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बीआर गवई बने भारत के 52वें चीफ जस्टिस, शपथ लेने के बाद लिया मां का आशीर्वाद

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जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई ने देश के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ले ली है। राष्ट्रपति भवन में बुधवार को आयोजित एक संक्षिप्त समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने जस्टिस गवई को शपथ दिलाई। उन्होंने जस्टिस संजीव खन्ना की जगह ली है जो कल मंगलवार को रिटायर हो गए। उनके शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, स्पीकर ओम बिरला, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और गृह मंत्री अमित शाह के अलावा पूर्व सीजेआई और सुप्रीम कोर्ट तथा हाईकोर्ट के न्यायाधीश भी शामिल हुए। पद की शपथ लेने के बाद जस्टिस गवई ने अपनी मां के पैर छुए।

2019 में बने थे सुप्रीम कोर्ट के जज

जस्टिस गवई को 24 मई, 2019 को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था। इससे पहले वो बांबे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच में जज के रूप में काम कर रहे थे। वह 6 महीने तक पद पर रहेंगे। उनका कार्यकाल इस साल 23 नवंबर तक होगा।

जस्टिस गवई सुप्रीम कोर्ट के कई संविधान पीठ का हिस्सा रहे हैं। इस दौरान वह कई ऐतिहासिक फैसलों का हिस्सा बने। जानते है कुछ ऐसे ही फैसलों के बारः-

नोटबंदी पर फैसले

नरेंद्र मोदी सरकार ने आठ नवंबर 2016 में नोटबंदी करने का फैसला लिया था। सरकार ने पांच सौ और एक हजार रुपये के नोटों को बंद करने का फैसला लिया था। सरकार के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। सरकार के फैसले के खिलाफ देश के हाई कोर्टों में 50 से अधिक याचिकाएं दायर की गई थीं। सुप्रीम कोर्ट ने इन याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई का फैसला किया। 16 दिसंबर 2016 को यह मामला संविधान पीठ को सौंपा गया। इस पीठ में जस्टिस एस अब्दुल नजीर, बीआर गवई, एएस बोपन्ना, वी रामसुब्रमण्यम और जस्टिस बीवी नागरत्ना शामिल थे। सुनवाई के बाद इस पीठ ने चार-एक के बहुमत से फैसला सुनाते हुए नोटबंदी के फैसले को सही ठहराया था। जस्टिस बीवी नागरत्ना ने अल्पमत का फैसला दिया था। उन्होंने नोटबंदी के फैसले को गैरकानूनी बताया था।

जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटाने पर फैसला

केंद्र सरकार ने पांच अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटा दिया था। सरकार ने पूर्ण राज्य जम्मू कश्मीर को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख नाम के दो केंद्र शासित राज्यों में बांट दिया था। सरकार के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 23 याचिकाएं दायर की गई थीं। सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों के संवैधानिक पीठ ने इन याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई की थी। इस पीठ में तत्काली सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस संजीव खन्ना शामिल थे। इस संविधान पीठ ने 11 दिसंबर 2023 को सर्वसम्मति से सुनाए अपने फैसले में जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटाने को कानून सम्मत बताया था।

इलेक्टोरल बॉन्ड पर फैसला

जस्टिस गवई पांच जजों की उस पीठ का भी हिस्सा रहे, जिसने राजनीतिक फंडिंग के लिए इस्तेमाल की जाने वाली इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया था। इस पीठ ने 15 फरवरी 2024 को सुनाए अपने फैसले में इलेक्टोरल बॉन्ड को अज्ञात रखना सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19 (1) (ए) का उल्लंघन बताया था।

इलेक्टोरल बॉन्ड पर फैसला सुनाने वाले पीठ में तत्कालीन सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पादरवीला और जस्टिस मनोज मिश्र शामिल थे। इस पीठ ने बॉन्ड जारी करने वाले स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को आदेश दिया था कि वो अब तक जारी किए गए इलेक्टोरल बॉन्ड की पूरी जानकारी चुनाव आयोग को उपलब्ध कराए। अदालत ने चुनाव आयोग को इन जानकारियों को सार्वजनिक करने का आदेश दिया था।

आरक्षण में आरक्षण पर फैसला

सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की पीठ ने दो अगस्त 2024 को सुनाए अपने फैसले में कहा था कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति में सब-कैटेगरी को भी आरक्षण दिया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के इस संवैधानिक पीठ ने छह बनाम एक के मत से यह फैसला सुनाया था। इस पीठ में जस्टिस बीआर गवई भी शामिल थे। इसके अलावा इस बेंच में तत्कालीन सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस मनोज मिश्र, जस्टिस पंकज मिथल, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा, जस्टिस बेला त्रिवेदी शामिल थे। जस्टिस बेला त्रिवेदी का फैसला बाकी के जजों से अलग था।

वक्फ संशोधन बिल : वित्तमंत्री ओपी चौधरी ने कांग्रेस गठबंधन पर किया प्रहार, कहा- वोट बैंक के लिए तुष्टिकरण करना इनकी मूल राजनीति

रायपुर-  भारत के दोनों सदन में वक्फ संशोधन बिल पारित हो गया है. इसे लेकर वित्तमंत्री ओपी चौधरी ने बड़ा बयान दिया है. उन्होनें कांग्रेस और इंडी अलायंस पर तीखा प्रहार किया है. विपक्ष पर तुष्टिकरण की राजनीति करने और देश के हित को खतरे में डालने का आरोप लगाया है.

वित्तमंत्री ओपी चौधरी ने कहा कि कांग्रेस और इंडी अलायंस के अन्य पार्टियों का एक ही सिद्धांत रहा है. वोट बैंक के लिए तुष्टिकरण की राजनीति करना. तुष्टिकरण के लिए पॉलिसी बनाना. देश के हित और भविष्य को खतरे में डालना. यही इनकी मूल राजनीती रही है. भारतीय जनता पार्टी स्पष्ट रूप से कहती आई है और करती भी है “Justice To All And Appeasement To None” यानी न्याय सभी के साथ, तुष्टीकरण किसी के साथ नहीं. इसी का उदाहरण वक्फ बोर्ड का क़ानून जो भारत सरकार पीएम मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में लेकर आए हैं.

उन्होने कहा कि वक्फ बोर्ड से सम्बन्धित जो प्रावधान थे, वो देश के सारे कानून और नियमों को धता बताते हुए कुछ लोगों के शोषण का केंद्र बने हुए थे. मुस्लिम समाज के गरीब लोग थे उनके ये खिलाफ था. जो कानूनों को धता बताते हुए चले उस पर रोक लगाना किसी भी जिम्मेदार सरकार के लिए जरूरी है. वही काम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के नेतृत्व में हुआ है.

बता दें कि वक्फ संशोधन बिल राज्यसभा से भी पास हो गया है. राज्यसभा में बिल के पक्ष में 128 और विपक्ष में 95 वोट पड़े. राज्यसभा में बिल पर 14 घंटे से ज्यादा चर्चा के बाद देर रात 2.32 बजे राज्यसभा से वक्फ विधेयक पारित हो गया. इसी तरह लोकसभा में भी 12 घंटे की चर्चा के बाद बुधवार देर रात बिल पास हुआ. देर रात 1.56 बजे लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने बिल के पास होने का ऐलान किया. बिल के पक्ष में 288 वोट पड़े, जबकि विरोध में 232 वोट पड़े.

कौन हैं रिटायर्ड जज निर्मल यादव? जिनके घर मिले थे 15 लाख, 17 साल बाद सीबीआई कोर्ट ने किया बरी

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चंडीगढ़ की एक विशेष सीबीआई अदालत ने शनिवार को पूर्व जस्टिस निर्मल यादव को 17 साल पुराने भ्रष्टाचार के मामले में बरी कर दिया। पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट की पूर्व जस्टिस के अलावा सीबीआई अदालत ने मामले में 3 अन्य आरोपियों रविंदर सिंह भसीन, राजीव गुप्ता और निर्मल सिंह को भी बरी करने के आदेश दिए। सीबीआई की विशेष अदालत ने 17 साल बाद इस मामले में अपना फैसला दिया है। कोर्ट के फैसले के मुताबिक इस मामले के आरोपियों का इससे कुछ भी लेनादेना नहीं है।

मामला अगस्त 2008 में सामने आया था। जस्टिस निर्मलजीत कौर उस समय पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट की जज थीं। उनपर 15 लाख रुपये की रिश्वत लेने का आरोप लगा था। उनके घर में 15 लाख रुपये भेजे गए थे। यह बैग उनके कर्मचारी ने चंडीगढ़ पुलिस के हवाले किया था। बाद में मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई थी। अभियोजन पक्ष के अनुसार यह राशि हरियाणा के पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता संजीव बंसल के क्लर्क द्वारा निर्मल यादव के लिए भेजी गई थी। दोनों जजों के नामों में समानता के कारण कैश गलती से जस्टिस निर्मलजीत कौर के घर पहुंच गया था।

जस्टिस निर्मलजीत कौर ने तुरंत पुलिस को सूचना दी, जिसके बाद मामले की परतें खुलने लगीं। जस्टिस निर्मलजीत कौर के चपड़ासी ने चंडीगढ़ पुलिस में एफआईआर दर्ज कराते हुए इस 15 लाख रुपए की गुत्थी सुलझाने की गुहार लगाई। फिर पंजाब के तत्कालीन राज्यपाल जनरल (रि.) एस एफ रॉड्रिग्स के आदेश पर मामले को सीबीआई को जांच के लिए सौंपा गया। जांच में पता चला कि ये रकम असल में न्यायमूर्ति निर्मल यादव को दी जानी थी। आरोप है कि ये रिश्वत एक प्रॉपर्टी डील से जुड़े फैसले को प्रभावित करने के लिए दी गई थी।

