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पाकिस्तान से क्यों अलग होना चाहते हैं बलूच? आजादी की लड़ाई नाजुक मोड़ पर

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बलूचिस्तान में जाफर एक्सप्रेस ट्रेन हाईजैकिंग कांड ने बलूचियों और पाकिस्तानियों के बीच के पुराने संघर्ष को उजागर कर दिया है। अपने खोए अस्‍तित्‍व वापस पाने के लिए बलूचिस्‍तान लिब्रेशन आर्मी (बीएलए) ने एक बार फिर पाकिस्‍तानी सेना के खिलाफ बिगुल फूंक दिया है। बलूचों ने ठान लिया है कि वो आजादी हासिल करके रहेंगे। जबरन पाकिस्‍तान मिलाने का दर्द उस वक्‍त बलूचियों के लिए नासूर बना गया, जब पाकिस्‍तान ने उनकी प्राकृतिक संपदा का दोहन शुरू कर दिया।

पाकिस्तान का सबसे संपन्न लेकिन पिछड़ा राज्य

बलूचिस्तान, पाकिस्तान का सबसे बड़ा राज्य है और 44 फीसदी हिस्सा कवर करता है। जर्मनी के आकार का होने का बावजूद यहां की आबादी सिर्फ डेढ़ करोड़ है, जर्मनी से 7 करोड़ कम। बलूचिस्तान तेल, सोना, तांबा और अन्य खदानों से सम्पन्न है। इन संसाधनों का इस्तेमाल कर पाकिस्तान अपनी जरूरतें पूरी करता है। इसके बाद भी ये इलाका सबसे पिछड़ा है। यही वजह है कि बलूचिस्तान में पाकिस्तान के खिलाफ नफरत बढ़ रही है।

आधुनिक बलूचिस्तान की कहानी

बलूचिस्तान कभी भी पाकिस्तान का अंग नहीं बनना चाहता था। जबरन पाकिस्‍तान मिलाने का दर्द बलूचियों के लिए नासूर बना गया है। अब बलूचों की आजादी की लड़ाई नाजुक मोड़ पर पहुंच गई है। आधुनिक बलूचिस्तान की कहानी 1876 से शुरू होती है। तब बलूचिस्तान पर कलात रियासत का शासन था। भारतीय उपमहाद्वीप पर ब्रिटिश हुकूमत शासन कर रही थी। इसी साल ब्रिटिश सरकार और कलात के बीच संधि हुई।

संधि के मुताबिक अंग्रेजों ने कलात को सिक्किम और भूटान की तरह प्रोटेक्टोरेट स्टेट का दर्जा दिया। यानी भूटान और सिक्किम की तरह कलात के आंतरिक मामलों में ब्रिटिश सरकार का दखल नहीं था, लेकिन विदेश और रक्षा मामलों पर उसका नियंत्रण था

भारत-पाक की तरह कलात में भी आजादी की मांग

1947 में भारतीय उपमहाद्वीप में आजादी की प्रक्रिया की शुरुआत हुई। भारत और पाकिस्तान की तरह कलात में भी आजादी की मांग तेज हो गई। जब 1946 में ये तय हो गया कि अंग्रेज भारत छोड़ रहे हैं, तब कलात के खान यानी शासक मीर अहमद खान ने अंग्रेजों के सामने अपना पक्ष रखने के लिए मोहम्मद अली जिन्ना को सरकारी वकील बनाया। बलूचिस्तान नाम से एक नया देश बनाने के लिए 4 अगस्त 1947 को दिल्ली में एक बैठक बुलाई गई। इसमें मीर अहमद खान के साथ जिन्ना और जवाहर लाल नेहरू भी शामिल हुए। बैठक में जिन्ना ने कलात की आजादी की वकालत की।

बैठक में ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने भी माना कि कलात को भारत या पाकिस्तान का हिस्सा बनने की जरूरत नहीं है। तब जिन्ना ने ही ये सुझाव दिया कि चार जिलों- कलात, खरान, लास बेला और मकरान को मिलाकर एक आजाद बलूचिस्तान बनाया जाए

आजादी की घोषणा के एक महीने बाद बदले हालात

11 अगस्त 1947 को कलात और मुस्लिम लीग के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर हुए। इसके साथ ही बलूचिस्तान एक अलग देश बन गया। हालांकि, इसमें एक पेंच ये था कि बलूचिस्तान की सुरक्षा पाकिस्तान के हवाले थी। आखिरकार कलात के खान ने 12 अगस्त को बलूचिस्तान को एक आजाद देश घोषित कर दिया। बलूचिस्तान में मस्जिद से कलात का पारंपरिक झंडा फहराया गया। कलात के शासक मीर अहमद खान के नाम पर खुतबा पढ़ा गया।

लेकिन, आजादी घोषित करने के ठीक एक महीने बाद 12 सितंबर को ब्रिटेन ने एक प्रस्ताव पारित किया और कहा कि बलूचिस्तान एक अलग देश बनने की हालत में नहीं है। वह अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारियां नहीं उठा सकता।

बलूचिस्तान जबरन पाकिस्‍तान में मिला दिया

कलात के खान ने अक्टूबर 1947 में पाकिस्तान का दौरा किया। उन्हें उम्मीद थी कि जिन्ना उनकी मदद करेंगे। जब खान कराची पहुंचे तो वहां मौजूद हजारों बलूच लोगों ने उनका स्वागत बलूचिस्तान के राजा की तरह किया, लेकिन उनका स्वागत करने पाकिस्तान का कोई बड़ा अधिकारी नहीं पहुंचा।पाकिस्तान के इरादे में बदलाव का यह बड़ा संकेत था। बलूचिस्तान जबरन पाकिस्‍तान में मिला दिया गया। इसी के साथ पाकिस्‍तान ने उनकी प्राकृतिक संपदा का दोहन शुरू कर दिया। बदले में बलूचिस्‍तान को ना ही विकास मिला और ना ही उनके प्राकृतिक संपदा के दोहन से होने वाले फायदे में कोई हिस्‍सा। देखते ही देखते, बलूचिस्‍तान की प्राकृतिक संपदा पाकिस्‍तान की अर्थव्‍यवस्‍था की रीढ़ बन चुकी थी, लेकिन बलूचिस्‍तान कंगाली की गर्त में जा गिरा था।

1948 से जारी है विद्रोह

बलूचिस्‍तान की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा शुरू से ही स्वतंत्रता और स्वायत्तता की मांग करता रहा है। उन्होंने 1948 में पाकिस्तान के खिलाफ पहला विद्रोह शुरू किया। पाकिस्तान ने 1948 के विद्रोह को कुचल दिया। विद्रोह को तब भले ही दबा दिया गया, लेकिन ये कभी खत्म नहीं हुआ। बलूचिस्तान की आजादी के लिए शुरू हुए इस विद्रोह को नए नेता मिलते रहे। 1950, 1960 और 1970 के दशक में वे पाकिस्तान सरकार के लिए चुनौती बनते रहे। 2000 तक पाकिस्तान के खिलाफ चार बलूच विद्रोह हुए।

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मोदी सरकार फासिस्ट नहीं”, सीपीएम के इस बदले तेवर का कांग्रेस-सीपीआई में विरोध तेज

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मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार को फासिस्ट यानी फासीवादी या नियो फासिस्ट नहीं मानती। दरअसल, सीपीएम) की अप्रैल महीने में तमिलनाडु के मदुरै में 24वीं कांग्रेस का आयोजन किया जा रहा है। इसके लिए तैयार किए गए राजनीतिक प्रस्ताव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को फासिस्ट या नियो फासिस्ट नहीं कहा गया है। इस प्रस्ताव के मसौदे को सीपीएम केंद्रीय समिति ने कोलकाता में 17 से 19 जनवरी के बीच अपनी बैठक में मंजूरी दी थी। अब सीपीएम के इस रुख ने केरल की सियासत में तूफान मचा दिया है। इसको लेकर कांग्रेस और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी सीपीआई ने कड़ी आपत्ति जताई है और इसे बीजेपी के प्रति नरम रुख अपनाने की रणनीति बताया है।

इस प्रस्ताव के मसौदे को सीपीएम केंद्रीय समिति ने कोलकाता में 17 से 19 जनवरी के बीच अपनी बैठक में मंजूरी दी थी। सीपीएम ने अपने मसौदा राजनीतिक प्रस्ताव में कहा है कि मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान दक्षिणपंथी, सांप्रदायिक और सत्तावादी ताकतों का एकीकरण हुआ है जो 'नियो फासिस्ट विशेषताओं' को दर्शाता है। लेकिन वह मोदी सरकार को सीधे तौर पर फासिस्ट या नियो फासिस्ट नहीं मानती। प्रस्ताव में यह भी बताया गया है कि मोदी सरकार को फासिस्ट या नियो फासिस्ट क्यों नहीं कहा गया है, क्योंकि इसके कुछ कदम फासिस्ट विचारधारा से मेल नहीं खाते हैं। सीपीएम के इस प्रस्ताव का उद्देश्य यह दिखाना था कि सरकार की नीतियां पूरी तरह से फासिस्ट नहीं हैं, बल्कि उनमें कुछ तत्त्व ऐसे हैं, जो लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का पालन करते हैं।

सीपीएम की बीजेपी के वोटों को हासिल करने की कोशिश-कांग्रेस

मोदी सरकार को लेकर सीपीएम के राजनीतिक प्रस्ताव में इस टिप्पणी को लेकर कांग्रेस ने तल्ख टिप्पणी की है। केरल में विपक्ष के नेता वीडी सतीशन ने आरोप लगाया कि सीपीएम बीजेपी के प्रति नरम रवैया अपना रही है और इस प्रस्ताव के जरिए वह केरल में बीजेपी समर्थकों के वोट हासिल करने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस नेता रमेश चेन्निथला ने कहा कि 2021 के विधानसभा चुनावों में सीपीएम ने बीजेपी के वोटों से जीत हासिल की थी और अब 2026 के चुनावों के लिए वही रणनीति अपनाई जा रही है।

