*लखनऊ में आयोजित संत सम्मेलन के पहले दिन देश से आए संत हुए शामिल, धर्म पर चर्चा*
लखनऊ - जानकीपुरम विस्तार स्थित महालक्ष्मी लॉन में बीते सात दिन से चल रहे श्रीमद्भागवत कथा के बाद आयोजित विराट संत सम्मेलन के पहले दिन शुक्रवार को जम्मू-कश्मीर से आए अटल पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर राजगुरु स्वामी विश्वात्मानंद सरस्वती की अध्यक्षता में देश के विभिन्न हिस्सों से पधारे विख्यात संत महात्माओं ने विशद धर्म चर्चा में हिस्सा लिया।
संतो ने विशेष रूप से श्रीमद् भगवत गीता उपसंहार में " सभी लौकिक धर्मो को त्याग एक मात्र परमात्मा की शरण में आने वाले उपदेश वाक्य" का अपने अपने तरीके से सूक्ष्म विवेचन किया। उन्होंने इसे इसे वर्तमान की आवश्यकता बताते हुए कहा कि धर्म की अवधारणा अत्यंत व्यापक है और इसे मज़हब, संप्रदाय,पंथ या रिलीजन जैसे शब्दों का पर्याय बताना या मानना सर्वथा अनुचित है। हरि हर सेवा समिति के आर पी अवस्थी के प्रारंभिक संचालन में शुरू सम्मेलन में हरि हर सेवा समिति लखनऊ के अध्यक्ष राम किशोर मिश्र व अन्य सदस्यों द्वारा मंचासीन संतो का माल्यार्पण कर स्वागत किया गया। इस मौके पर अपने स्वागत भाषण में श्रीमती माधुरी सिंह ने देश और समाज में मूल्यों के क्षरण पर चिंता जताते हुए संतो से इस दिशा में दिशा दर्शन का आह्वान किया गया।
सम्मेलन का विधिवत संचालन महामंडलेश्वर स्वामी चिदंबरानंद सरस्वती ने संभाला और अपनी विद्वत्ता पूर्ण आकर्षक शैली से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। सम्मेलन को संबोधित करते हुए स्वामी पुरुषोत्तमानंद सरस्वती ने कहा् कि धर्म का सीधा संबंध कर्म से है और समयानुसार ही धर्म का निर्धारण होता है। स्वामी विद्यानंद सरस्वती ने कन्या विवाह का उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे कन्या अपने माता-पिता व मायके के अन्य संबंधों व कुल गोत्र का परित्याग करती है तो उसे पति कुल गोत्र आदि प्राप्त होता है वैसे ही परमात्मा को पाने के लिए सभी लौकिक धर्म छोड़ने होते हैं। राष्ट्रीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जितेन्द्रानंद सरस्वती ने कहा कि धर्म कोई किताबी वस्तु नहीं है। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म नेअवतार उसी को माना है जिसने इसे सिद्ध किया है। हमारा परमात्मा द्रोपदी की लाज बचाने को साड़ी बन जाता है तो प्रह्लाद को बचाने को खंभा फाड़ कर प्रकट होता है। जहां अन्य पंथ के प्रणेता अपने को ईश्वर पुत्र बताते हैं वहीं हमारे कृष्ण युद्ध क्षेत्र में ताल ठोक कर कहते हैं कि मैं ही भगवान हूं। स्वामी अभयानंद सरस्वती ने भगवान कृष्ण के उपदेश की शास्त्रीय व्याख्या बड़े ही रोचक ढंग से करते हुए कहा कि धर्म का निर्धारण संबंधों से होता है। किसी लौकिक धर्म के लिए संबंध पहली शर्त है। उन्होंने कहा कि एक वाक्य में कहें तो "शोक न करें" यही गीता सार है। स्वामी हरिहरानंद सरस्वती ने कहा कि पहले सारथी बने कृष्ण को रथ युद्ध क्षेत्र में ले चलने का आदेश देता अर्जुन अंत में उनका शरणागत हो गया।जीव जब परमात्मा या सद्गुरु के शरणागत हो जाता है तो उन दोनों का दायित्व बढ जाता है और वे उसे डूबने नहीं देते।
इस मौके पर पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती ने कहा कि धर्म और धरती ही सनातन हैं। उन्होंने कहा कि यज्ञ, जिसका संबंध धर्म से है,के प्रति फल जहां भगवान राम की उत्पत्ति हुई तो माता सीता धरती पुत्री हैं। धरती और धर्म के सम्मिलित रूप से ही सीताराम बना। उन्होंने कहा कि आज देश जातिवाद से त्रस्त है। जातियां पहले भी थी परन्तु जातीयता ऐसी न थी। आज देश को जातीय नहीं भारतीय बनाने का उपक्रम करना चाहिए। निर्वाण पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर राजगुरु स्वामी विशोकानंदभारती ने अत्यंत रोचक शैली में समाज में पुरातन मूल्यों की स्थापना के लिए महिला की भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि परिवारों को फिर से संस्कार शाला बनाने की महती आवश्यकता है। सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे स्वामी विश्वात्मानंद सरस्वती ने कहा कि धर्म पालन के लिए उसके मूल तत्व को जानना अनिवार्य है अन्यथा विसंगतियों से दो चार होना पड़ता है।
देर रात तक चले इस धर्म सम्मेलन मैं आए संत महात्माओं को सुनने के लिए भारी संख्या में मौजूद श्रोता अंत तक डटे रहे। आज के समापन के अंत में सभी संतों द्वारा हरि हर सेवा समिति के कलेण्डर का विमोचन किया गया।कल सम्मेलन के दूसरे दिन भी इन संतों के अलावा अन्य महात्माओं का भी सानिध्य प्राप्त होगा।
Apr 29 2023, 19:48