जस्टिस यशवंत वर्मा की याचिका सुनने को सुप्रीम कोर्ट बनाएगा स्पेशल बेंच, CJI गवई ने खुद को किया मामले से अलग

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कैश कांड में घिरे जस्टिस यशवंत वर्मा से जुड़े मामले पर सुनवाई से मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने खुद को अलग कर लिया। जस्टिस वर्मा ने 'कैश-एट-रेजिडेंस' (घर से बड़ी मात्रा में नोट बरामद होने) मामले में सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। चीफ जस्टिस बीआर गवई ने इस मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है।

चीफ जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि इन-हाउस जांच कमेटी की रिपोर्ट को चुनौती देने संबंधी याचिका की सुनवाई के लिए वह अलग से एक पीठ गठित कर देंगे। सीजेआई ने कहा कि नैतिक तौर पर यह सही नहीं है कि मामले की सुनवाई मेरे समक्ष हो।

दरअसल, इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि उनकी याचिका पर जल्द से जल्द सुनवाई हो। यह याचिका एक इन-हाउस जांच कमेटी की उस रिपोर्ट को रद करने के लिए दायर की गई है, जिसमें उन्हें नकदी कांड में गलत आचरण का दोषी ठहराया गया है। जस्टिस वर्मा ने इस मामले को गंभीर बताते हुए इसे तुरंत सुनने की अपील की है।

वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में यह मामला उठाया। उन्होंने चीफ जस्टिस बी आर गवई से अनुरोध किया कि इस याचिका को जल्द से जल्द सूचीबद्ध किया जाए, क्योंकि इसमें कुछ अहम संवैधानिक सवाल उठाए गए हैं।चीफ जस्टिस गवई ने कहा, "मुझे एक बेंच गठित करनी होगी।"

बता दें कि, कपिल सिब्बल, मुकुल रोहतगी, राकेश द्विवेदी, सिद्धार्थ लूथरा और सिद्धार्थ अग्रवाल जैसे सीनियर वकील सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस वर्मा की तरफ से पैरवी कर रहे थे। उन्होंने कोर्ट से कहा कि उन्हें निष्पक्ष सुनवाई का अवसर दिए बिना पैनल ने प्रतिकूल निष्कर्ष निकाल लिए। इसके साथ ही पैनल पर पूर्वाग्रह के साथ काम करने और बिना पर्याप्त सबूतों के उन पर आरोप लगाने का आरोप लगाया गया।

जस्टिस तरलोक सिंह चौहान बने झारखंड हाइकोर्ट के नए मुख्य न्यायाधीश, राज्यपाल संतोष गंगवार ने दिलाई शपथ

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जस्टिस तरलोक सिंह चौहान झारखंड हाइकोर्ट के नये मुख्य न्यायाधीश बन गए हैं। झारखंड हाईकोर्ट के 17वें मुख्य न्यायाधीश जस्टिस तरलोक सिंह चौहान ने राजभवन में शपथ ली। राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार ने उन्हें पद की शपथ दिलाई। शपथ ग्रहण समारोह में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी शामिल हुए। इसके अलावा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी और न्यायिक अधिकारीगण उपस्थित रहे।

शपथ ग्रहण के बाद कार्यभार संभाला

जस्टिस तरलोक सिंह चौहान झारखंड हाईकोर्ट के 17वें मुख्य न्यायाधीश बन गए हैं। राजभवन स्थित बिरसा मंडप में आयोजित शपथग्रहण कार्यक्रम के बाद वे सीधे हाईकोर्ट के लिए रवाना हुए और मुख्य न्यायाधीश के रुप में कार्यभार संभाला। जस्टिस तरलोक सिंह चौहान को झारखंड के चीफ जस्टिस एमएस रामचंद्रन के त्रिपुरा हाईकोर्ट में तबादले के बाद चीफ जस्टिस नियुक्त किया गया है।

