पप्पू पास होगा या फेल,सबकी नजर पुर्णिया पर संदर्भ : तेजस्वी की साफ बात राजद या एनडीए
                  ( हमसे का भूल हुई, जो ये सजा हमका मिली )


सीमांचल की पुर्णिया सीट राजद के लिए नाक की लड़ाई बन गयी है । राजद उम्मीदवार बीमा भारती के समर्थन में तेजस्वी यादव पूर्णिया में डेरा डाल चुके हैं। वहीं अपनी पार्टी का टिकट मिलने की उम्मीद में कांग्रेस में विलय करने वाले बाहुबली पप्पू यादव टिकट नहीं मिलने पर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं।  वहीं एनडीए ने संतोष कुशवाहा को अपने  उम्मीदवार के रूप में दोहराया है ।
राजद के लिए प्रतिष्ठा की बात बने पूर्णिया लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले और मोदी लहर के कारण संतोष कुमार , वहीं क्षेत्र में लोकप्रिय चेहरा होने के कारण पप्पू यादव व राजद की बीमा भारती के बीच मुकाबला दिलचस्प बनता जा रहा है ।
संतोष कुशवाहा और पप्पू यादव दोनों के क्षेत्र में लोकप्रिय होने के कारण दोनों के वोटर अलग-अलग है।  इसलिए दोनों एड़ी चोटी का जोर लग रहे हैं। वहीं  राजद उम्मीदवार के लिए तेजस्वी को इस प्रचंड  गर्मी में काफी पसीना बहाना पड़ रहा है। जनसभाओं में तेजस्वी पप्पू यादव पर सारी भड़ास निकाल रहे हैं।
उन्होंने साफ शब्दों में कह दिया है कि या तो बीमा भारती को विजयी बनायें या फिर एनडीए प्रत्याशी को। तेजस्वी यादव समझ रहे हैं कि पूर्णिया में पप्पू यादव मामला बिगड़ सकते हैं । उन्हें बीमा भारती को मिलने वाले वोट पप्पू की तरफ जाते दिख रहे हैं ।
दूसरी ओर एनडीए उम्मीदवार के समर्थन में पीएम की जनसभा और क्षेत्र का जनप्रतिनिधि होने के नाते संतोष कुशवाहा विजय की तिकड़ी लगाने की सोच रहे हैं ।
और अंत में पुर्णिया का ताज  किसके सिर होगा, इसका फैसला तो चार जून को ही होगा । मगर राजद और पप्पू यादव के बीच बढ़ती तल्खी को देखकर एनडीए उत्साहित दिख रहा है।
श्रेष्ठ पुस्तकें मनुष्य , समाज और राष्ट्र का करती हैं मार्गदर्शन संदर्भ : किताबों से दोस्ती हमेशा साथ निभाती है
                                विश्व पुस्तक दिवस पर विशेष

किताबें न सिर्फ ज्ञान देती हैं बल्कि कला, संस्कृति, लोक जीवन और सभ्यता के बारे में भी बताती हैं । बचपन में पहले घर और फिर स्कूल से आरंभ हुई पढ़ाई जीवन के अंत तक चलती रहती है।  पर आजकल लोगों में पढ़ने की प्रवृत्ति कम होती जा रही है । किताबों से लोग दूर भाग रहे हैं।
आज सभी लोग सब कुछ नेट पर ही खंगालना चाहते हैं । इसका दुष्प्रभाव भी दिखायी दे रहा है । कारण लोगों की जिज्ञासु प्रवृत्ति और याद करने की क्षमता धीरे-धीरे कम होती जा रही है । बच्चों में यह समस्या ज्यादा दिख रही है।  किताबें बच्चों में अध्ययन की प्रवृत्ति, जिज्ञासु प्रवृत्ति , सहेज कर रखने की प्रवृत्ति और संस्कार की शिक्षा देती हैं।
दूसरी और कंप्यूटर और इंटरनेट के प्रति बढ़ते रुझान के कारण किताबों से लोगों की दूरी बढ़ती जा रही है । लोग नेट के  अदृश्य जाल में धीरे-धीरे फंसते जा रहे हैं । वहीं नेट पर लगातार बैठे रहने से लोगों की आंखों और मस्तिष्क पर भी बुरा असर पड़ रहा है।
ऐसे में किताबों के प्रति लोगों में रुचि जागृत करना जरूरी हो गया है। किताबें और लोगों के बीच बढ़ती दूरी को पाटने के लिए 23 अप्रैल, 1995 को यूनेस्को ने विश्व पुस्तक दिवस के रूप में मनाने का फैसला लिया।  इसके बाद पूरे विश्व में इस दिन को विश्व पुस्तक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा ।
