लोकसभा में आज शाम पीएम मोदी का संबोधन, संविधान पर चर्चा का देंगे जवाब
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देश में संविधान के 75 साल पूरे होने पर संसद में चर्चा हो रही है। संविधान पर चर्चा के दौरान आज पीएम नरेंद्र मोदी लोकसभा में विपक्ष के आरोपों का जवाब देंगे। पीएम मोदी से पहले नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी भी लोकसभा में बोलेंगे। प्रधानमंत्री का भाषण शाम चार बजे के करीब होगा, जबकि राहुल गांधी का संबोधन करीब दो बजे के आसपास होगा।
लोकसभा में संविधान पर चर्चा का आज दूसरा दिन है। लोकसभा में 13 दिसंबर से दो दिवसीय संविधान पर चर्चा का आयोजन किया जा रहा है। शुक्रवार को इस चर्चा में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और वायनाड से कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने अपने-अपने भाषण दिए। राजनाथ सिंह ने अपने भाषण में संविधान के एतिहासिक महत्व और देश के शासन को आकार देने में इसकी भूमिका पर जोर दिया। वहीं प्रियंका गांधी ने कहा कि ये देश भय से नहीं चल सकता।
राजनाथ सिंह करीब एक घंटे से ज्यादा वक्त तक भाषण दिया था। संविधान पर चर्चा करते हुए राजनाथ सिंह ने कहा कि संविधान सिर्फ कानूनी दस्तावेज नहीं है बल्कि यह देश की आकांक्षाओं का प्रतिबिंब है। संविधान से हमें सरकार चुनने का अधिकार मिला। संविधान ने हमें प्रजा से नागरिक का दर्जा दिया। संविधान ने हमें मौलिक अधिकार दिए। हमारा संविधान सर्व सक्षम है। संविधान निर्माण से जुड़े महापुरुषों को नमन करता हूं। इस दौरान उन्होंने कांग्रेस पर जमकर हमला बोला।
राजनाथ सिंह का कांग्रेस पर वार
अपने भाषण में रक्षा मंत्री ने कांग्रेस पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि भारत के संविधान का निर्माण केवल एक विशेष राजनीतिक दल ने नहीं किया है। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि आज लोग संविधान की रक्षा की बात कर रहे हैं। लेकिन ये समझने की जरूरत है कि किसने संविधान का सम्मान किया है और किसने अपमान किया है। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस पार्टी के शासनकाल में कुल 62 बार संविधान संशोधन किया गया।कांग्रेस ने न केवल संविधान संशोधन किया है बल्कि दुर्भावना के साथ-साथ धीरे-धीरे संविधान को बदलने का प्रयास किया है। उन्होंने कहा कि पंडित जवाहर लाल नेहरू जब देश के पीएम थे,तो उस समय लगभग 17 बार संविधान में बदलाव किया गया। इंदिरा गांधी के समय लगभग 28 बार संविधान में बदलाव किए गए। राजीव गांधी के समय लगभग 10 बार और मनमोहन सिंह के वक्त 7 बार संविधान में बदलाव किया गया।
प्रियंका गांधी ने सत्ता पक्ष पर किया पलटवार
वहीं, लोकसभा में अपने पहले भाषण के दौरान प्रियंका गांधी 32 मिनट तक बोलीं। इस दौरान उन्होंने जातीय जनगणना, अदाणी मुद्दे, देश की एकता जैसे मुद्दों पर अपनी बात रखी। प्रधानमंत्री पंडित नेहरू का जिक्र करके भी सत्ता पक्ष को घेरा।लोकसभा में संविधान पर चर्चा के दौरान प्रियंका गांधी ने कहा कि संविधान हमारे देशवासियों के लिए एक सुरक्षा कवच है। यह न्याय, एकता, और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का संरक्षण करता है। लेकिन सत्ताधारी दल ने पिछले 10 वर्षों में इस सुरक्षा कवच को तोड़ने का प्रयास किया है। उन्होंने आरोप लगाया कि लेटरल एंट्री और निजीकरण के जरिए आरक्षण को कमजोर करने की कोशिश हो रही है। अगर चुनाव के नतीजे कुछ अलग होते, तो शायद संविधान बदलने का काम भी शुरू हो जाता। लेकिन जनता ने इसे रोक दिया।

						

 