जस्टिस तरलोक सिंह चौहान के बारे में

जस्टिस तरलोक सिंह चौहान ने शिमला से स्कूली शिक्षा प्राप्त की है। पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ से कानून की पढ़ाई की है। उन्होंने 1989 में हिमाचल प्रदेश बार काउंसिल में एडवोकेट के तौर पर दाखिला लिया था। वर्ष 2014 में उन्हें हाईकोर्ट के अतिरिक्त जज के तौर पर पदोन्नत किया गया था। उसी साल उन्हें स्थायी न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। अब इन्हें झारखंड के नए चीफ जस्टिस के रूप में नियुक्त किया गया है। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिश पर केंद्र सरकार ने 14 जुलाई को उनकी नियुक्ति का आदेश जारी किया था।

आतंकवाद को बढ़ावा देने वालों को चुकानी होगी कीमत, UN में भारत ने फिर पाक को सबक सिखाया

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भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में पाकिस्तान को जमकर फटकार लगाई है। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि पर्वतनेनी हरीश ने पाकिस्तानी को आड़े हाथों लिया। उन्होंने एक डिबेट के दौरान पड़ोसी देश को आतंकवाद के मुद्दे पर आइना दिखाते हुए कहा कि कश्मीर राग अलापना और सिंधु जल संधि के मुद्दे को उठाना पाकिस्तान की आदतों में शुमार हो चुका है। पाकिस्तान के दुस्साहस का कड़ा विरोध करते हुए पी हरीश ने कहा, आतंकवाद और अंतरराष्ट्रीय शांति के मुद्दों पर पाकिस्तान का दोहरा चरित्र निंदनीय है।

आतंक पर पाकिस्तान की नीति दुनिया से छुपी नहीं

संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि पर्वतनेनी हरीश ने पाकिस्तानी विदेश मंत्री इशाक डार की तरफ से की गई टिप्पणियों का जवाब दिया। डार ने भारत पर आक्रामक रवैया अपनाने और कश्मीर में मानवाधिकारों के हनन जैसे आरोप लगाए। इसका जवाब देते हुए हरीश ने कहा कि पाकिस्तानको अपना ट्रैक रिकॉर्ड देखना चाहिए। आतंक को लेकर पाकिस्तान की जो नीति रही है, वह दुनिया में किसी से छुपी नहीं है। ऐसे में पाकिस्तान की ओर से इस पर ज्यादा बात करना ही अजीब है।

पाकिस्तान की घोर बेइज्जती

वैश्विक मंच पर पाकिस्तान को बेइज्जत करते हुए पर्वथानेनी हरीश ने कहा कि, मैं भी पाकिस्तान के प्रतिनिधि की टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया देने के लिए बाध्य हूं। एक ओर भारत है जो एक परिपक्व लोकतंत्र, एक उभरती अर्थव्यवस्था और एक बहुलवादी व समावेशी समाज है। दूसरी ओर पाकिस्तान है, जो कट्टरता और आतंकवाद में डूबा हुआ है और आईएमएफ से लगातार कर्ज ले रहा है। हम जब अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने पर चर्चा कर रहे हैं तो यह समझना जरूरी है कि कुछ बुनियादी सिद्धांतों को सार्वभौमिक रूप से सम्मान किया जाना चाहिए। इनमें एक बेहद महत्वपूर्ण सिद्धांत आतंकवाद के प्रति शून्य सहिष्णुता का है। परिषद के सदस्य (पाकिस्तान) के लिए यह उचित नहीं है कि वह ऐसे कार्यों में खुद लिप्त होकर उपदेश दे, जो अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को अस्वीकार्य हैं।

गंभीर कीमत चुकाने की चेतावनी

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की इस उच्च स्तरीय खुली बहस में पी हरीश ने लगभग पांच मिनट के अपने वक्तव्य में भारीय कूटनीति को स्पष्ट करते हुए पाकिस्तान को आइना दिखाया। हरीश ने कहा पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले और ऑपरेशन सिंदूर का जिक्र करते हुए कहा कि आतंक को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा, सीमा पार आतंकवाद को बढ़ावा देकर अच्छे पड़ोसी और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की भावना का उल्लंघन करने वाले देशों को इसकी गंभीर कीमत चुकानी होगी।

