बिहार में जातीय जनगणना के आंकड़ों के बाद रोहिणी आयोग के रिपोर्ट की सुगबुगाहट शुरू, जानें बीजेपी के लिए कैसे साबित हो सकता है मजबूत “हथियार”?
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बिहार सरकार ने जातीय जनगणना के आंकड़े जारी कर दिए हैं। इसके बाद से ही देशभर में सियासी पारा चढ़ा हुआ है।बिहार में जाति सर्वेक्षण के आंकडे आने के साथ ही रोहिणी आयोग की रिपोर्ट लागू करने की सुगबुगाहट भी तेज हो गई है। माना जा रहा है कि भाजपा इसका उपयोग विपक्ष के 'जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी' के नरेटिव का मुकाबला करने के लिए कर सकती है।यानी बिहार सरकार के जातीय जनगणना के जवाब में मोदी सरकार रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट को सार्वजनिक कर इसे लागू कर सकती है।
क्या है रोहिणी आयोग?
सबसे पहले जानते हैं रोहिणी आयोग क्या है ? दरअसल केन्द्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने साल 2017 में जस्टिस जी रोहिणी की अध्यक्षता में चार सदस्यीय आयोग का गठन किया था। आयोग को इस बात का पता लगाना था कि 27 प्रतिशत मंडल आरक्षण का लाभ सभी पिछड़ी जातियों को समरूप ढंग से मिल रहा है या नहीं। न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) जी. रोहिणी की अध्यक्षता वाले आयोग ने 11 अक्टूबर 2017 को काम शुरू कर दिया था। तब से ओबीसी का उप-श्रेणीकरण करने वाले सभी राज्यों और संघ शासित क्षेत्रों और राज्य पिछड़ा वर्ग आयोगों के साथ चर्चा की गई। आयोग ने अपने कार्यकाल को 31 जुलाई, 2020 तक बढ़ाने की मांग की थी। हालांकि, कोविड-19 महामारी के चलते देश भर में लागू लॉकडाउन और यात्रा पर बंदिशों के चलते आयोग उसे मिले काम को पूरा करने में नाकाम रहा। इसलिए, आयोग के कार्यकाल में 14 बार विस्तार किया गया। अंततः रोहिणी आयोग ने 31 जुलाई 2023 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंप दी। हालांकि, रिपोर्ट में सामने आए सुधारों और सिफारिशों को अब तक सार्वजनिक नहीं किया गया है।
क्या कहती है रोहिणी आयोग की रिपोर्ट?
मीडिया रिपोर्ट के आधार पर कहा जा रहा है कि जांच के बाद आयोग ने यह पाया कि केंद्रीय सूची में शामिल 2633 पिछड़ी जातियों में से करीब 1000 जातियों को आज तक मंडल आरक्षण का कोई लाभ नहीं मिला। आरक्षण का अधिक लाभ मजबूत पिछड़ी जातियों को ही मिलता रहा है। आयोग ने यह भी पाया कि जॉब्स और प्रवेश में से 24.95 प्रतिशत हिस्सा केवल 10 प्रतिशत लोगों को मिला और 983 जातियों का नौकरियों और प्रवेश में प्रतिनिधित्व शून्य रहा। अध्ययन का एक हिस्सा यह भी कहता है कि नौकरियों और प्रवेश में 994 ओबीसी उपजातियों का कुल प्रतिनिधित्व केवल 2.68 प्रतिशत ही है। वैसे भी 27 में से कुल मिलाकर सिर्फ 19 प्रतिशत सीटें ही अभी भर पाती हैं। पता चला है कि आयोग ने मंडल आरक्षण के तहत निर्धारित 27 प्रतिशत आरक्षण को चार भागों में बांट देने की सिफारिश केंद्र सरकार से की है।
बीजेपी के लिए साबित हो सकता है तुरूप का इक्का!
केंद्र सरकार अब तक जातीय जनगणना कराने से इनकार करती आ रही है लेकिन यह माना जा रहा है कि ओबीसी के वोटों के चक्कर में मोदी सरकार इस मसले पर दबाव में है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि मोदी सरकार जातीय जनगणना की हवा निकालने की कोशिश करेगी। विश्लेषण मानते हैं कि बिहार की जातिगत गणना के बाद विपक्ष जिस तरह से ओबीसी की गोलबंदी करने की कोशिश कर रहा है भाजपा को उसकी काट इस रिपोर्ट से मिल सकती है। अगर ऐसा होता है कि मोदी सरकार के लिए रोहिणी कमीशन से बेहतर और कुछ नहीं हो सकता। भाजपा इसका उपयोग विपक्ष के 'जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी' की नरेटिव का मुकाबला करने के लिए कर सकती है और ओबीसी वर्ग की अति पिछड़ी जातियों के बीच अपने समर्थन को और मजबूत कर सकती है।
Oct 04 2023, 14:19