इस मामले में अभियोजन पक्ष के मुताबिक, ये रकम राज्य सरकार के तब के अतिरिक्त महाधिवक्ता संजीव बंसल के मुंशी लेकर गए थे। पूछताछ में पता चला कि ये रकम उस वक्त पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में जज जस्टिस निर्मल यादव तक पहुंचाई जानी थी। दोनों जजों के नाम निर्मल होने के चलते ये गलतफहमी हुई और भ्रष्टाचार का इतना बड़ा मामला सामने आया

इस केस में हरियाणा के तत्कालीन एडिशनल एडवोकेट जनरल संजीव बंसल, प्रॉपर्टी डीलर राजीव गुप्ता और दिल्ली के होटल कारोबारी रवींदर सिंह भसीन का भी नाम आया। इस आरोप के बाद 2010 में जस्टिस निर्मल यादव के तबादला उत्तराखंड हाईकोर्ट में कर दिया गया। वहां से वो 2011 में रिटायर भी हो गए।

उनके रिटायरमेंट के ही साल 2011 में उनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी गई, फिर तीन साल बाद 2014 में स्पेशल कोर्ट ने जस्टिस निर्मल यादव के खिलाफ आरोप भी तय कर दिए गए। इस मामले की जांच शुरू में चंडीगढ़ पुलिस ने की, लेकिन 15 दिन के भीतर ही इसे सीबीआई को सौंप दिया गया। साल 2009 में सीबीआई ने क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी थी, लेकिन सीबीआई कोर्ट ने इसे अस्वीकार कर दोबारा जांच के आदेश दिए।

सीबीआई ने 2011 में चार्जशीट दायर की, जिसमें न्यायमूर्ति निर्मल यादव सहित कई अन्य लोगों को आरोपी बनाया गया। हालांकि, इस दौरान कई बार कानूनी दिक्कतों के चलते मामला अटका रहा। साल 2010 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने न्यायमूर्ति निर्मल यादव के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति दी।

2011 में राष्ट्रपति से मंजूरी मिलने के बाद 3 मार्च 2011 को चार्जशीट दाखिल हुई। 2013 में सीबीआई कोर्ट ने आरोप तय किए और मुकदमे की सुनवाई शुरू की। हालांकि 2020 में कोविड महामारी के चलते सुनवाई प्रभावित हुई। 2024 में 76 गवाहों की गवाही पूरी हुई, 10 गवाह मुकदमे के दौरान पलट गए। मुकदमे की 300 से अधिक सुनवाई हुई।

इस दौरान जज के घर रुपए भेजने के आरोपी संजीव बंसल की दिसंबर 2016 में मौत हो गई। इसके बाद 2017 में उनके खिलाफ कार्यवाही बंद कर दी गई।

कैशकांड का खुलेगा राजःजस्टिस वर्मा के घर पहुंची जांच टीम, घर पर मिले थे अधजले नोट


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जस्टिस यशंवत वर्मा के घर में मिले कैश के मामले की जांच तेज हो गई है। इसी क्रम में दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के दिल्ली के 30, तुगलक क्रिसेंट स्थित आवास पर मंगलवार दोपहर सीजेआई की गठित 3 सदस्यीय टीम (इन हाउस पैनल) जांच के लिए पहुंची। टीम उस स्टोर रूम में गई जहां 500-500 के नोटों से भरीं अधजली बोरियां मिली थीं। जांच टीम में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस जस्टिस शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस जी एस संधावालिया और कर्नाटक हाईकोर्ट के जस्टिस अनु शिवरामन शामिल हैं।

जांच के दौरान समिति के सदस्य करीब 30-35 मिनट तक न्यायमूर्ति वर्मा के आधिकारिक आवास के अंदर रहे। इस दौरान उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया। न्यायमूर्ति वर्मा के आधिकारिक आवास पर बीती 14 मार्च की रात करीब 11.35 बजे आग लगने के बाद कथित नकदी बरामदगी हुई थी। जिसके बाद अग्निशमन अधिकारी मौके पर पहुंचे और आग बुझाई थी। इसके बाद 22 मार्च को भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ आरोपों की आंतरिक जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित कर दी थी।

3 राज्यों के चीफ जस्टिस के इस पैनल को ही तय करना है कि कैश मिलने के मामले में जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ एक्शन होना चाहिए या नहीं। हालांकि, पैनल कार्रवाई करने का हकदार नहीं होगा। पैनल बस अपनी रिपोर्ट चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया संजीव खन्ना को सौंपेगा। अगर पैनल को लगता है कि आरोपों में दम है और उजागर किए गए कदाचार के बाद जस्टिस को हटाने की कार्यवाही शुरू की जानी चाहिए तो चीफ जस्टिस ये रास्ते अपना सकते हैं।

अगर पैनल को लगता है कि आरोप में दम हैं। कदाचार के तहत जस्टिस को हटाया जाना चाहिए तो चीफ जस्टिस सबसे पहले संबंधित जज को इस्तीफा देने या स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने की सलाह दे सकते हैं। अगर जस्टिस दोनों कंडीशन में बात नहीं मानते हैं तो सीजेआई संबंधित हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से कह सकते हैं कि वह जस्टिस को कोई न्यायिक काम न दें। इस स्थित में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भी सूचित किया जा सकता है।

बता दें कि जस्टिस यशवंत वर्मा के लुटियंस दिल्ली स्थित घर में 14 मार्च की रात आग लगी। उनके घर के स्टोर रूम जैसे कमरे में 500-500 रुपए के जले नोटों के बंडलों से भरे बोरे मिले। सवाल खड़ा हुआ कि इतना कैश कहां से आया। मामले ने तूल पकड़ा। इसको लेकर संसद के दोनों सदनों में विपक्ष ने हंगामा किया। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने इस मामले में एक्शन लेते हुए सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की बैठक बुलाई, जिसमें जस्टिस वर्मा का ट्रांसफर इलाहाबाद हाई कोर्ट में करने का फैसला लिया।

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जब जस्टिस वर्मा का इलाहाबाद हाई कोर्ट में ट्रांसफर करने की सिफारिश की तो इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर महाभियोग की मांग की। बार एसोसिएशन ने कहा कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ सीबीआई और ईडी को मामला दर्ज करने की अनुमति दी जाए।

जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ पहले भी दर्ज हो चुका है मामला, 150 करोड़ के बैंक लोन से जुड़ा है मामला

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दिल्‍ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास से बड़ी मात्रा में कैश मिलने के बाद खलबली मची हुई है। यह घटना वैसे तो होली के वक्त की बताई जा रही है, जो कल मीडिया रिपोर्ट से सामने आई। इन सब के बीच जस्टिस यशवंत वर्मा को लेकर एक और बड़ी खबर सामने आ रही है। बताया जा रहा है कि उनके खिलाफ सीबीआई ने 2018 में भी मामला दर्ज किया था। उस दौरान उनका नाम चीनी मिल बैंक धोखाधड़ी में सामने आया था।

सीबीआई ने सिंभावली शुगर मिल्स, उसके निदेशकों और अन्य लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की, जिसमें यशवंत वर्मा भी शामिल थे। आरोप है कि इस मिल ने बैंकों को धोखा दिया था। इस मामले में चौंकाने वाली बात यह है कि जस्टिस यशवंत वर्मा 13 अक्टूबर 2014 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज बनने से पहले सिम्भावली शुगर्स में नॉन-एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर थे। सीबीआई ने अपनी एफआईआर में वर्मा को ‘आरोपी नंबर 10’ के रूप में सूचीबद्ध किया था। इस सिम्भावली शुगर्स का खाता साल 2012 में नॉन परफॉर्मिंग एसेट घोषित कर दिया गया था।

सीबीआई ने 22 फरवरी 2018 को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत एक एफआईआर दर्ज की थी। इसके पांच दिन बाद, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने 27 फरवरी 2018 को मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत एक ईसीआईआर दर्ज की। ये एफआईआर ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स (ओबीसी) की शिकायत पर दर्ज की गई थी।

सीबीआई की तरफ से एफआईआर दर्ज करने के कुछ समय बाद वर्मा का नाम चार्जशीट से हटा दिया गया था और एजेंसी ने अदालत को इस बारे में सूचित किया था। हालांकि, अब जब उनके खिलाफ संदिग्ध नकदी को लेकर मामला गरमाया है, तो उनके पुराने रिकॉर्ड फिर से सुर्खियों में आ गए हैं।

दिल्ली हाईकोर्ट जज के बंगले पर मिला कैश, जानें कैसे सामने आया मामला

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सरकार पर लोगों को भरोसा हो ना हो कानून पर पूरा भरोसा है। हालांकि, कुछ ऐसे मामले में जिनसे अदालतों पर भरोसे की दीवार भी कमजोर पड़ने लगी है। ऐसा ही एक मामला सामने आया है दिल्ली हाई कोर्ट से। दरअसल, दिल्ली हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा के घर भारी मात्रा में कैश बरामद किया गया है। देश के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की अगुवाई वाली कॉलेजियम ने इस पर तुरंत एक्शन लिया और फौरन जज यशवंत वर्मा, जिनके घर से नकदी मिली है, को इलाहाबाद हाई कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया है। जज वर्मा के घर बड़ी मात्रा में नकदी तब रोशनी में आई जब उनके घर लगी आग को बुझाने फायर ब्रिगेड वाले पहुंचे थे।

होली की छुटि्टयों के दौरान जस्टिस वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी बंगले पर आग लग गई थी। वे घर पर नहीं थे। परिवार के लोगों ने पुलिस और इमरजेंसी सर्विस को कॉल किया और आग की जानकारी दी। पुलिस और फायरब्रिगेड की टीम जब घर पर आग बुझाने गई तो उन्हें भारी मात्रा में कैश मिला।

कॉलेजियम ने इमरजेंसी मीटिंग की

सूत्रों के मुताबिक जब सीजेआई जस्टिस संजीव खन्ना को मामले की जानकारी मिली तो उन्होंने कॉलेजियम की इमरजेंसी मीटिंग बुलाई। सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम ने दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ एक रिपोर्ट आने के बाद उन्हें उनके मूल उच्च न्यायालय इलाहाबाद में स्थानांतरित करने का निर्णय लिया। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने केंद्र सरकार को उनके स्थानांतरण की सिफारिशें कीं। न्यायमूर्ति वर्मा ने अक्तूबर 2021 में दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में शपथ ली।