राष्ट्रपति के 14 सवालों पर विचार करेगा सुप्रीम कोर्ट, केंद्र और राज्य सरकारों को नोटिस जारी

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सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में सभी राज्यपालों को विधानसभा से पारित विधेयक को मंजूरी देने की समयसीमा तय कर दी थी। इस पर ही राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से सवाल पूछे थे। सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की ओर से भेजे गए संदर्भ पर केंद्र सरकार और देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस जारी कर एक सप्ताह में जवाब मांगा है। इस मामले में अब अगली सुनवाई 29 जुलाई को होगी, जिसमें समय-सीमा तय करने पर विचार होगा। 

विधानसभा से पारित विधेयकों पर राष्ट्रपति और राज्यपाल कब तक फैसला लेंगे? क्या इस पर कोई समयसीमा तय की जा सकती है? मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में इस संवैधानिक सवाल पर सुनवाई हुई। अदालत ने साफ किया कि यह केवल एक राज्य का नहीं बल्कि पूरे देश के लिए मुद्दा है। इसलिए केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर 29 जुलाई तक विस्तृत जवाब मांगा गया है।

अगस्त के मध्य से शुरू होगी सुनवाई

इस मामले पर सुनवाई के लिए चीफ जस्टिस बी. आर. गवई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ गठित की गई है। इस पीठ में जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पी. एस. नरसिम्हा और जस्टिस ए. एस. चंदुरकर हैं। पीठ ने साफ किया कि अगस्त मध्य से इस मुद्दे पर नियमित सुनवाई शुरू हो सकती है।

राष्ट्रपति ने क्या कहा?

जिसके बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान के अनुच्छेद 143 (1) के तहत मिली शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाए थे। संविधान का अनुच्छेद 143(1) राष्ट्रपति के सुप्रीम कोर्ट से विचार-विमर्श करने से संबंधित है। इसमें कहा गया है, 'यदि किसी भी समय राष्ट्रपति को ऐसा प्रतीत हो कि किसी कानून या तथ्य का लेकर कोई सवाल उठ रहा है, या उठ सकता है, जो सार्वजनिक महत्व का हो तो उस पर सर्वोच्च न्यायालय की राय ली जा सकती है। राष्ट्रपति उस सवाल को सर्वोच्च न्यायालय के पास भेज सकता हैं और न्यायालय, सुनवाई के बाद राष्ट्रपति को उस सवाल पर अपनी राय से अवगत करा सकता है।'

राष्ट्रपति मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से पूछे ये 14 सवाल

1. राज्यपाल के समक्ष अगर कोई विधेयक पेश किया जाता है तो संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत उनके पास क्या विकल्प हैं?

2. क्या राज्यपाल इन विकल्पों पर विचार करते समय मंत्रिपरिषद की सलाह से बंधे हैं?

3. क्या अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल द्वारा लिए गए फैसले की न्यायिक समीक्षा हो सकती है?

4. क्या अनुच्छेद 361 राज्यपाल द्वारा अनुच्छेद 200 के तहत लिए गए फैसलों पर न्यायिक समीक्षा को पूरी तरह से रोक सकता है?

5. क्या अदालतें राज्यपाल द्वारा अनुच्छेद 200 के तहत लिए गए फैसलों की समयसीमा तय कर सकती हैं, जबकि संविधान में ऐसी कोई समयसीमा तय नहीं की गई है?

6. क्या अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति द्वारा लिए गए फैसले की समीक्षा हो सकती है?

7. क्या अदालतें अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति द्वारा फैसला लेने की समयसीमा तय कर सकती हैं?

8. अगर राज्यपाल ने विधेयक को फैसले के लिए सुरक्षित रख लिया है तो क्या अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट को सुप्रीम कोर्ट की सलाह लेनी चाहिए?

