा रा रा रा।इसकी ख़ास बात यह है कि इसका कथ्य कुछ भी हो, उसमें चुटीला व्यंग्य जरूर मौजूद रहता है। जोगीरा रंगीन तो होते ही है सामाजिक और राजनीतिक भी होते हैं । समाज मे व्याप्त जाति-पाति ,छुवा-छूत सब होली में पीछे छूट जाते है जब होली गायन की मंडली एक साथ बैठती है ।विभिन्न जाति के लोगो का एक साथ बैठना ,एक बराबर बैठना ,एक साथ थाली से उठाकर गुझिया खाना ,मालपुआ का आनंद लेना ,एक ही रंग में रंग जाना और एक ही बीड़ी से धूम्रपान कर के बोलना बुरा न मानो होली है ,यही तो सामाजिक समरसता है ,जिसे बड़े बड़े समाज सुधारक नहीं स्थापित कर पाते उसे होली ऊंचाइयों पर पहुंचाती है । आयुर्वेद का मत है कि दो ऋतुओं के संक्रमण काल में मानव शरीर रोग से ग्रसित हो जाता है।आयुर्वेद शिशिर ऋतु में ठंड के प्रभाव से शरीर में कफ की अधिकता हो जाती है और वसंत ऋतु में तापमान बढ़ने पर कफ के शरीर से बाहर निकलने की क्रिया में कफ दोष पैदा होता है, जिसके कारण सर्दी, खांसी, सांस की बीमारियों के साथ ही गंभीर रोग जैसे खसरा, चेचक आदि होते हैं।इसके अलावा वसंत के मौसम का मध्यम तापमान शरीर के साथ मन को भी प्रभावित करता है। यह मन में आलस्य भी पैदा करता है।ऐसे समय जब रोग हो जाने के प्रबल योग हो ,मौसम परिवर्तन हो रहा हो ,शरीर आलस में चूर हो तब होली जैसे त्योहार का विधान किया हमारे ऋषि मुनियों ने ।अपने ज्ञान और अनुभव से मौसम परिवर्तन से होने वाले बुरे प्रभावों को जाना और ऐसे उपाय बताए जिसमें शरीर को रोगों से बचाया जा सके।स्वास्थ्य की दृष्टि से होली उत्सव के अंतर्गत आग जलाना, अग्नि परिक्रमा, नाचना, गाना, खेलना आदि शामिल किए गए। अग्नि का ताप जहां रोगाणुओं को नष्ट करता है, वहीं हुड़दंग,खेलकूद ,रंग लगाना ,नाच गाना की अन्य क्रियाएं शरीर में जड़ता नहीं आने देती और कफ दोष दूर हो जाता है,चित्त प्रसन्नता से भर जाता है । सदियों पूर्व ऋषियों ने वसुधैव कुटुम्बकम की बात की और यह जानना सुखद है कि होलिकोत्सव विश्व व्यापी पर्व है।भारतीय व्यापारियों के कालांतर में विदेशों में बस जाने के बावजूद उनकी स्मृतियों में यह त्यौहार रचा बसा है और समय के साथ साथ यह पर्व उन देशों की आत्मा से मिलजुल कर,किंतु मौलिक भावना संजोते हुए विभिन्न रूपों में आज भी प्रचलित है । 1-इटली में यह उत्सव फरवरी माह में “रेडिका ” के नाम से मनाया जाता है ।शाम के समय लोग भांति -भांति के स्वांग बनाकर “कार्निवल” की मूर्ति के साथ रथ पर बैठकर विशिष्ट सरकारी अधिकारी की कोठी पर पहुंचते हैं । फिर गाने-बजाने के साथ यह जुलुस नगर के मुख्य चौक पर आता है । वहां पर सूखी लकड़ियों में इस रथ को रखकर आग लगा दी जाती है । इस अवसर पर लोग खूब नाचते-गाते हैं और हो-हल्ला मचाते हैं । 