कौन हैं जस्टिस यशवंत वर्मा

न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा का जन्म 6 जनवरी 1969 को इलाहाबाद में हुआ था। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज से बी.कॉम ऑनर्स की डिग्री हासिल की। यशवंत वर्मा ने 1992 में रीवा विश्वविद्यालय से लॉ में ग्रेजुएशन किया। इसके बाद 08 अगस्त, 1992 को एडवोकेट के रूप में नामांकित हुए। एडवोकेट यशवंत वर्मा ने संवैधानिक, इंडस्ट्रियल विवाद, कॉर्पोरेट, टैक्सेशन, पर्यावरण और कानून की संबद्ध शाखाओं से संबंधित विभिन्न प्रकार के मामलों को संभालने वाले मुख्य रूप से दीवानी मुकदमों की पैरवी की। 2006 से प्रोमोट होने तक जस्टिस यशवंत वर्मा तक इलाहाबाद हाई कोर्ट के विशेष वकील भी रहे। 11 अक्टूबर, 2021 को उनका दिल्ली हाई कोर्ट में ट्रांसफर हो गया था।

जज के घर पर बेहिसाब नकदी मिलना गंभीर मामला

बड़ी मात्रा में नकदी कोई भी व्यक्ति अपने घर में नहीं रख सकता। काले धन के प्रवाह को रोकने के लिए यह जरूरी है कि ज्यादा नकदी होने पर उसे बैंक में जमा करें। अगर किसी के घर में बड़ी मात्रा में नकदी मिलती है तो उस व्यक्ति को नकदी का स्रोत बताना पड़ेगा। खासतौर से जज जैसे जिम्मेदार ओहदे पर बैठे व्यक्ति को तो अपनी ट्रांसपेरेंसी रखनी ही होगी। किसी जज के घर पर बेहिसाब नकदी का पाया जाना एक दुर्लभ और गंभीर मामला है।

दुर्लभतम नहीं...': आरजी कर बलात्कार-हत्या मामले में संजय रॉय को मृत्युदंड क्यों नहीं मिला

#nojusticeinrgkarrapecase

पूर्व नागरिक स्वयंसेवक संजय रॉय को पिछले साल कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में एक प्रशिक्षु डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या के लिए सोमवार को मृत्यु तक आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। इस सजा से निराशा की लहर दौड़ गई, क्योंकि कई लोग रॉय को उस अपराध के लिए मृत्युदंड की सजा की उम्मीद कर रहे थे, जिसने राष्ट्रीय आक्रोश पैदा किया था। एक वकील ने सियालदह के न्यायाधीश द्वारा उसे जीवन बख्शने के फैसले के पीछे के तर्क को समझाया।

एडवोकेट रहमान ने समाचार एजेंसी एएनआई को बताया कि सत्र न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश ने तर्क दिया कि अपराध को “दुर्लभतम में से दुर्लभतम” श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। उन्होंने कहा, "सियालदह के सत्र न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश ने संजय रॉय को मृत्यु तक आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। न्यायालय ने राज्य सरकार को पीड़ित परिवार को 17 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया है। सीबीआई ने मामले में दोषी के लिए मृत्युदंड की मांग की थी। न्यायाधीश ने कहा कि यह दुर्लभतम मामला नहीं है, इसलिए मृत्युदंड नहीं दिया गया है।" सियालदह के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश अनिरबन दास ने शनिवार को रॉय को पिछले साल 9 अगस्त को स्नातकोत्तर प्रशिक्षु डॉक्टर के खिलाफ अपराध करने का दोषी पाया था। 

न्यायालय ने आज रॉय को 50,000 रुपये का जुर्माना भरने और राज्य सरकार को मृतक डॉक्टर के परिवार को 17 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया। न्यायाधीश दास ने कहा कि अपराध "दुर्लभतम" श्रेणी में नहीं आता है, जिसके कारण दोषी को मृत्युदंड न देने का निर्णय उचित है। पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार न्यायाधीश ने सीबीआई की मृत्युदंड की याचिका को खारिज कर दिया। "सीबीआई ने मृत्युदंड की मांग की। बचाव पक्ष के वकील ने प्रार्थना की कि मृत्युदंड के बजाय जेल की सजा दी जाए...यह अपराध विरलतम श्रेणी में नहीं आता है," उन्होंने कहा।

न्यायाधीश ने आगे कहा कि धारा 66 के तहत संजय रॉय अपनी मृत्यु तक जेल में रहेंगे। दास ने कहा, "चूंकि पीड़िता की मृत्यु अस्पताल में ड्यूटी के दौरान हुई, जो उसका कार्यस्थल था, इसलिए राज्य की जिम्मेदारी है कि वह डॉक्टर के परिवार को मुआवजा दे - मृत्यु के लिए 10 लाख रुपये और बलात्कार के लिए 7 लाख रुपये।"

संजय रॉय ने क्या कहा?

इससे पहले आज रॉय ने दावा किया कि उन्हें फंसाया जा रहा है। रॉय ने अदालत से कहा, "मुझे फंसाया जा रहा है और मैंने कोई अपराध नहीं किया है। मैंने कुछ भी नहीं किया है, और फिर भी मुझे दोषी ठहराया गया है।"

पीड़िता के माता-पिता हैरान

मृतक के माता-पिता ने कहा कि वे फैसले से संतुष्ट नहीं हैं। "हम स्तब्ध हैं। यह दुर्लभतम मामला क्यों नहीं हो सकता? ड्यूटी पर तैनात एक डॉक्टर के साथ बलात्कार किया गया और उसकी हत्या कर दी गई। हम स्तब्ध हैं। इस अपराध के पीछे एक बड़ी साजिश थी," मां ने कहा।

मुसलमानों पर दिए अपने बयान पर कायम हैं जस्टिस यादव, बोले-मैंने किसी न्यायिक सीमा का उल्लंघन नहीं किया

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इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव लगातार सुर्खियों में बने हुए हैं। पिछले दिनों प्रयागराज में विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में उन्होंने हिंदू और मुस्लिम धार्मिक कानूनों या मान्यताओं को लेकर बयान दिया था। इसके बाद वह विवादों के घेरे में आ गएय़ उनको सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम के सामने पेश भी होना पड़ा था। हालांकि, अपने बयान पर कायम हैं। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की ओर से तलब किए जाने के एक महीने बाद, जस्टिस यादव ने मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर कहा है कि वह अपनी टिप्पणी पर कायम हैं, और उनके अनुसार यह न्यायिक आचरण के किसी भी सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करती है।

सीजेआई ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस अरुण भांसाली से लेटेस्ट अपडेट मांगी थी। इसके बाद जस्टिस भांसाली ने जस्टिस कुमार से कॉलेजियम के बाद उनके जवाब मांगी थी, जिसके बाद उन्होंने लेटर लिख कर जवाब दिया। जस्टिस शेखर कुमार यादव ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को पत्र लिखकर बताया कि वह अपनी टिप्पणी पर कायम हैं, जो उनके अनुसार न्यायिक आचरण के किसी भी सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करती है।

हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस अरुण भंसाली ने भी 17 दिसंबर को भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अगुवाई वाले कॉलेजियम के साथ जस्टिस यादव की बैठक के बाद उनसे जवाब तलब किया था। इस महीने की शुरुआत में, अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस की ओर से बताया गया कि सीजेआई ने मुख्य न्यायाधीश जस्टिस भंसाली को पत्र लिखकर इस मसले पर नई रिपोर्ट मांगी थी।

रिपोर्ट के मुताबिक जवाब मांगने वाले उक्त पत्र में लॉ के एक छात्र और एक आईपीएस अधिकारी की ओर से उनके भाषण के खिलाफ दायर की गई शिकायत का जिक्र किया गया था, जिसे सरकार ने अनिवार्य रूप से रिटायर कर दिया था।

रिपोर्ट के अनुसार के अनुसार, जस्टिस यादव ने अपने जवाब में दावा किया कि उनके भाषण को निहित स्वार्थ वाले लोगों की ओर से तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा है, और न्यायपालिका से जुड़े लोग जो सार्वजनिक रूप से खुद का बचाव करने में असमर्थ हैं, उन्हें न्यायिक बिरादरी के सीनियर लोगों द्वारा सुरक्षा दिए जाने की जरुरत है।

क्या बोले थे यादव

जस्टिस यादव ने कहा, आपको यह गलतफहमी है कि अगर कोई कानून (यूसीसी) लाया जाता है, तो यह आपके शरीयत, आपके इस्लाम और आपके कुरान के खिलाफ होगा, लेकिन मैं एक और बात कहना चाहता हूं। चाहे वह आपका पर्सनल लॉ हो, हमारा हिंदू कानून हो, आपका कुरान हो या फिर हमारी गीता हो, जैसा कि मैंने कहा कि हमने अपनी प्रथाओं में बुराइयों (बुराइयों) को संबोधित किया है, कमियां थीं, दुरुस्त कर लिए हैं, छुआछूत, सती, जौहर, कन्या भ्रूण हत्या, हमने उन सभी मुद्दों को संबोधित किया है, फिर आप इस कानून को खत्म क्यों नहीं कर रहे हैं, कि जब आपकी पहली पत्नी मौजूद है, तो आप तीन पत्नियां रख सकते हैं, उसकी सहमति के बिना, यह स्वीकार्य नहीं है।

*" আমি হাতজোড় করে, বাংলার মানুষের প্রতি কৃতজ্ঞতা জানাচ্ছি..." মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় বছর শেষের বার্তায় বাংলার মানুষের প্রতি কৃতজ্ঞতা প্রকাশ করলে

