भदोही में शिवभक्तों की आस्था का केंद्र हैं बाबा बेरासनाथ, पूर्ण होती हैं मनोकामनाएं
नितेश श्रीवास्तव ,भदोही। भदोही में उत्तरवाहिनी मां गंगा के तट पर स्थित बाबा बेरासनाथ के नाम से प्रसिद्ध शिव मंदिर में दूर-दूर से काफी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। श्रावण मास में और सोमवार को भक्तों की भारी भीड़ रहती है।ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में दर्शन करने आए श्रद्धालुओं की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
मगर पंचकोस की कमी की वजह से बेरासनाथ धाम केवल गुप्त काशी के नाम से प्रसिद्ध है।भदोही को काशी-प्रयाग के मध्य क्षेत्र को पवित्र क्षेत्र माना जाता है। इसी क्षेत्र के मध्य काफी धार्मिक केन्द्र हैं, जो अपने आप में कई ऐतिहासिक विरासत सहेजे हुए हैं। साथ ही सभी की अपनी अलग-अलग धार्मिक मान्यताएं हैं। काशी-प्रयाग के मध्य स्थित एक ऐसा शिव मंदिर है, जहां की मान्यता काशी विश्वनाथ से कम नहीं है. मगर भौगोलिक स्थिति की कमी से यह स्थल काशी तो नहींं बन सका, लेकिन गुप्त काशी के नाम से आज भी प्रचलित है। बाबा बेरासनाथ के नाम से प्रसिद्ध शिव मंदिर में काफी संख्या में दूर-दूर से भक्त आते हैं और सभी की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती हैं।गोपीगंज क्षेत्र के बेरासपुर गांव में स्थित यह प्राचीन शिव मंदिर जो बाबा बेरासनाथ के नाम से क्षेत्र में प्रसिद्ध है।
इस मंदिर की स्थापना के बारे में बताया जाता है कि इस मंदिर का शिवलिंग भी एक कुंए में था। एक बार व्यासजी इसी जगह से जा रहे थे तो उनको यहां किसी दैवीय शक्ति का अहसास हुआ। फिर वे रुक गये और कुंए में स्थित शिवलिंग की पूजा अर्चना करने लगे। उसके बाद ग्रामीणों ने भी पूजा पाठ करना प्रारम्भ कर दिया। व्यास जी के कई वर्ष तक इस जगह रहने पर इस जगह का नाम व्यासपुर रहा, लेकिन कालांतर में गांव का नाम बेरासपुर पड़ गया। गांव के ही बाला प्रसाद पाल 'साहब' के सहयोग से हुआ मंदिर का निर्माण व्यासजी के चले जाने के काफी वर्ष बाद ग्रामीणों ने कुएं में स्थित शिवलिंग को बाहर निकाल कर स्थापित करने की इच्छा जताई, लेकिन ऐसा नहीं हो सका. फिर कुछ वर्षों तक ग्रामीणों ने कुएं को पाटकर शिवलिंग की जगह ऊपर पूजा-पाठ करना प्रारंभ कर दिया।
मगर मंदिर सही न होने से पूजा करने वालों को काफी दिक्कतें होती थीं। इसी को ध्यान में रखकर गांव के ही महामानव बाला प्रसाद पाल 'साहब' जो रेलवे में कार्यरत थे, उन्होंने बाबा बेरासनाथ मंदिर का जिणोद्धार का वीणा उठाया और वर्ष 1938 में पूरा करा दिया। उस समय भारत-पाकिस्तान का बंटवारा नहीं हुआ था। इस मंदिर के निर्माण में लाहौर से दर्जनों कारीगरों ने आकर इस मंदिर के निर्माण कार्य में सहायता की थी। साथ ही गांव के भी काफी हिन्दू-मुस्लिमों ने भी कार्य किया था।
इस मंदिर को अंदर से देखने से एक अलग स्थापत्य कला का अनुभव होता है। मंदिर को बाहर देखने से मंदिर जैसा लगता है और अंदर गोलाकार है। मंदिर के निर्माण में बाला प्रसाद पाल 'साहब' के सहयोग को गांव कभी नहीं भुला सकता है।इस मंदिर के आध्यात्मिक महत्व के बारे में प्रसिद्ध विद्वान स्व. प्रभुनाथ मिश्र ने अपने काव्य रचना में बताया कि इस जगह काशी की स्थापना होनी थी, मगर पंचकोस जमीन की कमी के कारण यहां काशी की स्थापना नहीं हो सकी और यह क्षेत्र गुप्त काशी के रूप में महात्म्य सहेजा है। स्व प्रभुनाथ मिश्र ने अपनी काव्य रचना में बताया कि जैसे काशी विश्वनाथ के पूर्व तरफ उत्तरवाहिनी गंगा है, वैसे ही बाबा बेरासनाथ धाम के पूर्व तरफ भी उत्तरवाहिनी गंगा बहती है। काशी में उत्तर तरफ से कोई एक पानी का स्त्रोत आकर गंगा में मिलता है, ठीक वैसे ही बेरासनाथ मंदिर से कुछ दूरी पर एक पानी का स्त्रोत भी गंगा में जाकर मिलता है। मगर पंचकोस की कमी की वजह से बेरासनाथ धाम केवल गुप्त काशी के नाम से प्रसिद्ध है।
इस मंदिर के बारे में गांव के वयोवृद्ध लोग काफी चमत्कारिक घटनाएं बताते हैं। गांव के फूलचंद तिवारी ने इस मंदिर के महात्म्य के बारे में बताया कि बचपन से ही बेरासनाथ मंदिर के महिमा को सुनते चले आ रहे हैं। कई ऐसी घटनाओं को भी देखा जो किसी चमत्कार से कम नहीं है। फूलचंद ने बताया कि एक बार बारिश न होने से पूरे गांव वाले मिलकर मंदिर के शिवलिंग को पानी से डूबोना चाहते थे। मान्यता है कि बारिश होगी, लेकिन सभी ग्रामीणों के प्रयास के बावजूद भी शिवलिंग पानी से नहीं डूबा. हालांकि बाद में बारिश हुई और लोग काफी प्रसन्न हुए।बेरासनाथ मंदिर के महिमा के बारे में बताते हुए रमेश पांडेय ने कहा कि यह शिव मंदिर हमारे पूर्वजों के समय से भी पहले का है। यहां पर पूजा-पाठ करने वालों की सभी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है। यहां पर अपने मनोरथ पूर्ण होने पर दूर दूर के दर्शनार्थी आते हैं। पिछले कई वर्षो से बेरासनाथ मंदिर प्रांगण में शारदीय नवरात्र में भव्य दुर्गा पूजन का आयोजन भी होता है। बेरासनाथ मंदिर प्रांगण में एक भव्य और विशाल पीपल का पेड़ है, जो इस मंदिर की भव्यता को और भी बना देता है।
Aug 17 2024, 17:08