2-फ़्रांस के नार्मन्दी नामक स्थान में घास से बनी मूर्ति को शहर में गाली देते हुए घुमाकर, लाकर आग लगा देते हैं । बालक कोलाहल मचाते हुए प्रदक्षिणा करते हैं । 4-जर्मनी में ईस्टर के समय पेड़ों को काटकर गाड दिया जाता है। उनके चारों तरफ घास-फूस इकट्ठा करके आग लगा दी जाती है । इस समय बच्चे एक दुसरे के मुख पर विविध रंग लगाते हैं तथा लोगों के कपड़ों पर ठप्पे लगा कर मनोविनोद करते हैं । 5-स्वीडन नार्वे में भी शाम के समय किसी प्रमुख स्थान पर अग्नि जलाकर लोग नाचते गाते और उसकी प्रदक्षिणा करते हैं । उनका विश्वास है की इस अग्नि परिभ्रमण से उनके स्वास्थ्य की अभिवृद्धि होती है । 6-साइबेरिया में बच्चे घर-घर जाकर लकड़ी इकट्ठा करते हैं । शाम को उनमे आग लगाकर स्त्री -पुरुष हाथ पकड़कर तीन बार अग्नि परिक्रमा कर उसको लांघते हैं । 7-अमेरिका में होली का त्यौहार “हेलोईन” के नाम से 31 अक्टूबर को मनाया जाता हैं ।इस अवसर पर शाम के समय विभिन्न स्वांग रचकर नाचने-कूदने व खेलने की परम्परा आज भी विद्यमान है। प्राचीन काल में होली की अग्नि में हवन के समय वेद मंत्र ” रक्षोहणं बल्गहणम ” के उच्चारण का वर्णन आता है ।होली पर्व को भारतीय तिथि पत्रक के अनुसार वर्ष का अन्तिम त्यौहार कहा जाता है । यह पर्व फाल्गुन मास की पूर्णिमा को संपन्न होने वाला सबसे बड़ा त्यौहार है।कहा जाता है कि प्राचीन काल में इसी फाल्गुन पूर्णिमा से प्रथम चातुर्मास सम्बन्धी “वैश्वदेव ” नामक यज्ञ का प्रारंभ होता था, जिसमे लोग खेतों में तैयार हुई नई आषाढी फसल के अन्न -गेहूं,चना आदि की आहुति देते थे और स्वयं यज्ञ शेष प्रसाद के रूप में ग्रहण करते थे।आज भी नई फसल को डंडों पर बांधकर होलिका दाह के समय भूनकर प्रसाद के रूप में खाने की परम्परा “वैश्वदेव यज्ञ ” की स्मृति को सजीव रखने का ही प्रयास है।संस्कृत में भुने हुए अन्न को होलका कहा जाता है । संभवत: इसी के नाम पर होलिकोत्सव का प्रारंभ वैदिक काल के पूर्व से ही किया जाता है ।यज्ञ के अंत में यज्ञ भष्म को मस्तक पर धारण कर उसकी वन्दना की जाती थी , शायद उसका ही विकृत रूप होली की राख को लोगों पर उड़ाने का भी जान पड़ता है ।समय के साथ साथ अनेक ऐतिहासिक स्मृतियां भी इस पर्व के साथ जुड़ती गई ।नारद पुराण के अनुसार परम भक्त प्रहलाद की विजय और हिरण्यकश्यप की बहन “होलिका” के विनाश का स्मृति दिवस है।भविष्य पुराण के अनुसार कहा जाता है कि महाराजा रघु के राज्यकाल में ढुन्दा नामक राक्षसी के उपदर्वों से निपटने के लिए महर्षि वशिष्ठ के आदेशानुसार बालकों को लकड़ी की तलवार-ढाल आदि लेकर हो-हल्ला मचाते हुए स्थान स्थान पर अग्नि प्रज्वलन का आयोजन किया गया था । शायद वर्तमान में भी बच्चों का हो-हल्ला उसी का प्रतिरूप है।होली को बसंत सखा “कामदेव” की पूजा के दिन के रूप में भी वर्णित किया गया है ।”