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संसद में आज नया आयकर बिल होगा पेश, पर जेपीसी रिपोर्ट भी आएगी, हंगामे के आसार*
#parliament_budget_session_income_tax_bill
संसद का बजट सत्र जारी है। आज बजट सत्र के 10वें दिन की कार्यवाही होगी। कुछ देर बार नया इनकम टैक्स बिल संसद में पेश क‍िया जाना है। नए इनकम टैक्स बिल का मकसद मौजूदा इनकम टैक्स एक्ट, 1961 को आम आदमी के ल‍िए आसान बनाना और मुकदमेबाजी कम करना है। मौजूदा इनकम टैक्स एक्ट, 1961 में लागू होने के बाद से अब तक 66 बजट (दो अंतरिम बजट सहित) में काफी बदलाव देख चुका है। नया इनकम टैक्स बिल को लेकर तैयारियां पूरी की जा चुकी हैं। इस बिल का ड्राफ्ट भी जारी हो गया है। नए इनकम टैक्स बिल में 536 धाराएं और 23 चैप्टर हैं। मौजूदा कानून में 14 अनुसूचियां हैं जो नए कानून में बढ़कर 16 हो जाएंगी। नए बिल में चैप्टर की संख्या 23 ही रखी गई है। पेजों की संख्या काफी कम होकर 622 हो गई है, जो वर्तमान भारी-भरकम कानून का लगभग आधा है, जिसमें पिछले छह दशकों में किए गए संशोधन शामिल हैं। जब इनकम टैक्स कानून 1961 लाया गया था, तो इसमें 880 पेज थे। लोकसभा में बिल पेश किए जाने के बाद इसे विस्तृत चर्चा के लिए संसद की स्थायी समिति के पास भेजे जाने की संभावना है। प्रस्तावित कानून में कर विवादों के मामलों के शीघ्र निस्तारण के लिए नये प्रावधान किए गए हैं। *आज वक्फ बोर्ड पर जेपीसी रिपोर्ट भी होगी पेश* इसके अलावा, लोकसभा में आज वक्फ बोर्ड पर जेपीसी रिपोर्ट भी पेश होगी। इस दौरान वक्फ (संशोधन) विधेयक पर विचार करने वाली संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की रिपोर्ट गुरुवार को लोकसभा और राज्यसभा के पटल पर रखी जाएगी। लोकसभा की कार्यवाही सूची के मुताबिक, समिति के अध्यक्ष जगदंबिका पाल विधेयक से संबंधित रिपोर्ट और साक्ष्यों का रिकॉर्ड सदन के पटल पर रखेंगे। यह रिपोर्ट राज्यसभा के पटल पर भी रखी जाएगी। *वक्फ बिल पर जेपीसी रिपोर्ट पर क्या बोले जगदम्बिका पाल?* समिति के अध्यक्ष एवं भाजपा सांसद जगदम्बिका पाल ने कहा, 'आज जेपीसी और वक्फ की रिपोर्ट को लोकसभा अध्यक्ष ने कार्यसूची पर रखा है, जिसे आज हम प्रस्तुत करने जा रहे हैं। छह महीने पहले जब सरकार इस बिल पर संशोधन लेकर आई थी, तब केंद्रीय मंत्री और संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने आग्रह किया था कि इस बिल पर विस्तार से चर्चा की जाए, क्योंकि यह देश का ज्वलंत मुद्दा है। आज जेपीसी ने पूरे छह महीने में कई बैठकों और सभी राज्यों के दौरे के बाद रिपोर्ट तैयार की है।
मोदी-ट्रंप के बीच क्या होंगे चर्चा के मुद्दे? मुलाकात पर दुनिया की नजर
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* प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिन के दौरे पर अमेरिका पहुंच गए हैं। पीएम मोदी की अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ बैठक भी करेंगे, ये ट्रंप दूसरी बार राष्ट्रपति बनने के बाद उनकी पहली द्विपक्षीय बैठक होगी। प्रधानमंत्री मोदी के इस दौरे को भारत-अमेरिका संबंधों के लिहाज से अहम माना जा रहा है। नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप के बीच बैठक में कई मुद्दों पर बातचीत होने की उम्मीद है। इसमें भारतीयों के अमेरिका से डिपोर्टशन में खराब बर्ताव, ट्रंप की टैरिफ नीति और चीन की आक्रामकता शामिल हो सकती है। *प्रवासियों को लेकर सहमति बनाने की कोशिश* नरेंद्र मोदी के इस दौरे के दौरान एक मुख्य मुद्दा भारतीय निर्वासितों के साथ मानवीय व्यवहार का हो सकता है। अमेरिका से हाल ही में 104 अवैध भारतीय अप्रवासियों के पहले जत्थे को भारत वापस भेजा गया है। भारत में अपने नागरिकों के साथ दुर्व्यवहार पर भारी गुस्सा देखा गया है। भारतीयों को जंजीरों में बांधकर भेजे जाने के मामले में नरेंद्र मोदी सरकार को भी आलोचना सहनी पड़ी है। ऐसे में भारत इस दौरे पर अमेरिका से नागरिकों के साथ मानवीय बर्ताव करा आश्वासन मांग सकता है। *टैरिफ का मुद्दा अहम* डोनाल्ड ट्रंप पद संभालने के बाद से व्यापार शुल्क पर काफी आक्रामक हैं। ट्रंप ने कई देशों पर टैरिफ लगाए हैं और भारत के लिए भी सख्ती के संकेत दिए हैं। ट्रंप ने हाल ही में साथ एल्युमीनियम और स्टील के आयात पर 25 फीसदी टैरिफ का ऐलान किया है। भारतीय कंपनियां घरेलू स्टील की कीमतों पर इसके प्रभाव और अमेरिकी स्टील बाजार में जोखिम को लेकर चिंतित हैं। भारत ने नरेंद्र मोदी की यात्रा से पहले हाईएंड मोटरसाइकिलों और इलेक्ट्रिक बैटरियों पर शुल्क घटाए हैं। ऐसे में उम्मीद है कि इस मुद्दे पर दोनों पक्ष व्यावहारिक दृष्टिकोण के साथ बातचीत कर सकते हैं। *रक्षा उत्पादन में सहयोग बढ़ाने पर मंथन* इसके अलावा मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मुलाकात के दौरान भारत और अमेरिका के बीच महत्वपूर्ण रक्षा समझौतों पर हस्ताक्षर हो सकते हैं। इस यात्रा के दौरान भारत और अमेरिका के बीच स्ट्राइकर कॉम्बैट व्हीकल और फाइटर जेट इंजन के सह-उत्पादन को लेकर बड़ी डील हो सकती है। इसके अलावा भारत अमेरिका से माउंटेड एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल सिस्टम और सैकड़ों स्ट्राइकर व्हीकल्स खरीदने की योजना भी बना रहा है।
