मंदिरों की पवित्रता के साथ हो रहे खिलवाड़ को कत्तई नही किया जाएगा बर्दाश्त : रामचन्द्र शुक्ल
मिर्जापुर। तिरुपति बालाजी मंदिर में वितरित होने वाले महाप्रसाद की पवित्रता के संबंध में आस्थावान हिंदुओं की बहुत श्रद्धा के साथ खिलवाड़ किये जाने के विरोध में विश्व हिंदू परिषद द्वारा राज्यपाल को संबोधित पत्र जिला प्रशासन को सौंप कर कार्यवाही की मांग की है। पत्रक में विहिप के पदाधिकारियों ने कहा है कि दुर्भाग्य से इस महाप्रसाद को बनाने वाले घी में गाय व सूअर की चर्बी तथा मछली के तेल की मिलावट के अत्यंत दुखद और हृदय विदारक कृत्य बताया हैं।
पूरे देश का हिंदू समाज आक्रोशित है,और हिंदुओं का क्रोध अलग-अलग रूप में प्रकट हो रहा है। इस पवित्र तीर्थ का संचालन आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा स्थापित बोर्ड के द्वारा होता है। वहां केवल महाप्रसाद बनाने के मामले में ही हिंदू आस्थाओं के साथ खिलवाड़ नहीं किया गया, अपितु हिंदुओं के द्वारा अत्यंत श्रद्धा भाव से अर्पित की गई देव राशि (चढ़ावा) के सरकारी अधिकारियों व राजनेताओं द्वारा दुरुपयोग के भी कष्टकारी समाचार मिलते रहते हैं। कई बार तो हिंदुओं के धर्म पर आघात कर हिंदुओं का धर्मांतरण करने वाली संस्थाओं को इस पवित्र राशि से अनुदान देने के समाचार भी मिलते रहे हैं। कई अन्य राज्य सरकारें भी मंदिरों की संपत्ति व आय का निरंतर दुरुपयोग करती रहती हैं तथा उनका उपयोग गैर हिंदू और हिंदू विरोधी कार्यो में करती रही है।
हमारे देश में संविधान के सर्वोपरि होने की दुहाई बार-बार दी जाती है, परंतु दुर्भाग्य से हिंदुओं की आस्थाओं के केंद्र मंदिरों पर विभिन्न सरकारें अपना नियंत्रण स्थापित कर हिंदुओं की भावनाओं के साथ सबसे घृणित धोखाधड़ी संविधान की आड़ में ही कर रही हैं। जो सरकारें संविधान की रक्षा के लिए निर्माण की जाती हैं वे ही संविधान की आत्मा की धज्जियां उड़ा रही है। अपने निहित स्वार्थ के कारण मंदिरों का अधिग्रहण कर वे संविधान की धारा 12, 25 व 26 का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन कर रही हैं।
स्वतंत्रता प्राप्ति के 77 वर्ष बाद भी हिंदुओं को अपने मंदिरों का संचालन करने की अनुमति नहीं दी जा सकती? अल्पसंख्यकों को अपने धार्मिक संस्थान चलाने की अनुमति है, परंतु हिंदू को यह संविधान सम्मत अधिकार क्यों नहीं दिया जा रहा? यह सर्व विदित है कि मुस्लिम आक्रमणकारियों ने मंदिरों को लूटा और नष्ट किया था। अंग्रेजों ने चतुराई पूर्वक उन पर नियंत्रण स्थापित करके उन्हें निरंतर लूटने की प्रक्रिया स्थापित कर दी। स्वतंत्रता के 77 वर्ष बाद भी भारत की सरकारें इस औपनिवेशिक मानसिकता से ग्रस्त है और हिंदुओं के मंदिरों पर नियंत्रण स्थापित कर लूट रही है।
तिरुपति बालाजी व अन्य स्थानों पर की जा रही अनियमितताओं के कारण अब हिंदू समाज का यह विश्वास हो गया है कि अपने मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कराए बिना उनकी पवित्रता को पुनर्स्थापित नहीं किया जा सकता। यह स्थापित मान्यता है कि हिंदू मंदिरों की संपत्ति व आय का उपयोग मंदिरों के विकास व हिंदुओं के धार्मिक कार्यों के लिए ही होना चाहिए। वास्तविकता यह है कि मंदिरों की आय व संपत्ति की खुली लूट अधिकारियों व राजनेताओं के द्वारा तो की ही जाती हैं कई बार उनके चहेते हिंदू विरोधियों द्वारा भी की जाती है। पत्रक में राज्य सरकार को उनके द्वारा नियंत्रित सभी हिंदू मंदिर अविलंब मुक्त करके हिंदू संतो व भक्तों को एक निश्चित व्यवस्था के अन्तर्गत सौंपने के लिए प्रेरित करने की मांग की है।
इस व्यवस्था का प्रारूप पूज्य संतों ने कई वर्षों के चिंतन, मनन व चर्चा के बाद निर्धारित किया है। इस प्रारूप का सफलतापूर्वक उपयोग कई जगह किया जा रहा है। आशा है। सरकार को वांछित दिशा में शीघ्र निर्णय लेने के लिए प्रेरित करें। हमें विश्वास है कि परस्पर विमर्श से ही हमारे मंदिर हमको वापस मिल जाएंगे और हमें व्यापक आंदोलन के लिए विवश नहीं होना पड़ेगा। पत्रक देने वालो में सत्य प्रकाश, महेश, अमित पाठक, रामचंद्र शुक्ल, शशिकांत, प्रवीण, माता सहाय, दिनेश प्रकाश, कृष्ण सिंह, अभय शंकर, विनय सिंह, अरविन्द सारस्वत, अशोक, पवन, संतोष, पूनम केसरवानी, पार्वती गिरी, संगीता, राज माहेश्वरी, राहुल जैन, बृजेश, कुंवर साहब, विजय, गणेश, चंद्र प्रकाश, देव प्रकाश, लक्ष्मीकांत, प्रेम महाराज, शोभित, रितेश, विवेक पांडेय, अनिल जायसवाल, विकास, वेद प्रकाश, पारस, कमलेश, कुमार, शेखर केसरवानी, आदि सैकड़ो कार्यकर्ता व हिन्दू जनमानस उपस्थित रहे। उक्त आशय की जानकारी जानकारी मीडिया प्रभारी अरविन्द सारस्वत ने दी है।
Sep 27 2024, 18:12