सीपीएम की यह रणनीति समझ से परे-सीपीआई

वहीं, सीपीएम की गठबंधन सहयोगी सीपीआई ने भी अपने स्टैंड में सुधार की मांग कर दी है। सीपीआई ने कहा है कि सीपीएम की ओर से मोदी सरकार को फासीवादी बचाने से बचने की जल्दबाजी नहीं समझ आ रही है। पार्टी की केरल इकाई के सचिव बिनॉय विश्वम ने कहा कि सीपीएम की यह रणनीति समझ से परे है। उन्होंने कहा कि बीजेपी सरकार धर्म और आस्था का राजनीतिक उपयोग कर रही है। जो कि फासिस्ट विचारधारा की पहचान होती है। उनका आरोप था कि सीपीएम जानबूझकर मोदी सरकार को फासीवादी कहने से बच रही है।

सीपीएम के बदले रुख की वजह

वहीं, सीपीएम के इस अचानक हुए “हृदय परिवर्तन” से सवाल उठना लाजमी है। जानकार इसे पिनराई विजयन की चुनावी रणनीति मान रहे हैं। केरल में बीजेपी जिस तेजी से पैर पसार रही है, वह एलडीएफ को टेंशन देने के लिए काफी है। 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने केरल में अपना खाता खोल दिया है। अगर बीजेपी के वोटर बढ़े तो सर्वाधिक नुकसान वाम दलों को ही होगा। 10 साल की एंटी इम्कबेंसी से निपटने के लिए जरूरी है कि बीजेपी और कांग्रेस की ओर झुक रहे वोटर लेफ्ट के सपोर्ट में वोटिंग करें। एक्सपर्ट्स का कहना है कि केरल में बीजेपी के प्रति सहानुभूति रखने वाले वोटर्स का एक धड़ा है जो कांग्रेस को नहीं पसंद करता है। सीपीएम की नजर उस पर भी है।

बंगाल की धरती से मोहन भागवत ने किया हिंदुओं को एकजुट होने का आह्वान, दिया बड़ा बयान

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने पश्चिम बंगाल की धरती से कहा है कि हमें हिंदू समाज को एकजुट और संगठित करने की जरूरत है।उन्होंने हिंदू समाज को जिम्मेदार समुदाय बताते हुए कहा कि वह एकता को विविधता का प्रतीक मानते हैं। संघ प्रमुख ने ये बातें पश्चिम बंगाल के पूर्वी बर्धमान स्थित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कही।

देश का जिम्मेदार समाज हिंदू-भागवत

पश्चिम बंगाल के ब‌र्द्धमान में संघ के मध्य बंग प्रांत की सभा को संबोधित करते हुए हिंदू समाज की एकता पर जोर दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि संघ का उद्देश्य संपूर्ण हिंदू समाज को संगठित करना है, क्योंकि यह समाज भारत की सांस्कृतिक और नैतिक पहचान का प्रतीक है।भागवत ने कहा कि अक्सर लोगों द्वारा यह सवाल उठाया जाता है कि संघ सिर्फ हिंदू समाज पर ही क्यों ध्यान देता है। इसका उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि हिंदू समाज ही इस देश का जिम्मेदार समाज है, जो उत्तरदायित्व की भावना से परिपूर्ण है। इसलिए, इसे एकजुट करना आवश्यक है।

हिंदू ने विश्व की विविधता को अपनाया-भागवत

भागवत ने कहा, भारतवर्ष एक भौगोलिक इकाई नहीं है इसका आकार समय के साथ घट या बढ़ सकता है। इसे भारतवर्ष तब कहा जाता है जब यह अद्वितीय प्रकृति का प्रतीक हो। भारत का अपना चरित्र है। जिन लोगों को लगा कि इस प्रकृति के साथ नहीं रह सकते, उन्होंने अपना अलग देश बना लिया। जो लोग बचे रहे, वे चाहते थे कि भारत का सार बना रहे। यह सार क्या है? 15 अगस्त 1947 से अधिक पुराना है। यह हिंदू समाज है, जो विश्व की विविधता को अपनाकर फलता-फूलता है। यह प्रकृति विश्व की विविधता को स्वीकार करती है और उसके साथ आगे बढ़ती है। यह एक शाश्वत सत्य है जो कभी नहीं बदलता है।

इतिहास से सबक और समाज में एकता की आवश्यकता

अपने संबोधन में मोहन भागवत ने ऐतिहासिक आक्रमणों का जिक्र करते हुए कहा कि भारत पर शासन करने वाले आक्रमणकारियों ने समाज के भीतर विश्वासघात के कारण सफलता पाई। उन्होंने सिकंदर से लेकर आधुनिक युग तक के विभिन्न आक्रमणों का उदाहरण देते हुए कहा कि समाज जब संगठित नहीं रहता, तब बाहरी ताकतें हावी हो जाती हैं। इसलिए, हिंदू समाज की एकजुटता सिर्फ वर्तमान की नहीं, बल्कि भविष्य की भी जरूरत है।

हिंदू पूरे देश की विविधता को एकजुट रखते हैं-भागवत

मोहन भागवत ने कहा कि भारत में कोई भी सम्राटों और महाराजाओं को याद नहीं करता, बल्कि अपने पिता का वचन पूरा करने के उद्देश्य से 14 साल के लिए वनवास जाने वाले राजा (भगवान राम) और उस व्यक्ति (भरत) को याद रखता है, जिसने अपने भाई की पादुकाएं सिंहासन पर रख दीं और वनवास से लौटने पर राज्य उसे राज सौंप दिया। उन्होंने कहा, ये विशेषताएं भारत को परिभाषित करती हैं। जो लोग इन मूल्यों का पालन करते हैं, वे हिंदू हैं और वे पूरे देश की विविधता को एकजुट रखते हैं। हम ऐसे कार्यों में शामिल नहीं होते जो दूसरों को आहत करते हों। शासक, प्रशासक और महापुरुष अपना काम करते हैं, लेकिन समाज को राष्ट्र की सेवा के लिए आगे रहना चाहिए।

बता दें कि पहले ममता बनर्जी सरकार ने आरएसएस की रैली को अनुमति नहीं दी थी। इस पर संघ ने कलकत्ता हाईकोर्ट का रास्ता खटखटाया था, जिसने उन्हें रैली की इजाजत दी।

पीएम मोदी ने फ्रांस के मार्सिले पहुंचते ही वीर सावरकर को याद किया, क्या है कारण?

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प्रधानमंत्री मोदी फ्रांस दौरे के दौरान फ्रांस के दूसरे सबसे बड़े शहर और बंदरगाह मार्सिले का भी पहुंचे। मार्सिले एक ऐसा शहर जो नेपोलियन बोनापार्ट और फुटबॉलर जिनेदिन जिदान जैसी हस्तियों का घर है। यहां दुनियाभर से पर्यटक घूमने आते हैं और इस शहर की खूबसूरती का आनंद लेते हैं। वैसे, इस शहर से भारत का भी एक पुराना नाता रहा है। इस दौरान मोदी ने एक्स पर मार्सिले में 115 साल पुरानी घटना का जिक्र कर विनायक दामोदर सावरकर को भी याद किया।

फ्रांस के मार्सिले शहर में पीएम मोदी ने स्वतंत्रता सेनानी वीडी सावरकर की स्मृति में श्रद्धांजलि अर्पित की। मार्सिले में उन्होंने विनायक दामोदर सावरकर को याद किया। पीएम मोदी ने वीर सावरकर की तारीफ भी की। 

पीएम मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट किया और लिखा, "भारत की स्वतंत्रता की खोज में इस शहर का विशेष महत्व है। यहीं पर महान वीर सावरकर ने साहसपूर्वक भागने का प्रयास किया था। मैं मार्सिले के लोगों और उस समय के फ्रांसीसी कार्यकर्ताओं को भी धन्यवाद देना चाहता हूं जिन्होंने मांग की थी कि उन्हें ब्रिटिश हिरासत में न सौंपा जाए। वीर सावरकर की बहादुरी आज भी पीढ़ियों को प्रेरित करती है!"

मार्सिले से सावरकर के जुड़ाव की क्या है कहानी?

भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान, सावरकर को गिरफ्तार कर मुकदमे के लिए ब्रिटिश जहाज मोरिया से भारत लाया जा रहा था, तब उन्होंने 8 जुलाई, 1910 को कैद से भागने का प्रयास किया था। कहा जाता है सावरकर जहाज के पोर्टहोल से निकलकर तैरते हुए किनारे पहुंच गए थे, लेकिन बाद में उन्हें फ्रांसीसी अधिकारियों ने पकड़ लिया और उन्हें ब्रिटिश जहाज अधिकारियों की हिरासत में वापस सौंप दिया था। इसके बाद उन्हें काला पानी की सजा हुई।

मार्सिले शहर का भारत के लिए महत्व

मार्सिले में शहीद सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने शहर में भारत के नए महावाणिज्य दूतावास का उद्घाटन किया है। मार्सिले दक्षिणी फ्रांस में है और यह देश का दूसरा सबसे बड़ा शहर होने के साथ बंदरगाह भी लिए है, जिससे व्यापार का बड़ा केंद्र है। मार्सिले भूमध्य सागर के तट पर भारत-फ्रांस के लिए एक व्यापारिक गेटवे का काम करता है। यह भारत-मध्य पूर्व-यूरोप इकॉनोमिक कॉरिडोर के प्रमुख एंट्री प्वाइंट में से एक है।

