डिजिटल प्लॉफॉर्म पर बढ़ती अश्लीलता से टीवी के “राम” परेशान, अरूण गोविल ने सदन में उठाया सवाल

#tv_ram_arun_govil_first_question_in_parliament_on_ott_content 

Image 2Image 3Image 4Image 5

संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा है। सेमवार से शुरू हुए सत्र में अब तक हंगामा ही हंगामा हो रहा है। विपक्ष के जोरदार हंगामे की वजह से अब तक कामकाज नहीं हो पाया है। इसी बीच टीवी के प्रभु राम यानी भाजपा सांसद अरुण गोविल ने सदन में एक अहम मुद्दा उठाया। घर घर में रामायण के श्रीराम बनकर फेमस होने वाले अरुण गोविल ने पहला सवाल ओटीटी को लेकर पूछा। उन्होंने संसद में कहा कि आज के समय में ओटीटी का कंटेंट ऐसा है कि आप फैमिली के साथ बैठकर टीवी नहीं देख सकते हैं। 

उत्तर प्रदेश के मेरठ से भाजपा सांसद अरुण गोविल ने प्रश्न काल के दौरान लोकसभा में ओटीटी प्लेटफॉर्म पर अश्लील कंटेंट के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने कहा, ‘ओटीटी प्लेटफॉर्म पर जो दिखाया जा रहा है, वह बहुत अश्लील है। ओटीटी प्लेटफॉर्म पर आने वाले ये कंटेंट परिवार में साथ बैठकर देख नहीं सकते हैं। इससे हमारे नैतिक मूल्यों का हरास हुआ है। क्या मंत्री हमें बता सकते हैं कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सेक्स कंटेंट को रोकने के लिए मौजूदा तंत्र क्या है? और उक्त कानून इन प्लेटफॉर्म के दुरुपयोग को रोकने के लिए ज्यादा प्रभावी नहीं है। सरकार के पास मौजूदा कानून को और सख्त बनाने का प्रस्ताव है।’

बीजेपी सांसद ने कहा कि पिछले कुछ सालों में बहुत सारे प्राइवेट प्लेटफॉर्म आए हैं। कोई कानून नहीं होने के कारण इन प्लेटफॉर्म पर कुछ भी दिखाया जा रहा है इस कंटेंट के कारण युवाओं को गुमराह किया जा रहा है। सोशल मीडिया कंपनियों को अपने प्लेटफॉर्म पर आए कंटेंट के लिए जिम्मेदार बनाया जाना चाहिए, जिससे वो ऐसे कंटेंट के खिलाफ तुरंत कार्रवाई कर सकें।

इस मामले पर केंद्रीय आईटी मंत्री अश्वनी वैष्णव ने जवाब दिया। अरुण गोविल के सवाल का जवाब देते हुए केंद्रीय मंत्री अश्विण वैष्णव ने कहा, ये एक अहम सवाल है। सोशल मीडिया और ओटीटी के युग में बहुत सारी चीजें अनियंत्रित हो रही है। आगे इसे और कड़ा करने का जरूरत है।

क्या महाराष्ट्र में चलेगा बिहार मॉडल? शिवसेना की मांग पर ये है बीजेपी का जवाब

#who_will_be_new_cm_of_maharashtra_bjp_says_no_to_bihar_formula 

Image 2Image 3Image 4Image 5

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजों के 3 दिन बाद भी सीएम पद को लेकर कोई फैसला नहीं हो पाया है। महाराष्ट्र में शीर्ष पद कौन लेगा? देवेंद्र फडणवीस या एकनाथ शिंदे। इस पर महायुति गठबंधन के बीच बातचीत जारी है। इस बीच बीजेपी ने संकेत दिया है कि राज्य में सीएम पद के लिए बिहार फॉर्मूला दोहराने की जरूरत नहीं है। 

दरअसल, महाराष्ट्र में सीएम पद के लिए बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस का नाम करीब करीब फाइनल हो चुका है। हालांकि, शिवसेना नेता और प्रदेश के कार्यवाहक मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे भी दोबारा सीएम बनने का मोह त्याग नहीं पा रहे। इसलिए कई बार शिवसेना की ओर से भारतीय जनता पार्टी पर दबाव बनाया गया, कि क्यों न महाराष्ट्र में भी बिहार मॉडल लागू किया जाए।बीजेपी ने शिवसेना नेताओं द्वारा सुझाए गए बिहार मॉडल को खारिज कर दिया है।

शिवसेना शिंदे के बिहार मॉडल को अपनाए जाने की बात पर बीजेपी के प्रवक्ता प्रेम शुक्ला ने कहा कि बिहार चुनाव 2020 में एनडीए ने बहुमत मिलने पर नीतीश कुमार को सीएम बनाने की बात कही थी। यह घोषणा चुनाव से पहले की गई थी। महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ ऐसी कोई प्रतिबद्धता नहीं जताई गई थी। दूसरा हमने बिहार में जेडीयू के साथ गठबंधन इसलिए किया ताकि बीजेपी राज्य में जनता के बीच अपनी पैठ बना सके।

