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हर निवाला हो सजगता भरा संदर्भ : हेल्दी दीपावली के लिए खानपान का रखें ख्याल
हिंदू धर्म के सबसे प्रमुख त्योहारों में दीपावली है जो सभी के जीवन में खुशियां , हर्ष , उल्लास और उमंग लेकर आती है पर थोड़ी सी लापरवाही अनेक समस्याओं का कारण बन सकती है ।  त्योहारों के मौसम में सेहत पर असर पड़ना स्वाभाविक है ।  खास तौर पर दीपावली के अवसर पर । ऐसे में सावधानी बरतने की जरूरत है । आप एक साथ भर पेट नहीं खाएं ।  थोड़े -थोड़े अंतराल पर कुछ-कुछ खाते रहें।
वहीं जिन्हें डायबिटीज, कोलेस्ट्रॉल,अस्थमा तथा सांस से संबंधित समस्या है, उन्हें सेहत का विशेष ध्यान रखना चाहिए ।  दीपावली की तैयारी के साथ-साथ अपने स्वास्थ्य का भी ध्यान रखें । इसलिए खानपान से लेकर पटाखे शरीर के लिए नुकसानदेह हो सकते हैं। लजीज व्यंजन का अधिक लुत्फ उठाने के चक्कर में तबीयत बिगड़ सकती है। पर्व- त्योहार पर मसालेदार भोजन और मिठाइयों का इस्तेमाल बढ़ जाता है । इससे पाचन तंत्र संबंधी समस्याएं हो सकती हैं ।  वहीं अगर आप पर्याप्त मात्रा में पानी पीते हैं तो आपका पेट भरा रहता है और आप बहुत अधिक व अतिरिक्त कैलोरी लेने से बच जाते हैं। इसलिए स्वस्थ खानपान को ही प्राथमिकता देनी चाहिए ।
तेज आवाज वाले पटाखों से बचें : बच्चों के लिए ऐसे पटाखे ना खरीदें जो काफी तेज आवाज करते हो ।  इसके अलावा ज्यादा बारूद और धुआं वाले पटाखे नहीं खरीदें। वही बच्चों को अकेले में भी पटाखे चलाने नहीं देना चाहिए। साथ ही अपने और बच्चों को पहनने पर भी ध्यान रखें ।  पटाखे छोड़ते वक्त रेशमी कपड़े न पहनें और ना बच्चों को पहनाएं । दीये और मोमबत्ती से बच्चों को दूर रखें क्योंकि बच्चे शरारती होते हैं ।  जरा सी लापरवाही परेशानी का कारण बन सकती है । घर में फर्स्ट एड का सामान जरूर रखें ।
और अंत में दीपावली के दौरान खुद का ख्याल रखने के साथ-साथ परिवार के अन्य सदस्यों का भी ख्याल रखना बहुत जरूरी होता है ।  खासकर बच्चे और बुजुर्गों का। इसलिए खुद के साथ-साथ घर के अन्य सदस्यों के साथ सुरक्षित माहौल में दीपावली का त्योहार खुशी के साथ मनाएं ।
हैप्पी दीपावली
धन से महत्वपूर्ण है स्वास्थ्य संदर्भ : धनतेरस से शुरू हो जाता है दीपावली का पांच दिवसीय पर्व
दीपावली का त्योहार पांच दिनों तक मनाया जाता है। इसकी शुरुआत धनतेरस के साथ होती है और भाई दूज के दिन पांच दिवसीय पर्व का समापन होता है । त्रेता युग में भगवान श्री राम  वनवास के दौरान रावण का वध कर जब लंका से अयोध्या लौटे थे तब अयोध्यावासियों ने पूरी अयोध्या को दीप मालाओं से सजाया था । तभी से दीपावली पर्व मनाने की परंपरा चली आ रही है । यह पांच दिन का पर्व लक्ष्मी जी, भगवान राम और श्री कृष्ण की पूजा के लिए समर्पित होता है ।
पहला दिन : कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन समुद्र मंथन से भगवान धन्वंतरि अक्षय पात्र के साथ प्रकट हुए थे। तभी से धनतेरस का पर्व शुरू हुआ। इसलिए इस दिन  नये बर्तन आदि की खरीदारी करना शुभ माना जाता है ।