सितंबर में पीएम मोदी के साथ अमेरिका नहीं गए थे डोभाल, इस बार होंगे साथ, जानिए क्यों है ये दौरा बेहद अहम
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* भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दो दिवसीय फ्रांस दौरा अब समाप्त हो चुका है। आज से पीएम मोदी अमेरिका के दो दिवसीय दौरे पर रहेंगे। ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद पीएम मोदी का यह पहला अमेरिका दौरा है। इससे पहले पीएम मोदी सितंबर में अमेरिका के दौरे पर आए थे। इस यात्रा के दौरान की एक तस्वीर चर्चा में रही थी। इस तस्वीर में अमेरिका की तरफ से राष्ट्रपति जो बाइडन, विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलविन और भारत में अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी मौजूद थे। वहीं, भारत की तरफ से इस तस्वीर में पीएम मोदी के साथ विदेश मंत्री एस जयशंकर, विदेश सचिव विक्रम मिस्री और अमेरिका में भारत के राजदूत विनय क्वात्रा नजर आए थे। इस तस्वीर में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार यानी एनएसए अजित डोभाल की गैरमौजूदगी ने चर्चा का विषय रही थी। इस बार डोभाल के पीएम मोदी के साथ रहने की पूरी संभावना है। ऐसा माना जाता है कि अभी भारतीय डिप्लोमैसी में तीन अहम लोग हैं। एक खुद पीएम मोदी, दूसरे विदेश मंत्री एस जयशंकर और तीसरे एनएसए अजित डोभाल। ऐसे में सितंबर में डोभाल का पीएम मोदी के साथ नहीं होने पर सवाल उठ रहे थे। आमतौर पर प्रधानमंत्री मोदी के अमेरिका दौरे में डोभाल साथ होते हैं। ऐसे में सवाल पूछे जा रहे हैं कि आख़िर डोभाल अमेरिका क्यों नहीं गए? *डोभाल का अमेरिका ना जाना चर्चा में क्यों था?* उस समय अमेरिका दौरे पर डोभाल के नहीं होने के पीछे एक सिख मामले में उनके खिलाफ समन जारी होने को माना गया था। दरअसल, 2023 में सिख अलगाववादी नेता गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या करवाने की साजिश में उंगलियां भारत सरकार की तरफ भी उठी थीं। रॉयटर्स के मुताबिक़, अमेरिका इस मामले में भारत के शामिल होने को लेकर भी जांच कर रहा है। पन्नू ने अपनी हत्या की साज़िश को लेकर न्यूयॉर्क की एक अदालत में याचिका दाखिल की है। इसी मामले को लेकर न्यूयॉर्क की एक अदालत ने भारत से कई लोगों को समन किया था। इस समन में अजित डोभाल, निखिल गुप्ता और पूर्व रॉ प्रमुख सामंत गोयल जैसे शीर्ष अधिकारियों के नाम था। उस समन को औपचारिक तौर पर कभी सर्व तो नहीं किया गया लेकिन इसे दोनों देशों की साझेदारी की भावना के विपरीत माना जा रहा था। अब डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद यह मामला हल्का पड़ता दिख रहा है। इकनॉमिक टाइम्स ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि ट्रंप प्रशासन भारत के आंतरिक मामलों में दखल देने और कुछ समूहों को प्रोत्साहित करने का इच्छुक नहीं है। इससे डोभाल की अमेरिका यात्रा का रास्ता साफ हो गया है। *अवैध प्रवासियों की भारत वापसी पर होगी बातचीत* बता दें कि पीएम मोदी का अमेरिका दौरा ऐसे वक्त में हो रहा है जब अवैध प्रवासियों का मुद्दा काफी गर्माया हुआ है। कई देशों के नागरिक, जो अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे थे, को वापस उनके देश भेजा जा रहा है। इनमें भारतीय नागरिक भी शामिल हैं। भारत की तरफ से पहले ही साफ किया जा चुका है कि वो अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे अपने नागरिकों को वापस लेने के लिए तैयार है और इस प्रक्रिया में अमेरिका का पूरा सहयोग करेगा। अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे कई भारतीय नागरिकों को वापस भेजा भी जा चुका है और कई और लोगों को भी आगे भेजा जाएगा। हालांकि जिस तरह बेड़ियों में जकड़कर उन्हें भेजा गया, उससे भारत में भी विवाद छिड़ गया। संसंद में विपक्ष भी इस मामले पर सरकार को घेर रहा है। ऐसे में पीएम मोदी और ट्रंप की मुलाकात के दौरान इस विषय पर बातचीत होना तय है और यह भी संभव है कि निकट भविष्य में जब अमेरिका अवैध रूप से रह रहे भारतीय नागरिकों को वापस भेजे, तो बेड़ियों का इस्तेमाल न करते हुए उन्हें मानवीय तरीके से भारत भेजे। *दोनों देशों के एक-दूसरे पर टैरिफ न लगाने पर चर्चा अहम* ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने ही “टैरिफ वॉर” की शुरुआत कर दी है। हालांकि अब तक भारत पर टैरिफ की घोषणा नहीं की गई है, जबकि ट्रंप पहले भारत पर टैरिफ लगाने की चेतावनी दे चुके हैं, क्योंकि भारत भी अमेरिकी प्रोडक्ट्स पर काफी टैक्स लगाता है। ऐसे में पीएम मोदी और ट्रंप की मुलाकात के दौरान दोनों देशों के एक-दूसरे पर टैरिफ न लगाते हुए व्यापार को आगे बढ़ाने पर चर्चा होगी, जो काफी अहम है।
यूएस से डिपोर्ट भारतीयों को लेकर आया प्लेन पंजाब में क्यों उतरा? कांग्रेस उठा रही सवाल

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अमेरिका से 104 अवैध अप्रवासियों की वापसी हो चुकी है। उनको लेकर आए सैन्य विमान की लैंडिंग पंजाब के अमृतसर में हुई। निर्वासित लोगों में से 30 पंजाब से, 33-33 हरियाणा और गुजरात से, तीन-तीन महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश, दो चंडीगढ़ से हैं। निर्वासित किए गए लोगों में 19 महिलाएं और चार वर्षीय एक बच्चा, पांच व सात वर्षीय दो लड़कियों सहित 13 नाबालिग शामिल हैं। इस बीच प्लेन के देश की राजधानी दिल्ली की जगह अमृतसर में लैंडिंग को लेकर सवाल उठने लगे हैं।

कांग्रेस ने निर्वासित भारतीयों को ले जा रहे अमेरिकी सैन्य विमान को दिल्ली के बजाय अमृतसर में उतरने की अनुमति देने के केंद्र सरकार के फैसले पर सवाल उठाया है। कांग्रेस ने कहा कि शहर को 'धारणा' और 'नैरेटिव' को ध्यान में रखते हुए चुना गया था।

“बदनाम करने वाले नैरेटिव”

कांग्रेस के जालंधर कैंट विधायक परगट सिंह ने कहा कि पंजाब की तुलना में गुजरात सहित अन्य राज्यों से अधिक निर्वासित लोग हैं। परगट सिंह ने सोशल मीडिया प्लोट कहा कि जब पंजाब अंतरराष्ट्रीय उड़ानों की मांग करता है, तो पंजाब को आर्थिक लाभ से वंचित करने के लिए केवल दिल्ली एयरपोर्ट को अनुमति दी जाती है। लेकिन जब बदनाम करने वाले नैरेटिव की बात आती है, तो एक अमेरिकी निर्वासन विमान पंजाब में उतरता है। भले ही उसमें अधिककर निर्वासित गुजरात और हरियाणा से हों।

लोकसभा में इस पर चर्चा की मांग

वहीं, अमृतसर से सांसद और कांग्रेस नेता गुरजीत औजला ने विमान को अमृतसर में उतारे जाने पर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने लोकसभा में इस पर चर्चा की मांग का नोटिस देते हुए पूछा कि प्लेन को दिल्ली में क्यों नहीं उतारा गया? उन्होंने केंद्र सरकार पर हमला बोलते हुए एक्स पर लिखा, शर्मनाक और अस्वीकार्य! मोदी सरकार ने भारतीय अप्रवासियों को बेड़ियों में जकड़े हुए विदेशी सैन्य विमान से वापस भेजने की अनुमति दी। कोई विरोध क्यों नहीं? वाणिज्यिक उड़ान क्यों नहीं? विमान दिल्ली में क्यों नहीं उतरा? यह हमारे लोगों और हमारी संप्रभुता का अपमान है। सरकार को जवाब देना चाहिए!’

आप ने भी घेरा

इस बीच, आम आदमी पार्टी (आप) ने सवाल किया है कि विमान की लैंडिंग अमृतसर में क्यों कराई गई। देश के किसी अन्य राज्य में विमान को क्यों नहीं उतारा गया। आप पंजाब के अध्यक्ष अमन अरोड़ा ने सवाल किया कि विमान अमृतसर में क्यों उतरा, देश के किसी अन्य हवाई अड्डे पर क्यों नहीं। उन्होंने कहा, जब निर्वासित लोग पूरे देश से हैं, तो विमान को उतारने के लिए अमृतसर को क्यों चुना गया? यह सवाल हर किसी के दिमाग में है। अमन अरोड़ा ने कहा कि केंद्र सरकार ने पंजाब के साथ हमेशा सौतेला व्यवहार किया है। पंजाब की तुलना में अन्य राज्यों के लोग (निर्वासित) अधिक हैं. इस विमान को उतारने के लिए अमृतसर को चुनना एक सवालिया निशान खड़ा करता है।

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अवैध प्रवासियों के डिपोर्टेशन में यूएस कर रहा इतना खर्चा, दुनिया को क्या दिखाना चाहते हैं ट्रंप?

