लाल बहादुर शास्त्री की जयंती पर विशेषः गुदड़ी का वो लाल जिसमें था सादगी से जीने का “साहस”
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देश आज पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को याद कर रहा है। 2 अक्टूबर को लाल बहादुर शास्त्री की जयंती होती है। लाल बहादुर देश के एक ऐसे राजनीतिज्ञ थे, जो अपनी सादगी, सौहार्दता, देशभक्ति और ईमानदारी के कारण जन-जन में लोकप्रिय हुए। लाल बहादुर शास्त्री देश के प्रधानमंत्री बने और इससे पहले भी वे रेल मंत्री और गृह मंत्री जैसे पद पर भी रहें, लेकिन उनका जीवन एक साधारण व्यक्ति जैसा ही रहा। वे प्रधानमंत्री आवास में खेती करते थे। कार्यालय से मिले भत्ते और वेतन से ही अपने परिवार का गुराजा करते थे।प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए भी उनके पास न तो खुद का घर था और ना ही कोई संपत्ति। यूं ही नहीं देश उन्हें “गुदड़ी के लाल” के नाम से जानता है।
लाल बहादुर शास्त्री स्वतंत्रता सेनानी के साथ ही भारतीय राजनेता भी थे। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में 2 अक्टूबर 1904 में हुआ। महज डेढ़ साल की उम्र में उनके सिर से पिता का साया उठ और ननिहाल में रहकर उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की। 16 साल की उम्र में उन्होंने देश की आजादी की जंग में शामिल होने के लिए अपनी पढ़ाई भी छोड़ दी और जब वे 17 साल के थे, तब स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था।पंडित जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद लाल बहादुर शास्त्री देश के दूसरे प्रधानमंत्री बने। शास्त्री जी ने 9 जून 1964 को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और 11 जनवरी 1966 में विवादास्पद तरीके से उनकी मृत्यु हो गई। मात्र 1 साल 7 महीना 2 दिन के प्रधानमंत्रित्व कार्यकाल के बावजूद देश का सर्वोत्तम एवं सशक्त प्रधानमंत्री का तमगा उनके नाम है।
जब अखबारों में लिखकर चलाया घर का खर्च
लाल बहादुर शास्त्री का बचपन काफी गरीबी और अभावों के बीच गुजरा। तमाम मुश्किलें उठाकर वह हाई स्कूल की पढाई पूरी कर सके थे। बचपन में अकसर उन्हें नदी तैर कर स्कूल जाना पड़ता था, क्योंकि नाव वाले को रोज-रोज किराया देना उनके लिए संभव नहीं था।प्रधानमंत्री बनने के बाद भी लाल बहादु शास्त्री ने अपने गरीबी के दिनों को नहीं भूले। साल 1963 में कामराज योजना के तहत शास्त्री को नेहरू मंत्रिमंडल से इस्तीफ़ा देना पड़ा। उस समय वो भारत के गृहमंत्री थे। कुलदीप नैयर याद करते हैं, "उस शाम मैं शास्त्री के घर पर गया। पूरे घर में ड्राइंग रूम को छोड़ कर हर जगह अँधेरा छाया हुआ था। शास्त्री वहाँ अकेले बैठे अख़बार पढ़ रहे थे। मैंने उनसे पूछा कि बाहर बत्ती क्यों नहीं जल रही है? तब शास्त्री जी नेका, अब से मुझे इस घर का बिजली का बिल अपनी जेब से देना पड़ेगा। इसलिए मैं हर जगह बत्ती जलाना बर्दाश्त नहीं कर सकता। शास्त्री