दूसरा दिन : कार्तिक मास की चतुर्दशी तिथि के दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था। तब से नरक चतुर्दशी पर्व मनाया जाता है ।  इस दिन को छोटी दीपावली भी कहते हैं। इस दिन 5 या सात दीये जलाने की परंपरा है ।
तीसरा दिन : कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को समुद्र मंथन से लक्ष्मी जी प्रकट हुईं थीं और उसी दिन भगवान विष्णु से उनका विवाह हुआ था। यह दिन महालक्ष्मी पूजन के लिए विशेष होता है ।
चौथा दिन : दीपावली के अगले दिन यानी शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत की पूजा की थी । इस दिन 56 तरह के पकवान आदि बनाकर भगवान को भोग लगाया जाता है।
पांचवा दिन : शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भगवान कृष्ण नरकासुर नामक राक्षस को मारने के बाद अपनी बहन सुभद्रा से मिलने गये थे । वहीं इस दिन यमराज अपनी बहन यमुना के घर उसके आमंत्रण पर गये थे और यमुना जी ने उनका तिलक लगाकर आदर सत्कार किया था । तभी से यह दिन भाई दूज पर्व के रूप में मनाया जाता है।
और अंत अत्युत्तम ,अनुपम , अमित ,अद्भुत ,अपरंपार। सुंदर, सरस ,सुहावना दीपों का त्योहार।। (नवीन)
ज्यादा गुस्सा भी कर सकता है बीमार संदर्भ : पति से झगड़ा के बाद पत्नी ने 2 साल के बेटे को गंडासे से काटा
इंसान कई सारे रिश्तों और इमोशन से बंधा होता है। वह हंसता है, रोता है , गुस्सा करता है और इमोशनल भी होता है। मनुष्य का स्वभाव एक जैसा नहीं होता। कहते हैं ज्यादा गुस्सा खून जलाता है यानी ज्यादा गुस्सा मन पर तो असर डालता ही है साथ ही शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डालता है ।
मनोवैज्ञानिक भी मानते हैं कि ऐसी अवस्था लोगों में समस्या का कारण बन सकती है। गुस्से की अधिकता कई बार व्यक्ति को हिंसा और अपराध की ओर भी ले जाती है।दुनिया भर के लोगों में अलग-अलग कारणों से गुस्से और तनाव जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं।
कई वैज्ञानिक और समाजशास्त्री आज के इस युग को "एज आफ एंजायटी" युग के नाम से भी संबोधित करने लगे हैं । ज्यादा गुस्सा लोगों के कामकाजी , सामाजिक और पारिवारिक जीवन, सोचने और समझने की क्षमता आदि को भी प्रभावित करता है । ज्यादा गुस्सैल लोग न सिर्फ खुद को नुकसान पहुंचा सकते हैं बल्कि दूसरों को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रिक मीडिया में गुस्से के कारण हुए अपराध की घटनाएं भरी रहती हैं। ताजा घटना सीतामढ़ी की है , जहां पति से झगड़ा होने के बाद पत्नी ने अपने 2 साल के बेटे को गंडासे से काट डाला  और दो अन्य छोटे बच्चों को घायल कर दिया ।  यह घटना तो बस एक उदाहरण है गुस्से की पराकाष्ठा का । 