लोगों में किताबों के प्रति रुचि जगाने के लिए मनाये जाने वाले विश्व पुस्तक दिवस पर स्कूलों में बच्चों में पढ़ाई की आदत डालने के लिए सस्ती दर पर किताबें बांटने जैसे अभियान चलाये जा रहे हैं । साथ ही स्कूल  और सार्वजनिक स्थलों पर प्रदर्शनियां लगाकर पुस्तकें पढ़ने के लिए लोगों को जागरूक किया जा रहा है । लोगों में किताबों के प्रति रुचि जगाने में पुस्तकालय भी अहम भूमिका निभा सकते हैं बशर्ते कि उनका रख रखाव सही तरीके से हो और साथ ही स्तरीय और रुचिकर पुस्तकें और पत्रिकाएं  उपलब्ध करायी जायें।
और अंत में आज किताबों के प्रति घटते प्रेम और आकर्षण के प्रति गंभीर रूप से सोचने और इस दिशा में सार्थक प्रयास करने की जरूरत है। 23 अप्रैल, 1995 को पहली बार पुस्तक दिवस मनाया गया था । कालांतर में यह हर देश में मनाया जाने लगा । किताबों का हमारे जीवन में क्या महत्व है,  इसके बारे में जानकारी देने के लिए विश्व पुस्तक दिवस पर विभिन्न स्थानों पर गोष्ठियां भी आयोजित की जाती है। किताबों से दोस्ती हमेशा साथ निभाती है।
व्यक्ति से ज्यादा महत्वपूर्ण उसका व्यक्तित्व संदर्भ : वैश्विक शांति के लिए सारे विश्व की नजर भारत पर

                                          जियो और जीने दो * भगवान महावीर का निर्वाण महोत्सव
* विकसित राष्ट्रों की नजर भारत पर


आज चौतरफा संघर्ष में घिरी दुनिया में अगर शांति की किरण दिखायी देती है तो वह हैं भगवान महावीर के संदेश। विकसित और समृद्ध देशों की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं के कारण दुनिया तीसरे विश्व युद्ध के कगार पर पहुंच गयी है। भगवान महावीर के उपदेश सत्य , अहिंसा और अपरिग्रह को अपनाकर कोई भी व्यक्ति या राष्ट्र अपने आप को सफल बना सकता है । एक व्यक्ति से ज्यादा महत्वपूर्ण उसका व्यक्तित्व  होता है , क्योंकि व्यक्ति तो समाप्त हो जाता है लेकिन उसका व्यक्तित्व सदैव जीवित रहता है ।
हजारों वर्ष पहले दी गयीं भगवान महावीर की शिक्षाएं आज के दौर में तो और भी प्रासंगिक लगती हैं । " जियो और जीने दो"  का संदेश देने वाले भगवान महावीर ने इसके माध्यम से सारी दुनिया को शान्ति की राह दिखायी थी । भगवान महावीर की शिक्षाओं का केंद्रीय आधार अहिंसा है।  इसलिए भगवान महावीर ने मौखिक, मानसिक और शारीरिक रूप से अहिंसा का अभ्यास करने के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया
मगर विकसित राष्ट्रों के लिए भगवान महावीर के संदेश " अहिंसा परमो धर्म" और " जियो और जीने दो " लगता है प्रासंगिक नहीं लगते। तभी तो आज सारी दुनिया तीसरे विश्व युद्ध की दहलीज पर खड़ी हुई है। आज संपन्न और विकसित देश अपने परमाणु हथियारों के बल पर अपना दबदबा कायम रखना चाहते हैं।
रूस - यूक्रेन, हमास - इजरायल और इजरायल - इरान  के बीच जारी संघर्ष थमने का नाम नहीं ले रहा है। हजारों लोगों की जान जा चुकी है। कहीं से भी युद्ध खत्म करने का प्रयास नहीं किया जा रहा। विकसित देश युद्धरत देशों को अत्याधुनिक हथियारों की खेप उपलब्ध करा अपना फायदा उठा रहे हैं।
और अंत में इसलिए आज जरूरत है भगवान महावीर के अहिंसा परमो धर्म के सिद्धांत को अपनाकर विश्व में शांति स्थापित करने और जियो और जीने दो का संदेश देने की।
