कांवड़ मार्गों पर नेम प्लेट के बाद एक और विवाद, मस्जिद और मजारों को तिरपाल से ढका गया
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उत्तर प्रदेश और उत्तराकंड में कांवड़ यात्रा रूट के ढाबों, ठेलों और दुकानों पर नाम लिखकर पहचान बताने वाला विवाद अभी पूरी तरह से थमा नहीं है कि एक इस बीच प्रशासन के ओक और फैसले पर सवाल उठने लगे हैं। दरअसल, अब उत्तराखंड के हरिद्वार में कांवड़ रूट पर पड़ने वाले मस्जिद और मजारों को त्रिपाल से ढक दिया गया। विवाद बढ़ने के बाद प्रशासन ने मस्जिदों और मजारों से पर्दा हटा लिया है।
दरअसल, यहां ज्वालापुर के रामनगर कॉलोनी स्थित मस्जिद और दुर्गा चौक के पास स्थित मजार के गेट पर बड़ा तिरपाल लगाया गया है।मजार और मस्जिद के केयरटेकर और मौलाना प्रशासन के इस फैसले से अनजान है। उनका कहना है कि इस संबंध में उनसे कोई बात नहीं की गई है। हालांकि इससे पहले कावड़ यात्रा के दौरान मस्जिद और मजार को कभी नहीं ढका गया। यह पहली बार था जब इस तरह से मस्जिद और मजार को ढका गया।
सरकार के आला मंत्री कह रहे हैं कि फैसला ठीक है। मकसद है कि कांवड़ यात्रा व्यवस्थित तरीके से चले।कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज का कहना है कि कावड़ यात्रा व्यवस्थित रूप से चले, इसके लिए मस्जिद और मजारों को ढका गया था। सतपाल महाराज ने कहा कि कावड़ यात्रा के दौरान कोई उत्तेजना न हो और भड़के नहीं, इसका ध्यान रखा गया है। उन्होंने कहा कि जब कोई निर्माण कार्य होता है, तब भी ढक दिया जाता है।
बता दें कि इससे पहले उत्तर प्रदेश सरकार ने कांवड़ यात्रा मार्ग पर पड़ने वाली दुकानदारों को दुकान पर नाम लिखने के दिशा निर्देश जारी किए थे। जिसके बाद उत्तराखंड सरकार ने भी ऐसा ही आदेश जारी किया। सरकार के इन दिशा-निर्देशों की खूब आलोचना हुई। सरकार के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर हुईं, जिन पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में राज्य सरकार के आदेश पर रोक लगा दी है।





अमेरिकी संसद में गुरुवार को भारत को नाटो सहयोगियों के स्तर का दर्जा देने की मांग उठाई गई। इसके अलावा पाकिस्तान अगर भारत के खिलाफ आतंकवाद फैलाता है तो उसके लिए सुरक्षा सहायता बंद करने की भी अपील की गई है। यह बिल अमेरिकी सांसद मार्को रुबियो ने पेश किया है। बिल में मांग की गई है कि अमेरिका अपने सहयोगियों जापान, इस्राइल, कोरिया और नाटो सहयोगी देशों की तरह ही भारत को भी अपना शीर्ष सहयोगी माने और उसे अहम तकनीक का ट्रांसफर करे, भारत की क्षेत्रीय संप्रभुता के लिए बढ़ते खतरे के बीच उसे अपना समर्थन दे और पाकिस्तान से आयातित आतंकवाद के खिलाफ उसके खिलाफ कार्रवाई करे। प्रस्ताव पेश करने के बाद अमेरिकी सांसद ने कहा, "कम्युनिस्ट चीन इंडो-पैसेफिक क्षेत्र में अपना दबदबा बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। साथ ही वह हमारे क्षेत्रीय सहयोगियों की संप्रभुता का भी उल्लंघन करता रहता है। ऐसे में यह जरूरी है कि अमेरिका भारत जैसे अपने सहयोगियों को चीन से निपटने में मदद करे।" सीनेटर