प्रेम शुक्ला ने आगे कहा कि महाराष्ट्र में हमने ऐसा कोई वादा नहीं किया था, क्योंकि यहां पर हमारा बेस और नेतृत्व मजबूत है। उन्होंने कहा कि हमने ऐसे कोई वादा नहीं किया था कि चुनाव के बाद शिंदे ही सीएम बनेंगे। चुनाव प्रचार में पार्टी के नेता ये कहते रहे कि सीएम का फैसला नतीजे के बाद ही होगा।

कौन हैं जय भट्टाचार्य? ट्रंप ने एक और भारतवंशी को दी ये बड़ी जिम्मेदारी

#donald_trump_appoints_jay_bhattacharya_as_nih_director 

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में जीत के बाद से डोनाल्ड ट्रंप लगातार अपनी टीम बनाने में जुटे हैं। नए कार्यकाल से पहले ट्रंप का भारतीयों पर भरोसा बढ़ा है और कई भारतीय मूल के लोगों को अपनी सरकार में शामिल कर चुके हैं। डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर से एक भारतवंशी पर विश्वास जताया है। अब ट्रंप ने कोलकाता में जन्मे जय भट्टाचार्य को बड़ी जिम्मेदारी दी है और देश के शीर्ष स्वास्थ्य अनुसंधान एवं वित्त पोषण संस्थानों में से एक नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (एनआईएच) के डायरेक्टर के रूप में नॉमिनेट किया है।

Image 2Image 3Image 4Image 5

डोनाल्ड ट्रंप ने किया एलान

नव निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जय भट्टाचार्य के नॉमिनशन का एलान करते हुए कहा कि मैं एनआईएच के डायरेक्टर के रूप में सेवा करने के लिए जय भट्टाचार्य, एमडी, पीएचडी को नॉमिनेट कर रोमांचित हूं। वह देश के चिकित्सा अनुसंधान को निर्देशित करने और महत्वपूर्ण रिसर्च के लिए रॉबर्ट एफ. कैंनेडी जूनियर के साथ मिलकर काम करेंगे। जिससे हेल्थ सेक्टर में सुधार होगा और लोगों की सुरक्षा होगी।

जय भट्टाचार्य ने जताई खुशी

अपनी इस नियुक्ति पर डॉ जय भट्टाचार्य ने खुशी जताई है। उन्होंने कहा कि डोनाल्ड ट्रंप ने मुझे एनआईएच का डायरेक्टर नियुक्त किया है। इसके लिए मैं खुद को सम्मानित और गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं। हम अमेरिकी वैज्ञानिक संस्थानों में सुधार करेंगे ताकि वे फिर से भरोसे के लायक हों और अमेरिका को फिर से स्वस्थ बनाने के लिए उत्कृष्ट काम करने करेंगे।

जय भट्टाचार्य पहले भारतीय-अमेरिकी

इसके साथ ही जय भट्टाचार्य पहले भारतीय-अमेरिकी बन गए हैं, जिसे डोनाल्ड ट्रंप द्वारा शीर्ष प्रशासनिक पद के लिए नॉमिनेट किया गया है। इससे पहले, ट्रंप ने टेस्ला कंपनी के मालिक एलन मस्क के साथ नवगठित सरकारी दक्षता विभाग का नेतृत्व करने के लिए भारतीय-अमेरिकी विवेक रामास्वामी को चुना था। यह एक स्वैच्छिक पद है और इसके लिए अमेरिकी सीनेट से पुष्टि की आवश्यकता नहीं है।

कौन हैं डॉ जय भट्टाचार्य?

कोलकाता में जन्मे डॉ जय भट्टाचार्य स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के हेल्थ पॉलिसी के प्रोफेसर हैं। उन्होंने 1997 में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन से ग्रैजुएट और 2000 में स्टैनफोर्ड से इकोनॉमिक्स में पीएचडी की डिग्री हासिल की थी। वह नेशनल ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक रिसर्च में एसोसिएट भी हैं और स्टैनफोर्ड के सेंटर फॉर डेमोग्राफी एंड इकोनॉमिक्स ऑफ हेल्थ एंड एजिंग के डायरेक्टर के रूप में भी कार्य करते हैं। ये वही डॉ जय भट्टाचार्य हैं, जिन्होंने कोरोना काल के समय अमेरिकी कोविड पॉलिसी की जमकर आलोचना की थी। कोविड मामले में सवाल उठाने के लिए डॉ जय भट्टाचार्य की बड़ी फजीहत हुई थी। ट्विटर ने उनके ट्विटर हैंडल को ब्लॉक कर दिया था।

चिन्मय प्रभु की गिरफ्तारी के बाद बांग्लादेश में बवाल जारी, पुलिस के साथ झड़प में एक वकील की मौत

#bangladesh_lawyer_killed_after_clashes_over_hindu_priest_s_arrest 

Image 2Image 3Image 4Image 5

बांग्लादेश में इस्कॉन से जुड़े चिन्मय कृष्ण दास की जमानत याचिका स्थानीय अदालत ने मंगलवार को खारिज कर दी और उन्हें 10 दिन के लिए जेल भेज दिया गया। जैसे ही अदालत ने चिन्मय कृष्ण दास की जमानत याचिका खारिज की, वहां तैनात सुरक्षाकर्मियों और चिन्मय दास के अनुयायियों के बीच झड़प शुरू हो गई। गिरफ्तारी के बाद से नाराज समर्थकों ने उनके वैन को रोकने की कोशिश की। ऐसे में उन पर ग्रेनेड दागे और लाठी चार्ज किया गया। इस झड़प के दौरान एक वकील की मौत भी हो गई।