सूर्यकुल भूषण राम लला का भगवान भास्कर ने किया राजतिलक कलियुग में धन्य हुई अयोध्या नगरी
2 2 जनवरी , 2024  वो ऐतिहासिक तिथि जब करीब 500 साल बाद राम लला टेंट से निकाल कर भव्य और अलौकिक मंदिर में विराजित हुए। राम लला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद पहली रामनवमी अर्थात राम लला का पहला भव्य जन्मोत्सव अयोध्यावासियों ने बड़े ही धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया।
इस अवसर पर करीब 24 से 25 लाख लोग राम लला के दर्शन के लिए देश के कोने कोने से आये। इनमें विदेशी भी शामिल थे। इस बार की रामनवमी एक मायने में और खास थी, वह यह कि भगवान भास्कर ने स्वयं श्री राम लला का तिलक किया , जो करीब 4 से 6 मिनट तक का था ।
सूर्य वंश के अधिष्ठाता भगवान सूर्य ने 17 अप्रैल के 12 बजे ज्योंहि सूर्यवंश कुल भूषण राम लला का राज तिलक किया अयोध्या, वहां के निवासी, बाहर से आये भाग्यशाली दर्शनार्थियों सहित करोड़ों टीवी दर्शकों के रोम -रोम सिहर उठे। वे अपलक इस अविस्मरणीय क्षणों को अपने नेत्रों में बसा लेना चाहते थे। इस अदभुत क्षण के दर्शन करने के लिए देश के हर कोने से दर्शानार्थियों की भीड़ उमड़ पड़ी थी। वहीं दर्शनार्थियों की उमड़ती भीड़ को देखते हुए प्रशासन ने ठोस व्यवस्था की है।  इस बार सात लाइनों में दर्शनार्थियों को कतारबद्ध होकर दर्शन कराया गया । पहले जन्मोत्सव पर राम लला  बहुत ही आकर्षक और विशेष पोशाक में अद्भुत छटा बिखेर रहे थे।
क्या सपा की राह पर चल रहा राजद संदर्भ : राजद सुप्रीमो पर सिद्धांतों से समझौता और परिवारवाद का आरोप
          ( इन तीनों का भविष्य तय करेगा लोकसभा चुनाव 2024)

समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल दोनों परिवारवाद की पोषक पार्टियां रही हैं । सियासी दांव के माहिर खिलाड़ी रहे मुलायम सिंह यादव ने शायद सपने में भी नहीं सोचा होगा कि जिस पार्टी (समाजवादी पार्टी) की स्थापना उन्होंने 1992 में की थी , उससे उनका पुत्र ही निकाल बाहर कर देगा।
मालूम हो कि एक जनवरी , 2017 को अखिलेश के चचेरे चाचा रामगोपाल यादव ने पार्टी का विशेष अधिवेशन बुलाकर मुलायम सिंह यादव को अपदस्थ कर अखिलेश यादव को सपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया था । इसके बाद अखिलेश यादव धीरे-धीरे मुलायम सिंह यादव के करीबियों का टिकट काटने लगे ।
पिता - पुत्र के बीच विवाद काफी महीनों से चल रहा था। अखिलेश यादव की बढ़ती महत्वाकांक्षा को देखते हुए मुलायम सिंह यादव ने आखिरकार 13 सितंबर,  2016 को अखिलेश को पार्टी से बाहर कर दिया था। इसके बाद अखिलेश यादव ने अपने चाचा राम गोपाल यादव के साथ मिलकर पार्टी पर कब्जा कर लिया ।
लोकसभा चुनाव में सियासी पारा हाई हो चुका है। बीजेपी और बसपा के बड़े नेता पार्टी और उम्मीदवार के पक्ष में प्रचार - प्रसार कर रहे हैं । वहीं इन सबके बीच सपा प्रमुख अखिलेश यादव अकेले पड़ते नजर आ रहे हैं।
दूसरी ओर बिहार में राजद का भी हाल सपा की तरह ही लग रहा है । क्या तेजस्वी भी लालू प्रसाद को अपदस्थ कर खुद राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना चाहते हैं । लालू प्रसाद लोकसभा चुनाव 24 को लेकर काफी सक्रिय देखे जा रहे हैं । वे पार्टी प्रत्याशी के चयन और सीटों के बंटवारे में भी सक्रिय रहे । अपने आवास में भी राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होते हैं ।