ডেস্ক : ২০২৪ সাল শেষ হতে চলেছে, পশ্চিমবঙ্গের মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় মঙ্গলবার সামাজিক মাধ্যমে "সংগ্রাম এবং সাফল্যের" একটি বছর পার করার জন্য মা-মাটি-মানুষের প্রতি কৃতজ্ঞতা প্রকাশ করেন। এই বছর শুরুতেই, মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়ের তৃণমূল কংগ্রেস লোকসভা নির্বাচনে একটি অভাবনীয় বিজয় অর্জন করে এবং এরপর একাধিক উপনির্বাচনে জয়লাভ করেন।

মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় তার এক্স এবং ইউটিউব অ্যাকাউন্টে একটি আন্তরিক ভিডিও শেয়ার করে জনগণের প্রতি কৃতজ্ঞতা প্রকাশ করেন, যাদের সহায়তায় সর্বভারতীয় তৃণমূল কংগ্রেস "দমন এবং শোষণের বিরুদ্ধে দৃঢ়ভাবে দাঁড়ানোর" যে সংকল্প তাতে অটল থাকতে পেরেছে।

এ বছরটির উল্লেখযোগ্য মাইলফলকগুলির উপর আলোকপাত করে, মুখ্যমন্ত্রী তাঁর দলের মানুষের সঙ্গে সম্পর্ক এবং চ্যালেঞ্জ মোকাবিলায় তার দলের সক্ষমতার প্রশংসা করেন, আবার প্রমাণিত হয় যে, তৃণমূল কংগ্রেসের পাশে বাংলার মানুষ একজোট হয়ে সামিল হয়েছেন।

ভিডিওটি, যা এক্স এবং ইউটিউব প্ল্যাটফর্মে প্রকাশ করা হয়েছে, তৃণমূল কংগ্রেস যে চ্যালেঞ্জগুলিকে অতিক্রম করে জনগণের জন্য কাজ করেছে, তা তুলে ধরা হয়েছে। কেন্দ্রের তরফে আটকে রাখা ১০০ দিনের কাজের টাকা ফেব্রুয়ারি থেকে প্রদান করা থেকে শুরু করে, লক্ষ্মীর ভাণ্ডার প্রকল্পের মাধ্যমে মহিলাদের জন্য আর্থিক সাহায্য বাড়ানো এবং ডিসেম্বর মাসে কেন্দ্রের পক্ষ থেকে আটকে রাখা আবাস যোজনার সহায়তা পূরণের জন্য রাজ্য কোষাগারের টাকা দিয়ে ১২ লক্ষ উপভোক্তাকে বাংলার বাড়ি প্রকল্পের আওতায় ক্ষতিপূরণ দেওয়া, এই সব বিষয়েই মুখ্যমন্ত্রী তার সংকল্প প্রকাশ করেছেন, যাতে জনগণের পাশে দাঁড়িয়ে সব প্রতিকূলতার বিরুদ্ধে লড়াই করা যায়।

মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় ভিডিওটির সাথে একটি আন্তরিক বার্তা লিখেছেন, ‘‘মা মাটি আর মানুষ নিয়ে বাংলা আছে ভালো, তৃণমূলের হাতেই থাকুক নতুন দিনের আলো। As we bid farewell to 2024, my heart swells with gratitude for the unflinching support of our Ma, Mati, Manush, the very cornerstone of our strength. It is your trust and faith that fuels our resolve to stand tall against the forces of oppression and exploitation. This year has been one of trials and triumphs. From the hurdles we faced together to the milestones we achieved, it is your love and solidarity that stood out. With folded hands, I thank the people of Bengal for making this year unforgettable. As we embark on a new year, I renew my pledge to serve you with utmost dedication, to protect you, and to uphold the ideals of JUSTICE, LIBERTY, EQUALITY, and FRATERNITY that define us as a people. Joy Bangla!"

इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज पर का नोटिस, जानें क्या है जजों को हटाने की प्रक्रिया
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* इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति शेखर यादव के विवादास्पद बयान के लिए उनके खिलाफ महाभियोग चलाने के लिए राज्यसभा में नोटिस दिया। सूत्रों के मुताबिक, जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ महाभियोग के लिए राज्यसभा में दिए गए नोटिस पर 55 विपक्षी सांसदों ने हस्ताक्षर किए हैं। इनमें कांग्रेस के कपिल सिब्बल, विवेक तन्खा और दिग्विजय सिंह, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के जॉन ब्रटास, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के मनोज कुमार झा और तृणमूल कांग्रेस के साकेत गोखले शामिल हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शेखर यादव के हाल के बयानों को लेकर हाल के दिनों में काफी विवाद देखने को मिला है। कार्यक्रम में 'वक़्फ़ बोर्ड अधिनियम', 'धर्मांतरण-कारण एवं निवारण' और 'समान नागरिक संहिता एक संवैधानिक अनिवार्यता' जैसे विषयों पर अलग-अलग लोगों ने अपनी बात रखी। इस दौरान जस्टिस शेखर यादव ने 'समान नागरिक संहिता एक संवैधानिक अनिवार्यता' विषय पर बोलते हुए कहा कि देश एक है, संविधान एक है तो क़ानून एक क्यों नहीं है? लगभग 34 मिनट की इस स्पीच के दौरान उन्होंने कहा, हिन्दुस्तान में रहने वाले बहुसंख्यकों के अनुसार ही देश चलेगा। यही कानून है। आप यह भी नहीं कह सकते कि हाई कोर्ट के जज होकर ऐसा बोल रहे हैं। कानून तो भैय्या बहुसंख्यक से ही चलता है। जस्टिस शेखर यादव ने ये भी कहा कि 'कठमुल्ले' देश के लिए घातक हैं। जस्टिस यादव कहते हैं, जो कठमुल्ला हैं, 'शब्द' गलत है लेकिन कहने में गुरेज नहीं है, क्योंकि वो देश के लिए घातक हैं। जनता को बहकाने वाले लोग हैं। देश आगे न बढ़े इस प्रकार के लोग हैं। उनसे सावधान रहने की ज़रूरत है। जस्टिस शेखर यादव की इन्हीं टिप्पणियों पर विवाद हो गया है। उनके विवादित बयान वाले वीडियो सोशल मीडिया पर ख़ूब वायरल हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर संज्ञान लिया और इलाहाबाद हाई कोर्ट से इस बारे में जानकारी मांगी थी। बढ़ते विवाद के बीच न्यायिक जवाबदेही और सुधार अभियान (सीजेएआर) ने भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना को पत्र लिखा जिसमें न्यायमूर्ति शेखर के खिलाफ आंतरिक जांच की मांग की गई। सीजेएआर के संयोजक प्रशांत भूषण ने न्यायमूर्ति पर न्यायिक नैतिकता का उल्लंघन करने और निष्पक्षता और धर्मनिरपेक्षता के संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया। कई अन्य अधिवक्ता संगठनों ने भी न्यायमूर्ति शेखर के खिलाफ आंतरिक जांच और अनुशासनिक कार्रवाई की मांग की। अब इस मामले को विपक्षी सदस्य संसद में उठाने की तैयारी में हैं। विपक्ष इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस शेखर कुमार यादव के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रहा है। इसके लिए निर्दलीय सांसद कपिल सिब्बल ने एक याचिका तैयार की है जिस पर 55 सांसदों ने हस्ताक्षर कर दिए हैं। *किस आधार पर किसी जज को हटाया जा सकता है?* संविधान में जजों को हटाने की पूरी प्रक्रिया बताई गई है। संविधान के अनुच्छेद 124(4), (5), 217 और 218 में इन प्रक्रियाओं का ज़िक्र है।संविधान का अनुच्छेद 121 कहता है कि सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के आचरण पर संसद में चर्चा नहीं की जा सकती है। हालांकि, राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किए जाने वाले उस प्रस्ताव पर चर्चा हो सकती है जिसमें किसी जज को हटाने की बात की गई हो। सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय का कोई न्यायाधीश राष्ट्रपति को अपना इस्तीफा दे सकता है। हालांकि, किसी जज को हटाने के लिए महाभियोग की प्रक्रिया का पालन करना होगा जिसका जिक्र संविधान के अनुच्छेद 124(4) में है। किसी भी जज को संसद के प्रत्येक सदन द्वारा निर्धारित तरीके से अभिभाषण के बाद पारित राष्ट्रपति के आदेश के अलावा उनके पद से नहीं हटाया जा सकता है। किसी न्यायाधीश को हटाने के लिए याचिका केवल 'सिद्ध कदाचार' या 'अक्षमता' के आधार पर ही राष्ट्रपति को प्रस्तुत की जा सकती है। *क्या होती है महाभियोग की प्रक्रिया? * सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के जज के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू कराने के लिए राज्यसभा में कम से कम 50 सांसदों की ओर से सदन के पीठासीन अधिकारी के सामने नोटिस के रूप में अनुरोध प्रस्तुत किया जाता है। नोटिस स्वीकार करने के बाद जज पर लगाए गए आरोपों की जांच के संदर्भ में महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करने के लिए तीन सदस्यी समिति गठित की जाती है। सुप्रीम कोर्ट के जज के खिलाफ शिकायत के मामले में गठित समिति में सुप्रीम कोर्ट के दो मौजूदा न्यायाधीश और एक न्यायविद, जबकि हाईकोर्ट के जज के मामले में गठित कमेटी में सुप्रीम कोर्ट के एक मौजूदा न्यायाधीश और हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के साथ एक न्यायविद को शामिल किया जाता है। महाभियोग प्रस्ताव को पारित कराने के लिए संबंधित सदन में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों की कम से कम दो तिहाई सदस्यों का प्रस्ताव के पक्ष में समर्थन जरूरी है। यदि दोनों सदनों का प्रस्ताव संविधान के तहत है, तो राष्ट्रपति न्यायाधीश को पद से हटाने का आदेश जारी करते हैं। उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के कदाचार या अक्षमता की जांच की प्रक्रिया का उल्लेख न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 में किया गया है।
बीआर गवई बने भारत के 52वें चीफ जस्टिस, शपथ लेने के बाद लिया मां का आशीर्वाद