बांग्लादेश इस्कॉन के प्रमुख चिन्मय कृष्ण दास प्रभु की गिरफ्तारी को लेकर ढाका में लगातार बवाल जारी है। इस बीच, यहां के बंदरगाह शहर चटगांव में मंगलवार को झड़प हुई। इसमें सहायक सरकारी वकील सैफुल इस्लाम की कथित तौर पर हत्या कर दी गई। चटगांव बार एसोसिएशन के अध्यक्ष नाजिम उद्दीन चौधरी ने एएनआई को फोन पर बताया, चटगांव में वकील सैफुल इस्लाम अलिफ की हत्या कर दी गई है। चौधरी ने कहा कि प्रदर्शनकारियों ने एक वकील को उसके चैंबर के खींच लिया और उसकी हत्या कर दी। हालांकि, हत्या का मकसद स्पष्ट नहीं है। 

वहीं, चटगांव बार एसोसिएशन के महासचिव अशरफ हुसैन रज्जाक ने बताया कि आरिफ की बेरहमी से हत्या की गई है। अपने सदस्य की हत्या के विरोध में बार एसोसिएशन ने बुधवार को अदालती गतिविधियों को निलंबित करने का फैसला किया है।

भारत सरकार ने चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी पर क्या कहा?

इस मामले में भारत सरकार ने मंगलवार (26 अक्टूबर) को अपनी प्रतिक्रिया दी। विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा, ‘हम चिन्मय कृष्ण दास, जो ‘बांग्लादेश सम्मिलित सनातन जागरण जोत’ के प्रवक्ता हैं, की गिरफ्तारी और जमानत न दिए जाने पर गहरी चिंता व्यक्त करते हैं। बयान में कहा गया, ‘यह घटना बांग्लादेश में चरमपंथी तत्वों द्वारा हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों पर किए गए कई हमलों के बाद हुई। अल्पसंख्यकों के घरों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों में आगजनी और लूटपाट के साथ-साथ चोरी, तोड़फोड़, देवी-देवताओं और मंदिरों को अपवित्र करने के कई मामले दर्ज किए गए हैं। विदेश मंत्रालय ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इन घटनाओं के अपराधी अभी भी खुलेआम घूम रहे हैं, जबकि शांतिपूर्ण सभाओं के माध्यम से वैध मांगें प्रस्तुत करने वाले धार्मिक नेता के खिलाफ आरोप लगाए जा रहे हैं। हम दास की गिरफ्तारी के खिलाफ शांतिपूर्ण तरीके से विरोध प्रदर्शन कर रहे अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों पर भी चिंता व्यक्त करते हैं। मंत्रालय ने कहा, “हम बांग्लादेश के अधिकारियों से हिंदुओं और सभी अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का अपील करते हैं, जिसमें शांतिपूर्ण सभा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उनका अधिकार भी शामिल है।

क्या है मामला?

बता दें कि 30 अक्तूबर को बांग्लादेश में राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करने के आरोप में देशद्रोह अधिनियम के तहत चिन्मय कृष्ण दास प्रभु समेत 19 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया था। इस मामले में दो लोगों को गिरफ्तार भी किया जा चुका है। आरोप है कि 25 अक्तूबर को चटगांव के लालदीघी मैदान में सनातन जागरण मंच ने आठ सूत्री मांगों को लेकर एक रैली की थी। इस दौरान एक चौक पर स्थित आजादी स्तंभ पर कुछ लोगों ने भगवा ध्वज फहराया था। इस ध्वज पर आमी सनातनी लिखा हुआ था। इसे लेकर चिन्मय कृष्ण दास पर राष्ट्रीय झंडे की अवमानना व अपमान करने का आरोप लगाया गया है।

इस मामले में चटगांव की छठी मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट कोर्ट में सुनवाई की गई थी। इस दौरान कोर्ट ने उनकी जमानत को खारिज कर चिन्मय प्रभु को जेल भेज दिया। उन्हें राजद्रोह के मामले में आरोपी बताया गया है। उनकी गिरफ्तारी के गुस्साए लोगों की तरफ से विरोध किया गया, उसी दौरान हिंसा की भड़क उठी।

इजराइल-हिजबुल्लाह के बीच सीजफायर पर समझौता,लेबनान में लौटेगी शांति, जानें क्या हैं डील की शर्तें?