रुबियो ने भारत की चिंताओं को रेखांकित करते हुए अपने विधेयक में भारत की क्षेत्रीय अखंडता का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि भारत की क्षेत्रीय अखंडता को लेकर बढ़ते खतरों को देखते हुए भारत का हर स्तर पर समर्थन किया जाना चाहिए। सीनेटर मार्को रुबियो ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर अपनी बातें रखीं। फ्लोरिडा के सीनेटर मार्को रुबियो ने कहा, “मैंने यूएस-इंडिया डिफेंस कोऑपरेशन एक्ट बिल पेश किया है। भारत के साथ अपनी साझेदारी को मजबूत करने के लिए, यह जरूरी है कि हम नई दिल्ली के साथ अपने रणनीतिक संबंधों को बढ़ाएँ। कम्युनिस्ट चीन की आक्रामकता का सामना कर रहे भारत को सर्वश्रेष्ठ समर्थन देने के लिए एक बिल पेश किया गया है।” हालांकि अमेरिका में जल्द ही राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होने हैं और ऐसे समय में जब अमेरिकी कांग्रेस में दोनों पार्टियों के सांसदों में मतभेद चल रहे हैं तो इस बिल के पारित होने की संभावना कम ही है, लेकिन अमेरिका में भारत को मिल रहे समर्थन को देखते हुए नई सरकार के गठन के बाद इस बिल के फिर से कांग्रेस में पेश होने की उम्मीद है। *भारत को क्या होगा फायद?* अमेरिकी सीनेट में भारत को नाटो सहयोगी का दर्जा देने वाला प्रस्ताव पारित होने के बाद यह विधेयक कानून बन जाएगा। इस प्रस्ताव के पास होने से भारत को निश्चित तौर पर फायदा होगा। इसके अलावा दोनों देशों की सामरिक भागीदारी को बढ़ावा देने में भी यह फायदेमंद साबित होगा। ये प्रस्ताव पारित होने के बाद भारत का दर्जा इजरायल और दक्षिण कोरिया के समान हो जाएगा। इसका सबसे बड़ा फायदा होगा कि हम जिस तरह की रक्षा तकनीक की अपेक्षा अमेरिका से मिलने की बात करते हैं वह हमें हासिल हो सकेंगी। इस प्रस्ताव के पास होने से पहले जब भारत तकनीक ट्रांसफर की बात करता था तो सबसे बड़ी बाधा यही थी कि हम नाटो के सहयोगी देश नहीं थे। इसलिए अमेरिका को तकनीक देने में हमेशा झिझक बनी रहती थी। इतना ही नहीं वहां के मिलिट्री इंडस्ट्रीयल कांप्लैक्स को भी रक्षा तकनीक भारत को देने में परेशानी बनी रहती थी। लेकिन, अब जबकि नाटो सहयोगी का दर्जा देने का प्रस्ताव पास हो गया है तो ऐसी दिक्कत नहीं आएगी। *भारत को 'नाटो प्लस' का दर्जा देने की उठी थी मांग* इससे पहले पिछले साल अमेरिकी संसद में भारत को 'नाटो प्लस' का दर्जा देने की भी मांग उठी थी। अमेरिकी संसद की सिलेक्ट कमेटी ने इसकी सिफारिश की थी। भारत को हथियार और टेक्नोलॉजी ट्रासंफर करने में तेजी को उद्देश्य बताकर ‘नाटो प्लस’ का दर्जा देने की कवायद शुरू की गई थी। कमेटी का मानना था कि चीन ताइवान पर हमला करता है तो सामरिक तौर पर कड़ा जवाब देने के साथ-साथ क्वॉड को भी अपनी भूमिका बढ़ानी होगी। हालांकि, भारत ने स्पष्ट संकेत दिया था कि वह ‘नाटो प्लस’ में शामिल नहीं होना चाहता है। विदेश मंत्री जयशंकर ने साफ किया था कि ‘नाटो प्लस’ के दर्जे के प्रति भारत ज्यादा उत्सुक नहीं है।

Jul 26 2024, 19:56
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