  
* इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति शेखर यादव के विवादास्पद बयान के लिए उनके खिलाफ महाभियोग चलाने के लिए राज्यसभा में नोटिस दिया। सूत्रों के मुताबिक, जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ महाभियोग के लिए राज्यसभा में दिए गए नोटिस पर 55 विपक्षी सांसदों ने हस्ताक्षर किए हैं। इनमें कांग्रेस के कपिल सिब्बल, विवेक तन्खा और दिग्विजय सिंह, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के जॉन ब्रटास, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के मनोज कुमार झा और तृणमूल कांग्रेस के साकेत गोखले शामिल हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शेखर यादव के हाल के बयानों को लेकर हाल के दिनों में काफी विवाद देखने को मिला है। कार्यक्रम में 'वक़्फ़ बोर्ड अधिनियम', 'धर्मांतरण-कारण एवं निवारण' और 'समान नागरिक संहिता एक संवैधानिक अनिवार्यता' जैसे विषयों पर अलग-अलग लोगों ने अपनी बात रखी। इस दौरान जस्टिस शेखर यादव ने 'समान नागरिक संहिता एक संवैधानिक अनिवार्यता' विषय पर बोलते हुए कहा कि देश एक है, संविधान एक है तो क़ानून एक क्यों नहीं है? लगभग 34 मिनट की इस स्पीच के दौरान उन्होंने कहा, हिन्दुस्तान में रहने वाले बहुसंख्यकों के अनुसार ही देश चलेगा। यही कानून है। आप यह भी नहीं कह सकते कि हाई कोर्ट के जज होकर ऐसा बोल रहे हैं। कानून तो भैय्या बहुसंख्यक से ही चलता है। जस्टिस शेखर यादव ने ये भी कहा कि 'कठमुल्ले' देश के लिए घातक हैं। जस्टिस यादव कहते हैं, जो कठमुल्ला हैं, 'शब्द' गलत है लेकिन कहने में गुरेज नहीं है, क्योंकि वो देश के लिए घातक हैं। जनता को बहकाने वाले लोग हैं। देश आगे न बढ़े इस प्रकार के लोग हैं। उनसे सावधान रहने की ज़रूरत है। जस्टिस शेखर यादव की इन्हीं टिप्पणियों पर विवाद हो गया है। उनके विवादित बयान वाले वीडियो सोशल मीडिया पर ख़ूब वायरल हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर संज्ञान लिया और इलाहाबाद हाई कोर्ट से इस बारे में जानकारी मांगी थी। बढ़ते विवाद के बीच न्यायिक जवाबदेही और सुधार अभियान (सीजेएआर) ने भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना को पत्र लिखा जिसमें न्यायमूर्ति शेखर के खिलाफ आंतरिक जांच की मांग की गई। सीजेएआर के संयोजक प्रशांत भूषण ने न्यायमूर्ति पर न्यायिक नैतिकता का उल्लंघन करने और निष्पक्षता और धर्मनिरपेक्षता के संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया। कई अन्य अधिवक्ता संगठनों ने भी न्यायमूर्ति शेखर के खिलाफ आंतरिक जांच और अनुशासनिक कार्रवाई की मांग की। अब इस मामले को विपक्षी सदस्य संसद में उठाने की तैयारी में हैं। विपक्ष इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस शेखर कुमार यादव के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रहा है। इसके लिए निर्दलीय सांसद कपिल सिब्बल ने एक याचिका तैयार की है जिस पर 55 सांसदों ने हस्ताक्षर कर दिए हैं। *किस आधार पर किसी जज को हटाया जा सकता है?* संविधान में जजों को हटाने की पूरी प्रक्रिया बताई गई है। संविधान के अनुच्छेद 124(4), (5), 217 और 218 में इन प्रक्रियाओं का ज़िक्र है।संविधान का अनुच्छेद 121 कहता है कि सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के आचरण पर संसद में चर्चा नहीं की जा सकती है। हालांकि, राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किए जाने वाले उस प्रस्ताव पर चर्चा हो सकती है जिसमें किसी जज को हटाने की बात की गई हो। सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय का कोई न्यायाधीश राष्ट्रपति को अपना इस्तीफा दे सकता है। हालांकि, किसी जज को हटाने के लिए महाभियोग की प्रक्रिया का पालन करना होगा जिसका जिक्र संविधान के अनुच्छेद 124(4) में है। किसी भी जज को संसद के प्रत्येक सदन द्वारा निर्धारित तरीके से अभिभाषण के बाद पारित राष्ट्रपति के आदेश के अलावा उनके पद से नहीं हटाया जा सकता है। किसी न्यायाधीश को हटाने के लिए याचिका केवल 'सिद्ध कदाचार' या 'अक्षमता' के आधार पर ही राष्ट्रपति को प्रस्तुत की जा सकती है। *क्या होती है महाभियोग की प्रक्रिया? * सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के जज के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू कराने के लिए राज्यसभा में कम से कम 50 सांसदों की ओर से सदन के पीठासीन अधिकारी के सामने नोटिस के रूप में अनुरोध प्रस्तुत किया जाता है। नोटिस स्वीकार करने के बाद जज पर लगाए गए आरोपों की जांच के संदर्भ में महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करने के लिए तीन सदस्यी समिति गठित की जाती है। सुप्रीम कोर्ट के जज के खिलाफ शिकायत के मामले में गठित समिति में सुप्रीम कोर्ट के दो मौजूदा न्यायाधीश और एक न्यायविद, जबकि हाईकोर्ट के जज के मामले में गठित कमेटी में सुप्रीम कोर्ट के एक मौजूदा न्यायाधीश और हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के साथ एक न्यायविद को शामिल किया जाता है। महाभियोग प्रस्ताव को पारित कराने के लिए संबंधित सदन में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों की कम से कम दो तिहाई सदस्यों का प्रस्ताव के पक्ष में समर्थन जरूरी है। यदि दोनों सदनों का प्रस्ताव संविधान के तहत है, तो राष्ट्रपति न्यायाधीश को पद से हटाने का आदेश जारी करते हैं। उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के कदाचार या अक्षमता की जांच की प्रक्रिया का उल्लेख न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 में किया गया है।
 
  
 
 
  
 
Dec 14 2024, 10:42
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