#israel_netanyahu_implement_ceasefire_with_lebanon 

Image 2Image 3Image 4Image 5

इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने बड़ा ऐलान किया है। नेतन्याहू ने हिजबुल्लाह के साथ युद्धविराम करने की घोषणा की है। लेबनान में सीजफायर की डील पर इजरायली प्रधानमंत्री बेन्जामिन नेतन्याहू और उनकी वॉर कैबिनेट ने मुहर लगा दी है। ये युद्धविराम समझौता मध्य पूर्व में शांति के लिए किए गए एलान के बाद शुरू किया गया है। यह डील बुधवार को इजरायल के समयानुसार सुबह 4 बजे से प्रभावी हो गया है। वहीं गाजा में लड़ाई जारी रहेगी, गाजा में इजरायल ने फलस्तीनी हमास समूह को नष्ट करने की कसम खाई है।

प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने मंगलवार शाम तेल अवीव में अपनी वॉर कैबिनेट की बुलाई। इसमें लेबनान के आतंकी संगठन हिजबुल्लाह के साथ 60 दिन के युद्धविराम पर चर्चा की गई। अमेरिकी समाचार वेबसाइट द हिल ने बताया कि इजरायली वॉर कैबिनेट ने लेबनान में हिजबुल्लाह के साथ संघर्षविराम पर सहमति जता दी है, जो बुधवार सुबह से शुरू हो जाएगा।

इजराइल और लेबनान के बीच बीते करीब दो महीने से जारी जंग में हजारों लोगों की जान जाने के बाद आखिरकार दोनों पक्षों के बीच युद्धविराम पर सहमति बन गई। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने औपचारिक रूप से इसकी आधिकारिक घोषणा की। नेतन्याहू ने इजरायल के लोगों को संबोधित करते हुए कहा, ‘हम मध्य पूर्व की तस्वीर बदल रहे हैं। एक अच्छा समझौता वो होता है, जिसे लागू किया जा सके।’ 

बेंजामिन नेतन्याहू ने युद्ध विराम करने के तीन कारण बताएः-

-उन्होंने कहा कि पहला कारण ईरानी खतरे पर ध्यान केंद्रित करना है, और मैं उस पर विस्तार से नहीं बताऊंगा। 

-दूसरा कारण हमारे बलों को राहत देना और स्टॉक को फिर से भरना है। मैं खुले तौर पर कहता हूं, हथियारों और युद्ध सामग्री की डिलीवरी में बड़ी देरी हुई है। ये देरी जल्द ही हल हो जाएगी। हमें उन्नत हथियारों की आपूर्ति मिलेगी जो हमारे सैनिकों को सुरक्षित रखेगी और हमें अपने मिशन को पूरा करने के लिए अधिक स्ट्राइक फोर्स देगी। इसके अलावा, युद्ध विराम करने का तीसरा कारण मोर्चों को अलग करना और हमास को अलग-थलग करना है। 

-बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा कि युद्ध के दूसरे दिन से, हमास अपने पक्ष में लड़ने के लिए हिजबुल्ला पर भरोसा कर रहा था। हिजबुल्ला के बाहर होने के बाद अब हमास अकेला रह गया है। हम हमास पर अपना दबाव बढ़ाएंगे और इससे हमें अपने बंधकों को रिहा करने के हमारे मिशन में मदद मिलेगी।

60 दिनों के लिए समझौता

रिपोर्ट के अनुसार, समझौते में 60 दिन के युद्धविराम की बात कही गई है, जिसके तहत इजरायली सेना पीछे हट जाएगी और हिजबुल्लाह दक्षिणी लेबनान से हट जाएगा। डील के अनुसार, इजरायली सेनाएं सीमा के अपने हिस्से में वापस लौट जाएंगी और हिजबुल्लाह दक्षिणी लेबनान के अधिकांश हिस्सों में अपनी सैन्य उपस्थिति खत्म कर देगा।

हालांकि, नेतन्याहू ने कहा, यह युद्धविराम कितने समय तक चलेगा, यह कितना लंबा होगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि लेबनान में क्या होगा। अगर हिजबुल्लाह युद्धविराम समझौते का उल्लंघन करता है तो, हम अटैक करेंगे। अगर हिजबुल्लाह बॉर्डर के पास आतंकवादी गतिविधि को अंजाम देता है तो हम हमला करेंगे। नेतन्याहू ने आगे कहा, अगर हिजबुल्लाह रॉकेट लॉन्च करता है तो हम अटैक करेंगे। उन्होंने कहा, हम समझौते को लागू करेंगे और किसी भी उल्लंघन का जोरदार जवाब देंगे, जब तक हम जीत जाते हम एक साथ काम करते रहेंगे।

लेबनान के लिए समझौते के क्या मायने?

पिछले साल 7 अक्तूबर को इजराइल में घातक हमला हुआ था जिसके बाद पश्चिमी एशिया में तनाव फैल गया। यह संघर्ष बाद में कई मोर्चों पर शुरू हो गया जिसमें इजराइल और लेबनान में मौजूद गुट हिजबुल्ला भी आपस में भिड़ गए। इजराइल और हिजबुल्ला की खूनी जंग में लेबनान में 3750 से अधिक लोग मारे गए हैं और 10 लाख से अधिक लोगों को अपने घरों से बेघर होना पड़ा है।

इजराइल और हिजबुल्ला के बीच युद्ध विराम से क्षेत्रीय तनाव में काफी हद तक कमी आने की उम्मीद है। इजराइल के हमलों के चलते लेबनान में एक चौथाई आबादी विस्थापित हो गई है और देश के कुछ हिस्से, विशेष रूप से दक्षिणी लेबनान और राजधानी बेरूत के दक्षिणी इलाकों में, नष्ट हो गए हैं। ऐसे में युद्धविराम के बाद लेबनान में सामान्य स्थिति लौटने में मदद मिलेगी।