अमेरिका पहुंचते ही नेशनल इंटेलिजेंस डायरेक्टर तुलसी गबार्ड से मिले पीएम मोदी, मस्क से भी होगी मुलाकात
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* प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिवसीय अमेरिका की यात्रा पर हैं। इस दौरान वह राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात करेंगे। अमेरिका के राष्ट्रपति बनने के बाद डोनाल्ड ट्रंप और पीएम मोदी की यह पहली मुलाकात होगी। पीएम और ट्रंप आज मुलाकात करेंगे और दोनों देशों के सहयोग, मजबूती को लेकर कई विषयों पर चर्चा करेंगे। इससे पहले, प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिका पहुंचने के बाद राष्ट्रपति ट्रंप से पहले नेशनल इंटेलिजेंस डायरेक्टर तुलसी गबार्ड से मुलाकात की। पीएम मोदी ने तुलसी गबार्ड से मुलाकात को लेकर सोशल मीडिया हैंडल एक्स पर पोस्ट करते हुए कहा, तुलसी गबार्ड से मुलाकात हुई। उनके इस पद पर कायम होने के लिए उनको बधाई। भारत-अमेरिका की दोस्ती के कई पहलुओं पर चर्चा की। तुलसी गबार्ड एक अमेरिकी राजनीतिज्ञ सैन्य अधिकारी हैं। फिलहाल वो डोनाल्ड सरकार में राष्ट्रीय खुफिया निदेशक के तौर पर अपनी जिम्मेदारियां निभा रही हैं। खास बात यह है कि पीएम मोदी के साथ मुलाकात से कुछ घंटों पहले ही उनको यह पद दिया गया था। सीनेट में अंतिम मतदान के बाद बुधवार (12 फरवरी) को तुलसी गबार्ड को आधिकारिक रूप से अमेरिका की राष्ट्रीय खुफिया निदेशक नियुक्त कर लिया गया। तुलसी गबार्ड अमेरिकी खुफिया एजेंसी का नेतृत्व करने वाली पहली हिंदू बन गई हैं। गबार्ड के हाथों में अमेरिका की 18 खुफिया एजेंसियों की कमान है। *खुद को हिंदू बताती हैं गोबार्ड* मीडिया रिपोर्ट की मानें तो तुलसी गबार्ड खुद को हिंदू बताती हैं लेकिन वह भारतीय मूल की नहीं हैं। उनकी मां ने हिंदू धर्म अपनाया था। अब तुलसी हिंदू धर्म का पालन करती हैं। दरअसल, तुलसी गबार्ड की मां हिंदू धर्म का पालन करती रही हैं जबकि पिता समोआ से हैं। हिंदू धर्म से गहरा जुड़ाव होने के कारण ही उनका नाम तुलसी रखा गया। *पीएम मोदी की एलन मस्क से मुलाकात संभव* प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान एलन मस्क से मिलेंगे और इस दौरान दक्षिण एशियाई बाजार में स्टारलिंक के प्रवेश पर चर्चा हो सकती है। दरअसल, स्टारलिंक भारत में प्रवेश करना चाहता है। भारत सरकार ने मस्क के इस विचार का समर्थन किया है कि स्पेक्ट्रम की नीलामी के बजाय उसे आवंटित किया जाना चाहिए। हालांकि, स्टारलिंक के लाइसेंस आवेदन की अभी भी समीक्षा की जा रही है।
अमेरिका पहुंचे पीएम मोदी, हुआ जोरदार स्वागत, लगे 'मोदी-मोदी' के नारे
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* प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिन की अमेरिका की यात्रा पर हैं। गुरुवार को पीएम मोदी जॉइंट एंड्रूज बेस पर उतरे, जहां भारतीय समुदाय के सदस्यों ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया। भारतीय प्रवासी प्रधानमंत्री मोदी का स्वागत करने के लिए ब्लेयर हाउस के बाहर जमा हुए और कड़ाके की ठंड के बावजूद 'मोदी, मोदी' के नारे गूंज रहे थे, भीड़ ने जयकारे लगाए और भारतीय तिरंगा भी लहराया। पीएम मोदी ने लोगों से बातचीत की और उनके गर्मजोशी भरे स्वागत के लिए आभार व्यक्त किया। लोगों ने भारत और अमेरिका के झंडे और 'अमेरिका नरेंद्र मोदी का स्वागत करता है' लिखे पोस्टर लिए हुए थे और पीएम मोदी की अमेरिका यात्रा पर उत्साह व्यक्त किया। बुधवार की सुबह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पीएम मोदी ने कहा,'सर्दियों की ठंड में गर्मजोशी से स्वागत! ठंड के मौसम के बावजूद, वाशिंगटन डीसी में भारतीय प्रवासियों ने मेरा बहुत ही खास स्वागत किया है। मैं उनका आभार व्यक्त करता हूं।' अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के निमंत्रण पर पीएम मोदी दो दिनों की यात्रा पर अमेरिका गए हुए हैं। इस दौरे पर उनके साथ विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल मौजूद हैं। अमेरिका में भारत के राजदूत विनय मोहन क्वात्रा और अन्य अधिकारियों ने एयरपोर्ट पर उनका स्वागत किया। डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल के लिए राष्ट्रपति बनने के बाद पीएम मोदी की यह पहली अमेरिका यात्रा है। अमेरिका के वाशिंगटन डीसी पहुंचने पर पीएम मोदी ने कहा कि वह अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मिलने और भारत-अमेरिका व्यापक वैश्विक रणनीतिक साझेदारी को आगे बढ़ाने के लिए उत्सुक हैं। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मिलने और भारत-अमेरिका व्यापक वैश्विक रणनीतिक साझेदारी को आगे बढ़ाने के लिए उत्सुक हूं। हमारे देश अपने लोगों के लाभ और बेहतर भविष्य के लिए मिलकर काम करते रहेंगे।
पहले की 90 घंटे काम की वकालत, अब मजदूरों पर बयान, जानें क्या बोले L&T चेयरमैन सुब्रह्मण्यन