क्या है इलाज : ज्यादा गुस्सा जब डिसऑर्डर में बदल जाता है जो जीवन की गुणवत्ता को खराब कर देता है । ऐसे व्यक्ति को आवश्यक काउंसलिंग के साथ काग्निटिक बिहेवियर थेरेपी , कम्युनिकेशन ट्रेनिंग तथा एंगर मैनेजमेंट स्किल डेवलपमेंट थेरेपी दी जाती है । साथ ही अनुशासित जीवन शैली का पालन करना जरूरी है । काम के साथ-साथ परिवार को भी समय देने और परिजनों के साथ समय बिताने से भी इस तरह की समस्या को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है । इसलिए तनाव रहित जीवन  जिएं तथा मस्त रहें और स्वस्थ रहें।
मर्यादा क्यों खो देते हैं माननीय संदर्भ : स्त्री शिक्षा और जनसंख्या नियंत्रण पर सीएम का बयान
आज का आधुनिक समाज एक नयी सोच रखता है और रही सही कसर सोशल मीडिया पूरी कर देता है । आज की सोच में संस्कारों को महत्वहीन माना जाता है। यह स्थिति ठीक नहीं । हम संस्कारों में बंधे रहते हैं तो मन, क्रम और वचन से मर्यादित रहते हैं ।
सूबे के सीएम विस और विप में स्त्री शिक्षा और जनसंख्या नियंत्रण पर बोलते- बोलते कुछ ऐसी बातें कह गये जो सदन की मर्यादा की विपरीत थीं। कुछ शब्द छिपे रहने में ही ठीक लगते हैं । आजकल ट्रेंड बन गया है माननीय पहले बोल देते हैं फिर बाद में माफी मांग लेते हैं । इस तरह के बयान से पद की गरिमा को ठेस पहुंचती है। विपक्ष मामले को लेकर हमलावर है। महिला आयोग ने भी इसकी निंदा की है। मामले को बढ़ता देख सीएम ने माफी मांग ली। पर महा गठबंधन ने विपक्ष को बैठे - बिठाये एक मुद्दा दे दिया है।
गंभीर होता जा रहा वायु प्रदूषण संदर्भ : नमी बढ़ने के साथ ही बढ़ा प्रदूषण
ठंड के मौसम में हवा सघन होती है और गर्म हवा की तुलना में धीमी गति से चलती है । इसका मतलब है कि ठंडी हवा प्रदूषण को रोक लेती है लेकिन उसे दूर नहीं ले जाती। सर्दियों में वायु प्रदूषण काफी लंबे समय तक बना रहता है। वायु प्रदूषण तब होता है जब गैस, धूल , गंदगी, पराग, कालिख, वायरस आदि हवा को दूषित करते हैं, जिससे यह अशुद्ध , अस्वास्थ्यकर और विषाक्त बन जाती है ।  हवा में मौजूद वायु प्रदूषण की मात्रा मनुष्यों , जानवरों और पूरे पारिस्थितिकी तंत्र प्रभाव डालती है । वाहन, कल- कारखाने, कचरा जलाना ,धूल, बिजली संयंत्र , निर्माण, विध्वंसक  गतिविधियां , विमान और विमानों  से उत्सर्जन, जंगलों में लगी आग , ज्वालामुखी विस्फोट भी वायु प्रदूषण को बढ़ावा देते हैं । 
वायु प्रदूषण के कारण क्या बीमारियां होती है : वायु प्रदूषण से चक्कर आना ,सांस लेने में कठिनाई ,अस्थमा, आंख नाक और गले में जलन  आदि परेशानियां होने लगती हैं।
कैसे करें कम : सरकार की तरफ से तो वायु प्रदूषण कम करने के प्रयास लगातार किये जा रहे हैं ,वहीं कुछ प्रयास हम लोगों को भी करने होंगे। प्रदूषण पर रोक लगाने में पेड़- पौधे सबसे पहले स्थान पर आते हैं । पूरे विश्व में जो वायु प्रदूषण बढ़ रहा है उसका एक कारण यह  भी है कि विकास के लिए अंधाधुंध पेड़ों की कटायी की जा रही है, इसलिए लोगों को ज्यादा से ज्यादा पौधारोपण करना चाहिए।