इंडिया गठबंधन की जहां-जहां रैलियां हुईं, लालू प्रसाद उनमें शामिल हुए और एनडीए के खिलाफ खूब बोले । मगर तेजस्वी यादव लालू प्रसाद को चुनाव प्रचार के लिए घर से बाहर नहीं निकलने दे रहे हैं। हो सकता है वे अस्वस्थ हों।
पर लालू प्रसाद आज भी खुद को किंग मेकर ही समझ रहे हैं। उस समय कांग्रेस की सरकार थी। मगर आज माहौल दूसरा है।  इंडिया गठबंधन में सीटों की शेयरिंग भी लालू प्रसाद की मनमर्जी से हुई।  इसी अहंकार में लालू प्रसाद ने कुछ ऐसे गलत फैसला ले लिये , जिससे उनके करीब हतप्रभ और नाराज दिख रहे हैं।
एक ताजा घटनाक्रम में तेज प्रताप यादव के करीबियों द्वारा एक नयी पार्टी "जनशक्ति जनता दल" के नाम से बनायी गयी है। यह कुछ सीटों पर चुनाव लड़ेगी। पार्टी ने चुनाव आयोग से "बांसुरी" चुनाव चिन्ह के रूप में मांग की है। इस मौके पर तेज प्रताप यादव भी मौजूद थे।
और अंत में राजद के स्टार प्रचारकों में लालू प्रसाद,राबड़ी देवी , अब्दुल बारी सिद्दीकी के साथ तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव के नाम शामिल हैं। लेकिन सिर्फ तेजस्वी यादव ही चुनावी सभा में शामिल हो रहे हैं। मालूम हो की 2019 के लोकसभा चुनाव में भी तेजस्वी ने अकेले ही चुनाव प्रचार का जिम्मा संभाला था । उस चुनाव में राजद का क्या हश्र हुआ, यह सभी को मालूम है । आज पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता और नेताओं की अवहेलना हो रही है, जिससे उनमें बगावती तेवर नजर आ रहे हैं। दूसरी ओर तेज प्रताप यादव के करीब ने नयी पार्टी का गठन किया है जो कुछ सीटों पर चुनाव लड़ सकती है।
अस्ताचलगामी सूर्य को व्रतियों ने दिया अर्घ्य
चैती छठ के अवसर पर रविवार को पत्रकार नगर डाक्टर्स कालोनी स्थित पार्क में अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते वर्ती

दिल को बहलाने का गालिब - ए - ख्याल अच्छा है संदर्भ : इंडिया गठबंधन के घोषणा पत्र
लोकसभा चुनाव के लिए एनडीए सहित इंडिया गठबंधन में शामिल सभी पार्टियों का करीब - करीब  चुनावी घोषणा पत्र जारी हो चुका है।  सभी पार्टियों ने अपने अपने घोषणापत्र में जनता से  लोकलुभावन वादे किये हैं। परंतु आज जनता भी समझ चुकी है कि ये सब चुनावी हथकंडे हैं।
ऐसा लगता है कि कांग्रेस और इंडिया गठबंधन देश को आर्थिक और सामरिक दृष्टि से कमजोर करना चाहते हैं। जिस भारत को परमाणु शक्ति संपन्न बनने में इतने बरस लगे। आज भारत का परचम सारी दुनिया में लहरा रहा है। आज का भारत आजादी के वक्त के भारत से बिल्कुल ही अलग और आत्मनिर्भर है। जिसके कारण ही पड़ोसी देशों की नापाक हरकतों में काफी कमी आयी है। एक तरफ कांग्रेस के जारी चुनावी घोषणा पत्र में परमाणु हथियारों को नष्ट करने की बात कही जा रही है।
वहीं दूसरी ओर राजद के चुनावी घोषणा पत्र में तेजस्वी यादव ने कहा है कि हम एक करोड़ लोगों को नौकरियां देंगे। तेजस्वी यह साफ नहीं कर पाये कि उनके पिता लालू प्रसाद जब रेल मंत्री थे तब उन्होंने भी काफी नौकरियां बांटी थीं। कैसे बांटी थीं , यह आज सबको पता चल गया है।
इंडिया गठबंधन में शामिल सभी पार्टियों के नेता मोदी फोबिया से ग्रस्त लगते हैं। उनको हर जगह मोदी ही नजर आते हैं। इस कारण इंडी गठबंधन की तरफ से कौन कब और कहां क्या बोल देगा कुछ पता नहीं चलता।
कांग्रेस और इंडिया गठबंधन मोदी का विरोध करते  - करते व्यक्तिगत टिप्पणी के साथ साथ ‌देश की सुरक्षा को भी खतरे में डालने का मंसूबा पाले रहे हैं।