#sn_subrahmanyan_again_gave_a_controversial_statement 

पहले हफ्ते में 90 घंटे काम और रविवार को भी काम करने की सलाह देकर विवादों में रहे लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) के चेयरमैन एसएन सुब्रह्मण्यम का फिर एक बयान चर्चा में है। इस बार उन्होंने नौकरी की जगह बदलने और लोगों के दफ्तर जाने की इच्छा पर टिप्पणी करके एक और विवाद को जन्म दे दिया है। उनका कहना है कि सरकारी कल्याणकारी योजनाओं के कारण मजदूर अपने गांवों से बाहर जाकर काम करने को तैयार नहीं हैं।

मंगलवार को सीआईआई साउथ ग्लोबल लिंकेज शिखर सम्मेलन में बोलते हुए, उन्होंने कहा कि भारतीय श्रमिक, जिनमें तकनीकी विशेषज्ञ भी शामिल हैं, नौकरी के लिए आगे बढ़ने से हिचकिचाते हैं। इससे उद्योग के लिए चुनौतियां पैदा होती हैं। निर्माण उद्योग में श्रमिकों की कमी पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि जहां कई देश प्रवास की समस्याओं से जूझ रहे हैं, वहीं भारत में लोगों के काम के लिए आगे बढ़ने से अनिच्छुक होने की एक अनूठी समस्या है।