9. क्या राज्यपाल और राष्ट्रपति द्वारा क्रमशः अनुच्छेद 200 और 201 के तहत लिए गए फैसलों पर अदालतें लागू होने से पहले सुनवाई कर सकती हैं। 

10. क्या सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 के द्वारा राष्ट्रपति और राज्यपाल की संवैधानिक शक्तियों में बदलाव कर सकता है?

11. क्या अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल की मंजूरी के बिना राज्य सरकार कानून लागू कर सकती है?

12. क्या सुप्रीम कोर्ट की कोई पीठ अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या से जुड़े मामलों को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच को भेजने पर फैसला कर सकती है? 

13. क्या सुप्रीम कोर्ट ऐसे निर्देश/आदेश दे सकता है जो संविधान या वर्तमान कानूनों मेल न खाता हो?

14. क्या अनुच्छेद 131 के तहत संविधान इसकी इजाजत देता है कि केंद्र और राज्य सरकार के बीच विवाद सिर्फ सुप्रीम कोर्ट ही सुलझा सकता है?

क्या है मामला?

इस पूरे मामले की शुरुआत 8 अप्रैल को तब हुई, जब सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल 142 का इस्तेमाल करते हुए एक फैसला दिया था। इस फैसले में राष्ट्रपति के लिए एक समय सीमा तय की गई थी। कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के विचार के लिए रखे गए विधेयकों को राष्ट्रपति को तीन महीने के अंदर मंजूरी देनी होगी। जस्टिस जे बी पारदीवाला की अध्यक्षता वाली दो जजों की बेंच ने यह फैसला सुनाया था।

ओलंपिक में गोल्ड जीतने वाले को 7 करोड़, दिल्ली सरकार का बड़ा एलान

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ओलंपिक विजेताओं को पुरस्कार राशि से नवाजने में अब तक हरियाणा पहले स्थान पर था। दिल्ला ने अब हरियाणा को इस मामले में पछाड़ दिया है। दिल्ली सरकार ने मुख्यमंत्री खेल प्रोत्साहन योजना के तहत ऐतिहासिक फैसला लिया है। दिल्ली में अब ओलंपिक में स्वर्ण पदक विजेता को सात करोड़, रजत पदक विजेता को पांच करोड़ और कांस्य पदक विजेता को तीन करोड़ रुपये मिलेंगे।दिल्ली सरकार ने कैबिनेट बैठक में ये अहम फैसला लिया गया।

दिल्ली के मंत्री आशीष सूद ने जानकारी दी है कि ओलंपिक में जीतने वाले विजेताओं को सरकार की ओर से कैश रिवॉर्ड को बढ़ा दिया गया है। प्रेस वार्ता में मंत्री आशीष सूद ने बताया कि ओलंपिक गेम्स में गोल्ड जीतने वाल खिलाड़ी को सात करोड़ रुपये, सिल्वर मेडल जीतने वालों को पांच करोड़ रुपये और ब्रॉन्ज मेडल जीतने वालों को तीन करोड़ रुपये दिए जाएंगे।

यही नहीं ओलंपिक गेम्स में गोल्ड और सिल्वर मेडल जीतने वालों को ग्रुप ए की नौकरी और ब्रॉन्ज मेडलिस्ट को ग्रुप बी की नौकरी दिल्ली सरकार की ओर से दी जाएगी। इसके साथ ही दिल्ली सरकार ने इस मामले में हरियाणा को पीछे छोड़ दिया है। अब तक हरियाणा पुरस्कार राशि देने के मामले में सबसे आगे था, जहां स्वर्ण पदक विजेता को छह करोड़, रजत पदक विजेता को चार करोड़ और कांस्य पदक विजेता को ढाई करोड़ रुपये दिए जाते हैं

