मप्र की इस सीट पर दिलचस्प हुआ मुकाबला, किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर ने किया चुनाव लड़ने का ऐलान, खरीदा नामांकन फॉर्म
2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में अब कुछ ही समय बचा हुआ है. इस बीच दमोह लोकसभा सीट बुंदेलखंड अंचल की हाईप्रोफाइल सीट बनती जा रही है, क्योंकि बीजेपी और कांग्रेस इस सीट पर पूरा जोर लगा रही है, वहीं अब दमोह के सियासी दंगल में थर्ड जेंडर दुर्गा मौसी की एंट्री भी हो गई है. उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. खास बात यह है कि वह 100 किलोमीटर स्कूटी चलाकर दमोह पहुंची और नामांकन फॉर्म खरीदा, दुर्गा मौसी का कहना है कि उनके पास दमोह की जनता के लिए वादों का पूरा पिटारा है.
दुर्गा मौसी ने दमोह पहुंचकर नामांकन खरीद लिया है, वह गुरुवार को अपना नामांकन दाखिल करेंगी. खास बात यह है कि दुर्गा मौसी दमोह के पड़ौसी जिले कटनी की रहने वाली हैं, जो अपने संसदीय क्षेत्र खजुराहो को छोड़कर दमोह से लोकसभा का चुनाव लड़ेंगी. उनका कहना है कि उन्हें जनसेवा करना है और फिर इलाका कोई भी हो जनता तो एक ही है. इसलिए उन्होंने दमोह सीट से चुनाव लड़ने का मन बनाया है.
किन्नर दुर्गा मौसी के पास वादों और दावों का पिटारा बड़े नेताओं की तरह है, सड़क, बिजली, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार जैसे मुद्दों पर उनका फोकस है और नामांकन दाखिल करने से पहले ही वो इन बातों को जनता के बीच रख रही है. देश में छाए राम मंदिर के मुद्दे को लेकर वो कहती है कि वो खुद एक अखाड़े की महामंडलेश्वर है और राम कृपा उनके ऊपर है, लोगो के मन में मंदिर है लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता.
खास बात यह है कि दुर्गा मौसी की सियासत में दिलचस्प शुरू से ही रही है. उन्होंने सरपंची से अपने सियासी करियर की शुरुआत की थी और वर्तमान में वह कटनी जिले की जनपद सदस्य हैं. बुधवार को अपनी स्कूटी चलाते हुए 100 किलोमीटर से ज्यादा का सफर तय करके वो दमोह पहुंची और चुनाव के लिए फॉर्म खरीदा. बहरहाल, लोकसभा चुनाव की अब तक कि प्रक्रिया में संभवत दुर्गा मौसी पहली थर्ड जेंडर हो सकती है, जिन्होंने लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. बता दें कि दमोह लोकसभा सीट से बीजेपी ने राहुल सिंह लोधी और कांग्रेस ने तरवर सिंह लोधी को टिकट दिया है.