एलएंडटी के चेयरमैन एसएन सुब्रमण्यम ने कहा कि कल्याणकारी योजनाओं और वित्तीय सहायता की उपलब्धता के कारण श्रमिकों में नौकरी करने इच्छा खत्म हो रही है। सुब्रमण्यम ने बताया कि एलएंडटी में करीब चार लाख मजदूर काम करते हैं, लेकिन छंटनी के कारण कंपनी को सालाना करीब 60 लाख मजदूरों की व्यवस्था करनी पड़ती है। उन्होंने कहा कि मजदूरों को काम पर रखने के पारंपरिक तरीके बदल गए हैं, जिसमें डिजिटल संचार अब महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। उन्होंने कहा, "किसी नई साइट के लिए बढ़ई लाने के लिए कंपनी उन बढ़ईयों की सूची में संदेश भेजती है, जिनके साथ वह काम कर रही है या पहले काम कर चुकी है।"

श्रमिकों की अनिच्छा के लिए सरकारी योजनाओं को ठहराया जिम्मेदार

साथ ही उन्होंने बताया कि कामगारों को काम पर रखने के लिए राजी करना एक चुनौती बनी हुई है। एलएंडटी के मुखिया के अनुसार मानव संसाधन से जुड़े मुद्दों को संबोधित करने के लिए, एलएंडटी ने श्रम के लिए एचआर नामक एक अलग विभाग बनाया है। सुब्रमण्यम ने जन धन बैंक खातों, प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण, गरीब कल्याण योजना और मनरेगा योजना जैसे कारकों को श्रमिकों की अनिच्छा के लिए जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा ये योजनाएं उन्हेंवित्तीय स्थिरता प्रदान करते हैं। उन्होंने कहा, अगर आप तकनीकी विशेषज्ञों से कार्यालय आने को कहते हैं, तो वह अलविदा कह देते हैं। यह समस्या निर्माण मजदूरों से आगे बढ़कर इंजीनियरिंग पेशेवरों तक फैली हुई है। सुब्रह्मण्यन याद करते हुए कहा, "जब मैंने 1983 में एलएंडटी जॉइन किया था, तो मेरे बॉस ने कहा था, अगर आप चेन्नई से हैं, तो आप दिल्ली जाकर काम करें। आज अगर मैं चेन्नई से किसी लड़के को लेकर जाता हूं और उसे दिल्ली जाकर काम करने के लिए कहता हूं, तो वह अलविदा कह देता है।" उन्होंने कहा कि आईटी सेक्टर में स्थान बदलने के प्रति अनिच्छा और भी अधिक स्पष्ट है। इस सेक्टर में भी कर्मचारी ऑफिस लौटने के बजाय दूर से काम करना पसंद करते हैं।

रविवार को भी काम करने की कर चुके हैं वकालत

इससे एसएन सुब्रह्मण्यन ने रविवार को भी काम करने की वकालत की थी। उन्होंने कहा था, "घर पर बैठकर आप क्या करेंगे? कितनी देर तक अपनी पत्नी को देख सकते हैं? आओ, ऑफिस आकर काम करो।" उन्होंने यह भी कहा था कि वह खुद रविवार को भी काम करते हैं। उनके इस बयान पर कई उद्योगपतियों ने प्रतिक्रिया दी थी। आदर पूनावाला, आनंद महिंद्रा और आईटीसी के संजीव पुरी जैसे उद्योग जगत के दिग्गजों ने वर्क-लाइफ बैलेंस बनाए रखने की जरूरत पर जोर दिया था

पीएम मोदी ने फ्रांस के मार्सिले पहुंचते ही वीर सावरकर को याद किया, क्या है कारण?

#why_pm_modi_remember_veer_savarkar_reached_marseille 

प्रधानमंत्री मोदी फ्रांस दौरे के दौरान फ्रांस के दूसरे सबसे बड़े शहर और बंदरगाह मार्सिले का भी पहुंचे। मार्सिले एक ऐसा शहर जो नेपोलियन बोनापार्ट और फुटबॉलर जिनेदिन जिदान जैसी हस्तियों का घर है। यहां दुनियाभर से पर्यटक घूमने आते हैं और इस शहर की खूबसूरती का आनंद लेते हैं। वैसे, इस शहर से भारत का भी एक पुराना नाता रहा है। इस दौरान मोदी ने एक्स पर मार्सिले में 115 साल पुरानी घटना का जिक्र कर विनायक दामोदर सावरकर को भी याद किया।

फ्रांस के मार्सिले शहर में पीएम मोदी ने स्वतंत्रता सेनानी वीडी सावरकर की स्मृति में श्रद्धांजलि अर्पित की। मार्सिले में उन्होंने विनायक दामोदर सावरकर को याद किया। पीएम मोदी ने वीर सावरकर की तारीफ भी की। 

पीएम मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट किया और लिखा, "भारत की स्वतंत्रता की खोज में इस शहर का विशेष महत्व है। यहीं पर महान वीर सावरकर ने साहसपूर्वक भागने का प्रयास किया था। मैं मार्सिले के लोगों और उस समय के फ्रांसीसी कार्यकर्ताओं को भी धन्यवाद देना चाहता हूं जिन्होंने मांग की थी कि उन्हें ब्रिटिश हिरासत में न सौंपा जाए। वीर सावरकर की बहादुरी आज भी पीढ़ियों को प्रेरित करती है!"