बता दें कि पहले दिल्ली सरकार की ओर से ओलंपिक और पैरा-ओलंपिक में पदक जीतने वाले खिलाड़ियों को तीन करोड़, दो करोड़ और एक करोड़ रुपये दिए जाते थे। लेकिन अब प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता के नेतृत्व में प्रोत्साहन राशि को बढ़ा दिया गया है।

उपराष्ट्रपति धनखड़ का इस्तीफा मंजूर, पीएम मोदी ने की अच्छे स्वास्थ्य की कामना

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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का इस्तीफा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आधिकारिक तौर पर स्वीकार कर लिया है। धनखड़ ने राष्ट्रपति मुर्मू को पत्र भेजकर पद से इस्तीफे की बात कही थी। उन्होंने इस्तीफे के पीछे स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया था। जिसके बाद उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आधिकारिक तौर पर स्वीकार कर लिया है। जिसके बाद प्रधानमंत्री मोदी ने पूर्व उपराष्ट्रपति के अच्छे स्वास्थ्य की कामना की है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज मंगलवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मएक्स पर अपने पोस्ट में कहा, जगदीप धनखड़ को भारत के उपराष्ट्रपति सहित कई भूमिकाओं में देश की सेवा करने का अवसर मिला है। मैं उनके अच्छे स्वास्थ्य की कामना करता हूं।

इस्तीफे से पहले पूरे दिन राज्यसभा में सक्रिय रहे

इससे पहले सोमवार को धनखड़ पूरे दिन राज्यसभा में सक्रिय थे। सुबह उन्होंने विपक्ष को संसद को संवाद एवं चर्चा का सकारात्मक मंच बनाने की नसीहत दी और दोपहर बाद जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव के नोटिस को स्वीकार करते हुए पूरी प्रक्रिया को स्पष्ट किया। जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ पेश महाभियोग के नोटिस में एक सांसद के दोहरे दस्तखत पर जांच बैठाने की भी घोषणा की थी।

मानसून सत्र के पहले दिन इस्तीफा

संसद के मानसून सत्र के पहले दिन ही उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर इस्तीफा दे दिया। उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपना इस्तीफा भेजकर कहा, 'स्वास्थ्य देखभाल को प्राथमिकता देने और चिकित्सा सलाह का पालन करने के लिए' मैं तत्काल प्रभाव से भारत के उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देता हूं।

कांग्रेस बोली- पीछे कुछ और गहरे कारण

उपराष्ट्रपति के इस्तीफे के बाद सियासी पारा भी चढ़ गया है। विपक्ष इस मुद्दे को लेकर सरकार पर हमलावर हो रहा है। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने एक्स पोस्ट में कहा, इस अप्रत्याशित इस्तीफे में जो दिख रहा है, उससे कहीं ज्यादा है। इसके पीछे कुछ और गहरे कारण हैं। पीएम मोदी धनखड़ को मन बदलने के लिए मनाएं। यह राष्ट्रहित में होगा। खासतौर पर कृषक समुदाय को बहुत राहत मिलेगी।

उपराष्ट्रपति धनखड़ के इस्तीफे के पीछे कोई और अधिक गहरे कारण”, कांग्रेस के दावे में कितनी सच्चाई?

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देश की सियासत में सोमवार को उस वक्त उबाल आ गया जब उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपना इस्तीफा दिया। इस्तीफे के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने सवाल उठाए हैं। कांग्रेस ने मंगलवार को दावा किया कि जगदीप धनखड़ के उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने के पीछे कहीं ज्यादा गंभीर कारण हैं। यह उनकी ओर से बताए गए स्वास्थ्य कारणों से कहीं अधिक गंभीर हो सकते हैं।

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने एक्स पोस्ट में कहा- इस अप्रत्याशित इस्तीफे में जो दिख रहा है, उससे कहीं ज्यादा है। पीएम मोदी धनखड़ को मन बदलने के लिए मनाएं। यह राष्ट्रहित में होगा। खासतौर पर कृषक समुदाय को बहुत राहत मिलेगी।