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जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई ने देश के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ले ली है। राष्ट्रपति भवन में बुधवार को आयोजित एक संक्षिप्त समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने जस्टिस गवई को शपथ दिलाई। उन्होंने जस्टिस संजीव खन्ना की जगह ली है जो कल मंगलवार को रिटायर हो गए। उनके शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, स्पीकर ओम बिरला, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और गृह मंत्री अमित शाह के अलावा पूर्व सीजेआई और सुप्रीम कोर्ट तथा हाईकोर्ट के न्यायाधीश भी शामिल हुए। पद की शपथ लेने के बाद जस्टिस गवई ने अपनी मां के पैर छुए।

2019 में बने थे सुप्रीम कोर्ट के जज

जस्टिस गवई को 24 मई, 2019 को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था। इससे पहले वो बांबे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच में जज के रूप में काम कर रहे थे। वह 6 महीने तक पद पर रहेंगे। उनका कार्यकाल इस साल 23 नवंबर तक होगा।

जस्टिस गवई सुप्रीम कोर्ट के कई संविधान पीठ का हिस्सा रहे हैं। इस दौरान वह कई ऐतिहासिक फैसलों का हिस्सा बने। जानते है कुछ ऐसे ही फैसलों के बारः-

नोटबंदी पर फैसले

नरेंद्र मोदी सरकार ने आठ नवंबर 2016 में नोटबंदी करने का फैसला लिया था। सरकार ने पांच सौ और एक हजार रुपये के नोटों को बंद करने का फैसला लिया था। सरकार के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। सरकार के फैसले के खिलाफ देश के हाई कोर्टों में 50 से अधिक याचिकाएं दायर की गई थीं। सुप्रीम कोर्ट ने इन याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई का फैसला किया। 16 दिसंबर 2016 को यह मामला संविधान पीठ को सौंपा गया। इस पीठ में जस्टिस एस अब्दुल नजीर, बीआर गवई, एएस बोपन्ना, वी रामसुब्रमण्यम और जस्टिस बीवी नागरत्ना शामिल थे। सुनवाई के बाद इस पीठ ने चार-एक के बहुमत से फैसला सुनाते हुए नोटबंदी के फैसले को सही ठहराया था। जस्टिस बीवी नागरत्ना ने अल्पमत का फैसला दिया था। उन्होंने नोटबंदी के फैसले को गैरकानूनी बताया था।

जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटाने पर फैसला

केंद्र सरकार ने पांच अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटा दिया था। सरकार ने पूर्ण राज्य जम्मू कश्मीर को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख नाम के दो केंद्र शासित राज्यों में बांट दिया था। सरकार के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 23 याचिकाएं दायर की गई थीं। सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों के संवैधानिक पीठ ने इन याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई की थी। इस पीठ में तत्काली सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस संजीव खन्ना शामिल थे। इस संविधान पीठ ने 11 दिसंबर 2023 को सर्वसम्मति से सुनाए अपने फैसले में जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटाने को कानून सम्मत बताया था।

इलेक्टोरल बॉन्ड पर फैसला

जस्टिस गवई पांच जजों की उस पीठ का भी हिस्सा रहे, जिसने राजनीतिक फंडिंग के लिए इस्तेमाल की जाने वाली इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया था। इस पीठ ने 15 फरवरी 2024 को सुनाए अपने फैसले में इलेक्टोरल बॉन्ड को अज्ञात रखना सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19 (1) (ए) का उल्लंघन बताया था।

इलेक्टोरल बॉन्ड पर फैसला सुनाने वाले पीठ में तत्कालीन सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पादरवीला और जस्टिस मनोज मिश्र शामिल थे। इस पीठ ने बॉन्ड जारी करने वाले स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को आदेश दिया था कि वो अब तक जारी किए गए इलेक्टोरल बॉन्ड की पूरी जानकारी चुनाव आयोग को उपलब्ध कराए। अदालत ने चुनाव आयोग को इन जानकारियों को सार्वजनिक करने का आदेश दिया था।

आरक्षण में आरक्षण पर फैसला

सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की पीठ ने दो अगस्त 2024 को सुनाए अपने फैसले में कहा था कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति में सब-कैटेगरी को भी आरक्षण दिया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के इस संवैधानिक पीठ ने छह बनाम एक के मत से यह फैसला सुनाया था। इस पीठ में जस्टिस बीआर गवई भी शामिल थे। इसके अलावा इस बेंच में तत्कालीन सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस मनोज मिश्र, जस्टिस पंकज मिथल, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा, जस्टिस बेला त्रिवेदी शामिल थे। जस्टिस बेला त्रिवेदी का फैसला बाकी के जजों से अलग था।

वक्फ संशोधन बिल : वित्तमंत्री ओपी चौधरी ने कांग्रेस गठबंधन पर किया प्रहार, कहा- वोट बैंक के लिए तुष्टिकरण करना इनकी मूल राजनीति

रायपुर-  भारत के दोनों सदन में वक्फ संशोधन बिल पारित हो गया है. इसे लेकर वित्तमंत्री ओपी चौधरी ने बड़ा बयान दिया है. उन्होनें कांग्रेस और इंडी अलायंस पर तीखा प्रहार किया है. विपक्ष पर तुष्टिकरण की राजनीति करने और देश के हित को खतरे में डालने का आरोप लगाया है.

वित्तमंत्री ओपी चौधरी ने कहा कि कांग्रेस और इंडी अलायंस के अन्य पार्टियों का एक ही सिद्धांत रहा है. वोट बैंक के लिए तुष्टिकरण की राजनीति करना. तुष्टिकरण के लिए पॉलिसी बनाना. देश के हित और भविष्य को खतरे में डालना. यही इनकी मूल राजनीती रही है. भारतीय जनता पार्टी स्पष्ट रूप से कहती आई है और करती भी है “Justice To All And Appeasement To None” यानी न्याय सभी के साथ, तुष्टीकरण किसी के साथ नहीं. इसी का उदाहरण वक्फ बोर्ड का क़ानून जो भारत सरकार पीएम मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में लेकर आए हैं.

उन्होने कहा कि वक्फ बोर्ड से सम्बन्धित जो प्रावधान थे, वो देश के सारे कानून और नियमों को धता बताते हुए कुछ लोगों के शोषण का केंद्र बने हुए थे. मुस्लिम समाज के गरीब लोग थे उनके ये खिलाफ था. जो कानूनों को धता बताते हुए चले उस पर रोक लगाना किसी भी जिम्मेदार सरकार के लिए जरूरी है. वही काम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के नेतृत्व में हुआ है.

बता दें कि वक्फ संशोधन बिल राज्यसभा से भी पास हो गया है. राज्यसभा में बिल के पक्ष में 128 और विपक्ष में 95 वोट पड़े. राज्यसभा में बिल पर 14 घंटे से ज्यादा चर्चा के बाद देर रात 2.32 बजे राज्यसभा से वक्फ विधेयक पारित हो गया. इसी तरह लोकसभा में भी 12 घंटे की चर्चा के बाद बुधवार देर रात बिल पास हुआ. देर रात 1.56 बजे लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने बिल के पास होने का ऐलान किया. बिल के पक्ष में 288 वोट पड़े, जबकि विरोध में 232 वोट पड़े.

कौन हैं रिटायर्ड जज निर्मल यादव? जिनके घर मिले थे 15 लाख, 17 साल बाद सीबीआई कोर्ट ने किया बरी

#justice_retired_nirmal_yadav_bribe_case

चंडीगढ़ की एक विशेष सीबीआई अदालत ने शनिवार को पूर्व जस्टिस निर्मल यादव को 17 साल पुराने भ्रष्टाचार के मामले में बरी कर दिया। पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट की पूर्व जस्टिस के अलावा सीबीआई अदालत ने मामले में 3 अन्य आरोपियों रविंदर सिंह भसीन, राजीव गुप्ता और निर्मल सिंह को भी बरी करने के आदेश दिए। सीबीआई की विशेष अदालत ने 17 साल बाद इस मामले में अपना फैसला दिया है। कोर्ट के फैसले के मुताबिक इस मामले के आरोपियों का इससे कुछ भी लेनादेना नहीं है।

मामला अगस्त 2008 में सामने आया था। जस्टिस निर्मलजीत कौर उस समय पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट की जज थीं। उनपर 15 लाख रुपये की रिश्वत लेने का आरोप लगा था। उनके घर में 15 लाख रुपये भेजे गए थे। यह बैग उनके कर्मचारी ने चंडीगढ़ पुलिस के हवाले किया था। बाद में मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई थी। अभियोजन पक्ष के अनुसार यह राशि हरियाणा के पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता संजीव बंसल के क्लर्क द्वारा निर्मल यादव के लिए भेजी गई थी। दोनों जजों के नामों में समानता के कारण कैश गलती से जस्टिस निर्मलजीत कौर के घर पहुंच गया था।

जस्टिस निर्मलजीत कौर ने तुरंत पुलिस को सूचना दी, जिसके बाद मामले की परतें खुलने लगीं। जस्टिस निर्मलजीत कौर के चपड़ासी ने चंडीगढ़ पुलिस में एफआईआर दर्ज कराते हुए इस 15 लाख रुपए की गुत्थी सुलझाने की गुहार लगाई। फिर पंजाब के तत्कालीन राज्यपाल जनरल (रि.) एस एफ रॉड्रिग्स के आदेश पर मामले को सीबीआई को जांच के लिए सौंपा गया। जांच में पता चला कि ये रकम असल में न्यायमूर्ति निर्मल यादव को दी जानी थी। आरोप है कि ये रिश्वत एक प्रॉपर्टी डील से जुड़े फैसले को प्रभावित करने के लिए दी गई थी।