तिहाड़ जेल में बंद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को बड़ी राहत मिली है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को पद से हटाने के लिए दाखिल दूसरी जनहित याचिका को भी दिल्ली हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है। इससे पहले भी हाईकोर्ट केजरीवाल को सीएम पद से हटाने वाली एक जनहित याचिका खारिज कर चुका है। इस दौरान कोर्ट ने कहा था कि ये कार्यपालिका से जु़ड़ा मामला है। शराब नीति से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तार अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री पद से हटाने की मांग करने वाली एक और याचिका दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा है कि इस बारे में कदम उठाना एलजी और राष्ट्रपति के अधिकार क्षेत्र में है। ऐसे में इस तरह का आदेश हम नहीं दे सकते। हालांकि, कोर्ट ने एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा, कई बार राष्ट्रीय हित, निजी हित से बड़े होते हैं, लेकिन यह निर्णय उनका (केजरीवाल) है। हिंदू सेना नामक संगठन के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता की ओर से दायर याचिका में दिल्ली उत्पाद शुल्क नीति घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में केजरीवाल की गिरफ्तारी का हवाला देते हुए उन्हें सीएम पद से हटाने की मांग की गई थी। हालांकि, कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की खंडपीठ ने कहा कि यह केजरीवाल का निजी फैसला होगा कि उन्हें मुख्यमंत्री बने रहना है या नहीं। फिर भी, पीठ ने एक सूक्ष्म संकेत जरूर दिया। इसमें टिप्पणी की गई कि "कभी-कभी, व्यक्तिगत हित को राष्ट्रीय हित के अधीन करना पड़ता है लेकिन यह उनका (केजरीवाल का) निजी फैसला है। याचिका खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि हम कैसे कह सकते हैं कि सरकार काम नहीं कर रही है। एलजी फैसला लेने में सक्षम हैं। उन्हें हमारी सलाह की जरूरत नहीं है। वो कानून के मुताबिक काम करेंगे। इस मामले में एलजी या राष्ट्रपति ही सक्षम हैं। जब कोर्ट ने इस मामले में कोई आदेश देने से इनकार कर दिया तो याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि वो इसे वापस लेना चाहते हैं और एलजी के पास अपनी दरख्वास्त देंगे। बता दें कि अरविंद केजरीवाल को 21 मार्च को गिरफ्तार किया गया था। वह फिलहाल 15 अप्रैल तक न्यायिक हिरासत में रहने वाले हैं। हालांकि दिल्ली सीएम केजरीवाल ने अपनी गिरफ्तारी के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। कोर्ट ने बुधवार को उनकी याचिका पर 3 घंटे तक चली सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया। आज कोर्ट इस बात का फैसला कर सकता है कि केजरीवाल को जमानत दी जाए या फिर उन्हें अभी न्यायिक हिरासत में ही रहना होगा।
आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जेल में बंद है। शराब नीति घोटाला मामले में ईडी ने उन्हें गिरफ्तार किया है। केवल केजरीवाल ही नहीं आप के कई बड़े नेता इस आरोप में सलाखों के पीछे हैं। यहीं नहीं विपक्षी पार्टियों के कई बड़े नेता जांच की “आंच” झेल रहे हैं। इसके बाद से केंद्र की मोदी सरकार पर केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग करने का आरोप लग रहा है। यही नहीं, विपक्ष आरोप लगाता है कि मोदी सरकार एजेसियों के जरिए विपक्षी नेताओं को प्रताड़ित करती है और जब वे भाजपा में शामिल हो जाते हैं तो उनके खिलाफ दर्ज केस खारिज कर दिए जाते हैं। इस बीच एक रिपोर्ट सामने आई है, जो इन आरोपों पर मुहर लगाने का काम कर रही है। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट सामने आई है। रिपोर्ट में है कि 2014 के बाद से कथित भ्रष्टाचार के लिए विपक्ष के 25 नेता जो केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई का सामना कर रहे थे, बीजेपी में शामिल हुए और उनमें से 23 को राहत मिल गई। उनके खिलाफ जांच या तो बंद हो गई या ठंडे बस्ते में चली गई। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट है कि 2014 के बाद जिन प्रमुख राजनेताओं का जिक्र किया जा रहा है, वे विपक्षी दलों से बीजेपी में शामिल हो गए थे। *3 पर दर्ज केस बंद, 20 मुकदमे ठंडे बस्ते में* रिपोर्ट के मुताबिक बीजेपी में आए ये नेता कांग्रेस से लेकर समाजवादी पार्टी जैसे दलों को छोड़कर आए हैं। इसमें सबसे ज्यादा कांग्रेस के 10 नेता रहे, जिनके ऊपर भ्रष्टाचार के केस थे, लेकिन फिर वो बीजेपी में शामिल हो गए। दूसरे नंबर पर एनसीपी और शिवसेना है, जिसके 4 नेताओं ने बीजेपी का दामन थामा। तृणमूल कांग्रेस से 3, टीडीपी से 2 और समाजवादी पार्टी एवं वाईएसआरसीपी से एक-एक नेता बीजेपी में शामिल हुए। 25 में से 23 नेताओं को बीजेपी ज्वाइन करने के बाद राहत मिली है। इन 23 नेताओं में से 3 पर दर्ज केस बंद कर दिए गए हैं, जबकि 20 अन्य लोगों पर दर्ज मुकदमे ठंडे बस्ते में चले गए हैं। 25 नेताओं में से 6 नेता लोकसभा चुनाव से कुछ हफ्ते पहले ही बीजेपी में शामिल हुए हैं। इन नेताओं पर जांच एजेंसियों की कार्रवाई ठंडी पड़ गई है। *किन-किन बड़े नेताओं को मिली राहत?* रिपोर्ट के मुताबिक, 2022 और 2023 की राजनीतिक उथल-पुथल के दौरान केंद्रीय कार्रवाई का एक बड़ा हिस्सा महाराष्ट्र पर केंद्रित था। 2022 में एकनाथ शिंदे गुट ने शिवसेना से अलग होकर बीजेपी के साथ नई सरकार बना ली। एक साल बाद अजित पवार गुट एनसीपी से अलग हो गया और सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन में शामिल हो गया। अजीत पवार और प्रफुल्ल पटेल के मामले भी बंद हो गए हैं। कुल मिलाकर महाराष्ट्र के 12 प्रमुख राजनेता 25 की सूची में हैं, जिनमें से 11 नेता 2022 या उसके बाद बीजेपी में चले गए, जिनमें एनसीपी, शिवसेना और कांग्रेस के चार-चार शामिल हैं। इनमें से कुछ मामले गंभीर हैं। जुलाई, 2023 में अजित पवार ने एनसीपी तोड़कर भाजपा के साथ सरकार बनाई और जनवरी, 2024 में महाराष्ट्र सहकारी बैंक में अनियमितता को लेकर उनके खिलाफ दर्ज मामला बंद कर दिया गया।प्रफुल्ल पटेल (एनसीपी) के खिलाफ दर्ज एयर इंडिया विमान खरीद में घोटाले से संबंधित मामला पिछले महीने बंद कर दिया गया।शारदा चिट फंड घोटाले में आरोपी असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा 2015 में कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए। तब से जांच ठंडे बस्ते में है। इसी तरह पश्चिम बंगाल के नेता प्रतिपक्ष सुवेंदु अधिकारी दिसंबर, 2020 में तृणमूल कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए और तब से नारदा स्टिंग मामले में उनके खिलाफ जांच ठंडे बस्ते में है। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण के खिलाफ भी मामले अटके हुए हैं। चव्हाण इस साल बीजेपी में शामिल हो गए, जबकि आदर्श हाउसिंग मामले में सीबीआई और ईडी की कार्यवाही पर सुप्रीम कोर्ट की रोक लगी हुई है। *केवल दो मामलों में जांच जारी* 25 मामलों में से केवल दो में कार्रवाई नहीं रुकी। इनमें से केवल दो मामले ऐसे में जिनमें नेताओं को बीजेपी में शामिल होने के बाद भी ईडी की तरफ से मामले में कोई ढील नहीं दी गई है। इनमें पूर्व कांग्रेस सांसद ज्योति मिर्धा और पूर्व टीडीपी सांसद वाईएस चौधरी शामिल हैं, जो अब बीजेपी का हिस्सा हैं। दोनों नेताओं के बीजेपी में शामिल होने के बाद भी ईडी द्वारा ढील दिए जाने का कोई सबूत नहीं है। कम से कम अभी तक तो कोई सबूत नहीं मिला। *विपक्ष पर जांच एजेंसियों का ताबड़तोड़ एक्शन पहली बार नहीं* यह नई परंपरा नहीं है। 2009 में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए के वर्षों में द इंडियन एक्सप्रेस की एक जांच में फाइल नोटिंग से पता चला कि सीबीआई ने बसपा सुप्रीमो मायावती और सपा के मुलायम सिंह यादव के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों में अपना रुख बदल दिया था, जब दोनों नेताओं को सत्तारूढ़ यूपीए के साथ अच्छे संबंध हो गए थे।