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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अवैध प्रवासियों को लेकर सख्त तेवर अपनाए हुए हैं।बीते 20 जनवरी को राष्ट्रपति पद संभालने के बाद ट्रंप ने अवैध प्रवासियों को अमेरिका से निकाले जाने संबंधी कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए थे। जिसपर अलम लाना भी शुरू कर दिया गया है।अमेरिका ने गैरकानूनी स्थिति वाले प्रवासियों के सामूहिक निर्वासन की कार्रवाई के तहत 205 भारतीयों को भी वापस भारत भेजा है। उन्हें 4 फरवरी को C-17 अमेरिकी सैन्य विमान से पंजाब के अमृतसर के लिए रवाना किया गया। विमान टेक्सास के सैन एंटोनियो से भारत के लिए रवाना हुआ।

अहम बात या है कि अमेरिका ने अन्य देशों के प्रवासियों को भी निर्वासित करने के लिए चार्टर्ड प्लेन के साथ-साथ सैन्य विमान भी इस्तेमाल किए हैं।रिपोर्ट्स के मुताबिक, इन विमानों के इस्तेमाल पर भारी-भरकम खर्च आता है। अब बड़ा सवाल खड़ा है कि आखिर प्रवासियों को वापस भेजने के लिए ट्रंप इतने महंगे विमान का इस्तेमाल क्यों कर रहे हैं।

सैन्य विमानों के इस्तेमाल पर आने वाला खर्च काफी भारी है। रिपोर्ट्स के अनुसार, C-17 मिलिट्री ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट की परिचालन लागत 28,500 डॉलर प्रति घंटा (लगभग 24.82 लाख रुपये) है। एक अन्य अधिकारी ने बताया कि सेना ने इन उड़ानों की कुल लागत की गणना अभी नहीं की है, लेकिन 12 घंटे तक चलने वाली एक उड़ान की अनुमानित लागत लगभग 252,000 डॉलर (लगभग 2.20 करोड़ रुपये) हो सकती है। अमेरिकी सीमा शुल्क और आव्रजन प्रवर्तन (ICE) के अनुसार, 135 निर्वासितों के लिए एक चार्टर्ड उड़ान की लागत 17,000 डॉलर प्रति उड़ान घंटे है, जो कि आमतौर पर 5 घंटे तक चलती है।इसका मतलब है कि प्रति व्यक्ति लागत 630 डॉलर (लगभग 52,000 रुपये) होती है।

रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक C-17 की परिचालन लागत 21,000 डॉलर प्रति घंटा (2022 के अनुसार) है, जबकि C-130E विमान की परिचालन लागत 68,000 डॉलर से 71,000 डॉलर प्रति घंटा के बीच है। इसका मतलब है कि एक 12 घंटे की C-17 उड़ान की लागत लगभग 252,000 डॉलर हो सकती है, जबकि C-130E की उड़ान की लागत 816,000 से 852,000 डॉलर हो सकती है।

ट्रंप प्रशासन द्वारा सैन्य विमानों का उपयोग राजनीतिक संदेश देने के लिए किया जा रहा है। राष्ट्रपति ट्रंप अवैध प्रवासियों को अपराधी और अमेरिका के लिए खतरा करार देते रहे हैं। सैन्य विमानों में हथकड़ी पहनाकर निर्वासित किए जा रहे प्रवासियों की तस्वीरें भी ट्रंप की सख्त आव्रजन नीति को दर्शाने का एक तरीका है। हाल ही में उन्होंने कहा था कि हम अवैध प्रवासियों को ढूंढकर सैन्य विमानों में भरकर वापस भेज रहे हैं। अब दुनिया हमें फिर से सम्मान देने लगी है।

ट्रंप प्रशासन के इस कदम को 2024 के राष्ट्रपति चुनावों के मद्देनजर एक राजनीतिक रणनीति के रूप में देखा जा रहा है। सैन्य विमानों के उपयोग से यह संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि ट्रंप अवैध प्रवासियों पर नरमी नहीं बरतेंगे।

क्या महाकुंभ में भगदड़ के दौरान हुई मौतों का आंकड़ा छुपा रही सरकार, क्यों उठ रहे सवाल?

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मौनी अमावस्या पर शाही स्नान से पहले महाकुंभ में मची भगदड़ को लेकर घमासान मचा हुआ है। महाकुंभ में मौनी अमावस्या के दिन हुई भगदड़ के दौरान हुई मौतों पर सवाल उठाए जा रहे हैं। सरकार और प्रशासन ने मौनी अमावस्या के दिन हुई भगदड़ के आंकड़े जारी कर दिए हैं, लेकिन इसको लेकर कई तरह के सवाल और कई तरह के दावे किए जा रहे हैं। सरकार की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक, इस भगदड़ में 30 लोगों की मौत हो गई थी और 60 लोग घायल हुए थे। हालांकि, विपक्ष का दावा है कि सरकार मृतकों और घायलों के आंकड़े छिपा रही है। महाकुंभ में हुई भगदड़ में हजारों जानें गईं हैं।

मौतों के सही आंकड़े जारी करने की मांग

विपक्षी दल मौतों का आंकड़ा छुपानी का आरोप लगा रहे हैं। संसद के चालू बजट सत्र में भी इसको लेकर हंगामा जारी है। मंगलवार को राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बोलते हुए समाजवादी पार्टी के प्रमुख और सांसद अखिलेश यादव ने महाकुंभ भगदड़ में हुई मौतों के सही आंकड़े जारी करने की मांग की। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इसको लेकर सरकार को घेरा है। बड़े आरोप लगाते हुए यादव ने कहा कि सरकार ने सबूत मिटाने के लिए जेसीबी का इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा कि लोग तीर्थयात्रा के लिए महाकुंभ में पहुंचे, लेकिन अपने प्रियजनों के शवों के साथ लौट आए। उन्होंने कहा, महाकुंभ त्रासदी के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई हो और सच्चाई छिपाने वालों को सजा मिले।अगर कोई दोषी नहीं था तो आंकड़े क्यों दबाए गए, छिपाए गए और मिटाए गए?

खड़गे ने हज़ारों मौतों का किया दावा

इससे पहले संसद के बजट सत्र के तीसरे तीन प्रयागराज कुंभ में हुई भगदड़ के मुद्दे पर जोरदार हंगामा हुआ है। दोनों ही सदनों में विपक्षी सांसदों ने इस मुद्दे पर चर्चा की मांग की। विपक्ष ने इस मुद्दे पर सांकेतिक तौर पर सदन का बहिष्कार भी किया। कांग्रेस सांसद मल्लिकार्जुन खड़गे ने राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा पर भाषण की शुरुआत करते हुए कहा, अपनी बात आरंभ करने से पहले मैं महाकुंभ में दिवंगत लोगों को श्रद्धांजलि देता हूं जिन्होंने हज़ारों की संख्या में वहां पर अपनी जान दी है, कुंभ में। खड़गे के इस बयान के बाद सदन में सत्ता पक्ष के सांसदों ने शोर मचाना शुरू कर दिया। इस पर मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, ये मेरा अंदाज है। ये गलत है तो आप बताइए। अगर ये सच नहीं है तो आप बताइए, क्या सच है।

विपक्षी दलों ने सरकार को घेरा

वहीं, समाजवादी पार्टी की राज्यसभा सांसद जया बच्चन ने संसद परिसर में पत्रकारों से कहा है कि सबसे ज़्यादा दूषित पानी इस वक्त कहां है- कुंभ में है। उसके लिए कोई सफाई नहीं दे रहे हैं। लाश जो पानी में डाल दिए गए हैं, उससे पानी दूषित हुआ है।

तृणमूल कांग्रेस की सागरिका घोष ने कहा, कुंभ मेले में क्या हुआ था, हम इसका सच चाहते हैं। सबूत सामने आ रहे हैं कि वहां दूसरी भगदड़ भी हुई थी। खोजी पत्रकार बता रहे हैं कि वहां 30 नहीं बल्कि बहुत ज़्यादा लोगों की मौत हुई। हम इस सरकार से जवाब चाहते हैं। सभी विपक्षी सदस्यों ने नियम 267 के तहत नोटिस दिया कि हम कुंभ मेले में हुए हादसे पर चर्चा चाहते हैं। सरकार क्यों नहीं बता रही है कि कितने लोग मारे गए हैं। यह अपराध है।

आरजेडी के सांसद मनोज झा ने भी इस मुद्दे पर सराकर पर हमला बोला है। संसद परिसर में पत्रकारों से बातचीन में मनोज झा ने कहा, सिर्फ़ हमारी बात नहीं है पूरा देश परेशान है, अपने लोगों को ढूंढ रहा है, कुंभ इनसे पहले भी था, कुंभ इनके बाद भी होगा। लोग जवाबदेही चाहते हैं। इतनी जानें जाएं और सदन को अनभिज्ञ रखा जाए, यानी देश को अनभिज्ञ रखने की।

क्यों उठ रहे सवाल?

महाकुंभ में 28 जनवरी को मौनी अमावस्या के अमृत स्नान से पहले रात करीब 2 बजे भगदड़ मची थी। इसमें कई लोग घायल हुए और भीड़ में दबने के कारण कई लोगों की मौत हो गई। इस घटना के करीब 17 घंटे बाद यूपी सरकार की ओर से आंकड़े जारी किए गए, जिसमें 30 मौतों और 60 लोगों के घायल होने की बात कही गई। इसमें 25 मृतकों की शिनाख्त होने की भी बात कही गई। हालांकि, इन आंकड़ों के बाद पुलिस की ओर से करीब 24 लावारिश लाशों की शिनाख्त के लिए तस्वीरें जारी की गईं। ये तस्वीरें ही सरकारी आंकड़ों पर सवाल खड़े कर रही हैं।

वहीं, भगदड़ के बाद सामने आई कई मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया था कि महाकुंभ में संगम नोज के अलावा दूसरी जगह भी भगदड़ मची थी, लेकिन उसे छिपा लिया गया। इस भगदड़ में भी कई मौतों का दावा किया जा रहा है।

100 करोड़ लोगों की व्यवस्था का था दावा

महाकुंभ की तैयारी के वक्त यूपी की सरकार ने 100 करोड़ लोगों को स्नान कराने की व्यवस्था करने की बात कही थी। यूपी सरकार के मंत्री हर राज्यों में जाकर आमंत्रण पत्र बांट रहे थे, लेकिन मौनी अमावस्या के आसपास स्थिति पूरी तरह चरमरा गई। अखिलेश यादव के मुताबिक पहली बार मौनी अमावस्या के दिन ब्रह्म मुहूर्त में साधु और संन्यासी स्नान नहीं कर पाए। शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने भी इसको लेकर सवाल उठाया। शंकराचार्य का कहना है कि जब 100 करोड़ लोगों की व्यवस्था थी, तब 10-20 करोड़ भी क्यों नहीं संभाल पाए?