धर्माविरुधोभूतेषु कामोअस्मि भरतर्षभ ” के अनुसार धर्म संयत काम संसार में ईश्वर की ही विभूति माना गया है । आज के दिन कामदेव की पूजा किसी समय सम्पूर्ण भारत में की जाती थी । दक्षिण में आज भी होली का उत्सव ” मदन महोत्सव ” के नाम से ही जाना जाता है ।वैष्णव लोगों के किये यह ” दोलोत्सव” का दिन है । ब्रह्मपुराण के अनुसार – नरो दोलागतं दृष्टा गोविंदं पुरुषोत्तमं । फाल्गुन्यां संयतो भूत्वा गोविन्दस्य पुरं ब्रजेत ।। इस दिन झूले में झुलते हुए गोविन्द भगवान के दर्शन से मनुष्य बैकुंठ को प्राप्त होता है।कुछ पंचांगों के अनुसार संवत्सर का प्रारंभ कृष्ण पक्ष के प्रारंभ से और कुछ के अनुसार शुक्ल प्रतिपदा से माना जाता है । पूर्वी उत्तर प्रदेश में पूर्णिमा पर मासांत माना जाता है जिसके कारण फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को वर्ष का अंत हो जाता है और अगले दिन चैत्र कृषण प्रतिपदा से नव वर्ष आरम्भ हो जाता है । इसीलिए वहां पर लोग होली पर्व को संवत जलाना भी कहते हैं ।वैदिक कालीन होली की परम्परा का उल्लेख अनेक जगह मिलता है । मिमांशा दर्शनकार जैमिनी ने अपने ग्रन्थ में ” होलिकाधिकरण” नामक प्रकरण लिखकर होली की प्राचीनता को चिन्हित किया है।विन्ध्य प्रदेश के रामगढ़ नामक स्थान से 300 ईशा पूर्व का एक शिलालेख बरामद हुआ है जिसमे पूर्णिमा को मनाये जाने वाले इस उत्सव का उल्लेख है।वात्सायन महर्षि ने अपने कामसूत्र में ” होलाक” नाम से इस उत्सव का उल्लेख किया है । इसके अनुसार उस समय परस्पर किंशुक यानी ढाक के पुष्पों के रंग से तथा चन्दन-केसर आदि से खेलने की परम्परा थी।सातवी सदी में विरचित “रत्नावली” नाटिका में महाराजा हर्ष ने होली का वर्णन किया है।ग्यारहवीं शताब्दी में मुस्लिम पर्यटक “अलबरूनी” ने भारत में होली के उत्सव का वर्णन किया है । तत्कालीन मुस्लिम इतिहासकारों के वर्णन से पता चलता है कि उस समय हिन्दू और मुसलमान मिलकर होली मनाया करते थे।सम्राट अकबर और जहांगीर के समय में शाही परिवार में भी इसे बड़े समारोह के रूप में मनाये जाने के उल्लेख हैं।वैदिक काल में इस होली के पर्व को नवान्नेष्टि यज्ञ कहा जाता था। पुराणों के अनुसार ऐसी भी मान्यता है कि जब भगवान शंकर ने अपनी क्रोधाग्नि से कामदेव को भस्म कर दिया था, तभी से होली का प्रचलन हु‌आ। वर्तमान में घर के प्रत्येक सदस्य को उबटन लगाया जाता है,और शरीर से छुड़ाए गए उबटन को भी होलिका में इस विस्वास के साथ जलाया जाता है कि घर के समस्त सदस्यों की समस्त व्याधियां हमेशा के लिए अग्नि में जला दी गयीं।रंगोत्सव मनाए जाने के पीछे चाहे जो भी धार्मिक रीतियां-नीतियां रही हों, लेकिन, सूदूर ग्रामीण क्षेत्रों में इसकी मस्ती के पीछे लोक संस्कृति का खास महत्व रहा है।यह होली केवल जोगीरा और बोल तक ही सीमित नहीं है ।