कांग्रेस ने महाराष्ट्र के वरिष्ठ नेता संजय निरुपम को छह साल तक के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया है। उन पर पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण कार्रवाई की गई है। पिछले काफी दिनों से वह लगातार पार्टी विरोधी बयानबाजी भी कर रहे थे। जिसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष ने निरुपम को छह साल तक के लिए पार्टी से निष्कासित किया है। संजय निरुपम मुंबई पश्चिम की सीट पर उद्धव ठाकरे की ओर से अमोल कीर्तिकार को टिकट दिए जाने के बाद से संजय कांग्रेस पर भड़के हुए थे और लगातार पार्टी के विरोध में बयानबाजी कर रहे थे। इसके अलावा वह अमोल पर भी लगातार निशाना साध रहे थे। इसके बाद से ही माना जा रहा था कि या तो निरुपम कांग्रेस को छोड़ सकते हैं या फिर कांग्रेस उन पर कोई कार्रवाई कर सकती है। बुधवार दोपहर कांग्रेस ने स्टार प्रचारकों की सूची से निरुपम को बाहर कर इसके संकेत भी दिए थे। कांग्रेस से निष्कासित नेता संजय निरुपम ने पार्टी की कार्रवाई को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने एक्स पर लिखा, 'ऐसा लगता है कि पार्टी ने कल रात मेरा इस्तीफा पत्र मिलने के तुरंत बाद मेरा निष्कासन जारी करने का फैसला किया। इतनी तत्परता देखकर अच्छा लगा। बस यह जानकारी साझा कर रहा हूं। मैं आज सुबह 11.30 से दोपहर 12 बजे के बीच एक विस्तृत बयान दूंगा। *निरूपम ने बायो और कवर फोटो बदला* कांग्रेस से निष्कासित किए जाने के बाद संजय निरुपम ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर अपना बायो बदलकर कर अपनी कवर फोटो भी हटा दी है। इसके अलावा निरुपम ने नई प्रोफाइल पिक भी अपलोड कर दी है। अभी तक संजय निरुपम अपनी कवर फोटो और प्रोफाइल पिक में राहुल गांधी के साथ नजर आ रहे थे। संजय निरुपम ने पहले अपने प्रोफाइल में खुद को ‘ए कांग्रेस मैन’ लिखा था और अब उन्होंने यह भी हटा लिया है। *निरुपम का अगला कदम क्या होगा?* अब जब पार्टी ने निरूपम को निकाल दिया है तब सवाल खड़ा हो है कि संजय निरुपम का अगला कदम क्या होगा? संजय निरुपम शिवसेना छोड़कर कांग्रेस में आए थे। मुंबई नार्थ वेस्ट से लड़ने के इच्छुक संजय निरुपम के पास काफी सीमित विकल्प है। उनके बीजेपी में जाने की आसार बेहद कदम है। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि संजय निरुपम मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली शिवसेना में शामिल हो सकते हैं। ऐसे में अगर वे शिवसेना में प्रवेश लेते हैं तो इसे घरवापसी के तौर पर पेश कर सकेंगे। अगर संजय निरुपम की शिवसेना से डील फिक्स होती है तो फिर मुंबई नार्थ वेस्ट सीट से उद्धव ठाकरे गुट ग्रुप के कैंडिडेट अमोल कीर्तिकर के सामने उतर सकते हैं। शिवसेना काफी समय से इस सीट के मजबूत कैंडिडेट की खोजबीन में जुटी हुई थी। ऐसे में अगर निरुपम पर दांव ठीक बैठता है तो नार्थ वेस्ट सीट पर निरुपम बना कीर्तिकर की लड़ाई संभव है, हालांकि इसमें एक पेच यह है कि मुख्यमंत्री शिंदे पहले से अपने 13 सांसदों को एडजस्ट नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में वह अगर निरुपम को पार्टी में लेते हैं तो विरोध बढ़ सकता है।
Apr 04 2024, 14:13
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