मार्सिले से सावरकर के जुड़ाव की क्या है कहानी?

भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान, सावरकर को गिरफ्तार कर मुकदमे के लिए ब्रिटिश जहाज मोरिया से भारत लाया जा रहा था, तब उन्होंने 8 जुलाई, 1910 को कैद से भागने का प्रयास किया था। कहा जाता है सावरकर जहाज के पोर्टहोल से निकलकर तैरते हुए किनारे पहुंच गए थे, लेकिन बाद में उन्हें फ्रांसीसी अधिकारियों ने पकड़ लिया और उन्हें ब्रिटिश जहाज अधिकारियों की हिरासत में वापस सौंप दिया था। इसके बाद उन्हें काला पानी की सजा हुई।

मार्सिले शहर का भारत के लिए महत्व

मार्सिले में शहीद सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने शहर में भारत के नए महावाणिज्य दूतावास का उद्घाटन किया है। मार्सिले दक्षिणी फ्रांस में है और यह देश का दूसरा सबसे बड़ा शहर होने के साथ बंदरगाह भी लिए है, जिससे व्यापार का बड़ा केंद्र है। मार्सिले भूमध्य सागर के तट पर भारत-फ्रांस के लिए एक व्यापारिक गेटवे का काम करता है। यह भारत-मध्य पूर्व-यूरोप इकॉनोमिक कॉरिडोर के प्रमुख एंट्री प्वाइंट में से एक है।

क्या है फ्रांस में लगा ITER प्रोजेक्ट,"धरती पर सूरज" बनाने में फ्रांस की कैसे मदद कर रहा भारत?

#india_france_collaboration_iter_project 

अपने फ्रांस दौरे के तीसरे दिन प्रधानमंत्री मोदी इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर (ITER) प्रोजेक्ट का दौरा किया। आपको बता दें कि ये वही जगह है जहां दुनिया के सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक पृथ्वी पर "मिनी सन" बनाने के प्रयास में जुटे हैं। इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य पृथ्वी पर “मिनी सन” बनाकर स्वच्छ और असीमित ऊर्जा की आपूर्ति करना है। यह वैश्विक सहयोग पर आधारित एक ऐतिहासिक पहल है। सबसे अहम बात भारत भी इस प्रोजेक्ट में प्रमुख भूमिका निभा रहा है। 

न्यूक्लियर फ्यूजन: सूरज की तरह ऊर्जा पैदा करना

इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर (ITER) प्रोजेक्ट 21 सदी का सबसे महंगा मेगा साइंस प्रोजेक्ट है। दक्षिणी फ्रांस के कैडराचे में स्थित ITER दुनिया का सबसे विकसित फ्यूजन एनर्जी न्यूक्लियर रिएक्टर है। न्यूक्लियर फ्यूजन एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जो हमारे सूरज और अन्य तारों में ऊर्जा पैदा करती है। इस प्रक्रिया में हाइड्रोजन के नाभिक मिलकर हीलियम बनाते हैं, जिससे अपार ऊर्जा उत्पन्न होती है। ITER प्रोजेक्ट का उद्देश्य इस प्रक्रिया को पृथ्वी पर कृत्रिम रूप से पुनः पेश करना है।

वैज्ञानिकों का मानना है कि इस प्रक्रिया से बिना किसी हानिकारक ग्रीनहाउस गैस या रेडियोधर्मी कचरे के ऊर्जा पैदा की जा सकती है। एक ग्राम परमाणु ईंधन से लगभग 8 टन तेल के बराबर ऊर्जा पैदा की जा सकती है।

सात देशों के साझेदारी में भारत भी शामिल

ITER को द वे प्रोजेक्ट के नाम से भी जाना जाता है। इसके जरिए कोशिश की जा रही है कि स्वच्छ ऊर्जा की असीमित सप्लाई पूरी दुनिया को की जा सके। 22 बिलियन यूरो से अधिक लागत वाली इस परियोजना के सात देश साझेदार हैं। इनमें भारत और फ्रांस के अलावा चीन, अमेरिका, दक्षिण कोरिया, रूस, जापान और यूरोपीय संघ (ईयू) भी शामिल हैं।

खर्च का कुल 10 फीसदी का सहयोग करेगा भारत

इस प्रोजेक्ट की सबसे खास बात यह है कि इसमें जगह-जगह मेड इन इंडिया लिखा गया है। इस पर खर्च होने वाली कुल राशि में से भारत को करीब 10 फीसदी का सहयोग देना है। हालांकि, वह इस तकनीक का शत-प्रतिशत इस्तेमाल कर पाएगा। 

भारत में बना “फ्रिज” प्रोजेक्ट का अहम हिस्सा

भारत ने इस परियोजना में सबसे बड़े घटक का भी योगदान दिया है - दुनिया का सबसे बड़ा रेफ्रिजरेटर जिसमें यह अनूठा रिएक्टर है, को लार्सन एंड टुब्रो द्वारा गुजरात में बनाया गया है। इसका वजन 3,800 टन से अधिक है और इसकी ऊंचाई कुतुब मीनार से लगभग आधी है। ITER रिएक्टर का कुल वजन लगभग 28,000 टन होगा।

भारत के लिए कितना फायदेमंद?