रेसलर बजरंग पूनिया चार साल के लिए सस्पेंड, जानें NADA ने क्‍यों लिया इतना बड़ा एक्‍शन

#bajrang_punia_suspends_for_four_years 

Image 2Image 3Image 4Image 5

टोक्यो ओलंपिक के कांस्य पदक विजेता पहलवान बजरंग पूनिया एक बार फिर विवादों में घिरते नजर आ रहे हैं। बजरंग ने पहले भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ आंदोलन किया था और वह सड़कों पर उतरे थे। अब बजरंग फिर सुर्खियों में हैं क्योंकि उन पर राष्ट्रीय डोपिंग एजेंसी (नाडा) ने मंगलवार को चार साल का प्रतिबंध लगाया है। 

नाडा ने ये एक्‍शन इसलिए लिया है, क्‍योंकि बजरंग ने 10 मार्च को राष्ट्रीय टीम के लिए सिलेक्शन ट्रायल के दौरान डोप टेस्ट के लिए सैंपल देने से मना कर दिया था। नाडा ने सबसे पहले 23 अप्रैल को उन्‍हें इस अपराध के लिए निलंबित किया था। इसके बाद वर्ल्ड गवर्निंग बॉडी यूडब्‍ल्‍यूयूडब्‍ल्‍यू ने भी सस्पेंड किया था। 

नाडा द्वारा निलंबित किए जाने के बाद बजरंग ने इसके खिलाफ अपील की थी। नाडा के अनुशासनात्मक डोपिंग पैनल (ADDP) ने आरोप जारी किए जाने तक निलंबन को रद्द कर दिया था। 31 मई तक रोक लगाए जाने के बाद नाडा की तरफ से पहलवान बजरंग को 23 जून नोटिस दिया था। नोटिस मिलने के बाद 11 जुलाई को उन्होंने लिखित रूप से निलंबन को चुनौती दी. 20 सितंबर और 4 अक्टूबर को सुनवाई हुई लेकिन फैसला उनके हक में नहीं आया।

एडीडीपी ने अपने आदेश में कहा कि पैनल का मानना है कि बजरंग पूनिया आर्टिकल 10.3.1 के तहत प्रतिबंधों के लिए उत्तरदायी हैं और चार साल के लिए अयोग्य हैं। 

नाडा के इस कदम के बाद अब ना उनका करियर खत्म माना जा रहा है। दरअसल, बजरंग पूनिया के सस्पेंशन का मतलब है कि वह प्रतिस्पर्धी कुश्ती में वापसी नहीं कर सकेंगे और विदेश में कोचिंग की नौकरी के लिए भी आवेदन नहीं कर सकेंगे।

महाराष्ट्र में नए मुख्यमंत्री पर नहीं बनी बात, रामदास आठवले ने दी ये सलाह

#maharashtra_cm_name 

Image 2Image 3Image 4Image 5

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के रिजल्ट आने के 3 दिन बाद भी मुख्यमंत्री का नाम तय नहीं हो सका है। महाराष्ट्र में सरकार गठन की प्रक्रिया गतिरोध में है। मुख्यमंत्री की भूमिका कौन संभालेगा, इस पर कोई स्पष्ट सहमति नहीं बन पाई है। 23 नवंबर को राज्य के चुनाव परिणाम घोषित होने के बावजूद, सत्तारूढ़ भाजपा के नेतृत्व वाले महायुति गठबंधन ने अभी तक अपने सीएम उम्मीदवार पर कोई निर्णय नहीं लिया है। हालांकि, यह तय माना जा रहा है कि सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी भाजपा अपना मुख्यमंत्री बनाएगी। उधर, मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने मंगलवार को राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन से मुलाकात कर उनको अपना इस्तीफा सौंप दिया है।

इस बीच बड़ी जानकारी सामने आई है। बीजेपी सूत्रों का कहना है कि बीजेपी आलाकमान की ओर से एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री पद के लिए देवेंद्र फडणवीस के नाम की जानकारी दी गई है। इसके साथ ही उन्हें केंद्रीय मंत्री पद या राज्य में डिप्टी सीएम पद की पेशकश की गई है।

आठवले ने किया फडणवीस का समर्थन

केंद्रीय मंत्री और महायुति के पार्टनर रामदास आठवले ने कहा कि महाराष्ट्र में बीजेपी को बड़ा बहुमत मिला है, इसलिए सीएम पद उसे ही मिलना चाहिए। उन्होंने कहा कि देवेंद्र फडणवीस सीएम हो सकते हैं। उन्होंने एकनाथ शिंदे को दिल्ली में एडजस्ट करने की सलाह दी। केंद्रीय मंत्री अठावले ने कहा कि जब एकनाथ शिंदे को पता चला कि बीजेपी आलाकमान ने (महाराष्ट्र के) सीएम के रूप में देवेंद्र फड़नवीस को चुना है, तो वह थोड़े नाखुश हैं, जिसे मैं समझ सकता हूं। लेकिन बीजेपी को 132 सीटें मिली हैं और इसलिए मुझे लगता है कि कोई रास्ता निकलना चाहिए। देवेंद्र फडनवीस को सीएम बनाया जाना चाहिए। एकनाथ शिंदे डिप्टी सीएम का पदभार संभाल सकते हैं। अगर वह डिप्टी सीएम बनने के इच्छुक नहीं हैं, तो उन्हें पीएम मोदी की कैबिनेट में केंद्रीय मंत्री बनाया जा सकता है। महाराष्ट्र के लोग चाहते हैं कि देवेंद्र फड़णवीस सीएम बनें।

कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, नए मुख्यमंत्री के लिए देवेंद्र फडणवीस का नाम लगभग फाइनल हो चुका है।

फडणवीस के CM बनने पर नई सरकार में पहले की ही तरह दो डिप्टी CM होंगे। NCP की ओर से अजित पवार और शिवसेना की ओर से शिंदे किसी नए विधायक का नाम आगे कर सकते हैं।

सूत्रों के मुताबिक, नई सरकार का एजेंडा तय करने के लिए तीनों दलों की एक कमेटी बनाई जा सकती है, जिसके मुखिया एकनाथ शिंदे हो सकते हैं। हालांकि शिवसेना प्रवक्ता कृष्ण हेगड़े ने इससे इनकार किया।

क्यों हर बार जीती हुई बाजी हार रही कांग्रेस? ऐसे तो जनता ही नहीं सहयोगियों का भी छूट जाएगा “हाथ”

#congress_poor_performance_in_maharashtra_elections

Image 2Image 3Image 4Image 5

इस साल आम चुनाव के बाद जिस विधानसभा चुनाव पर सबसे अधिक ध्यान केंद्रित था, वह महाराष्ट्र का चुनाव था। महाराष्ट्र न केवल उत्तर प्रदेश के बाद सबसे अधिक सांसद भेजने वाला राज्य है, बल्कि यहाँ देश की आर्थिक राजधानी मुंबई भी स्थित है। इस कारण से यह चुनाव ख़ास था।महाराष्ट्र में एनडीए ने 'महायुति' के नाम से चुनाव लड़ते हुए ऐतिहासिक जीत दर्ज की। लोकसभा चुनाव के दौरान महाराष्ट्र में 'महाविकास अघाड़ी' के बैनर तले इंडिया गठबंधन ने शानदार प्रदर्शन किया था, लेकिन कुछ ही महीनों में विधानसभा चुनाव में यह स्थिति पलट गई।

इस बार महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में महायुति गठबंधन में शामिल भारतीय जनता पार्टी ने 132 , एकनाथ शिंदे की शिवसेना ने 57 और अजित पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ने 41 सीटें जीती हैं। यानी महायुति ने कुल 230 सीटें हासिल कर सत्ता में धमाकेदार वापसी की है। दूसरी ओर, महाविकास अघाड़ी (एमवीए) गठबंधन में कांग्रेस, शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) और शरद पवार की एनसीपी शामिल हैं। इन्हें कुल 46 सीटें मिली हैं और करारी हार का सामना करना पड़ा है।

महाराष्ट्र चुनाव में कभी अकेले दम पर 200 से ज़्यादी सीटें लाने वाली कांग्रेस इस बार के चुनाव में 16 सीटों के लिए भी संघर्ष करती दिखाई दी। लोकसभा चुनाव में अच्छे प्रदर्शन के बाद माना जा रहा था कि कांग्रेस कहीं ना कहीं वापसी कर रही है, लेकिन नतीजों ने फिर से कांग्रेस की राजनीति को सवालों के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया है। कांग्रेस पहले हरियाणा में हारी और अब महाराष्ट्र में उसे बुरी हार का सामना करना पड़ा है। हरियाणा के बाद अब महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में मिली हार ने एक बार फिर देश के राजनीतिक पटल पर और इंडिया ब्लॉक के भीतर कांग्रेस की कमजोर स्थिति को उजागर कर दिया है। 

बीजेपी के सामने निराशाजनक प्रदर्शन

इस साल जून में हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को अपेक्षाकृत सफलता मिली थी जहां इसने कुल 99 सीटें हासिल कीं। यह एक ऐसा आंकड़ा था जिस पर कांग्रेस खेमा अपने पिछले एक दशक के प्रदर्शन को देखते हुए खुश था।

हालांकि, पार्टी की बढ़त मुख्य रूप से उन इलाकों तक ही सीमित रही, जहां इसने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के प्रभुत्व का मुकाबला करने के लिए मजबूत सहयोगियों पर बहुत अधिक निर्भरता दिखाई। इन 99 में से 36 सीटें उन राज्यों में मिलीं, जहां कांग्रेस क्षेत्रीय सहयोगियों की अगुआई में काम कर रही थी। इससे उसे वोट ट्रांसफर से काफी फायदा पहुंचा। हालांकि, उन सीटों पर जहां कांग्रेस ने चाहे सीधे तौर पर या फिर किसी तीसरे पक्ष की मौजूदगी में बीजेपी का सामना किया, उसका प्रदर्शन निराशाजनक रहा। ऐसी स्थिति में लड़ी गई 168 सीटों में से कांग्रेस महज 30 सीटें ही निकाल पाई। केरल, पंजाब, तेलंगाना, नागालैंड, मेघालय, लक्षद्वीप और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में पार्टी को अतिरिक्त जीत मिली, जहां बीजेपी की मौजूदगी मामूली है या जहां उसके सहयोगी दलों ने मुकाबले में बढ़त बनाई है।

कहां चूक रही है कांग्रेस?