यह जोड़ती है हमे मर्यादा पुरुषोत्तम राम से ,सोलह कलाओं से पूर्ण गिरधरनागर कृष्ण से ,सृष्टि के संहारक भगवान शिव से।ढोल-मजीरे पर पड़ती थाप के बीच राम ,कृष्ण और भगवान शिव के होली का निश्चय ही बखान हुआ करता है। होरी खेले रघुबीरा अवध में,होली खेले नंदलाल,कान्हा करे बलजोरी हो मइया।इसी तरह पण्डित छन्नूलाल मिश्र का गायन खेले मसाने में होली दिगंबर ,खेले मसाने में होली ,,,जन -जन को अध्यात्म से जोड़ता है । कुछ ही वर्ष पूर्व जब भक्ति से हटकर मस्ती का दौर चलता तो रंग बरसे भींगे चुनरवाली रंग बरसे और नकबेसर कागा ले भागा, सैंया अभागा ना जागा..पर लोग झूमते। लेकिन, आज के बदलते परिदृश्य, महानगरीय संस्कृति और पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव में ऐसा लगता है, जैसे होली के प्रति पुराने जमाने के उमंग, उत्साह और चहल-पहल सब कुछ पीछे छूटता चला जा रहा। होली अध्यात्म नहीं बल्कि फूहड़पन का पर्याय प्रतीत हो रहा है। बसंत की मादकता का अहसास भी नहीं होता। गांवों में भी अब फागुन के गीत गाने वाले खोजे नहीं मिलते।पहले लोग स्वयं होली गीत गाते, ढोल-मजीरा बजाते और जोगीरा गाने के दौरान नटुआ के नाच संग झूमने को विवश होते थे।परन्तु अब, ये चीजें डीजे ,मोबाइल और लैपटॉप के जिम्मे हो गयी हैं जो कष्टदायक है।आज विभिन्न रासायनिक रंगों के प्रयोग,कुछ व्यक्तियों द्वारा होली के हुडदंग में शराब या अन्य नशीले पदार्थों का सेवन करके वातावरण खराब करने का प्रयास आदि से इसके मूल भावना पर प्रहार हो रहा है।जो पर्व आपसी भाई-चारे एवं वर्ष भर के मतभेदों को भुलाकर एक होने का है ,उस पर किसी भी प्रकार की रंजिश पैदा करना होली की मूल भावना के विपरीत है।हम विचार करें कि जो होली हमें अपनी जड़ से जोड़ती है, आपसी सम्बन्धों को मजबूत बनाती है उसे आधुनिकता के इस दौर में भी संजोकर रखने के लिए आवश्यक है कि हम सब उसकी मूल भावना को समझें और होली की मूल भावना आपसी सौहार्द ही है। डॉ विद्यासागर उपाध्याय
अनुपस्थित रहने पर सफाई कर्मचारी निलंबित
ओमप्रकाश वर्मा नगरा(बलिया)! स्थानीय ब्लाक क्षेत्र के इन्दासों ग्राम पंचायत में तैनात सफाई कर्मी रामआशीष को एडीओ पंचायत की संस्तुति पर जिला पंचायत राज अधिकारी श्रवण कुमार सिंह ने निलंबित कर दिया है. एडीओ पंचायत प्रमोद कुमार सिंह ने अपनी रिपोर्ट में कहा है की सफाई कर्मी रामअसीष 1 मार्च से बिना किसी सूचना के ग्राम पंचायत में अनुपस्थित रह रहा है. जिससे शासन की मंशा के अनुरूप साफ सफाई नहीं हो पा रही है. एडीओ पंचायत की रिपोर्ट को गंभीरता से लेते हुए डीपीआरओ में उक्त सफाई कर्मी को निलंबित कर दिया. निलंबन की अवधि में सफाई कर्मी को सीयर ब्लाक से सम्बद्ध करते हुए इसकी जांच सहायक विकास अधिकारी पंचायत सीयर को सौंपी है.