और अंत में परमाणु हथियार किसी भी देश की सुरक्षा में अहम भूमिका निभाते हैं। उस देश की सामरिक शक्ति का अहसास कराते हैं। उनको खत्म करने की बात सोचना देश को फिर गुलाम बनाने की सोच को दर्शाता है।
मोदी की तीसरी पारी कांग्रेस और राजद पर पड़ेगी भारी संदर्भ : गठबंधन के तरकश में सिर्फ बातों के तीर
         ( चिंता नहीं मित्र , सब सेट कर दिया है। बस आप देखते रहिये। ) इंडिया गठबंधन में शामिल सभी पार्टियां जानतीं हैं कि अगर मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बन गये तो भ्रष्टाचारियों की नकेल कस  जायेगी। इसी घबराहट में गठबंधन की ओर से उल्टे-सीधे तर्क दिये जा रहे हैं।
एक तरफ एनडीए लोकसभा चुनाव में कमर कस कर उतर चुका है वहीं दूसरी ओर इंडिया गठबंधन में आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद कोई हलचल ही नहीं दिख रही है। सात चरणों में संपन्न होने वाले लोकतंत्र के महापर्व का पहला चरण 19 अप्रैल से शुरू होने वाला है। मगर इंडी गठबंधन में शामिल सभी पार्टियां अपनी-अपनी डफली बजा रही हैं और सिर्फ बातों के तीर छोड़े जा रहे हैं।
लालू परिवार की तरफ से बारी-बारी से ऐसे- ऐसे बयान सामने आ जाते हैं जो गठबंधन के लिए ही नुकसानदेह साबित हो जाते हैं । लालू प्रसाद की पुत्री डा. मीसा भारती के हालिया बयान कि " हमारी सरकार बनी तो पीएम सहित सारे भाजपा नेताओं को जेल भेजा जायेगा"  हताशा ही दर्शाता है। उनके बयान का जब चौतरफा विरोध होने लगा तो मीसा भारती बैकफुट पर आ गयीं और अब कह रहीं हैं कि मेरे बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया है।
इससे पहले तेजस्वी यादव भी एक रैली में ऐसा ही बयान दे चुके हैं कि "हम लालू प्रसाद के बेटे हैं किसी से डरने वाले नहीं "। इसी तरह एक रैली में उन्होंने कहा था कि उनके पिता लालू प्रसाद ने लाल कृष्ण आडवाणी के राम रथ को रोका था, हम नरेन्द्र मोदी के विजय रथ को रोकेंगे।
जो गठबंधन अभी तक अपना चेहरा नहीं चुन सका , वह सरकार बनाने के सपने देख रहा है । दिल्ली के मुख्यमंत्री के जेल जाने के बाद पूरा गठबंधन उनके समर्थन में लग गया था, उसे चुनाव की कोई चिंता ही नहीं है। इंडी गठबंधन रूपी जहाज का कप्तान ही जब जहाज छोड़ गया तो वह हिचकोले ही खायेगा।
और अंत में पहले कांग्रेस इंडिया गठबंधन की झंडाबरदार बनी थी, मगर कांग्रेस युवराज राहुल गांधी जब चुनाव की चिंता छोड़ मोहब्बत की दुकान चलाने लगे, तो लालू प्रसाद के परिवार ने गठबंधन का झंडा थामा। मगर एक कहावत है " विनाश काले विपरीत बुद्धि ", यही स्थिति राजद की बन गयी है। लालू परिवार से ऐसे ऐसे बयान आने लगे जो गठबंधन के लिए नुकसानदेह साबित हो रहे हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि बात जुबान से, तीर कमान से और  प्राण शरीर से निकल जाते हैं तो फिर वापस नहीं आते।
हाई प्रोफाइल डिग्री वालों का आईक्यू टेस्ट संदर्भ : नेकी कर सोशल मीडिया पर डाल