मई के बाद देश के विभिन्न राज्यों के विधानसभा चुनाव हुए हैं। आम चुनावों के बाद से कांग्रेस को कई चुनावी झटके लगे हैं। पार्टी को पहले हरियाणा में हार मिली, जम्मू-कश्मीर में प्रदर्शन खराब रहा और अब महाराष्ट्र में मिली हार ने इस सिलसिले को आगे बढ़ाया है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आख़िर बार- बार कहां चूक रही है कांग्रेस?

11 साल बाद भी समस्याएं जस की तस

महाराष्ट्र में हार के बाद कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि लंबे समय से लंबित मसलों पर फैसला नहीं लेने का बड़ा खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ रहा है। वह मानते हैं कि इससे कार्यकर्ताओं में हताशा बढ़ रही है। उनकी बात वाजिब लगती है। मिसाल देखें, पार्टी 11 साल पहले जिन-जिन राज्यों में जिन समस्याओं से जूझ रही थी, आज 11 साल बाद भी उन्हीं समस्याओं से दो-चार हो रही है। हरियाणा, राजस्थान से लेकर कई दूसरी जगह उसे गुटबाजी के चलते नुकसान उठाना पड़ा। इसके बाद भी नेतृत्व इस मसले पर कोई ठोस फैसला नहीं ले पाया।

स्थिति बेहतर करने के लिए कोई गंभीर कोशिश नहीं

बिहार, ओडिशा, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में कांग्रेस हाशिये पर पहुंच चुकी है, लेकिन अपनी स्थिति बेहतर करने के लिए उसने कोई गंभीर कोशिश नहीं की। कार्यकर्ता मान रहे थे कि मल्लिकार्जुन खरगे के अध्यक्ष बनने के बाद चीजें साफ होंगी, संगठन के स्तर पर नए चेहरों को मौका मिलेगा और इसका विस्तार भी होगा। लेकिन, बदलाव के नाम पर रस्मअदायगी कर दी गई। पार्टी का एक वर्ग मानता है कि कांग्रेस नेतृत्व ने यथास्थितिवाद को इतना खींच दिया है कि अब अगर बड़ा बदलाव नहीं हुआ तो सीधे उसे ही सख्त सवालों का सामना करना पड़ सकता है।

सहयोगी दलों में असंतोष

कांग्रेस के ढुलमुल रवैये और फैसला न लेने की प्रवृत्ति से अब सहयोगी दल भी नाराज हैं। सहयोगी क्षेत्रीय दलों का मानना है कि कांग्रेस फैसले से लेकर तमाम मसलों में न सिर्फ चीजों को उलझा कर रखती है बल्कि अपनी अव्यावहारिक शर्तें थोपती है। एक क्षेत्रीय दल के वरिष्ठ नेता ने कहा कि लोकसभा चुनाव के बाद जो परिस्थिति बनी, उसमें कांग्रेस की बात मानना सियासी मजबूरी बन गई थी। इससे कांग्रेस कुछ अधिक ही आक्रामक हो गई। लेकिन, पहले हरियाणा और अब महाराष्ट्र में हार के बाद क्षेत्रीय दल एक बार फिर कांग्रेस पर दबाव बनाएंगे।

*ट्रंप के आने के बाद रूस-यूक्रेन युद्ध के खत्म होने की कितनी उम्मीद, क्या बाइडेन ने बढ़ा दी है मुश्किलें?

#whatturncanrussiaukrainewartakeaftertrump_return 

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा चुने जाने के बाद रूस-यूक्रेन युद्ध अब कौन सा मोड़ ले सकता है, इस पर पूरी दुनिया की निगाहें टिकी हुई हैं। ट्रंप के राष्ट्रपति चुने जाने की घोषणा होने के तुरंत बाद जेलेंस्की ने ट्रंप को बधाई देते हुए रूस-यूक्रेन युद्ध में शांति स्थापित होने की उम्मीद जाहिर की है। वहीं राष्ट्रपति पुतिन के क्रेमलिन कार्यालय ने भी कहा है कि अमेरिका अगर चाहता है तो मॉस्को बातचीत का विकल्प खुला रखेगा। मगर साथ में रूस ने यह भी कहा कि जब जनवरी में ट्रंप अपना कार्यभार संभालेंगे तो रूस-यूक्रेन युद्ध पर अमेरिका की क्या नई पॉलिसी होगी, इस पर उसकी नजर बनी है।

Image 2Image 3Image 4Image 5

अमेरिका के मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडेन प्रशासन के तहत यूक्रेन को रूस के खिलाफ जंग में पर्याप्त सैन्य सहायता प्राप्त हुई है। यही वजह है कि रूस और अमेरिका के रिश्ते तनाव के चरम पर हैं। हालांकि, ट्रंप की वापसी के बाद उम्मीद की जा रही थी कि यूक्रेन रूस युद्ध रुक सकता है। अमेरिका के नव निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पूरे चुनाव प्रचार के दौरान बाइडेन की नीतियों का विरोध किया था। देश की जनता के सामने ट्रंप ने दावा किया कि अगर वह राष्ट्रपति होते, तो यूक्रेन जंग शुरू ही नहीं होती।साथ ही व्हाइट हाउस वापसी के बाद उन्होंने जंग खत्म करने का वादा किया है। लेकिन जो बाइडेन के हालिया कदम से ऐसा लग रहा है कि वे ट्रंप के इस वादे को पूरा नहीं होने देंगे।