इस मामले में अभियोजन पक्ष के मुताबिक, ये रकम राज्य सरकार के तब के अतिरिक्त महाधिवक्ता संजीव बंसल के मुंशी लेकर गए थे। पूछताछ में पता चला कि ये रकम उस वक्त पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में जज जस्टिस निर्मल यादव तक पहुंचाई जानी थी। दोनों जजों के नाम निर्मल होने के चलते ये गलतफहमी हुई और भ्रष्टाचार का इतना बड़ा मामला सामने आया

इस केस में हरियाणा के तत्कालीन एडिशनल एडवोकेट जनरल संजीव बंसल, प्रॉपर्टी डीलर राजीव गुप्ता और दिल्ली के होटल कारोबारी रवींदर सिंह भसीन का भी नाम आया। इस आरोप के बाद 2010 में जस्टिस निर्मल यादव के तबादला उत्तराखंड हाईकोर्ट में कर दिया गया। वहां से वो 2011 में रिटायर भी हो गए।

उनके रिटायरमेंट के ही साल 2011 में उनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी गई, फिर तीन साल बाद 2014 में स्पेशल कोर्ट ने जस्टिस निर्मल यादव के खिलाफ आरोप भी तय कर दिए गए। इस मामले की जांच शुरू में चंडीगढ़ पुलिस ने की, लेकिन 15 दिन के भीतर ही इसे सीबीआई को सौंप दिया गया। साल 2009 में सीबीआई ने क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी थी, लेकिन सीबीआई कोर्ट ने इसे अस्वीकार कर दोबारा जांच के आदेश दिए।

सीबीआई ने 2011 में चार्जशीट दायर की, जिसमें न्यायमूर्ति निर्मल यादव सहित कई अन्य लोगों को आरोपी बनाया गया। हालांकि, इस दौरान कई बार कानूनी दिक्कतों के चलते मामला अटका रहा। साल 2010 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने न्यायमूर्ति निर्मल यादव के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति दी।

2011 में राष्ट्रपति से मंजूरी मिलने के बाद 3 मार्च 2011 को चार्जशीट दाखिल हुई। 2013 में सीबीआई कोर्ट ने आरोप तय किए और मुकदमे की सुनवाई शुरू की। हालांकि 2020 में कोविड महामारी के चलते सुनवाई प्रभावित हुई। 2024 में 76 गवाहों की गवाही पूरी हुई, 10 गवाह मुकदमे के दौरान पलट गए। मुकदमे की 300 से अधिक सुनवाई हुई।

इस दौरान जज के घर रुपए भेजने के आरोपी संजीव बंसल की दिसंबर 2016 में मौत हो गई। इसके बाद 2017 में उनके खिलाफ कार्यवाही बंद कर दी गई।

कैशकांड का खुलेगा राजःजस्टिस वर्मा के घर पहुंची जांच टीम, घर पर मिले थे अधजले नोट


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जस्टिस यशंवत वर्मा के घर में मिले कैश के मामले की जांच तेज हो गई है। इसी क्रम में दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के दिल्ली के 30, तुगलक क्रिसेंट स्थित आवास पर मंगलवार दोपहर सीजेआई की गठित 3 सदस्यीय टीम (इन हाउस पैनल) जांच के लिए पहुंची। टीम उस स्टोर रूम में गई जहां 500-500 के नोटों से भरीं अधजली बोरियां मिली थीं। जांच टीम में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस जस्टिस शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस जी एस संधावालिया और कर्नाटक हाईकोर्ट के जस्टिस अनु शिवरामन शामिल हैं।

जांच के दौरान समिति के सदस्य करीब 30-35 मिनट तक न्यायमूर्ति वर्मा के आधिकारिक आवास के अंदर रहे। इस दौरान उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया। न्यायमूर्ति वर्मा के आधिकारिक आवास पर बीती 14 मार्च की रात करीब 11.35 बजे आग लगने के बाद कथित नकदी बरामदगी हुई थी। जिसके बाद अग्निशमन अधिकारी मौके पर पहुंचे और आग बुझाई थी। इसके बाद 22 मार्च को भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ आरोपों की आंतरिक जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित कर दी थी।

3 राज्यों के चीफ जस्टिस के इस पैनल को ही तय करना है कि कैश मिलने के मामले में जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ एक्शन होना चाहिए या नहीं। हालांकि, पैनल कार्रवाई करने का हकदार नहीं होगा। पैनल बस अपनी रिपोर्ट चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया संजीव खन्ना को सौंपेगा। अगर पैनल को लगता है कि आरोपों में दम है और उजागर किए गए कदाचार के बाद जस्टिस को हटाने की कार्यवाही शुरू की जानी चाहिए तो चीफ जस्टिस ये रास्ते अपना सकते हैं।

अगर पैनल को लगता है कि आरोप में दम हैं। कदाचार के तहत जस्टिस को हटाया जाना चाहिए तो चीफ जस्टिस सबसे पहले संबंधित जज को इस्तीफा देने या स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने की सलाह दे सकते हैं। अगर जस्टिस दोनों कंडीशन में बात नहीं मानते हैं तो सीजेआई संबंधित हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से कह सकते हैं कि वह जस्टिस को कोई न्यायिक काम न दें। इस स्थित में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भी सूचित किया जा सकता है।

बता दें कि जस्टिस यशवंत वर्मा के लुटियंस दिल्ली स्थित घर में 14 मार्च की रात आग लगी। उनके घर के स्टोर रूम जैसे कमरे में 500-500 रुपए के जले नोटों के बंडलों से भरे बोरे मिले। सवाल खड़ा हुआ कि इतना कैश कहां से आया। मामले ने तूल पकड़ा। इसको लेकर संसद के दोनों सदनों में विपक्ष ने हंगामा किया। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने इस मामले में एक्शन लेते हुए सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की बैठक बुलाई, जिसमें जस्टिस वर्मा का ट्रांसफर इलाहाबाद हाई कोर्ट में करने का फैसला लिया।

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जब जस्टिस वर्मा का इलाहाबाद हाई कोर्ट में ट्रांसफर करने की सिफारिश की तो इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर महाभियोग की मांग की। बार एसोसिएशन ने कहा कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ सीबीआई और ईडी को मामला दर्ज करने की अनुमति दी जाए।

जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ पहले भी दर्ज हो चुका है मामला, 150 करोड़ के बैंक लोन से जुड़ा है मामला

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दिल्‍ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास से बड़ी मात्रा में कैश मिलने के बाद खलबली मची हुई है। यह घटना वैसे तो होली के वक्त की बताई जा रही है, जो कल मीडिया रिपोर्ट से सामने आई। इन सब के बीच जस्टिस यशवंत वर्मा को लेकर एक और बड़ी खबर सामने आ रही है। बताया जा रहा है कि उनके खिलाफ सीबीआई ने 2018 में भी मामला दर्ज किया था। उस दौरान उनका नाम चीनी मिल बैंक धोखाधड़ी में सामने आया था।

सीबीआई ने सिंभावली शुगर मिल्स, उसके निदेशकों और अन्य लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की, जिसमें यशवंत वर्मा भी शामिल थे। आरोप है कि इस मिल ने बैंकों को धोखा दिया था। इस मामले में चौंकाने वाली बात यह है कि जस्टिस यशवंत वर्मा 13 अक्टूबर 2014 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज बनने से पहले सिम्भावली शुगर्स में नॉन-एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर थे। सीबीआई ने अपनी एफआईआर में वर्मा को ‘आरोपी नंबर 10’ के रूप में सूचीबद्ध किया था। इस सिम्भावली शुगर्स का खाता साल 2012 में नॉन परफॉर्मिंग एसेट घोषित कर दिया गया था।

सीबीआई ने 22 फरवरी 2018 को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत एक एफआईआर दर्ज की थी। इसके पांच दिन बाद, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने 27 फरवरी 2018 को मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत एक ईसीआईआर दर्ज की। ये एफआईआर ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स (ओबीसी) की शिकायत पर दर्ज की गई थी।

सीबीआई की तरफ से एफआईआर दर्ज करने के कुछ समय बाद वर्मा का नाम चार्जशीट से हटा दिया गया था और एजेंसी ने अदालत को इस बारे में सूचित किया था। हालांकि, अब जब उनके खिलाफ संदिग्ध नकदी को लेकर मामला गरमाया है, तो उनके पुराने रिकॉर्ड फिर से सुर्खियों में आ गए हैं।

दिल्ली हाईकोर्ट जज के बंगले पर मिला कैश, जानें कैसे सामने आया मामला

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सरकार पर लोगों को भरोसा हो ना हो कानून पर पूरा भरोसा है। हालांकि, कुछ ऐसे मामले में जिनसे अदालतों पर भरोसे की दीवार भी कमजोर पड़ने लगी है। ऐसा ही एक मामला सामने आया है दिल्ली हाई कोर्ट से। दरअसल, दिल्ली हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा के घर भारी मात्रा में कैश बरामद किया गया है। देश के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की अगुवाई वाली कॉलेजियम ने इस पर तुरंत एक्शन लिया और फौरन जज यशवंत वर्मा, जिनके घर से नकदी मिली है, को इलाहाबाद हाई कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया है। जज वर्मा के घर बड़ी मात्रा में नकदी तब रोशनी में आई जब उनके घर लगी आग को बुझाने फायर ब्रिगेड वाले पहुंचे थे।

होली की छुटि्टयों के दौरान जस्टिस वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी बंगले पर आग लग गई थी। वे घर पर नहीं थे। परिवार के लोगों ने पुलिस और इमरजेंसी सर्विस को कॉल किया और आग की जानकारी दी। पुलिस और फायरब्रिगेड की टीम जब घर पर आग बुझाने गई तो उन्हें भारी मात्रा में कैश मिला।