बिजली शॉर्ट सर्किट से लगी आग, एक गाय व छह बकरियां जलकर मरी
ओमप्रकाश वर्मा नगरा(बलिया)! स्थानीय थानाक्षेत्र की सोनापाली टाड़ी गांव में की रात बिजली के शार्ट सर्किट से दो छप्पर शेड जल कर खाक गया. इस घटना में एक गाय व छह बकरिया भी जलकर मर गई. इसके साथ ही इस आगलगी की घटना में कपड़ा, गेहूं, चावल, चारपाई बिस्तर आदि सब जलकर खाक हो गए. ग्रामीणों के अथक प्रयास से आग पर काबू पाया जा सका. घटना की सूचना ग्राम प्रधान संजय कुमार यादव ने तहसील प्रशासन को दी सोनापाली टाड़ी निवासी राजेश, बब्बन की रिहायशी छप्पर टीन शेड का घर है. रात मे परिवार सभी लोग गहरी निद्रा में सो रहे थे कि अचानक इसी बीच शार्ट सर्किट से आग लग गई. ग्रामीणों के शोर मचाने पर परिवार के लोग भाग कर घर से बाहर आ गए. इस आग लगी में राजेश की एक गाय व चार बकरियां छप्पर में जलकर मर गई. रात का समय होने के कारण आग पर काबू पाने में काफी परेशानी हो रही थी. बब्बन राम की एक गाय गंभीर रूप से जल गई उनकी दो बकरियां भी जलमरी. घटना की सूचना पर पहुंची डायल 112 की पुलिस मौके पर पहुंची तथा आवश्यक जानकारी ली.
बलिया:उप शिक्षा निदेशक/डायट प्राचार्य एवं खण्ड शिक्षा अधिकारी ने शिक्षकों संग मनायी होली
संजीव सिंह बलिया!होली के शुभ अवसर पर प्राचार्य/उप शिक्षा निदेशक जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान पकवाइनार बलिया  शिवम पाण्डेय एवं खण्ड शिक्षा अधिकारी रसड़ा  माधवेन्द्र पाण्डेय द्वारा शिक्षकों को ग़ुलाल लगाकर होली मनाई गयी। प्राचार्य डायट ने जनपद के समस्त शिक्षकों एवं समस्त डी0 एल0 एड0 प्रशिक्षुओं को होली की शुभकामनायें देते हुए कहा कि हमें होली को शांतिपूर्ण तरीके से मनाकर प्रेम और सदभाव का सन्देश देना है। शिक्षक होने के नाते हमारी भूमिका बड़ी हो जाती है, हमें समाज को नई दिशा देने का काम भी बखूबी निभाना है इसलिए अपने दायित्व को भली भांति समझते हुए एक मिशाल प्रस्तुत करना होगा।भारतीय संस्कृति में प्रत्येक त्यौहार का सामाजिक, धार्मिक, भौतिक व आध्यात्मिक महत्व है। होली का सम्बन्ध व्यक्ति से भी है तथा समाज से भी क्योंकि व्यक्ति से ही समाज बनता है अत: व्यक्ति व समाज अभिन्न है। यही कारण है कि होली जैसे त्यौहार व्यक्ति को भौतिक व आध्यात्मिक दोनों प्रकार के संदेश देते हुये प्रतीत होते हैं। उन्होंने सभी से इस त्योहार को प्रेम की भावना से मनाने का आग्रह किया। खण्ड शिक्षा अधिकारी रसड़ा ने शिक्षकों को होली की शुभकामनायें देते हुए कहा कि होली का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है,यह एकता, प्रजनन अनुष्ठान, और प्रेम का प्रतीक है। यह राधा-कृष्ण के प्रेम का प्रतीक है। यह एक पारंपरिक हिन्दू वसंत त्योहार है। यह मौसम में बदलाव का दिन है।