वायु प्रदूषण का सबसे बुनियादी समाधान जीवाश्म ईंधन से दूर जाना है। उसकी जगह सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और भूतापीय ऊर्जा वैकल्पिक समाधान हो सकते हैं ।
वहीं लोग निजी वाहनों की जगह सार्वजनिक वाहनों का उपयोग  करें ।  सड़कों के किनारे अधिक से अधिक पेड़ लगाये जायें। आबादी वाले क्षेत्र खुले और हवादार हों। कल- कारखाने आबादी वाले क्षेत्रों से  होने चाहिए।
दूसरी ओर देश की राजधानी दिल्ली में बुरी तरह बढ़ चुके प्रदूषण को देखते हुए  सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को प्रदूषण पर रोक लगाने के लिए उचित उपाय करने का निर्देश दिया है। प्रदूषण चाहे वह किसी तरह का हो जब वह हद से बढ़ जाता है तो मनुष्य के लिए हानिकारक बन जाता है।
बच्चों को दें संस्कार जो जीवन मूल्यों की शिक्षा देंगे संदर्भ : कलह युग बन रहा कलियुग
यह संसार है जो मधुर और कटु भी है। कटु भी मनुष्य बनता है और मधुर भी मनुष्य ही बनता है ।  इसे दो दृश्यों से समझते हैं। पहला दृश्य  लगभग 40 वर्ष की आयु की एक विधवा मां थी । उसके दो लड़के थे। लड़के काम पर लगे । संसार में सामान्यतः जैसा होता है उसी प्रकार लड़कों का विवाह हुआ । बहुएं आयीं। पर कहावत है ना सब दिन होत  न एक समान ।  मां के दिन भी पलटे। बहुएं  तो कहती ही थी ,बेटे भी  माँ की उपेक्षा करने लगे। धीरे-धीरे मां को तिरस्कार का कटु अनुभव होने लगा। कभी-कभी ऐसे शब्द भी  सुनाई पड़ते कि बुढ़िया मरती भी नहीं है ।
एक बार छोटी सी बात पर दोनों भाइयों और बहुओं में झगड़ा हो गया । दोनों अलग-अलग रहने की बात करने लगे ।  मां ने समझाया लेकिन उसका कोई असर नहीं हुआ। बेटे अलग हो गय। मां का क्या करना है या प्रश्न उठा। छोटे ने कहा भाई आप बड़े हैं मां को आप रखो । बड़े ने कहा मां मुझ अकेले की थोड़े ही है। छोटे ने कहा कि मैं अपने हिस्से वाला खर्च देता रहूंगा। इस पर बड़े ने कहा कि मैं ही मां की सार-संभाल अकेले क्यों करूं। दोनों ने अस्विकृति दे दी।   माँ भगवान से प्रार्थना करने लगी, हे संसार के रक्षक मुझे बुला ले । पेट का जाया लड़का ही खाने को नहीं देता यह दुख किसे सुनाऊं। न किसी से कहा जाता है न  सहा जाता है।
अब एक दूसरा दृश्य देखिए ,एक मां के तीन बेटे थे। वह सभी पढ़े-लिखे । पहला प्रोफेसर बन गया,दूसरे ने व्यापार करना शुरू किया और तीसरा डॉक्टर बना। भाग्य का खेल मां लगभग 45 वर्ष की आयु में विधवा हो गयी। पिता के जाने का पुत्रों को अपार दुख हुआ परंतु उन्होंने मां के दुख के आगे अपना दुख भुलाकर मां को सान्त्वना दी।  अलग-अलग व्यवसाय होने के  कारण भाइयों को अलग-अलग रहना पड़ता था ।  मां बड़े लड़के के पास रहने लगी। एक दिन मंझला भाई बड़े के घर आय और बोला कि बड़े भाई मां आपके यहां बहुत रह चुकी अब मैं मां को ले जाना चाहता हूं । तभी छोटा भाई भी पत्नी के साथ आ गया  और दोनों कहने लगे कि मां हम आपको ले जाने के लिए आये हैं।