आजाद भारत में पहले आम चुनाव 1951- 52 में सर्दियों के मौसम में कराये गये थे। उस समय देश में निरक्षरता का बोलबाला था । 85 फ़ीसदी लोग पढ़- लिख नहीं पाते थे। वहीं संक्रामक रोगों की विभीषिका और अकाल मौतों ने जीवन को तहस-नहस कर रखा था । लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं हो पाती थीं। देश के पहले आम चुनाव में मात्र 14 पार्टियां शामिल हुईं थीं। पर, आज देश की स्थितियां भिन्न हैं। आज देश में निरक्षरता की दर 35 फ़ीसदी ही रह गयी है । पर ये कैसी विडंबना है कि आजाद भारत में नेता पढ़े लिखे थे और जनता निरक्षर थी परंतु आज स्थितियां इसकी उलट हैं। आज राजनीति ऐसा क्षेत्र बन गयी है, जहां आपको किसी न्यूनतम शैक्षिक योग्यता की आवश्यकता नहीं होती। हम देख सकते हैं कि कितने अशिक्षित और गैर योग्य प्रत्याशी सत्ता प्राप्त कर इसका दुरुपयोग करते हैं। आज जेल में बंद सजायाफ्ता व्यक्ति चुनाव में खड़ा होता है और जीत जाता है। वहीं ऐसे व्यक्ति भी राजनीति से चिपके हुए हैं, जिनकी बात जनता समझ ही नहीं पाती। राजनीति आज काजल की कोठरी बन गयी है, मगर उसमें रहने वाले लोगों के कपड़े बेदाग रहते हैं।
आज की राजनीति ऐन-केन-प्रकारेण यानि साम-दाम-दंड भेद के तहत सिर्फ पर सिर्फ सत्ता प्राप्त करने का प्रयास है । आज के नेता चुनाव के समय जाति और समुदाय के नाम पर लोगों को आपस में लड़ा कर अपना फायदा उठाने की फिराक में रहते हैं। गरीब, शोषित और पिछड़ा वर्ग से इन्हें कोई हमदर्दी नहीं । नेता इनका उपयोग केवल और केवल अपने वोट बैंक के रूप में ही करते हैं। इसका उदाहरण हमें हर राज्य में देखने को मिलता है।
और अंत में जिस प्रकार एक अच्छा शिक्षक ही बच्चों को सही दिशा दिखा कर उन्हें जीवन में सफल होने योग्य बनाता है और अपना सारा ज्ञान छात्रों को देता है। उसी प्रकार एक योग्य और अनुभवी राजनेता ही देश का विकास कर सकता है। आपके पास जो होगा वही आप दूसरे को देते हैं।
इंडिया गठबंधन के दल अपना वजूद बचाने में लगे संदर्भ : 2024 में विपक्ष विहीन लोकसभा की उम्मीद
2024 लोकसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है। वहीं दूसरी ओर विपक्षी दलों के नेता करीब 10 साल से ( 2014 से 2024 ) सिर्फ और सिर्फ मोदी विरोध में ही लगे रहे। वहीं इतना तो इंडिया गठबंधन के नेता भी समझ चुके हैं कि 2024 में भी मोदी को सत्ता से बेदखल करना नामुमकिन है । तभी तो एक सभा में ''आप" प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि  2024 में तो नहीं लेकिन 2029 में मोदी को हम जरूर हरायेंगे।
इंडिया गठबंधन के हर घटक दल की अपनी - अपनी और अलग-अलग मजबूरियां हैं और वे सभी उसी में उलझे हुए हैं । 19 अप्रैल को पहले चरण की वोटिंग होनी है। विपक्ष शायद इसी के आधार पर आगे की रणनीति बनायेगा । दूसरी ओर जनता जब मतदान के लिए लाइन में लगी होगी तो उसके सामने सिर्फ एक चेहरा मोदी ही दिखायी देगा । वहीं इंडिया गठबंधन अब तक कोई चेहरा ही  तय नहीं कर पाया है । वह जनता को कैसे यकीन दिलायेगा कि मोदी का कोई विकल्प भी उसके पास है । आप , राजद, टीएमसी , सपा , उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार की एनसीपी सभी आंतरिक कलह से जूझ रही हैं।
कांग्रेस अपने अस्तित्व को लेकर चिंतित है और अपनी आंतरिक एकजुटता को बचाने के लिए जद्दोजहद कर रही है। वहीं एनडीए ताल ठोक कर कह रहा है कि " अबकी बार 400 पार" ,  वहीं इंडिया गठबंधन यह तय ही नहीं कर पाया है कि वह कितनी सीटें जीतने में सफल होगा।
और अंत में आज तीन युवाओं ( राहुल, अखिलेश और तेजस्वी ) का भविष्य 2024 का लोकसभा चुनाव तय करेगा। अगर 2019 वाला प्रदर्शन इन तीनों का रहा तो अपने-अपने राज्य में सत्ता में आने का इनका सपना " मुंगेरीलाल के हसीन सपने " के समान साबित होगा।