जय भीम पांच एकड़ के नारों से गुंजायमान होता रहा संविधान महोत्सव
विश्वनाथ प्रताप सिंह
प्रयागराज।डा.अम्बेडकर क्लब, प्रबुद्ध फाउंडेशन, देवपती मेमोरियल ट्रस्ट, बाबासाहेब शादी डाट काम, डा. अम्बेडकर वेलफेयर एसोसिएशन (दावा) और डा. अम्बेडकर वेलफेयर नेटवर्क (डान) के संयुक्त तत्वावधान में संविधान के सम्मान में संविधान दिवस (26 नवम्बर 1949) की 75 वीं वर्षगांठ पर सिविल लाइन स्थित धरना स्थल पर एकदिवसीय संविधान मेला व संविधान महोत्सव - 2024 का आयोजन कर भव्यता के साथ मनाया गया।
संविधान महोत्सव की अध्यक्षता करते हुए उच्च न्यायालय के अधिवक्ता शुकदेव राम ने संविधान मेला की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए बताया कि भारत का संविधान देश को सौंपते वक्त डा. बाबासाहेब अम्बेडकर ने देश के शासक वर्ग और देश की जनता को आगाह किया था कि जब भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू होगा तो राजनैतिक समानता वन मैन वन वोट- वन वोट वन वैल्यू का अधिकार तो मिल जाएगा और यह राजनैतिक अधिकार एक ही बार और एक ही साथ भारत के नागरिकों को हासिल हो जाएगा किंतु सामाजिक और आर्थिक क्षेत्रों में हम सामान नहीं होंगे यदि यह विषमता आने वाले दिनो में जल्द से जल्द निपटाकर दूर नहीं किया गया तो जो लोग असमानता से पीड़ित हैं वो राजनैतिक ढांचे के परखचें उड़ा देंगे।
शुकदेव ने आगे बताया कि संविधान के लागू होने के 74 वर्ष बाद भी उपरोक्त चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया गया जिसके कारण सामाजिक, आर्थिक आदि क्षेत्रों में विषमताएं घटने की जगह बढ़ी हैं और संविधान के लिखे हुए उद्देश्य समता, स्वतंत्रता, बंधुत्व की भावना और सबको समान न्याय कोरा आश्वासन साबित हुआ है और आर्थिक स्वाधीनता के लिए कोई कदम शासन द्वारा उठाया ही नहीं गया है जिसकी वजह से धनी और धनी और गरीब और गरीब होता गया है तथा लोकतांत्रिक प्रणाली भी भंग हो गई है।
वरिष्ठ समाजसेवी लल्ला कुमार अहेरवार बतौर मुख्य अतिथि अपने संबोधन में कहा कि डा. बाबासाहेब अम्बेडकर द्वारा लिखित पुस्तक राज्य और अल्पसंख्यक में सुझाव है कि कृषि और उद्योगों का राष्ट्रीयकरण होना चाहिए तथा निजी संपत्ति के अधिकार को खत्म किए बिना ही राष्ट्रीयकरण करने से उत्पादन के साधनों में बढ़ोतरी होगी तथा रोजगार के अवसर मिलेंगे। कृषि पर राज्य का नियंत्रण हो और कोऑपरेटिव बेसिस पर कृषि करने से जमीनों के और टुकड़ा होने से बचा जा सकता है तथा कृषि में लगे हुए लोगों की रुचि होने से उत्पादन भी बढ़ेगा। ठीक उसी तरीके से उद्योगों के राष्ट्रीयकरण से लाभों में मजदूर का हिस्सा लगेगा और रोजगार के अवसर भी मिलेंगे। जमीनों से सामंतों के पुराने रिश्ते में ढिलवई आएगी और कृषि में काम करने वाले कामगारो के नए रिश्ते जुड़ेंगे किन्तु इस सुझाव पर भी शासक वर्ग ने आजतक ध्यान नहीं दिया।
लल्ला जी ने आगे बताया कि स्वाधीनता के बाद ग्रामसमाज की परती, बंजर, ऊसर, भूदान की जमीने अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों में न बांटी गई और न उनकी रक्षा की गई जिसे सामंती वर्ग ने कब्जा करके हड़प लिए तथा जो जमीने आवास हेतु तथा कृषि हेतु बांटी भी गई उनके पट्टे कैंसिल कराकर सवर्ण शोषक वर्ग ने हड़प लिया। डा. बाबासाहेब अम्बेडकर के सुझाव और दबाव के कारण समाज कल्याण विभाग ने अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के भूमिहीन तपकों में भूमि आवंटन हेतु काश्तकारों से जमीन खरीदी जिनपर समाज कल्याण का नाम वितरित भूमियों पर दर्ज हुए किन्तु दलित विरोधी समाज कल्याण के अधिकारियों ने दलितों में समाज कल्याण की जमीन बांटा ही नहीं और जिन काश्तकारों से समाज कल्याण ने जमीन खरीदी उल्टे उन्हें ही कब्जा दिला दिए। वो जमीन विक्रेता सामंतों की ही रह गई भले ही उत्पादन का कुछ हिस्सा समाज कल्याण विभाग को आता रहा हो ?