कॉलेजियम ने इमरजेंसी मीटिंग की

सूत्रों के मुताबिक जब सीजेआई जस्टिस संजीव खन्ना को मामले की जानकारी मिली तो उन्होंने कॉलेजियम की इमरजेंसी मीटिंग बुलाई। सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम ने दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ एक रिपोर्ट आने के बाद उन्हें उनके मूल उच्च न्यायालय इलाहाबाद में स्थानांतरित करने का निर्णय लिया। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने केंद्र सरकार को उनके स्थानांतरण की सिफारिशें कीं। न्यायमूर्ति वर्मा ने अक्तूबर 2021 में दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में शपथ ली।

कौन हैं जस्टिस यशवंत वर्मा

न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा का जन्म 6 जनवरी 1969 को इलाहाबाद में हुआ था। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज से बी.कॉम ऑनर्स की डिग्री हासिल की। यशवंत वर्मा ने 1992 में रीवा विश्वविद्यालय से लॉ में ग्रेजुएशन किया। इसके बाद 08 अगस्त, 1992 को एडवोकेट के रूप में नामांकित हुए। एडवोकेट यशवंत वर्मा ने संवैधानिक, इंडस्ट्रियल विवाद, कॉर्पोरेट, टैक्सेशन, पर्यावरण और कानून की संबद्ध शाखाओं से संबंधित विभिन्न प्रकार के मामलों को संभालने वाले मुख्य रूप से दीवानी मुकदमों की पैरवी की। 2006 से प्रोमोट होने तक जस्टिस यशवंत वर्मा तक इलाहाबाद हाई कोर्ट के विशेष वकील भी रहे। 11 अक्टूबर, 2021 को उनका दिल्ली हाई कोर्ट में ट्रांसफर हो गया था।

जज के घर पर बेहिसाब नकदी मिलना गंभीर मामला

बड़ी मात्रा में नकदी कोई भी व्यक्ति अपने घर में नहीं रख सकता। काले धन के प्रवाह को रोकने के लिए यह जरूरी है कि ज्यादा नकदी होने पर उसे बैंक में जमा करें। अगर किसी के घर में बड़ी मात्रा में नकदी मिलती है तो उस व्यक्ति को नकदी का स्रोत बताना पड़ेगा। खासतौर से जज जैसे जिम्मेदार ओहदे पर बैठे व्यक्ति को तो अपनी ट्रांसपेरेंसी रखनी ही होगी। किसी जज के घर पर बेहिसाब नकदी का पाया जाना एक दुर्लभ और गंभीर मामला है।

दुर्लभतम नहीं...': आरजी कर बलात्कार-हत्या मामले में संजय रॉय को मृत्युदंड क्यों नहीं मिला

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पूर्व नागरिक स्वयंसेवक संजय रॉय को पिछले साल कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में एक प्रशिक्षु डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या के लिए सोमवार को मृत्यु तक आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। इस सजा से निराशा की लहर दौड़ गई, क्योंकि कई लोग रॉय को उस अपराध के लिए मृत्युदंड की सजा की उम्मीद कर रहे थे, जिसने राष्ट्रीय आक्रोश पैदा किया था। एक वकील ने सियालदह के न्यायाधीश द्वारा उसे जीवन बख्शने के फैसले के पीछे के तर्क को समझाया।

एडवोकेट रहमान ने समाचार एजेंसी एएनआई को बताया कि सत्र न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश ने तर्क दिया कि अपराध को “दुर्लभतम में से दुर्लभतम” श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। उन्होंने कहा, "सियालदह के सत्र न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश ने संजय रॉय को मृत्यु तक आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। न्यायालय ने राज्य सरकार को पीड़ित परिवार को 17 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया है। सीबीआई ने मामले में दोषी के लिए मृत्युदंड की मांग की थी। न्यायाधीश ने कहा कि यह दुर्लभतम मामला नहीं है, इसलिए मृत्युदंड नहीं दिया गया है।" सियालदह के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश अनिरबन दास ने शनिवार को रॉय को पिछले साल 9 अगस्त को स्नातकोत्तर प्रशिक्षु डॉक्टर के खिलाफ अपराध करने का दोषी पाया था। 

न्यायालय ने आज रॉय को 50,000 रुपये का जुर्माना भरने और राज्य सरकार को मृतक डॉक्टर के परिवार को 17 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया। न्यायाधीश दास ने कहा कि अपराध "दुर्लभतम" श्रेणी में नहीं आता है, जिसके कारण दोषी को मृत्युदंड न देने का निर्णय उचित है। पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार न्यायाधीश ने सीबीआई की मृत्युदंड की याचिका को खारिज कर दिया। "सीबीआई ने मृत्युदंड की मांग की। बचाव पक्ष के वकील ने प्रार्थना की कि मृत्युदंड के बजाय जेल की सजा दी जाए...यह अपराध विरलतम श्रेणी में नहीं आता है," उन्होंने कहा।

न्यायाधीश ने आगे कहा कि धारा 66 के तहत संजय रॉय अपनी मृत्यु तक जेल में रहेंगे। दास ने कहा, "चूंकि पीड़िता की मृत्यु अस्पताल में ड्यूटी के दौरान हुई, जो उसका कार्यस्थल था, इसलिए राज्य की जिम्मेदारी है कि वह डॉक्टर के परिवार को मुआवजा दे - मृत्यु के लिए 10 लाख रुपये और बलात्कार के लिए 7 लाख रुपये।"

संजय रॉय ने क्या कहा?

इससे पहले आज रॉय ने दावा किया कि उन्हें फंसाया जा रहा है। रॉय ने अदालत से कहा, "मुझे फंसाया जा रहा है और मैंने कोई अपराध नहीं किया है। मैंने कुछ भी नहीं किया है, और फिर भी मुझे दोषी ठहराया गया है।"

पीड़िता के माता-पिता हैरान

मृतक के माता-पिता ने कहा कि वे फैसले से संतुष्ट नहीं हैं। "हम स्तब्ध हैं। यह दुर्लभतम मामला क्यों नहीं हो सकता? ड्यूटी पर तैनात एक डॉक्टर के साथ बलात्कार किया गया और उसकी हत्या कर दी गई। हम स्तब्ध हैं। इस अपराध के पीछे एक बड़ी साजिश थी," मां ने कहा।

मुसलमानों पर दिए अपने बयान पर कायम हैं जस्टिस यादव, बोले-मैंने किसी न्यायिक सीमा का उल्लंघन नहीं किया

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इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव लगातार सुर्खियों में बने हुए हैं। पिछले दिनों प्रयागराज में विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में उन्होंने हिंदू और मुस्लिम धार्मिक कानूनों या मान्यताओं को लेकर बयान दिया था। इसके बाद वह विवादों के घेरे में आ गएय़ उनको सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम के सामने पेश भी होना पड़ा था। हालांकि, अपने बयान पर कायम हैं। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की ओर से तलब किए जाने के एक महीने बाद, जस्टिस यादव ने मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर कहा है कि वह अपनी टिप्पणी पर कायम हैं, और उनके अनुसार यह न्यायिक आचरण के किसी भी सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करती है।

सीजेआई ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस अरुण भांसाली से लेटेस्ट अपडेट मांगी थी। इसके बाद जस्टिस भांसाली ने जस्टिस कुमार से कॉलेजियम के बाद उनके जवाब मांगी थी, जिसके बाद उन्होंने लेटर लिख कर जवाब दिया। जस्टिस शेखर कुमार यादव ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को पत्र लिखकर बताया कि वह अपनी टिप्पणी पर कायम हैं, जो उनके अनुसार न्यायिक आचरण के किसी भी सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करती है।

हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस अरुण भंसाली ने भी 17 दिसंबर को भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अगुवाई वाले कॉलेजियम के साथ जस्टिस यादव की बैठक के बाद उनसे जवाब तलब किया था। इस महीने की शुरुआत में, अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस की ओर से बताया गया कि सीजेआई ने मुख्य न्यायाधीश जस्टिस भंसाली को पत्र लिखकर इस मसले पर नई रिपोर्ट मांगी थी।

रिपोर्ट के मुताबिक जवाब मांगने वाले उक्त पत्र में लॉ के एक छात्र और एक आईपीएस अधिकारी की ओर से उनके भाषण के खिलाफ दायर की गई शिकायत का जिक्र किया गया था, जिसे सरकार ने अनिवार्य रूप से रिटायर कर दिया था।

रिपोर्ट के अनुसार के अनुसार, जस्टिस यादव ने अपने जवाब में दावा किया कि उनके भाषण को निहित स्वार्थ वाले लोगों की ओर से तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा है, और न्यायपालिका से जुड़े लोग जो सार्वजनिक रूप से खुद का बचाव करने में असमर्थ हैं, उन्हें न्यायिक बिरादरी के सीनियर लोगों द्वारा सुरक्षा दिए जाने की जरुरत है।

क्या बोले थे यादव

जस्टिस यादव ने कहा, आपको यह गलतफहमी है कि अगर कोई कानून (यूसीसी) लाया जाता है, तो यह आपके शरीयत, आपके इस्लाम और आपके कुरान के खिलाफ होगा, लेकिन मैं एक और बात कहना चाहता हूं। चाहे वह आपका पर्सनल लॉ हो, हमारा हिंदू कानून हो, आपका कुरान हो या फिर हमारी गीता हो, जैसा कि मैंने कहा कि हमने अपनी प्रथाओं में बुराइयों (बुराइयों) को संबोधित किया है, कमियां थीं, दुरुस्त कर लिए हैं, छुआछूत, सती, जौहर, कन्या भ्रूण हत्या, हमने उन सभी मुद्दों को संबोधित किया है, फिर आप इस कानून को खत्म क्यों नहीं कर रहे हैं, कि जब आपकी पहली पत्नी मौजूद है, तो आप तीन पत्नियां रख सकते हैं, उसकी सहमति के बिना, यह स्वीकार्य नहीं है।

*" আমি হাতজোড় করে, বাংলার মানুষের প্রতি কৃতজ্ঞতা জানাচ্ছি..." মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় বছর শেষের বার্তায় বাংলার মানুষের প্রতি কৃতজ্ঞতা প্রকাশ করলে