पाकिस्तान से क्यों अलग होना चाहते हैं बलूच? आजादी की लड़ाई नाजुक मोड़ पर

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बलूचिस्तान में जाफर एक्सप्रेस ट्रेन हाईजैकिंग कांड ने बलूचियों और पाकिस्तानियों के बीच के पुराने संघर्ष को उजागर कर दिया है। अपने खोए अस्‍तित्‍व वापस पाने के लिए बलूचिस्‍तान लिब्रेशन आर्मी (बीएलए) ने एक बार फिर पाकिस्‍तानी सेना के खिलाफ बिगुल फूंक दिया है। बलूचों ने ठान लिया है कि वो आजादी हासिल करके रहेंगे। जबरन पाकिस्‍तान मिलाने का दर्द उस वक्‍त बलूचियों के लिए नासूर बना गया, जब पाकिस्‍तान ने उनकी प्राकृतिक संपदा का दोहन शुरू कर दिया।

पाकिस्तान का सबसे संपन्न लेकिन पिछड़ा राज्य

बलूचिस्तान, पाकिस्तान का सबसे बड़ा राज्य है और 44 फीसदी हिस्सा कवर करता है। जर्मनी के आकार का होने का बावजूद यहां की आबादी सिर्फ डेढ़ करोड़ है, जर्मनी से 7 करोड़ कम। बलूचिस्तान तेल, सोना, तांबा और अन्य खदानों से सम्पन्न है। इन संसाधनों का इस्तेमाल कर पाकिस्तान अपनी जरूरतें पूरी करता है। इसके बाद भी ये इलाका सबसे पिछड़ा है। यही वजह है कि बलूचिस्तान में पाकिस्तान के खिलाफ नफरत बढ़ रही है।

आधुनिक बलूचिस्तान की कहानी

बलूचिस्तान कभी भी पाकिस्तान का अंग नहीं बनना चाहता था। जबरन पाकिस्‍तान मिलाने का दर्द बलूचियों के लिए नासूर बना गया है। अब बलूचों की आजादी की लड़ाई नाजुक मोड़ पर पहुंच गई है। आधुनिक बलूचिस्तान की कहानी 1876 से शुरू होती है। तब बलूचिस्तान पर कलात रियासत का शासन था। भारतीय उपमहाद्वीप पर ब्रिटिश हुकूमत शासन कर रही थी। इसी साल ब्रिटिश सरकार और कलात के बीच संधि हुई।

संधि के मुताबिक अंग्रेजों ने कलात को सिक्किम और भूटान की तरह प्रोटेक्टोरेट स्टेट का दर्जा दिया। यानी भूटान और सिक्किम की तरह कलात के आंतरिक मामलों में ब्रिटिश सरकार का दखल नहीं था, लेकिन विदेश और रक्षा मामलों पर उसका नियंत्रण था

भारत-पाक की तरह कलात में भी आजादी की मांग

1947 में भारतीय उपमहाद्वीप में आजादी की प्रक्रिया की शुरुआत हुई। भारत और पाकिस्तान की तरह कलात में भी आजादी की मांग तेज हो गई। जब 1946 में ये तय हो गया कि अंग्रेज भारत छोड़ रहे हैं, तब कलात के खान यानी शासक मीर अहमद खान ने अंग्रेजों के सामने अपना पक्ष रखने के लिए मोहम्मद अली जिन्ना को सरकारी वकील बनाया। बलूचिस्तान नाम से एक नया देश बनाने के लिए 4 अगस्त 1947 को दिल्ली में एक बैठक बुलाई गई। इसमें मीर अहमद खान के साथ जिन्ना और जवाहर लाल नेहरू भी शामिल हुए। बैठक में जिन्ना ने कलात की आजादी की वकालत की।

बैठक में ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने भी माना कि कलात को भारत या पाकिस्तान का हिस्सा बनने की जरूरत नहीं है। तब जिन्ना ने ही ये सुझाव दिया कि चार जिलों- कलात, खरान, लास बेला और मकरान को मिलाकर एक आजाद बलूचिस्तान बनाया जाए

आजादी की घोषणा के एक महीने बाद बदले हालात

11 अगस्त 1947 को कलात और मुस्लिम लीग के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर हुए। इसके साथ ही बलूचिस्तान एक अलग देश बन गया। हालांकि, इसमें एक पेंच ये था कि बलूचिस्तान की सुरक्षा पाकिस्तान के हवाले थी। आखिरकार कलात के खान ने 12 अगस्त को बलूचिस्तान को एक आजाद देश घोषित कर दिया। बलूचिस्तान में मस्जिद से कलात का पारंपरिक झंडा फहराया गया। कलात के शासक मीर अहमद खान के नाम पर खुतबा पढ़ा गया।

लेकिन, आजादी घोषित करने के ठीक एक महीने बाद 12 सितंबर को ब्रिटेन ने एक प्रस्ताव पारित किया और कहा कि बलूचिस्तान एक अलग देश बनने की हालत में नहीं है। वह अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारियां नहीं उठा सकता।

बलूचिस्तान जबरन पाकिस्‍तान में मिला दिया

कलात के खान ने अक्टूबर 1947 में पाकिस्तान का दौरा किया। उन्हें उम्मीद थी कि जिन्ना उनकी मदद करेंगे। जब खान कराची पहुंचे तो वहां मौजूद हजारों बलूच लोगों ने उनका स्वागत बलूचिस्तान के राजा की तरह किया, लेकिन उनका स्वागत करने पाकिस्तान का कोई बड़ा अधिकारी नहीं पहुंचा।पाकिस्तान के इरादे में बदलाव का यह बड़ा संकेत था। बलूचिस्तान जबरन पाकिस्‍तान में मिला दिया गया। इसी के साथ पाकिस्‍तान ने उनकी प्राकृतिक संपदा का दोहन शुरू कर दिया। बदले में बलूचिस्‍तान को ना ही विकास मिला और ना ही उनके प्राकृतिक संपदा के दोहन से होने वाले फायदे में कोई हिस्‍सा। देखते ही देखते, बलूचिस्‍तान की प्राकृतिक संपदा पाकिस्‍तान की अर्थव्‍यवस्‍था की रीढ़ बन चुकी थी, लेकिन बलूचिस्‍तान कंगाली की गर्त में जा गिरा था।

1948 से जारी है विद्रोह

बलूचिस्‍तान की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा शुरू से ही स्वतंत्रता और स्वायत्तता की मांग करता रहा है। उन्होंने 1948 में पाकिस्तान के खिलाफ पहला विद्रोह शुरू किया। पाकिस्तान ने 1948 के विद्रोह को कुचल दिया। विद्रोह को तब भले ही दबा दिया गया, लेकिन ये कभी खत्म नहीं हुआ। बलूचिस्तान की आजादी के लिए शुरू हुए इस विद्रोह को नए नेता मिलते रहे। 1950, 1960 और 1970 के दशक में वे पाकिस्तान सरकार के लिए चुनौती बनते रहे। 2000 तक पाकिस्तान के खिलाफ चार बलूच विद्रोह हुए।

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मोदी सरकार फासिस्ट नहीं”, सीपीएम के इस बदले तेवर का कांग्रेस-सीपीआई में विरोध तेज

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मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार को फासिस्ट यानी फासीवादी या नियो फासिस्ट नहीं मानती। दरअसल, सीपीएम) की अप्रैल महीने में तमिलनाडु के मदुरै में 24वीं कांग्रेस का आयोजन किया जा रहा है। इसके लिए तैयार किए गए राजनीतिक प्रस्ताव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को फासिस्ट या नियो फासिस्ट नहीं कहा गया है। इस प्रस्ताव के मसौदे को सीपीएम केंद्रीय समिति ने कोलकाता में 17 से 19 जनवरी के बीच अपनी बैठक में मंजूरी दी थी। अब सीपीएम के इस रुख ने केरल की सियासत में तूफान मचा दिया है। इसको लेकर कांग्रेस और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी सीपीआई ने कड़ी आपत्ति जताई है और इसे बीजेपी के प्रति नरम रुख अपनाने की रणनीति बताया है।

इस प्रस्ताव के मसौदे को सीपीएम केंद्रीय समिति ने कोलकाता में 17 से 19 जनवरी के बीच अपनी बैठक में मंजूरी दी थी। सीपीएम ने अपने मसौदा राजनीतिक प्रस्ताव में कहा है कि मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान दक्षिणपंथी, सांप्रदायिक और सत्तावादी ताकतों का एकीकरण हुआ है जो 'नियो फासिस्ट विशेषताओं' को दर्शाता है। लेकिन वह मोदी सरकार को सीधे तौर पर फासिस्ट या नियो फासिस्ट नहीं मानती। प्रस्ताव में यह भी बताया गया है कि मोदी सरकार को फासिस्ट या नियो फासिस्ट क्यों नहीं कहा गया है, क्योंकि इसके कुछ कदम फासिस्ट विचारधारा से मेल नहीं खाते हैं। सीपीएम के इस प्रस्ताव का उद्देश्य यह दिखाना था कि सरकार की नीतियां पूरी तरह से फासिस्ट नहीं हैं, बल्कि उनमें कुछ तत्त्व ऐसे हैं, जो लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का पालन करते हैं।

सीपीएम की बीजेपी के वोटों को हासिल करने की कोशिश-कांग्रेस

मोदी सरकार को लेकर सीपीएम के राजनीतिक प्रस्ताव में इस टिप्पणी को लेकर कांग्रेस ने तल्ख टिप्पणी की है। केरल में विपक्ष के नेता वीडी सतीशन ने आरोप लगाया कि सीपीएम बीजेपी के प्रति नरम रवैया अपना रही है और इस प्रस्ताव के जरिए वह केरल में बीजेपी समर्थकों के वोट हासिल करने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस नेता रमेश चेन्निथला ने कहा कि 2021 के विधानसभा चुनावों में सीपीएम ने बीजेपी के वोटों से जीत हासिल की थी और अब 2026 के चुनावों के लिए वही रणनीति अपनाई जा रही है।

