गढ़वा के श्री वंशीधर नगर में मथुरा,वृंदावन की तरह मनाई जाती है जन्माष्टमी
श्री वंशीधर जी का प्रतिमा 32 मन विशुद्ध सोने का विग्रह मनमोहक, अदभुत, अलौकिक और अकल्पनीय है।
अभय तिवारी ।
गढ़वा :- गढ़वा जिला के वंशीधर नगर स्थित श्री बंशीधर नगर को योगेश्वर कृष्ण की भूमि माना जाता है। श्री बंशीधर मंदिर में स्वयं विराजमान श्रीकृष्ण की वंशीवादन करती प्रतिमा की ख्याति देश में ही नहीं विदेशों में भी प्राप्त भी है।
इसलिए यह स्थान श्री बंशीधर धाम के नाम से भी प्रसिद्ध है। यहां कण कण में राधा व कृष्ण विद्यमान हैं। श्री बंशीधर नगर में प्रतिवर्ष श्रीकृष्ण की जयंती पर जन्माष्टमी मथुरा व वृंदावन की तरह मनाई जाती है।
इस धरा पर दूसरा वृंदावन श्री बंशीधर नगर है। गंगा जमुनी संस्कृति व धार्मिक भावनाओं से ओत प्रोत खूबसूरत हरी भरी वादियों, कंदराओं, पर्वतों, नदियों से आच्छादित और उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार तीन राज्यों की सीमाओं को स्पर्श कर उन तीन राज्यों की मिश्रित संस्कृति को समेटे श्री बंशीधर की पावन नगरी श्री बंशीधर नगर को पलामू प्रमंडल की सांस्कृतिक राजधानी भी माना जाता है।
श्री बंशीधर मंदिर की स्थापना संवत 1885 में हुई है। श्री बंशीधर मंदिर के बारे में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यहां भगवान श्रीकृष्ण त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों स्वरूप में हैं। मंदिर में स्थित प्रतिमा को गौर से देखने पर यहां भगवान के त्रिदेव के स्वरूप में विद्यमान रहने का अहसास होता है। यहां स्थित श्री बंशीधरजी जटाधारी के रूप में दिखाई देते हैं जबकि शास्त्रों में श्रीकृष्ण के खुले लट और घुंघराले बाल का वर्णन है।
इस लिहाज से मान्यता है कि श्रीकृष्ण जटाधारी अर्थात देवाधिदेव महादेव के रूप में विराजमान हैं। श्रीकृष्ण के शेष शैय्या पर होने का वर्णन शास्त्रों में मिलता है लेकिन यहां श्री बंशीधर जी शेषनाग के ऊपर कमलपुष्प पर विराजमान हैं, जबकि कमलपुष्प ब्रह्मा का आसन है। इस लिहाज से मान्यता है कि कमल पुष्पासीन श्री कृष्ण कमलासन ब्रह्मा के रूप में विराजमान हैं।
भगवान श्रीकृष्ण स्वयं लक्ष्मीनाथ विष्णु के अवतार हैं, इसलिए विष्णु के स्वरूप में विराजमान हैं। यहां इस मंदिर में वर्ष भर श्री बंशीधर मंदिर में दर्शन के लिए देश ही नहीं विदेशी श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।
जो भी श्रद्धालु एक बार श्री बंशीधर जी की मोहिनी मूरत का दर्शन करता है, वह उनके प्रति मोहित हो जाता है। दर्शनार्थी के मुंह से बरबस अद्वितीय और अलौकिक शब्द निकल पड़ता है।श्री बंशीधर जी प्रतिमा कला के दृष्टिकोण से अति सुंदर व अद्वितीय है। बिना किसी रसायन के प्रयोग या अन्य पॉलिश के प्रतिमा की चमक पूर्ववत है। भगवान श्री कृष्ण शेषनाग के ऊपर कमल पीड़िका पर वंशीवादन नृत्य करते विराजमान हैं। भूगर्भ में गड़े होने के कारण शेषनाग दृष्टिगोचर नहीं होते हैं। श्री वंशीधर जी का प्रतिमा 32 मन विशुद्ध सोने का विग्रह मनमोहक, अदभुत, अलौकिक और अकल्पनीय है।
आस्था के केंद्र के साथ यहां मांगी गई हर मनोकामना पूर्ण होती है। श्री बंशीधर नगर धाम का पौराणिक और धार्मिक महत्व है । विंध्य क्षेत्र अंतर्गत झारखंड के पश्चिम छोर पर गढ़वा जिला के बंशीधर नगर धाम, छत्तीसगढ़, यूपी और बिहार यानी तीन राज्यों के त्रिकोण पर वनों एवं पर्वतों से आच्छादित खूबसूरत वादियों के बीच और पतित पावनी कल कल निनादिनी मां बांकी नदी के किनारे बसा श्री बंशीधर नगर इस भूमंडल पर पांचवां धाम है।विद्वानों के मुताबिक ऐसा भगवान श्रीकृष्ण जी द्वारा विग्रह रुप में यहां स्वयं आकर विराजमान होना है।
विग्रह रुप में श्री वंशीधर जी का प्राकट्य विग्रहावतार माना जाता है। विद्वानों के मुताबिक श्री वंशीधर जी के रुप में उनका विग्रहावतार, अर्चावतार भी है। इसलिए इसे श्री बंशीधर नगर धाम के नाम से जाना जाता है।इतिहासकारों के अनुसार संवत 1885 में राजा स्व भवानी सिंह देव की विधवा शिवमानी कुंवर राजकाज का संचालन कर रही थी। रानी शिवमानी कुंवर धर्मपरायण एवं भगवत भक्ति में पूर्ण निष्ठावान थी। 14 अगस्त 1827 को रानी साहिबा जन्माष्टमी व्रत किया था उसी दिन मध्य रात्रि में उन्हें स्वप्न में भगवान श्रीकृष्ण का दर्शन हुआ। स्वप्न में श्री कृष्ण ने रानी से वर मांगने को कहा।
रानी ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा कि प्रभु आपकी सदैव कृपा हम पर रहे। तब भगवान कृष्ण ने रानी से कनहर नदी के किनारे यूपी के महुअरिया के निकट शिव पहाड़ी अपनी प्रतिमा के गड़े होने की जानकारी दी और उन्हें अपने राज्य में लाने को कहा। भगवत कृपा जान रानी ने शिवपहाड़ी जाकर विधिवत पूजा अर्चना के बाद खुदाई करायी तो श्री बंशीधर जी की अद्वितीय असाधारण प्रतिमा मिली।
जिसे हाथियों पर बैठाकर श्री बंशीधर नगर लाया गया। गढ़ के मुख्य द्वार पर अंतिम हाथी बैठ गया। लाख प्रयत्न के बावजूद हाथी नहीं उठने पर रानी ने राजपुरोहितों से राय मशविरा कर वहीं पर मंदिर का निर्माण कराया तथा वाराणसी से राधा रानी की अष्टधातु की प्रतिमा मंगाकर दिनांक 21 जनवरी 1828 स्थापित करायी।संवत 1885 तदनुसार 21 जनवरी 1828 को वसंत पंचमी के दिन श्री राधा वंशीधर जी की विधिवत प्राण प्रतिष्ठा कराई। जिसके बाद मंदिर में शुरू हुआ पूजन दर्शन अनवरत जारी है।
प्रतिवर्ष असंख्य लोग भगवान का दर्शन पूजन कर मनवांछित फल प्राप्त करते हैं। श्री बंशीधर जी की प्रतिमा कला के दृष्टिकोण से अति सुंदर एवं अद्वितीय है।
Sep 02 2024, 19:37