यह हमें जीवन में नकारात्मकता को त्यागकर सच्चाई और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। आइए, इस पावन अवसर पर प्रेम, सद्भाव और भाईचारे की भावना को मजबूत करें। भगवान नरसिंह का आशीर्वाद सभी के जीवन में सुख, समृद्धि और सफलता लेकर आए। इस अवसर पर शिक्षकों ने एक-दूसरे को होली की शुभकामनाएं देते हुए रंग और गुलाल लगाकर उत्सव की उमंग को साझा किया। कार्यक्रम में संजय यादव ए आर पी नगरा,अमित भास्कर,रण विजय सिंह, अविनाश सिंह, भानु प्रताप सिंह, दिवाकर सिंह, विजय प्रताप सिंह ,राजकुमार सिंह,राम आशीष यादव, अजय यादव, दिवाकर मौर्य, शिवानंद,मनीष कुमार सहित दर्जनों शिक्षक मौजूद रहे।इस अवसर पर शिक्षकों ने एक-दूसरे को होली की शुभकामनाएं देते हुए रंग और गुलाल लगाकर उत्सव की उमंग को साझा किया।
पुलिस अधीक्षक ने पैदल गश्त कर आमजनो को कराया सुरक्षा का एहसास होली त्योहार व माहे रमजान को लेकर पुलिस सतर्क
ओमप्रकाश  वर्मा नगरा (बलिया)। आगामी पर्व-होलिकोत्सव, होली, ईद को भयमुक्त व सौहार्दपूर्ण वातावरण में सकुशल सम्पन्न कराए जाने हेतु चुस्त-दुरुस्त कानून एवं शांति व्यवस्था के दृष्टिगत पुलिस अधीक्षक ने थाना नगरा क्षेत्र अंतर्गत लाव लश्कर के साथ पैदल गश्त कर आमजन को सुरक्षा का एहसास कराया। त्योहारों के अवसर पर नगरा थाना क्षेत्र के नगरपंचायत के बाजार कस्बा अन्तर्गत भीड़ भाड़ वाले स्थानों में पैदल गश्त कर आम जनमानस में सुरक्षा की भावना जागृत करने हेतु शांतिपूर्ण व भयमुक्त वातावरण में पर्वों को सम्पन्न कराने का संदेश दिया गया। अधीक्षक द्वारा भीड़ नियंत्रण, शांति एवं कानून व्यवस्था बनाए रखने हेतु बाजारों, चौराहों, भीड़-भाड़ वाले स्थानों, महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों के आसपास भ्रमण करते हुए आमजन से वार्ता कर सौहार्दपूर्वक त्यौहारों को मनाने का अपील किया गया। इस दौरान विभिन्न प्रकार की दुकानों पर पहुंचकर दुकानदारों एवं आमजन से शांति/सुरक्षा व्यवस्था के सम्बन्ध में संवाद स्थापित कर सुरक्षा व्यवस्था का भरोसा दिलाया तथा संदिग्ध व्यक्तियों / वस्तुओं की चेकिंग कराई जा रही। यदि किसी भी अराजक तत्वों द्वारा आगामी त्यौहारों में शांति व्यवस्था भंग की जाती है तो उसके विरूद्ध नियमानुसार विधिक कार्यवाही की जाएगी। इस दौरान अपर पुलिस अधीक्षक उत्तरी अनिल कुमार झा, प्रभारी निरीक्षक उभांव राजेन्द्र प्रसाद सिंह , थानाध्यक्ष नगरा कौशल पाठक व पीआरओ पुलिस अधीक्षक नि. चन्द्रभाष्कर द्विवेदी सहित अन्य पुलिस बल मौजूद रहे।