सीपीएम की यह रणनीति समझ से परे-सीपीआई

वहीं, सीपीएम की गठबंधन सहयोगी सीपीआई ने भी अपने स्टैंड में सुधार की मांग कर दी है। सीपीआई ने कहा है कि सीपीएम की ओर से मोदी सरकार को फासीवादी बचाने से बचने की जल्दबाजी नहीं समझ आ रही है। पार्टी की केरल इकाई के सचिव बिनॉय विश्वम ने कहा कि सीपीएम की यह रणनीति समझ से परे है। उन्होंने कहा कि बीजेपी सरकार धर्म और आस्था का राजनीतिक उपयोग कर रही है। जो कि फासिस्ट विचारधारा की पहचान होती है। उनका आरोप था कि सीपीएम जानबूझकर मोदी सरकार को फासीवादी कहने से बच रही है।

सीपीएम के बदले रुख की वजह

वहीं, सीपीएम के इस अचानक हुए “हृदय परिवर्तन” से सवाल उठना लाजमी है। जानकार इसे पिनराई विजयन की चुनावी रणनीति मान रहे हैं। केरल में बीजेपी जिस तेजी से पैर पसार रही है, वह एलडीएफ को टेंशन देने के लिए काफी है। 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने केरल में अपना खाता खोल दिया है। अगर बीजेपी के वोटर बढ़े तो सर्वाधिक नुकसान वाम दलों को ही होगा। 10 साल की एंटी इम्कबेंसी से निपटने के लिए जरूरी है कि बीजेपी और कांग्रेस की ओर झुक रहे वोटर लेफ्ट के सपोर्ट में वोटिंग करें। एक्सपर्ट्स का कहना है कि केरल में बीजेपी के प्रति सहानुभूति रखने वाले वोटर्स का एक धड़ा है जो कांग्रेस को नहीं पसंद करता है। सीपीएम की नजर उस पर भी है।

बंगाल की धरती से मोहन भागवत ने किया हिंदुओं को एकजुट होने का आह्वान, दिया बड़ा बयान

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने पश्चिम बंगाल की धरती से कहा है कि हमें हिंदू समाज को एकजुट और संगठित करने की जरूरत है।उन्होंने हिंदू समाज को जिम्मेदार समुदाय बताते हुए कहा कि वह एकता को विविधता का प्रतीक मानते हैं। संघ प्रमुख ने ये बातें पश्चिम बंगाल के पूर्वी बर्धमान स्थित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कही।

देश का जिम्मेदार समाज हिंदू-भागवत

पश्चिम बंगाल के ब‌र्द्धमान में संघ के मध्य बंग प्रांत की सभा को संबोधित करते हुए हिंदू समाज की एकता पर जोर दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि संघ का उद्देश्य संपूर्ण हिंदू समाज को संगठित करना है, क्योंकि यह समाज भारत की सांस्कृतिक और नैतिक पहचान का प्रतीक है।भागवत ने कहा कि अक्सर लोगों द्वारा यह सवाल उठाया जाता है कि संघ सिर्फ हिंदू समाज पर ही क्यों ध्यान देता है। इसका उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि हिंदू समाज ही इस देश का जिम्मेदार समाज है, जो उत्तरदायित्व की भावना से परिपूर्ण है। इसलिए, इसे एकजुट करना आवश्यक है।

हिंदू ने विश्व की विविधता को अपनाया-भागवत

भागवत ने कहा, भारतवर्ष एक भौगोलिक इकाई नहीं है इसका आकार समय के साथ घट या बढ़ सकता है। इसे भारतवर्ष तब कहा जाता है जब यह अद्वितीय प्रकृति का प्रतीक हो। भारत का अपना चरित्र है। जिन लोगों को लगा कि इस प्रकृति के साथ नहीं रह सकते, उन्होंने अपना अलग देश बना लिया। जो लोग बचे रहे, वे चाहते थे कि भारत का सार बना रहे। यह सार क्या है? 15 अगस्त 1947 से अधिक पुराना है। यह हिंदू समाज है, जो विश्व की विविधता को अपनाकर फलता-फूलता है। यह प्रकृति विश्व की विविधता को स्वीकार करती है और उसके साथ आगे बढ़ती है। यह एक शाश्वत सत्य है जो कभी नहीं बदलता है।

इतिहास से सबक और समाज में एकता की आवश्यकता

अपने संबोधन में मोहन भागवत ने ऐतिहासिक आक्रमणों का जिक्र करते हुए कहा कि भारत पर शासन करने वाले आक्रमणकारियों ने समाज के भीतर विश्वासघात के कारण सफलता पाई। उन्होंने सिकंदर से लेकर आधुनिक युग तक के विभिन्न आक्रमणों का उदाहरण देते हुए कहा कि समाज जब संगठित नहीं रहता, तब बाहरी ताकतें हावी हो जाती हैं। इसलिए, हिंदू समाज की एकजुटता सिर्फ वर्तमान की नहीं, बल्कि भविष्य की भी जरूरत है।

हिंदू पूरे देश की विविधता को एकजुट रखते हैं-भागवत

मोहन भागवत ने कहा कि भारत में कोई भी सम्राटों और महाराजाओं को याद नहीं करता, बल्कि अपने पिता का वचन पूरा करने के उद्देश्य से 14 साल के लिए वनवास जाने वाले राजा (भगवान राम) और उस व्यक्ति (भरत) को याद रखता है, जिसने अपने भाई की पादुकाएं सिंहासन पर रख दीं और वनवास से लौटने पर राज्य उसे राज सौंप दिया। उन्होंने कहा, ये विशेषताएं भारत को परिभाषित करती हैं। जो लोग इन मूल्यों का पालन करते हैं, वे हिंदू हैं और वे पूरे देश की विविधता को एकजुट रखते हैं। हम ऐसे कार्यों में शामिल नहीं होते जो दूसरों को आहत करते हों। शासक, प्रशासक और महापुरुष अपना काम करते हैं, लेकिन समाज को राष्ट्र की सेवा के लिए आगे रहना चाहिए।

बता दें कि पहले ममता बनर्जी सरकार ने आरएसएस की रैली को अनुमति नहीं दी थी। इस पर संघ ने कलकत्ता हाईकोर्ट का रास्ता खटखटाया था, जिसने उन्हें रैली की इजाजत दी।

पीएम मोदी ने फ्रांस के मार्सिले पहुंचते ही वीर सावरकर को याद किया, क्या है कारण?

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प्रधानमंत्री मोदी फ्रांस दौरे के दौरान फ्रांस के दूसरे सबसे बड़े शहर और बंदरगाह मार्सिले का भी पहुंचे। मार्सिले एक ऐसा शहर जो नेपोलियन बोनापार्ट और फुटबॉलर जिनेदिन जिदान जैसी हस्तियों का घर है। यहां दुनियाभर से पर्यटक घूमने आते हैं और इस शहर की खूबसूरती का आनंद लेते हैं। वैसे, इस शहर से भारत का भी एक पुराना नाता रहा है। इस दौरान मोदी ने एक्स पर मार्सिले में 115 साल पुरानी घटना का जिक्र कर विनायक दामोदर सावरकर को भी याद किया।

फ्रांस के मार्सिले शहर में पीएम मोदी ने स्वतंत्रता सेनानी वीडी सावरकर की स्मृति में श्रद्धांजलि अर्पित की। मार्सिले में उन्होंने विनायक दामोदर सावरकर को याद किया। पीएम मोदी ने वीर सावरकर की तारीफ भी की। 

पीएम मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट किया और लिखा, "भारत की स्वतंत्रता की खोज में इस शहर का विशेष महत्व है। यहीं पर महान वीर सावरकर ने साहसपूर्वक भागने का प्रयास किया था। मैं मार्सिले के लोगों और उस समय के फ्रांसीसी कार्यकर्ताओं को भी धन्यवाद देना चाहता हूं जिन्होंने मांग की थी कि उन्हें ब्रिटिश हिरासत में न सौंपा जाए। वीर सावरकर की बहादुरी आज भी पीढ़ियों को प्रेरित करती है!"

मार्सिले से सावरकर के जुड़ाव की क्या है कहानी?

भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान, सावरकर को गिरफ्तार कर मुकदमे के लिए ब्रिटिश जहाज मोरिया से भारत लाया जा रहा था, तब उन्होंने 8 जुलाई, 1910 को कैद से भागने का प्रयास किया था। कहा जाता है सावरकर जहाज के पोर्टहोल से निकलकर तैरते हुए किनारे पहुंच गए थे, लेकिन बाद में उन्हें फ्रांसीसी अधिकारियों ने पकड़ लिया और उन्हें ब्रिटिश जहाज अधिकारियों की हिरासत में वापस सौंप दिया था। इसके बाद उन्हें काला पानी की सजा हुई।

मार्सिले शहर का भारत के लिए महत्व

मार्सिले में शहीद सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने शहर में भारत के नए महावाणिज्य दूतावास का उद्घाटन किया है। मार्सिले दक्षिणी फ्रांस में है और यह देश का दूसरा सबसे बड़ा शहर होने के साथ बंदरगाह भी लिए है, जिससे व्यापार का बड़ा केंद्र है। मार्सिले भूमध्य सागर के तट पर भारत-फ्रांस के लिए एक व्यापारिक गेटवे का काम करता है। यह भारत-मध्य पूर्व-यूरोप इकॉनोमिक कॉरिडोर के प्रमुख एंट्री प्वाइंट में से एक है।