वैज्ञानिकों का मानना है कि ITER प्रोजेक्ट के सफल होने पर दुनिया में ऊर्जा संकट का समाधान हो सकता है। यह प्रोजेक्ट न केवल स्वच्छ ऊर्जा प्रदान करेगा, बल्कि पर्यावरण की सुरक्षा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। भारत के इस प्रोजेक्ट में भागीदारी से देश की तकनीकी क्षमता और वैश्विक सहयोग की भावना का प्रदर्शन हो रहा है। यह प्रोजेक्ट भारत को वैश्विक ऊर्जा क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनाने में मदद करे

सितंबर में पीएम मोदी के साथ अमेरिका नहीं गए थे डोभाल, इस बार होंगे साथ, जानिए क्यों है ये दौरा बेहद अहम
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* भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दो दिवसीय फ्रांस दौरा अब समाप्त हो चुका है। आज से पीएम मोदी अमेरिका के दो दिवसीय दौरे पर रहेंगे। ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद पीएम मोदी का यह पहला अमेरिका दौरा है। इससे पहले पीएम मोदी सितंबर में अमेरिका के दौरे पर आए थे। इस यात्रा के दौरान की एक तस्वीर चर्चा में रही थी। इस तस्वीर में अमेरिका की तरफ से राष्ट्रपति जो बाइडन, विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलविन और भारत में अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी मौजूद थे। वहीं, भारत की तरफ से इस तस्वीर में पीएम मोदी के साथ विदेश मंत्री एस जयशंकर, विदेश सचिव विक्रम मिस्री और अमेरिका में भारत के राजदूत विनय क्वात्रा नजर आए थे। इस तस्वीर में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार यानी एनएसए अजित डोभाल की गैरमौजूदगी ने चर्चा का विषय रही थी। इस बार डोभाल के पीएम मोदी के साथ रहने की पूरी संभावना है। ऐसा माना जाता है कि अभी भारतीय डिप्लोमैसी में तीन अहम लोग हैं। एक खुद पीएम मोदी, दूसरे विदेश मंत्री एस जयशंकर और तीसरे एनएसए अजित डोभाल। ऐसे में सितंबर में डोभाल का पीएम मोदी के साथ नहीं होने पर सवाल उठ रहे थे। आमतौर पर प्रधानमंत्री मोदी के अमेरिका दौरे में डोभाल साथ होते हैं। ऐसे में सवाल पूछे जा रहे हैं कि आख़िर डोभाल अमेरिका क्यों नहीं गए? *डोभाल का अमेरिका ना जाना चर्चा में क्यों था?* उस समय अमेरिका दौरे पर डोभाल के नहीं होने के पीछे एक सिख मामले में उनके खिलाफ समन जारी होने को माना गया था। दरअसल, 2023 में सिख अलगाववादी नेता गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या करवाने की साजिश में उंगलियां भारत सरकार की तरफ भी उठी थीं। रॉयटर्स के मुताबिक़, अमेरिका इस मामले में भारत के शामिल होने को लेकर भी जांच कर रहा है। पन्नू ने अपनी हत्या की साज़िश को लेकर न्यूयॉर्क की एक अदालत में याचिका दाखिल की है। इसी मामले को लेकर न्यूयॉर्क की एक अदालत ने भारत से कई लोगों को समन किया था। इस समन में अजित डोभाल, निखिल गुप्ता और पूर्व रॉ प्रमुख सामंत गोयल जैसे शीर्ष अधिकारियों के नाम था। उस समन को औपचारिक तौर पर कभी सर्व तो नहीं किया गया लेकिन इसे दोनों देशों की साझेदारी की भावना के विपरीत माना जा रहा था। अब डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद यह मामला हल्का पड़ता दिख रहा है। इकनॉमिक टाइम्स ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि ट्रंप प्रशासन भारत के आंतरिक मामलों में दखल देने और कुछ समूहों को प्रोत्साहित करने का इच्छुक नहीं है। इससे डोभाल की अमेरिका यात्रा का रास्ता साफ हो गया है। *अवैध प्रवासियों की भारत वापसी पर होगी बातचीत* बता दें कि पीएम मोदी का अमेरिका दौरा ऐसे वक्त में हो रहा है जब अवैध प्रवासियों का मुद्दा काफी गर्माया हुआ है। कई देशों के नागरिक, जो अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे थे, को वापस उनके देश भेजा जा रहा है। इनमें भारतीय नागरिक भी शामिल हैं। भारत की तरफ से पहले ही साफ किया जा चुका है कि वो अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे अपने नागरिकों को वापस लेने के लिए तैयार है और इस प्रक्रिया में अमेरिका