को सांसद की तनख्वाह के 500 रूपये के मासिक वेतन में अपने परिवार का ख़र्च चलाना मुश्किल पड़ रहा था। नैयर अपनी आत्मकथा में लिखते हैं, मैंने उन्हें अख़बारों में लिखने के लिए मना लिया था। मैंने उनके लिए एक सिंडिकेट सेवा शुरू की जिसकी वजह से उनके लेख द हिंदू, अमृतबाज़ार पत्रिका, हिंदुस्तान टाइम्स और टाइम्स ऑफ़ इंडिया में छपने लगे। हर अख़बार उन्हें एक लेख के 500 रूपये देता था। इस तरह उनकी 2000 रूपये की अतिरिक्त कमाई होने लगी।
सरकारी गाड़ी का निजी इस्तेमाल कभी नहीं किया
देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का जीवन जितनी शान-ओ-शौकत से गुजरा, शास्त्री जी उतने ही जमीनी शख्सियत माने जाते थे। प्रधानमंत्री बनने के पश्चात लाल बहादुर शास्त्री को सरकारी गाड़ी मिली थी, लेकिन शास्त्री जी ने कभी भी उस गाड़ी का इस्तेमाल निजी कार्य के लिए नहीं किया। लेकिन एक बार उनके बेटे ने गाड़ी का उपयोग किया। यह बात जब शास्त्री जी को पता चली तो उन्होंने बेटे को अगाह करते हुए उस दिन गाड़ी पर होने वाला खर्चा सरकारी खजाने में जमा करवा दिया। इसके बाद निजी कार्यों के लिए पत्नी की सलाह पर शास्त्री जी ने फिएट कार खरीदने का फैसला किया। उन दिनों फिएट कार की कीमत 12 हजार रूपये थी। लेकिन शास्त्री जी के खाते में मात्र 7 हजार रुपये थे। अंततः पंजाब नेशनल बैंक से 5 हजार रूपये का कर्ज लेने के बाद ही वह फिएट कार खरीद सके थे।
रफू करवाया कोट पहनकर विदेश दौरे पर गए
एक बार जब शास्त्री जी को लोकसभा में जाना था, लेकिन घर से निकलते हुए उन्होंने देखा कि उनका कुर्ता फटा हुआ था। कुर्ता सिलवाने का वक्त नहीं था। शास्त्री जी ने पत्नी ललिता जी से कहा कि वे कुर्ता के ऊपर कोट पहन लेंगे तो फटा हुआ हिस्सा ढक जाएगा। इसी तरह 1965 का युद्ध जीतने के बाद शास्त्री जी को पाकिस्तान से समझौते के लिए ताशकंद जाना था। कोट का छोटा सा हिस्सा फटा हुआ था। लेकिन दुर्भाग्यवश उनके पास नया कोट खरीदने के लिए पैसे नहीं थे। उन्होंने फटे कोट का रफू करवाया और वही पहनकर ताशकंद गए। जहां से उनकी मृत देह वापस आई।
जूनियर अफ़सरों को चाय सर्व करने वाले शास्त्री
शास्त्री के साथ काम करने वाले सभी अफ़सरों का कहना है कि उनका व्यवहार बहुत विनम्र रहता था। उनके निजी सचिव रहे सीपी श्रीवास्तव उनकी जीवनी 'लाल बहादुर शास्त्री अ लाइफ़ ऑफ़ ट्रूथ इन पॉलिटिक्स' में लिखते हैं, शास्त्रीजी की आदत थी कि वो अपने हाथ से पॉट से प्याली में हमारे लिए चाय सर्व करते थे। उनका कहना था कि चूँकि ये उनका कमरा है, इसलिए प्याली में चाय डालने का हक़ उनका बनता है। कभी-कभी वो बातें करते हुए अपनी कुर्सी से उठ खड़े होते थे और कमरे में चहलक़दमी करते हुए हमसे बातें करते थे। कभी-कभी कमरे में अधिक रोशनी की ज़रूरत नहीं होती थी, शास्त्री अक्सर ख़ुद जाकर बत्ती का स्विच ऑफ़ करते थे। उनको ये मंज़ूर नहीं था कि सार्वजनिक धन की किसी भी तरह बर्बादी हो।
Oct 02 2023, 12:10