*टीबी की दवा खा रहे मरीज भी खा सकते हैं फाइलेरिया से बचाव की दवा*
गोरखपुर - जिले में इस समय स्वास्थ्य विभाग की टीम घर घर जाकर फाइलेरिया से बचाव की दवा खिला रही हैं। यह दवा दो वर्ष से कम उम्र के बच्चों, गर्भवती और अति गंभीर बीमार लोगों को नहीं खिलाई जाती है। मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ आशुतोष कुमार दूबे ने अति गंभीर बीमार लोगों की श्रेणी को स्पष्ट करते हुए कहा है कि टीबी की दवा खा रहे सामान्य मरीज फाइलेरिया से बचाव की भी दवा खा सकते हैं। उन्होंने कहा कि यह दवा सिर्फ अति गंभीर और बिस्तर पकड़ चुके टीबी के डीआर रोगियों को ही नहीं खिलाई जानी है। अगर वह चलने फिरने की स्थिति में आ जाते हैं तो दवा खा सकते हैं। ब्लड प्रेशर, शुगर, एचआईवी व थॉयराइड जैसी कई जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों के मरीजों के लिए यह दवा पूरी तरह से सुरक्षित है।
मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने बताया कि जिले में टीबी के करीब नौ हजार से अधिक रोगी इलाज पर हैं । इन सभी मरीजों के लिए नियमित दवा का सेवन करना अनिवार्य है। अगर बीच में वह दवा छोड़ देते हैं तो टीबी ठीक नहीं होती है। दवा छोड़ने वाले मरीजों के डीआर टीबी का मरीज होने की आशंका बढ़ जाती है। अगर कोई डीआर टीबी का मरीज घर पर रह कर इलाज करवा रहा है तो वह भी चिकित्सक की सलाह से फाइलेरिया से बचाव की दवा खा सकता है। डीआर टीबी के ऐसे मरीज जो अस्पताल में भर्ती हैं, अस्पताल से शीघ्र डिस्चार्ज होकर आए हैं या फिर अत्यधिक कमजोर होकर बिस्तर पकड़ चुके हैं, उन्हें फाइलेरिया से बचाव की दवा का सेवन नहीं करना है।
डॉ दूबे बताया कि पांच साल तक लगातार साल में एक बार फाइलेरिया से बचाव की दवा का सेवन करने से इस लाइलाज बीमारी से सुरक्षा मिलती है। कुछ मिथकों के कारण ऐसे लोग दवा खाने से बचते हैं जिन्हें पहले से किसी बीमारी की दवा चल रही है, जबकि यह दवा सिर्फ ऐसे बीमार लोगों को नहीं खानी है जो अति गंभीर हैं और बिस्तर पकड़ चुके हैं। ह्रदय रोगी, कैंसर रोगी और अन्य अति गंभीर बीमारियों के मरीजों को अपने चिकित्सक से सलाह लेकर यह दवा अवश्य खानी चाहिए। फाइलेरिया से बचाव की दवा स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए पूरी तरह से सुरक्षित हैं। इसे सिर्फ गर्भवती को नहीं खिलाया जाता है। अभियान के दौरान एक से दो वर्ष के बच्चों को पेट से कीड़े निकालने की दवा खिलाई जा रही है।
टीम के सामने खाएं दवा
डॉ दूबे ने बताया कि जिले में 4133 टीम घर घर जाकर दवा खिला रही हैं। यह दवा प्रत्येक कार्यदिवसों में सोमवार, मंगलवार, गुरुवार और शुक्रवार को खिलाई जा रही है। अवकाश के दिन दवा नहीं खिलाई जाती है। लोगों को यह दवा टीम के सामने खानी है। टीम को ही उम्र के अनुसार दवा की निर्धारित डोज की सही जानकारी है, इसलिए उनके सामने दवा खाना सुरक्षित है। इसे खाली पेट नहीं खानी है। सभी दवाएं बारी बारी एक ही साथ खानी है । जिन लोगों के शरीर में माइक्रोफाइलेरी होंगे उन्हें दवा खाने के बाद हल्की मितली, चक्कर आना, सिरदर्द के लक्षण आ सकते हैं जो सामान्यतया स्वतः ठीक हो जाते हैं। ऐसा तब होता है जबकि शरीर में माइक्रोफाइलेरी दवा से मरने लगते हैं और शरीर इनसे मुक्त हो रहा होता है।
लाइलाज है फाइलेरिया
क्यूलेक्स मच्छर के काटने से होने वाली फाइलेरिया (हाथीपांव) बीमारी का लक्षण दिखने में पांच से पंद्रह साल तक का समय लग जाता है। एक बार लक्षण आ जाने पर यह पूरी तरह से ठीक नहीं होता हैं। प्रमुख लक्षणों में हाथ, पैर, स्तन और अंडकोष में सूजन (हाइड्रोसील) हैं। अगर बचाव की दवा का सेवन लगातार पांच वर्षों तक कर लिया जाए तो संक्रमण के बावजूद यह लक्षण नहीं आएंगे। जिले में यह अभियान सभी 19 ब्लॉक के गांवों में और सात शहरी क्षेत्रों में चलाया जा रहा है।
Aug 17 2024, 20:10