जयराम रमेश ने कहा- मैं आज शाम (21 जुलाई) लगभग 5 बजे तक कई अन्य सांसदों के साथ उनके साथ था। कल दोपहर 12:30 बजे जगदीप धनखड़ ने राज्यसभा की कार्य मंत्रणा समिति (BAC) की अध्यक्षता की। इस बैठक में सदन के नेता जेपी नड्डा और संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू समेत ज्यादातर सदस्य मौजूद थे। थोड़ी देर की चर्चा के बाद तय हुआ कि समिति की अगली बैठक शाम 4:30 बजे फिर से होगी। शाम 4:30 बजे धनखड़ की अध्यक्षता में समिति के सदस्य दोबारा बैठक के लिए इकट्ठा हुए। सभी नड्डा और रिजिजू का इंतजार करते रहे, लेकिन वे नहीं आए।

इसके पीछे कुछ और गहरे कारण- जयराम रमेश

जयराम ने लिखा, 'इससे साफ है कि कल दोपहर 1 बजे से लेकर शाम 4:30 बजे के बीच जरूर कुछ गंभीर बात हुई है, जिसकी वजह से जेपी नड्डा और किरेन रिजिजू ने जानबूझकर शाम की बैठक में हिस्सा नहीं लिया। शाम 7.30 बजे उनसे फोन पर बात की थी। अब एक बेहद चौंकाने वाला कदम उठाते हुए जगदीप धनखड़ ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने इसकी वजह अपनी सेहत को बताया है। हमें इसका मान रखना चाहिए, लेकिन सच्चाई यह भी है कि इसके पीछे कुछ और गहरे कारण हैं।

विपक्ष को जगह देने की कोशिश की- जयराम रमेश

कांग्रेस महासचिव ने कहा कि धनखड़ ने हमेशा 2014 के बाद के भारत की तारीफ की, लेकिन साथ ही किसानों के हितों के लिए खुलकर आवाज उठाई। उन्होंने सार्वजनिक जीवन में बढ़ते अहंकार की आलोचना की और न्यायपालिका की जवाबदेही व संयम की जरूरत पर जोर दिया। मौजूदा ‘जी2’ सरकार के दौर में भी उन्होंने जहां तक संभव हो सका, विपक्ष को जगह देने की कोशिश की।

उन्हें उपराष्ट्रपति पद तक पहुंचाने वालों की नीयत पर सवाल

अंत में जयराम रमेश ने कहा कि वह नियमों, प्रक्रियाओं और मर्यादाओं के पक्के थे। उन्हें लगता था कि उनकी भूमिका में लगातार इन बातों की अनदेखी हो रही है। जगदीप धनखड़ का इस्तीफा उनके बारे में बहुत कुछ कहता है। साथ ही यह उन लोगों की नीयत पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है, जिन्होंने उन्हें उपराष्ट्रपति पद तक पहुंचाया था।

जगदीप धनखड़ ने दिया इस्तीफा, संसद सत्र के बीच पद छेड़ने वाले पहले उपराष्ट्रपति

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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। धनखड़ ने इस संबंध में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को एक लेटर लिखा है। इसमें स्वास्थ्य संबंधी कारणों का हवाला दिया है। धनखड़ ने कहा कि उन्होंने अपने स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हुए डॉक्टरी सलाह के आधार पर यह फैसला किया है। उन्होंने अपने इस्तीफे को तत्काल प्रभाव से स्वीकार करने की बात कहते हुए संविधान के अनुच्छेद 67(ए) का हवाला दिया है।

सत्र के बीच में पद से इस्तीफा

जगदीप धनखड़ ने अपने पत्र में राष्ट्रपति को उनके सहयोग और सौहार्दपूर्ण संबंधों के लिए धन्यवाद दिया। प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल को भी सहयोग के लिए आभार जताया। हालांकि, राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद ही उनका इस्तीफा प्रभावी होगा। इस समय संसद का मानसून सत्र चल रहा है। उपराष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति होते हैं। सत्र के बीच में पद से इस्तीफा देने वाले धनखड़ देश के पहले उपराष्ट्रपति हैं। साथ ही कार्यकाल के बीच में इस्तीफा देने वाले तीसरे उपराष्ट्रपति भी हैं।