दरअसल, गाजा और यूक्रेन जंग के लंबा खिंचने के पीछे भी ट्रंप ने बाइडेन प्रशासन की कमजोर नीतियों को जिम्मेदार बताया है। लेकिन बाइडेन ने अपने आखिरी दिनों में यूक्रेन को फ्री हैंड दे दिया है।जो बाइडेन ने यूक्रेन को अमेरिका और पश्चिमी देशों के घातक हथियारों से रूसी जमीन पर हमला करने की छूट दे दी है। अब तक यूक्रेन को लंबी दूरी और घातक हथियारों से रूस पर हमले की परमिशन नहीं थी।

क्या युद्ध को बढ़ावा दे रहे बाइडन?

बाइडेन ने यूक्रेन को एटीएसीएमएस मिसाइलों से रूस पर हमले की मंजूरी दी। अमेरिकी मिसाइलों के यूज पर बाइडन से ग्रीन सिग्नल मिलने के बाद जेलेंस्की के इरादों को जैसे पंख लग गए। इसके बाद यूक्रेन ने रूस पर मिसाइलें दाग भी दी। यूक्रेन ने अमेरिकी और ब्रिटिश मिसाइलों की मदद से रूस पर कई हमले किए। इसके जवाब में रूस की ओर से इस युद्ध में पहली बार इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल का इस्तेमाल किया गया।

बाइडेन के फैसले से युद्ध में नया मोड़ लिया

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन के यूक्रेन को युद्ध में लंबी दूरी की मिसाइलों का इस्तेमाल करने की अनुमति युद्ध में एक नया मोड़ ला दिया है। ट्रंप की वापसी के बाद उम्मीद की जा रही थी कि यूक्रेन रूस युद्ध रुक सकता है। लेकिन बाइडेन ने अपने आखिरी दिनों में यूक्रेन को फ्री हैंड दे दिया है। बाइडेन के इस फैसले का विरोध रूस में बड़े पैमाने पर देखने को मिला है। रूसी पार्लियामेंट के अपर हाउस फेडरेशन काउंसिल के सीनियर मेंबर आंद्रेई क्लिशास ने टेलीग्राम पर अमेरिका के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि पश्चिमी देशों ने तनाव को इस स्तर तक बढ़ा दिया है कि इससे यूक्रेन का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। इसके अलावा रूस के अंतरराष्ट्रीय मामलों के अधिकारी दिमीर दज़बारोव ने कहा कि अगर यूक्रेन रूस के अंदर हमला करता है, तो यह तीसरे विश्व युद्ध की शुरुआत का कदम होगा।

“बाइडेन तीसरा विश्व युद्ध शुरू करना चाहते हैं”

बाइडेन प्रशासन के इस फैसले पर डोनाल्ड के सबसे बड़े बेटे ट्रंप जूनियर ने राष्ट्रपति बाइडेन और डेमोक्रेटिक पार्टी की आलोचना की है। उन्होंने कहा कि मेरे पिता को शांति कायम करने का मौका मिलने से पहले ही, बाइडेन तीसरा विश्व युद्ध शुरू करना चाहते हैं।

बीजेपी ने राहुल गांधी पर लगाया राष्ट्रपति के अनादर का आरोप, जानें पूरा मामला

#bjp_claims_rahul_gandhi_did_not_greetings_of_president

भारतीय जनता पार्टी ने दावा किया है कि लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने संविधान दिवस के मौके पर संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित करते समय राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू का अभिवादन नहीं किया। संविधान दिवस के 75वीं वर्षगांठ पर आयोजित समारोह के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का अभिवादन नहीं करने को लेकर बीजेपी ने राहुल गांधी पर अहंकार का आरोप लगाया है।

Image 2Image 3Image 4Image 5

बीजेपी नेता अमित मालवीय ने कथित वीडियो शेयर करते हुए दावा किया कि कांग्रेस नेता ने उनका अभिवादन इसलिए नहीं किया क्योंकि वह आदिवासी समुदाय से आती हैं। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, "राहुल गांधी इतने अहंकारी हैं कि उन्होंने राष्ट्रपति का अभिवादन भी नहीं किया। सिर्फ इसलिए कि वह आदिवासी समुदाय से आती हैं, एक महिला हैं और राहुल गांधी कांग्रेस के राजकुमार हैं? यह कैसी ओछी मानसिकता है?"

यह पहली बार नहीं है जब बीजेपी ने कांग्रेस पर राष्ट्रपति की आदिवासी पहचान के कारण उनका 'अपमान' करने का आरोप लगाया है। इस साल की शुरुआत में, पीएम मोदी ने टिप्पणी की थी कि राष्ट्रपति के राम मंदिर जाने और देश की भलाई के लिए प्रार्थना करने के दो दिन बाद, कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने घोषणा की थी कि मंदिर को गंगाजल से शुद्ध किया जाएगा। मोदी ने कहा था, क्या यह देश, आदिवासियों, माताओं और बहनों का अपमान नहीं है।