यह सुन कर बड़े भाई ने कहा कि मां को तो हमारे पास ही रहने दो , मां तो बड़े के पास ही अच्छी लगती है । मां एक मधुर उलझन का अनुभव करने लगी । आंखों से आंसू बहने लगे।  मन ही मन कहने लगी, बेटे हों  तो ऐसे ही हों। पहला दृश्य कलियुग या कलह युग का और दूसरा दृश्य है सत्य युग ,कर्तव्य और त्याग का उदाहरण है । अच्छा  या बुरा सभी समझते हैं परंतु ऐसे प्रसंग देख सुनकर या पढ़कर कुछ लोग ही आचरण में लाते हैं।
फिर डोली धरती संदर्भ बिहार समेत उत्तर भारत में भूकंप
भूकंप यानी पृथ्वी का डोलना ।  जब से पृथ्वी की उत्पत्ति हुई है तब से पृथ्वी पर भूकंप आते रहे हैं। हमारी पृथ्वी के नीचे मौजूद प्लेट्स घूमती रहती हैं , जिनके आपस में टकराने से पृथ्वी की सतह के नीचे कंपन होता है । वहीं जब प्लेट्स अपनी जगह से की खिसकती हैं तो भूकंप के झटके महसूस होते हैं । वैज्ञानिकों के अनुसार धरती के अंदर कुल सात प्लेट्स होती हैं जो चलायमान रहती हैं। जहां प्लेट आपस में टकराती हैं उसे फॉल्ट जॉन कहते हैं। जब प्लेट्स टकराती हैं तो टकराहट से उत्पन्न ऊर्जा बाहर निकालने की कोशिश करती है और इससे जो हलचल होती है उसे ही भूकंप कहा जाता है ।
15 जनवरी 1934 को बिहार में सबसे खौफनाक भूकंप आया था। बताते हैं कि इस भूकंप में हजारों लोगों की जान चली गयी थी ।
वैज्ञानिकों के अनुसार बिहार का हर जिला भूकंप की जद में आता है। 38 में से पांच जिले जोन 5 में हैं, जो सबसे खतरनाक जोन माना जाता है । 22 जिले जोन 4 में आते हैं । आठ जिले जोन 3 में आते हैं। दूसरी और वैज्ञानिकों ने भूकंप बढ़ने का कारण पृथ्वी का ठंडा होना भी बताया है। बरतें सावधानी :- भूकंप आने पर यदि आप घर से बाहर हों तो जहां हैं  वहां से ना हिलें। बड़े भवनों ,पेड़ों, स्ट्रीट लाइटों तथा बिजली और टेलीफोन के तारों आदि से दूर रहें। यदि आप खुली जगह पर हैं तो वहीं रुके रहें जब तक झटका शांत ना हो जाए ।
सबसे बड़ा खतरा बिल्डिंगों के बाहर निकास द्वारों तथा इसकी बाहरी दीवारों के पास होता है ।  ज्ञात हो कि शुक्रवार की देन रात भूकंप के तेज झटके महसूस किए गये। यूपी , बिहार, दिल्ली ,उत्तराखंड में भी भूकंप के झटके महसूस किए गय। भूकंप रात में करीब 11:35 पर आया। राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र के मुताबिक इसकी तीव्रता 5.9 मापी गयी। भूकंप का केंद्र नेपाल था।
निष्ठुर क्यों हो रहे धरती के भगवान संदर्भ : प्रसव के दौरान डॉक्टर की लापरवाही से टूटा बच्चे का हाथ
लोगों के जीवन की रक्षा करने और बचाने की उनकी क्षमता के कारण ही डॉक्टर को भगवान का दूसरा रूप माना जाता है ।  डॉक्टर को धरती का भगवान कहा जाता है ।  भगवान ने तो हमें एक बार जीवन दे दिया लेकिन वह डॉक्टर ही  है जो भगवान के दिए जीवन पर संकट आने की स्थिति में हमारे जीवन की रक्षा करता है। दुनिया में ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां डॉक्टर ने कठिन ऑपरेशन के बाद मरणासन्न स्थिति में पहुंच चुके लोगों की जान बचायी। बच्चे को जन्म देना हो या  वृद्ध को बचाना हो तो डॉक्टरों की मदद हमेशा काम आती है । 