1969 में वीवी गिरी ने किया था इस प्रावधान का उपयोग

भारत के संविधान के आर्टिकल 67(A) के तहत उन्‍होंने ये कदम उठाया। भारत के 75 साल के इतिहास में यह दूसरी बार है जब इस नियम का इस्‍तेमाल किया गया है। यह एक संवैधानिक प्रक्रिया है, जो उपराष्ट्रपति के पद की गरिमा को भी अंडरलाइन करती है। इससे पहले साल 1969 में वीवी गिरी ने इस प्रावधान का उपयोग किया था। इससे पहले 20 जुलाई 1969 को वीवी गिरी ने राष्ट्रपति जाकिर हुसैन की मृत्यु के बाद राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए उपराष्ट्रपति पद छोड़ा था। गिरी बाद में भारत के राष्ट्रपति बने। वीवी गिरी का इस्तीफा एक महत्वपूर्ण मिसाल है क्योंकि उन्होंने राष्ट्रपति बनने की महत्वाकांक्षा के चलते पद छोड़ा था।

क्‍या कहता है आर्टिकल 67(A)?

भारतीय संविधान का आर्टिकल 67 उपराष्ट्रपति के कार्यकाल और पद से हटने की प्रक्रिया को परिभाषित करता है। इसके खंड (A) के तहत राष्ट्रपति को लिखित रूप में उपराष्ट्रपति इस्तीफा सौंपकर स्वेच्छा से पद छोड़ सकता है। खंड (B) में प्रावधान है कि उपराष्ट्रपति को राज्यसभा में बहुमत और लोकसभा की सहमति से प्रस्ताव पारित कर हटाया जा सकता है, बशर्ते 14 दिन का नोटिस दिया जाए। धनखड़ ने अनुच्छेद 67(A) के तहत राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर तत्काल प्रभाव से इस्तीफा दिया, जिसमें उन्होंने स्वास्थ्य और चिकित्सकीय सलाह को प्राथमिकता देने की बात कही।

जस्टिस यशवंत वर्मा की बढ़ीं मुश्किलें, महाभियोग के लिए 145 सांसदों ने स्पीकर को सौंपा पत्र

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जस्टिस यशवंत वर्मा की मुश्किलें बढ़ती जा रही है। भले ही जस्टिस वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में अपने खिलाफ दी गई जांच रिपोर्ट को चुनौती दी हो लेकिन केंद्र सरकार ने महाभियोग की तैयारी तेज कर दी है। जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग चलाने के लिए 145 सांसदों के हस्ताक्षर वाला प्रस्ताव आज सोमवार को लोकसभा स्पीकर ओम बिरला को सौंप दिया गया है। बता दें कि जस्टिस यशवंत वर्मा के घर पर जले हुए 500 रुपये के नोटों के ढेर मिले थे, जिसके बाद भारी बवाल देखने को मिला था।

इन नेताओं ने किए हस्ताक्षर

सोमवार को सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों के 145 सांसदों ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को एक ज्ञापन सौंपा। हस्ताक्षर करने वालों में लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के अलावा बीजेपी से सांसद अनुराग सिंह ठाकुर, रविशंकर प्रसाद, राजीव प्रताप रूड़ी, पीपी चौधरी, सुप्रिया सुले और केसी वेणुगोपाल आदि शामिल हैं। संसद अब जस्टिस के ऊपर लगे आरोपों की जांच करेगी। जस्टिस यशवंत वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी आवास पर इस साल 15 मार्च 2025 को काफी संख्या में 500 रुपये के जले-अधजले नोट मिले थे।

किसी जस्टिस को हटाने की क्या है प्रक्रिया

किसी जस्टिस को हटाने के प्रस्ताव पर लोकसभा में कम से कम 100 और राज्यसभा में 50 सांसदों के हस्ताक्षर होने चाहिए. प्रस्ताव को सदन के अध्यक्ष/सभापति द्वारा स्वीकार या अस्वीकार किया जा सकता है. यदि प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जाता है, तो अध्यक्ष या सदन के सभापति न्यायाधीश जांच अधिनियम के अनुसार एक समिति का गठन करते हैं.