ডেস্ক : ২০২৪ সাল শেষ হতে চলেছে, পশ্চিমবঙ্গের মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় মঙ্গলবার সামাজিক মাধ্যমে "সংগ্রাম এবং সাফল্যের" একটি বছর পার করার জন্য মা-মাটি-মানুষের প্রতি কৃতজ্ঞতা প্রকাশ করেন। এই বছর শুরুতেই, মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়ের তৃণমূল কংগ্রেস লোকসভা নির্বাচনে একটি অভাবনীয় বিজয় অর্জন করে এবং এরপর একাধিক উপনির্বাচনে জয়লাভ করেন।

মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় তার এক্স এবং ইউটিউব অ্যাকাউন্টে একটি আন্তরিক ভিডিও শেয়ার করে জনগণের প্রতি কৃতজ্ঞতা প্রকাশ করেন, যাদের সহায়তায় সর্বভারতীয় তৃণমূল কংগ্রেস "দমন এবং শোষণের বিরুদ্ধে দৃঢ়ভাবে দাঁড়ানোর" যে সংকল্প তাতে অটল থাকতে পেরেছে।

এ বছরটির উল্লেখযোগ্য মাইলফলকগুলির উপর আলোকপাত করে, মুখ্যমন্ত্রী তাঁর দলের মানুষের সঙ্গে সম্পর্ক এবং চ্যালেঞ্জ মোকাবিলায় তার দলের সক্ষমতার প্রশংসা করেন, আবার প্রমাণিত হয় যে, তৃণমূল কংগ্রেসের পাশে বাংলার মানুষ একজোট হয়ে সামিল হয়েছেন।

ভিডিওটি, যা এক্স এবং ইউটিউব প্ল্যাটফর্মে প্রকাশ করা হয়েছে, তৃণমূল কংগ্রেস যে চ্যালেঞ্জগুলিকে অতিক্রম করে জনগণের জন্য কাজ করেছে, তা তুলে ধরা হয়েছে। কেন্দ্রের তরফে আটকে রাখা ১০০ দিনের কাজের টাকা ফেব্রুয়ারি থেকে প্রদান করা থেকে শুরু করে, লক্ষ্মীর ভাণ্ডার প্রকল্পের মাধ্যমে মহিলাদের জন্য আর্থিক সাহায্য বাড়ানো এবং ডিসেম্বর মাসে কেন্দ্রের পক্ষ থেকে আটকে রাখা আবাস যোজনার সহায়তা পূরণের জন্য রাজ্য কোষাগারের টাকা দিয়ে ১২ লক্ষ উপভোক্তাকে বাংলার বাড়ি প্রকল্পের আওতায় ক্ষতিপূরণ দেওয়া, এই সব বিষয়েই মুখ্যমন্ত্রী তার সংকল্প প্রকাশ করেছেন, যাতে জনগণের পাশে দাঁড়িয়ে সব প্রতিকূলতার বিরুদ্ধে লড়াই করা যায়।

মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় ভিডিওটির সাথে একটি আন্তরিক বার্তা লিখেছেন, ‘‘মা মাটি আর মানুষ নিয়ে বাংলা আছে ভালো, তৃণমূলের হাতেই থাকুক নতুন দিনের আলো। As we bid farewell to 2024, my heart swells with gratitude for the unflinching support of our Ma, Mati, Manush, the very cornerstone of our strength. It is your trust and faith that fuels our resolve to stand tall against the forces of oppression and exploitation. This year has been one of trials and triumphs. From the hurdles we faced together to the milestones we achieved, it is your love and solidarity that stood out. With folded hands, I thank the people of Bengal for making this year unforgettable. As we embark on a new year, I renew my pledge to serve you with utmost dedication, to protect you, and to uphold the ideals of JUSTICE, LIBERTY, EQUALITY, and FRATERNITY that define us as a people. Joy Bangla!"

इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज पर का नोटिस, जानें क्या है जजों को हटाने की प्रक्रिया
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* इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति शेखर यादव के विवादास्पद बयान के लिए उनके खिलाफ महाभियोग चलाने के लिए राज्यसभा में नोटिस दिया। सूत्रों के मुताबिक, जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ महाभियोग के लिए राज्यसभा में दिए गए नोटिस पर 55 विपक्षी सांसदों ने हस्ताक्षर किए हैं। इनमें कांग्रेस के कपिल सिब्बल, विवेक तन्खा और दिग्विजय सिंह, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के जॉन ब्रटास, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के मनोज कुमार झा और तृणमूल कांग्रेस के साकेत गोखले शामिल हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शेखर यादव के हाल के बयानों को लेकर हाल के दिनों में काफी विवाद देखने को मिला है। कार्यक्रम में 'वक़्फ़ बोर्ड अधिनियम', 'धर्मांतरण-कारण एवं निवारण' और 'समान नागरिक संहिता एक संवैधानिक अनिवार्यता' जैसे विषयों पर अलग-अलग लोगों ने अपनी बात रखी। इस दौरान जस्टिस शेखर यादव ने 'समान नागरिक संहिता एक संवैधानिक अनिवार्यता' विषय पर बोलते हुए कहा कि देश एक है, संविधान एक है तो क़ानून एक क्यों नहीं है? लगभग 34 मिनट की इस स्पीच के दौरान उन्होंने कहा, हिन्दुस्तान में रहने वाले बहुसंख्यकों के अनुसार ही देश चलेगा। यही कानून है। आप यह भी नहीं कह सकते कि हाई कोर्ट के जज होकर ऐसा बोल रहे हैं। कानून तो भैय्या बहुसंख्यक से ही चलता है। जस्टिस शेखर यादव ने ये भी कहा कि 'कठमुल्ले' देश के लिए घातक हैं। जस्टिस यादव कहते हैं, जो कठमुल्ला हैं, 'शब्द' गलत है लेकिन कहने में गुरेज नहीं है, क्योंकि वो देश के लिए घातक हैं। जनता को बहकाने वाले लोग हैं। देश आगे न बढ़े इस प्रकार के लोग हैं। उनसे सावधान रहने की ज़रूरत है। जस्टिस शेखर यादव की इन्हीं टिप्पणियों पर विवाद हो गया है। उनके विवादित बयान वाले वीडियो सोशल मीडिया पर ख़ूब वायरल हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर संज्ञान लिया और इलाहाबाद हाई कोर्ट से इस बारे में जानकारी मांगी थी। बढ़ते विवाद के बीच न्यायिक जवाबदेही और सुधार अभियान (सीजेएआर) ने भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना को पत्र लिखा जिसमें न्यायमूर्ति शेखर के खिलाफ आंतरिक जांच की मांग की गई। सीजेएआर के संयोजक प्रशांत भूषण ने न्यायमूर्ति पर न्यायिक नैतिकता का उल्लंघन करने और निष्पक्षता और धर्मनिरपेक्षता के संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया। कई अन्य अधिवक्ता संगठनों ने भी न्यायमूर्ति शेखर के खिलाफ आंतरिक जांच और अनुशासनिक कार्रवाई की मांग की। अब इस मामले को विपक्षी सदस्य संसद में उठाने की तैयारी में हैं। विपक्ष इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस शेखर कुमार यादव के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रहा है। इसके लिए निर्दलीय सांसद कपिल सिब्बल ने एक याचिका तैयार की है जिस पर 55 सांसदों ने हस्ताक्षर कर दिए हैं। *किस आधार पर किसी जज को हटाया जा सकता है?* संविधान में जजों को हटाने की पूरी प्रक्रिया बताई गई है। संविधान के अनुच्छेद 124(4), (5), 217 और 218 में इन प्रक्रियाओं का ज़िक्र है।संविधान का अनुच्छेद 121 कहता है कि सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के आचरण पर संसद में चर्चा नहीं की जा सकती है। हालांकि, राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किए जाने वाले उस प्रस्ताव पर चर्चा हो सकती है जिसमें किसी जज को हटाने की बात की गई हो। सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय का कोई न्यायाधीश राष्ट्रपति को अपना इस्तीफा दे सकता है। हालांकि, किसी जज को हटाने के लिए महाभियोग की प्रक्रिया का पालन करना होगा जिसका जिक्र संविधान के अनुच्छेद 124(4) में है। किसी भी जज को संसद के प्रत्येक सदन द्वारा निर्धारित तरीके से अभिभाषण के बाद पारित राष्ट्रपति के आदेश के अलावा उनके पद से नहीं हटाया जा सकता है। किसी न्यायाधीश को हटाने के लिए याचिका केवल 'सिद्ध कदाचार' या 'अक्षमता' के आधार पर ही राष्ट्रपति को प्रस्तुत की जा सकती है। *क्या होती है महाभियोग की प्रक्रिया? * सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के जज के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू कराने के लिए राज्यसभा में कम से कम 50 सांसदों की ओर से सदन के पीठासीन अधिकारी के सामने नोटिस के रूप में अनुरोध प्रस्तुत किया जाता है। नोटिस स्वीकार करने के बाद जज पर लगाए गए आरोपों की जांच के संदर्भ में महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करने के लिए तीन सदस्यी समिति गठित की जाती है। सुप्रीम कोर्ट के जज के खिलाफ शिकायत के मामले में गठित समिति में सुप्रीम कोर्ट के दो मौजूदा न्यायाधीश और एक न्यायविद, जबकि हाईकोर्ट के जज के मामले में गठित कमेटी में सुप्रीम कोर्ट के एक मौजूदा न्यायाधीश और हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के साथ एक न्यायविद को शामिल किया जाता है। महाभियोग प्रस्ताव को पारित कराने के लिए संबंधित सदन में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों की कम से कम दो तिहाई सदस्यों का प्रस्ताव के पक्ष में समर्थन जरूरी है। यदि दोनों सदनों का प्रस्ताव संविधान के तहत है, तो राष्ट्रपति न्यायाधीश को पद से हटाने का आदेश जारी करते हैं। उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के कदाचार या अक्षमता की जांच की प्रक्रिया का उल्लेख न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 में किया गया है।