सितंबर में पीएम मोदी के साथ अमेरिका नहीं गए थे डोभाल, इस बार होंगे साथ, जानिए क्यों है ये दौरा बेहद अहम
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* भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दो दिवसीय फ्रांस दौरा अब समाप्त हो चुका है। आज से पीएम मोदी अमेरिका के दो दिवसीय दौरे पर रहेंगे। ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद पीएम मोदी का यह पहला अमेरिका दौरा है। इससे पहले पीएम मोदी सितंबर में अमेरिका के दौरे पर आए थे। इस यात्रा के दौरान की एक तस्वीर चर्चा में रही थी। इस तस्वीर में अमेरिका की तरफ से राष्ट्रपति जो बाइडन, विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलविन और भारत में अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी मौजूद थे। वहीं, भारत की तरफ से इस तस्वीर में पीएम मोदी के साथ विदेश मंत्री एस जयशंकर, विदेश सचिव विक्रम मिस्री और अमेरिका में भारत के राजदूत विनय क्वात्रा नजर आए थे। इस तस्वीर में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार यानी एनएसए अजित डोभाल की गैरमौजूदगी ने चर्चा का विषय रही थी। इस बार डोभाल के पीएम मोदी के साथ रहने की पूरी संभावना है। ऐसा माना जाता है कि अभी भारतीय डिप्लोमैसी में तीन अहम लोग हैं। एक खुद पीएम मोदी, दूसरे विदेश मंत्री एस जयशंकर और तीसरे एनएसए अजित डोभाल। ऐसे में सितंबर में डोभाल का पीएम मोदी के साथ नहीं होने पर सवाल उठ रहे थे। आमतौर पर प्रधानमंत्री मोदी के अमेरिका दौरे में डोभाल साथ होते हैं। ऐसे में सवाल पूछे जा रहे हैं कि आख़िर डोभाल अमेरिका क्यों नहीं गए? *डोभाल का अमेरिका ना जाना चर्चा में क्यों था?* उस समय अमेरिका दौरे पर डोभाल के नहीं होने के पीछे एक सिख मामले में उनके खिलाफ समन जारी होने को माना गया था। दरअसल, 2023 में सिख अलगाववादी नेता गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या करवाने की साजिश में उंगलियां भारत सरकार की तरफ भी उठी थीं। रॉयटर्स के मुताबिक़, अमेरिका इस मामले में भारत के शामिल होने को लेकर भी जांच कर रहा है। पन्नू ने अपनी हत्या की साज़िश को लेकर न्यूयॉर्क की एक अदालत में याचिका दाखिल की है। इसी मामले को लेकर न्यूयॉर्क की एक अदालत ने भारत से कई लोगों को समन किया था। इस समन में अजित डोभाल, निखिल गुप्ता और पूर्व रॉ प्रमुख सामंत गोयल जैसे शीर्ष अधिकारियों के नाम था। उस समन को औपचारिक तौर पर कभी सर्व तो नहीं किया गया लेकिन इसे दोनों देशों की साझेदारी की भावना के विपरीत माना जा रहा था। अब डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद यह मामला हल्का पड़ता दिख रहा है। इकनॉमिक टाइम्स ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि ट्रंप प्रशासन भारत के आंतरिक मामलों में दखल देने और कुछ समूहों को प्रोत्साहित करने का इच्छुक नहीं है। इससे डोभाल की अमेरिका यात्रा का रास्ता साफ हो गया है। *अवैध प्रवासियों की भारत वापसी पर होगी बातचीत* बता दें कि पीएम मोदी का अमेरिका दौरा ऐसे वक्त में हो रहा है जब अवैध प्रवासियों का मुद्दा काफी गर्माया हुआ है। कई देशों के नागरिक, जो अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे थे, को वापस उनके देश भेजा जा रहा है। इनमें भारतीय नागरिक भी शामिल हैं। भारत की तरफ से पहले ही साफ किया जा चुका है कि वो अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे अपने नागरिकों को वापस लेने के लिए तैयार है और इस प्रक्रिया में अमेरिका का पूरा सहयोग करेगा। अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे कई भारतीय नागरिकों को वापस भेजा भी जा चुका है और कई और लोगों को भी आगे भेजा जाएगा। हालांकि जिस तरह बेड़ियों में जकड़कर उन्हें भेजा गया, उससे भारत में भी विवाद छिड़ गया। संसंद में विपक्ष भी इस मामले पर सरकार को घेर रहा है। ऐसे में पीएम मोदी और ट्रंप की मुलाकात के दौरान इस विषय पर बातचीत होना तय है और यह भी संभव है कि निकट भविष्य में जब अमेरिका अवैध रूप से रह रहे भारतीय नागरिकों को वापस भेजे, तो बेड़ियों का इस्तेमाल न करते हुए उन्हें मानवीय तरीके से भारत भेजे। *दोनों देशों के एक-दूसरे पर टैरिफ न लगाने पर चर्चा अहम* ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने ही “टैरिफ वॉर” की शुरुआत कर दी है। हालांकि अब तक भारत पर टैरिफ की घोषणा नहीं की गई है, जबकि ट्रंप पहले भारत पर टैरिफ लगाने की चेतावनी दे चुके हैं, क्योंकि भारत भी अमेरिकी प्रोडक्ट्स पर काफी टैक्स लगाता है। ऐसे में पीएम मोदी और ट्रंप की मुलाकात के दौरान दोनों देशों के एक-दूसरे पर टैरिफ न लगाते हुए व्यापार को आगे बढ़ाने पर चर्चा होगी, जो काफी अहम है।
यूएस से डिपोर्ट भारतीयों को लेकर आया प्लेन पंजाब में क्यों उतरा? कांग्रेस उठा रही सवाल

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अमेरिका से 104 अवैध अप्रवासियों की वापसी हो चुकी है। उनको लेकर आए सैन्य विमान की लैंडिंग पंजाब के अमृतसर में हुई। निर्वासित लोगों में से 30 पंजाब से, 33-33 हरियाणा और गुजरात से, तीन-तीन महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश, दो चंडीगढ़ से हैं। निर्वासित किए गए लोगों में 19 महिलाएं और चार वर्षीय एक बच्चा, पांच व सात वर्षीय दो लड़कियों सहित 13 नाबालिग शामिल हैं। इस बीच प्लेन के देश की राजधानी दिल्ली की जगह अमृतसर में लैंडिंग को लेकर सवाल उठने लगे हैं।

कांग्रेस ने निर्वासित भारतीयों को ले जा रहे अमेरिकी सैन्य विमान को दिल्ली के बजाय अमृतसर में उतरने की अनुमति देने के केंद्र सरकार के फैसले पर सवाल उठाया है। कांग्रेस ने कहा कि शहर को 'धारणा' और 'नैरेटिव' को ध्यान में रखते हुए चुना गया था।

“बदनाम करने वाले नैरेटिव”

कांग्रेस के जालंधर कैंट विधायक परगट सिंह ने कहा कि पंजाब की तुलना में गुजरात सहित अन्य राज्यों से अधिक निर्वासित लोग हैं। परगट सिंह ने सोशल मीडिया प्लोट कहा कि जब पंजाब अंतरराष्ट्रीय उड़ानों की मांग करता है, तो पंजाब को आर्थिक लाभ से वंचित करने के लिए केवल दिल्ली एयरपोर्ट को अनुमति दी जाती है। लेकिन जब बदनाम करने वाले नैरेटिव की बात आती है, तो एक अमेरिकी निर्वासन विमान पंजाब में उतरता है। भले ही उसमें अधिककर निर्वासित गुजरात और हरियाणा से हों।

लोकसभा में इस पर चर्चा की मांग

वहीं, अमृतसर से सांसद और कांग्रेस नेता गुरजीत औजला ने विमान को अमृतसर में उतारे जाने पर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने लोकसभा में इस पर चर्चा की मांग का नोटिस देते हुए पूछा कि प्लेन को दिल्ली में क्यों नहीं उतारा गया? उन्होंने केंद्र सरकार पर हमला बोलते हुए एक्स पर लिखा, शर्मनाक और अस्वीकार्य! मोदी सरकार ने भारतीय अप्रवासियों को बेड़ियों में जकड़े हुए विदेशी सैन्य विमान से वापस भेजने की अनुमति दी। कोई विरोध क्यों नहीं? वाणिज्यिक उड़ान क्यों नहीं? विमान दिल्ली में क्यों नहीं उतरा? यह हमारे लोगों और हमारी संप्रभुता का अपमान है। सरकार को जवाब देना चाहिए!’

आप ने भी घेरा

इस बीच, आम आदमी पार्टी (आप) ने सवाल किया है कि विमान की लैंडिंग अमृतसर में क्यों कराई गई। देश के किसी अन्य राज्य में विमान को क्यों नहीं उतारा गया। आप पंजाब के अध्यक्ष अमन अरोड़ा ने सवाल किया कि विमान अमृतसर में क्यों उतरा, देश के किसी अन्य हवाई अड्डे पर क्यों नहीं। उन्होंने कहा, जब निर्वासित लोग पूरे देश से हैं, तो विमान को उतारने के लिए अमृतसर को क्यों चुना गया? यह सवाल हर किसी के दिमाग में है। अमन अरोड़ा ने कहा कि केंद्र सरकार ने पंजाब के साथ हमेशा सौतेला व्यवहार किया है। पंजाब की तुलना में अन्य राज्यों के लोग (निर्वासित) अधिक हैं. इस विमान को उतारने के लिए अमृतसर को चुनना एक सवालिया निशान खड़ा करता है।

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अवैध प्रवासियों के डिपोर्टेशन में यूएस कर रहा इतना खर्चा, दुनिया को क्या दिखाना चाहते हैं ट्रंप?