का पूरा सहयोग करेगा। अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे कई भारतीय नागरिकों को वापस भेजा भी जा चुका है और कई और लोगों को भी आगे भेजा जाएगा। हालांकि जिस तरह बेड़ियों में जकड़कर उन्हें भेजा गया, उससे भारत में भी विवाद छिड़ गया। संसंद में विपक्ष भी इस मामले पर सरकार को घेर रहा है। ऐसे में पीएम मोदी और ट्रंप की मुलाकात के दौरान इस विषय पर बातचीत होना तय है और यह भी संभव है कि निकट भविष्य में जब अमेरिका अवैध रूप से रह रहे भारतीय नागरिकों को वापस भेजे, तो बेड़ियों का इस्तेमाल न करते हुए उन्हें मानवीय तरीके से भारत भेजे। *दोनों देशों के एक-दूसरे पर टैरिफ न लगाने पर चर्चा अहम* ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने ही “टैरिफ वॉर” की शुरुआत कर दी है। हालांकि अब तक भारत पर टैरिफ की घोषणा नहीं की गई है, जबकि ट्रंप पहले भारत पर टैरिफ लगाने की चेतावनी दे चुके हैं, क्योंकि भारत भी अमेरिकी प्रोडक्ट्स पर काफी टैक्स लगाता है। ऐसे में पीएम मोदी और ट्रंप की मुलाकात के दौरान दोनों देशों के एक-दूसरे पर टैरिफ न लगाते हुए व्यापार को आगे बढ़ाने पर चर्चा होगी, जो काफी अहम है।
क्या मणिपुर में लगेगा राष्ट्रपति शासन, सीएम पर फैसले के लिए आज की तारीख कितनी अहम?
#manipur_may_face_president_rule * मणिपुर में भड़की जातीय हिंसा के करीब दो साल बाद मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने रविवार (9 फरवरी, 2025) को इंफाल के राजभवन में राज्यपाल अजय कुमार भल्ला को अपना इस्तीफा सौंपा। मणिपुर सीएम का इस्तीफा विधानसभा सत्र शुरू होने से ठीक एक दिन पहले हुआ है। दरअसल, चर्चा थी कि मणिपुर में विपक्षी नेता सत्र के दौरान एन बीरेन सिंह के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की योजना बना रहे थे। इससे पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और जेपी नड्डा से मुलाकात के बाद बीरेन सिंह ने इस्तीफा देने का फैसला किया।अब सवाल ये है कि मणिपुर के अगले मुख्यमंत्री के रूप में बीरेन सिंह की जगह कौन लेगा? मणिपुर में लंबे समय से चल रहे हिंसा के बीच मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के इस्तीफे के बाद राज्य में राजनीतिक अनिश्चितता बढ़ गई है। एन.बीरेन सिंह के इस्तीफे के बाद भाजपा फिलहाल कोई नया सर्वमान्य चेहरा तलाश नहीं पाई है। पार्टी के पूर्वोत्तर मामलों के प्रभारी और सांसद डॉ.संबित पात्रा ने मंगलवार को इंफाल में पार्टी विधायकों के साथ बैठक की। सूत्रों के मुताबिक, इस बैठक में किसी नए नाम पर सहमति नहीं बनी है। पार्टी की कोशिश ऐसे चेहरे को चुनने की रही, जिसको लेकर मैतेई और कुकी दोनों समुदायों का भरोसा हो। यदि नए सीएम के लिए सर्वसम्मति नहीं बनती है तो राज्य में राष्ट्रपति शासन लगने की प्रबल संभावना है। *क्या है नियम* दरअसल संविधान के मुताबिक राज्यों की विधानसभा की दो बैठकों के बीच में 6 महीने से ज्यादा का अंतर नहीं होना चाहिए पर मणिपुर विधानसभा के संदर्भ में ये संवैधानिक समय सीमा आज (बुधवार) को खत्म हो रही है। संविधान के अनुसार, मणिपुर विधानसभा का अगला सत्र 12 फरवरी से पहले होना चाहिए। सत्र शुरू होने के 15 दिन पहले स्पीकर को इसकी घोषणा करनी होती है। स्पीकर राज्य मंत्रिमंडल की सिफारिश के बाद ही सत्र बुला सकते हैं। अगर सत्र नहीं होता है, तो राज्यपाल अजय कुमार भल्ला को राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करनी होगी। इस दौरान विधानसभा स्थगित रहेगी। *सरकार गठन की संभावना तलाशने की कोशिश* हालांकि सूत्रों का ये भी दावा है कि विधानसभा के दो सत्रों के बीच अधिकतम 6 महीने के अंतर पर संवैधानिक प्रावधान ये स्पष्ट तौर पर नहीं कहते कि 6 महीने बाद विधानसभा को भंग ही कर दिया जाना चाहिए। ऐसे में सरकार गठन को लेकर संभावना तलाशने की कोशिश जारी रहेगी। अगर सरकार गठन को लेकर कुछ ठोस संभावना नहीं बनती है तो राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। अब केंद्र की तरफ से आगे उठाए जाने वाले कदम पर सभी