पंजाब में सुखबीर बादल पर हमलाःक्या पनपने लगी हैं कट्टरपंथी आतंकी ताकतें?
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शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख और पंजाब के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल पर हाल ही में जानलेवा हमला हुआ। सुखबीर सिंह बादल स्वर्ण मंदिर के बाहर धार्मिक अनुष्ठान के दौरान हे हमले मे बाल-बाल बच गए। राजनीतिक हस्तियों पर हमले और पुलिस स्टेशनों के पास विस्फोटों सहित अमृतसर में हाल की हिंसक घटनाओं ने पंजाब में संभावित अशांति के बारे में सुरक्षा विशेषज्ञों के बीच चिंता बढ़ा दी है। 24 नवंबर को पुलिस ने अजनाला पुलिस स्टेशन के बाहर एक संदिग्ध बम जैसी वस्तु जब्त की। इसके बाद 29 नवंबर को गुरबख्श नगर में एक परित्यक्त पुलिस चौकी पर बम विस्फोट हुआ। इसके बाद बुधवार को शिरोमणि अकाली दल नेता सुखबीर सिंह बादल पर हमला हुआ। सिर्फ 13 घंटे बाद, पवित्र शहर के मजीठिया पुलिस चौकी पर एक संदिग्ध विस्फोट हुआ।
एक के बाद हुई इन घटनाओं के बाद प्रश्न खड़े हो रहे हैं। सवाल उठ रहे है कि ये कट्टरपंथी आतंकवाद की शुरुआत तो नहीं है? इस घटना के बाद पंजाब के एक पूर्व आईपीएस अधिकारी के अनुसार,ये सनसनीखेज हत्या की कोशिश लगभग दो दशकों से पंजाब में पनप रहे असंतोष और धार्मिक उग्रवाद की अभिव्यक्ति थी। हमलावर अतीत में हत्या, हत्या का प्रयास, हथियार और विस्फोटक रखने तथा उग्रवाद जैसे गंभीर अपराधों में शामिल रहा है। इसके साथ ही पाकिस्तान स्थित सिख आतंकवादी संगठनों के नेतृत्व के साथ लगातार संपर्क में था।
उन्होंने कहा कि पुलिस चौकी और पुलिस स्टेशन पर हमले कानून प्रवर्तन को कमजोर करने और भय और अस्थिरता का माहौल बनाने के लिए सोची-समझी कोशिश का संकेत देते हैं। उन्होंने कहा कि कमजोर शिअद के साथ, पंजाब की आबादी का पारंपरिक पंथिक (सिख) वर्ग खुद को स्वर्गीय प्रकाश सिंह बादल या गुरचरण सिंह तोहरा जैसे मजबूत नेता की कमी महसूस कर रहा है। उन्होंने कहा, "सुखबीर इस नेतृत्व की कमी को भरने में सक्षम नहीं हैं। दूसरी ओर, शिअद खुद न केवल कमजोर है, बल्कि एक विभाजित घर भी है। एकजुट नेतृत्व की यह कमी राष्ट्र-विरोधी खालिस्तानी तत्वों के फिर से उभरने का मार्ग प्रशस्त कर रही है।"
एक पूर्व खुफिया अधिकारी ने कहा कि 1993 के बाद पैदा हुए लोग पिछले दो दशकों में झूठ पर पल रहे थे कि उग्रवाद के दौर में 1.5 लाख लोग मारे गए थे। जबकि मरने वालों की वास्तविक संख्या लगभग 22,000 थी। इसमें 1,800 पुलिस कर्मी शामिल थे। उस समय सख्त पुलिस कार्रवाई और उदारवादी आवाजों के प्रभुत्व के कारण सिख उग्रवाद खत्म हो गया था। पिछले कुछ समय से सिमरनजीत सिंह मान जैसे कट्टरपंथी आवाजों ने चुनाव लड़कर अपना लोकप्रिय आधार बनाया। साथ ही वारिस पंजाब दे के प्रमुख अमृतपाल सिंह जैसे कट्टरपंथी नेताओं का उदय इस बात का सबूत है कि पंजाब में खालिस्तान समर्थक भावनाएं बढ़ रही हैं।
कहा जा रहा है कि ये लोग सोशल मीडिया का उपयोग नई पीढ़ी को प्रभावित करने और उन्हें प्रभावित करने के लिए एक साधन के रूप में कर रहे थे। ये उन लोगों के लिए है जिन्हें यह याद नहीं है कि सिख आतंकवाद के चरम पर उनके परिवारों ने किस तरह से कष्ट झेले थे। एक अन्य अधिकारी ने कहा, "पंजाब के कृषकों के वर्चस्व वाले किसानों के विरोध/अशांति के मद्देनजर 'कट्टरपंथी उग्रवाद' की भावना को बल मिला है।
'कट्टरपंथी उग्रवाद' वाली सोच को पाकिस्तान की तरफ से भी बढ़ावा मिल रहा है।पाकिस्तान ने न केवल पिछले कई वर्षों से बब्बर खालसा इंटरनेशनल और खालिस्तान टाइगर फोर्स जैसे प्रमुख खालिस्तान समर्थक संगठनों के नेतृत्व को पनाह दी, बल्कि सिख फॉर जस्टिस के 'खालिस्तान रेफरेंडम 2020' जैसी परियोजनाओं के माध्यम से खालिस्तान समर्थक विचारधारा को बढ़ावा देना जारी रखा।पाकिस्तान समर्थित तत्व सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा देते हैं। ये हथियारों की निरंतर सप्लाई सुनिश्चित करते हैं।
Dec 11 2024, 16:05