यही एक ऐसा पेशा है जिसे सबसे पवित्र माना जाता है ।  कठिन परिश्रम और कई वर्षों की अथक पढ़ाई के बाद डॉक्टर बनता है । हालांकि आज इस पेशे का व्यवसायीकरण हो चुका है। डाक्टरी का पेशा आज बहुत ही मुश्किलों से भरा है।
दूसरी ओर वर्तमान समय में पैसे की लालच में ऐसे भी लोग हैं जो चिकित्सा पेशे को कलंकित कर देते हैं । ऐसे लोग कुछ पैसे के लिए लोगों की जान के साथ खिलवाड़ कर देते हैं । ताजा मामला एक शिशु का है जिसने अभी ठीक तरह से दुनिया को देखा भी नहीं था कि एक झोला छाप चिकित्सक ने  कुछ पैसों की खातिर उसे अपंग बना दिया । प्रसव के दौरान जबरदस्ती गर्भ से बाहर निकालने के दौरान बच्चों के बाएं हाथ की हड्डी कई जगह से टूट गयी। ऐसे कई उदाहरण है जिसमें डॉक्टरों की लापरवाही सामने साफ दिखाई देती है । ऑपरेशन के बाद पेट में बैंडेज ,कैंची ,  तौलिया आदि छोड़ देना और टांके लगा देना यह लापरवाही ही दर्शाता है । लोगों को जब इन बातों की जानकारी होती है तो वैसे डॉक्टर के प्रति उनका क्रोध कभी-कभी हिंसक रूप ले लेता है ।
दूसरी और डॉक्टर को भी यह ध्यान रखना चाहिए कि उनके पास जो लोग अपने मरीज को लेकर आते हैं ,वे तो पहले से ही परेशान रहते हैं ऊपर से अगर लापरवाही से मरीज की परेशानी जब बढ़ जाती है तो वह और भी परेशान हो जाते हैं । इसलिए डॉक्टर को भी चाहिए कि वह मरीज के साथ-साथ परिजनों को भी सात्वना देते रहें। अपने कर्तव्य का पालन सही ढंग से करें ताकि मरीज की जान बन सके और उनके परिजन को भी संतुष्टि मिल सके कि उनका मरीज स्वस्थ हो गया ।
और अंत में डॉक्टर पृथ्वी के भगवान हैं यह बात सही साबित करने के लिए अपने कर्तव्य का उनको सही ढंग से पालन करना होगा । किसी एक की गलती की वजह से बदनामी सारे चिकित्सा पेशे को कलंकित कर देती है।
बदल रहा है मौसम रहिए सतर्क संदर्भ : गर्मी का जाना और ठंड का आना
मौसम में बदलाव होने का असर सभी लोगों पर पड़ता है। चाहे वह बच्चे हों, जवान हों, अधेड़ हों या बुजुर्ग सभी संक्रमित हो जाते हैं ।  मौसम हमारे शरीर ,मन और भावनाओं सबको प्रभावित करता है ।  मौसम के  बदलने पर अक्सर मौसमी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। बच्चों से लेकर बड़े तक सभी इस समय बीमारियों का शिकार हो सकते हैं । 
मौसमी फल और सब्जियों का करें सेवन : बदलते मौसम में हेल्दी रहने के लिए मौसमी फल और सब्जियां स्वस्थ रहने के लिए बहुत ही जरूरी हैं इससे आपको मौसमी बीमारियों से निपटने में भरपूर ताकत मिलेगी । 
पानी खूब पीएं : चाहे मानसून हो या गर्मी या सर्दी आपको नियमित रूप से दो से तीन लीटर तक पानी अवश्य पीना पीना चाहिए ।  पानी पीने का कोई ऑप्शन नहीं हो सकता। वही काम और व्यस्तताओं के बीच हम आराम करना भूल जाते हैं ।  अनुशासित जीवन स्वस्थ जीवन की कुंजी है इसलिए उचित दिनचर्या बनाएं और शरीर को आराम के लिए कुछ समय दें ।