की निगाहें टिकीं हैं। जिस पर फैसला पीएम मोदी के विदेश दौरे से लौटने के बाद हो सकता है। *मणिपुर में सियासी संकट* मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच 3 मई, 2023 को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर की एक रैली के बाद हिंसा भड़क उठी थी जिसमें करीब 200 लोग मारे गए थे। यह रैली मणिपुर हाईकोर्ट की ओर से मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करने पर विचार करने का निर्देश देने के बाद हुई थी। हिंसा के बाद केंद्र सरकार ने राज्य में सुरक्षा बंदोबस्त मजबूत करने के अलावा दोनों समुदायों में मेलजोल के प्रयास किए लेकिन पूर्णत: शांति के हालात नहीं बने। हाल में गृह सचिव पद से रिटायर हुए अजय भल्ला को राज्यपाल बनाकर भेजा गया है। इस बीच मुख्यमंत्री पद से बीरेन सिंह के इस्तीफे के बाद सियासी संकट खड़ा हो गया है।
*मुफ्त योजनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई नाराजी, कहा- इनकी वजह से लोग काम नहीं कर रहे
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* चुनावों से पहले राजनीतिक पार्टियां जनता को अपने पाले मे करने के लिए मुफ्त योजनाओं की बौछार कर देती हैं। वोट को साधने के लिए सभी पार्टियां एक से बढ़कर एक मुफ्त की घोषणाएं करती हैं। राजनीतिक दलों की ओर से अपनाई जा रही इस नीति पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त नाराजगी जाहिर की है। कोर्ट ने कहा कि इससे लोगों की काम करने की इच्छा नहीं होगाी, क्योंकि उन्हें राशन और पैसे मुफ्त में ही मिलते रहेंगे। कोर्ट ने कहा कि मुफ्त राशन और पैसा देने के बजाए बेहतर होगा कि ऐसे लोगों को समाज की मुख्यधारा का हिस्सा बनाया जाए ताकि वो देश के विकास के लिए योगदान दे सके। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने शहरी इलाकों में बेघर लोगों के आश्रय से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई के दौरान ये टिप्पणी की। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने पीठ को बताया कि सरकार ने शहरी इलाकों में आश्रय स्थल की योजना को बीते कुछ वर्षों से फंड देना बंद कर दिया है। इसके चलते इन सर्दियों में 750 से ज्यादा बेघर लोग ठंड से मर गए। याचिकाकर्ता ने कहा कि गरीब लोग सरकार की प्राथमिकता में ही नहीं हैं और सिर्फ अमीरों की चिंता की जा रही है। *कोर्ट ने किए तीखे सवाल* इस टिप्पणी पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई और कहा कि अदालत में राजनीतिक बयानबाजी की इजाजत नहीं दी जाएगी। जस्टिस गवई ने कहा कि 'कहते हुए दुख हो रहा है, लेकिन क्या बेघर लोगों को समाज की मुख्यधारा में शामिल नहीं किया जाना चाहिए, ताकि वे भी देश के विकास में योगदान दे सकें। क्या हम इस तरह से परजीवियों का एक वर्ग तैयार नहीं कर रहे हैं? मुफ्त की योजनाओं के चलते, लोग काम नहीं करना चाहते। उन्हें बिना कोई काम किए मुफ्त राशन मिल रहा है। *सुप्रीम कोर्ट ने छह हफ्ते के लिए टाली सुनवाई* केंद्र सरकार का पक्ष रख रहे अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमाणी ने पीठ को बताया कि केंद्र सरकार शहरी इलाकों में गरीबी को मिटाने के लिए प्रक्रिया को अंतिम रूप दे रही है। जिसमें शहरी इलाकों में बेघर लोगों को आश्रय देने का भी प्रावधान होगा। इस पर पीठ ने उन्हें केंद्र सरकार से पूछकर यह स्पष्ट करने को कहा कि कितने दिन में इस योजना को लागू किया जाएगा। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई छह हफ्ते के लिए टाल दी। *सुप्रीम कोर्ट पहले भी लगा चुकी है फटकार* बता दें कि यह पहली बार नहीं है जब मुफ्त की योजनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को घेरा है। बीते साल कोर्ट ने केंद्र और इलेक्शन कमीशन से पूछा था कि राजनीतिक पार्टियां हमेशा ही चुनावों से पहले मुफ्त स्कीमों की घोषणाएं करती हैं। अधिक वोट्स पाने के लिए राजनीतिक पार्टियां मुफ्त की योजनाओं पर निर्भर रहती हैं और इसका एक उदाहरण हाल ही में हुए दिल्ली चुनावों में भी देखा गया है।