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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अवैध प्रवासियों को लेकर सख्त तेवर अपनाए हुए हैं।बीते 20 जनवरी को राष्ट्रपति पद संभालने के बाद ट्रंप ने अवैध प्रवासियों को अमेरिका से निकाले जाने संबंधी कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए थे। जिसपर अलम लाना भी शुरू कर दिया गया है।अमेरिका ने गैरकानूनी स्थिति वाले प्रवासियों के सामूहिक निर्वासन की कार्रवाई के तहत 205 भारतीयों को भी वापस भारत भेजा है। उन्हें 4 फरवरी को C-17 अमेरिकी सैन्य विमान से पंजाब के अमृतसर के लिए रवाना किया गया। विमान टेक्सास के सैन एंटोनियो से भारत के लिए रवाना हुआ।

अहम बात या है कि अमेरिका ने अन्य देशों के प्रवासियों को भी निर्वासित करने के लिए चार्टर्ड प्लेन के साथ-साथ सैन्य विमान भी इस्तेमाल किए हैं।रिपोर्ट्स के मुताबिक, इन विमानों के इस्तेमाल पर भारी-भरकम खर्च आता है। अब बड़ा सवाल खड़ा है कि आखिर प्रवासियों को वापस भेजने के लिए ट्रंप इतने महंगे विमान का इस्तेमाल क्यों कर रहे हैं।

सैन्य विमानों के इस्तेमाल पर आने वाला खर्च काफी भारी है। रिपोर्ट्स के अनुसार, C-17 मिलिट्री ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट की परिचालन लागत 28,500 डॉलर प्रति घंटा (लगभग 24.82 लाख रुपये) है। एक अन्य अधिकारी ने बताया कि सेना ने इन उड़ानों की कुल लागत की गणना अभी नहीं की है, लेकिन 12 घंटे तक चलने वाली एक उड़ान की अनुमानित लागत लगभग 252,000 डॉलर (लगभग 2.20 करोड़ रुपये) हो सकती है। अमेरिकी सीमा शुल्क और आव्रजन प्रवर्तन (ICE) के अनुसार, 135 निर्वासितों के लिए एक चार्टर्ड उड़ान की लागत 17,000 डॉलर प्रति उड़ान घंटे है, जो कि आमतौर पर 5 घंटे तक चलती है।इसका मतलब है कि प्रति व्यक्ति लागत 630 डॉलर (लगभग 52,000 रुपये) होती है।

रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक C-17 की परिचालन लागत 21,000 डॉलर प्रति घंटा (2022 के अनुसार) है, जबकि C-130E विमान की परिचालन लागत 68,000 डॉलर से 71,000 डॉलर प्रति घंटा के बीच है। इसका मतलब है कि एक 12 घंटे की C-17 उड़ान की लागत लगभग 252,000 डॉलर हो सकती है, जबकि C-130E की उड़ान की लागत 816,000 से 852,000 डॉलर हो सकती है।

ट्रंप प्रशासन द्वारा सैन्य विमानों का उपयोग राजनीतिक संदेश देने के लिए किया जा रहा है। राष्ट्रपति ट्रंप अवैध प्रवासियों को अपराधी और अमेरिका के लिए खतरा करार देते रहे हैं। सैन्य विमानों में हथकड़ी पहनाकर निर्वासित किए जा रहे प्रवासियों की तस्वीरें भी ट्रंप की सख्त आव्रजन नीति को दर्शाने का एक तरीका है। हाल ही में उन्होंने कहा था कि हम अवैध प्रवासियों को ढूंढकर सैन्य विमानों में भरकर वापस भेज रहे हैं। अब दुनिया हमें फिर से सम्मान देने लगी है।

ट्रंप प्रशासन के इस कदम को 2024 के राष्ट्रपति चुनावों के मद्देनजर एक राजनीतिक रणनीति के रूप में देखा जा रहा है। सैन्य विमानों के उपयोग से यह संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि ट्रंप अवैध प्रवासियों पर नरमी नहीं बरतेंगे।

क्या महाकुंभ में भगदड़ के दौरान हुई मौतों का आंकड़ा छुपा रही सरकार, क्यों उठ रहे सवाल?

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मौनी अमावस्या पर शाही स्नान से पहले महाकुंभ में मची भगदड़ को लेकर घमासान मचा हुआ है। महाकुंभ में मौनी अमावस्या के दिन हुई भगदड़ के दौरान हुई मौतों पर सवाल उठाए जा रहे हैं। सरकार और प्रशासन ने मौनी अमावस्या के दिन हुई भगदड़ के आंकड़े जारी कर दिए हैं, लेकिन इसको लेकर कई तरह के सवाल और कई तरह के दावे किए जा रहे हैं। सरकार की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक, इस भगदड़ में 30 लोगों की मौत हो गई थी और 60 लोग घायल हुए थे। हालांकि, विपक्ष का दावा है कि सरकार मृतकों और घायलों के आंकड़े छिपा रही है। महाकुंभ में हुई भगदड़ में हजारों जानें गईं हैं।

मौतों के सही आंकड़े जारी करने की मांग

विपक्षी दल मौतों का आंकड़ा छुपानी का आरोप लगा रहे हैं। संसद के चालू बजट सत्र में भी इसको लेकर हंगामा जारी है। मंगलवार को राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बोलते हुए समाजवादी पार्टी के प्रमुख और सांसद अखिलेश यादव ने महाकुंभ भगदड़ में हुई मौतों के सही आंकड़े जारी करने की मांग की। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इसको लेकर सरकार को घेरा है। बड़े आरोप लगाते हुए यादव ने कहा कि सरकार ने सबूत मिटाने के लिए जेसीबी का इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा कि लोग तीर्थयात्रा के लिए महाकुंभ में पहुंचे, लेकिन अपने प्रियजनों के शवों के साथ लौट आए। उन्होंने कहा, महाकुंभ त्रासदी के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई हो और सच्चाई छिपाने वालों को सजा मिले।अगर कोई दोषी नहीं था तो आंकड़े क्यों दबाए गए, छिपाए गए और मिटाए गए?

खड़गे ने हज़ारों मौतों का किया दावा

इससे पहले संसद के बजट सत्र के तीसरे तीन प्रयागराज कुंभ में हुई भगदड़ के मुद्दे पर जोरदार हंगामा हुआ है। दोनों ही सदनों में विपक्षी सांसदों ने इस मुद्दे पर चर्चा की मांग की। विपक्ष ने इस मुद्दे पर सांकेतिक तौर पर सदन का बहिष्कार भी किया। कांग्रेस सांसद मल्लिकार्जुन खड़गे ने राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा पर भाषण की शुरुआत करते हुए कहा, अपनी बात आरंभ करने से पहले मैं महाकुंभ में दिवंगत लोगों को श्रद्धांजलि देता हूं जिन्होंने हज़ारों की संख्या में वहां पर अपनी जान दी है, कुंभ में। खड़गे के इस बयान के बाद सदन में सत्ता पक्ष के सांसदों ने शोर मचाना शुरू कर दिया। इस पर मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, ये मेरा अंदाज है। ये गलत है तो आप बताइए। अगर ये सच नहीं है तो आप बताइए, क्या सच है।

विपक्षी दलों ने सरकार को घेरा

वहीं, समाजवादी पार्टी की राज्यसभा सांसद जया बच्चन ने संसद परिसर में पत्रकारों से कहा है कि सबसे ज़्यादा दूषित पानी इस वक्त कहां है- कुंभ में है। उसके लिए कोई सफाई नहीं दे रहे हैं। लाश जो पानी में डाल दिए गए हैं, उससे पानी दूषित हुआ है।

तृणमूल कांग्रेस की सागरिका घोष ने कहा, कुंभ मेले में क्या हुआ था, हम इसका सच चाहते हैं। सबूत सामने आ रहे हैं कि वहां दूसरी भगदड़ भी हुई थी। खोजी पत्रकार बता रहे हैं कि वहां 30 नहीं बल्कि बहुत ज़्यादा लोगों की मौत हुई। हम इस सरकार से जवाब चाहते हैं। सभी विपक्षी सदस्यों ने नियम 267 के तहत नोटिस दिया कि हम कुंभ मेले में हुए हादसे पर चर्चा चाहते हैं। सरकार क्यों नहीं बता रही है कि कितने लोग मारे गए हैं। यह अपराध है।

आरजेडी के सांसद मनोज झा ने भी इस मुद्दे पर सराकर पर हमला बोला है। संसद परिसर में पत्रकारों से बातचीन में मनोज झा ने कहा, सिर्फ़ हमारी बात नहीं है पूरा देश परेशान है, अपने लोगों को ढूंढ रहा है, कुंभ इनसे पहले भी था, कुंभ इनके बाद भी होगा। लोग जवाबदेही चाहते हैं। इतनी जानें जाएं और सदन को अनभिज्ञ रखा जाए, यानी देश को अनभिज्ञ रखने की।

क्यों उठ रहे सवाल?

महाकुंभ में 28 जनवरी को मौनी अमावस्या के अमृत स्नान से पहले रात करीब 2 बजे भगदड़ मची थी। इसमें कई लोग घायल हुए और भीड़ में दबने के कारण कई लोगों की मौत हो गई। इस घटना के करीब 17 घंटे बाद यूपी सरकार की ओर से आंकड़े जारी किए गए, जिसमें 30 मौतों और 60 लोगों के घायल होने की बात कही गई। इसमें 25 मृतकों की शिनाख्त होने की भी बात कही गई। हालांकि, इन आंकड़ों के बाद पुलिस की ओर से करीब 24 लावारिश लाशों की शिनाख्त के लिए तस्वीरें जारी की गईं। ये तस्वीरें ही सरकारी आंकड़ों पर सवाल खड़े कर रही हैं।

वहीं, भगदड़ के बाद सामने आई कई मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया था कि महाकुंभ में संगम नोज के अलावा दूसरी जगह भी भगदड़ मची थी, लेकिन उसे छिपा लिया गया। इस भगदड़ में भी कई मौतों का दावा किया जा रहा है।

100 करोड़ लोगों की व्यवस्था का था दावा

महाकुंभ की तैयारी के वक्त यूपी की सरकार ने 100 करोड़ लोगों को स्नान कराने की व्यवस्था करने की बात कही थी। यूपी सरकार के मंत्री हर राज्यों में जाकर आमंत्रण पत्र बांट रहे थे, लेकिन मौनी अमावस्या के आसपास स्थिति पूरी तरह चरमरा गई। अखिलेश यादव के मुताबिक पहली बार मौनी अमावस्या के दिन ब्रह्म मुहूर्त में साधु और संन्यासी स्नान नहीं कर पाए। शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने भी इसको लेकर सवाल उठाया। शंकराचार्य का कहना है कि जब 100 करोड़ लोगों की व्यवस्था थी, तब 10-20 करोड़ भी क्यों नहीं संभाल पाए?