ठंड का मौसम सेहत के लिए लिहाज से काफी मुफीद माना जाता है लेकिन जरा सी लापरवाही आपकी सेहत पर भारी पड़ सकती है ।  इस मौसम में सर्दी ,खांसी, बुखार जैसी बीमारियों का खतरा अधिक रहता है । ठंड से बचने के लिए सिर्फ गर्म कपड़े ही काफी नहीं होते बल्कि खान-पान में अभी बदलाव जरूरी है, क्योंकि बाहर के साथ-साथ बॉडी को  भीतर से  भी गर्म रखना बहुत जरूरी होता  है ।  ठंड में गुड़ का सेवन करना लाभप्रद माना जाता है ।  गुड में मिनरल और विटामिन होते हैं जो सर्दी, जुकाम, अस्थमा आदि से हमें बचाते हैं । ठंड में गर्म तासीर वाली चीजें जैसे अदरक ,लहसुन ,नट्स, हल्दी , खजूर आदि का सेवन शरीर के लिए फायदेमंद रहता है । ठंड में लोंग ,तुलसी ,काली मिर्च और अदरक से बनी चाय का सेवन करें। वहीं मौसमी बीमारियों से बचने के लिए शारीरिक रूप से एक्टिव रहे । और अंत में
स्वस्थ रहें और मस्त रहें।
बदल रहा है मौसम रहिए सतर्क संदर्भ : गर्मी का जाना और ठंड का आना
मौसम में बदलाव होने का असर सभी लोगों पर पड़ता है। चाहे वह बच्चे हों, जवान हों, अधेड़ हों या बुजुर्ग सभी संक्रमित हो जाते हैं ।  मौसम हमारे शरीर ,मन और भावनाओं सबको प्रभावित करता है ।  मौसम के  बदलने पर अक्सर मौसमी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। बच्चों से लेकर बड़े तक सभी इस समय बीमारियों का शिकार हो सकते हैं । 
मौसमी फल और सब्जियों का करें सेवन : बदलते मौसम में हेल्दी रहने के लिए मौसमी फल और सब्जियां स्वस्थ रहने के लिए बहुत ही जरूरी हैं इससे आपको मौसमी बीमारियों से निपटने में भरपूर ताकत मिलेगी । 
पानी खूब पीएं : चाहे मानसून हो या गर्मी या सर्दी आपको नियमित रूप से दो से तीन लीटर तक पानी अवश्य पीना पीना चाहिए ।  पानी पीने का कोई ऑप्शन नहीं हो सकता। वही काम और व्यस्तताओं के बीच हम आराम करना भूल जाते हैं ।  अनुशासित जीवन स्वस्थ जीवन की कुंजी है इसलिए उचित दिनचर्या बनाएं और शरीर को आराम के लिए कुछ समय दें ।
ठंड का मौसम सेहत के लिए लिहाज से काफी मुफीद माना जाता है लेकिन जरा सी लापरवाही आपकी सेहत पर भारी पड़ सकती है ।  इस मौसम में सर्दी ,खांसी, बुखार जैसी बीमारियों का खतरा अधिक रहता है । ठंड से बचने के लिए सिर्फ गर्म कपड़े ही काफी नहीं होते बल्कि खान-पान में अभी बदलाव जरूरी है, क्योंकि बाहर के साथ-साथ बॉडी को  भीतर से  भी गर्म रखना बहुत जरूरी होता  है ।  ठंड में गुड़ का सेवन करना लाभप्रद माना जाता है ।  गुड में मिनरल और विटामिन होते हैं जो सर्दी, जुकाम, अस्थमा आदि से हमें बचाते हैं । ठंड में गर्म तासीर वाली चीजें जैसे अदरक ,लहसुन ,नट्स, हल्दी , खजूर आदि का सेवन शरीर के लिए फायदेमंद रहता है । ठंड में लोंग ,तुलसी ,काली मिर्च और अदरक से बनी चाय का सेवन करें। वहीं मौसमी बीमारियों से बचने के लिए शारीरिक रूप से एक्टिव रहे । और अंत में
स्वस्थ रहें और मस्त रहें।