जस्टिस वर्मा पर क्या है आरोप ?

इस साल मार्च में जस्टिस वर्मा के लुटियंस दिल्ली स्थित आवास में आग लगने की घटना हुई थी और घर के बाहरी हिस्से में एक स्टोररूम से जली हुई नकदी से भरी बोरियां बरामद हुई थीं। उस समय जस्टिस वर्मा दिल्ली उच्च न्यायालय में पदस्थ थे। जस्टिस वर्मा को बाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट स्थानांतरित कर दिया गया। लेकिन उन्हें कोई न्यायिक कार्य नहीं सौंपा गया। तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना के आदेश पर हुई आंतरिक जांच में उन्हें दोषी ठहराया गया है।

सुप्रीम कोर्ट की ईडी को कड़ी फटकार, सीजेआई बोले-हमारा मुंह मत खुलवाइए, नहीं तो कठोर टिप्पणी करनी पड़ेगी

#supremecourtcjibrgavaiaskedwhyisedbeingusedforpolitical_battles

सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय ईडी को जमकर फटकार लगाई है। जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) ने ईडी पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि कुछ बोलने पर मजबूर मत करो, वरना हमें कुछ कठोर कहना पड़ सकता है। ये टिप्पणी सीजेआई बीआर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की बेंच ने सोमवार को मैसूर अर्बन डेवलपमेंट बोर्ड (MUDA) केस में ईडी की अपील की सुनवाई के दौरान की।

दरअसल, ईडी ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी बीएम पार्वती को MUDA केस में समन भेजा था। कर्नाटक हाईकोर्ट ने मार्च में यह समन रद्द कर दिया था। ईडी ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने आखिर में ईडी की अपील खारिज कर दी और कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा।

राजनीतिक लड़ाई में इस्तेमाल ना होने की चेतावनी

ईडी की तरफ से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि 'श्रीमान राजू, कृप्या हमें अपना मुंह खोलने के लिए मजबूर न करें। वर्ना हमें ईडी के खिलाफ कुछ कड़े शब्दों का इस्तेमाल करना पड़ेगा। दुर्भाग्य से, मुझे महाराष्ट्र में इसे लेकर कुछ अनुभव है। इसे पूरे देश में मत फैलाइए। राजनीतिक लड़ाई को मतदाताओं के सामने लड़ने देना चाहिए, उसमें आप क्यों इस्तेमाल हो रहे हैं।

MUDA केस क्या है

साल 1992 में अर्बन डेवलपमेंट संस्थान मैसूर अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी (MUDA) ने रिहायशी इलाके विकसित करने के लिए किसानों से जमीन ली थी। इसके बदले MUDA की इंसेंटिव 50:50 स्कीम के तहत जमीन मालिकों को विकसित भूमि में 50% साइट या एक वैकल्पिक साइट दी गई।

क्या है MUDA मामला?

सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती के पास मैसूर के केसारे गांव में 3 एकड़ और 16 गुंटा जमीन थी, जो उनके भाई मल्लिकार्जुन ने उपहार में दी थी। जमीन को MUDA ने विकास के लिए अधिग्रहित किया, जिसके बदले पार्वती को विजयनगर तीसरे और चौथे चरण के लेआउट में 38,283 वर्ग फीट जमीन दी गई। आरोप है कि केसारे गांव की तुलना में जमीन की कीमत अधिक है। मामले को पहले निचली कोर्ट, फिर हाई कोर्ट ने रद्द कर दिया था।