कौन हैं श्रीलंका के नए राष्ट्रपति, जानें मजदूर के बेटे चीन समर्थक अनुरा कुमार दिसानायके के बारे में
#anura_kumara_dissanayake_swearing_in_as_president_of_sri_lanka
![]()
पड़ोसी देश श्रीलंका को अपना नया राष्ट्रपति मिल गया है। 2022 में इकोनॉमिक क्राइसिस के बाद यह पहला मौका है जब श्रीलंका में चुनाव हुए हैं। इस चुनाव में 55 साल अनुरा कुमार दिसानायके ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी प्रेमदासा को दूसरे दौर की मतगणना के बाद मात देते हुए जीत दर्ज कर ली।जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) पार्टी के नेता दिसानायके इस चुनाव में नेशनल पीपुल्स पावर (एनपीपी) गठबंधन की ओर से राष्ट्रपति पद के कैंडिडेट बने थे। एक साधारण परिवार से आने वाले अनुरा की इस पद तक पहुंचने की कहानी काफी दिलचस्प है।
दिसानायके का जन्म 24 नवंबर 1968 में श्रीलंका की राजधानी कोलंबो से 100 किलोमीटर दूर थंबुट्टेगामा में एक दिहाड़ी मजदूर के घर हुआ था। दिसानायके अपने परिवार के गांव से विश्वविद्यालय जाने वाले पहले छात्र थे। एक बातचीत में उन्होंने बताया था कि शुरुआत में पेराडेनिया विश्वविद्यालय में दाखिला लिया था लेकिन राजनीतिक विचारधाराओं के कारण धमकियां मिलने लगीं और वह केलानिया यूनिवर्सिटी आ गए। दिसानायके ने 80 के दशक में छात्र राजनीति शुरू की। कॉलेज में रहते हुए 1987 और 1989 के बीच सरकार विरोधी आंदोलन के दौरान वह जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) में शामिल हुए और तेजी से अपनी पहचान बनाई।
80 के दशक में जेवीपी ने सरकार के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह किया और भारी हिंसा हुई। इसे श्रीलंका का खूनी दौर भी कहा जाता है। सरकार ने इस विद्रोह को कुचला और इसमें जेवीपी संस्थापक रोहाना विजेवीरा भी मारे गए। हालांकि बाद में दिसानायके और जेवीपी ने हिंसा के रास्ते से दूरी बनाई और। दिसानायके साल 2000 में सांसद बने और इसके बाद 2004 में श्रीलंका फ्रीडम पार्टी (एसएलएफपी) के साथ गठबंधन के बाद उन्होंने कृषि और सिंचाई मंत्री बनाया गया। हालांकि गठबंधन में असहमति के बाद दिसानायके ने 2005 में ही मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
दियानायके 2014 में सोमावंसा अमरसिंघे के बाद जेवीपी के अध्यक्ष बने। दिसानायके ने नेतृत्व संभालने के बाद पार्टी की छवि को बदलते हुए 1971 और 1987 के विद्रोह से जुड़े अपने हिंसक अतीत से दूर किया। उन्होंने सार्वजनिक रूप से उस दौरान पार्टी की भूमिका के लिए खेद भी जताया।राष्ट्रपति पद की दौड़ में दिसनायके पहली बार 2019 में आए लेकिन बुरी तरह से हारे और केवल 3 प्रतिशत वोट ही पा सके। 2022 में श्रीलंका में आर्थिक बदहाली के बाद जेवीपी ने जौरदार अभियान चलाया और खुद को भ्रष्टाचार विरोधी नेता के तौर पर पेश करने में कामयाब रहे। दो साल में ही दिसानायके श्रीलंका के सबसे बड़े नेता बन गए।
चीन का बेहद करीबी माना जाता है। उन्होंने हमेशा मार्क्सवादी विचारधारा को आगे रखते हुए देश में बदलाव की बात कही है। राष्ट्रपति चुनाव के कैंपेन में भी दिसानायके ने ज्यादातर छात्रों और मजदूरों के मुद्दे का जिक्र किया। उन्होंने श्रीलंका के लोगों से शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में बदलाव के वादे किए, जिसका नतीजा उन्हें जीत के रूप में मिला।





Sep 23 2024, 14:21
- Whatsapp
- Facebook
- Linkedin
- Google Plus
1- Whatsapp
- Facebook
- Linkedin
- Google Plus
2.7k