सचिन पायलट के किले को बचाने के लिए मैदान में उतरी कांग्रेस, 11 मंत्रियों के लिए अपनी सीट बचाने की चुनौती
मुख्यमंत्री पद को लेकर पांच साल तक अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच चल रही सियासी जंग पर अभी खत्म नहीं हुई है। इसका ही नतीजा रहा है कि कांग्रेस के पोस्टर से पायलट गायब कर दिए गए, जिससे सचिन के प्रभाव वाले कांग्रेस के सबसे मजबूत किले पूर्वी राजस्थान पर पार्टी के लिए सियासी खतरा मंडराने लगा। अब इस किले को सुरक्षित रखने के लिए कांग्रेस मैदान में उतर गई है। राहुल गांधी के हस्तक्षेप के बाद डैमेज कंट्रोल किया जा रहा है। कांग्रेस के चुनावी पोस्टर पर पायलट के फोटो की वापसी की गई। तीन दिन पहले ही चुनावी सभा में राहुल गांधी ने गहलोत और पायलट का हाथ मिलवाकर सब ठीक होने का संदेश देने की कोशिश की।
गहलोत ने एक कदम और आगे बढ़कर एक्स पर सचिन के साथ अपनी फोटो जारी कर 'एक साथ जीत रहे हैं, कांग्रेस फिर से' का संदेश दिया। इसका असर भी होता नजर आ रहा है। चुनाव से दस दिन पहले तक अपनी टोंक सीट तक सीमित पायलट के 18 नवंबर को अजमेर और अलवर जिले में प्रचार के चार कार्यक्रम लगे। 2018 के चुनाव की बात करें तो पायलट काफी पहले से पूर्वी राजस्थान सहित पूरे प्रदेश में ताबड़तोड़ रैलियां कर रहे थे। ऐसे में चुनाव के अंतिम दौर में अचानक पायलट के लिए भी माहौल को बदलना आसान नहीं होगा। कांग्रेस सियासी समीकरण के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से लेकर अन्य नेताओं को भी पूर्वी राजस्थान में उतार रही है।
पूर्वी राजस्थान के 4 जिलों में भाजपा का नहीं खुला था खाता
जयपुर, अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली, दौसा, सवाईमाधोपुर, टोंक और अजमेर जिले की ज्यादातर सीटों पर पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट का प्रभाव माना जाता है।
इसके तीन कारण प्रमुख हैं,
पहला सचिन के पिता स्वर्गीय राजेश पायलट दौसा व भरतपुर से सांसद रह चुके हैं। दूसरा सचिन पायलट खुद भी दौसा, अजमेर से सांसद रहे और अभी टोंक से विधायक हैं। तीसरा इन जिलों की 60 फीसदी से ज्यादा सीटें गुर्जर और मीणा बहुल हैं।
मीणा वोटर कांग्रेस के साथ हैं, जबकि गुर्ज्जर भाजपा के। पिछले चुनाव में सचिन पायलट कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष थे। कांग्रेस के सत्ता में आने पर पायलट के सीएम बनने की उम्मीद थी। इसका नतीजा रहा कि पूर्वी राजस्थान के कई जिलों से भाजपा का सफाया हो गया। भरतपुर, करौली, सवाईमाधोपुर, दौसा यानी चार जिलों में भाजपा खाता तक नहीं खोल पाई।
नौ जिलों में 11 मंत्रियों की फंसीं सीटें
राजस्थान के नौ जिलों में सर्वाधिक 66 सीटे हैं, जिनमें से 37 कांग्रेस के पास है। 14 सीटों पर बसपा और निर्दलीयों का कब्जा था। ये सभी फिलहाल कांग्रेस सरकार को अपना समर्थन दे रहे थे।
एक तरह से 51 सीटें कांग्रेस के खाते में थीं, जबकि भाजपा 15 सीटें ही जीत पाई थी।
कांग्रेस ने 11 विधायकों को कैबिनेट और राज्य मंत्री बनाया था। इनमें जयपुर के सिविल लाइंस से प्रताप सिंह खाचरियावास, कोटपुतली से राजेंद्र यादव, सिकराय से ममता भूपेश, लाल सोट से परसादी लाल मीणा, दौसा से मुरारी लाल मीणा, करौली जिले के सपोटरा रमेश मीणा, अलवर ग्रामीण से टीकाराम जूली, बानसूर से शकुंतला रावत, भरतपुर से सुभाष गर्ग, डीग कुम्हेर से विश्वेंद्र सिंह और कामां से जाहिदा शामिल हैं।
ज्यादातर मंत्रियों की सीटें फंसी पड़ी हैं। जनता में इतनी नाराजगी है कि स्थानीय स्तर पर मंत्रियों के खिलाफ उनके सामने विरोध प्रदर्शन और नारेबाजी तक की जा रही है।
किला भेदने के लिए नड्डा से लेकर पीएम मोदी तक जुटे
राजस्थान में पूर्वी इलाका भाजपा के लिए सबसे कमजोर कड़ी है। इसे मजबूत करने के लिए भाजपा लगातार एक के बाद एक कदम उठा रही है। कांग्रेस के इस किले पर कब्जा करने के लिए पिछले एक साल से बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से लेकर पीएम नरेंद्र मोदी तक जुटे हैं। 2023 फरवरी में पीएम मोदी ने दिल्ली मुंबई एक्सप्रेसवे का शुभारंभ किया था। इसके लिए दौसा में कार्यक्रम किया था। साल की शुरुआत में भीलवाड़ा स्थित गुर्जर समाज के देवनारायण मंदिर का पीएम ने दर्शन किया था। भरतपुर में मोदी ने रैली भी की। इस इलाके में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, अमित शाह, योगी आदित्यनाथ और स्मृति ईरानी को भी मैदान में उतारा जा चुका है। भाजपा ने गुर्जर आरक्षण को लेकर आंदोलन करने वाले स्वर्गीय किरोड़ी बैंसला के बेटे विजय बैंसला सहित कई सीटों पर गुर्जर समाज के प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है।
सचिन पायलट के प्रभाव वाले 9 जिलों की 66 सीटें
जयपुर (19)
अलवर (11)
भरतपुर (7)
धौलपुर (4)
करौली (4)
सवाईमाधोपुर (4)
दौसा (5)
टोंक (4)
अजमेर (8)
Nov 19 2023, 21:34