डॉन संस्थापक आईपी रामबृज ने बतौर विशिष्ट अतिथि अपने विचार रखते हुए बताया कि दलित यह महसूस करते हैं कि उनकी पुरानी पुश्तैनी आबादी जिस पर वो पीढ़ी दर पीढ़ी गुजर बसर कर रहे हैं उसे उनके नाम पर आबादी दर्ज ही नहीं की जाती, मौके पर आबादी न लिखकर जमीदार की बाग, बंजर, परती, तालाब आदि दर्ज करते हैं जिसका नाजायज फायदा उठाकर शोषक वर्ग उन्हें उजाड़ने में सफल हो जाता है।
प्रतियोगी छात्र इंद्रजीत राव ने बतौर विशिष्ट अतिथि अपने विचार रखते हुए बताया कि भारत जैसे कृषि प्रधान देश में कृषि में लगे अनुसूचित जाति के भूमिहीन खेतिहर मजदूरो की लंबी फौज है जो हाड़ तोड़ मेहनत करके कृषि उत्पादन करते हैं, दूसरों को खिलाते हैं किन्तु स्वयं भूखे रह जाते हैं, जो खेती में लगे हुए हैं उनके पास खेत नहीं है और जो परदानसीन घराने हैं जो हल की मुठिया पकड़ना धर्म के खिलाफ समझते हैं उनके पास सारे खेत हैं। भारत के दलितों की गरीबी दुनिया में अजीब व गरीब नजीर बनी हुई है किन्तु भारत के शासको को इसका न गम है और न शर्म है। विकास के नाम पर किए जा रहे जो काम हो रहे हैं वह गरीबों का विकास, बेरोजगारी का विकास, असमानता का विकास और शोषण का विकास लगता है। सत्ता अपनी उपलब्धियो को गिनाते हुए थकती ही नहीं है जबकि आजादी के 75 वर्ष की लंबी अवधि के अंदर क्या-क्या होना चाहिए था तथा किन कामों की वरीयता देनी थी और अभियान के तौर पर नीचे के तपको को उठाना था वह क्यों नहीं हुआ है? इसके लिए कौन जिम्मेदार है ?
अभिषेक आजाद ने बतौर विशिष्ट अतिथि अपने सम्बोधन में कहा कि दलितों की दुर्दशा और दयनीयता बुरे कानूनो की वजह से नहीं और न अच्छे कानूनो को अमल में लाने से है बल्कि शासन में बैठकर संविधान को लागू करने वाले शासको के दलित विरोधी दृष्टिकोण की वजह से है जो सवालों के पक्षधर और दलितों के विरोदी, सवर्णों के प्रति हमदर्दी और दलितों के प्रति बेदर्दी यह भावना सामाजिक और आर्थिक विरोध के कारण उत्पन्न होती है जो प्रत्येक हिंदू में जन्मजात पाई जाती है। ये भावनाएं वर्ग संघर्ष का कारण बनती हैं। अगर वर्ग संघर्ष से बचना है तो दलितों को उत्पादन का साधन देने के लिए बंजर, परती, ऊसर, भूदान व चकबंदी से छूटी हुई भूमियों तथा समाज कल्याण द्वारा खरीदी गई भूमियों तथा बड़े-बड़े काश्तकरो की जोत की हकबंदी कानूनो को लागू करके तथा मठ और मंदिरों आदि संस्थानों की बेनामी संपत्तियों को सर प्लस घोषित करते हुए बांटना अतिआवश्यक हो गया है ताकि लम्बे अवधि से इंतजार की गई दलितों की मांगों को पूरा किया जा सके जो दलितों की मुख्य समस्या के समाधान को कारगर साबित हो सके।
संविधान मेला व संविधान महोत्सव में आए हुए हजारों की संख्या में भूमिहीन खेतिहर मजदूरो ने संकल्प लिया की जमीन और उद्योगों के राष्ट्रीयकरण हेतु डा. अम्बेडकर वेलफेयर नेटवर्क (डान) के बैनर तले राष्ट्रीय मुद्दा बनाकर राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया जाएगा। राष्ट्रीयकरण का यह अभियान प्रयागराज की धरती से शुरू होकर देश के प्रत्येक राज्यों, राज्यों के प्रत्येक जिलों, जिलों की प्रत्येक तहसीलों, तहसीलों स्थित प्रत्येक विकासखंडों और प्रत्येक विकासखंड स्थित हर गांवो और गली कूचों तक यह अभियान पहुंचकर देश की आजादी और संविधान लागू होने के बाद जिन राजनैतिक दलों को पहला मुद्दा बनाना चाहिए लेकिन किसी भी राजनैतिक दल ने इसे मुद्दा बनाया ही नहीं? अब अब जमीन और उद्योगों के राष्ट्रीयकरण के लिए डा. अम्बेडकर वेलफेयर नेटवर्क (डान) सड़क से संसद तक संघर्ष कर उक्त दोनों मुद्दों की प्राप्ति तक अनवरत सतत संघर्ष करते हुए नजर आएगा।
Nov 29 2024, 20:23